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गीत

प्रकृति का कहर
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प्रकृति का कहर

संजय कुमार साहू जिला बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** देख प्रकृति का कहर.. देख प्रकृति का कहर .. फल दिया और फूल दिया, १० पीढ़ी तक कुल दिया, इस अराजकता के दौर में, तुझको प्रभुत्व सम्पूर्ण दिया।। पर तेरा जी न भरा मानव, करता खिलवाड़ प्रकृति के साथ।। तूने क्या सोच के किया था, प्रकृति का नीरव दोहन, देख तेरे इस भूल का फल भोग रहा जग आज है, प्रकृति का बदला लेने आया आज यमराज है।। जीवों की हत्या कर तूने प्रकृति को किया कुरूप, देख आज कोरोना आया प्रकृति प्रतिघात स्वरूप, आज पर्यावरण दिवस पर मान ले अब तू मेरी बात, कर प्रकृति का सम्मान, जंगल को न कर वीरान, जीवों की रक्षा तू कर, पेड़ लगा बढ़ा प्रकृति का मान, वरना कोई नहीं बचा पाएगा तुझे, प्रकृति का कहर है आज। देख प्रकृति का कहर ... देख प्रकृति का कहर..।। आज गर्मी के दिनों में सुबह चलती भाप है, शाम को पानी गिराकर देती प्रकृति श्राप है, बरसात मे...
बदल रहे रिश्तों के माने
गीत

बदल रहे रिश्तों के माने

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** बदल रहे रिश्तों के माने आज यहाँ प्रतिपल समझ नही पाता है कोई क्या हो जाए कल गुणा भाग की इस दुनिया में लाभ की बस बातें अपना सगा और सम्बंधी भी करता है छल कौआ भागा कान नोच कर बातें लगती सच्ची बुद्धि टांग देते खूँटी पर अक़्ल है कितनी कच्ची श्वेत वसन यद्यपि शरीर पे मन में भस्मासुर गिरगिट जैसे रंग बदलते बातों में निर्बल जाति पाँति मज़हब की रोटी रोज़ सेकते भैया ऐसे साहिल हैं तो साहिल पर डूबेगी नैया मज़हब की घुट्टी पीकर हम भँवर जाल में हैं मंदिर मस्जिद के झगड़े में गई उमरिया ढल धन वैभव सब पास हमारे मन है मगर अशांत हंसी ख़ुशी संतोष है ग़ायब दिल है सूखा प्रांत तिल तिल कर जल रहीं ज़िंदगी जीवन जैसे बोझ लव पर तो मुस्कान दिख रही मन में दावानल ईर्ष्या द्वेष जलन पर क़ाबू पा ले यदि इंसान बच जाएगी ये दुनिया फिर बनने से शमशान पर हित हो...
मोहे देखन दे
गीत

मोहे देखन दे

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** मोहे देखन दे असीघाट को गए छोड़ गोस्वामी जी, जाने गए वो किधर ढूंढे सबकी नजर, मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे पहली बार श्री कबीर दास जी ने काशी (लहर तालाब) में लिया अवतार हो... ऐकश्र्वरवादी विश्व में फैले ऐसा किया विचार हो... ईश्वर एक है दूजा न कोए जाना सब संसार ऐसा हुआ उदगार मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे... दुसरी बार श्री तुलसीदास जी ने जग में अवतार हो... सपना जो स्वामी जी का था उसको किया साकार हो... रामचरितमानस सबके सनमुख आये जाना सब संसार ऐसा हुआ उदगार मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे... तीसरी बार श्री घासीदास जी ने जग में लिया अवतार हो... सर्वधर्म - समभाव विश्व में फैला ऐसा किया प्रचार हो जाना सब संसार मोहे देखन दे गुरु महिमा देखन दे...   परिचय :-  खुमान सिंह भाट निवासी : रमतरा, बालोद, छत्तीसगढ़ आप भी अपनी ...
गुरु वंदना
गीत

गुरु वंदना

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** गुरु तो ईश्वर का साकार रूप होता है अंधाररुपी जीवन में प्रकाश पुंज होता है! गुरु की वाणी में रहती छिपी प्रखर ज्ञान, प्रज्ञा ज्ञान की चिंगारी! गुरु की कृपा मात्र से यह नश्वर जीवन अमर शाश्वत बन जाता! इस अलौकिक जीवन की यात्रा- अति-सरल सुगम बन जाता! गुरु अंदर की-दिव्यता को- जगा कर इस जीवन पथ को आलोकित कर जाता! निज पशुता को भगाकर दिव्य चेतना लाता मनुज मात्र के लिए उज्जवल प्रकाश पुंज फैलाता! सदियों से है गुरु कृपा की अनेकों दिव्य कहानी! महामूर्ख कालीदास सदृश एक दिन 'महाकवि' बन जाता! महान योद्धा अशोक सम्राट बौद्ध भिक्षुक बन जाता! 'आर्यभट्ट' ब्रह्मांड के ज्ञाता कोई 'कणाद' सदृश्य अनु ज्ञाता बन जाता! कोई चाणक्य कृपा को पाकर महान सम्राट बन जाता! मैं मूरख भी निश-दिन गुरु वंदना गाता! . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम...
विरहन की पीर
गीत, दोहा

विरहन की पीर

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर। साजन की नित याद में, नयनन बहता नीर। राधा सी बन बाँवरी, भटकूँ वन दिन-रैन। कहीं नहीं मन अब लगे, हृदय न पाये चैन। अपलक राह निहार कर, थकतीं आंखें रोज। मुख सीं कर बैठी रहूँ, नहीं निकलते बैन। चिट्ठी तक आती नहीं, ह्रदय न पावे धीर। पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर।1 जिन राहों से तुम गये, देखूँ नित उस ओर। भटकूँ बन पागल पथिक, चले न दिल पर जोर। अंतहीन विरहाग्नि में, झुलस रहीं हूँ नित्य।, हृदय दग्ध अब हो रहा, पीड़ा मन में घोर। लहरों को बस गिन रही, बैठी नदिया तीर। पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर।।2 साजन की नित याद में, नयनन बहता नीर। खटका हो जब द्वार पर, रुक जाती है साँस। द्वारे पर प्रियतम न हों, चुभती दिल में फाँस। साँसों की सरगम सधे, यदि लौटे निज गेह। दरवाजे यदि अन्य हो, लगती मन को डाँस। वापस अब आओ पिया, व्य...
डर ज़रा
गीत

डर ज़रा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** झांक मन में आज अपना आकलन तू कर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! मन में तेरे है मलिनता! स्वार्थ की इसमें बहुलता! क्यों नहीं सच्ची सरलता? पालता हैं क्यों जटिलता? स्वच्छ कर सद्भावना से स्वयं का अन्तर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! 'अहं' में रहता मगन तू! सतत करता है पतन तू! बोलता कड़वे कथन तू! क्यों नहीं करता मनन तू? अपने शब्दों में शहद की मधुरता को भर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! पाप हैं अविराम तेरे! व्यस्त हैं दिन-याम तेरे! अनैतिक सब काम तेरे! दुष्टता है नाम तेरे! सोच क्या ले जाएगा संग अपने यायावर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस...
आएगा कभी मधुमास नहीं
गीत

आएगा कभी मधुमास नहीं

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** मन में यदि कोई आस नहीं आएगा कभी मधुमास नहीं बढ़ सकते पाँव नहीं आगे मन में ही अगर विश्वास नहीं मन में क़ायम उम्मीद रहे संसार तुम्हारा मुरीद रहे जीवन पथ पथरीला हो पर नर होना कभी निराश नहीं कभी धैर्य का दामन मत छोड़ो अपनों से नाता मत तोड़ो अनुचित व उचित का भान रहे मन होगा कभी उदास नही दिल में गर कोई चाह नाहीं दुखियों की कोई परवाह नहीं क्यों दम्भ मनुजता का भरते पर पीड़ा का एहसास नहीं ग़म से क्यों रिश्ता जोड़ लिए मुस्कान से क्यों मुँह मोड़ लिए दस्तक ख़ुशियाँ फिर क्यों देंगी जीवन में हास- विलास नहीं रिश्तों का सदा सम्मान करो दुश्मन का भी मत अपमान करो साहिल तो वही होता सच में करता जो कभी उपहास न . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्याल...
मां बस मां ही होती है
गीत

मां बस मां ही होती है

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** मेरे संग संग हमेशा ही दुआएं मां की होती हैं। वो मेरी राह से कांटे हटाकर फ़ूल बोती है। वो देती है हमें जीवन स्वयं के अंश को देकर। वो दुनिया में हमें लाती है कितने कष्ट सह सह कर। समेटे प्यार आंचल में वो ममता ही लुटाती है। जहां रोशन बनाती है वह तिल तिल दीप सा जलकर। हमारी जिंदगी में वह सपन के बीज बोती है। स्वयं शोलों पर चलकर प्यार की फसलें उगाती है। वो एक एक जोड़कर तिनका सुहाना घर सजाती है। बलायें दूर हो जाती फकत उसकी दुआओं से, अभावों से भरी दुनिया को जन्नत सा बनाती है। कोई वैसा नहीं होता, मां बस मां ही होती है। सदा मां की नज़र में प्रेम की रसधार बहती है। लुटा कर चैन हमको वो दुखों का भार सहती है। सदा उसका ह्रदय बच्चों के खातिर ही धड़कता है, वह बच्चों के लिए जीवन भी अपना वार सकती है। मैं हंसता हूं वो हंसती ह...
रंगों से रंगी दुनिया
गीत

रंगों से रंगी दुनिया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मैने देखी ही नहीं रंगों से रंगी दुनिया को मेरी आँखें ही नहीं ख्वाबों के रंग सजाने को। कोंन आएगा, आखों मे समाएगा रंगों के रूप को जब दिखायेगा रंगों पे इठलाने वालों डगर मुझे दिखावो जरा चल संकू मै भी अपने पग से रोशनी मुझे दिलाओं जरा ये हकीकत है कि, क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं ........................... याद आएगा, दिलों मे समाएगा मन के मित को पास पायेगा आँखों से देखने वालों नयन मुझे दिलाओं जरा देख संकू मै भी भेदकर इन्द्रधनुष के तीर दिलाओं जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .............................. जान जाएगा, वो दिन आएगा आँखों से बोल के कोई समझाएगा रंगों को खेलने वालों रोशनी मुझे दिलावों जरा देख संकू मै भी खुशियों को आखों मे रोशनी दे जाओ जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने...
जाने है ये सफ़र कैसा
ग़ज़ल, गीत

जाने है ये सफ़र कैसा

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** सूनी माँग सी राहों जैसा जाने है ये सफ़र कैसा, हर बस्ती वीरान मिली, नहीं खुशी का शहर देखा। नींद कुचलकर सुबह हुई और शाम ने भी पहलू बदले, कितनों की ही मौत हुई शमशान मगर बेखबर देखा। जहाँ पर खींचते हैं लोग जब तब लक्ष्मण रेखा, उसी दुनिया में हमने ज़िन्दगी को दर बदर देखा। रहते थे जो शीशमहल में घर उन्होंने बदल लिया, जब जब झाँका सीने में वहाँ फ़क़त पत्थर देखा। 'विवेक' झील के दरपन में लिखी प्रेम की इबारतें, मन कस्तूरी महक उठा जब उनको भर नज़र देखा। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में ...
है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ
गीत

है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सावधान रहना है प्रेमी प्रेम-यात्रा नियम कड़े। है कंटक से पूर्ण प्रेम पथ ज़रा संभल कर पाँव पड़े पथ पर पाहन पड़े नुकीले धधक रहे अंगारे हैं। तिमिर अमा का दिशा-दिशा में, ओझल चाँद-सितारे हैं। गहरी दुविधा की सरिता है, कठिनाई के अचल खड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े। मन विचलित तन में पीड़ा है, ज्वर से तापित अंग सभी। अंधकार आँखों के सम्मुख, धुंधले-धुंधले रंग सभी। पग घायल, छाले फूटे हैं, अवरोधक हैं बड़े-बड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े। नयनों में है फिर भी आशा, अद्भुत है विश्वास बसा। संकल्पित हैं तन-मन दोनों, व्रत है कोई पर्वत-सा। जगत साक्षी है चरणों ने, कितने ही इतिहास घड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मति...
फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी
गीत

फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** बड़ी बड़ी बातें करलें पर, यह कड़वी सच्चाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी, एक यहाँ मिल पाई है।। जन कल्याण के खातिर हमने, बनती सरकारें देखी। वोट के खातिर नेताओं की, चलती मनुहारें देखी।। वादों से फिरते नेताओं, को देखा उसके पश्चात। और कभी देखा है उनको, करते जनता पर ही घात।। प्रश्न यही क्या आज करें हम, सम्मुख गहरी खाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपडी, एक यहाँ मिल पाई है।। माना हमने, देश बड़ा है, और हजारों मसले हैं। हर मसले का हल हो ऐसी, उगा रहे वो फसले हैं । लेकिन लोगों की सब माया, खाली पेट रहें कैसे। हमीं न होंगे तो क्या होगा, बोलो दर्द सहें कैसे।। इतसी जो बात न समझे, समझो वो हरजाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी, एक यहाँ मिल पाई है।। "अनन्त" तन भी नंगा है और, गरमी सरदी सहता है। गांधी का है देश देर तक, सदमें सहता रहता है।। आसमान को छत कहकर वो, ...
सुनो प्राणप्रिय
गीत

सुनो प्राणप्रिय

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन का मोर संग लहरों का शोर संग पतंग का डोर संग चांद का चकोर संग रातों का जो भोर संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। नदी का किनारों संग फूलों का बहारों संग डोली का कहारो संग नैनों का इशारों संग मौसम का नजारों संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। मन का जो मीत संग जग का जो रीत संग पाती का जो प्रीत संग बाती का जो दीप संग स्वाति का जो सीप संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। गीत का संगीत संग प्यासे का जो नीर संग पंछियों का जो नीड़ संग काजल का जो दीठ संग आंसू का जो पीर संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। जग बैरी रूठे चाहे सांसों की ये माला टूटे शूल मिले चाहे मुझे ...
तोड़ दे रंजिशें
गीत

तोड़ दे रंजिशें

जितेन्द्र रावत मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** तोड़ दे रंजिशें मैं मुक्कदर तेरा। तू है नींद मेरी मैं हूँ ख़्वाब तेरा। तू है बेचैन क्यों मेरी दिलरुबा। आँखों को अश्क़ों में मत डूबा। तू है सवाल मेरा मैं हूँ जवाब तेरा। तू है नींद मेरी मैं हूँ ख़्वाब तेरा। बेहिसाब रब से इबादत की। उन दुवाओ में तेरी चाहत थी। तू है दौलत मेरी, मैं हिसाब तेरा। तू है नींद मेरी, मैं हूँ ख़्वाब तेरा तू सियासत के जैसे बदलना नही। मेरे प्यार को दीवार में चुनना नही। तू है अनारकली मेरी, मैं हूँ नवाब तेरा। तू है नींद मेरी, मैं हूँ ख़्वाब तेरा। बेचैनी क्यों तू दिल में सजी। सूरत तेरी, आँखों में बसी। तू है मन्नत मेरी, मैं सवाब तेरा। तोड़ दे रंजिशें मैं मुक्कदर तेरा। तू है नींद मेरी, मैं हूँ ख़्वाब। . परिचय :- जितेन्द्र रावत साहित्यिक नाम - हमदर्द पिता - राधेलाल रावत निवासी - ग्राम कसमण्डी कला, ...
पृथ्वी है वरदान
गीत

पृथ्वी है वरदान

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** पृथ्वी है वरदान प्रभु का, इसको गले लगाएं हम। इसे सजाएं इसे संवारें, जीवन सफल बनाएं हम।। रहने की है जगह यही तो, पालन पोषण करती है। बाद मृत्यु के आश्रय देने, वाली भी ये धरती है।। जीवन की क्या कोई कल्पना, बिन इसके हो सकती है। इसीलिए तो धरती हमको, लोगों माँ सी लगती है।। माँ माने हम माँ सा ही दें, मान इसे सुख पाएं हम। इसे सजाएं इसे संवारें, जीवन सफल बनाएं हम।। धरती को धनवान रखें हम, कभी न निर्धन होने दें। जितना हो आवश्यक हम लें, नाहक इसे न रोने दें।। बंजर गर कर देंगे धरती, कैसे जान बचाएंगे। भूखे प्यासे रहना होगा, जीवन कैसे लाएंगे।। ऐसा ना हो छाती छलनी, करें और पछताएं हम। इसे सजाएं इसे संवारें, जीवन सफल बनाएं हम।। जैव विविधता हो तो धरती, कितनी सुंदर मन भाती। हरी हरी जब चादर ओढ़े, नई वधू सी इठलाती।। पेड़ अगर कट जायेंगे तो, क्या बरसात रिझा...
एक आग
गीत

एक आग

जितेन्द्र रावत मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एक आग नही अब बुझती है। तुम्हें देखे बिना आँखे चुभती है। ख़्वाब नही हकीक़त थे मेरे। मैं ही नही सब साथ है तेरे। दर्द में शराब ना घुलती है। एक आग नही अब बुझती है। तुम्हें देखे बिना आँखे चुभती है। क्या जुर्म किया ये कहती तो। मेरा हाल-ए-दिल तुम सुनती तो। तेरी याद मुझे अब दुखती है। एक आग नही अब बुझती है। तुम्हें देखे बिना आँखे चुभती है। तुम्हें दिल की किताब में लिखा है। नफ़रत लिखूँगा अब जो मुझे दिखा है। बिन प्यास के चाहत सूखती है। एक आग नही अब बुझती है। तुम्हें देखे बिना आँखे चुभती है। . परिचय :- जितेन्द्र रावत साहित्यिक नाम - हमदर्द पिता - राधेलाल रावत निवासी - ग्राम कसमण्डी कला, मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा - बी.ए (बी.टी.सी) राष्ट्रीयता - भारतीय भाषा - हिन्दी जाति - हिन्दू साहित्य में उपलब्धियां - अनेको...
भावों का रसमयी प्रदर्शन
गीत

भावों का रसमयी प्रदर्शन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** भावों का रसमयी प्रदर्शन, करना है तो नाचें गाएं। रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। मोम बनाता है पत्थर को, नृत्य बड़ा जादूगर भाई। तन भी होता निरोग इससे, सभी जानते ये सच्चाई।। परमानंद नृत्य से मिलता, लोगों आओ नाचें गाएं । रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। जब बच्चों को भूख लगे तो, पैर पटकता देखा बचपन। तृप्त हुए जब खा पी करके, खुश होने का किया प्रदर्शन।। नृत्य कला है अभिव्यक्ति की, कैसे इसको कभी भुलाएं। रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। दुष्टों का कर दमन सर्वदा, नृत्य रहा पथ प्रभु पाने का। आराधन का साधन भी ये, नहीं तथ्य यह बहलाने का।। नृतक बनाएं खुद अपने को, भव सागर से पार लगाएं। रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। नटवर नागर कृष्ण कन्हैया, हैं "अनन्त" जो नश्वर लोगों। धर्म और संस्कृति से जुड...
प्रेम इबादत है पूजा है
गीत

प्रेम इबादत है पूजा है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** प्रेम लोक परलोक सुधारे, मेरा तो अनुमान यही है। प्रेम इबादत है पूजा है, भक्ति यही भगवान यही है।। प्रेम को जिसने भी पहिचाना, उसने सबको अपना माना। रब का रूप देखकर सबमें, सबको सेवा लायक जाना।। तम में कर देता उजियारा, लासानी दिनमान यही है। प्रेम इबादत है पूजा है, भक्ति यही भगवान यही है।। प्रेम नाव, पतवार बना है , प्रेम स्वर्ग का द्वार बना है । सुख सम्पत्ति की रक्षा के हित, ये ही पहरेदार बना है।। नग्न बदन को ढकने वाला, सदियों से परिधान यही है। प्रेम इबादत है पूजा है, भक्त यही भगवान यही है ।। प्रेम बगावत करने वाला, प्रेम का विष भी अमृत प्याला। सोच समझ का काम नहीं ये, करताहै इसको दिलवाला।। विश्वासो का निर्झर है ये, कहते सब धनवान यही है। प्रेम इबादत है, पूजा है, भक्ति यही भगवान यही है।। प्रेम राह है प्रेम आस है, प्रेम तबाही में उजास है। प...
गली गली डर कोरोना का
गीत

गली गली डर कोरोना का

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** गली गली डर कोरोना का, इस डर का उपचार करें। स्वीकारें एकांत वास हम, इस विपदा पर वार करें।। संक्रामक है मर्ज कोरोना, दूरी का हम ध्यान रखें। कुल्हाड़ी ना पैरों पर हम, अपने मारे भान रखें।। नजरों से ना गिरें किसी की, बन समाज के दुश्मन हम। अपने ही भाई को क्या हम, दे पाएंगे कभी सितम।। भले लाॅकडाउन हो या हो, कर्फ्यू उसको स्वीकारें। पड़े अगर कठिनाई भी कुछ, अपनी हिम्मत ना हारें।। हम समाज से समाज हमसे, नाहक ना तकरार करें। स्वीकारें एकांतवास हम, इस विपदा पर वार करें।। कुत्ते की ना मौत मरेंगे, इटली में जो हुआ अभी। अपनी इस विपदा को हमने, कम आंका क्या कहो कभी।। साथ खड़े हम सरकारों के, नहीं आग में घी डाला। उल्टे पांव चला जाएगा, कर कोरोना मुंह काला।। खून नहीं पीने देंगे हम, खून के प्यासे दुश्मन को। करवा देंगे संकल्पित पग, जल्द बंद इस नर्तन को।। शर्...
हनुमानजी की वंदना
गीत

हनुमानजी की वंदना

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** लोग कहते तेरी पूजा होवे २ केवल मंगलवार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार। लोग कहते तोही शेदुर चढ़ता २ केवल मंगलवार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।१। तू ही मेरा करता धरता। तेरी पूजा आरति करता। बस यही मेरा कारोबार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।२। पवन पुत्र अंजनि के नंदन। तेरा प्रभु करता हूँ वंदन। तु ही मेरी सरकार । हमारे लिये हर दिन मंगलवार।३। हनुमानजी की महिमा रामचंन्द्र जब जनम लियो है। मिलने की इच्छा प्रगट कियो है। आप पहुँचे दशरथ द्वार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।४। असुर कहे तम्हें छोटा बंदर। मारा उनको घुस के अंदर। धरे देह विकराल। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।५। महाबली हो महा हो ज्ञानी। हारे सभी असुर अभिमानी। कलि का तुम ही हो आधार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।६। लंका मे जब आग लगाई। डर गए है राक्षस समुदाई। सब करे तेरी जय जयकार। ह...
रंग भरी पिचकारी लेकर
गीत

रंग भरी पिचकारी लेकर

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** फूल सजाकर इन अंगों में, सजनी लगे सजीली हो। रंग भरी पिचकारी लेकर, लगती बड़ी रसीली हो।। मीठी लगती तेरी बोली, तू है सबकी हमजोली। रसिक भाव की बनी स्वामिनी, मन मति की निश्छल भोली।। संग सहेली झूमझूम कर, लगती छैल ,छबीली हो। रंग भरी पिचकारी लेकर, लगती बड़ी रसीली हो।। आयी है तू लेकर टोली, मस्ती की होगी होली। हर मनसूबे अब हों पूरे, खा लें हम भांग नशीली।। इठलाती सदा हंँसी देकर, लगती बड़ी हठीली हो। रंग भरी पिचकारी लेकर, लगती बड़ी रसीली हो।। खुशियों से भर दो तुम झोली, आँखों से मारो गोली। तुम हो जाओ मेरे प्रियतम, आज सजे सपने डोली।। हाथ अपने सारंगी लेकर, गाती बड़ी सुरीली हो। रंग भरी पिचकारी लेकर, लगती बड़ी रसीली हो।।   परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी ...
फागुन बसंती
गीत

फागुन बसंती

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** बसंती बहारो में, फागुन के महीन, अब लौट भी आओ तुम, होली के फुहरो में.... इतने सारे रंग पहले नहीं देखे, जब होली आयी तोरंगो के रंग देखे अब लौट भी आओ तुम, होली के फुहरो में.... ब्रज की गलियो मे, गोकुल नगारियो में, निधिवन में खेलेगे,मोहन संग होली अब लौट भी आओ तुम होली के फुहारो में.... राधा संग खेलेगे, ललिता संग खेलेगे, गोपियां संग खेले, वृंदावन में होली अब लौट भी आओ तुम होली के फुहारो में.... मीरा की निराशा मैं, पपिहे की तरह टेरु, बन-बन डोलूं मैं, हर सास तुझे टेरु अब आ जाओ मोहन फागुन के महीन में। बसंती बहारो में, फागुन के महीन में, अब लौटे भी आओ तुम होली के फुहारो में.... . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, प...
आओ खेलें होली
गीत

आओ खेलें होली

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** भर पिचकारी रंग ना डालो, सुन साथी हमजोली। एक दूजे को गले लगाकर, आओ खेले होली। मिटादो सारे बैर जो दिल मे कबसे तुमने पाल रखे। उसको भी एक मौका दो जो दिल मे बुरे खयाल रखें। फाल्गुन की लहर में तुम भी, बनालो अपनी टोली। एक दूजे को गले लगाकर, आओ खेलें होली.... रंग मित्रता का है पीला, प्रेम का रंग है गुलाबी। पियो भांग और खाओ मिठाई, मत बनो यार शराबी। किसी के दिल को ठेस ना पहुंचे, बोलो ऐसी बोली। एक दुजे को गले लगाकर, आओ खेलें होली.... मौसम बदला शीत ऋतु की होने को है बिदाई। ग्रीष्म ऋतु की आहट हुई ये कैसी है रुत आई। बच्चों ने पिचकारी मंगाई बनाके सूरत भोली। एक दुजे को गले लगाकर, आओ खेलें होली.... इस होली तुम कबसे बिछड़े अपनो को मिलादो। गलत आदतें बुरे कर्म तुम होली के संग जलादों। आओ थोड़ा नाचलें गालें थोड़ी करलें ठिठोली। एक दूजे को गल...
लगाई तुमसे प्रीत तो
गीत

लगाई तुमसे प्रीत तो

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लगाई तुमसे प्रीत तो बदनाम हो गया। माना जो तुमको राधा तो मैं श्याम हो गया। हुई सुबह शुरू तो आफताब हो गया। जैसे ही दिखे तुम ये दिल गुलाब हो गया। २ करने लगा हूँ अबतो मैं बातें अजीब सी, लगता मेरा ये दिल तेरा गुलाम हो गया। लगाई तुमसे प्रीत तो... सुबह से शाम तेरा इंतज़ार हो गया। तुझको ही चाहूँ तेरा तलबगार हो गया। मेरा महक गया चमन आ जाने से तेरे, फूलों की तरह खिलके मैं गुलफाम हो गया। लगाई तुमसे प्रीत तो... आने लगा हूँ आजकल लोगो की नज़र में। मैं आधा हुआ जा रहा हूँ तेरी फिकर में। तूने तो कैद कर लिया मुझको तेरे दिल में, मेरे दिल मे यार तेरा भी मकाम हो गया। लगाई तुमसे प्रीत तो... चारो तरफ है चर्चा तेरे मेरे नाम का। था पहले अब नही रहा मैं कोई काम का। पहले जो मिला करते थे चुपके तो ठीक था, मगर ये किस्सा अबतो सरेआम हो गया। लगाई तुमस...
गुरु और शिष्य
गीत

गुरु और शिष्य

संजय जैन मुंबई ******************** गुरु शिष्य का हो, मिलन यहां पर, फिर से दोवारा। यही प्रार्थना है हमारा। यही प्रार्थना है हमारा।। गुरु चाहते है, कि शिष्य को, मिले वो सब कुछ। जो में हासिल, कर न सका, अपने जीवन में। वो शिष्य हमारा, हासिल करे, अपने जीवन में। मैं देता आशीष शिष्य को, चले तुम सत्य के पथ पर, मिलेगा ज्ञान यही पर।। गुरु शिष्य का मिलन...। शिष्य भी पूजा करता, अपने गुरु की हर दम। उन्होंने मार्ग प्रशस्त किया, मोक्ष् जाने का शिष्य का। इसी तरह अपनी कृपा, मुझ पर बनाये रखना। ऐसी है प्रार्थना गुरुवर, में सेवक हूँ गुरुवर का। में सेवक हूँ गुरुवर का ।। गुरु शिष्य का ......।। नगर नगर में श्रावक जन, पूजा गुरु शिष्य की करते। उनके बताये हुए मार्ग पर, सदा ही हम सब चलते। मिल जायेगा हमे भी, शायद पापो से छुटकारा। यही समझता मानवधर्म हमारा। यही बतलाता मानवधर्...