देवालय
अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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मन को बना स्वयं देवालय,
करें विचारों को पावन।
चहुँ दिश खुशहाली छाएगी,
जैसे हरियाली सावन।
राम दुलारे बजरंगी ने,
ह्रदय चीर दिखलाया था।
भक्ति भाव से सियाराम को,
हृदय बीच बिठलाया था।
देवालय पावन स्थल हैं,
सब की पुण्य धरोहर हैं।
सागर सप्त, पूजनिय पावन,
सुंदर सलिल मनोहर हैं।
सभी तीर्थ हैं नदियों के तट,
भव्य मनोरम देवालय।
स्वयं देव जिनमें स्थापित,
प्रभु का घर है देवालय।
प्राण प्रतिष्ठा कर देवों की,
मंदिर में पधराते हैं।
सुबह शाम आरती सजाकर,
देव वंदना गाते हैं।
देवालय में दर्शन पाकर,
मन प्रमुदित हो जाता है।
जीवन के जंजाल भूलकर,
प्रभु से मन मिल जाता है।
भागमभाग भरे जीवन में,
चारों ओर तमस छाया।
देवालय आकर मानव ने,
अमन चैन सब कुछ पाया।
शांति धाम भी हैं देवालय,
प्रभु दर्शन भी होते हैं।
पात...




















