Sunday, May 18राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

आईना
कविता

आईना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जिंदगी की हकीकत दिखाती हैं आईना। पल-पल बदलती जीवन सिखलाती आईना।। आईना के प्रतिबिम्ब से बदलती हैं जिंदगी। आईना सा पाक,निष्पक्ष हो हमारी जिंदगीII हकीकत से वास्ता कराती है आईना- २ जिंदगी की.......................आईना II१II आईना वही रहता है, चेहरे बदलते है I समय की हर जख्म दिखाती है आईना II कभी हंसाती, तो कभी रुलाती है आईना- २ जिंदगी की.......................आईना।।२।। हकीकत का अक्स दिखती है आईना । बदलते परिवेश मे बदलना सीखाती है आईना।। ये सच है, झूठ नही बोलता आईना- २ जिंदगी की ...................आईना ।।३।। मानव को मानवता का बोध कराती है आईना। कर्तव्य परायणता का बोध कराती है आईना।। मानव मे देवत्व जागाती है आईना- २ जिंदगी की ................आईना ।।४।। परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मा...
शीतल किया
कविता

शीतल किया

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** देखो बदल छा रहे बरसने के लिए। बदल गरजने लगे सतर्क करने ले लिए। मेघ मलारह गाने लगे अब वर्षा के लिए। भूमि जो प्यासी है पानी के लिए।। आस लगाये पानी की बैठे नदी तलाब और जमीन। कब होगी अब वर्षा बतला दो इंद्रदेव तुम। जैसे ही गिरती है बूंदे पानी की। सेन्धी सेन्धी खूशबू आने लगती है।। चारों तरफ छाने लगी हरियाली और ठंडक। पेड़ पौधे फूल पत्तीयां सब खिल उठे। गाँव शहर का भी माहौल बदल गया। अमल कमल से चेहरे सब के खिल उठे।। एक पानी की बूंद से क्या क्या देखो बदला। बिन पानी के जैसे कितने वो शून्य थे। पानी की बूंदों ने कितनो का जीवन बदला। गर्मी से देखो सबको शीतल शीतल कर दिया।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी मे...
धरती का बढ़ता तापमान
कविता

धरती का बढ़ता तापमान

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राजस्थान) ******************** तवे सी जलती है धरती बढ़ रहा तापमान है। इंसान ने मतलबपरस्ती में काटे वृक्ष अनेक हैं।। भूमंडलीकरण के कारण पृथ्वी गर्म हो रही है। ग्लेशियर पिघल रहे व चट्टाने खिसक रही है।। हरियाली धरती की खत्म होती जा रही दोस्तों। वन संपदा जल सम्पदा सारी खत्म हो रही है।। जंगली जीव जंतु अब गिनती के ही दिखते हैं। पक्षियों की प्रजातियां लुप्त होती जा रही है।। खग कलरव अब सुनाई नही देता आसपास। बागों में कोयल व चिड़ियों की चहचहाहट।। मोर का नृत्य करना दादुर के बोलने के स्वर। अब कहीं कहीं सुनाई देता है बाग बगीचो में।। धरती के बढ़ते तापमान का कारण औधोगिकरण। बढ़ते वाहन प्रदूषण पेड़ों का लगातार कम होना।। हरियाली के स्थान पर बंजर भूमि के ऊसर मैदान। सूखे दरख्तों की संख्या बढ़ते जाना वर्षा कम होना।। वातावरण में जहरीली गैसों क...
ग़मज़दा क्यूँ है
ग़ज़ल

ग़मज़दा क्यूँ है

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** दिल मेरा आज ग़मज़दा क्यूँ है जिसको देखो वही ख़फ़ा क्यूँ है। हम समझते हैं जिसे जानेज़िगर, जानेमन मन का दुश्मन वही बना क्यूँ है। हजारों ख्वाहिशें कुर्बान हैं जिस पर मेरी जान करके भी बुत बना क्यूँ है। जख़्म देता है जो दिल को मेरे तड़पा के दिल का मालिक वही बना क्यूँ है। मैंने अश्कों को बड़ी मुश्किलों से रोका है फिर भी दिल उसका तलबग़ार बना क्यूँ है। दिल मेरा आज ग़मज़दा क्यूँ है जिसको देखो वही ख़फ़ा क्यूँ है। परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्...
संत कबीर
कविता

संत कबीर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सधुक्खड़ी़ थी भाषा उनकी, थी उनकी कविता गंभीर। महा सुधारक थे आजीवन, कहलाए वे संत कबीर। हुआ अवतरण जब काशी में, स्वप्न हुआ कोई साकार। सुखी हुआ उनका पालन कर, नीरू-नीमा का परिवार। हुई कुटी सुखप्रद दोनों की, दर्शन करने उमड़ी भीर। महा सुधारक थे आजीवन, कहलाए वे संत कबीर। वही लिखा जो देखा जग में, पढ़कर विस्मित है संसार। महामना की सोच-समझ का, जन-जन माने नित आभार। सबद-रमैनी में, साखी में, व्यक्त हुई है उनकी पीर। महा सुधारक थे आजीवन, कहलाए वे संत कबीर। परंपराओं को झकझोरा, आडंबर पर साधा वार। कहा "मनुज हैं एक जगत के, एक सभी का है करतार।" "लहू सभी का एक धरा पर, गोरे, काले, दीन, अमीर।" महा सुधारक थे आजीवन, कहलाए वे संत कबीर। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५...
वो मज़ा कहां ..
कविता

वो मज़ा कहां ..

साक्षी उपाध्याय इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** इस शहरी परिपाटी में उस माटी सा मज़ा कहांॽ गैस पर सिकी रोटियों में कंडो की बाटी सा मजा कहांॽ "कहां मजा है उन गांव के कच्चे कच्चे रास्तों का इन चौड़ी-चौड़ी सड़कों पर वो पगडंडी सा मज़ा कहां कहां मज़ा है यहां वो नारंगी कुल्फी खाने में, यहां गर्मियों में वैसा वो लस्सी की हांडी सा मज़ा कहां उन पेड़ों की धूप-छांव सा इन इमारतों में मज़ा कहां वहां के मंदिर-मस्जिद यहां इबादतो में मज़ा कहांॽ "कहां मजा है यहां वैसी शरारतें करने में यहां के लोगों में वैसी चुलबुली आदतों सा मज़ कहांॽ गाय के बछड़े केसर को चूमने सा मजा कहांॽ फ़सल निकलने के बाद काले खेतों में घूमने सा मज़ कहांॽ "कहां मजा है बहती नदी में यहां पैदल-पैदल चलने का, मस्त हवा में रोज़ रात को आंगन में घूमने का मज़ा कहांॽ इस शहरी परिपाटी में उस ...
चांदनी
कविता

चांदनी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** चौखट की ओट से जब तुम्हारी निगाहे निहारती लगता सांझ को इंतजार हो रोशनी का राह पर गुजरते अहसास दे जाते तुम्हारी आँखों मे एक अजीब सी चमक पूनम का चाँद देता तुम्हारे चेहरे पर चांदी सी रोशनी तुम्हें देख लगता चांदनी शायद इसी को तो कहते दरवाजे बंद हो तो लग जाता चंद्रग्रहण लोग कहाँ समझते चांदनी का महत्व करवा चौथ शरद पूर्णिमा तीज, ईद चाँदनी बिना अधूरे वैसे तुम भी हो रातों में चाँद की चाँदनी का खिलने का इंतजार फूल भी करते जैसे उपासक करते तुम्हारे चौखट पर खड़े रहने का इंतजार ही कुछ ऐसा जो चांदनी की रोशनी में कर देगा मदहोश। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न ...
समर्पण
कविता

समर्पण

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** थी कोमलांगी बन कर आइ प्रेम की अभिमूरत सींचा पूरे घर को बड़े प्रेम से मेने हृदयपटल पर वास तुम्हारा अब क्या मांगू रब से छूटा मायका, छूटे सपने तेरे साथ चले जब छोड़ कर हम अपने पग पग प्रीत निभाऊँ में प्रेम की अविरल धार बहाऊँ में निस्वार्थ भाव से साथ निभाऊ करूँ ना कामना कुछ भी संग में तेरे खुश हो जाऊँ संग में तेरे दुःख मनाऊँ भूल गई अपने को में तो जबसे तेरे रंग में रंगी पिया कदम कदम पर दी क़ुर्बानी बात तेरी हरदम मानी कितनो को नाराज़ किया साथ तेरा जब से किया निश्छल हे प्रेम मेरा आगे ही बढ़ती जाऊँगी प्रेम की अमृत वर्षा से घर अपना स्वर्ग बनाऊँगी पग-पग राह में तेरे पुष्प बिछाऊँ में काँटों से कँटीली भरे जहान में धंसती जाऊँ में भूल गई सपने अपने भूल गई खुद को ही में तुझको अपने में ही एकाकार किया प्रेम में बाती बन कर म...
भेड़िये
कविता

भेड़िये

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हवसी भेड़िये कहीं बाहर नहीं हमारे अंदर हमारे आस पास ही रहते है। कभी हमारे गंदे विचारों में, कभी हमारी गंदी निगाहों में। कभी हमारी गंदी सोच में ताकते रहता है वो ओरों की बहू बेटियों को। कभी-कभी अपनी सोच से लाचार होकर ये भेड़िये नोचते है अपनी ही बहू बेटियों को भी। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प...
राह कब तन्हा रही है।
ग़ज़ल

राह कब तन्हा रही है।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** आ रही है , जा रही है। राह कब तन्हा रही है। रास्तों के सिलसिले सब, जिंदगी समझा रही है। जब दिलों की गाँठ उलझें, इक हँसी सुलझा रही है। बैठकर कोयल शज़र पर, तान ऊँची गा रही है। जीत उसकी जब ख़ुशी भी, हार को अपना रही है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
नारी तू नारायणी
कविता

नारी तू नारायणी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तूफा हो कितने जीवन मे सब सह लेती हो असहय वेदना सह नव सृजन कर देती हो जीवन भर सब पर केवल प्यार लुटाती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो कैसे हो सफर? हर सफर हंस कर लेती हो नया अंदाज दे सफर आसान कर देती हो जीवन के पड़ाव सहजता से अपना लेती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो नवसृजन के कर्ता और खुद ही साक्षी भी नवविधान तुमसे ही, तुम ही कामाक्षी भी जाने कितने रूप मे जग कल्याण कर देती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो नारी तू नारायणी, तूझसे ही हर नार तू चम्पा, तू चमेली, तू ही है कचनार बागो को सुमन से सुवासित कर देती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो किन-२ रूपों मे पूजन करू समझ नहीं आता है तेरा हर रूप प्रकृति सा सबका भाग्य विधाता है हर रूप मे तूम तो, जीवन का वर देती हो बदले मे कभी कुछ भी...
दर्शन से धन्य हुये
गीत, भजन

दर्शन से धन्य हुये

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** विधा : गीत भजन तर्ज : तेरे इश्क का मुझे पर हुआ... गुरु विद्यासागर के दर्शन से हम। मानों आज हमसब हो गये धन्य। गुरु विद्यासागर के दर्शन से हम। मानों आज हमसब हो गये धन्य। गुरु विद्या सागर के दर्शन से हम।। जिसे भी मिले दर्शन विद्या गुरु के। मानव जीवन उनका सफल हो गया। कलयुग में भी देखो सतयुग जैसे मुनिवर। चलते फिरते तीर्थंकर कहते लोग उन्हें।। गुरु विद्यासागर के दर्शन से हम। मानों आज हमसब धन्य हो गये।। चारों दिशाओं में ऐसे मुनिवर। बहुत कम हमें देखने को मिले। त्याग और तपस्या की वो एक मिसाल है। साक्षात जैसे वो सबके भगवान है।। गुरु विद्यासागर के दर्शन से हम। मानों आज हमसब हो गये धन्य।। मुझे जैसे ही मिला गुरुवर का आशीर्वाद। मानों आत्मा में मेरे कमल खिल गया। ना अपनी रही सुध तब और न कुछ और दिखा। बस...
भोला आतंकी
कविता

भोला आतंकी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** भोला दिखने वाला मानुष, दिल से सच्चा नहीं होता। सीधेपन की आड़ में देखा, खुलासा तक नहीं होता। वो दुनिया भर की नजरों में, गौ जैसा बन जाता है। रहस्य भरे तार खुल जाए, आतंकी कहलाता है। मासूमियत ओढ़े चेहरा, भीतर बहुत दरिंदा है रखे हैं आतंकी संबंध, जांच काज पेचीदा है तार जुड़े हुए विदेशों से, फड़कता भी परिंदा है सत्ता सुरक्षा ढिलाई पाकर, सिद्धू जान गंवाता है वो दुनिया भर की नजरों में, गौ जैसा बन जाता है रहस्य भरे तार खुल जाए, आतंकी कहलाता है। भोला दिखने वाला मानुष, दिल से सच्चा नहीं होता। सीधेपन की आड़ में देखा, खुलासा तक नही होता। छापों का भी डर नहीं तनिक, मनुज बनता है सत्कर्मी राजनीति के दांवपेंच में, बनता धूर्त हठधर्मी माफिया गैंग के राजदार, जो हत्यारे और कुकर्मी शासन कानूनों की जकड़न, चोला बाहर आता है वो दुन...
साहस
कविता

साहस

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** अब ठान लिया, साहस से उस पथ को चुनना है। जिस पथ को बागों ने फूलों से संवारा है। साहस ही मुझको, सपनों से होकर मंजिल तक ले जाएगी। साहस ही मुझे सूरज सा चमकायेगा।। अब चुनता हूं, उस पथ को, ऊंचे नीचे पहाड़ी रास्ते। टेढ़े-मेढ़े रास्ते,‌ पथरीली रास्ते। साहस से ही रास्ता बनाऊं। रास्ते भी नऐ हैं, नये अरमानों के बीच चौराहों को देखूं।। रास्ता अपना खोजूं साहस से ही नये, लक्ष्यों तक पहुंचूं।। अट्टहास करूं, जोर-जोर से शोर मचाऊं।। अपने निर्णय से लोहे को ही झुकाऊं। चमकीले पत्थरों से हमेशा दूर हो जाऊं। अब साहस से ही चलना है।। दिन-रात खपना है, लक्ष्य अब लंबा लगता नहीं। सपनों से ही हौसलों को बढ़ाऊं। मुश्किलें मुझे झुका ना सकीं।। सफलता की कोई तारीख तय नहीं। साहस ही तो मुझे, नई सोच, कार्य उत्कृष्टता से, सफलता की सीढ़ियां चढ़व...
कैसा जीवन बिना जल ?
कविता

कैसा जीवन बिना जल ?

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** पीने लायक जल, कितना बचा है धरा पर? फ़िकर करे हर पल, अब इसी अहम मुद्दे पर! लोगों की चाल-ढाल, और बदले है सबके आसार बहा रहे हैं जल, मानो है जल निर्माण का आधार। आबादी ने किया बेहाल, बढ़ रही है बडी तेज रफ्तार प्रकृति का वरदान जल, बिक रहा है सरेआम बाजार। वसुन्धरा का दिया जल, बनाकर रख दिया है व्यापार मिल नहीं रहा जल, गरीब हो गए सब लाचार। उसका हो गया जल, जिसका बल है तेजतर्रार निर्बल को नहीं जल, दया की कोशिश है बरकरार। कैसा जीवन बिना जल? मानव करो प्रकृति का ऐतबार बचाते रहो जल, एक बूंद भी न जाए बेकार। भावी पीढ़ी का उज्ज्वल, चलो कर ले हम बेड़ा पार 'जलजला' बन गया जल, सुन लो माँ प्रकृति की गुहार।। परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग...
कभी खिलाफ थे…
कविता

कभी खिलाफ थे…

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** कभी खिलाफ थे, इश्क में जुदाई के हम ! आज दर्द जुदाई के, गुलाम हो गए हम..!! ना जी सकते है, न मर सकते है हम ! दर्द जुदाई का, बया न कर सकते है हम..!! देखे थे सपने बनाने को उन्हें हम-दम ! सपने तो आज भी है, पर टूट गए हम..!! साथ मिलकर पेड़ो में लिखे थे जो नाम ! वो नाम आज भी है, पर छूट गए हम..!! ना अपना, ना पराया कह सकते है उन्हें ! साथ जीने मरने की कसमें खाए थे हम..!! कभी पास थे उनके, अब दूर हो गए हम इश्क की गलियों में, मशहूर हो गए हम..!! साथ मिलकर बिताये है हमने जो लम्हें याद कर उन्हें अश्क में डूब जाते है हम..!! इश्क से पहले रंगीन थी जिंदगी हमारी ! अब जिंदगी तो है, पर रंगहीन हो गए हम..!!! कैसे कह दूँ उनसे हमारा वास्ता ना रहा कुछ पल सही साथ तो चलें थे हम…!!! परिचय :- प्रीतम कुमार स...
पेड़ लगायें-धरा बचायें
कविता

पेड़ लगायें-धरा बचायें

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सवा लाख वर्षों में अब तक, हुई न इतनी गरमी। ताप बड़ा धरती पर इतना, हुई विलोपित नरमी। दिन दिन बढ़ता तापमान पर, कारण भी हम सब हैं। बेकरार क्यों मौसम करता, साधन भी जब सब हैं। अपनी खुशियों की खातिर ही, वृक्ष धरा से काटे। वसुधा के सारे हिस्से ही, कंक्रीट से पाटे। वृक्ष हमारे सहयोगी हैं, हमने समझ न पाया। वृक्ष काट धरती खाली की, अब जलती है काया। चोली दामन जैसा ही है, सदाबृक्ष से नाता। सहजीवन है बहुत जरूरी, नहीं निभाना आता। गरल युक्त वायु लेकर भी, प्राणवायु हैं देते। राहगीर को छाया देकर, हैं थकान हर लेते। वन संपदा वृक्ष देते हैं, फल प्रसून देते हैं। आँखों को हरियाली देकर, ताप सोख लेते हैं। वृक्षों के सँग नमक हरामी, हम सब ने ही की है। गर्मी पड़ी जानलेवा जब, भूल सभी ने की है। अड़तालिस ...
सुरभि मुखरित पर्यावरण
कविता

सुरभि मुखरित पर्यावरण

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** हमारा प्यारा प्यारा सुरभित मुखरित पर्यावरण। संरक्षण करना कर्तव्य हमारा , सृष्टि कर्ता प्रकृति। अमूल्य खजाना , मानव को मिली अनमोल भेंट। प्रकृति का पाया प्रथम उपहार भू धारण करती, पालकी मानव को धरा धारण किए, हरे-हरे पत्र, पल्लव, लता, वृक्ष, पुष्प फसलों से लहलहाती। हर्षित मंत्रमुग्ध अंतस अनुभूत आनंद दाता पत्र-दल पुष्पदल सुवास बरसा सुगंधित बयार बही उर। आनंद संचार हुआ, सुरभित मुखरित पर्यावरण किया, पुष्प दलों पर तितलियां और भौंरे मंडरा-मंडरा रसपान। कर लुभाते, बसंत ऋतु नवअंकुर का अभिनंदन कर, प्रकृति का पाया द्वितीय उपहार सुंदर नभ-मंडल। सूर्य, शशि और तारे जहां स्थित धरा पर नदी, ताल, झरने कल-कल करती उर में अपनी अमित छाप छोड़ती, प्रकृति का पाया तृतीय उपहार शुद्ध पवित्र समीर, मानव। जीवों पशुओं को जीवनद...
छड़ी
कविता

छड़ी

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** कोने में रखी दुबकी हुई सी, उपेक्षित नजर आती, बाप दादाओं से विरासत में मिली, अमूल्य धरोहर एक छड़ी , छड़ी शब्द से कुछ यादें ताजा होती हैं। मास्टर जी की दिल दहलाने वाली छड़ी जो हाथ पे निशान छोड़ जाती थी, बाबूजी की सैर पर जाने वाली छड़ी जिसके साथ वे रौबदार दिखते थे, अपना दबदबा बनाए रखते थे, एक फौजी अधिकारी की घुमाती छड़ी जो अपनी शानदार मूंछों को सहलाते युद्ध के कारनामे बतलाते थे, कमर झुकी शरीर का बोझ ढोती छड़ी, बीमार को सचेत करने वाली छड़ी, एक अंंधे लाचार का सहारा जो बिना छड़ी के रास्ता नहीं कर सकता पार, मुन्ने के खिलोनों की शोभा बढ़ाने वाली छड़ी, पतली, कड़क, सीधी, सर्पाकार डिजाइन वाली, मूठ वाली, भूरी, काली, सफेद, कई रंग की, लकड़ी की, प्लास्टिक की कई किस्म की, अनोखी, जादुगर छड़...
पिता
कविता

पिता

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** धरती पर जीवन संबल और शक्ति है पिता। बच्चों के लिए पूंजी और पहचान है पिता। स्नेह, प्यार और आशीर्वाद से छलकता, रिश्तों के सागर में गहरा पानी है पिता। रोटी, कपड़ा और मकान है, बच्चों की किस्मत और शौहरत है पिता। एक परिवार का अनुशासन, घर की छत और बच्चों का अभिमान है पिता। बिना पिता के संतान होती अनाथ, घर परिवार की सुरक्षा और संस्कार है पिता। फूलों के बाग़, बच्चों के खिलौने, घर के भगवान, पालन और पोषण है पिता। सारे रिश्ते नाते उनके दम से, बच्चों की मां की बिंदी और सिंदूर है पिता। महकते चमन के पहरेदार तो, परिवार की धरती और आसमान है पिता। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मे...
कैसे-कैसे रिश्ते
कविता

कैसे-कैसे रिश्ते

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** छिन लिया आसरा पेड़ को कटते देख दूसरे पौधे रो रहे थे कौन समझे इनकी पीड़ा नेक इंसान ही समझते उसे लगा होगा जैसे, माता-पिता के मरने पर रोते है कैसे रिश्ते यह जानते हुए भी खोने दे रहा है खुद के जीने की प्राण वायु पेड़ की खोल के रहवासी उड़े भागे थे ऐसे जैसे भूकंप आने पर लोग छोड़ देते है मकान थरथरा कर गिर पड़ा था पेड़ पेड़ के रिश्तेदार, मूक पशु-पक्षी खड़े सड़क पर, बैठे मुंडेरों पर आँखों में आँसू लिए विचलित अस्मित भाव से कर रहे संवेदना प्रकट और मन ही मन में सोच रहे क्यों छिन लिया आसरा हमसे क्रूर इंसान ने। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार ...
मेरी आवाज
कविता

मेरी आवाज

श्रीमती गार्गी राय सतना (मध्य प्रदेश) ******************** मैं मेरा आज और मेरा समाज इन तीनों में कभी सामंजस्य नहीं बैठा पाइ मेरी आवाज आवाजों के रूपों में परिवर्तन करके देखा- करुणा से भरी आवाज ने लोगों के हृदय को द्रवित करने के बजाए शंकित किया खुशी की आवाज ने लोगों की नींद उड़ा दी और मेरी क्रांतिकारी आवाज ने मुझे असहाय बना दिया। परिचय :- श्रीमती गार्गी राय निवासी : सतना (मध्य प्रदेश) शिक्षा : स्नातकोत्तर (हिंदी ) बी.एड. अभिरुचि : साहित्य एवं लेखन फेसबुक पर विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित, पत्रिका एवं अखबार में रचनाऍं प्रकाशित, साझा संग्रह प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करव...
खुद से लड़ना नहीं आता
कविता

खुद से लड़ना नहीं आता

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** अजब कशमकश में हूँ कुछ समझ में नहीं आता मेरे यार समझते हैं मैं समझना नहीं चाहता जानता हूँ मेरे ग़म से परेशान है हर कोई खुश रहना चाहता हूँ पर ग़म छुपाना नहीं आता चाहत को मेरी उसने मज़ाक बनाकर रख दिया फिर भी बेवफा को दिल से मिटाना नहीं आता घुट-घुट कर जी रहा हूँ हर पल ज़िन्दगी का मर भी जाएँ प्यार में, लेकिन बहाना नहीं आता सोचते हो तुम कि डरता हूँ मुसीबतों से कमज़ोर नहीं हूँ, लेकिन खुद से लड़ना नहीं आता बहा देता ग़म को कब का अपने दिल से तेरी तरह अफसोस, लेकिन लिखना नहीं आता परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
ग्लोबल वार्मिंग
कविता

ग्लोबल वार्मिंग

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** मानव विज्ञान से खेल गया, कार्बनडाई ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड और मेथेन में वृद्धि कर अब तक गर्मी झेल गया।। बडा खुश हैं मानव अपने कारनामों से, आविष्कारों जैसे सुई से वायुयानो से।। झेल न सकेगा गर्मी और अब मानव, भविष्य में बनेगी जब यह दानव।। दानव लेगा अनेक रुप, मानव हो जायेगा कुरूप।। प्रथम होगा ऑक्सीजन की कमी, लगेगा उसको कि साँस अभी थमी।। द्वितीय होगा ओजोन छिद्र, पराबैंगनी करेंगी मानव को दरिद्र।। होंगे कैंसर और त्वचा रोग, मिलेगा अपने कर्मों का भोग।। तृतीय होगा फसल उत्पादन गिरावट, कैसे करेगा मानव अन्न में मिलावट।। मिलावट का फल एक दिन पाएगा, बिन अनाज भूखा ही मर जाएगा।। चतुर्थ होगा हिमखंड पिघलाव, जम जायेगे पृथ्वी पर बाढ़ के पद पॉंव।। पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी, मानवता पछता भी ना पाएगी।। जब ये मु...
अंकुरण का जश्न
कविता

अंकुरण का जश्न

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन की सुंदरता वन से, करो रक्षा धरती की मन से। धरा हरित और शोभित वन हो, पोषण का संकल्प सघन हो। भर दो धरती का कोष अपार, पुनः करो एक बार विचार। यदि नहीं होगी हरीतिमा धरा पर, संकट होगा बड़ा जीवन पर। बंजर भूमि और दूषित वायु, काया रोगी और अल्पायु। मत भूलो जीवन का मूल, लालच को सब जाओ भूल। चहुँ ओर सब वृक्ष लगाओ, अंकुरण का जश्न मनाओ। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...