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गीत

मैं खुद के साथ हूँ
गीत

मैं खुद के साथ हूँ

अनिल कुमार मिश्र राँची (झारखंड) ******************** मैं खुद के साथ हूँ फिर भी अकेला गीत गाता हूँ नयन में आँसुओं की धार लेकर गुनगुनाता हूँ। समर बेचैन तो करता हृदय में हूक भी उठती ये रिश्ते दिल जलाते हैं यही सबको बताता हूँ। हृदय में पीर का पर्वत छुपाए मुस्कराता हूँ मैं खुद के साथ हूँ फिर भी अकेला मानकर सबको झमेला नयी कुछ बात कह जग को जगत से मैं बचाता हूँ ये रिश्ते दिल जलाते हैं यही सबको बताता हूँ। मैं सबके साथ हूँ फिर भी अकेला गुनगुनाता हूँ दुश्मनों से प्यार के रिश्ते निभाता हूँ मुस्कुराकर, गुनगुनाता गीत गाता हूँ मैं खुद के साथ हूँ फिर भी अकेला इस जगत का एक झमेला गीत को लिखकर हृदय में प्राण पाता हूँ। कृपा मित्रों की नित बरसे यही है कामना मेरी नयन में आँसुओं के भार ढोकर मुस्कराता हूँ तड़पता हूँ मैं, जलता भी हूँ कुछ कष्ट है ऐसा हृदय में पीर से गलत...
बंधक तन में टहल रही है
गीत, छंद

बंधक तन में टहल रही है

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आधार छंद- विष्णुपद बंधक तन में टहल रही है, श्वासें बन उलझन। घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।। डाल दिया आ खुशियों के घर, राहू ने डेरा। दुख की संगीनों ने तनकर, उजला दिन घेरा।। जगी आस का कर देता है, चाँद रोज खंडन।। घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।।१ अस्पताल के विक्षत तन में, श्वासों का टोटा। गरियाता पर अटल प्रबंधन, बिल देकर मोटा।। दैत्य वेंटिलेटर नित तोड़े, भव का अनुशासन। घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।।२ एंबुलेंस की चीखें भरती, बेचैनी मन में। भूल गयी अब लाशें काँधे, चलती वाहन में।। बदल दिया है इस मौसम ने, मानस का चिंतन। घर के बाहर पग रखने में, डरती है धड़कन।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...
जाने दुनियां
गीत, भजन

जाने दुनियां

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** (तर्ज: चाँद सी मेहबूबा हो मेरी कब) आचार्य श्री से जाने दुनियाँ, ऐसे गुरु हमारे हैं I नयनों में नेहामृत जिनके, अधरों पर जिनवाणी है। करका पावन आशीष जिनका, कंकर सुमन बनाता है I पग धूली से मरुआंगन भी, नंदनवन बन जाता है। स्वर्ण जयंती मुनिदीक्षा की, रोम रोम को सुख देती I सारे भेद मिटा, जन जन को, सुख शांति अनुभव देती।। आचार्य श्री से जाने दुनियाँ, ऐसे गुरु हमारे हैं I नयनों में नेहामृत जिनके, अधरों पर जिनवाणी है।। अकिंचन से चक्रवर्ती तक, चरण शरण जिनकी आते I कर के आशीषों से ही बस, अक्षय सुख शांति पाते I योगेश्वर भी, राम भी इनमें, महावीर से ये दिखते I सतयुग, द्वापर, त्रेता के भी, नारायण प्रभु ये दिखते I युग युग तक रज चरण मिले, यही संजय मन नित मांगे। आचार्य श्री विद्यासागर का, सदा हो आशीष मम माथे।। आचार्य श्री से जाने दुनियाँ, ऐसे गुरु हमारे हैं I...
काली का स्वरूप धरूं
गीत

काली का स्वरूप धरूं

रेशू पर्भा राँची, (झारखंड) ******************** लक्ष्मी बनूँ, दुर्गा बनूँ, या काली का स्वरूप धरूं रानी बनूं, अबला बनूं, या कोई कुरूप बनूँ तेरी छलती नयनों से, कैसे अब मैं दूर रहूँ कहो पापियों मुझे बताओ, इस युग में कौन सा रूप मैं लूँ अत्याचार अब बढ़ा बहुत है, किस तरह मै दूर करूँ अग्नि ज्वाला बरसा दूँ, या प्रलय सा हाहाकार करूँ पिला दूँ विष का प्याला मैं, या सीने पर तेरे वार करूँ कहो पापियों मुझे बताओ कैसे तेरा संहार करूँ जन्म दिया जिस नारी ने, करते कैसे तिरस्कार हो उनकी छांव में पलकर तुम, करते कैसे बहिष्कार हो अरे हीन विचारों वाले, कैसे तुझसे संवाद करूं कहो पापियों मुझे बताओ कैसे तेरा अभिवाद करूँ राहों पर जो चले अकेली, नजरों से नग्न तुम देखते हो जरा बताओ, अपनी माँ बहनो को भी ऐसे ही निहारते हो इस स्वर्णिम सृजन सृष्टि का अब कहो कैसे उद्धार करूँ तुम ही बताओ ओ वहशी कैसे तेरा मैं नाश करूँ आधु...
अखबार बेचने वाला हूँ
गीत

अखबार बेचने वाला हूँ

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदू ना मुसलमान हूँ मैं, इंसान हूँ इज्जत वाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। मैं रोज नई खबरें लाता, तम चीर उजाला फैलाता। हर सुबह यही वंदन करता, रखना खुश सबको ऐ दाता।। हूँ पढ़ा लिखा कम, सच है पर, मैं आदर्शों का पाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। अखबार बेचता हूं मैं क्यों, है शर्म नहीं मुझको कोई। मिल जाती मुझको दो रोटी, है काम कहां छोटा कोई।। मैं तो भविष्य भारत का हूँ, मैं भारत का रखवाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। मैं काम सभी कर लेता हूँ, अपनी मस्ती में रहता हूँ। कल मैं भी जिलाधीश बनकर, आऊँगा ये सच कहता हूँ।। मेहनत "अनंत" ईमान मेरा, मुट्ठी में लिए उजाला हूँ। अखबार बेचने वाला हूँ, अखबार बेचने वाला हूँ।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : १...
पीत पल्लव को बदल…
गीत

पीत पल्लव को बदल…

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** पीत पल्लव को बदल मधुमास लायेंगे। भूलकर हम आज को, कल मुस्कुरायेंगे।। भर गयी है टीस उर में रात ये काली। उड़ गये पंछी घरों को छोड़कर खाली। मर्ज के सैलाब ने विश्वास तोड़ा पर, नवसृजन करने खड़ा है आज भी माली।। आँसुओं को पोंछ कर उल्लास लायेंगे। भूलकर हम आज को कल मुस्कुरायेंगे।।१ मानते हम भूल अपनों की हुई सारी। जिस वजह से आज ये इंसानियत हारी। सीख लेंगे अब सबक जो कल हँसायेगा, फिर सुनेंगे कान मीठी बाल किलकारी।। रंग के उत्सव खुशी से जगमगायेंगे। भूलकर हम आज को कल मुस्कुरायेंगे।।२ जख्म इस इतिहास का जब कल पढ़ायेंगे। नीड़ सूना कर गये सब याद आयेंगे।। गीत मंगल कामना के शेष है 'जीवन', जीत के हम फिर नये स्वर गुनगुनायेंगे।। जोड़ अंतस को नये पुल हम बनायेंगे। भूलकर हम आज को कल मुस्कुरायेंगे।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प...
उम्मीद का दामन
गीत

उम्मीद का दामन

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** ३० मापी मेरा मन ये प्यासा है कोरे कागज की तरह से दिल ये प्यार में घायल है कोरे कागज की तरह से जीवन में मेरे कोई कमी नहीं उजली राहों की और तो और ना ही जिन्दगी में अरे बहरों की क्यों दिल कहता है तुम्हारे कि मेरे अफसानों की और ये दिल दिल खोया है कोरे कागज की तरह से मेरा मन .... जीवन में अरे मैंने सपना देखा बनूँ दुल्हन की और खिलौना नहीं है ये दिल भी किसी से खेले की हमेशा रहा है उमंगे लिए अपने मन अन्तिस की दिल बसा तुममें है, मन है कोरे कागज की तरह से मेरा मन .... जीवन में रोशनी मिली है हमें तो हाँ बहरों की और हमें जिन्दगी में कुछ उम्मीदें हैं तुमसे भी तुम तो सुनना कुछ हमारे इस सौगात भरे दिल की जो तुम्हें याद करता है कोरे कागज की तरह से मेरा मन .... परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाण...
सब पा लिया
गीत

सब पा लिया

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** (तर्ज: मैं कही कवि न बन जाऊ..) तेरा प्यार पा के हमने सब कुछ पा लिया है। तेरे दर पर आके हमने सिर को झुका लिया है।। तेरा प्यार पा के हमने सब कुछ पा लिया है।। आवागमन की गालियाँ न हत बुला रही थी..२। जीवन मरण का झूला हमको झूला रही थी। अज्ञानता की निद्रा हमको सुला रही थी। नजरे नरम हुई है तेरा आसरा लिया जब।। तेरा प्यार पा के हमने सब कुछ पा लिया है..।। तेरे प्यार वाले बादल जिस दिनसे घिर गये है.. २। दूरगुण के निसंक के पर्वत उस दिन से गिर गये है। रहमत हुई है तेरी मेरे दिन फिर गये है। तेरी रोशनी ने सदगुरु रास्ता दिखा दिया है।। तेरा प्यार पा के हमने सब कुछ पा लिया है..।। संजय का ये गीत गुरु प्रभु को हैं समर्पित..२। अपनी कृपा हे गुरुवर मुझ पर बनाये रखना। अपने चरणो में मुझको थोड़ी जगह जरूर देना। अज्ञानी हुई मैं गुरुवर मुझे ज्ञान आप देना।। तेरा प्यार ...
उम्मीदों की भोर …
गीत

उम्मीदों की भोर …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** कष्टों की काली रजनी का, आया अंतिम छोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।। घूम रही है हवा विषैली, बन कर काला नाग। खुशियों के घर जला रही है, श्मशानों की आग।। कानों में घोला है दुख ने, त्राहि माम का शोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।१ डोल गया है बुरे वक्त में, लालच का ईमान। श्वासों का सौदा करते हैं, पग-पग पर शैतान।। काट रहे हैं चाँदी निर्मम, भूखे आदमखोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।२ एड़ी ऊँची कर पूरब में, झाँक रही सब बाम। कोई सूरज आकर बाँचे, खुशियों के पैगाम।। विरह वेदना की खबरें तो, बिखरी हैं चहुँओर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।३ हाथों थामे रखना 'जीवन', धीरज की पतवार। स्वागत करने बैठे तट पर, करुणा के उद्गार।। सरक रहा है धीरे-धीरे, अपने ओर अँजोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।...
वक्त गुजर जाएगा
गीत

वक्त गुजर जाएगा

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** अब तक लाखों को रुला चुका, अब नहीं रुलाने पाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। चिंता की कोई बात नहीं, हरदम रहती है रात नहीं। क्या वक्त कहीं पे रुकता है, क्या आता रोज प्रभात नहीं।। डर जाएगा फिर क्यों तन मन, क्यों नहीं प्रभाती गाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। अब प्राणवायु उसके घर से, आ पहुँची है रहमत बरसे। अब कमी नही ऑक्सीजन की, मन खुशियों से अब क्यों तरसे।। खुशियों के आँसू आँखों में, अब होंगे कौन रुलाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। संक्रामित रोज बढ़े जाते, विष कोरोना का फैलाते। पर अब टीका मैदां में है, हम देख रहे राहत पाते।। "अनंत" कोरोना भागेगा, विषधर कैसे डस जाएगा, वक्त गुजर जाएगा।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा...
मंदिर मस्जिद से बाहर आ
गीत

मंदिर मस्जिद से बाहर आ

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** मंदिर मस्जिद से बाहर आ, मेडिकल कॉलेज बनाएं। कल की गलती आज सुधारें, सेवा कर सेवक कहलाएं।। ठोकर खाई जान गए हम, क्यों कर घर में नफरत पाली। क्या अच्छा वह पेड़ लगेगा, हरी नहीं जिसकी हर डाली।। हराभरा सुरभितगुलशन कर, दूर - दूर खुशबू पहुंचाएं। मंदिर मस्जिद से बाहर आ, मेडिकल कॉलेज बनाएं।। केवल हम अच्छे हैं ऐसा, सोच हमेशा खंडित करता। कहो खुदा या ईश्वर उसको, पेट सभी का वो ही भरता।। उसने कहा यही, वो सबका, उसके पथ से दूर ना जाएं। मंदिर मस्जिद से बाहर आ, मेडिकल कॉलेज बनाएं।। हम निरोग हों सदा सर्वदा, ऐसी जो योजना बनाते। अस्पताल हर गांव में होते, हम सब उनका लाभ उठाते।। गलियारों में बेड ना होते खुद अपने को ये समझाएं। मंदिर मस्जिद से बाहर आ, मेडिकल कॉलेज बनाएं।। निहित स्वार्थ से ऊपर उठके मानवता का मंदिर खोलें। बंदों की सेवा से बढ़कर, ...
जैसे कुटिल ततैया
गीत

जैसे कुटिल ततैया

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** लोक, तन्त्र के पहरे में करता है ता ता थैया! बिना छेद की बंसी टेरे अपना कृष्ण कन्हैया।। चेहरे पर भिनसारी आभा, मुँह में मिसरी-सी, घर-आँगन से दालानों तक खुशियाँ पसरी-सी रामकहानी-सी वे यादें, जैसे कुटिल ततैया। बिना मथानी मथे मन्थरा घर-घर में परपंच, बिना सूँड़ के हाथी जैसा झूम रहा सरपंच आगे-पीछे कई लफंगे करते भैया-भैया।। पलते हैं अनजाने बापों के विकास के भ्रूण, बढ़ते बढ़ते नाक हो गई है हाथी की सूँड़ जौ का टूँड़ गले में, बेबस जन-गण-मन की गैया।। सड़कों पर बिन डामर गिट्टी जैसी मारी मारी, भटक रही लोटा-थारी बिकने जैसी लाचारी कालीदह तक पहुँच न पाता कोई नागनथैया।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
पैगााम
गीत

पैगााम

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** रेत पर नाम लिखने से क्या होगा। क्या उनको संदेशा तुम दे पाओगें। जब वो आये यहां पर घूमने को। उसे पहले कोई लहर आ जायेगी। और जो तुमने लिखा था संदेशा। उसे लहर बहा कर ले जाएगी। रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।। अगर करते हो सही में मोहब्बत तुम। तो पत्थर पर क्यों सन्देश लिखते नहीं। जब भी वो आयेगे यहां पर। संदेशा तुम्हारा पड़ लेंगे वो। यदि होगी मोहब्बत तुमसे अगर उन्हें। नीचे अपना पैगाम वो लिख जाएंगे।। रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।। एक दूसरे के संदेश पढ़कर के। सच में दोनों को मोहब्बत हो जाएगी। इसलिए कहता हूँ मैं आज तुम से। पत्थरों में भी मोहब्बत होती है जनाब।। रेत पर नाम लिखने से क्या होगा।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यर...
नई कली
गीत

नई कली

ज्योति जैन 'ज्योति' कोलाघाट (पं. बंगाल) ******************** नई कली पल्लवित हुई हैं उन्हें नया परवाज मिले सीख रही हैं उड़ना अब तो सप्त सुरों का साज मिले आँखों में विश्वास भरा है चाहत को पतवार किया धरती अंबर नाप लिया जब मन में ज्योति विचार किया निज सामर्थ्य के बूते ही अरमानों का ताज मिले सीख रही हैं उड़ना अब तो सप्त सुरों का साज़ मिले गहरे सागर सी चाहत है मोती से जज़्बात भरे छलक रहीं इच्छाएँ लेकिन अवरोधों से गात भरे जोड़े कतरन जब चाहत के जख्मों के समराज मिले सीख रहीं हैं उड़ना अब तो सप्त सुरों का साज मिले उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम फहराया अपना परचम जल थल नभ पर दिखा दिया है बेटी ने अपना दमखम बनी देश की शान बेटियांँ उनको सुंदर आज मिले सीख रहीं हैं उड़ना अब तो सप्त सुरों के साज़ मिले एक दिवस करके सम्मानित महिला दिवस मनाते हैं रोज कोख में मारे बेटी बहुओं को घिघियाते हैं रोज करें ये ता ...
भारत प्यारा
गीत

भारत प्यारा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** देश हमारा प्यारा हैं सबका बहुत दुलारा हैं। तभी अनेकता में एकता हम सब का नारा है। देश हमारा प्यारा हैं..।। बहु भाषाएँ होकर भी कश्मीर से कन्याकुमारी तक। भारत देश हमारा हैं जो प्राणो से भी प्यारा हैं। जहाँ जन्मे राम कृष्ण और उन पर लिखने वाले संत। तभी तो यह पावन भूमि हम सबको बहुत भाता हैं।। तभी तो हमें भारत देश प्राणो से भी प्यारा हैं।। अमन चैन से रहते हमसब होली ईद दिवाली पोंगल और मनाते किस्मस आदि। हर त्यौहारों मे हिस्सा लेते हर जाती और महजब सारे। ऐसा प्यारा देश हमारा प्राणो से भी है सबको प्यारा। सबसे न्यारा सबसे प्यारा विश्व में है भारत हमारा।। भारत हमारा भारत हमारा।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक ...
परम पिता ने कुंभा बनाया
गीत

परम पिता ने कुंभा बनाया

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** परम पिता ने कुंभा बनाया, जो चाहें जो इस में भर लें। परम पिता की करें वंदना, भवसागर के पार उतर लें।। हम कतरे हैं धर्म हमारा, सागर में मिलना ही तो है। इससे पहले तन मन माँजें, पिया मिलन को बनें संवर लें।। कितना सुखद बनाया है तन, खुशियों की खुशबू डाली है। जान लुटा दें कुंभकार पर, शिल्पकार पे दिल से मर लें।। मनका अश्व नियंत्रित करने, बुद्धि की चाबुक भी दी है। मंजिल तक की बाधाओं को, अपने बुद्धि बल से हर लें।। परमपिता का घर अपना दिल, झांको अंदर मिल जाएगा। नहीं जरूरत उसे तलाशे, घर बैठें, सच जान अगर लें।। करना उसको हम कठपुतली, मगर प्राण वाले हैं भाई। प्राण उसी के उसको सौपें, हर-हर है तो क्यों डर वरलें।। ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्रहम, कैसे हैं लासानी बंदे। इसे समझ लें, इसे जान लें, फिर "अनंत" जो चाहें करलें।। परिचय :- ...
आदिकाल से इस धरती पर
गीत

आदिकाल से इस धरती पर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आदिकाल से इस धरती पर, जो भी आया यायावर है। मानव तन क्षणभंगुर नश्वर, किन्तु आत्मा अजर-अमर है। पाकर ईशादेश आत्मा, देह-वसन धारण करती है। पंचतत्व की देह अंत में, मिले इन्हीं में जब मरती है। चले छोड़ कर देह आत्मा, कहें लोग जाए ऊपर है। मानव तन क्षणभंगुर नश्वर, किन्तु आत्मा अजर-अमर है। मानव काया मंदिर सम है, करे आत्मा वहाँ वास है। रुक जाती है जब धड़कन तो, उड़े आत्मा अनायास है। सांसें थम जाएँगी किस क्षण, किसे ज्ञात है किसे ख़बर है। मानव तन क्षणभंगुर नश्वर, किन्तु आत्मा अजर-अमर है। नीड़ शरीर आत्मा पक्षी, वह उड़ जाएगा जाने कब। जगत वृक्ष रूपी शाखा पर, सन्नाटा हो जाएगा तब। जन्म हुआ है जिसका जग में, मिटता उसका तन मरकर है। मानव तन क्षणभंगुर नश्वर, किन्तु आत्मा अजर-अमर है। नहीं आत्मा जलती-कटती, क्षरण-मरण से नहीं प्रभावित। प्राणशक्ति है ...
संस्कृति अपने भारत की
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संस्कृति अपने भारत की

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** संस्कृति अपने भारत की, हमें जान से प्यारी है। सत्य अहिंसा न्याय दया की, जो जग में महतारी है।। सच्चाई के पथ पर चलकर, हम विपदाएं सहते हैं। झूठों की दुनिया में दो गज, दूर सदा ही रहते हैं।। धर्म युक्त जीवन जीने में, झूठ नहीं चल पाता है। यूँ ही सत्यनारायण लोगों, जगत पिता कहलाता है।। कोई भी युग हो असत्य की, खिली नहीं फुलवारी है । संस्कृति अपने भारत की, हमें जान से प्यारी है ।। हम हैं पथिक अहिंसक पथ के, सब जीवों से प्यार करें। एक घाट पर शेर बकरियां , पानी पीएं नहीं ड़रें।। बिना वजह जीवों की हत्या, घोर पाप कहलाता है। हमको तो मन दुखे किसीका, ये तक नहीं सुहाता है।। उसे नरक में फेंका जाता, जो नर अत्याचारी है। संस्कृति अपने भारत की, हमें जान से प्यारी है।। न्याय सुलभ हो सस्ता हो इस, नीति नियम पे चलते हैं। सबको न्याय समान मिले ...
नेहिया के डोर
गीत

नेहिया के डोर

संजय सिंह मुरलीछपरा, बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** https://youtu.be/NeoGdglV-wY जोरीदना नेहिया के डोर मोर सजनवा, जोरीदना नेहिया के डोर २ जन्म जन्म के प्यासल मनवा २ भटकत जाला जाने कवना ओर २ जोरीदना नेहिया के डोर ! आस के दियवा कईसे जराई २ सगरो अंधार भइल घनघोर २ जोरीदना नेहिया के डोर ! संजय जियरा तोहसे लागल २ चंदा के जाइसे निहारे चकोर २ जोरीदना नेहिया के डोर ! जोरीदना नेहिया के डोर मोर सजनवा, जोरीदना नेहिया के डोर २ परिचय :- संजय सिंह पिता : स्व. लाल साहब सिंह निवासी : ग्राम माधो सिंह नगर मुरलीछपरा जिला बलिया उत्तर प्रदेश सम्प्रति : प्रधानाध्यापक कम्पोजिट विद्यालय रामनगर घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। https://youtu.be/4NSBGzwFVpg आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिच...
अंतर्मन
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अंतर्मन

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्या कहूँ बात उलझन की। मत पूछो अंतर्मन की। छा गया बहुत कोरोना। पीड़ित जग का हर कोना। दृग झड़ी लगी सावन की। मत पूछो अंतर्मन की। लगता कर्फ्यू कोरोना। दुर्भर है जगना-सोना। सीमा है घर-आँगन की। मत पूछो अंतर्मन की। सूने बाज़ार सभी हैं। धीमे व्यापार अभी है। दुर्दशा हुई जन-जन की। मत पूछो अंतर्मन की। नव विवाहिता थी सोना। ले गया कंत कोरोना। है दशा बुरी विरहन की। मत पूछो अंतर्मन की। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कविता,गीत...
बारा मासी गीत
गीत

बारा मासी गीत

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** तुम्हारे बिन मै न जियुंगी दिलों जानी, जैसे मछली बिन पानी। हो पिया जैसे मछली बिन पानी.......तुम्हारे बिन....... चैत्र, बैसाख ऐसे बीते आई याद सुहानी, कोयल, पपिहा की वाणी सुनकर हो गई पानी पानी... तुम्हारे बिन...... जेठ असाड़ बड़ पीपल पूजे, कई मानता मानी, धूं-धूं करके महीने बीते, जैसे काला पानी.......... तुम्हारे बिन....... सावन भादों में बरखा आई, लाई याद पुरानी, झूले पड़ गए नीम पुराने,चहुं और पानी ही पानी....... तुम्हारे बिन........ कुंवार कार्तिक शरद ऋतु आई, ठंडी हुई मनमानी, मेला देखन सब सखी जावे, मै बैठी अनमानी........ तुम्हारे बिन........ अगहन पोष मास जब आए, बड़ गई मन हैरानी, छोटे दिवस रैन भई लंबी, कठिन हुई जिंदगानी........ तुम्हारे बिन........ माघ फागुन बसंत ऋतु आई, रंगो ने चादर तानी, "श्याम" हो...
पायल की झंकार
गीत

पायल की झंकार

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** बार-बार करती रहती क्यों, मेरे जहन पर वार। पायल की झंकार तेरी ये, पायल की झंकार।। रिश्ता तेरा मेरा है क्या, तू गुल अलग चमन का। तुझे सींचता माली दूजा, तेरे ही गुलशन का।। तेरे पैर की ये पैजनिया, क्यों पर मुझे बुलाए। मेरे हृदय को भेद रही क्यों, सोचूँ बारंबार।। पायल की झंकार तेरी ये..... पायल क्या कहती ना समझा, इतना पर जाना है। दुखी तेरी पायल है बस ये, मैंने पहचाना है।। मुझे करें आकर्षित इसके, घुंघरू बजकर सारे। मेरी आरजू इसको, चाहे, मेरा ये दीदार।। पायल की झंकार तेरी..,,... क्या "अनंत" अब होगा केवल, ऊपरवाला जानें। ज्ञात मुझे ये खुशियों के हैं, उसके पास खजानें।। मिलन लिखा यदि होना ही है, कौन उसे रोकेगा। आज अगर पतझड़, लाएगी, कल ये नई बहार।। पायल की झंकार तेरी ये..... परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : १...
नजर से नजर मिली तो
गीत

नजर से नजर मिली तो

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिली तो खजाना मिल गया।। वो सुहाना वक्त था जब मिले नयन-नयन। जब मिले अधर अधर जब मिले बदन-बदन।। पंख लगे आरजूओं को हंसी गगन मिला। पंछियों को पर यूँ फड़फड़ाना मिल गया।। तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।। हुस्न और इश्क का मिलन बड़ा अजीब है। मरना जिंदगी के लिए हो गया करीब है।। तीर तेज करके रखे थे वो अनायास ही। मुस्कुराए छूने को निशाना मिल गया।। तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।। रूप का महल कहूँ या कहूँ कि ताज है। मरमरी बदन तेरा, जो हंसता आज है।। हट सकी नजर नहीं जम गई तो जम गई। लड़खड़ाते कदमों को ठिकाना मिल गया।। तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।। ज...
फागुन आया
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फागुन आया

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांडल रे आंगन-आंगन बजी बधाई देहरी पहने पायल रे, पायल रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे यौवन सजे सजे हर द्वारें पायल नूपुर बाजे रे गेहू वाली लेकर आती खनखन करती करती चूड़ियां रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे रंगा गुलाल संघ मचल रही है हरि पीली आंचल चांदनी ताल-ताल पर नाच रही है मेरे मन की रागिनी रवि किरणे भी घोल रही है सतरंगी केसरिया रंग रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांडल रे टेसु-टेसु रंग केसरिया पाखी-पाखी झूम मेरे घर आंगन में सजी सावरी ढाणी चुनरिया ओढेरे पीली-पीली सरसों पर मान मतवाला डोले रे फागुन आया होली आई बोल बजाओ मांडल रे प्रातः संध्या अवनी अंबर अभी राकेश एरिया खेले रे आज नहीं है देव्श कहीं भी अनुराग मानव भरे रे फागुन फाग सजे मतवाले मत वालों की टोली रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मादल रे ...
होली गीत
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होली गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** नित नूतन परिधान पहनकर, सृजित करे रंगोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही शुभ होली है। सूरज की सोने-सी किरणें, चारु चाँदनी रजत लगे। विस्मित विस्फारित नयनों को, नैसर्गिक सौंदर्य ठगे। कभी तिमिर तो कभी उजाला, अद्भुत आँख मिचोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही शुभ होली है। इन्द्रधनुष सातों रंगों से, अपनी शोभा बिखराए। रंग नहीं कम अंबर में भी, धरती को यह दिखलाए। बादल गरजें, बिजली चमकें, वर्षा करे ठिठोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही नित होली है। कानन में फूले पलाश हैं, उपवन-उपवन सुमन खिले। खेतों में सरसों है पीली, नए-नए पत्ते निकले। मनमोही व्यापक होली से, सबकी काया डोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही शुभ होली है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्...