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दोहा

श्री रामदेव चालीसा
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श्री रामदेव चालीसा

  डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. *******************      रामदेव जयंती पर विशेष २०/८/२० कलि काल प्रभु जन्म लिया, राम देव अवतार। जन जन के तो दुख हरे, दुष्टन को संहार।। जब जब होय धरम की हानी। करते रक्षा प्रभु जग आनी।। जय जय रामा पीड़ा हारी। भक्तन के तुम हो हितकारी।। भादो शुक्ला दूज सुहाई। संवत चौदह बासठ भाई।। बाड़मेर में उण्डू ग्रामा। जन्मे रामदेव भगवाना।। राजा रुणिचा मनुज सुधारक। दीन दुखी के पीड़ा हारक।। मैना देवी राज कुमारा। अजमल जी के घर अवतारा।।। अजमल मैना तप को जाई। पुरी द्वारका अरज लगाई।। कृष्ण मुरारी दे वरदाना। ईश अंश जन्में भगवाना।। बहिना सुगना लाछो बाई। वीरमदेवा थे बड़ भाई।। पांच पीर मक्का से आये। बाबा से परचा करवाये।। मांगे बर्तन निज के अपने। भाजन पाये जैसे सपने।। अमरकोट की राजकुमारी। बेटी थी नेतलदे प्यारी।। राजा ने पंडित भिजवाया। पाती राम ब्याह की लाया...
राम नाम में
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राम नाम में

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** होत है राम नाम में,  जग के सारे धाम। घबरा न तू तो बन्दे, जापो हरि का नाम॥ गौरा जब क्रोधित भई, मनावें हैं सब गण। जब वो चण्डी बन गईं, सभी पखारें चरण॥ खड़े ईश्वर के द्वार, जोड़े दोनों हाथ। काले धन जमा कारण, हुए कि फकीर आज॥ जब माँ की ज्योतें जलें, जगमग हो संसार। तब आशीर्वाद मिलते, मंगल होते द्वार॥ थाल सजाए सब खड़े, माँ होय तेरी जय। कि हाथ जोड़े सब खड़े, माँ टारो सबै भय॥ जो करते मेहनत हैं, होते सबके मीत। कि लिखना नहीं सरल है, दोहा गजलें गीत॥ लाज गहना औरत का, कि जिन्दगी ससुराल। बच्चे उसका खजाना, जीवन है खुशहाल॥ है चरणों में राम के, सारे चारो धाम। और मिट जाते दुख वो, जब वे थामे हाथ॥ कृष्ण का अपमान किया, दिया नहीं सम्मान। है दुर्योधन पछताया, जब लौट गए अमर (देव)॥ ठौर ठिकाने ना रहे, मइया खाओ तरस। सबै दर्शन को बैठे, मइया दे दो दरस...
सूर्यकांत निराला चालीसा
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सूर्यकांत निराला चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* शारद सुत को नमन करुं, कीना जग परकाश। सूर अनामी गीतिका, परिमल तुलसीदास। अणिमा बेला अर्चना, चमेली अरु सरोज। गीत कुंज आराधना, सूरकांत की खोज।। हिन्दी कविता छंद निराला। सूर्यकांत भाषा मतवाला।। बंग भूमि महिषादल भाई। मेंदनपुर मंडल कहलाई।। पंडित राम सहाय तिवारी। राज सिपाही अल्प पगारी। इक्किस फरवरी छन्नु आई। पंच बसंती दिवस सुहाई।। बालक सुंदर जन्मा भाई। सकल नगर में बजी बधाई।। जनम कुंडली सुर्ज कुमारा। पीछे सूर्यकांत उच्चारा।। बालपने में खेल सिखाया। कुश्ती लड़के नाम कमाया।। हाइ इस्कूल करी पढ़ाई। संस्कृत बंगला घर सिखलाई ।। धीरे-धीरे विपदा आई। संकट घर में रहा समाई।। तीन बरस में माता छोड़ा। बीस साल में पिता विछोहा।। पंद्रह बरस में ब्याह रचाया। वाम मनोहर साथ निभाया।। पत्नी प्रेरित हिंदी सीखी। सुंदर रचना रेखा खींची।। शोषित पीड़ित कृषक लड़ाई...
प्रेमचंद चालीसा
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प्रेमचंद चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* उपन्यास व गद्य कथा, हिन्दी का उत्थान। प्रेमचंद सम्राट हैं,कहत है कवि मसान।। प्रेम रंग सेवा सदन, प्रेमाश्रम वरदान। निर्मल काया कर्म प्रति, मंगल गबन गुदान।। प्रेमचंद लेखक अभिनंदन। हिन्दी विद्जन करते वंदन।।१ डाक मुंशी अजायब नामा। जिनकी थी आनंदी वामा।।२ मास जुलाई इकतिस आई। सन अट्ठारह अस्सी भाई।।३ उत्तर लमही सुंदर ग्रामा । प्रेमचंद जन्मे सुखधामा।।४ धनपतराया नाम धराये। पीछे नवाबराय कहाये।।५ सन अंठाणु मैट्रिक पासा। बनके शिक्षक बालक आशा।।६ इंटर की जब करी पढ़ाई। दर्शन अरु भाषा निपुणाई।।७ सात बरस में माता छोड़ा। चौदह पिता गये मुख मोडा।।८ दर दर की बहु ठोकर खाईं। बाला विपदा खूब सताईं।।९ बाल ब्याह से धोखा खाया। पीछे विधवा को अपनाया।।१० शिवरानी को वाम बनाये।। श्रीपत अमरत कमला पाये।।११ सन उन्निस शुभ साल कहाया। सोजे वतन देश में ...
अंधा बाँट रहा गर  सिन्नी
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अंधा बाँट रहा गर सिन्नी

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** अंधा बाँट रहा गर सिन्नी घरे घराना खाएँगे जूठ काट जो बच गया उसको चिमचे पाएँगे स्वार्थ में अंधा हो जाते हैं जब भी ऐसे लोग कदम कदम पर हैंकड़ी उल्लू सदा बनाएँगे घुटने पर चलने को अक्सर करता है मजबूर दुश्मन मित्र नज़र आते हैं मित्र शत्रु बन जाएँगे बाहर से तो संत दीखता अंदर अहंकार भारी तजिए ऐसा साथ अन्यथा पिछलग्गू कहलाएँगे मतलब की बातें करता है धर के रूप प्रच्छन्न बचना है मारीचि से तो सोच के कदम बढ़ाएँगे अपना घर तो करेगा रोशन दूजे के घर अंधेरा अपनी धपली अपनी राग़ गाथा निजी सुनाएँगें थोथा थोथा जेब में अपने पइया ग़ैरों के हक़ में स्वाँग भरेंगे हर पल लेकिन साहिल सा दर्शाएँगे परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी :जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि...
वारिस
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वारिस

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** वारिस बुद्धू सिद्ध हो गया माता जी भी फेल सभी सूरमा हाथ मल रहे ख़त्म हो रहा खेल फूट डाल गद्दी हथियाना रही सर्वदा नीति सब के सब हैं भारतवासी नहीं चलाया रीति तख़्त ताज की अभिलाषा में भारत हुआ विभक्त लाखों लोग शहीद हो गए बहा असीमित रक्त हिंदी चीनी भाई भाई का लगवाया नारा लूट लिया इज़्ज़त ड्रैगन ने नेहरू हुए बेचारा चीन ने हड़पा तिब्बत कश्मीर को पाकिस्तान दंश झेलता आज भी इसका अपना हिंदुस्तान माया ममता और मुलायम ने जो तीर चलाया धीरे धीरे दुर्ग ढह गए हाथ काम न आया चेता नहीं अभी तक कुनबा गई भैंस मँझधार सारे साहिल ध्वस्त हो गए हो कैसे बेड़ा पार . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी :जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कव...
आठ तरह के प्राणियों से
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आठ तरह के प्राणियों से

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** आठ तरह के प्राणियों से रहिए सदा सतर्क किसी के दुःख या दर्द का पड़े न जिन पर फ़र्क़ राजा नियमों में बंधा ख़ुद में रहता मशगूल मदद करे क्या आप की बाधा बनें वसूल वैश्या से उम्मीद मत करिए कभी जनाब अर्थ चाहिए बस उसे क़ायम रहे शबाब जीवन में यमराज से मत चाहो उपकार जब चाहेगा ले जाएगा सुने न चीख पुकार अग्नि ख़ाक कर डालती मुश्किल बहुत बचाव लोगों के दुःख दर्द से रखती नहीं लगाव चोरों को होता नहीं किसी के कष्ट का एहसास चोरी करना फ़ितरत उनकी रखिए मत कुछ आस निज इच्छा पूरी रहे है बच्चों की रीति इच्छित ही बस चाहिए बेमतलब सब नीति भिक्षु को भिक्षा चाहिए कुछ भी रहे अभाव कभी किसी के कष्ट का पड़ता नही प्रभाव कंटक का उद्धेश्य है देना कष्ट अनंत बन सकता सुखकर नहीं वह साहिल सा संत . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौ...
विरहन की पीर
गीत, दोहा

विरहन की पीर

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर। साजन की नित याद में, नयनन बहता नीर। राधा सी बन बाँवरी, भटकूँ वन दिन-रैन। कहीं नहीं मन अब लगे, हृदय न पाये चैन। अपलक राह निहार कर, थकतीं आंखें रोज। मुख सीं कर बैठी रहूँ, नहीं निकलते बैन। चिट्ठी तक आती नहीं, ह्रदय न पावे धीर। पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर।1 जिन राहों से तुम गये, देखूँ नित उस ओर। भटकूँ बन पागल पथिक, चले न दिल पर जोर। अंतहीन विरहाग्नि में, झुलस रहीं हूँ नित्य।, हृदय दग्ध अब हो रहा, पीड़ा मन में घोर। लहरों को बस गिन रही, बैठी नदिया तीर। पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर।।2 साजन की नित याद में, नयनन बहता नीर। खटका हो जब द्वार पर, रुक जाती है साँस। द्वारे पर प्रियतम न हों, चुभती दिल में फाँस। साँसों की सरगम सधे, यदि लौटे निज गेह। दरवाजे यदि अन्य हो, लगती मन को डाँस। वापस अब आओ पिया, व्य...
मां और ममता
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मां और ममता

शुभा शुक्ला 'निशा' रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** माता ऐसी छावनी जा में कुटुंब समाए अपने बच्चो के गुण अवगुण छाती में लेत बसाय माता ऐसी शख्सियत जिसके सामने कुछ भी नहीं सारी दुनिया चूक करे पर मां कभी गलती करती नहीं सबसे पहले जन्म देकर लाती हमे इस दुनिया में कैसे कैसे कष्ट भोगकर पालती हमें इस दुनिया में बच्चे उसके कैसे भी हों होते उसकी आंख के तारे बेटी हो या फिर हो बेटा दोनों उसको जान से प्यारे यशोमती मैया बनकर कान्हा को माखन रोटी खिलाती महिषासुरमर्दिनी बनके फिर भक्तों को दुष्टों से बचाती लाख बुराई हो औलाद में पर वो किसी की नहीं सुनती उसकी अंधी ममता के आगे किसी की नहीं चलती मां का है अद्भुत दरबार जिसमें त्याग प्रेम और बलिदान जिसने जो चाहा वो पाया मिलता उसे पूरा सम्मान मदर टेरेसा भी इक मां थी करुणामयी ममता की मूरत कितने भूखे नंगों ने देखी इनमें अपनी मां की सूरत अपनी मां की क...
पुस्तक
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पुस्तक

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** पुस्तक अनुभव-कोष है, पुस्तक ज्ञानागार। जग में किस पर है नहीं,पुस्तक का उपकार। पुस्तक में इतिहास है, पुस्तक में भूगोल। पुस्तक में है सभ्यता, पुस्तक है अनमोल। पुस्तक में गुर ज्ञान है, पुस्तक में निर्देश। पुस्तक में है सम्मिलित, जीवन के संदेश। मानव के पथ-प्रदर्शक, पुस्तक हों या ग्रंथ। लाभ ग्रहण इनसे करें, जगती के सब पंथ। संस्मरण-अनुभूतियाँ, लेतीं पुस्तक रूप। सकुचातीं इस रूप से, मार्तण्ड की धूप। पुस्तक से है संस्कृति, है आचार-विचार। पुस्तक से बढ़ता सदा, जीवन-शिष्टाचार। पुस्तक है तो ज्ञान है, पुस्तक है तो शान। पुस्तक से मिलता हमें, जीवन में सम्मान। युगों-युगों से पुस्तकें, हमें दिखाएँ राह। अच्छी पुस्तक-पठन की, किसे नहीं है चाह। पुस्तक साथी है परम, परामर्श दे नित्य। जब छाए भ्रम का तिमिर, बने ज्ञान-आदित्य। शब्दों में ढलने लगें, सुन...
सेवा कर्म में राम
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सेवा कर्म में राम

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** राम नाम सेवा कर्म, सेवा कर्म में राम। राम पुण्य का हैं सुफल, राम मुक्ति का धाम।।1।। जपना राम नाम कहे, मिटते कष्ट हजार। सुख में भी सुमिरन करे, मन की इच्छा मार।।2।। मंदिर-मंदिर घुम फिरे, मिले नहि कहीं राम। बगल छुरी दबा ली, कहां से मिले श्याम।।3।। ना मंदिर-मस्जिद बसे, ना काबा कैलास। मन भीतर जाके देख , राम करे मनवास।।4।। लिये हाथ कटार फिरे, शिकार उनका काम। दुजे को उपदेश देत, बोले जयश्री राम।।5।। . परिचय :- नरपत परिहार 'विद्रोही' निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindira...
तन से तन अब न सटे
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तन से तन अब न सटे

संतोष 'साग़र' महद्दीपुर, जहानाबाद (धनबाद) ******************** तन से तन अब न सटे, रहो कुछ दुरी बनाय! 'कोरोना' से मुक्ति का, मंत्र रहा हु बताय!! घर में रहिये रात - दिन, बीबी - बच्चों के संग ! तब जा कर के खिलेगा, जीवन के सब रंग !! सरकार आपके हित की,सोच रही है सोच ! फिर क्यों घर में रहने में, करते हैं संकोच !! कुछ दिन में ही टल जायेगा, 'कोरोना' का भय! इतनी सी बस बात क्यों, तुमको समझ न आये !! हमने इस से पहले भी, कितने देखे है रोग ! दुरी बना के ही रहें, जल्दी होंगें निरोग !! देश हित के फैसले को, मिल कर करें सम्मान ! तब ही बच पायेगा, मेरा प्यारा हिंदुस्तान !!   परिचय :-  संतोष 'साग़र' माता :- श्रीमति सरिता देवी पिता :- श्री कृष्णानन्दन सिंह शिक्षा :- स्नात्तक (मगध विश्वविद्यालय), औद्योगिक प्रशिक्षण (ओड़िसा), प्राथमिक स्काउट शिक्षक (बिहार ) जन्म दिनांक :- १०/०२/१९९४ सम्प्रति :- वरीय सह...
गुरुवर
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गुरुवर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** गुरुवर ज्ञानप्रकाश है, गुरुवर अनुभव-खान। और धरा पर कौन है, कहिए मनुज महान। कृपा हुई गुरु की बड़ी, मिला ज्ञान का कोष। मेरे मन में बस गया, सुखदाई संतोष। गुरुवर ने अद्भुत किया, तन-मन पर उपकार। मैने सबकुछ पा लिया, विस्मित है संसार। गुरुवर की महिमा बड़ी, कैसे हो गुणगान। अर्जित विद्या से हुए, शिष्य महा धनवान। पथ-प्रदर्श निज शिष्य का, करते रहते नित्य। गुरुवर धुंधली राह में, बन जाते आदित्य। . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कवित...
पोथी
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पोथी

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** नयी नयी पोथी मिलै मिलै नये कविराज। एक कविता के चार कवि अहो भाग्य कृतराज। कविता के कछु मूल नहि लुगदी बिचै बजार। पोथी मा कविता चढ़ी कविवर चढे़ कपार। दुइ भाषा कविता लिखिन बनिगे कवि के राज। दुइ पोथी का बाचि के बनिगे बड़ महराज। सब कविअन के एक मती हमरो पोथी होय। केउ पढै़ या ना पढै़ बल-भर मोटी होय। पोथी मा गुन बहुत है बाचि के फेंकए ज्ञान। कउने पोथी मा भरा तनिकौ नहिं है ध्यान। पढि पढि पोथी आजु सब फेंंकै ज्ञान अपार। बाप मरै पानी बिना लड़िका चढ़ा कपार। खिड़की मा पोथी चढ़ी कुर्सी चढ़ा बचैया। गऊ रक्षा पोथी लिहे बाचै गैया गैया। सूरदास तुलसी मरे मरिगें कबिरौ आजु। गूढ़भूत पोथी रची ऐ जड़मति अब जागु। . परिचय :-  प्रिन्शु लोकेश तिवारी पिता - श्री कमलापति तिवारी स्थान- रीवा (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं...
तो सुख सदा समाय
छंद, दोहा

तो सुख सदा समाय

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** दर्शन- टूटते घर और जिम्मेदार बहु। जी खूब कही। माता पिता की नाज़ो पली आपके लिए बिल्कुल ना भली। सोचा है इसका कारण कभी? कारण क्या है अचानक उसके लक्ष्मी से दुर्गा बन जाने के? कली जो थी फूल की उसके अंगारे बन जाने के? आपका बुढ़ापा बिगड़ जाने से लेकर वृद्धाश्रम की दहलीज़ तक पहुंचा दिए जाने के। बेटी हमेशा सुकुमार, नादान, चंचल चित्त युक्त सुंदर शालीन युवती वाचाल, चपला है। बहु स्वर्ग से उतरी महान वुभूति सब उलूल-जुलूल सहने वाली अच्छी, सभ्य, संस्कारी घूँघट धारिणी, गुस्से वाला थप्पड़ खाकर भी शांत रस विचारिणी, एक निरीह अबला है। अजी ख़ूब सोची, हाड़ मांस की देह धारी दोनों बेटी-बहु में भेद कुछ ज़्यादा ही तगड़ा है। तो बस यही आपकी उल्टी गंगा वाली सोच आपको भुगतवाती है। स्त्री हो चली शिक्षित जान चुकी अपना स्तर आपको आप, ही की भाषा में, ब्याज सहित जब लौटती ह...
निंदा शिकवा शिकायत
दोहा

निंदा शिकवा शिकायत

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** बुराई दूजे की ना करो जो मुझ में कछु अच्छाई ना होय निंदा पर निंदा क्यों करें जो जग में आप ही नींदीत होय देख-देख ईर्ष्या मन में धरे जो औरन की तरक्की होय धीर धरे जो मन में आपन आप हो आप उन्नति होय छोटे नीच लघु ना समझो जो तुमसे लघु होय मान आदर सभी का करें चाहे वह गुरु या लघु होय मनका मनका फेर कर दोष पराये की ना देखो कोय शिकायत की गठरी बना तुम काहे आपन सिर पर ढोय कहे बीना सुनो भाई लोगों जिंदगी चार दिनों की होय तोल मोलके बोलिए दिल में पीड़ा ना किसी की होय . परिचय :- डॉ. बीना सिंह "रागी" निवास : दुर्ग छत्तीसगढ़ कार्य : चिकित्सा रुचि : लेखन कथा लघु कथा गीत ग़ज़ल तात्कालिक परिस्थिति पर वार्ता चर्चा परिचर्चा लोगों से भाईचारा रखना सामाजिक कार्य में सहयोग देना वृद्धाश्रम अनाथ आश्रम में निशुल्क सेवा विकलां...
शिव स्तुति
छंद, दोहा

शिव स्तुति

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** संग गौरीश, गंग धर शीश। शिवा के रंग, पान कर भंग।। मनोहर रूप, अखिल के भूप। कंठ धर नाग, वरे वैराग।। काम के काल, वस्त्र सिंह खाल। गरल रस प्रीत, हरि के मीत।। भस्म श्रृंगार, क्रोध विकराल। चंद्रमा भाल, प्रभु महाकाल।। जयति अवनीश, राम के ईश। नमित दशशीश, एव सुरजीत।। नाश कर दंभ, नृत्य बहुरंग। मगन नित योग, भेष जिम जोग।। छंद- भव-स्वामी नमामि हे नाथ प्रभो। अविकार विकार सदा ही हरो।। जड़ बुद्धि जो बैरी रिपु सी लगे। निर्वाण मिले संताप मिटे ।। त्यज भूधर को हिय आन बसो। तुम कोटिक सूर प्रकाश प्रभो।। तम को जिम मन अज्ञान रुँधे। अलोक जिमि हिरदय मा शुभे।। बड़वार बतावत भूल भगत। अभिमान के दंश सराबर हो।। तब क्षीर से नीर को थोथा करे। तुम ऐंसे ही दिव्व मराल प्रभो।। . परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपनाम - अर्चना अनुपम जन्म - २१/१०/१९८७ मूल...
सानंद
दोहा

सानंद

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** लगे पूछने आजकल हमसे सारे लोग रहते क्यों ख़ामोश हो छुआ कौन सा रोग हर चौराहे पर दिखे दिल में घुसता तीर प्रेम हुआ मृग जल हरण होत नित चीर भोगवाद में देश का ऐसा पसरा पाँव हँसते लोग शरीफ़ पे कहीं न मिलता ठांव गुमराहों के हाथ में हो गया तीर कमान मुश्किल में दोनो पड़े मज़हब और ईमान अवगुण भी गुण होत है मिले राह में संत दुर्जन से दूरी रखो देगा कष्ट अनंत परजीवी बन देखिए है कितना आनंद पोषण लेहु समाज से स्वस्थ रहो सानंद . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रकाशित, ११ काव्य संग्रह सम्पादित, अध्यक्ष साहित्यिक संस्था जौनपुर ...
जैसे को तैसा धुनूँ
चौपाई, छंद, दोहा

जैसे को तैसा धुनूँ

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** रस - रौद्र, अलंकार - अतिशयोक्ति। भाव - आत्मकुंठोपजित भक्ति। छंद - दोहा, सोरठा एवं कुंडलियों के प्रयास। कारक - बचपन में अपने आस पास समृद्ध और सभ्य परिवार की उपाधि प्राप्त परिवारों में वधुयों की दहेज़ या अन्य पारिवारिक कारणों से हुई परिचिताओं की जीवित जलकर या अन्य हनित संसाधनों द्वारा हत्या एवम आत्महत्या से उत्पन्न भाव जो अधिकाधिक बारह या तेरह वर्ष की आयु के समय प्रभु से करबद्ध अनुरोध करते मेरे द्वारा ही वरदान स्वरूप चाहे गए थे। कुछ परिवार ने उनकी हत्या को भाग्य कुछ ने उनमें थोपी गई अतिवादी स्त्री सहनशीलता की कमी बताया मायके वालों ने कहा "बिटिया तो ना मिलेगी हमारी" अतः कोई केस नहीं लगाया। और मेरे हृदय में उस उम्र में दहेज़ के दानवों विरुद्ध, अवस्था; अतिशह क्रुद्ध क्रांति जनित यह भाव! 'यूँ ही' आया। कि..... दुष्टन से कंजर बनूँ, ज्ञानी से...
दोहा गजल
ग़ज़ल, दोहा

दोहा गजल

रजनी गुप्ता "पूनम" लखनऊ ******************** धारण कर लो फिर गरल, शिवशंकर भगवान। धरती कर दो फिर धवल, शिवशंकर भगवान।। भस्मासुर के राज में, जीना था दुश्वार। जीवन कर दो फिर सरल, शिवशंकर भगवान। गाता जग गुणगान है, त्रयंबकं यह रूप। मानस कर दो फिर तरल, शिवशंकर भगवान।। चंद्र सुशोभित माथ पर, डम-डम-डमरू हाथ। तांडव कर दो फिर अमल, शिवशंकर भगवान।। गण-गणपति-गौरादि अरु, सजते भूत-भभूत। जागृत कर दो फिर अनल, शिवशंकर भगवान।। . परिचय : पूनम गुप्ता साहित्यिक नाम :- रजनी गुप्ता 'पूनम' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि :- १६ जुलाई १९६७ शिक्षा :- एम.ए. बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है सम्मान :- समूहों द्वारा विजेता घोषित किया जाता रहा है। दो बार नागरिक अभ...
त्वदीयं नमः
छंद, दोहा

त्वदीयं नमः

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** प्रणमामि आदि अनादि सदा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा अगम्य अगोचर विशेश्वर वराह वमन मत्स्य कश्यप रूप धरा चरण गंग साजे कंठम स्वरा.. हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा.. राम मनोहर परशु बुद्ध रूपम् सूर्यम् मयंक पावक प्रकाशम् दुःख पाप नाशी क्षीरं निवासी सदा भक्ति प्रीतम् प्रियम् अक्षरा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा वीरम च धीरम मिथक दोष घातम भवसिंधु तारम् वरण बृंदिका अधर देह सुन्दर भुजा चार धारम् कल्याणकारी असुर मर्दणा हृदय कुञ्ज स्वामी गौ पूजयामि त्वदीयं नमामि चरण वंदना प्रणमामि आदि अनादि सदा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा सवैया - हम तो हरि मूरख देख के मूरत रीझत गावत आन पड़े.. यह नेह भी देह भी केवल रेह सी श्री चरणों में आन धरे मुस्कान की तान के तीर किये गंभीर हिय जब आन धसे तुम एक हमें हर एक से प्यारे बोलो प्रमाणित कैसे करें यह नेह भी देह भी केवल रेह सी ...
मदिरा
दोहा

मदिरा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** मदिरा विष से कम नहीं, पीते क्यों दिन-रैन! अपना सबकुछ नष्ट कर, खोते हो सुख-चैन! मद्यपान दुष्कर्म है, मद्यपान है पाप! मद्यपान अपमान है,मद्यपान अभिशाप! नहीं जाइए भूलकर, मदिरालय के द्वार! पता नहीं क्या आपको, समझेगा संसार! बड़ी चाल तूने चली,यह क्या किया शराब! बने भिखारी सेठ जी, बेघर हुए नवाब! मानव हित के सत्य को, समझे सकल समाज! ग्रहण करें संकल्प सब, नशामुक्ति का आज! नशा ठोस हो या तरल,घातक है श्रीमान! धीरे-धीरे आपके, ले लेता है प्राण! ठोस, तरल या हो धुंवां,मादक द्रव्य प्रकार! मानव-तन-मन पर करे, मंथर-मधुर प्रहार! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी...
आशावादी ‘बीस’
दोहा

आशावादी ‘बीस’

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** अगणित अनुभव दे गया, विगत वर्ष 'उन्नीस'। चौखट पर आकर खड़ा, आशावादी 'बीस'। मीठी यादों से मिला, भावुक बीता वर्ष। नूतन सन् को दे गया, आसन-मुकुट सहर्ष। कुछ खोया कुछ पा लिया, हमने पिछले साल। बिदा समय हमसे हुआ, चलकर अपनी चाल। कभी सुमन सम है समय, कभी लगे यह शूल। कभी सुखद अनुकूल है, कभी दुखद प्रतिकूल! नहीं एक जैसी रहे, सतत काल की चाल। कभी सरल सहयोगिनी, कभी विषम विकराल। काटो तो कटती नहीं, दुख की लम्बी रात। सहता है कोमल हृदय, पीड़ा के आघात। समय-साधना से मिले, बड़े-बड़े उपहार। समय सफलता-मंत्र है, समय महा उपचार। . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, ...
पिता तुल्य दूजा नहीं
दोहा

पिता तुल्य दूजा नहीं

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** पिता जनक शिक्षक गुरू, रक्षक पालनहार। पिता तुल्य दूजा नहीं, नमन करे संसार। पिता पुण्य पग-पग करे, हरे सकल अवसाद। सन्तानें होकर बड़ी, करतीं वाद-विवाद। दुःखी स्वयं रहता मगर, करता सुख संचार। जनक तुल्य संसार में, करे कौन उपकार। बापू बाबा पितृ पिता, दादा डैडी तात। बाबूजी अब्बू सभी, पापा के अर्थात्। मात-पिता शिक्षक प्रथम, पथदर्शक अनमोल। त्यागों का इतिहास वे, कष्टों का भूगोल। . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कविता,गीत, ग़ज़ल, मु...
विरह का रोग
ग़ज़ल, दोहा

विरह का रोग

रजनी गुप्ता "पूनम" लखनऊ ******************** मुझको देखो आज फिर, लगा विरह का रोग। पिय बिन सूना साज फिर, लगा विरह का रोग। जोगन बनकर फिर रही, गाऊँ विरहागीत, भूल गई सब काज फिर, लगा विरह का रोग। बिसरी जग की रीत सब, खुद से हूँ अनजान। छुपा रही सब राज फिर, लगा विरह का रोग। प्रियतम जब से दूर हैं, बिखरा सब शृंगार। हृदय पड़ी है गाज फिर, लगा विरह का रोग। 'रजनी' तेरी याद में, तड़प रही दिन-रात। भूल गई सब लाज फिर, लगा विरह का रोग।। . परिचय : नाम :- पूनम गुप्ता साहित्यिक नाम :- रजनी गुप्ता 'पूनम' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि :- १६जुलाई १९६७ शिक्षा :- एम.ए. बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है सम्मान :- समूहों द्वारा विजेता घोषित किया जाता रहा है। ...