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कविता

वक़्त की गाड़ी
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वक़्त की गाड़ी

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** वक़्त की गाड़ी है वक़्त के  साथ चलेगा ! उगता हुआ सूरज भी शाम को   ढलेगा !! ज़ख्म है जिस्म में तो मल हम भी मिलेगा ! आज है ख़ुशी तो  कल गम भी मिलेगा  !! बागों में कलिया है तो फूल भी खिलेगा ! महकेगा चमन तो कभी कांटे भी चुभेगा !! कभी जीत मिलेगा तो कभी हार मिलेगा ! कभी पतझड़ मिलेगा तो कभी बहार मिलेगा !! कर रहे हो  मेहनत  तो  फल भी मिलेगा ! दुनिया में हर समस्या का हल भी मिलेगा !! थक कर ना बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर ! आज नहीं तो कल  मंजिल  भी  मिलेगा !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
जीवन की कठिन परीक्षा में
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जीवन की कठिन परीक्षा में

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** जीवन की कठिन परीक्षा में, अब वो ही अव्वल आएंगे। जो खुद से रोज़ लड़ेंगे अब, खुद को ही रोज हराएंगे। इसलिए कभी फूलों की खातिर, घर से नहीं निकलता हूं। कांटों की सेज बना ली है, अब कांटों पर ही चलता हूं। ये देख तमाशा दुनिया का, मैं अंदर से घबराया हूं। औरों की खातिर अपना हूं, अपनों के लिए पराया हूं। अब इस छोटे से जीवन को, तन्हां ही सही जिया जाए। औरों को खुशियां दी जाएं, अपनों का दर्द लिया जाए। मैं नहीं कभी अब रोऊंगा, ऐसा संकल्प लिया जाए। मेरी खातिर जो रोया है, खुश उसको आज किया जाए। परिचय :-  प्रशान्त मिश्र निवासी : ग्राम पचवारा पोस्ट पलरा तहसील मऊरानीपुर झांसी उत्तर प्रदेश शिक्षा : बी.एस.सी., डी.एल.एड., एम.ए (राजनीतिक विज्ञान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौ...
दहेज़ एक कुप्रथा
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दहेज़ एक कुप्रथा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** लिखा नही इस विषय में निर्मल, लिखना बहुत ज़रूरी है सच बोलो ऐ दहेज़ लोभियों क्या दहेज़ लेना मजबूरी है? न जाने कितने ही घर बर्बाद हो रहे दहेज़ की बोली में बेमौत मर रही कितनी ही बेटियाँ, बैठ न पाईं डोली में। पिता के नयनों में आंसू है, बेटी के हाथ पीले कराने में कितनों के जोड़े हाथ, पैर पड़े, शर्म आती है बतलाने में। घर गहने, खेत, खलिहान बिके इस दहेज़ की बोली में बेमौत मर रही कितनी ही बेटियाँ, बैठ न पाईं डोली में। दहेज़ लोभी समाज की हैं यह कितनी भयावह तस्वीरें बिखर चुके कई परिवार यहाँ और फूट रही हैं तकदीरें। पढ़े-लिखे, शिक्षित जवान, क्यूँ बनते आज भिखारी हो दहेज़ मांगने वालों तुम समाज की गंभीर बीमारी हो। जिस पर गुजरे वो ही जाने, बात नही है यह कहने की इतना मत माँगो दहेज़ कि सीमा टूट ही जाए सहने की। इसी दहेज़ के ...
तू नारी है तू भी जी ले…
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तू नारी है तू भी जी ले…

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** खुले घाव को बखिया करले फटे जख्म पेबंद लगा ले रंजो गम को दरकिनार कर तकलीफों पर बाम लगा लें तू नारी है तू भी जी ले पल्लू के पहले कोने पर बांध समय अपने हिस्से का सखी सहेली संग साथ ले कुछ अपनी मर्ज़ी का कर ले तू नारी है तू भी जी ले... रिश्ते नाते बहुत सवांरे बिखरे कुंतल भी सवांरले सख्त इरादे रख मुट्ठी में तारे धरती पर उतार ले तू नारी है तू भी जी ले... देवी बनकर नहीं पुजाना नेह उड़ेल सबको समझादे तू है सृजना इस सृष्टि की कभी बोलकर भी बतला दे तू नारी है तू भी जी ले... तू इंसां है तू भी जी ले!!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
नव तरंग
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नव तरंग

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** महके मधुबन-सा जीवन गुंजार करे भ्रमर-सा मन बजे खुशियों की पायल कूके मन के आंगन कोयल करे ना अपनों से कोई छल बने मन पावन जै से गंगाजल उमंगों की हो मन में नव तरंगें हर्ष सुमन खिले हो रंग बिरंगे नववर्ष लेकर आए जीवन में नव मधुमास महके हर तन मन लेकर नव सुवास सजे घर-घर संस्कृतियों की थाली फैले चहुं ओर  संस्कारों की सुरभि निराली सपने सच हो सबके सहनी पड़े ना अब कोई पीर पूर्ण हो अभिलाषा हृदय की चाहे अब यही "नीर" परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्...
प्रकृति की पूजा
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प्रकृति की पूजा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** गरजती-चमकती बिजलियों से अब डर नहीं लगता अपने पसीने से सींचे हुए खेतोँ में लगे अंकुरों को देखकर लगने लगा हमने जीत ली है मान-मन्नतो के आधार पर बादलों से जंग। वृक्ष कब से खीचते रहे बादलों को अब पूरी हुई उनकी मुरादें पहाड़ो पर लगे वृक्ष ठंडी हवाओं के संग देने लगे है बादलो को दुआएँ। पानी की फुहारों से सज गई धरती की हरी-भरी थाली और आकाश में सजा इन्द्रधनुष उतर आया हो धरती पर बन के थाली पोष। खुशहाली से चहुँओर हरी-भरी थाली के कुछ अंश नैवेध्य के रूप में ईश्वर को समर्पित कर देते है किसान श्रद्धा के रूप में शायद, ये प्रकृति की पूजा का फल है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश...
हम छोटे ही अच्छे थे
कविता

हम छोटे ही अच्छे थे

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मासूमी से बाते करते, समझदारी में कच्चे थे बड़े होने का शौक चढ़ा था, जब हम छोटे बच्चे थे नंगे पैर दौड़ लगाते, सजाते ख्याबो के लच्छे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे स्कूल जाना वापस आना, संग दीदी के होती थी डांट पड़ती हमको, जब गुम कोई चीज होती थी टूटे दांतो मे दर्द होगा, बस इतनी चिंता होती थी अब चिंता से गहरा नाता, तब नादानी में सच्चे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे राजा जैसा रख रखाव और जेवर गुड़ियां होती थी नखरे बढ़ते जाते मेरे, घर में रौनक होती थी दालमोट संग बिस्कुट खाना, ऐसी सुबह तब होती थी अब हड़बड़ में जिंदगी, तब हँसी के घरों में छज्जे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे दोस्त यार अब साथ नही, गपशप किसके साथ करे नियम बना है जीवन मेरा, नि...
रिश्ते
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रिश्ते

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** रिश्ते अपने रिश्तों से दूर होने लगे है, क्यों लोग इस कदर मजबूर होने लगे हैं। दुश्मनो से दोस्त कर रहें है इल्तजा, कपटहीन चेहरे कितने मगरूर होने लगे है। ज़माने का कैसा हो गया मिजाज, भ्रातृ भाव कितने बेनूर होने लगे है। आजमा कर देख निर्दय ज़माने को, चेहरे पर कई चेहरे जरुर होने लगे है। रिश्ते,नाते सब विचित्र मायाजाल, पैसे ही चेहरों के नूर होने लगे है। चाह न रख स्वर्णिम पंखो की अब, सारे सपने अब चूर चूर होने लगें है। तंगहाली, कविता हमारी हमसफर, अल्लाह के करम, पुरनूर होने लगें हैं। परिचय :- नितेश मंडवारिया निवासी : नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
आना जाना
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आना जाना

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** लगा हुआ है आना जाना! बंदे इस पर क्या पछताना! सृष्टि ने यह नियम बनाया, जो भी जीव यहां हैं आया, वक़्त सीमित सबने पाया, रह कर बंदे इस दुनिया में इक दिन सबको चले जाना!... सारे आने वाले यहां पर, देखे दुनियादारी यहां पर, मेरा मेरा ही करे यहां पर, इतना सा भूल है जाता, कुछ भी साथ नही जाना!.... ये दुनिया जानी पहचानी, वो दुनिया तो है अनजानी, दोनों की हैं अजब कहानी, चले गए जो इस दुनिया से, नही उन्हें अब वापस आना!... सुख- मंदिर जग में सारे, लगते जो हैं सब को प्यारे पर ये नही है तारणहारे करना होगा सत्कर्म फ़कत यही तो बस साथ हैं जाना!... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं...
ठिठुरन
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ठिठुरन

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** समय पुराना बीत गया, धूँध से सहम रीत गया, कहीं बाढ़ की आफत आयी, महामारी ने छीना सब हर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। कुंठित मन का आस है झेला, कंपित है बर्फ रुग्ण मन ढेला, दिनकर को ढक दी तम चादर, जन जीवों में छिपा उत्कर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। कामगार भी ठिठुर गए हैं, सबके अरमां भी बिटुर गए हैं, मानवता पर बड़ी बीमारी, अब पाँव फुलाये विदेशी फर्श, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। लटके कुसुम भारी जल कण से, दुबके बाल शीतों के रण से, देती है दर्द अब ठलुआ रुई ठंडक रवि का बड़ा प्रतिकर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
दिल से
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दिल से

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** वो यादें वो लम्हें वो बातें वो दिन, क्यां लिखूं मैं अपनी कलम से। वो दोस्तों के साथ बितें दिनों की बात क्यां कहूं मैं अपने दिल से।। आखिर अपने तो अपने ही होते है याद कर लेता हूं मैं फिर से। बस यूं चलते रहे आगे बढ़ते रहे मिलेंगी सफलता जरुर राही ने कहां मंजिल से। दिल की सुन अपनी मन की कर और आगें बड़ लहारों ने कहां साहिल से। जिंदगी एक खेल हैं कभी खुशी-कभी गम है और मत ले टेंशन जियों दिल से।। गीत-संगीत‌ सुर ताल जहां सुनाई देती है भरी महफिल से। हर समंदर के उस पार तैर कर जाना है जहां गहराई ही क्यों न हो झिल से।। परिचय :- डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
जादुई चिराग़
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जादुई चिराग़

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** सफल होती जिंदगी भी बेहिसाब लगती है! मेरी मेहनत लोगों को जादुई चिराग़ लगती है।। थक हार के जब भी कभी मैं बैठ जाती हूं, सोचती हूं फिर में खुद को अकेला ही पाती हूं ।। एक दिन मैं अपने मन को बड़ा किया नही जाता, छोटे-छोटे पहलुओं से मिलाकर जिया नहीं जाता ।। काश सच मैं कोई जादुई चिराग़ मेरे पास भी होता अब छुट्टी लेकर इंतमिनान से घर बैठा नही जाता।। की लम्हे छोटे-छोटे से है और काम बहुत है मुझे किसी एक के हालत को देखकर सोचा नहीं जाता।। जादुई चिराग़ होता तो मांग लेती सबकी खुशी, किसी एक की खुशी पर मुझसे खुश रहा नही जाता।। मेरे पहलू मैं बैठकर देखोगे तो पाओगे मुझे तुम इस कदर, तुम्हारी खुशी मैं खुश हूं मुझे अपने लिए जीना नहीं आता।। नायाब कोई जादुई चिराग़ की तरह अब और मुझसे, वक्त की रेत पर...
नया साल ऐसा आये
कविता

नया साल ऐसा आये

आशीष कुमार मीणा जोधपुर (राजस्थान) ******************** नया साल ऐसा आये सबकी खुशियाँ लाये। गरीब का ठिकाना हो सबको आबो-दाना हो रहे नहीं तकलीफ कोई भी सबकी बिगड़ी बात बनाये नया साल ऐसा आये...... कोई ना बीमार रहे खुशियों की बौछार रहे बैर रहे ना कहीं किसी में सब अपना कर्तव्य निभाये नया साल ऐसा आये ..... माता पिता का हो सम्मान पूरे सबके हों अरमान बनी रहे जीवन भर शान बात समझ ये सबके आये नया साल ऐसा आये ....... कब किसको आना-जाना है वक्त के हाथ जमाना है प्रेम की बांधे डोर चलो रब के मन को ये ही भाए नया साल ऐसा आये सबकी खुशियां लाये। परिचय :- आशीष कुमार मीणा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र ...
नव नवल नूतन
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नव नवल नूतन

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** कल रात से ही, ज़मी से लेकर, आसमाँ तक था, ठंड का पहरा, दसों दिशाओं तक उसने फैला रखा था कोहरा ही कोहरा, जम चुकी थो नवजात ओस, कहीं नहीं था कोई भी शोर, सनसनाती तीर सी हवा चल रही ठंड के पँखों से दिखला रही जोश, सूरज खो चुका गर्म एहसास, नहीं मानता धरा का ऐहसान, पर जरा ठहरो! गौर से देखो नर्म-गर्म हथेलियाँ फैलाकर, भविष्य के गर्भ से पैदा हो रहे नव वर्ष शिशु को थाम रहा सूरज परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
सृजन फुहार
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सृजन फुहार

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है। माँ अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है। अब तो टीवी चैनल सारे, दिन भर शोर मचाते हैं। ब्रेकिंग न्यूज़ देख देखकर, रक्त चाप बढ़वाते हैं। तुकांत काव्य अनुराग बहुत, नए ढंग से लाते हैं। दंगा-पंगा, रथ-पथ गाता, लठैत टिकैत छाते हैं । गिरी गाज खत्म राज विधान, समाधान तक आती है। मां अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है। कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है। पद पाने का लालच हरदम, इस तरह समाया रहता । टूटी फूटी नाक बचाने, तिकड़म ही लाया करता। होता जोर नहीं पैरों में, चाल बहुत तिरछी चलते। खिसियाये से नेता बनते, अहम वहम में दम रखते। नौ मन तेल बिना ही राधा, मोहन के गुण गाती है। मां अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है...
उम्मीदों का आसमान
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उम्मीदों का आसमान

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** बीता यह पल जैसा भी, सहा सभी है हमने। खट्टे मिठे अनुभव सारे, किया सभी है हमने।। जीवन है अनुभव शाला, सब कुछ यही सिखाता है। होते हैं नित नई परीक्षा, समय बदलता जाता है।। उम्मीदों का आसमान भी, सदा रखा है हमने बीता यह पल जैसा भी सहा सभी है हमने कभी धूप कभी है छाया, है यह रीत निराली। सुख दुख है उसकी माया, कभी दशहरा दिवाली।। चार दिन की इस जीवन में, देखा सभी है हमने बीता यह पल जैसा भी सहा सभी है हमने आए कुछ ऐसे पल भी, याद रहेंगे जो हमको। कुछ खोया कुछ पाया है, भूल नहीं सकते उसको।। जैसा भी अवसर आया, उसका मान किया हमने बीता यह पल जैसा भी सहा सभी है हमने उम्मीदों के आसमान में, सदा उड़ाने भरना। सीखा है हालातों से, सदा खुशी से रहना।। राम लगा आना जाना, सदा नहीं है रहने बीता यह पल जैसा भी स...
विदाई
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विदाई

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नये वर्ष में नवशक्ति से नया इतिहास गढो नये इतिहास के लिए कुलांचे भरो गगन में ढलता सूरज देता विगत वर्ष को बिदाई। नव वर्ष हो सर्वमान्य के लिए सुखदाई।। चलते हुए राहों में रवि साथ निभाता है और राहों में पड़ा पत्थर ठोकर से ठुकराता है एक अकेला फिर हुजूम, हुजूम से कारवा साथ है यही जान तू जिंदगी अपनी राहों में हम अकेले हैं नया वर्ष इतिहास गढ़ने के लिए। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रस...
प्यार मोहब्बत में छिपा
कविता

प्यार मोहब्बत में छिपा

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** प्यार एक ऐसा शब्द है, संसार में ममता और आराधना छिपी है। मोहब्बत एक ऐसा अल्फाज़ है, दुनिया में जन्नत का रास्ता छिपा है व आरज़ू की मन्नतें छिपी है। जीवन का सार ही प्रेम प्यार, मोहब्बत है, इंसानियत को जीवित रखने को, मानवता बचाने के लिए यशु फिर जीवित हो गया, नफ़रत मिटाने को उसमें ईश्वर की आत्मा छिपी है। कुदरत का करिश्मा ही कहें, गीता, कुरान, बाईबल, गुरू ग्रन्थ साहिब पथ-प्रदर्शक रहे, धर्म निरपेक्षता लिए हमारा संविधान भारतीयता की पहचान लिए विश्वदर्पण में इंसानियत की तस्वीर छिपी है। धर्म और मजहब की परिभाषा ही बदलने लगी है इस कलयुग में हिंसा सिर्फ हिंसा आधुनिकता की दौड़ में, चोला पहनकर गगन ईश्वर को भी धोखा दे रहे हैं, खून खराबे में देखो जन्नत ख़ुदा की कहीं नजर नहीं आ रही है जैसे कहीं गुम या छि...
धूमिल होंगी सृष्टियां
कविता

धूमिल होंगी सृष्टियां

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** चढ़ी जा रहीं सभी चोटियाँ घर-घर की मासूम बेटियां बेटों से कमतर नहीं हैं वे अब न सेंकती घर में रोटियां इनमें ऊर्जा झासी की है और कल्पना सी है शक्तियां ये सीता हैं ये राधा हैं ये घर भर की हैं विभूतियाँ माँ के आंखों की सपना हैं वृध् पिता की दृढ़ लाठियां समझो ना कमजोर इन्हे अब अब समाज की बन्द मुठ्ठियाँ जितना इन्हे जलाया हमने उतनी प्रखर हुईं दृष्टियां इनके बढ़ते कदम न रोको वर्ना धूमिल होंगी सृष्टियां परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वा...
मंगलमय हो
कविता

मंगलमय हो

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो, नित नई सफलताएं पाएं। नव वर्ष तुम्हें दे हर्ष सदा, उन्नति के पथ पर बढ़ते जाएं।। नव उमंग नव तरंग लेकर, खुशियों से सराबोर हो जाएं । नव उल्लास उत्साह मन में, जीवन उपवन सृजित हो जाएं। मन मंदिर में दीप जलाकर, अज्ञानता को सूदूर भगाएं , काम क्रोध मोह जलाकर, जीवन को सुस्वर्ग बनाएं।। सुखद पल हृदय में लाकर, संस्कार बीज रोपित हो जाएं। नव रुप हर क्षण नवरंग दें, नव जीवन सुखमय हो जाएं।। गुरुजी का श्रवण कर लें, नव ऊर्जा नव जोश लाएं। संयम नियम साधना से ही, नूतन वर्ष का बधाई पाएं।। परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्यक्षेत्र : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एव...
नई भोर
कविता

नई भोर

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** नई भोर को गीत सुनाने मेरा मन अब मचल रहा है। रात अंधेरी घिरी कालिमा, मन बुन रहा सुनहरे सपने; कुछ रातों-रात बिखर गए, कुछ गए दूर गगन में उड़ने। झड़ गए कुछ पत्ते शाखों से, नव पल्लव अब झूम रहे हैं; कुंजों में मदमाते भंवरे, नव पुष्पों को चूम रहे हैं। कश्ती चली रात भर जल में, ठहर गई है प्रिय से मिलकर; मुदित हुई सरिता की धारा, अतल सिंधु में स्वयं समाकर। नया सवेरा लाली रंगकर, प्रातः कितना दमक रहा है; कुछ खोया पर कुछ पाने को, मेरा मन अब तड़प रहा है। नई भोर को गीत सुनाने, मेरा मन अब मचल रहा है। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : कहानी संग्रह 'उजास की आहट' सन् २०१८ में प्रकाशित। अभि...
२१वाँ साल
कविता

२१वाँ साल

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जाओ जाओ २१वाँ साल अब मत याद आना २१वाँ साल बहुत लोगों का जीवन लिया तुमने छीन कई को किया तुमने मातृ-पितृ विहीन कर दिया सभी को तुमने छिन्न-भिन्न हो गये बहुत लोग दीन-हीन ऐसी महामारी तुम थे लाये एक दूजे को कोई न भाये हर रिश्ता हो गया दूर-दूर सारे सपने हो गये चूर-चूर जाओ जाओ २१वाँ साल अब मत याद आना २१वाँ साल आओ आओ २२वाँ साल खुशियों से भरा हो ये साल नये जोश नई उमंग से सराबोर नये सपने नई आशा से भरपूर बहुत खास हो ये नया साल अठखेलियां करता रहे नया साल दुगुनी ऊर्जा से भरा हो नया साल फिर नई आशा नये सपने सजांएगे फिर वही नया ऊँचा मुकाम पाएंगे हवा में प्यार की खुशबू बिखरांएगे बेजान रिश्ते में जान लाएँगे रोते हुए लबों पे हम हंसी लाएंगे।। आओ आओ २२वाँ साल खुशियों से भरा हो ये साल।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : ...
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
कविता

स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा मंगल-बेला है अति प्यारा। नव-किरण है नव प्रभात नव-दिवस की है शुरुवात। रवि की दमकी है कांतियाँ फैल रही है स्वर्ण-रश्मियाँ। स्वागत करने को है मगन खग-वृन्द बंदी ये जन-जन। चहुँ-दिसि है प्रसन्नता छाई कण-कण में है रंगत आई। बागों में है फूल खिल आई कलियाँ भी देखो मुस्काई। नव वर्ष देखो अब आया है नई आशा मन मे समाया है। नई संकल्पों का संचार करें नई उम्मीदों पर ऐतबार करें। नव वर्ष में कुछ नया करेंगे मन मे हम प्रीत के रंग भरेंगे। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन...
नया साल
कविता

नया साल

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** नया साल नए रंग लेकर आया है, टूटे बिखरे ख्वाबों को फिर से जोड़ कर, एक नया एहसास लेकर आया है। बीते हैं जो पल विषाद में, उनमें एक नया आह्लाद लेकर आया है। छोड़ चुके हैं जो अपने हमें समझ कर बोझ, उनको रिश्तो का अहसास करवाने आया है। शिकस्त मिली हैं हमें बहुत पिछले कुछ वर्षों से नए साल जय विजय का एक नया दौर लेकर आया। बहुत हो चुका है अन्याय का तांडव नववर्ष लेकर शनि को न्याय का डंका बजाने आया है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
तुम भी दगा न करना
कविता

तुम भी दगा न करना

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** हे नववर्ष! तुम भी दगा न करना आओ हे नववर्ष! तुम हमसे कोई दग़ा न करना बीते जैसे साल पुराने वैसी कोई ख़ता न करना। पहले के ज़ख्म़ों से ही चाक शहर का सीना है नये साल में दर्द मिलें किसी को ख़ुदा न करना। मेरी इल्तज़ा तुझसे बस इतनी है हे नववर्ष अपनों को यूँ अपनो से तुम ज़ुदा न करना। संकट के इस दौर में तू पूरे मन से पूजा जाएगा फरिश्ता साबित होगा, किसी का बुरा न करना। संकट से जूझ रहे हैं सब,विषाद से गहरा नाता है ऐसे में आकर के शेष जीवन बे-मज़ा न करना। सबका हो सुनहरा आने वाला हर एक पल किसी के लिए कोई भी बुरी बद्दुआ न करना। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प...