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कविता

मुहब्बत चाहिए अगर तो
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मुहब्बत चाहिए अगर तो

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** मुहब्बत चाहिए अगर तो नफरत ना फैलाओ मिलेगा अमन तुम्हे शांति से बात समझाओ ये कौन सा रास्ता तुमने अपनाया है तीसरी पारी का विश्व युद्ध खेल कर तुमने इतिहास के पाठ को भुलाया है। सियासी राजनेता के लिए सिर्फ अंकड़ो के खेल हुए युद्ध में मरने वालो के कभी निश्चित आंकड़े नहीं हुए। पहले भी विश्व युद्ध की चिट्टिया सुनाई थी शांति के लिए हो रहा ये कैसा युद्ध भाई धरा गगन के बीच खालीपन छोड़ जाएगी सैनिक अपाहिज बन जीने को मजबूर हो जाएंगे कुछ मर जायेंगे तो कुछ अपनो को खो जायेंगे मातृ भूमि से पलायन का दर्द झेलेंगे औरतों और बच्चों पर क्या क्या गुजरेगी सहोदर रहे दो मुल्क शत्रुता झेलेंगे। कीमतों में इजाफा महंगाई बोझ बढ़ते जाएंगे पटरी से उतरती अर्थव्यवस्था रास्ते पर वापस कैसे लायेंगे। दुनियाभर की अर्थव्यवस्थ...
जिन्दगी आपसे
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जिन्दगी आपसे

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** ये संसार हमारे बिन ना है अधूरी ना हम है संसार बिन अधूरी तन्हाई का आलम है बरक़रार सिवा उसका इंतजार का आलम हैं ख़ामोश ये जिंदगी की डोरी जो तोड़े से भी ना टूटे ये डोरी करवाए भी बदलती है जिंदगी की आरजू भी है बदलती जिन्दगी की ना कोई शिकवा है आपसे है शिकवा जिन्दगी आपसे। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak...
चूड़ियां
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चूड़ियां

डॉ. जबरा राम कंडारा रानीवाड़ा, जालोर (राजस्थान) ******************** नारी के हाथ की शौभा, सौभाग्य की प्रतीक। पर्वों पर सज-संवर के, जाय होती सरीक।। रंग-बिरंगी चूड़ियां कई, मिलती है बाजार। कांच प्लास्टिक दांत की, ओर अनेक प्रकार।। बेशकीमती आकर्षक, नग जुड़े कई भांत। चलन नही महंगा बहुत, चुड़ला हाथी दांत।। चूड़ी की खनक सुन के, उमड़े प्रीत अपार। नारी के लिए खास गहना, सौंदर्य का निखार।। चूड़ी खनके मस्त लगे, खनक सुहावै खूब। चूड़ी के संग मुस्कान हो, बेहद खुश महबूब।। परिचय :- डॉ. जबरा राम कंडारा पिता : सवा राम कंडारा माता : मीरा देवी जन्मतिथि : ०७-०२-१९७० निवासी : रानीवाड़ा, जिला-जालोर, (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. बीएड सम्प्रति : वरिष्ठ अध्यापक कवि, लेखक, समीक्षक। रचना की भाषा : हिंदी, राजस्थानी विधा : कविता, कहानी, व्यंग्य, लघु कथा, बाल कविता, बाल कथा, लेख। प्रकाशित : ...
नहीं मिटाये कोई अंधेरा
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नहीं मिटाये कोई अंधेरा

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** नहीं मिटाये कोई अंधेरा, स्वयं ही मन में दीप जलाओ, बीते रात सुबह आयेंगी, अपना सोया भाग्य जगाओ। नहीं किसी को पड़ी किसी की, दुनियां निज स्वार्थ में डूबी, चलो हार मानेगी मंजिल, अपनी सभी निखारो खूबी।। जीवन के पथ तूफाँ दलदल, और काँटे भी आयेंगे, विचलित नहीं जो होंगे इनसे, वे ही जग को भायेंगे। अपने ही तुम बनो खिवैया, स्वयं की नैया पार लगाओ, नहीं मिटाये कोई अंधेरा.... पंख लगाओ आशाओं के, उड़ों गगन उड़ने को है, अपना मोल स्वयं पहचानो, सृजन नये करने को है। सूरज को ना,बहुत देर तक, कोई बदली ढकने पाती, सत्य की राह में चले जो हरदम, बाधा ना टिकने पाती। मैला ना हो पाये दर्पण, मन दर्पण की धूल हटाओ, नहीं मिटाये कोई अँधेरा, स्वयं ही मन में दीप जलाओ। पिया है जिसने, गम हालाहल, उसने जग को जीत...
सांसों के सितार पर
कविता

सांसों के सितार पर

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** सांसों के सितार पर भी यह गीत मेरे यार बजते है" सांसों के सितार पर ही दिल के तार तार बजते हैं सरगम की इस लय पर जाने कितने ही सितार बजते है पता नहीं तुम्हारी नजरों में इतनी कशिश क्यों है तुम्हारे देखने से दिल में मेरे घुंघरू हजार बजते हैं। मैंने तो सिर्फ गीत लिखे थे तुम्हारी सूरत देखकर तुमने वही गीत गाए जो मेरे कानों मे वो बार-बार बजते हैं। मैंने तो तुम्हें गीतों में ढालने की कोशिश की थी अब तो मेरे गीत इस दुनिया में बेशुमार बजते हैं। गली और चौबारो में शहर हो या फिर हो बाजारों मे गूंज सुनाई देती है इन गीतों की जो कभी त्योहार में बजते हैं। सांसों के सितार पर जब भी मैं अपने ये तराने सुनता हूं खिलखिलाते किसी झरनो के यहा धार बजते है। इन गीतों को सुनकर दिल भी मस्त हो ही जाता है ...
तेरी यों ही गुजर जायेगी
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तेरी यों ही गुजर जायेगी

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** मत कर निज प्रसन्नता की बात, तेरी आत्मा बिखर जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || भाव-भावना रौंदी अब तक, आगे भी रोंदी जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || भुलाना जीवन अनुभवों को, तेरी मूर्खता ही कहलायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || करेगा स्व- सुख की बात तो, परछाई भी दूर हो जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || बदला यदि तू नहीं अब तक, तो दुनियाँ क्यों बदल जायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || कटुता भरे तेरे जीवन में, अब मधुरता नहीं चल पायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेगी || चली है सृष्टि शिव-शक्ति कृपा से, आगे भी शक्ति ही चलायेगी | छोड़ मन सुख जग के लिए, तेरी यों ही गुजर जायेग...
रिती गागर
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रिती गागर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन की रीति गागर में आ गया समंदर का घेरा इन अलकों मैं इन पलकों में।। भटक गया चंचल मन मेरा। कंपित लहरों सी अलके है दृ ग के प्याले मधु भरे तिरछी चितवन नेदेखो कर दिए दिल के कतरे कतरे। द्वार खुल गए मन के मेरे मन भावन नेखोल दिए बैठ किनारे द्वारे चोखट दृग पथ में है बिछा दिए। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह ...
मन कैसे वश में करूं
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मन कैसे वश में करूं

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** मेरा मन मेरा जन्म का बैरी.. क्यों मेरे बस में नहीं आए! गर ये मन घोड़ा होता तो.. ले चाबुक बस में कर लेती! गर ये मन हाथी होता तो.. ले अंकुश सवार हो जाती! गर ये मन सांप होता तो.. बजा बीन फण से धर लेती! गर ये मन बैल होता तो.. नथनी डाल नाक कस लेती! गर ये मन सुव्वा होता तो.. सोना गढ़ा चोंच मढ़ लेती! गर यह मन प्रेत होता तो झाड़-फूंक वश में कर लेती! गर ये मन बिच्छू होता तो बांध डंक गरल हर लेती! एक विधि है यही विधाता इस तन के भीतर सोए खोए अंतस को साधूं तो.. आकुल व्याकुल मन सध जाए!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
मुहब्बत के हंसी पल
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मुहब्बत के हंसी पल

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मुहब्बत के हंसी पल जब भी मुझको याद आते हैं मुझे उस प्रेम की रस्सी में कसकर बांध जाते हैं कदम बढ़करके मुझको आसमां तक लेके आया है यहां हम अपनी दुनिया के नए नगमें सुनाते हैं मुहब्बत की कई तस्वीर मुझको और गढनी है कसमकस है बहुत फिर भी यहां हम मुस्कुराते हैं निभाकर फर्ज हमनें मुश्किलों को खूब देखा है मगर इसके सिवा रस्ता कहां हम देख पाते हैं चलो कुछ दूर तक चलकर यहां आबोहवा देखें सुना है आदमी ही आदमी को काट खाते हैं यहां दुख दर्द को सुनकर नहीं कुछ फर्क पड़ता है मुसाफिर हैं सभी फिर भी मुसाफिर को सताते हैं न जानें कौन सी मंजिल पे जाने की कवायत है भटकते लोग भी रस्ता यहां सब को बताते हैं परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेख...
किताब घर
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किताब घर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मानवीय सभ्यता के विकास का किताब-घर जीवन के किस्से-कहानियों वृतांत का किताब-घर जीवन के रस को जिसने पान किया है। काव्य धारा के अमृत धारा का किताब-घर कहानी घर-घर की हो या सभ्यताओं की, अनगिनत सोपानो का सफर करता है किताब-घर कितने पहलू जिंदगी से अनबूझ रहे। हर पहलू का जानकार किताब-घर। जिंदगी सदियों से जिन रास्तों से वह के आई है। इतिहास का स्वर्णिम साक्षरताकार किताब-घर वक्त भूल जाएगा जिन किरदारों को, नये किरदारों का भी होगा किताब-घर मौत के बाद भी जिंदा मिलूंगा। अमर आत्माओं का है किताब-घर। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
प्राण के बाण
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प्राण के बाण

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** १ दुख देती है जब दरिद्रता आती विपदा घड़ी घड़ी। बड़ी बड़ी प्रतिभाएँ पागल हो जातीं पड़ी पड़ी ।। २ कापुरुषों के लगे निशाने महासशूरमा चूक गए। कोयल रही टापती मौका पाकर कौए कूक गए।। ३ जब कवियों ने बढ़ाचढ़ा कर, कौओं को खगराज कहा। व्याख्या करने वालों ने तब, गर्दभ को गजराज कहा।। कहा बटेरों को ब्रजरानी, बगुले को ब्रजराज कहा। "प्राण" गिलहरी को गुलबदना, बिल्लड़ को वनराज कहा।। ४ हारे नहीं हिम्मती राणा ऐसा काम विराट किया। कटता काठ कुल्हाड़ी से जो नाखूनों से काट दिया।। ५ जो न बता पाते थे अन्तर केले और करेले में। वे रस के मुखिया बन बैठे प्रजातंत्र के रेले में।। ६ जिनकी शक्ल देखते रोटी के लाले पड़ जाते हों। कौओं की क्या कहूँ कबूतर तक काले पड़ जाते हों।। उनके सम्मुख अपना माथा रोज टेकना पड़ता ...
मतदान
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मतदान

रोहित कुमार हाथरस (उत्तर प्रदेश) ******************** हे ! हाथरस के प्यारे मतदाता, बनो देश के भाग्य विधाता। लोकतंत्र की तुम सुनो पुकार, मत खोना मत का अधिकार। जब-जब आती है दिवाली, नहीं भूलते तुम दीप जलाना। होली जब फाल्गुन में आती, मन होता जाता है दीवाना। फिर लोकतंत्र के महापर्व पर मत से क्यों करते हो इंकार ? धूप हो या छाँव हो जागो अब तुम प्यारे मतदाता करो प्रतिज्ञा तुम अबकी बार, मत डालेंगे सब परिवार। अपने फर्ज का रखो तुम ध्यान, देश हित में करो तुम कुछ काम। जाकर सुबह करो मतदान, नहीं बड़ा इससे कोई दान। २० फरवरी दिन रविवार, बूथ पर पहुँचो सब परिवार। परिचय :-  रोहित कुमार निवासी : नरहरपुर, हाथरस, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...
बचपन कि वो यादे
कविता

बचपन कि वो यादे

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** बचपन कि वो यादे, याद बहुत आती है, हंसना रोना मिलकर रहना वो पल बहुत सताती है.! बचपन के वो खेल खिलौने गिल्ली-डन्डा, भौरा-बाटी, दादा-दादी, नाना-नानी कि गोद मे बैठ कर कहानी सुनना .! उम्र बढ़ी बचपना घटी सपने पुरे करने कि दिन है आई, बिताये पल वो याद आते है, आंखों मे मे आंसू दे जाते है.! बचपन मे झगडना फिर दोस्तों से मिल है जाना, अब तो दुरीया इतनी बढी बस दोस्तों कि यादो मे दिन है पहाना.! काश को बचपन फिर से लौट आये फिर से खुशीयो कि बौझार है छाय, चंदा मामा, कि कहानी दादी-नानी फिर से सुनाये.! बचपन कि वो यादे, याद बहुत आती है, हंसना रोना मिलकर रहना वो पल बहुत सताती है.!! परिचय :-परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ ...
सच तो केवल एक है
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सच तो केवल एक है

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** मंजिल तक जाने के होते, जैसे पंथ अनेक हैं। द्वार अनेकों होते सच के, सच तो केवल एक है।। मानव जीवन सेतु एक है, पशुता से प्रभुता की ओर। घबराकर चलना ना छोड़े, छूना है, विभुता का छोर।। पाना है यदि दिव्य उजाले, अन्तर में भर लो आलोक। सूर्य स्वयं से है आलोकित, करे उजाला तीनों लोक।। देख द्वार की शोभा में, खोकर रुक जाना नहीं विवेक। शक्ति समर्पित लक्ष्य में जिनकी, होता है उनकाअभिषेक। सच तो केवल..... यदि आदर्श नहीं जीवन में, जीवन नौका डगमग है। दृढ़ संकल्प प्रीति संग चलते, उन्हीं के सपने जगमग हैं। तारे बहु चमके अम्बर पे, किन्तु" चांद"तो एक है। कल-कल बहती नदिया देखो, देती सन्देशा नेक है। द्वार अनेकों होते सच के, सच तो केवल एक है..... परिचय :- प्रीति तिवारी "नमन" निवासी : गा...
अपने सपनो के लिए
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अपने सपनो के लिए

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** अपने सपनों के लिए हार को कभी हार ना मानना तुम, जीत को कभी जीत ना मानना तुम, अपने ऊपर विश्वास रखना तुम, कर दिखाओगे अपना सपना पूरा एक दिन तुम। अपने सपनों के लिए... जब चारो ओर तुम्हारा ही नाम गूंजेगा, सब को तुम्हारे ऊपर फक्र होगा, अपनो से अपना सा प्यार मिलेगा , चारों ओर तुम्हारी ही मेहनत का गुंज होगा। अपने सपनों के लिए ... तुम वो सब कुछ पा सकोगे एक दिन, जो तुम पाना चाहते हो, हर वो सपना जो तुम्हारी आखों में तैरता है, एक दिन वो तुम्हारी मुस्कान बनेगा । अपने सपनों के लिए ... बस एक ही बात याद रखना तुम, ज़िन्दगी की राह के राही हो तुम, हँसते-मुस्कराते हुए दुनिया का सामना करो तुम, कर दिखाओगे अपना सपना पूरा एक दिन तुम, अपने सपनों के लिए ... परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी....
नही आती है चिड़िया
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नही आती है चिड़िया

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** घर के चौखट में टँगी है धान की बालियाँ घर-आँगन सुनी है नही आती हैं चिड़ियाँ। खन-खनाती झालर में लगे धान के दाने ज्यों का त्यों है, नही आती चिड़िया खाने। अब शांत हो गई है चिड़ियों का कलरव आँगन में बेला पुष्पित है पर छाई नीरव। ये चिड़िया हमसे नाराज हैं,सहमी हुई है ये चिड़िया हम से लोगों से जख्मी हुई है। ये चिड़िया हमारे हितैषी हमारे साथी हैं इससे प्रकृति के उषा में खनक आती है। चिड़ियों से प्यार करो, घर को घर बनाओ प्रकृति गुलजार करो, इन्हें भी चहकाओ। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर...
आया न्यू नूतन
कविता

आया न्यू नूतन

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** आया न्यू नूतन लेकर अपने संग उमंग करें अच्छे कर्मों का आरंभ ना करें बुरे काम लेकर अपने संग विश्वास बनाए भाईचारा एकता का मिशाल लेकर अपने जीवन में बसाए खुशियों का महल ना करें चारी द्वेष कपट शांति प्रेम का समाज में हो नित्य नूतन सवेरो का आगाज आया न्यू नूतन लेकर अपने संग उमंग अपनो में हो सद्विचार हो नाश पाप हिंसा क्रोध का खिले प्रेम प्यार का फूल नित्य नूतन पले बढ़े सत्कर्मों का पुजारी हो नाश पाप पुजारो का आया न्यू नूतन लेकर अपने संग उमंग। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित...
खाना बचे न थाली में
कविता

खाना बचे न थाली में

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** खाना बचे न थाली में, ब्यर्थ बहे न नाली में। जिसने भी ये अपनाया, जीये वो खुशहाली में।। खाना है जीवन दाता, सबका है इससे नाता। इसको ना बर्बाद करें, हर पल इस्को याद करें।। जिसने ये बर्बाद किया, जीता वो बदहाली में। खाना में है प्राण बसे, श्रृष्टि बनी है ये जब से। सबकी यही जरुरत है, अच्छा खाना हसरत है।। भूखे को प्यारा लगता, फूल खिले ज्यों डाली में खाना है ईश्वर का रूप, माने इसे योगी या भूप। खाना से ही भूख मिटे, तन के सारे कष्ट हटे।। करना प्यार इसे इतना, जैसे बाग और माली में अन्न का दाना है अनमोल, मिले नहीं बिना ये तोल। उगता अन्न परिश्रम से, भूल गए हम ये कैसे।। खाने से ही पेट भरे, भरे नहीं ये ताली में मीठा हो पकवान अगर, खाओ ना उसको डटकर। रोटी चांवल दाल बड़ा , क्यों खाते हो खड़ा खड़ा...
मेरी प्यारी बेटी
कविता

मेरी प्यारी बेटी

पूजा महाजन पठानकोट (पंजाब) ******************** प्यारी सी सूरत उसकी भोला सा चेहरा है, आई मेरी जिंदगी में तो हर पल सुनहरा है। अपनी हरकतों से ऐसे वह मुझे हंसाती है, जीवन जीने की आशा वह मुझ में जगाती है। उसकी हर खुशी को पूरा करना, मेरे जीवन का मकसद है। अब ओर कोई चाह ना रही दिल की, बस उसकी खुशी की मेरे दिल को हसरत है। मेरे मम्मी पापा के जैसे, वह भी मुझ पर प्यार लुटाएगी। अब बस उसके सच्चे प्यार से ही, यह जिंदगी कट जाएगी। अब ओर किसी के प्यार की आशा, दिल को तो ना रही है। मेरी बेटी बस हंसती और हमेशा खुश रहे, यही तो अब दिल की हसरत रही है। मेरी वह नन्ही सी परी, जो दुनिया में मेरे दिल के सबसे करीब है। आई मेरी जिंदगी में तो ऐसा लगा, जैसे जीवन में जिसकी कमी थी। वह मेरी जान मेरी सबसे अजीज है, मेरी सबसे अजीज है। परिचय :- पूजा महाजन निवासी : पठानकोट (पंजाब)...
डोर टूट न जाये
कविता

डोर टूट न जाये

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** रिश्तो का बंधन कही छूट न जाये। और डोर रिश्तों की कही टूट न जाये। रिश्ते होते है बहुत जीवन में अनमोल। इसलिए रिश्तो को हृदय से बनाये रखे।। जिंदगी में भले ही बदल जाए परिस्थितियां। पर थामें रखना अपने रिश्तों की डोर। पैसा तो आता जाता है सबके जीवन में। पर काम आते है विपत्तियों में रिश्ते ही।। जीवन की डोर बहुत नाजुक होती है। जो किसी भी समय टूट सकती है। इसलिए मैं कहता हूँ रिश्तो से आंनद वर्षता है। बाकी जिंदगी में अब रखा ही क्या है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों...
जो बीत गया वो बात न कर
कविता

जो बीत गया वो बात न कर

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** जो बीत गया वो बात न कर कल देखे जो सपने हमने कुछ थे टूटे, कुछ भूले से आधे सपनों की बात न कर जो बीत गया वह बात न कर ! कुछ किस्से जो दंश दे गए कुछ पीड़ा कुछ टीस दे गए घायल अंशों की बात न कर जो बीत गया वह बात न कर ! असली सूरत से हटा नकाब ना कर सवाल अब दे जवाब दिखा भरोसा घात न कर जो बीत गया वह बात न कर ! कुछ ऊंची सी पैंग बढ़ा सूरज चंदा तक हाथ बढ़ा टूटे तारों की बात न कर जो बीत गया वह बात न कर ! चीत्कारों वाली रात गई अब छेड़ सुरीली राग नई छूटे सुर का आलाप न कर जो बीत गया वह बात न कर! नई भोर की नए दिवस की नये राग और नई थाप की इससे पृथक तू बात न कर जो बीत गया वह बात न कर !! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
मतलब का ही रिश्ता है
कविता

मतलब का ही रिश्ता है

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है। रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है। घटना दुर्घटना में ईश्वर खाता बही में रहमत भी है कृपा से बचने पर कुछ बैरी जन की जहमत भी है मृत्यु अरमान जलन सोच, तन की हालत खस्ता है रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है। सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है। सहोदर भाई से सच्चे नाते भी कटुता से प्रेरित होते दोषयुक्त जहाज से चूहे सबसे पहले भाग खड़े होते अपनों के कटु निर्णय तो, स्वाभिमान को डसता है। रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है। सिक्कों की ही कीमत होती, ईमान बहुत ही सस्ता है। अति मजबूरी में धन सहयोग मांग का जब प्रस्ताव भरोसा हीन जानकर लिखित दस्तावेज रूपी नाव निज सोना गिरवी रखकर वही खुशी से हंसता है। रिश्तों का मतलब समझो, मतलब का ही रिश्ता है। सिक्...
फिर से
कविता

फिर से

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** खुदा करे तुम्हें भी मोहब्बत हो फिर से, किसी और से नहीं बस मुझसे। खुदा करे मैं भी खफा हूं तुमसे और तुम वफा करो फिर से, किसी और से नहीं बस मुझसे। खुदा करे तुम भी दिल लगाओ फिर से किसी और से नहीं बस मुझसे। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ...
नजरें ना झुकाया कर
कविता

नजरें ना झुकाया कर

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** लेकर हाथों में लाल गुलाब न चला कर ! दिल की बात दिल में रख न जला कर !! नजरें मिला के यूँ नजरें ना झुकाया कर ! इश्क है हमसे तो लफ्जों में बयां ‌‌ कर !! हम तेरे दीदार को तड़पते है रात दीन ! आसमां में चांद सा यूँ ना छिप जाया कर !! दिल की बात दिल में ना दबा के रख ! शिकायत है मुझसे तो सरे आम कहा कर !! बेवजह मेरे ख्वाबों में तू न आया कर ! चैन से सोने दे नींद से न जगाया कर !! मुलाक़ात करना है तो मिलो हमसे आकर ! दरवाजा खुला है घर में आ जाया कर !! इश्क नहीं है तो इश्क का इजहार न कर ! वक्त कीमती है! मुहब्बत में बेकार न कर !! लाखों अजमा चुके है किस्मत इश्क कर ! खाकर ठोकर संभल चुके है लोग इश्क कर !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र ...
आया बसंत
कविता

आया बसंत

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आया वसंत आया वसंत केसर क्यारी खिली खिली हैं नव रंगों की धूम मची है। आया वसंत आया वसंत। बकुल बयार बन बह रही है कुंज-कुंज कुंद गदराया मदमाती है मधुमालती रक्त वर्ण है मन भाया आया वसंत आया वसंत आया। कल-कल कामिनी कालिंदी बहती झर झर झरता झरना कहिए कुंज में कोयल कू की आम्र वृक्ष हैं गदराया।। आया वसंत आया वसंत आया। चंपा चमेली जसवंती फूली लता बेल है गदराऐ फूल फूल पर भ्रमर डोले पात, पात पाखी मंडराऐ आया बसंत आया बसंत आया। रवि किरणों से खिल-खिल जाती। कलिकलि की कोमल काया जन, जन का मन बहलाने देखो आया वसंत आया वसंत आया। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशि...