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कविता

किसने वसंत लाया
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किसने वसंत लाया

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** किसने वसंत लाया किसने वसंत लाया मीठी-मीठी कुक सुनाकर, किसने मन भरमाया किसने वसंत लाया मंद-मंद चल रहा पवन है, शीतल-शीतल निर्मल जल है रंग विरंगे फूल खिल रहे, भ्रमर गीत गुंजाया किसने वसंत लाया किसलय झांक रहे पेड़ों से, नई नवेली निकली घर से आमो के पेड़ों पर देखो, मंजर फिर गदराया किसने वसंत लाया वीनापानि की पूजा कर, दिल से मन से उन्हें नमन कर एक दूजे के गालों पर, मलकर गुलाल छिडकाया किसने वसंत लाया परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
झांसी के मैदानों में
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झांसी के मैदानों में

साक्षी उपाध्याय इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** उन झांसी के मैदानों में यूं लड़ी वीर वह रानी, पर वो कहां जानती थी, अपना स्वाभिमान बचाने, पड़ेगी उसको जान गवानी। घोड़े पर हो सवार, चल दी वह स्वतंत्रता सेनानी। बालक को बांधा था पीठ पर, थी वह ऐसी दीवानी।। मानो काली का खप्पर भरने की, उसने सौगंध खाई थी, अंग्रेजी दुश्मनों गद्दारों को, औकात दिखाई थी। विवाह के समय वह, शायद थोड़ी घबराई हो, पर ऐसा एक क्षण भी ना था, जब वह युद्ध में घबराई थी।। वह स्वयं में ही कालका थी, रणचंडी खप्पर वाली थी, केवल युद्ध कला में ही नहीं अपितु रूप में भी मत वाली थी, वीर योद्धा की भांति लड़कर, अंततः उसने वीरगति पाली थी।। ऐसी लड़ी वीर वह जैसे दरिया हो तूफानी, आज भी दोहराते हैं हम उसकी युद्ध कहानी। मणिकर्णिका नाम था उसका थी झांसी की रानी, सदियां याद रखेंगी बेशक उस...
जीवन का रहस्य
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जीवन का रहस्य

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** अंध से है अंधकार जग से है प्यार फूलों से है खुशबू गुंजन से है संगीत तितिलियो से है रंग बिरंगे संसार हरितिमा से है उजियार शांति से है भाईचारा एकता बादलों से है दान पुण्य खगों से है निश्चल भाव कर्तव्य नदियों से है सदा आगे बढ़ाना तरु से है दें के बदले कुछ ना लेना यही जीवन का रहस्य है कर कर्म ना कर फल की भोग हो जो जग अंधियार लाओ तुम पुण्य प्रभा किरण फैले पल पल जन जन में हो एक नए समाज का उदय खिले हर्षोउलाष उमंग बने शांति प्रेम का प्रतीक सुधारस बहे जन जन में बस यही आशा है भारतभूमि में। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
आज अचानक
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आज अचानक

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** आज अचानक मुझे उन लम्हो की याद आई, वो भी क्या वक्त था। जब हम अपने दोस्तो के साथ, खुब मजे से दिन भर खेला करते थे। न किसी का डर न किसी की डाट, बस अपनी ही धुन मे रहा करते थे। आजकल के बच्चे भी दिन भर, मोबाइल मे गेम खेला करते है। उन्हे भी न किसी का डर न किसी की डाट, बस अपनी ही धुन मे रहा करते है। फर्क बस इतना सा है, हम अपनो के साथ खेला करते थे ओर अब मोबाइल के साथ खेला करते है। आज अचानक मुझे उन लम्हो की याद आई। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ ...
प्यासी धरती
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प्यासी धरती

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** क्यों कर रहे हो शोर कि घरती प्यासी है, पृथ्वी दिवस तो मनाते हो धरती के गुण गाते हो कविताएँ रचते हो गीत गाते हो, बस करो यह ढोंग धरती प्यासी ही नहीं मरणासन्न है असहाय है मूर्ख मानव ! जान कर भी अनजान है क्यों बस्ती दर बस्ती बसा रहा हैं, खेत खलियान मिटा रहा है, आम पीपल रो रहे हैं यूकलिप्टस पानी लील रहे हैं हो रहा आयात दलहनो का शोर मचा है नकदी फसलों का बहती नदियाँ सूख रही हैं, ताल तलैये खो चुके हैं नदियों को क्यों बांध रहे हो उनका कलेजा छीज रहे हो अब भी पूछ रहे हो धरती है क्यों प्यासी ? जाओ, जंगलों को ढूँढो डूबे गांवो को ढूँढो ढूँढो कीट पंतगो को ढूँढो खोये हुये फूलों को धरती तृप्त हो जावेगी प्यास उसकी बुझ जावेगी परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्य...
प्रेम की पाती – प्रीतम के नाम
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प्रेम की पाती – प्रीतम के नाम

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** हर राज दिल का तुम्हें बताने को जी चाहता है हर इक सांस में तुम्हें बसाने को जी चाहता है यही है मेरे प्यार, नेह और विश्वास की बंदगी खुद से ज्यादा तुम्हें प्यार करने को जी चाहता है चाँद तारों की सौगात तुम्हें देने को जी चाहता है खुदा के बदले तेरी बंदगी करने को जी चाहता है न लगे कभी नजर तुम्हें इस बेरहम जमाने की सर पर से तेेरे खुद को वारने को जी चाहता है राहों में सदा चिराग जलाने को जी चाहता है दामन में उनके सितारे सजाने को जी चाहता है हर इक ख़्वाब जो देखा मुकम्मल हो जाये तेरी चाहत को तकदीर बनाने कोे जी चाहता है हर इक खुशी साथ तेरे बिताने को जी चाहता है हर मुश्किलों से तुम्हें बचाने के जी चाहता है धड़कते हुए दिल की यही आरजू है हर पल दो रंगी दुनिया से तुम्हें बचाने के जी चाहता है बहते झरनों का संगीत ...
भारत-माँ का वीर लाल
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भारत-माँ का वीर लाल

सुप्रिया सिन्हा बरियारपुर, मुंगेर (बिहार) ******************** धन्य है ! हमारी भारत-माता धन्य है ! भारत-माँ का वीर लाल, वतन-ए-आबरू बचाने के लिए अर्पित कर दिया अपना भाल। प्रखर शिलाखंड जैसी दृढ़ काया अदम्य-उन्नाद-फड़कती भुजा, केशरी की तरह उद्वेग गर्जन थामे शमशीर, प्रबल-पंजा। स्वतंत्रता के रण में चला जीवट वीर जवान रिपुओं के नापाक इरादे का विध्वंस करने, परवश अनल की दहकती चिंगारी को अपने फौलादी भुजबल से ध्वस्त करने। रूके नहीं कभी जोशीले कदम उनके बढ़ता गया वो अथक, अविचल ,,, परतंत्रता के साँकल को तोड़ने के लिए दुश्मनों के आगे डटा रहा बन के अडिग उपल। पेशानी पर भारत-माँ की मिट्टी का कर तिलक सरफरोश के असीम जज्बे का आगाज़ कर, शत्रुओं से लड़ता रहा वो मरते दम तक अपने उबलते खून में इंकलाब की ज्वाला जगाकर। उन्होंने लहू का कतरा-कतरा बहा दिया हो गए शही...
चित्रकार
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चित्रकार

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अद्भुत से हर रंगों से, उसने खूब सजाया है, भर तूलिका में सुंदर रंग, प्रकृति को संवारा है हर गुण अवगुण को लेकर, यह संसार निखारा है। अलग-अलग हैं नाम और रूप, भिन्न-भिन्न परिभाषाएं, चौरासी लाख योनियों में जीवन को भटकाया है देह दृष्टि के कारण ही यह जीवन अनमोल बनाया है, मानव जीवन सबसे सुंदर यह अहसास कराया है। फिर भी हम नादानी में अपने नासमझी कर जाते हैं, अपनी करनी के ही कारण जीवन भर पछताते हैं, कर सेवा हर जीवों की परम आत्मा को पाना है, स्वर्ग यही है नर्क यही है, कर्मो से अपनाना है। एक निरंतर सबके अंदर बाकी सब मिट जाना है, रह सदैव प्रभु चरणों में यह "जीवन, "सुंदर चित्र" बनाना है। परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक...
शारदा सुता
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शारदा सुता

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** थी वह तो भारत रतन आभा जिसकी फैली दिग् दिगन्त जब ताल ने बदली करवट हेमा, लता बन मुस्काई सुर साम्राज्ञी वह तो युगों-युगों तक दिलों में छाई भारतीय संस्कृति की थी पहचान भारत माता का जग में बढ़ाया मान कोयल सी मीठी रसभरी स्वर कोकिला वह कहलाई त्याग और प्रेम की मूरत महकती रहेगी तब तक तारे हैं जब तक जमीं पर शारदा सुता वह तो मां शारदा मेंं ही समाई परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिया...
हम भूल रहें संस्कृतियां
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हम भूल रहें संस्कृतियां

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** हिमगिरी भी मौन वेश में था, पक्षी का कलरव व्याकुल था। वीरान पङी थी वे राहें, जिससे गुजरा सेना दल था। कुछ भी न बचा है मन में, है बची शेष स्मृतियाँ। ऐ देश में रहने वालों, हम भूल रहें संस्कृतियां।। रो रही माओं की आँखे, जो पुत्र की राहें तकती। ना रहा पुत्र अब उनका, बहना भी मन में व्यथित थी। क्यों नहीं समाप्त है होती, इस देश में है जो त्रुटियाँ। ऐ देश में रहने वालों, हम भूल रहें संस्कृतियां।। पुलवामा हमला हुआ जब, वीरों ने प्राण गँवाए। ठुकराके शहादत उनकी, वैलेंटाइन डे सभी मनाए। पुलवामा के दृश्य याद कर, गौरव ने लिखी कुछ कृतियाँ। ऐ देश में रहने वालों, हम भूल रहें संस्कृतियां।। परिचय :- गौरव श्रीवास्तव निवासी - अमावा (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, ...
अपना बसंत ऋतु
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अपना बसंत ऋतु

विकास कुमार औरंगाबाद (बिहार) ******************** हमारे मन में हरियाली सी जब आई है। फूलों ने जब अपनी गंध को भी उड़ाई है।। कोयल भी गाती है जब कुहू-कुहू, भंवरे भी दिल से करते रहते है गुंजार। आई है इस रंग बिरंगी रंगों वाली इन सभी तितलियों की मौज बहार।। फूलों पर हैं भवरे अपना रंग जमाए। आम के पेड़ भी अपना मोजर दिखाए।। हमलोग करने ऋतुराज का स्वागत आए। खेतो में सरसो भी बैठा अपना फूल खिलाए।। हरियाली का मौसम है जिसे कहते है बसंत ऋतु। न सर्दी है न गर्मी है देखो आया अपना बसंत ऋतु।। घर में आया नया फसल और साथ में नया उमंग। चलो बनाकर खाएं पकवान अपनो के संग।। परिचय :- विकास कुमार निवासी : दाऊदनगर औरंगाबाद (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
मधुमास बसंत
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मधुमास बसंत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** धरा मांग सिंदूर सजाकर, झिलमिल करती आई भोर। खग कलरव भ्रमर गुंजन, चहुं दिस नाच रहे वन मोर। सुगंध शीतल मन्द समीर, बहती मलयाचल की ओर। पहने प्रकृति पट पीत पराग, पुष्पित पल्लवित मही छौर। रवि आहट से छिपी यामिनी, चारूं चंचल चंद्रिका घोर। मुस्काती उषा गज गामिनी, कंचन किरण केसर कुसुम पोर। महकें मेघ मल्लिका रूपसी, मकरंद रवि रश्मियां चहुंओर। मदहोश मचलती मतवाली, किरणें नभ भाल पर करती शोर। सुरभित गुलशन बाग बगीचे, कोयल कूके कुसुमाकर का जोर। नवयौवना सरसों अलौकिक, गैंहू बाली खड़ी विवाह मंडप पोर। मनमोहित वासंतिक मधुमास, नीलाभ मनभावन प्रकृति में शोर। कृषकहिय प्रफुल्लित आनन्द मय, अभिसारित तरु रसाल पर भौंर। शुभ मधुमास बसंत की लावण्यता नीलाभ अलौकिक प्रकृति में जोर। वसुधाधर मुस्कान सजीली अरुण, सुरभित दिग्दि...
हिजाब और बदलाव
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हिजाब और बदलाव

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** औरतों को बस.. डराया जाता है। कभी हिजाब और कभी घुंघट की आड़ लेकर, सभ्यता-संस्कृति का पाठ पढ़ाया जाता है। औरतों को बस... डराया जाता है। वह कुछ नहीं जानती। यह समझा कर, घर की चारदीवारी में बैठाया जाता है । तुम्हारे यह करने .....से तुम्हारे वह करने...... से धर्म का नाश होगा । देवी की उपाधि देकर पत्थर बनाया जाता है। तुम बाहर निकली...... तो, क्या-क्या ??? कहेंगे लोग। चरित्र हीनता का डर दिखाकर, पर्दों के पीछे, तुम बहुत कीमती....... हो। कहकर..... छुपाया जाता है। औरतों को बस... डराया जाता है। फर्क इतना है कि दिल से देखती है। दुनिया दिमाग से आंकती नहीं। प्यार के लिए हर किरदार को जी जाती है। अपमान को भी चिंता-सुरक्षा मान, खुद को जानने की कभी कोशिश करती ही नहीं। हर किरदार में जीती है। ल...
आग लगाते हैं जो
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आग लगाते हैं जो

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** आग लगाते हैं जो वो भी यहीं रहते हैं, लगी आग बुझानेवाले भी यहीं रहते हैं। बहने दो गंगा-जमुनी तहजीब अपनी, अमन का पैगाम देनेवाले यहीं रहते हैं। ये मुल्क हमने पाया नदियों खून बहाकर, अपना सर्वस्व लुटानेवाले यहीं रहते हैं। हुकूमत की बदौलत कुछ तबाही मचाते, अच्छी सियासतवाले भी यहीं रहते हैं। सरकारी इम्दाद खा जाते हैं मुलाजिम, नमक का दरोगा जैसे भी यहीं रहते हैं। जवानी के दिनों में इतना मुँह मत मार, देख एक अदद बीबीवाले यहीं रहते हैं। रंजो-गम से भरी है ये दुनिया हमारी, मगर हँसने-हँसानेवाले यहीं रहते हैं। अक्ल से तू बौना है मगर दुनिया नहीं, इंसाफ करने वाले भी यहीं रहते हैं। तुम्हारी बद्द्ुवाओं से वो मरेगा नहीं, दुआ देने वाले भी तो यहीं रहते हैं। मत उतार तू किसी के तन का वो कपड़ा, देख कफन देनेवाले भी यहीं रह...
शुभाषित
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शुभाषित

राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** हर आंगन में खुशियों का संसार हो। विश्व में अमन शान्ति का व्यव्हार हो।। जैसे प्रकश से तिमिर का नाश है। हे प्रभु ऐसे हमें वर का भंडार दे।। अच्छे कर्म का मन में प्रभाव हो। स्नेह भरे जीवन में स्वभाव हो।। जैसे गंगा की धारा पवित्र है। हे प्रभु ऐसे हमें वर का भंडार दे।। हर पल में नव ऊर्जा का संचार हो। सभी सुखी सभी निरोगी जीवन हो।। जैसे फुलों में खुशबू की बौछार है। हे प्रभु ऐसे हमें वर का भंडार दे।। परिचय :-  राम रतन श्रीवास निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) साहित्य क्षेत्र : कन्नौजिया श्रीवास समाज साहित्यिक मंच छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष सम्मान : कोरबा मितान सम्मान २०२१ (समाजिक चेतना एवं सद्भाव के क्षेत्र में) शिक्षा : हिन्दी साहित्य (स्नातकोत्तर) अतिरिक्त : रेल परिवहन एवं प्रबंधन में डिप्लोमा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...
शत शत नमन
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शत शत नमन

केदार प्रसाद चौहान गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** जो भी गया वहां लौटकर वापस आज तक कोई नहीं आया जो भी गया वह बहुत खूब गया इंदौर की सरजमी का चमकता सितारा डूब गया इंदौर से सिनेमा जगत में जाने के बाद मुंबई में स्वर का सूरज व्यस्त हो गया लता दीदी के रूप में बसंत पंचमी के दिन मां शारदा की गोद में अस्त हो गया आपके जाने से अधूरा रहेगा स्वर संगीत का यह चमन स्वर साम्रागी लता दीदी को समर्पित श्रद्धा सुमन मां शारदा की पुत्री आपको हमारा शत शत नमन शत शत नमन परिचय :-  "आशु कवि" केदार प्रसाद चौहान के.पी. चौहान "समीर सागर"  निवास - गुरान (सांवेर) इंदौर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानि...
किराये का जब था मकान
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किराये का जब था मकान

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** किराये का जब था मकान, बदल-बदल कर, आती थकान, कामों में ही उलझ कर रह गये, घर न बना सके ऐसे वो नादान, खुशबू भरे मौसम कई आये गये, बहारों में भी, मन रहता, बेजान, ठिकाने ओरों के देख होते मायूस, अपने घर का सपना, न था आसान, बैंक ने जब हमें दी, कर्ज की सौगात, दिला दी घर ने समाज में नई पहचान परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भारतीय स्टे...
अडिग चांद
कविता

अडिग चांद

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आते हैं आकर चले जाते हैं तूफानों के सैलाब अंबर के सीने पर बादलों का घूमडना चांद का छुपना बदली मेंढके चांद के तले किसी के दिल का सिमटना शून्य सा, निर्विकार, निर्बाध, असीम आगोश पाने भागना बादल का। वलय को चांद समझ कतरे-कतरे दिल बादलों के वे जाते हैं देख अडिगता उस चांद की। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मै...
समझो द्वारे पर है बसन्त
कविता

समझो द्वारे पर है बसन्त

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** मद्धिम कोहरे की छटा चीर पूरब से आते रश्मिरथी के स्वागत में जब गगनभेद कलरव करती खगवृन्द पंँक्ति के उच्चारण खुद अर्थ बदलते लगते हों, जब मौन तोड़ कोयलें बताने लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। उनमुक्त प्रकृति की हरियाली सर्वथा नवीना कली-कली कदली जैसी उल्लासमई सुषमा बिखेरती नई-नई विटपों से लिपटी लतिकाएँ आलिंगन करती लगतीं हों, शाखें शरमाईंं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब सघन वनों के बीच हवन में सन्तों की आहुतियों से उठ रहे धुएँ को मन्द-मन्द मन्थर गति से ले उड़े पवन फिर बिखरा दे तरुणाई पर ताजगीभरी कुछ मंत्र शक्ति शुचिताएँ छाईं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब रंग बिरंगे फूलों की मदमाती झूमा झटकी लख खिलखिला उठे सौन्दर्य स्वयं हो जाए मनोहारी पी पल हर दृष्टि सुहानी स...
कई रुप है नारी के
कविता

कई रुप है नारी के

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कई रुप है नारी के, हर रुप में नारी महान। पुत्री भगिनी पत्नी, जननी है देवी समान।। बेटी बनकर आती, स॑ग में है खुशी लाती । बाप की ऑंखो में, ममता ये बरसाती।। गुंजती घर ऑंगन में, किलकारी मधुर मुस्कान कई रुप है नारी के हर रुप में नारी महान।। भैया की प्यारी है, बहना ये दुलारी है। इसकी मिठी बातें, इस जग से न्यारी है।। मिलकर खेलें कूदें, लगते हैं बड़े नादान कई रुप है नारी के हर रुप में नारी महान फिर ये पत्नी बनतीं, जीवन भर संग रहती। सुख हो या दुख जो भी, मिलकर है सब सहती।। बहू रुप में पाती है, ससुराल में ये सम्मान कई रुप है नारी के हर रुप में नारी महान।। माता का रुप महान, दूजा नहीं इसके समान। ममता की ये मूर्ति, करुॅणा की है ये खान।। ऑचल की छांव तले, पाते सुख है भगवान कई रुप है नारी के ...
इस देश की माटी चंदन है
कविता

इस देश की माटी चंदन है

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** जीतूंगा मै हर बाजी ऐसा अपने आप से वादा करो जितना तुम सोचते हो कोशिश उससे भी ज्यादा करो। किस्मत चाहे रूठे हिम्मत और हौसला कभी ना टूटे फौलाद से भी मजबूत तुम अपना इरादा करो इस माटी में हम भी जन्मे हैं इसका कर्ज हमें चुकाना है जिसका तुमने खाया है उसका तुम फर्ज अदा करो। इस दुनिया में हम आए हैं तो मोहब्बत से जीना सीख लो दिल मैं अगर मोहब्बत है तो नफरत को अपने से जुदा करो। नेक नियत और इमान से ही इंसानियत यहां बसती है जीवन अगर जीना है फिर इस बुराई से पर्दा करो। इस देश की माटी चंदन है जर्रे जर्रे में-रब भी बसता है हो गए कई कुर्बान वतन पर तुम भी तन मन फिदा करो देश के दुश्मनों को तो हमने रन में उनकी औकात दिखाई है इनका हमको डर नहीं मगर ये गद्दारों को इस घर से विदा करो। परिचय :- सीताराम पवार ...
यूँ ही नही मिलती मंजिल
कविता

यूँ ही नही मिलती मंजिल

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** यूँ ही नही मिलती मंजिल, सतत चलना पढ़ता है कोशिशे बार-बार हमें अनवरत करना पढ़ता है. मेहनत दिन-रात कर, लक्ष्य के मार्ग पर, लोगों से लड़ कर, राहें अपनी गड़ कर. चलना पढ़ता है........!! सपने को साथ लिए, जोश और जुनून. लिए, जीत का लक्ष्य लिए, हार कर भी जीत के लिए. चलना पढ़ता है........!! कांटों भरी इन राहों में संघर्ष की इन मैदानों में सुखों का त्याग कर, लक्ष्य अपनी साध कर, चलना पढ़ता है.......!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाश...
वजह
कविता

वजह

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मुस्कुराहट की वजह बनो क्यों दर्द की वजह बनते हो? मोहब्बत की वजह बनो क्यों नफरत की वजह बनते हो? जीने की वजह बनो क्यों मृत्यु की वजह बनते हो? निभाने की वजह बनो क्यों बिखरने की वजह बनते हो? हंसने की वजह बनो क्यों रुलाने की वजह बनते हो? दोस्ती की वजह बनो क्यों दुश्मनी की वजह बनते हो? सम्मान की वजह बनो क्यों अपमान की वजह बनते हो? आशा की वजह बनो क्यों निराशा की वजह बनते हो? जीताने की वजह बनो क्यों हराने की वजह बनते हो? परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
दिल का गुलाब हो
कविता

दिल का गुलाब हो

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** गुलाब हो या मेरा या उसका तुम हो दिल। तुम ही बतला दो अब ये खिलते गुलाब जी।। दिल में अंकुरित हो तुम। इसलिए दिल की डालियों, पर खिलाते हो तुम। गुलाब की पंखड़ियों कि, तरह खुलते हो तुम। कोई दूसरा छू न ले, इसलिए कांटो के बीच रहते हो तुम। पर प्यार का भंवरा कांटों, के बीच आकर छू जाता है। जिसके कारण तेरा रूप, और भी निखार आता है।। माना कि शुरू में कांटो से, तकलीफ होती हैं। जब भी छूने की कौशिश, करो तो चुभ जाते हो। और दर्द हमें दे जाते हो। पर तुम्हें पाने की, जिद को बड़ा देते हो। और अपने दिल के करीब, हमें ले आते हो।। देखकर गुलाब और, उसका खिला रूप। दिल में बेचैनियां बड़ा देता हैं और मुझे पास ले आता है। और रात के सपनो से निकालकर। सुबह सबसे पहले, अपने पास बुलाता है। और अपना हंसता खिल खिलाता रूप दिखता है।। मोहब्बत...
कलयुग के पाप
कविता

कलयुग के पाप

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** नशा पान करके-करते घर को बदनाम, घर कि बहु बेटी इज्ज़त को करते निलाम.! घर कि लक्ष्मी बना कर लाते बइमान, पैसो कि चाह मे गलत करते बलवान.! कब तक सहन करोगे गलत व्यवहार, दुर्गा काली बन कर करो संघार.! गलत आचरण गलत व्यवहार है मनुष्य के कलयुग के पाप, बेटी बहु कि इज्ज़त सम्मान करो असहाय दिनहिन कि मदद करो बन लो अच्छा इंसान..!! परिचय :-परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...