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भजन

आज की हनुमत कृपा
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आज की हनुमत कृपा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** "राम" की पग धूल को, मस्तक लगा चंदन बनेगा। पायेगा हनुमत्कृपा और, शीघ्र ही कंचन बनेगा। राम की पग धूल... राम ने सृष्टि रची, और वो ही इसको पालता है। जिसमे हो आशक्ति जिसकी, उसमे उसको ढालता है। कर्म में है स्वतंत्र तू, प्रभु में रमा तो रतन बनेगा। राम की पग धूल... भक्त हनुमत सबको ही हैं, " राम नाम" का मंत्र देते। आस्था दृढ़ होती उनकी, जो है इसको मान लेते। डूब जा सुमिरन में तो तू, भक्ति पथ पर बढ़ चलेगा। राम की पग धूल... भूत को तू भूलकरके, नाम गंगा में नहा ले। वो तो है करुणा का सागर, तू भी उसकी कृपा पा ले। नाम सांसो में रमा पाया, तो मुक्ति रथ चढ़ेगा। "राम" की पग धूल... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप...
राम जब वन को जाते हैं
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राम जब वन को जाते हैं

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** प्रेमी प्रजा की आँखों से आंसू बह जाते हैं ह्रदय ह्रदय में बसे राम जब वन को जाते हैं मात कौशल्या देख दृश्य यह करुण पुकार करें ह्रदय फटा जाता है उनका कौन् उपाय करें कोई नहीं जो उनके दुःख को दूर भागते हैं यह क्या सीता माई भी प्रभु राम के संग चली लक्ष्मण भी संग साथ चले यह कैसी विकट घड़ी देने को सांत्वाना नहीं कोई भी आते हैं कैकेइ, मंथरा हो रहीं पुलकित तन मन से भरत राज कर लेंगे दूर हुई बाधा हमसे मुर्छित दशरथ से भी उनके दिल न् लजाते हैं परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं य...
मैं जो पुकारूं… दौड़ी चली आना
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मैं जो पुकारूं… दौड़ी चली आना

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** "मैं जो पुकारूं, दौड़ी चली आना, मैं तेरा भक्त हूं, देर ना लगाना।" मैं जो पुकारूं, दौड़ी चली आना, मैं तेरा भक्त हूं, देर ना लगाना। सदा नमन करूं, मेरी मईया..., पखारूं तेरे पईया। ऐसी दया करो, ऐसी दया करो, ऐसी दया करो, मेरी मईया..., पखारूं तेरे पईया।। तू..., पर्वत विराजी कहीं, धरातल विराजी, तेरे..., सच्चे भक्तों के तू, मन में विराजी, मन मंदिर पूजो, सब मन मंदिर पूजो, श्रद्धा भाव भक्ति से, मन मंदिर पूजो। सदा नमन करूं, मेरी मईया..., पखारूं तेरे पईया। ऐसी दया करो, ऐसी दया करो, ऐसी दया करो, मेरी मईया..., पखारूं तेरे पईया।। तेरे..., द्वारपाल बजरंगी, पवनसुत बाला, तूने..., धन्य किया है प्यारे, अंजनी का लाला, पल-पल पुकारूं, तुझें हर-पल पुकारूं, श्रद्धा भाव भक्ति से, पल-पल पुकारूं...
मेरी मईया के द्वार
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मेरी मईया के द्वार

संगीता श्रीवास्तव शिवपुर वाराणसी (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी मईया के द्वार ज्योति जली है बड़ी रोशनी है बड़ी रोशनी है। खुशी इस जहां मे कहीं और भी है, नहीं है ,नहीं है ,नहीं है, नहीं है। अंधेरे मे सिमटी रही जिन्दगानी, बढ़े हैं कदम आज दर पे भवानी, नहायी रोशनी से अब राहें मेरी हैं। बड़ी रोशनी..... क्या करे कंचन काया क्या करें लेके माया, बिना भक्ति के व्यर्थ जीवन गंवाया, रोकती राह क्यों बन्धनों की कड़ी है बड़ी रोशनी..... मन में श्रद्धा के दीपक जलाए हुए, चले आओ दर मां के धाए हुए, वो है करुणा मयी वो है वरदायिनी दुख संताप तेरे सब हर लेगीं। उनकी नज़रें इनायत सबपे रही हैं। बड़ी रोशनी.......।। परिचय :- संगीता श्रीवास्तव निवासी : शिवपुर वाराणसी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
श्रीराम के गुणगान की महिमा
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श्रीराम के गुणगान की महिमा

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चलो श्रीराम के गुणगान की महिमा सुनाते हैं समर्पण और भक्ति की नई गाथा सुनाते हैं सिया संग जंगलों में जो भटककर धर्म पर चलते उसी युगपुरुष के चरणों में यह कविता सुनाते हैं अनुज लक्ष्मण की भातृ भक्ति को दुनियां समझती है लखन के त्यागमय उस शक्ति को दुनियां समझती है सिया और राम के चरणों में उनका जो समर्पण था मधुर उस प्रेम की अभिव्यक्ति को दुनिया समझती है निशाचर मुक्त करके जो सदा संतो को तारे हैं जो दशरथ और माता कोशिला के भी दुलारे हैं शरण में जो चला जाता है उसको थाम लेते हैं वही श्री राम जी मेरे हृदय में प्राण प्यारे हैं किये लंका दहन जो राक्षसों को दंड देकर के विभीषण को भगति के पुष्प का मकरंद देकर के अयोध्या वासियों के साथ खुशियां जो मनाए थे दुखों से व्याप्त भक्तों को नया आनंद दे कर के प...
दशरथ महल जन्मे रघुराई
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दशरथ महल जन्मे रघुराई

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सखी हर्षित मन देती हूं मैं बधाई, दशरथ महल जन्मे रघुराई माह चैत्र पक्ष शुक्ल तिथि नवमी पुनीता दशरथ महल जन्म लीन्हो प्रभु दीनदयाला सखी मिल मंगल गाओं दशरथ महल जन्मे रघुराई हर्षित चकित नयन भई सब रानी दमकत मुख अनूप शोभा अति न्यारी सखी मिल मंगल गाओ दशरथ महल जन्मे रघुराई स्यामल गात नयन पुनि-पुनि जात बलिहारी मंगल गान शुभ रुदन स्वर गूंजे अवधपुरी सखी मिल मंगल गाओ दशरथ महल जन्मे रघुराई झूमत शाख हर्षित लतावृंद उपवन शोभा न्यारी देव अप्सरा सब गगन से करत सुमन वृष्टि सखी मिल मंगल गाओं दशरथ महल जन्मे रघुराई आंगन-आंगन सजी रंगोली घर घर दीप जले नाचत झूमत अवध नर नारी बधाई गीत गूंजे सखी मिल मंगल गाओ दशरथ महल जन्मे रघुराई परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित...
चैत्र नवरात्रि
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चैत्र नवरात्रि

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** चैत्र नवरात्र आया। संग में दुर्गा उत्सव लाया। सबके उर अपार हर्ष छाया। प्रतिपदा तिथि नव वर्ष आया। नव विक्रम संवत लाया। नौ दिन नव दुर्गा पूजन हम। सब गुड़ी पड़वा आरंभ करे। सकल भारत प्रतिपदा तिथि आरंभ कर, नवमी तिथि तक। नौ दिन पूर्ण श्रद्धा संग उपवास। कर जो भी पूजन अर्चन वंदन। करें उसके उर भाव भक्ति। आत्मविश्वास पूर्ण शक्ति। भर जाता हम सब के दुख। संकट हर जाता। नौ दिन मां दुर्गा मनाओ। रोली, अक्षत, पुष्प अर्पित कर। मां आशीर्वाद भक्त सदा पाएगा घोर संकट जीवन से दूर हो। जावेगा, हम सबका जीवन। आनंदित हो जावेगा। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
श्री सिद्धिविनायक
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श्री सिद्धिविनायक

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हे ऋद्धि सिद्धि के मम दाता तुम ही हो मेरे भाग्य विधाता पूर्ण करो प्रभुजी सब काजा ॐ गं गं गं गणपति-गणेशा भक्त तेरा, पड़ा घने-क्लेशा तुम्हीं आन दूर-करो-द्वेषा ॐ कं कं कं कालिके-नँदन करूं गौरी - सुत स्नेह वँदन भरो ह्रदय मेरेss आनन्दन ॐ शंशंशं शिव शम्भू प्यारे भव पार करो सुरेश्वरम न्यारे ॐ गं- गं- गं- गजानन देवा जीवन में छाया घना अँधेरा सिद्धिविनायक करो सवेरा श्वांस श्वांस तुम्हरे गुण गाऊँ जोई जोई माँगूँ सो ही पाऊँ राजीव डोगरा के हो प्यारे भाग्य-विधाता पालन हारे गं गं गं गं गणपति विधाता दूर हो दुःख जो तेरे गुणगाता परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्...
लेखनी राम लिखेगी
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लेखनी राम लिखेगी

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** ‌ आज लेखनी राम लिखेगी ‌ है राम में चारों धाम लिखेगी... ‌ ‌ कुल पुरखों की रीत निभाने ‌ पितृ वचनबद्ध हो जिसने ‌ त्याग दिया सर्वस्व पलों में ‌ ऐसा अनुपम काम लिखेगी.. ‌ आज लेखनी राम लिखेगी ! ‌ ‌वानर, रिक्ष, केवट, शबरी के, ‌ रज लपेटती गिलहरी के ‌ भील निषाद, ऋषि, असुरों के .. ‌ हैं सभी के श्री राम लिखेगी.. ‌ आज लेखनी राम लिखेगी! ‌ ‌पाहन को भी मुक्त किया था ‌ छूकर उसको मोक्ष दिया था ‌ माता कहकर मान दिया था ‌ वो नारी का सम्मान लिखेगी.. ‌ आज लेखनी राम लिखेगी! ‌ ‌पूरब पश्चिम दक्षिण उत्तर ‌ निशा सांध्य और भोर दोपहर ‌ इस सृष्टि के रज कण कण पर ‌ स्वयं सिद्ध श्री राम लिखेगी.... ‌ आज लेखनी राम लिखेगी! ‌ ‌झूठ क्रोध और लोभ नहीं था ‌ प्रजा प्रमुख थी राज गौण था ‌ रीति नीति से ओतप्रोत था ‌ मर्यादा पर्याय लिखेगी.. ‌...
भक्त माता कर्मा की महिमा
भजन, स्तुति

भक्त माता कर्मा की महिमा

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** गाओ जी मां कर्मा की महिमा गाओ जी मां कर्मा की महिमा जीवन सुखमय आराम है... जय कर्मा बोलो, जय कर्मा बोलो जय कर्मा बोलो, जय कर्मा बोलो नारी शक्ति में कर्मा महान है... कहलाती है मेवाड़ की मीरा तेलीय वंश की है भक्त हीरा जगन्नाथ पुरी में उनकी धाम है... गाओ जी मां कर्मा की महिमा जीवन सुखमय आराम है... बचपन से ही भक्ति भाव में लगी है भक्त बनके भगवान की दृष्टि जगी है खिचड़ी खिलाना सदा काम है ... गाओ जी मां कर्मा की महिमा जीवन सुखमय आराम है... अपनी प्रतिभा से आभा बिखेरती जन मानस में कल्याण कारज करती कुल देवी को करते सलाम है... गाओ जी मां कर्मा की महिमा जीवन सुखमय आराम है... भावों की धनी और विचारों की मणि है सद्भाव सद्कर्म से ही संत शिरोमणि है नारी शक्ति व भक्ति में नाम है ... ...
माँ जगदंबे काली
भजन, स्तुति

माँ जगदंबे काली

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** रक्षा करो माँ जगदंबे काली रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... तुम हो दुर्गा तूम ही काली करती हो तुम अपने बल से सारे जगत की रखवाली मेरी भी रक्षा करो माँ बजगदंबे काली। रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... तुम हो विद्या तुम ही हो महाविद्या मुझे भी विद्या का दान दो माँ काली। रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... तो तुम हो आदि तुम हो अनंत तुमसे है सृष्टि का आरंभ तुमसे ही सृष्टि का अंत रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... तुम हो दयालु तुम हो परम् दयालु मेरे सिर पर भी दया का हाथ रख दो माँ काली रक्षा करो माँ जगदंबे काली रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...
सुन कान्हा फागुन आयो
गीत, भजन, स्तुति

सुन कान्हा फागुन आयो

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** सुन कान्हा फागुन आयो। संग होरी त्यौहार लायो। तू होरी पै मोय लाल, पीलो, हरो, नीलो रंग पिचकारी। भर-भर डारैगो। हां! राधा फागुन आयो। संग होरी त्यौहार लायो। तू भी होरी पै मो पै लाल, पीलो, हरो, नीलो रंग पिचकारी। भर-भर डारैगी। मैं और तू होरी रंगन। तै संग खेलेंगे, एक-दूजे के। नयन देखेंगे मैं तोरे नैनन में। तू मोरे नैनन में प्रेम रंग देखेगो। होरी ऐसी खेलेंगे ज्यो जल। मध्य उछरे त्यों हमारो। हिय प्रेम रंग होरी से गदगद। होय जात उमंग संग हर्षित हो। उर मयूर सौ नाचत अरू हम। द्वौ ऐसी प्रेम रंग होरी खेले। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
मीरा तो थीं प्रेमदिवानी
कविता, भजन

मीरा तो थीं प्रेमदिवानी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो थीं प्रेमदिवानी। कान्हा की थीं वे अनुरागी, माना उनको ही नित स्वामी। महलों का सुख रास न आया, प्रेम डगर की थीं अनुगामी। बहुत मनाया नित्य उन्हें पर, राणा जी की एक न मानी। कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो धीं प्रेम दिवानी। राणा भेजे एक पिटारा, मंशा थी मीरा डर जाएँ। खोलें जब तत्काल उसे तो, नाग डसे उनको, मर जाएँ। नाग बना माला सुमनों की, विस्मित थे राणा अभिमानी। कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो थीं प्रेमदिवानी। राणा ने फिर विष भिजवाया, कह प्रसाद है यह मोहन का। राणा थे भारी अचरज में, पी मीरा ने शीश झुकाया। श्याम भजन गाकर मंदिर में, जोगन बन बैठी वह रानी। कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो थी प्रेमदिवानी। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/...
जागो हे भोले…
भजन, स्तुति

जागो हे भोले…

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** "ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है, सत्यम शिवम् सुंदरम...। सत्यम शिवम् सुंदरम..., सुंदरम..., सुंदरम..., सत्यम शिवम् सुंदरम...।। जागो हे भोले..., जागो..., जागो..., जागो..., जागो हे भोले, जागो प्यारे, मेरे भोले कि सूरत, है निराली। जागो हे भोले...।। गणेश-कार्तिक पूत तुम्हारे, आदिगौरी मां संगिनी तुम्हारी। मन पावन करो, कामना पूर्ण करो, सदा नमन करूं, ओमकार प्यारे। जागो हे भोले...।। हाथो में त्रिशूल डमरूं बाजे, माथे पर त्रिनेत्र चंद्र सांजे, जटा में रहे गंग, डाले गले में भुजंग, नीलकंठेश्वर, महाकाल प्यारे। जागो हे भोले...।। ज्योर्तिलिंग में शक्ति तुम्हारी, करे पूजन ऐ धरती सारी, भक्तों के भगवन्, करूं चरणों में सुमिरन, शिवशक्ति का रूप, भोलेनाथ प्यारे। जागो हे भोले...
हरी धरै मुकुट खेले होली
भजन, स्तुति

हरी धरै मुकुट खेले होली

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** हरी धरै मुकुट खेले होली, हरि धरै मुकुट खेले होरी || मोर मुकुट पीतांबर पहने, हाथ पकड़ राधा गोरी || हरि धरे मुकुट खेले होरी कितने बरस के कुंवर कन्हैया, कितने बरस राधा गोरी || हरि धरेमुकुट खेले होरी दसहि बरष के कुंवर कन्हैया, सात बरष राधा गोरी || हरी धरे मुकुट खेले होरी कहा पैरी कृष्णा होरी खेले, कहां पैरि राधा गोरी || हरी धरे मुकुट खेले होरी मुकुट पैरि कृष्णा होली खैलै, चीर पैरि राधा गोरी || हरि धरै मुकुट खेलै होरी काहिन के दो खंभ बने हैं, काहिन लागि रहे डोरी || हरि धरै मुकुट खेलै होरी अगर चन्दन के दो खंभ बने हैं, रेशम लागि रहे डोरी || हरी धरे मुकुट खेले होरी कौन वरण के कृष्ण कन्हैया, कौन अवरण राधा गोरी || हरि धरै मुकुट खेले होरी श्याम वर्ण के कृष्ण कन्हैया, गौर वरण अ राधा गोरी || हरी धरे मुकुट खेले हो...
भगवन् तेरी शरणम्…।
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भगवन् तेरी शरणम्…।

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** भगवन् तेरी शरणम्, मैं आया कृपा करना, भगवन् तेरी शरणम्, मैं आया कृपा करना। जो तेरी इच्छा हो, तो मुझपर दया करना, जो तेरी इच्छा हो, तो मुझपर दया करना। भगवन् तेरी शरणम्...।। मेरे माता-पिता, गुरु की, छवि दिखे तुझमें, श्रीगणेश, शिव-शक्ति का, दिव्य रूप दिखे तुझमें। मेरी आत्मा का मालिक तू, श्रद्धा-नमन स्वीकार करना, एक आस ही मेरे पास, प्रभु मुझपर कृपा करना। भगवन् तेरी शरणम्...।। तेरी सूरत दीवानी है, मैं तेरा दीवाना हूं, मन मंदिर मेरे आजा, मैं तेरा पूजारी हूं। मेरे दिल की धड़कन तू, श्रद्धा-भक्ति स्वीकार करना, एक आस ही मेरे पास, प्रभु मुझपर कृपा करना। भगवन् तेरी शरणम्...।। धन दौलत नहीं चाहूं, मुझे तेरा सहारा हो, बस यही दुआ मांगू, निच्छल प्रेम मेरा हो। यह विनती मेरी सुनले, श्रद्धा-भाव स्व...
बिल्व-वृक्ष
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बिल्व-वृक्ष

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** बिल्व-वृक्ष शिव का रूप, पिता ने एक लगाया था | देवालय निकट शिव स्वरूप, परमेश्वर ने एक लगाया था || बिल्व-वृक्ष...... मैंने भी निज गृह में एक, सदाफल वृक्ष लगाया था | सेवा करके उसकी भक्तिपरक, मैंने स्वयं से बड़ा बनाया था || बिल्व-वृक्ष....... टूटी शाखा तब कलेश हुआ था, गृहस्थ सुखार्थ वृक्ष लगाया था | करता था प्रतिदिन अभिषेक, बिल्वपत्रार्पणार्थ वृक्ष लगाया था || बिल्व-वृक्ष..... आज कहाँ बिल्व-वृक्ष गया, अष्टोत्तरी पूर्त्यर्थ जो लगाया था | आज तन ओ असहाय हुए, वृक्ष नष्टार्थ हाथ जो लगाया था || बिल्व-वृक्ष....... निम्बुक वृक्षार्थ आतुर हो क्यों? शिव बिल्व-वृक्ष नहीं बढ़ाया था | आत्म- सुखार्थ मन भयातुर क्यों? मान त्रिदेवों का नहीं रख पाया था || बिल्व-वृक्ष..... परिचय :- सुरेश चन्द्र जोशी शिक्षा : आचार्य, बीएड ...
नित नित शीश झुकाऊँ
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नित नित शीश झुकाऊँ

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अष्टभुजी हैं दुर्गा माता, तू सहस्त्र भुज धारी। तेरी गाथा लिखना मुश्किल, तू पृथ्वी से भारी। तू जीवन आधार सभी का, तू है सबसे प्यारी। हर युग से तू रही सीखती, तेरी महिमा न्यारी। शिव शंकर से सीखा उसने, गरल कंठ में धरना। सीखा माता पार्वती से, कठिन तपस्या करना। दशरथ नंदन से सीखा है, सुख दुख में सम रहना। सीखा भूमि सुता से उसने, लिखा भाग्य में सहना। नटनगर से सीखा उसने, कर्म करें बस अपना। केवल प्रभु की शरण सत्य है, और जगत है सपना। बरसाने वाली से सीखा, खुद बन जाना राधा। राधा में है कृष्ण समाया, और कृष्ण में राधा। लक्ष्मीनारायण से सीखा, बहु अवतारी होना। तज बैकुंठ, धरा पर जाकर, नर संसारी होना। हनुमान से सीखा उसने, काम प्रभु के आना। ऊँचा लक्ष्य रखें जीवन का, प्रभु पद प्रीति लगाना। सीता उ...
कान्हा
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कान्हा

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** क्यों कान्ह तू। कब आवेगो। मोरे नैन तोरे दरस। तरस रहे। तू मोहे इक बार। सपन में ही बता जा। कान्हा तू कब आवैगो। मैं तोरे दरस को अति। व्याकुल मोए भोजन खावै। ना बनै, मोए प्यास। भी नाए लगै। कान्हा अब तो तू। आए जा मोहै दरस। दे जा, मोरै नैना तोरे । दरस अति तरसे। अब तू तनिक देर मत लगा। शीघ्र दरस दे जा। मोहै बता दे तू कब आवैगो। मैं तोरे अभिनन्दन की। तैयारी कर लूँ । मैं तोहै माखन मिश्री। भोग लगाऊँ। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय ह...
पर्व शिव कीर्तन का
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पर्व शिव कीर्तन का

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** मेरे मन में भाव उठा अब, बाबा शिव के कीर्तन का। महापर्व शिवरात्रि सुहावन शिवशंकर के अर्चन का। इस दिन भोले बनते दूल्हा, करके वह पुष्प श्रृंगार। झूमें नाचे तब भक्त सभी, खुशी मनाते हैं अपार। प्रेम मगन होकर उर आता, मधुर भाव शिव नर्तन का। महापर्व शिवरात्रि सुहावन शिवशंकर के अर्चन का। गौरा माता बनती दुल्हन, करती शुभ प्रेम श्रृंगार। आँखों में शिव की छवि होती, सत उर में उमड़ता प्यार। भाव उठे शिव बारात सदा, प्रभु नील पुष्प वर्षण का। महापर्व शिवरात्रि सुहावन शिवशंकर के अर्चन का। भाँग धतूरा सेवन करते, नित भूत प्रेत गण सारे। भाँग मधुर पीसें गौरा जब, पीते तब भोले प्यारे। भोले की करती नित सेवा, रखें मान माँ कंकन का। महापर्व शिवरात्रि सुहावन शिवशंकर के अर्चन का। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्...
आदिदेव महादेव
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आदिदेव महादेव

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को, भोले का यश गाना हैं। रख श्रद्धा आदिनाथ की, भवसागर तर जाना हैं।..... वंदन चंदन कर तिलक लगाएं, अर्पित करते पुष्पों की माला। आदिदेव महादेव का ध्यान धरें, सबके हित उत्तम करने वाला। गौरीशंकर भक्ति में चित्त लगाना हैं। रख श्रद्धा आदिनाथ की भवसागर तर जाना हैं।..... तात कार्तिकेय-गणनायक की, आभा बड़ी निराली हैं। मयूर केतु-गजानन की, छवि नैन सुखदायी हैं। गिरिजापति विश्वनाथ का अलौकिक श्रृंगार करना है। रख श्रद्धा आदिनाथ की भवसागर तर जाना हैं।..... परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
हे शिव शंभू करुणा निधान
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हे शिव शंभू करुणा निधान

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** हे शिव शंभू करुणा निधान, टाले न सके विधि के विधान। अखिल विश्व के पालन हारे, किस भांति करुँ तेरा यशोगान ।। भर दो शक्ति,साहस हम में, आनंद प्रेम, दृढ़ता मन में। हो मानवता हर,जन जन में निज मातृ भूमि का करें मान।। हे शिव शंभू करुणा निधान रोशन कर दो जीवन सबका, मिट जाये "तम" अन्तर्मन का। कर्तव्य विमुख ना रहे कोई, प्रभु हमको दो ऐसा वरदान।। उददेश्यहीन जीवन न रहे, समरसता संबंधों में रहे। निर्विघ्न करो पथ के व्यवधान दे दी हमने अपनी कमान।। हे शिव शंभू करुणा निधान... संघर्षों से निखरें प्रतिपल, संवरे शुभकाज सफल हो कल। हम बन जायें तुम्हरे समान। हे दीनबंधु करुणा निधान...। परिचय :- प्रीति तिवारी "नमन" निवासी : गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार स...
शिवरात्रि महापर्व
कविता, भजन

शिवरात्रि महापर्व

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** शिवरात्रि महापर्व पर बरस रही कृपा कैलाशी की, घट-घट में विराजे शिव शंभू कृपालु शिवा के साथ ।। गंगा विराजे शीश प्रभु के, विष धारण किया है कंठ नंदी करते पहरेदारी शिव प्रभु की प्रिय वासुकी साथ ।। शिव शक्ति के स्वरूप है, शिव ही सृष्टि के मूल आधार गुरुओं के भी गुरु है शिव शंकर, है ऊर्जा अनंत अपार ।। अविनाशी शिव अनंत हैं, सच्चिदानंद सदैव ही सत्य यह सृष्टि विलीन है शिव में ही, है समाहित पूर्ण संसार ।। श्रावण मास का माह प्रिय बहुत शिव शंकर को मेरे, मेघ रूप में अंबर से बरसे प्रभु की कृपा जब अपार ।। महा शिव रात्रि पर हरे शिव भक्तों के दुख, पाप, संताप करके प्रभु की आराधना भर लो भक्ति से मन का थाल ।। है बहुत ही यह सुन्दर काम आज चलो सब शिव के धाम महा शिवरात्रि पर विल्बपत्र चढ़ाकर लेंगे प्रभ...
मैं शिवा तुम्हारी
भजन, स्तुति

मैं शिवा तुम्हारी

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** तुम हो शिव मैं शिवा तुम्हारी, प्रेम संगिनी प्रेम रागिनी। तुम हो शिव..... जब तुम करते नृत्य मनोहर, पग थिरके डमरू के स्वर पर, भाव भंगिमा सुंदर चितवन, करे प्रफुल्लित देवों का मन, तब नर्तक नटराज की गौरी, समा जाए मुद्रा में तेरी। तुम हो शिव...... जब तुम करते जग का चिंतन, कष्ट देख व्यथित होता मन, जन कल्याण हेतु दुख भंजन, तज कर सर्प चन्द्र का बंधन, रत समाधि होते त्रिपुरारी, तब मैं बनती साधना तुम्हारी। तुम हो शिव........ जब होता सागर का मंथन, विष को देख करे जग क्रंदन, सब मिल करें प्रार्थना तुम्हारी, सुन लो शिव वंदना हमारी, नहीं रुके पल भर को शंकर, विषपान करें अंजुल भर कर, हुआ कंठ जब नील तुम्हारा, कर रखकर कर विष रोका सारा, तुम पीड़ा से मौन हो गए, तब मैं बन गई वेदना तुम्हारी। तुम हो शिव मैं शिवा तुम्हारी।...
कलयुग सतयुग लग रहा
गीत, भजन

कलयुग सतयुग लग रहा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कलयुग भी सतयुग जैसा लग रहा विद्यासागर जी के कामो से। कितने जीवो के बच रहे प्राण उनकी गौ शालाओं से।। जीव हत्या करने वाले अब स्वयं आ रहे उनकी शरण में। लेकर आजीवन अहिंसा का व्रत स्वयं करेंगे उनकी रक्षा अब। ऐसे त्यागी और तपस्यवी संत जो स्वयं पैदल चलते है। और जगह जगह प्राणियों की रक्षा हेतु भाग्यादोय खुलवाते।। कलयुग भी सतयुग जैसा लग रहा विद्यासागर जी के कामो से। कितने जीवो के बच रहे प्राण उनकी गौ शालाओं से।। मांस मदिरा बेचने वाले अब स्वयं रोक लगवा रहे। चारो तरफ अहिंसा का अब पाठ ये ही लोग पड़ा रहे। कलयुग को देखो कैसे अब सतयुग ये लोग बना रहे। घर घर में सुख शांति का आचार्यश्री का संदेश पहुंचा रहे।। लगता है जैसे भगवान आदिनाथ स्वंय अवतार लेकर आ गये। और छोटे बाबा के रूप में आकर सब जीवो का उद्दार कर रहे है। तभी...