मैं जीता जागता मजदूर हूँ
धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
बालोद (छत्तीसगढ़)
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मैं काम से चूर हूँ इसलिए मजबूर हूँ
मैं बहुत दूर नहीं इसलिए मजदूर हूँ
मैं आपके पास हूँ तभी तो सबके साथ हूँ
मेरे द्वारा प्रयास ही सबके लिये आस हूँ
मैं श्रम का नूर हूँ इसलिए मजबूर हूँ
मैं बहुत दूर नहीं इसलिए मजदूर हूँ
मेरे पास कान हैं रोज खोलता दुकान हूँ
मेरे पास हाथ हैं मिस्त्री बनाता मकान हूँ
मैं तो कोहिनूर हूँ इसलिए मजबूर हूँ
मैं बहुत दूर नहीं इसलिए मजदूर हूँ
मैं हर रोज करम करता तब परिवार चलता है
मैं लगन से मेहनत करता हूँ पूरे संसार चलता है
मैं महज दूर नहीं इसलिए मजबूर हूँ
मैं बहुत दूर नहीं इसलिए मजदूर हूँ
पंचतत्व ढांचा से बना ये हाड़ है इसलिए पहाड़ हूँ
जंगल में मंगल मनाता है इसलिए शेर का दहाड़ हूँ
मैं श्रम से चूर हूँ इसलिए मजबूर हूँ
मैं बहुत दूर नहीं इसलिए मजदूर हूँ
जल जंगल जमीन...























