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कविता

सपने मनु शतरूपा के
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सपने मनु शतरूपा के

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कभी मिले थे हम तुम नादान थे अनजान थे सच में हम थे दो दीवाने खुली आँखों के वे सपने तेरे मेरे नहीं, वे थे अपने *सुदूर फैली वादियों में फूलों का शहर छोटा सा पेड़ो के झुरमुठ से घिरा प्यारा नायाब सा घरौंदा मनु और शतरूपा का हो *झरोखों रोशनदानों से रवि किरणें फैल जाएँगी हमारे घर के हर कोने में पंछियों की चहचहाट सुन चाय पीते खूब बतियाएँगे *मनु हवाई किस उड़ाते चल देंगे अपने काम पर कान्हा को पूजते झुलाते खो जाऊँगी मैं सपनों में कब गूँजेगी किलकारियां *हमारी बगिया में खिलेंगे प्रसून और पर्णा दो फ़ूल महकेगा आशियाँ न्यारा बच्चे भी मंजिलें तलाशते नए नीड़ों को उड़ जाएंगे *ऐनक चढाए हकलाते अँगीठी के पास बैठ कर गुम खयालों में ख़्वाबों के कॉफी की चुस्कियों में मनु शतरूपा खो जाएँगे परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) ...
लाडो खुश रहना
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लाडो खुश रहना

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** लाडो खुश रहना, खुशहाल रखना परिवार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...। बेटी खुश रहना, खुशहाल रखना परिवार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...। बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...।। सोने की थाली में, कंचन सा पानी, प्राणों से प्यारी, मेरी बिटिया रानी, लाडो कर देना..., बेटी कर देना, एक उपकार, बाबुल मैया, जो चाहे हो। बेटी कर देना, एक उपकार, बाबुल मैया, जो चाहे हो। "का चाहे, बाबुल मैया, का चाहे, बाबुल मैया, जो चाहे हो।" लाडो दे देना..., बेटी दे देना, खुशियां हजार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो। बेटी दे देना, खुशियां हजार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो। लाडो खुश रहना...। बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...।। सोने सा अंगना में, महके बागवानी, फूलों से प्यारी, मेरी बिटिया रानी, लाडो कर देना..., बेटी कर देना, एक उपकार, बाबुल मैया, जो च...
रंग साँवला
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रंग साँवला

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** यह बात तुझसे कहा नही होता तुम्हारे इश़्क में बावला नही होता। बिना समय गंवाए तू मेरी होती रंग मेरा यदि साँवला नही होता। लोग कहते रहें भले कुछ लेकिन प्यार इतना भी बुरा नही होता। दो प्यार करने वालों के दरम्याँ यार रहे याद, कोई तीसरा नही होता ॥ रुठते मनाते रहते हैं एक दूजे को देर तक कोई ख़फा नही होता॥ किस्मत से मिलता है सच्चा प्यार हर कोई यहाँ बेवफ़ा नही होता ॥ परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी न...
एक भारत ऐसा भी
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एक भारत ऐसा भी

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** एक पुल के ऊपर ठाठ बाट संभ्रान्त, दूसरा पुल के नीचे अर्द्ध नग्न सहता संताप। एक लंबी छुट्टी का लेता आरामदायक मजा, दूसरा लंबी छुट्टी की लेता कष्टदायक सजा। एक सुरक्षित, आनंदमय, गुनगुनाता, खिलखिलाता परिवार, दूसरा चिलचिलाती धूप में थका-मांदा पैर रगड़ता सुबकता परिवार। एक जो रोज नए खाद्य पदार्थ की विधि से अपनी चंचल जिव्हा को तुष्ट करता, सोशल मीडिया पर इतराकर अपनी पाक कला दर्शाता। तो दूसरा एक कटोरी भात के लिए दूसरों के समक्ष हाथ पसारता। आठ बच्चों में एक रोटी के टुकड़े कर गटागट पानी पी सो जाता। एक बैंक में जमे पैसों का लेखा-जोखा देख निश्चिंत। दूसरा हाथों की उंगलियों को चटकाता बिना आजीविका चिंतित। एक बालकनी में आनंद लेता पक्षियों की चहचहाहट। दूसरे के मन में आर्तनाद और घबराहट। एक कोरोना के आंकड़े गिनता ...
पथिक
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पथिक

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** पथिक हो? फिर विराम क्यों ? चलना तेरा काम है फिर आराम क्यों? पथिक हो? फिर पथ पर पड़े कंकरों से तुमको भय क्यों? पथिक हो? फिर पथ पर चलने से तुम को थकावट क्यों? पथिक हो? फिर हार जाने के डर से तुम को घबराहट क्यों? परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंद...
कौन हूं मैं…???
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कौन हूं मैं…???

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बरसों से एक जवाब की तलाश थी, सवाल खुद पर था, उत्तर भी खुद से देना था रात दिन हर पल, खुद से खुद में हलचल मचाता हुआ अचानक प्रश्न कौंधा "कौन हूं मैं" ???? किसी चेहरे की खुशी तो किसी की मुस्कान हूं, किसी के आंखो की नमी, किसी के जीवन में बरसात सी हूं ना जाने किसका सवेरा किसकी शाम हूं कभी किसी का सच, तो कभी पलकें झुकाए अनकही पहेली हूं कौन हूं? यदि हूं, तो अब तक चुप क्यूँ हूं?? हर पल चल रही हूँ हर पल ढल रही हूँ कभी उत्सव में लीन कहि वीरानी में सिमटी सवाल बेहिसाब हैं, सिलसिला चला जा रहा है हर पल कई रंग और बदलते हुए कई रूप हैं कही जीवन जीने में शामिल कभी मृत्यु से, थरथराती, डरी हूं क्या मौत से खत्म है जिन्दगी, क्या जान से ही जहान है ?? क्या जीवन सत्य है, या मृत्यु ही अटल सत्य है इन सवा...
स्नेह
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स्नेह

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कमाल की तरक्की होती जा रही अब जमाने में, आज तक स्नेह परखने का यंत्र तो बन नहीं सका। सुनते रहे थे सदा हम, छिपाने से छिपता नहीं, स्नेह कोई वस्तु जैसी नहीं प्रदर्शन बन नहीं सका। दिल की तिजोरी का हर कोना स्नेह से लिप्त हो जरूरत में कैद स्नेह कभी, आजाद बन नहीं सका। सात दिन चौबीस घंटे दिल कारखाने में ये बने, स्नेह गजब का डॉन, सूरत ए हाल बन नहीं सका। चार बातें चार लोग के सामने होती महफिल में, खुद के बनाए घेरे में झांकता, शख्स बन नहीं सका। सही गलत सब गेंद खेलने, माहिर हुए अब लोग, सही जगह सच रखने, फिक्रमंद भी बन नहीं सका। स्नेह सात तालों की सुरक्षा, बहुत खास है प्रसंग बहुत स्नेह रखते मात्र कहने, साहस बन नहीं सका। दूसरों की नजर में पूछ परख सम्मान मिलता रहे, सबके सामने सच रखने का, योग भी बन नहीं सका। स्नेह के ऐसे क...
नहीं कुछ कहता मैं भी
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नहीं कुछ कहता मैं भी

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** नहीं कुछ कहता मैं भी लिए हो हाथ में जो तुम कुल्हाड़ करों जो तुम चाहो अपनी मनमानी मैंने दिया है तुझको क्या क्या लेकिन दिया है तुमने मुझे ये क्या कर दिया जो तुमने मुझे बलिदान स्वार्थ के जो तुमने बीज अपनाया प्रेमभाव जलसिंचित जो किया किया तो अपनी स्वार्थ मनोरथ के लिए निर्जीव गूंगा जो जानकर कर दिया अपनी क्रोध का भांडाभाड़ हो ना सका मातृभूमि का नव श्रृंगार कर दिया जो तुमने मुझे बलिदान। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर...
देशवासियों को जगाऊंगा
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देशवासियों को जगाऊंगा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** प्यार की डोर लेकर मंजिल को तलाश रहा हूँ। गीत मिलन के लिखकर गाये जा रहा हूँ। पैगाम अमन चैन का गीतों में दिये जा रहा हूँ। और भारतीय होने का फर्ज निभा रहा हूँ।। दोष मुझ में लाख है पर इंसानियत को जिंदा रखता हूँ। है अगर कोई मुश्किल में तो यथा सम्भव मदद करता हूँ। मिला है मनुष्य जन्म हमें पूर्व जन्मों के कर्मो से। इसलिए इस भव में भी अच्छे कर्म कर रहा हूँ।। छोड़कर मान कषाय को शांत भाव से जीता हूँ। और मानव धर्म का निर्वाह सदा ही मैं करता हूँ। फिर भले ही चाहे मुझे मान सम्मान न मिले। पर मानवता को ऊपर रखकर देशवासियों को जागता रहता हूँ।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से ...
शक्तियों की प्रतीक देवियां
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शक्तियों की प्रतीक देवियां

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नवरात्रि में ये महा देवियां निज स्वरूपों के देती संदेश इनके आचरण के पालन से सुधर जाता अपना परिवेश पार्वती कर देती है परिवर्तन विस्तार को बना देती है सार पीहर व ससुराल के रिश्तों में बहती रहती सदा नेह की धार जगदम्बा देवी सहनशील बन माँ सी करती है रक्षा अपरंपार बिना शर्त ही सबसे प्रेम करो करो सर्वदा निश्छल व्यवहार संतोषी माँ सी धैर्यशील बनके हर कण चांवल करे स्वीकार अवगुणों को समाकर दिल में सर्व गुणों का कर देती संचार गायत्री महान परख की देवी गन चक्षु की रखती तीक्ष धार हंसिनी सी बस मोती चुगती देती है न्याय का सार ही सार शारदा विद्या निर्णय की देवी हाथ में शास्त्र व वीणा झंकार जब सुर संगीत की धुन छेड़े सर्व जनों का हो जाता उद्धार मुंडो की माला पहन के काली मिटा देती है संसार के विकार विपदा की घड़ियों में...
अभिनन्दन नये वर्ष का
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अभिनन्दन नये वर्ष का

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** अभिनन्दन हो नये वर्ष का लेकर पूजा की थाली झूमें नाचें दीप जलायें मंगल गायें आओ आलि खलिहानों में सरसो फूले झूमें बाली गेहूंओं वाली कृषक झूमते अपने मद में और झूमे नारी नखराली वृक्ष वृक्ष पर नई कोंपलें लकदक अमुआ की डाली रंगोली भी एक बनाएं इंद्रधनुषी रंगों वाली नया गीत हो नई थाप हो नव्य नवेली हो ताली जले कपूर नेह प्रेम का हो सुवासित रातें काली माता आई नवदुर्गा बन घर घर छाए खुशहाली वंदन करें नव वर्ष का लेकर पूजा की थाली !! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित ...
जहाज का पंछी
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जहाज का पंछी

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** मैं इस जहाज का पंछी हूं मेरा दूजा कोई ठौर नही धरती पर जो सुकून मिलता है वो कहीं और नहीं। भूख नामुराद जहाज पर लाई है मेरा तो ठिकाना और था जो गुजर गया वो गुजर गया फिर आएगा ऐसा दौर नहीं। परिवार कहां और मैं कहां उस परिवार के लिए तड़पता हूं सहा नहीं जाता मुझसे अब तो जालिम लहरों का शोर नहीं जो इस जहाज पर मिल जाता है उससे भूख मिटाता हूं आंखों के आगे अंधेरा है दिखाई दे ऐसी कोई भोर नहीं। उम्मीद लगाए रहता हूं मै कब धरती का साहिल मिल जाए बीत गई सो बीत गई अब करता उसपर मैं गौर नहीं। नसीब में जो लिखा है वह तो मिलना ही निश्चित है अपनी किस्मत के आगे चलता किसी का जोर नहीं। पेट की भूख ने आदमी को क्या से क्या बना डाला इस भूख का दुनिया में कहीं कोई और न छोर नहीं। परिचय :- सीताराम पवार निवासी : धवल...
हिन्दू नववर्ष प्यारा
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हिन्दू नववर्ष प्यारा

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** हम हैं हिन्दुस्तानी, है हिन्दुस्तान हमारा । चलो मनाएं साथी, हिन्दू नववर्ष प्यारा ।। संस्कारों की धरती है यह, भारत भूमि हमारी । जान से भी बढ़कर लगती है, हम सब को यह प्यारी ।। यही हमारी आन बान और, यही है शान हमारा चलो मनाएं साथी, हिन्दू नववर्ष प्यारा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है पावन, इस दिन इसे मनाते । करके शक्ति की आराधन, मन में जोश जगाते ।। श्रृष्टि के कण कण में छाईं, अद्भुत रूप नजारा चलो मनाएं साथी हिन्दू नववर्ष प्यारा रीत रिवाजों से है पूर्ण, इसकी शान निराली । संस्कृति से सजी ये धरती, खुशिऑ देने वाली ।। ऑंख उठाकर देख रहा है, आज इसे जग सारा चलो मनाएं साथी हिन्दू नववर्ष प्यारा मंगलमय हो वर्ष नया यह, गीत खुशी के गाएं । स्वागत में इसके आओ हम, मंगल दीप जलाएं ।। राम मिला कुदरत से हमको, यह...
स्वप्न बहते रहे
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स्वप्न बहते रहे

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पल-पल क्षण क्षण बीता यादों के झुरमुट में स्वप्न बहते रहे मेरे अंतर्मन में मुट्ठी भर आकाश झांकता। बने झरोखे से झींगुर कहता मैं साथ हूं रात के सन्नाटे में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
तूम प्रीत की बारिश करना
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तूम प्रीत की बारिश करना

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** तूम प्रीत की बारिश करना बरखा के सावन की तरह मैं आकुल हूँ बस तेरे लिए प्यासा समंदर की तरह। तुम मेरी चाँद बन जाना निशा में पूनम की तरह। मैं बस तुझे निहारा करूँ आतुर चकोर की तरह। तुम मेरी बहार बन जाना महकते फूलों की तरह। मैं बस यह गुनगुनाता रहूँ बावरा भ्रमरों की तरह। तुम मेरी साया बन जाना मेरे हमसफ़र की तरह। मैं हरदम तेरे साथ रहूँ फूलों में खुशबु की तरह। तुम मेरी बरखा बन जाना सावन में बूंदों की तरह। ये तन मन भी भीग जाए प्यासा धरती की तरह। तुम मेरी धड़कन बन जाना मेरे सीने में दिल की तरह। ये जीवन मधुमय हो जाए वसन्त के बहारों की तरह। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचि...
भावों की खुशबू
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भावों की खुशबू

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** सब कुछ योजनानुसार चल रहा अचानक जो हुआ उम्मीद से बहुत आगे, सब कुछ इतना तीव्र था कि समझना मुश्किल था। ऐसा भी हो सकता है, मन हाँ-न के उहापोह में उलझकर रह गया। पर सब कुछ सामने था मेरे साथ हो रहा था नकार भी कैसे सकता था, पर सपने जैसा था, जिसकी खुशी सँभाल पाना कठिन था मुझ जैसे पथरीले इंसान के लिए तभी तो आँखों में आँसू तैर गए बस किसी तरह सँभाल सका खुद को। मन विह्वल मगर गर्व की अनुभूति करता उस अनजानी अनदेखी शख्शियत के साथ हुआ जब हमारा प्रथम आमना सामना मन श्रद्धा से भर गया, उसके कदमों में झुकने को लालायित हो उठा, बड़ी मुश्किल से खुद को सँभाला और रख दिया अपना हाथ उसके सिर पर क्योंकि हिम्मत नहीं हुई उसके अपनत्व भरे भाव को नकारने की असम्मानित करने की क्योंकि मैं ऐसा ही हूँ। मगर ...
नारी तुम सशक्त हो
कविता

नारी तुम सशक्त हो

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** नारी तुम सशक्त हो कभी लक्ष्मी, कभी दुर्गा कभी झांसी की रानी कांटों की राह पर चलती नि:सहाय निर्बला नहीं आंधी की तरह कष्टों को चीरती प्रबल वात तुम, प्रचंड पर्वत की तरह अटल हो। कभी झुकती नहीं, रुकती नहीं, टूटती नहीं तुम समर्थ हो। तुम मन से प्रबल तन से सबल, देवी का स्वरुप हो। तुम करुणा का सागर मानव जाति का संबल हो। भर्तायर की सच्ची सहचरी, राखी के बंधन को अक्षुण्ण रखती बहना, वात्सल्य की छाया देती जननी, स्नेह की डोर से बंधी पुत्री, नारी विविध रुप तुम्हारे अभूतपूर्व, अलौकिक, अतुलनीय जग जननी, वंदनीय तुम्हे शत शत नमन हो। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत ...
मेरा साथी कौन
कविता

मेरा साथी कौन

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  एक दिन मुझे भगवान् मिले मैंने उनसे पूछा कि भगवन् आप मुझे बताएं कि मेरा साथी कौन मैं राही मेरी मंजिल है कौन मैं पंछी मेरा घोसला है कौन मैं तूफान मेरा साहिल है कौन मैं हूँ नाव मेरा नाविक है कौन मैं इठलाती नदिया मेरा सागर है कौन मैं वनफूल मेरा वनमाली है कौन मैं मिट्टी मेरा कुम्हार है कौन मैं नश्वर शरीर मेरी आत्मा है कौन मैं लोभी मेरी तृप्ति है कौन मैं मोह का ताला मेरी कुंजी है कौन प्रभु मुस्कुराते हुए बोले हे मानव तेरा सच्चा साथी तेरा सारथी हूँ मैं तू राही तेरी मंजिल हूँ मैं तू पंछी तेरा घोसला हूँ मैं तू तूफान तेरा साहिल हूँ मैं तू चलती नाव तेरा नाविक हूँ मैं तू इठलाती नदिया तेरा सागर हूँ मैं तू वनफूल तेरा वनमाली हूँ मैं तू है मिट्टी तेरा कुम्हार हूँ मैं तू नश्वर शरीर तेरी अंतरात्मा हूँ मैं तू परमलोभी तेरी तृप्त...
हमें वो याद आते हैं
कविता

हमें वो याद आते हैं

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** जरा सी बात से अक्सर, हम इतना टूट जाते हैं। वो हमको भूल बैठे हैं, हमें वो याद आते हैं। हमारी गिनती होती है, शहर के गुनहगारों में, गलतियां कोई करता है, सजा बस हम ही पाते हैं। वो अब तक मुझसे रूठा है, कोई उसको मनाओ अब, वहां वो रूठ जाते हैं, यहां हम टूट जाते हैं। ज़माने की हकीकत को अभी तुम जानते हो क्या, जिन्हें हम दिल से चाहेंगे, वही अक्सर रुलाते हैं। मेरे सारे गुनाहों की सजा मुझको मुनासिब हो, वो मेरी खातिर क्यूं तड़पे, जिसे हम ही सताते हैं। यहां हम छोटी बातों को लगाकर दिल से बैठे हैं, वो अक्सर दिल से रोते हैं, मगर सबसे छुपाते हैं। मैंने इन चंद छंदों में है दिल का दर्द लिख डाला, पढ़कर तुम भुला देना, हम लिखकर भूल जाते हैं। परिचय :-  प्रशान्त मिश्र निवासी : ग्राम पचवारा पोस्ट पलरा तहस...
अस्तित्व
कविता

अस्तित्व

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** अपनी इच्छाओं के वश हो, ना मुझे जंजीर बांधो, सृजन, करुणा प्रेम संबल से हृदय की पीर साधो। दमन की दीवारें तोड़ो, होने दो अन्तस उजाला, मिटाकर विभेद मन के, प्रेम की ओढें दुशाला। सुरमयी सी साँझ में, खुद को अकेला पाओगे जब, पवन के झोंकों के संग कोई गीत मेरा गाओगे तुम। माँ-बहन बेटी प्रिया पत्नी सभी है रूप मेरे, जन्म से लेकर मरण तक, निरंतर कर्तव्य मेरे। दुख व संकट के समय में, मैं सदा संबल बनी हूँ, उलझनों की गिरहा खोलू, सवालों के हल बनी हूँ। आसमां मुझसे ना छीनो, हैं जमीं मे पांव मेरे, पंख ना नेकी के काटो, उड़ने को हैं ख्वाब मेरे। सांस में हूँ, धड़कनों में, यादों में नयनों से बहती, आह ना निकले हृदय से, दर्द, सारे हँसके सह्ती। सच, दया और न्याय करुणा, धरा सा व्यक्तित्व मेरा, बिन ...
जिंदगी के ख्वाब
कविता

जिंदगी के ख्वाब

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** शराब पीकर रातों को बने शहंशाह सुबह हो जाते भिखारी बच्चे स्कूल जाते समय पापा से मांगते पॉकेट मनी ताकि छुट्टी के वक्त दोस्तों को खिला सके चॉकलेट| फटी जेब और खिसियानी हंसी बच्चों को दे न पाती पॉकेट मनी और उनके लिए कभी कुछ कर न पाती बच्चों के चेहरे की हंसी को छीन लेती इसलिए होती शराब ख़राब| सुनहरे ख्वाब दिखाती किंतु वादे पूरे ना कर पाती डायन होती शराब पूरे परिवार को खा जाती और उजाड़ जाती जिंदगी में बने हुए ख्वाब। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक...
माफ़ी
कविता

माफ़ी

साक्षी उपाध्याय इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्या संभालेगा ये बेदर्द ज़माना तुम्हें, जो जताता है झूठी मुहब्बत तुम्हें, अच्छा हुआ जो तुमने हमसे नफरत की, हम देते हैं बेपनाह नफरत करने कि इजाज़त तुम्हें। जब तुम्हारे खिलाफ होगा ये ज़माना, तो तुम लौट के आ पाओगे क्याॽ एक दिन तुमने हमसे दगा किया था, अपना चेहरा भी हमें दिखा पाओगे क्याॽ अगर तुम्हें हमारी ज़रा भी परवाह है, तो सुनो सुनाते हैं सच्ची बात तुम्हें कई बार डुबा देते हैं तुम्हारे दिल के जज़्बात तुम्हें। अगर तुम अपनी सारी खताओं को कुबूल करते हो, तो हम देते हैं माफ़ी, तोहफा-ए-खैरात तुम्हें ।।.. परिचय :- साक्षी उपाध्याय आयु : १५ वर्ष निवास : इन्दौर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
मेरा नव वर्ष आ गया
कविता

मेरा नव वर्ष आ गया

रामकुमार पटेल 'सोनादुला' जाँजगीर चांपा (छत्तीसगढ़) ******************** मेरा नव वर्ष आ गया अब, सजी धरा विशेष है। सुरेश महेश दिनेश रमेश, हाथ जोड़े शेष है। आदिशक्ति की वंदना करत, प्रसन्नता छाई है। नया वर्ष हिंद की आपको, हृदय से बधाई है। जन जन का जो जन त्राण करे, चाह जन कल्याण हो। मृत चेतन में जो प्राण भरे, चले न शब्द बाण हो। ऐसे सज्जन हेतु यह वर्ष, विशेष मंगलमय हो। शोषित होकर पोषण करते, कृषक वर्ग की जय हो। रंग-बिरंगे फूल खिले हैं, प्रकृति देख हर्षित है। हिंदू नव वर्ष हमारा तो, सदियों से चर्चित है। भँवरे कोयल स्वागत करते, मधुर गीत सुना रहे। त्रिविध बयार इत्र छिड़क चली, सभी के मन भा रहे। सबको उचित न्याय मिले और, सबका सम भाव बने। सबको समान सम्मान मिले, मन हो नहीं अनमने। रामकुमार के मन में यही, आज बात आई है। हिन्दू नया वर्ष की सबको, हृदय से बधाई है। च...
काश तुम
कविता

काश तुम

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** काश तुम भी वो सब कुछ कर पाती, जो तुम करना चाहती हो। काश तुम.... क्यो तुम अपने सपनो को दबाए रखती हो, अपनो की खुशी के लिए। क्यो तुम्हे ही हर बार झुकना पडता है, अपनो की खुशी के लिए। क्यो तुम्हे ही हर बार समझना पड़ता है, अपनो की खुशी के लिए। काश तुम भी वो सब कुछ कर पाती, जो तुम करना चाहती हो। काश तुम... काश तुम एक लड़की होकर भी, वह सब कुछ कर पाती जो, तुम करना चाहती हो। काश तुम.... परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...
आया रे हिंदू नव वर्ष महिना
कविता

आया रे हिंदू नव वर्ष महिना

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** आया रे हिंदू नव वर्ष महिना भाया रे हिंदू नव वर्ष महिना चैत्र माह शुक्ल प्रतिपदा साजे नवरात्रि पर ढोल मंजिरा बाजे मन भाया रे नव वर्ष महिना.. पेड़ों में नये-नये कोंपलें आती वसुंधरा माॅं की शोभा बढ़ाती हर्षाया रे नूतन वर्ष महिना.. राम नवमी में श्रीराम जनमे आदर्श को अपनाओ मन में सरसाया रे नव वर्ष महिना.. मनोरम दृश्य प्रकृति ने सॅंवारी हैं शिक्षा दीक्षा से संस्कृति न्यारी हैं आया रे सहर्ष नव वर्ष महिना.. सुख व समृद्धि जीवन में भरा हो हर्षोल्लास उमंग मन में उमड़ा हो बताया रे श्रवण हर्षित जीना.. परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्यक्षेत्र : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं म...