Friday, May 16राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

जीवन – निर्झर
कविता

जीवन – निर्झर

माधवी तारे (लन्दन से) इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छंद लिखो, छंद भेजो, छंदों का बनेगा अंक।। छंद की धुन में, मन में उठी अक्षर-तरंग। छंदानुकुल विषय खोज में, मन मे मचा द्वंद।। सब सीमा रेखाएँ लाँघ, आया कोरोना, निगलते नर-संघ। उम्र, जाति, और लिंग भेद बिना, किया सर्वनाश स्वच्छंद।। राजा हो या रंक, सबकी खातिर एक समान। जनजन का "अंति गोत्र", कोरोना का संविधान।। अर्थनीति हो या धर्म नीति, जन्म-मृत्यु या प्रणय-प्रीति। जीव से जीव का ना हो संग सब पर कोरोना का प्रतिबिंब।। सहे हर सदी में मानव ने प्रलय भयंकर, लेकिन, आत्मसंयम, मनो-धैर्य से, "बहता रहा जीवन निर्झर"॥ संकलन (लंदन से प्रेषित हैं) परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लन्दन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक...
सिंदूरी पल
कविता

सिंदूरी पल

रागिनी स्वर्णकार (शर्मा) इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज अचानक खुला क्या दराज ! लगा अंदर कुछ खुल गया है! और खुलता ही जा रहा है... मैं जा रही हूँ अंदर ...बहुत अंदर! उस बीते समय मे; पल-पल मुस्कुराता खड़ा! महकता हुआ वह ख़त, प्रथम गुलाबी स्पर्श, गुलाबी हुईं धड़कनें..! मैं सांगोपांग धड़कती हुई, हाथ में पत्र चारों ओर देखती विस्मित!!!!! एकांत में पढ़ने लगी पत्र! कुसुम-कली सी लज्जा, फैली हुई चेहरे पर..!I मानों ! सामने तुम! हर शब्द धड़क रहा दिल के संग! प्रथम अछूता एहसास ! महक गया था; सम्पूर्ण वजूद, चाहत की खुशबू से !! भला क्यों न महकता??? आज भी महक रहा पल जो मौलश्री हो गया स्मृतियों में!!! गुलमुहर-सा बिखेरता लालिमा, आज भी खड़ा है वह जीवन्त पल, सिंदूरी पल, जब भावनाओं ने रचा था स्वयंवर !!! परिचय :- रागिनी स्वर्णकार (शर्मा) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)। ...
तुम्हें बहुत लिखना है
कविता

तुम्हें बहुत लिखना है

सूरज सिंह राजपूत जमशेदपुर, झारखंड ******************** तुम्हें बहुत लिखना है मुझे बहुतों को तुम्हें भुख से मरने वालों की संख्या मुझे कारण। तुम्हें बलात्कार का सरकारी आंकड़ा मुझे हर उच्चारण। तुम्हें मरते किसानों की संख्या मुझे निवारण। तुम्हारे लेख राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मेरे साधारण। परिचय : सूरज सिंह राजपूत निवासी : जमशेदपुर, झारखंड सम्प्रति : संपादक- राष्ट्रीय चेतना पत्रिका, मीडिया प्रभारी- अखिल भारतीय साहित्य परिषद जमशेदपुर घोषणा : मैं सूरज सिंह राजपूत यह घोषित करता हूं कि यह मेरी मौलिक रचना है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindira...
तुम्हारी जुदाई में
कविता

तुम्हारी जुदाई में

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** तुम्हारी जुदाई में आंखों से आंसू ही नहीं बहे।। एक वक्त बाद। आंसुओ के साथ बहे तुम्हारी यादें.... तुम्हारी बातें.... वो मुलाकातें.... वो जगाती रातें.... और बह गई वो सब उदासियां। बह गई वो सब बैचेनीयां।। बह गई वो सब परेशानियां।। बह गई वो सब दुरियां।। और बहते- बहते ठहर गएं वो आंसू मेरी कलम में आकर.... उतरने लगीं वो सारी बातें कागज़ पे समाकर.... और फिर मैं तुम्हें याद करने लगी.... तुमसे बात करने लगी.... अकेले में मुलाकात करने लगी.... सोकर फिर तुममें जागने लगी.... मुझे अच्छी लगने लगी उदासियां.... सखी बन गई बैचेनीयां.... समझाने लगी परेशानियां.... पास रहने लगी दुरियां.... फिर मैं प्रेम के उस द्वौर में चली गई जहां प्रेम ने मुझे प्रेम समझायां था। और मैं समझ गई कि प्रेम को कभी समझा ही नहीं जा सकता है.....
हिन्दी मेरी पहचान है
कविता

हिन्दी मेरी पहचान है

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** हिन्दी सिर्फ भाषा नहीं हिन्दी मेरी पहचान है हिन्दी एक उँची उड़ान है सबकी आन और बान है ह्रदय में सबके रस घोल दे ऐसी मीठी जुबान है हिन्दी मेरी पहचान है हिन्द का अभिमान है राग द्वेष से अनजान है शब्द शब्द इसकी धरोहर अन्तरमन का कराती भान है हिन्दी मेरी पहचान है बंसी में छिपी तान है कर्मणता की पहचान है ईश्वर को भी नाज है जिस पर ऐसी पुनीत पावन है हिन्दी मेरी पहचान है अध्यात्म का सोपान है कृष्ण की मुस्कान है भावनाओं को जो करे उजागर कुदरत का दिया वरदान है हिन्दी सिर्फ भाषा नहीं हिन्दी मेरी पहचान है परिचय :- मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाय...
हिंदी माता सम सदा
कविता

हिंदी माता सम सदा

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** हिंदी होती है सदा, प्रेम भाव आधार। सुंदर शोभित वाक्य दें, अटल ज्ञान भंडार। अटल ज्ञान भंडार, रही भाषा की जननी। प्रांजलि का अभिमान, यही है भाषा अपनी। भाषा की सिरमौर, लखे मस्तक में बिंदी। छोड़ो सोच विचार, पढ़ो बच्चों नित हिंदी। हिंदी माता सम सदा, देती अनुपम ज्ञान। हिंदी पढ़ पढ़ के बने, तुलसी दास महान। तुलसी दास महान, लिखी प्रभुवर की माया। करने जग उद्धार, रखी मानव की काया। होता विधिवत ज्ञान, समझ कामा वा बिंदी। आती लेखन धार, रचो रचना नित हिंदी।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच...
हिंदी से पहचान है, हिंदी से सम्मान
कविता

हिंदी से पहचान है, हिंदी से सम्मान

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** हिंदी से पहचान है, हिंदी से सम्मान। हिंदी भारत देश है, हिंदी भारत गान। हिंदी से है मान हमारा। करें काम हिंदी में सारा। हिंदी पर ही तन मन वारा। इसके गुण गाये जग सारा। सूर कबीरा तुलसी गाते। हिंदी से ही भाव जगाते। कोयल भ्रमर पपीहा बोले। हिंदी द्वार हृदय के खोले। हिंदी हिंद देश की भाषा। हिंदी जन-जन की अभिलाषा। जीवन में हिंदी अपनाएं। इसको जीवन सूत्र बनाएं। हिंदी है अभिमान हमारा। हिंद देश है सबसे प्यारा। आओ हिंदी के गुण गाएं। सब मिल ऊँचे शिखर चढ़ाएं। हिंदी ही है जान हमारी। लगती है प्राणों से प्यारी। माँ हिंदी में लोरी गाती। झप्पी देकर हमें सुलाती। हिंदी में ही नानी मेरी, मुन्ना कह कर हमें बुलाती। फिर क्यों हम हिंदी को भूले। पर, भाषा के कर में झूले। अम्मा के माथे की बिंदी। अपने सिर पर रखती हिंदी। हिंदी भाषा है अ...
हिन्दवासी हिंदी बोलो
कविता

हिन्दवासी हिंदी बोलो

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हम हिंद के रहवासी हैं हिंदुस्तानी कहलाते हैं हिंदी हमारी मातृभाषा है यह देश की राजभाषा है राष्ट्रभाषा भी बन जाएगी ए हिंदवासियों हिंदी बोलो जननी जन्मभूमि हमारी स्वर्ग से भी महान होती तीसरी माँ है ये मातृभाषा प्रथम पूजनीय को त्याग क्यूँ पहने विदेशी ये जामें सबसे पहले हिंदी ही बोले यह सहज सरल व मधुर है झोपड़ी से महल तक जाती है संचार विचार का आधार है देश का अभिमान पहचान है एकता की भी ये सूत्रधार है संस्कृत की संस्कारी बेटी है विश्व बोलियों में तृतीय नं है विश्व में देश का अस्तित्व है सबने माना हमारा प्रभुत्व है इतिहास भी इसका भव्य है बने भारतीयों का व्यक्तित्व है हम सबको मिला मातृत्व है विज्ञान पर भी खरी उतरती है ध्वनि सिद्धांत पर आधारित है जो सोचे वही बोले व लिखते अंकल आँटी घोटाला नहीं है हर भाव के पृथ...
मस्तक की बिंदी है हिंदी
कविता

मस्तक की बिंदी है हिंदी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भारत मां का अलंकार है हिंदी, भारत मां का शीश सुशोभित करती है हिंदी, देव-भाषा की अनमोल कृति है हिंदी, जन गण मन की शक्ति है हिंदी, भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति है हिंदी, नन्हे मुन्नो की तुतलाई बोली है हिंदी विद्वानों की विद्वता को परिभाषित करती है हिंदी जब-जब इस पर संकट की परछाईं भी दिखती, कलमकारों की कलम से निकली हर हुंकार हिंदी रक्षण में आंदोलन करती, भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भाषाओं में सर्वोपरि राष्ट्रभाषा है हिंदी हर जन मानस में रची बसी है हिंदी हर भारतवासी को एक सूत्र में बांधती है हिंदी, भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति :...
ये कैसा राष्ट्र प्रेम
कविता

ये कैसा राष्ट्र प्रेम

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** ये कैसा राष्ट्र प्रेम तुम्हारा, देशभक्तों को मिटाते आये हो। सत्ता के लिए अबतक तुम, देशभक्तों को मिटाते आये हो।। राह से हटाया था बोस तुमने, सुखदेव राजगुरु को फांसी चढ़ने दिया। चन्द्र शेखर को विवश किया तुमने, भगतसिंह को भी फांसी चढ़ने दिया।। चयनित पटेल थे बहुमत से फिर भी, प्रधानमंत्री जिन्होंने न बनने दिया। कर समझौता गोरों से तुमने तब, प्रधानमंत्री पद को झपट लिया।। समझते लोकतंत्र को बपौती क्यों, शास्त्री जी का तुमने कैसा हश्र किया। कर अपमान सीताराम केसरी का, नरसिंहाराव का कैसा हस्र किया।। अब तो हद कर दी अरे तुमने आज, प्रधानमंत्री पद की गरिमा को भुला दिया। चक्रव्यूह रचकर राष्ट्र समापन का क्यों, पापी दल ने राष्ट्र की गरिमा को भुला दिया।। क्यों चुप हो गये प्रतिपक्षी सारे आज, जब "हाउ द जोश" कांग्रेस ने ...
एक रस्ते के मुसाफिर
कविता

एक रस्ते के मुसाफिर

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक रस्ते के मुसाफिर आप भी हैं हम भी हैं अब तो इस गुलशन में हाजिर आप भी हैं हम भी हैं खूबसूरत साज है दिलकश यहां आवाज है इश्क की नजरों में कातिल आप भी हैं हम भी हैं आज पैमाने छलककर होठ तक आये मेरे दर्द में इस दिल के शामिल आप भी हैं हम भी है जाम आंखों से जो पीकर होश मैंने खो दिया अब इसी महफ़िल के काबिल आप भी हैं हम भी हैं जिस अदा से आपनें दस्तक दिया दिल पर मेरे बस उसी खुशबू की हाशिल आप भी हैं हम भी हैं। परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के ...
निज हित के प्रयास भुलाकर
कविता

निज हित के प्रयास भुलाकर

तनेंद्रसिंह "खिरजा" जोधपुर (राजस्थान) ******************** निज हित के प्रयास भुलाकर, निज प्राणों से ऊपर उठकर जो देश के हित सब करते हैं वो वीर भला कब मरते हैं! तीक्ष्ण धूप में, शीत- धार में घोर बसंत में, सूखे पतझड़ कदम बड़े जो धरते हैं वो वीर भला कब मरते हैं! काल के बादल छा जाने से ग़म का तम सब छाया है ये मत सोचो क्या- क्या खोया ये सोचो क्या पाया है अभिनव भारतवंश के बेटे सूर कभी नहीं डरते हैं वीर भला कब मरते हैं! भारत मां के कण- कण मिलकर सृष्टि खुद कर जोड़- जोड़कर मुख से मधुर सा गान करेगी रावत पुष्प के नाम करेगी देश के खातिर सबकुछ तज दो दिल- मस्तक में ये समर रहे बिपिन सिंह रावत अमर रहे बिपिन सिंह रावत अमर रहे परिचय :- तनेंद्रसिंह "खिरजा" निवासी : ग्राम- खिरजा आशा, जोधपुर प्रांत, (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक (विज्ञान वर्ग) जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय ...
तुम चाँद हो पूनम का
कविता

तुम चाँद हो पूनम का

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** तुम चाँद हो पूनम का मैं तेरा ही चितचोर हूँ। तुम चाँद....मैं तेरा... तुम सावन की फुहार हो मैं प्यासा उमस का थार हूँ तुम शीतल ठंडी बहार हो मैं पतझर का तलबगार हुँ। तुम चाँद....मैं तेरा.. तुम बाग के खिलते फूल हो मैं मंडराता बांवरा भ्रमर हूँ, तुम सुरभित फुल बयार हो मैं प्रतिक्षित राही डगर हूँ। तुम चाँद....मैं तेरा.. तुम उषा सिंदूरी लाली हो मैं आतुर दिवस वासर हूँ। तुम सुनहरी लाली आभा हो मैं तुमसे ही होता उजागर हूँ। तुम चाँद....मैं तेरा.. तेरे बिना मेरा कुछ नही है तू तो मेरा सर्वस्व संसार है तू ही आसरा तू ही आधार है तुमसे जीवन ये खुशगवार है परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्...
समझो द्वारे पर है बसन्त
कविता

समझो द्वारे पर है बसन्त

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** मद्धिम कोहरे की छटा चीर पूरब से आते रश्मिरथी के स्वागत में जब गगनभेद कलरव करती खगवृन्द पँक्ति के उच्चारण खुद अर्थ बदलने लगते हों, जब मौन तोड़ कोयलें बताने लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। उनमुक्त प्रकृति की हरियाली सर्वथा नवीना कली-कली कदली जैसी उल्लासमई सुषमा बिखेरती नई नई विटपों से लिपटी लतिकाएँ आलिंगन करती लगतीं हों, शाखें शरमाईंं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब सघन वनों के बीच हवन में सन्तों की आहुतियों से उठ रहे धुएंँ को मन्द-मन्द मन्थर गति से ले उड़े पवन फिर बिखरा दे ताजगीभरी तरुणाई को कुछ बीज मन्त्र शुचिताएँ छाईं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब रंग बिरंगे फूलों की मदमाती झूमा झटकी लख खिलखिला उठे सौन्दर्य स्वयं हो जाए मनोहारी पी पल हर दृष्टि सुहानी सृष्टि द...
कुसुम केसर चंदन से
कविता

कुसुम केसर चंदन से

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** कुसुम केसर चंदन से, अभिनंदन नव वर्ष। शुभ यश जीवन में मिलें, मंगलमय अति हर्ष। अक्षत रोली हाथ में, सजा लिया है थाल। तिलक करूं मैं हर्ष से, नई साल के भाल। नूतन वर्ष शोभित हो, सदा सदी के भाल। नई सुबह की नव किरणें, चमक रही है लाल। अभिनंदन नववर्ष का, नव उमंग के साथ। लेता नव संकल्प मैं, आज उठाकर हाथ। नव किरण नव उजास में, पोषित हो नव भोर। नव वर्ष में दूर रहें, यह संकट अति घोर। कागज़ कलम दवात से, सपने लिखता रोज़। नये साल से आरज़ू, मेरे करदे काज। सदा सुखी इंसान हो, मिटे विषाणु रोग। मंगल गायन यूं करें, नये साल में लोग। जीव जगत में खुशी मिलें, हर्षित हो चहुॅं ओर। पग पग नृत्य लोग करें, मस्त रहें हर छौर। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान ...
वक़्त का वक्तव्य
कविता

वक़्त का वक्तव्य

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** वक़्त का वक्तव्य तो सौभाग्य से असीम अनुभव दे गया संवाद समय का समन्वय ही चुस्त बना देता बुजुर्गों को। सदा ही सुनते कि बुढापे में स्मृति व्यवधान आ जाता है हालातों से बचाव भाव ही मजबूर बनाता है बुजुर्गों को। रुचिकर ज्ञान ध्यान मान में अतीत का अनुभवी जीवन व्यथित व्यवस्था में नए ढंग उत्साहित करता बुजुर्गों को। कष्ट अनेक वृद्धावस्था में, कुछ जज़्बात भी साथ होते हैं एहसास करने का स्वभाव ही, खुशियां देता बुजुर्गों को। माना जरावस्था में सुनने की शक्ति भी क्षीण हो जाती है ऊंचे स्वर बिना भी सहज संवाद सुनाई देता बुजुर्गों को। निज सेवा आदत जिनकी ना रही हो वृद्धों की जिंदगी में सिर पैर कमर में हल्का दबाव सुकून दे जाये बुज़ुर्गों को। वाह वाह, जय हो, आनंद आ गया वाली जब बोली सुनो जैसे दुखती हुई रगों में आराम पहुंचा हो अब बुजुर्गों...
सर्दी की सरकार
कविता

सर्दी की सरकार

आशीष कुमार मीणा जोधपुर (राजस्थान) ******************** ओढ़कर आँचल रहो अब सर्दी की सरकार है। जिसकी चलती थी हुकूमत हौसले अब पस्त हैं। देर से आता है सूरज जल्दी होता अस्त है। छुपता, छुपाता खुद को जैसे गुनाहगार है। ओढ़कर .... बेवजह चिढ़ती थी जो दुपहरी उन दिनों सूखते थे पेड़, पौधे होठों पर बस प्यास थी हर तरफ है हरियाली बिखरी अब बाहर है। ओढ़कर.... ओस से भीगे हैं पत्ते बारिश का अहसास है फूल,कलियां भीगें हैं जैसे आया मधुमास है। कोहरा ठहरा है जैसे सर्दी ने रखा पहरेदार है ओढ़कर.... ठिठुरते हाथ लेकर संध्या रात में समा गई तारों की बारात लेकर रात है अब आ गयी सूनी हों हर गलियाँ, राहें सबको खबरदार है ओढ़कर आँचल रहो अब सर्दी की सरकार है। परिचय :- आशीष कुमार मीणा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
नशा
कविता

नशा

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** बुझ गए घरों के घर जो नशाखोरी ने कहर ढाया है उस गरीब मां का सीना जो इसने अपनी आग से जलाया है मत पूछ जो जिंदा लाश दिख रही उस बाप ने जो कमाया है खर्च दिया बच्चे की इस लत पर जो भी जीवन में कमाया है रात रात भर नयनो को जिसने पत्थर के जैसा बना डाला उस अर्धांगिनी ने अपने ह्रदय का जज़्बात ना जाने कहां बुझा डाला ना सोई ना जागृत अवस्था में उसने कोई सपना संजोया है मार दिए सभी दिल के अरमान जिसने कभी मन नहीं खोला है बच्चों को बढ़ते देख कर अपना गौरव था उसने कायम किया वो नशे की लत ने दस्तक देकर मिट्टी में जाकर रोल दिया ना जाने... ना जाने कब नशे की लपटों से देश हमारा बच पाएगा नौजवान हमारा बच पाएगा... परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी ...
गुरु की महिमा
कविता

गुरु की महिमा

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** ज्ञान गुरु के बिना नहीं, गुरु की महिमा न्यारी है। रोशन है उनसे जीवन ये, बिन उनके दुनिया अंधियारी है।। गढ़ते फ़ौलाद, माटी से ये अज्ञान तमस हटाते हैं। मन की कंदराओं में गुरु, ज्ञान दीप जलाते हैं।। दिन विशेष का पर्व नहीं, जीवन भर का नाता है। गुरु की महिमा गाने में तो, जीवन कम पड़ जाता है।। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हि...
चक्र
कविता

चक्र

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चक्र चलता है चलता रहता है। लड़की लंबी और घुमावदार है फिर भी आगे बढ़ती जा रही समानांतर है आगे शायद मिलती हो पर आमने सामने नहीं इसी तरह और स्थिर व्यक्तित्व के व्यक्ति चक्र से लिपटे व्यक्ति घसीटते जाते हैं पर। चक्र के गति की भांति। कोई चलना नहीं जानता यह जानते हुए भी चलना नहीं चाहता कोई चाहता नहीं समय रूपी चक्र जकड़ना क्या कोई उसका रुख मोड़ेगा आज का व्यक्ति ऐसा करने में असमर्थ है यह जानते हुए भी कि चक्र बेजान है आगे बढ़ जाता है अपनी गति बढ़ा कर मानव को मुंह चिढ़ाते चक्र पूरी गति से कहीं दूर निकल जाता है जड होते हुए भी। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं ...
बाट और बटोही
कविता

बाट और बटोही

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** सब चले हैं, सब चलते हैं, सब चलेंगे... अपनी अपनी बाट। कोई सोचता चलने से पूर्व कोई सोचता ठोकर के बाद। कोई बिछाता कंटक राह में, कोई करता कंटक साफ। राह में रोड़े,पत्थर तमाम मिलेंगे सघन झाड़ियां की उलझाहट विषैली बेलों की लिपटाहत। धूप छांव में अपनी परछाई पहचान खुद से करवाती हुई घने जंगल मे खो जाएगी । उंगली पकड़ सहारा देने वाले सिमटे हुए पीछे रह जाएंगे। कदमों मे गर ताकत होगी, सफर बाट का आसान होगा। इच्छा शक्ति से मन भरा हो तो मंजिल का दरवाजा पास होगा। अपनी बाट, अपनी हो चाल धोखा दे कोई, क्या मजाल? देखा-देखी दूसरों के कहने लगे नशे के गर्त में रहने। झूठी शान,झूठा दिखावा एकमात्र मन का बहकावा। बाट कुसंगति की अति वृथा मानव समाज से होता पृथा। समय, स्थान, स्थिति को जानो तब राह पर पग धरने की ठानो। बि...
जिंदगी धोखा है और मौत सच्चाई
कविता

जिंदगी धोखा है और मौत सच्चाई

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ऐसा नहीं है कि मुझे कोई दर्द नहीं होता मुस्कुराती हूँ हरदम पर साथ हमदर्द नहीं होता जिंदगी के हर मोड़ पर लोगों ने कदम रोका है, काम निकल जाने पर छोड़ा और दिया धोखा है। हमने भी अब समझ ली है दुनिया की ये रस्म अपने अफसानों की ये बना ली नज्म वफ़ा के बदले हमको मिलती है बेवफाई। जिंदगी हसीन धोखा है और मौत है सच्चाई ।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके...
खट्टी मीठी यादें
कविता

खट्टी मीठी यादें

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** वर्ष बीत गया कुछ कुछ कवड़ी मगर सच्ची यादें सब के जीवन को बदला कुछ अच्छी सच्ची बातें आहिस्ता-आहिस्ता नव वर्ष आ ही गया करें स्वागत नव ऊर्जा नव उमंग नव उत्साह संग आओ करें स्वागत कुदरत ने ये कैसा कहर बरपाया कांप उठा इंसान सांसों ही सांसों में जहर घुल गया फंस गई थी जान डर-डरकर दूर-दूर रहकर पल-पल जीता इंसान हर पल मौत का साया मंडराता था कांपता जहान क्या होगा कैसे होगा कोई ना समंझ पाता था इंसान के समक्ष सात्विक जीवन ही आधार था मौत के खौफ से सीख लिया जीने हुनर इंसान धन, दौलत सोना चांदी सब माया है समझा इंसान कुछ ऐसा शपथ लें और पूर्ण करें हम सारे वादे जिंदगी और कुछ भी नहीं केवल खट्टी-मिठ्ठी यादे लगता था जैसे सब कुछ खो जाएगा मन बेहाल जद्दोजहद थी जीवन की उतने ही था आटा दाल सम्हलकर चलना यारों जिन्द...
अभिनन्दन है, नववर्ष
कविता

अभिनन्दन है, नववर्ष

दुर्गादत्त पाण्डेय वाराणसी ******************** अभिनन्दन है, सादर अभिनन्दन स्वागत पुनः, पावस वर्ष तुम्हें उम्मीदों कि, सुबह लिए खुशियों की, अद्भुत शाम लिए कुछ बेहतरीन सा, याद लिए कुछ चुनिंदे, वो फरियाद लिए बागों में, बसंत, लाजवाब लिए पल-पल की, खुशियाँ बेहिसाब लिए कई बेहतरीन, कुछ ख्वाब लिए कुछ दिलों के लिए, जज्बात लिए कुछ खास, मिलन कि, किताब लिए कुछ, बिछड़ने का, जवाब लिए अद्भुत सुन्दर सी, सुबह लिए कई खास सुहानी, रात लिए खेतों की मेड़ो पर, फिर चमक लिए फसलों में सौंधी सी, शाम लिए अभिनन्दन है, सादर अभिनन्दन स्वागत है, पावस, वर्ष तुम्हे!! परिचय : दुर्गादत्त पाण्डेय सम्प्रति : परास्नातक (हिंदी साहित्य ) डीएवी पीजी कॉलेज, बनारस यूनिवर्सिटी वाराणसी निवासी : वाराणसी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
करुणा
कविता

करुणा

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** जब देखूँ उसकी दारुण दशा, हृदय में करुणा भर आती है। हमदर्दी वश रहा नहीं जाता, सदा उसकी फ़िक्र सताती है।.... फटी बंडी टूटी चप्पलों में, सर्दी गरमी सब सहता है। मन मौसकर रहता सदा, कुछ ना किसीको कहता है। जानें क्यों आँखें कतराती है, जब देखूँ उसकी दारुण ......। दो वक्त सादा खाकर भी, स्वाभिमान से वह जीता है। छल कपट से दूर रहकर भी, जीवन ना उसका रीता है। यह देख दीनता भी शरमाती है, जब देखूँ उसकी दारुण......। राष्ट्र धर्म की बातें करते, सब झूठी आहें भरते है। है फ़िक्रमंद इनका भी कोई, तो फुटपाथ पर क्यों मरते है। देख दीन दशा आँखें पथराती है, जब देखूँ उसकी दारुण.......। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह ...