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पद्य

अब मिटे मेंरे पद निशान है
कविता

अब मिटे मेंरे पद निशान है

संदीप पाटीदार कोदरिया महू (मध्य प्रदेश) ******************** बहुत हो गया अब न सहूगी अब मिटे मेंरे पद निशान हैं क्यो घटी योगी पुण्य आत्माये अब जन्मे क्यो रावण से बडे़ जो हैवान है क्यो मनुष्य स्वार्थी हुआ क्यो हो रहा मानवता का कत्लेआम है और क्यो माँ आज एक गाली बनीं क्यो बेटियों के होने पर भी विराम है आज बनी क्यो हर माँ जो अंधिका माई है जिसने बेटियों को बनाई पराई है क्यो उन माओ ने कि अपने बेटो कि बढाई है जिन्होने माया रुपी रावण कि लंका में सिर्फ अपनी भीड़ बढाई है याद करो माओ क्यो ऐसी विपदा आई है क्यो बनी माँ रामायण में सीता क्यो भागवत गीता में माँ द्रोपदी का बखान है क्यो ज्ञानी अंर्तध्यान हुये क्यो बने कोई आसाराम है क्या अंधकार और अत्याचारियों के सारे ग्रह बलवान है अब मिटे मेरे पद निशान है परिचय :- संदीप पाटीदार निवासी : कोदरिया महू जिला इन्द...
तुमने कोशिश की
कविता

तुमने कोशिश की

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** तुमने तो पूरी कोशिश की हमारी खिल्ली उड़ाने की हर जगह हरा तरफ, हम फिर भी खिलखिलाते रहे इस मतबली जमाने में। तुमने तो पूरी कोशिश की कि हम जीते जी मर जाए। हम फिर भी हंसते रहे मुस्कुराते रहे, और जीवन की डगर में जिजीविषा लिए जीते रहे। तुमने तो पूरी कोशिश की कि हम जीवन के पथ पर टूट कर बिखर जाए, हम फिर भी खुद को एकत्र किए जीवन के आकाश में हौसलों की उड़ान से उड़ते रहे, हर जगह हरा तरफ। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
सच ही कहता है ये आईना सदा 
कविता

सच ही कहता है ये आईना सदा 

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** सच ही कहता है ये आईना सदा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ याद करके तो देखो, वो बीते हुये दिन गुजरे हुए अपने, वो पल क्षिण -क्षिण याद आयेगी वो झूठी-मुठी अदा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ ज़िन्दगी आईने का ही प्रतिरुप है प्रतिपल बदलती जिसका स्वरूप है दिखाती है हर पल, नई -२ ये फ़िज़ा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ ज़िन्दगी की ये सबसे बड़ी सत है ज़िन्दगी मौत की ही अमानत है कोई टिकता नहीं है यहाँ पर सदा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ याद आयेगी, तुमको उमर ढलने पर बोझ ढोयेंगे जब-जब, अपने कांधे पर सच ही कहता था प्रमेशदीप ही सदा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक...
आ गई मझधार फिर से
ग़ज़ल

आ गई मझधार फिर से

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** आ गई मझधार फिर से। खुल गई पतवार फिर से। मौज से कश्ती मिली तो, मिल गई रफ़्तार फिर से। कर नहीं पायी कही जब, घिर गई सरकार फिर से। बात अपनी ज़िद पकड़कर, बन गई तकरार फिर से। ज़िन्दगी आकर के हद में, हो गई घर-बार फिर से। आ गया किरदार रब का, जब हुई दरकार फिर से। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
एक मिसाल
कविता

एक मिसाल

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** तपती है ये बदन धुप में कोयला की आस है मिली सोन की खान कर कर्म तु यूं ही सदा बढ़कर ना कर तु ये लचार मन, तन को करता चल यूं ही पल पल मंजिल मिलती है मेहनत से थके ना कभी ये हैसला आपकी होगी फिर ओ आहट कल की कांटे बिछे पड़े हैं राहों में बना तू इसे मखमली गुलाब सा बनो तुम भी एक मिशाल देखकर हंसते ये दुनिया तुम पर हंसकर रह जाएं ये वो पल ऐसी कर तु नित्यनया सवेरा जो हो सभी के लिए दया की सागर सागर सा अथाह है जीवन में यूं ही तुम करो साहिल सा पकेरा तपती है ये बदन धुप में यूं ही सदा पल पल। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन...
अब वक्त के आगे वक्त बनों
कविता

अब वक्त के आगे वक्त बनों

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** है वक्त नहीं तुम शख्त बनों, अब वक्त के आगे वक्त बनों। होगा जो भी हम देखेंगे, हम सब मिलकर ये प्रण लेंगे।। ये दुनिया तुमको याद करे, खुद में तुम ऐसे शक्स बनों।। है वक्त नहीं तुम शख्त बनों, अब वक्त के आगे वक्त बनों। किश्मत के भरोसे मत रहना, तुम कर्म करो आजादी है। आगे-पीछे की सोच न कर, ये जीवन की बर्बादी है।। बेशक मुसीबत आन पड़ी, नर धैर्य न छोड़ सशक्त बनो। है वक्त नहीं तुम शख्त बनों, अब वक्त के आगे वक्त बनों।। गतिशील बनो धारा की तरह, नर जीवन यूं ना व्यर्थ करो। जज्बा रखो मांझी की तरह, असंभव में नव अर्थ भरो।। आनन्द सफर हो कठिन भले, माने न हार वो रक्त बनो। है वक्त नहीं तुम शख्त बनों, अब वक्त के आगे वक्त बनों।। परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय माता : श्रीमती राजक...
दो जून की रोटी
कविता

दो जून की रोटी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दो जून की रोटी, थोड़ा खुश थोड़ा सहमी, थोड़ा पसीने से लथफत, कभी अम्मा के हाथों में गोल घूमती नरम स्वाद वाली रोटी कभी पिता के पसीने में मोतियों सी चमकती रोटी! कभी बिटिया की चांद जैसी मुस्कराहट वाली रोटी.! ना जाने किन-किन पथरीले रास्तों से गुज़रती-जूझती, कभी राजनीति के दल-दल में फंसती हुई रोटी! धर्म कर्म, चाटुकारिता की भेंट चढ़ती रोटी, "वक़्त" और " दौलत" के बीच फंसती सिसकती हुई रोटी, रिश्तों में दूरियों का एहसास, करवाती रोटी कहीं फेंकी-मसली, चीखती चिल्लाती रोटी, कहीं किसी "जीव" की क्षुधा शांत करती रोटी, बहुत लंबी और असीमित है मेरी कहानी, क्योंकि, "मैं हूँ दो जून की रोटी" .... परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा...
प्रेम का इजहार
कविता

प्रेम का इजहार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पेड़ पर मौसम आने पर लगते फूल और फल पेड़ प्रेम का प्रतीक बन जाते जब बांधी जाती प्रेम के संकल्प की धागे की गठान पेड़ की टहनी पकड़े करती प्रेम का इजहार या पेड़ के तने से सटकर खड़ी रहती पेड़ एक दिन बीमारी से सूख गया प्यार भी कही खो गया चाहत भी गम में हुआ बीमार एक दिन चला गया मृत्यु की आगोश में संयोग वो जब जला दाहसंस्कार में लकड़ियाँ उसी पेड़ की थी अधूरा इश्क रहा जीवन मे रूह तृप्त हुई इश्क़ की चाहत ने कभी टहनियों को छुआ तो था कभी। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "द...
नशा छा जाता
कविता

नशा छा जाता

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिसके सेवन से मानव पर, त्वरित नशा छा जाता। ऐसा मादक द्रव्य देह को, ही समूह खा जाता। नशा नाश की जड़ है प्यारे, नशा नर्क का द्वार है। डूबा रहता जो व्यसनों में, नष्ट हुआ घर-बार है। बुद्धि भ्रष्ट हो जाती इससे, पतन आत्मा का होता। जैसे नाव डुबो देता है, हुआ तली में जो सोता। सभी मान मर्यादा खोता, व्यसन चाहने वाला। आयँ-बायँ बकने लगता है, गई हलक में हाला। बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू या, चरस अफीम औ गाँजा। करता है जो व्यसन हमेशा, उसका बजता बाजा। गाँजा, चरस, भांग, हेरोइन, ब्राउन शुगर जो लेता। सुरासुंदरी के घेरे में, तन- धन ही खो देता। नशा माफ न करे किसी को, व्यसन यही सिखलाता। नशा रक्त में मिलकर अपना, रौद्र रूप दिखलाता। व्यसनी अपना हित अनहित भी, कभी देख न पाता। अपने अवगुण के कारण ही, घर का खोज ...
मेरा अस्तित्व है क्या…
गीत

मेरा अस्तित्व है क्या…

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** मैं क्या हूं, मैं क्यों रो पड़ा, मैं क्या हूं, मैं क्यों हस रहा। मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या, मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या। "मैं कैसे कहूं, किससे कहूं, कोई अपना पराया, लगने लगा।" मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या, मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या...।। मान भी जा, ऐ दिल ना हो दुखी, मेरा होना, ना होना एक जैसा। "मैं कैसे कहूं, किससे कहूं, कोई अपना पराया, लगने लगा।" मेरा दिल रोये, मेरा अस्तित्व है क्या, मैं कुछ नहीं मेरा अस्तित्व है क्या। मैं कुछ नहीं मेरा अस्तित्व है क्या...।। जाना अनजाना सा, सपना लगे, मैं अपना कहने, कहते चला। "मैं कैसे कहूं, किससे कहूं, कोई अपना पराया, लगने लगा।" मेरा मन तड़पे, मेरा अस्तित्व है क्या, मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या। मैं कुछ...
मेवाड़ के महाराणा
कविता

मेवाड़ के महाराणा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** 'आओ सुनाए आज तुम्हें इक गाथा राजपूताने की अकबर की चतुरंगी सेना पीठ दिखाकर भागी थी 'राजपूताने की धरती पे महाराणा प्रताप जन्मे थे वीर प्रताप,मेवाड़ राज्य मुगलों के गढ़ भी डोले थे कफ़न बाँधके केसरिया ये राणा की जय जय बोले थे 'मातृभूमि मुगलों ने छीनी जंगल में सेना बनाई थी छापामारी सिखलाते थे छुप करके तीर चलाते थे अंधियारों को चीर चीरके मशालें जीत की जलाते थे 'लोहपुरुष राजा थे उनके शौर्य वीरता का दम भरते कंदमूल और घास रोटियाँ खा खाकर जिंदा रहते थे ठंड ग्रीष्म बारिशों को भी जयकारों में ये भुलाते थे 'अकबर के अनुबंध नकारे राणा भिड़ गए मुगलों से धारदार भाले की ताकत चेतक की सवारी करते थे मुट्ठीभर सैनिक ले राणा विजय तिलक लगाते थे 'तजे प्राण घायल राणा ने मुगलों को ना पीठ दिखाई रण छोड़ते सैनिकों को लोहे के चने चबा ...
मधुमय प्याला छलका दो
कविता

मधुमय प्याला छलका दो

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे हृदय का आँगन है सुना-सुना सुरभित प्यार की बगिया खिला दो। सदियों से हूँ मैं तेरे प्यार का प्यासा तू बनके बरखा मेरी प्यास बुझा दो।। बन जाओ तुम मेरी मधुमय साकी प्यार का मधुमय प्याला छलका दो। हो जाऊँ मैं भी तेरा मदमस्त दीवाना बस मुझको थोड़ा-थोड़ा बहका दो।। बनके होठों का प्याला तुम जरा सा मुझको मधुमय रस का पान करा दो। हो जाऊँ मैं मगन मदहोश भम्रर सा हृदय से मुझको आलिंगन करा दो।। प्यार में छा जाए कुछ ऐसी मदहोशी ऐसी होश न मुझको कभी भी आए। प्यार का ऐसा जाम पीला दे तू साकी कि उमर भर फिर चाहत न रह जाए।। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी...
कभी-कभी मेरे दिल में…
कविता

कभी-कभी मेरे दिल में…

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** कभी-कभी मेरे दिल मे ख्याल आता है क्यों कर बैठा इश्क ये सवाल आता है..!! अकेला था मैं ना कोई साथ था मेरा अब उनकी याद क्यों हर वक्त आता है..!! ना तालुक था कभी इन आँसुओं से मेरी अब आँसुओं की क्यों शैलाब आता है..!! कही डूब न जाऊँ आँसुओं की दरिया में तैराक हूँ पर आँसुओं में तैरना नहीं आता है..!! ना याद करता हूँ ना यादों में समाया है फिर यादें उनकी क्यों बेहिसाब आता है..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...
इसकी खुशबू भी सोंधी है
कविता

इसकी खुशबू भी सोंधी है

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** बिंदी लगाने से नारी का यहां स्वाभिमान जगने लगता है हमारी ये जुबान पर हर पल हिंदी है और हमारे माथे पर बिंदी है| दोनों अगर है तो फिर हमारी भारतीयता भी जिंदी है। हिंदी और बिंदी दोनों का मान दुनिया में हमें रखना होगा दोनों अगर नहीं है तो फिर हमारी सोच बिल्कुल गंदी है। हिंदी और बिंदी से हम इस संसार में जाने और पहचाने जाते हैं हम भारतीय हैं कोई नहीं कहता, यहां ये पंजाबी है या सिंधी है। इतिहास रचा है हिंदी और बिंदी ने याद हमें रखना होगा दोनों है तो हम मुक्त है वर्ना हम भी संसार में बंदी है। बिंदी और हिंदी ने हम भारतीयों का विश्व में गौरव बढ़ाया है पश्चिमी सभ्यता अपनाकर सारी दुनिया भी अंधी है। आजादी पाकर अभी तक हम ये अंग्रेजों की गुलामी में जकड़े हैं। याद करो अपनी मिट्टी को इसकी खुशबू भी सौंधी है। बिंदी ल...
कानन
कविता

कानन

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** सुरभित कानन कुंज है, सुमन खिले चहुॅं ओर। हर्षित सारे जीव हैं, देख चकित मन मोर।। कानन में तरु झूमते, पक्षी बैठे डाल। देख देख खुश हो रहे, युवा वृद्ध सब बाल।। कानन मन भावन लगे, वृक्षों की है छाॅंव। सूरज की गर्मी नहीं, सुंदर है यह ठाॅंव।। वृक्षों से कानन सजे, फूलों से है बाग। खुश हो पक्षी गा रहे, सुंदर मीठी राग।। लदे फलों से वृक्ष हैं, कानन में भरमार। गुण वर्धक पौष्टिक सभी, खूब अनेक प्रकार।। फल फूलों को देखकर, भ्रमर करें गुंजार। चहक रहें वन जीव हैं, पाकर गंध अपार।। सुंदरता वन बाग की, मनमोहन अभिराम। कुदरत ने अनुपम रचा, बिना लिए कुछ दाम।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र :...
अबोला आकाश
कविता

अबोला आकाश

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कोई नहीं देखता इस खुले आकाश को यह अबोला नहीं है रंग का चितेरा है रक्तिम स्वर्णिम नीलाभ वर्ण में सजाता है पेड़ों पहाड़ों नदियों को हल्की कपसिली आकृतियां बनाता दूर बहुत दूर से धरा को नित्य नये रूप दिखाता है, जिसे देखने की दृष्टि अलग होती है जिसे सभी मानव नहीं देख सकते क्योंकि मानव को अपने स्वार्थ के आगे वक्त कहां है ऐसा अबोले आकाश को देखने के लिए। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचना...
ग्रीष्म
कविता

ग्रीष्म

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ताप ही की हर दिशा में, हो रही नित जीत है। ग्रीष्म यौवन है शिखर पर, भूमिगत अब शीत है। चढ़ रहा पारा निरन्तर, बढ़ रहीं कठिनाइयाँ। कष्टप्रद है धूप रवि की, हैं सुखद परछाइयाँ। वृक्ष की शीतल सुहानी, छाँव मोहक मीत है। ग्रीष्म यौवन है शिखर पर, भूमिगत अब शीत है। थम गईं नदियाँ धरा पर, ताल भी सूखे सभी। अब कहाँ जलचर गए वे, धूम थी जिनकी कभी। अब नहीं गुंजित तटों पर, गीत या संगीत है। ग्रीष्म यौवन है शिखर पर, भूमिगत अब शीत है। श्रम बिना ही स्वेद कण अब, देह पर आसीन हैं। हैं धनी लस्सी व शर्बत, चाय-काफ़ी दीन हैं। चाह शीतल पेय की अब, नित्य आशातीत है। ग्रीष्म यौवन है शिखर पर, भूमिगत अब शीत है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्...
कविता

आजादी है आजाद रहो

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आजादी है आजाद रहो, जो मन में है वो बात कहो। तू फक्र करो भारत में हो, भारत माॅ से ना घात करो।। जज्बातों में कुछ ऐसा ना, अपने लोगों से कर जाना। पुरानी रीति-रिवाजों को ना, चूर चूर कर दफनाना।। चंचलता में जीवन तेरा, ये ध्यान रहे बर्बाद न हो। आजादी है आजाद रहो, जो मन में है वो बात कहो। तू किश्मत अपनी चाहो तो, इक पल में बदल सकते हो उसे। फिर हार जीत का प्रश्न कहाँ , मिली हार किसे और जीत किसे। आपस में लड़ना क्या लड़ना, आनंद विहार कुछ प्राप्त न हो।। आजादी है आजाद रहो, जो मन में है वह बात कहो। परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय माता : श्रीमती राजकिशोरी देवी जन्मतिथि : ३०/१०/१९९४ निवासी : जनपद- बलिया (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
शर्ट
कविता

शर्ट

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** शर्ट-शर्ट नहीं हुयी मानो एक प्यार का इज़हार बन गयी, कभी लिपस्टिक लगाकर प्रेयसी की अमानत, तो कभी रफू कर मां का दुलार, बटन निकलने पर उसकी पुचकार कर मरम्मत, फटने पर, उसके सिलने का पत्नी का प्रयास नजदीकियों का आगाज, शर्ट को प्रेस करने के लिए धोबी को समझाना बेरंग या फटने पर बेटी की अनावश्यक चिंता और नया शर्ट लाने की चुहलता मानो शर्ट नहीं शर्ट के एवज में बहुत सारा प्यार, अनुकंपा और जद्दोजहद, और जब श्रीमान घर से बाहर निकले तो ये सोचें कि चलो मैं नहीं तो क्या मेरी शर्ट की है इतनी महत्ता। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत ...
कहीं मुश्किल… कहीं आसां
ग़ज़ल

कहीं मुश्किल… कहीं आसां

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कहीं मुश्किल, कहीं आसां मिला है। यही इस जिंदगी का सिलसिला है। रखी हमनें हमेशा ही तसल्ली, भले सबसे हमें हक कम मिला है। मनाही में रज़ा हम ढूंढ लेंगे, यहाँ हमको किसी से क्या गिला है। बचा है बाग में वो ही अकेला, कहीं इक फूल जो छुपकर खिला है। हमारे सामने होकर जो गुज़रा, कहीं रुकता नहीं वो काफ़िला है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
वीर सावरकर
कविता

वीर सावरकर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** भारत की भूमि पर जन्मा, विनायक दामोदर सावरकर ऐसा वीर किरदार कहलाया है। सावरकर का हर एक कदम, विश्व में पहले स्थान पर आया है। भारत मां को समर्पित जीवन, हिंदुत्व का इतिहास बनाया था। सर्वप्रथम उसने ही विदेशी वस्त्रों की होली जला, स्वदेशी होने का मान बढ़ाया था। दुनिया का वह पहला कवि था। जेल को दीवारों को कागज और कील-कोयले को कलम बनाया था। पूर्ण स्वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्य, सर्वप्रथम उसने ही घोषित कर दिखलाया था। भारत की भूमि पर जन्मा, ऐसा वीर किरदार कहलाया है। सावरकर का हर एक कदम, विश्व में पहले स्थान पर आया है। झुका नहीं वह वीर सावरकर, देश की खातिर सब सह आया था। आंदोलनकारी होने पर, उपाधि वापिस ले स्नातक की, ब्रिटिश सरकार ने तुच्छ कदम उठाया था। सर्वप्रथम उसने ही स्नातक होने का गौरव पाया था। भ...
मन का मौसम
कविता

मन का मौसम

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** मन का मौसम है अपने ही मन का फेर, दूसरों को देखोगे तो हो ही जाएगी अंधेर। मन अपनी खुशी क्यों औरों से जोड़ते हो? तोड़ने वाले बहुत है फिर  मायूस हो जाते हो! मन अपना फूल से बढ़कर नाजूक होता है, औरों से कहा आज-कल समझा जाता है? मन रे कहा है किसी कवि ने तू धीर धर, औरों की वजह से खुद को बरबाद न कर। मन रे मोह माया से सम्भाल कर रहा कर, मुफ्त में सुख चैन का सौदा न किया कर मन का मौसम खुद के काबू में रखा कर, इसे औरों के भरोसे नहीं कभी सौंपा कर। परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्यालय, परभणी महाराष्ट्र घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
जीने का सहारा
कविता

जीने का सहारा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हरा भरा था देश हमारा शस्य श्यामला था थल सारा वृक्षों का झुरमुठ था न्यारा सब जीवों के जीने का सहारा पोखर ताल व नदी किनारा जल ने जीवन को था तारा यूँ तो समंदर भी है खारा देता पर्यावरण का नारा यदि चाहिए मलय मंद फूलों में मीठी सी सुगंध नृत्य करे जल में तरंग तोड़ो प्रदूषण से संबंध रोक वनों की व्यर्थ कटाई नव पौधों की कर सेवकाई शुरू करो इक नई कहानी सहेज लो बारिश का पानी कचरा प्रबंधन सहज बनाओ गीले कचरे से खाद बनाओ गंदगी यहाँ वहाँ ना फैलाओ स्वच्छता अभियान चलाओ मग बाल्टी,उपयोग बढाओ व्यर्थ जल से सब्ज़ी उगाओ टोटियां नल की ठीक कराओ बून्द बून्द पानी की यूँ बचाओ अर्ध पात्र जल दीजिए प्यासा जब कोई होय पूरा जल पी लीजिए जल जितना पात्र में होय फूल पात व जली अस्थियां देवों की विसर्जित मूर्तियां विलुप्त हो गई...
प्रेम
कविता

प्रेम

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** क्या है परिभाषा पवित्र प्रेम की?? स्नेह, लगाव, भावना, एक सुखद अहसास?? यहीं समाप्त नहीं हो सकती "परिभाषा "प्रेम की! प्रेम शाश्वत है, कल था, आज है, कल भी रहेगा!! शुभ का आरंभ, निरंतरता का बहाव है प्रेम, सूकून है, लगन है, मुक्ति है प्रेम! ईश्वर की अराधना, हवन कुंड का पवित्र धुआं है प्रेम, प्रकृति का कण-कण है प्रेम, जीवों के प्रति करुणा है प्रेम! शब्दों में ना वर्णित हो पाए वो उपासना है प्रेम, सृष्टि की रचना का आधार, जीवन की सार्थकता है प्रेम! एक मौन अभिव्यक्ति, ईश्वरlनुभूति है प्रेम! समर्पण, विश्वास, वचन बद्धता, अद्विती यता है प्रेम! प्रेम आदि-अनादि है, जगत में परमात्मा का प्रतिनिधि है प्रेम! सत्य है, शिव है, सुन्दरतम है "प्रेम" !!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री ...
जान लिया
कविता

जान लिया

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** क्या फर्क पड़ता है अब तेरे आने से क्या फर्क पड़ता है, अब तेरे जाने से हम तो चर्चित रहेंगे फिर भी इस जमाने में। क्या फर्क पड़ता है अब तेरे रोने से क्या फर्क पड़ता है अब तेरे मुस्कुराने से। हमने जान लिए हैं अब हर तरीके तेरे दिल बहलाने के। क्या फर्क पड़ता है अब दिल लगाने से क्या फर्क पड़ता है अब दिल दुखाने से हमने जान लिया है, महज ये पल भर की खुशी है पल भर की हंसी है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय ...