हे! कृष्ण-कन्हैया
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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द्वापर के है! कृष्ण-कन्हैया,
कलियुग में आ जाओ।
पाप बढ़ रहा, धर्म मिट रहा,
अपना चक्र चलाओ।।
अर्जुन आज हुआ एकाकी,
नहीं सखा है कोई।
राधा तो अब भटक रही है,
प्रीति आज है खोई।।
गायों की रक्षा करने को,
नेह-सुधा बरसाओ।
पाप बढ़ रहा, धर्म मिट रहा,
अपना चक्र चलाओ।।
इतराते अनगिन दुर्योधन,
पांडव पीड़ाओं में।
आओ अब संतों की ख़ातिर,
फिर से लीलाओं में।।
भटके मनुजों को अब तो तुम,
गीतापाठ सुनाओ।
पाप बढ़ रहा, धर्म मिट रहा,
अपना चक्र चलाओ।।
माखन, दूध-दही का टोटा,
कंसों की मस्ती है।
सच्चों को केवल दुख हासिल,
झूठों की बस्ती है।।
गोवर्धन को आज उठाकर,
वन-रक्षण कर जाओ।
पाप बढ़ रहा, धर्म मिट रहा,
अपना चक्र चलाओ।।
अभिमन्यु जाने कितने हैं,
घिरे चक्रव्यूहों में।
भटक रहा है अब तो मानव,
जीवन की राहों में।।
कपट म...