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पद्य

भक्त माता कर्मा की महिमा
भजन, स्तुति

भक्त माता कर्मा की महिमा

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** गाओ जी मां कर्मा की महिमा गाओ जी मां कर्मा की महिमा जीवन सुखमय आराम है... जय कर्मा बोलो, जय कर्मा बोलो जय कर्मा बोलो, जय कर्मा बोलो नारी शक्ति में कर्मा महान है... कहलाती है मेवाड़ की मीरा तेलीय वंश की है भक्त हीरा जगन्नाथ पुरी में उनकी धाम है... गाओ जी मां कर्मा की महिमा जीवन सुखमय आराम है... बचपन से ही भक्ति भाव में लगी है भक्त बनके भगवान की दृष्टि जगी है खिचड़ी खिलाना सदा काम है ... गाओ जी मां कर्मा की महिमा जीवन सुखमय आराम है... अपनी प्रतिभा से आभा बिखेरती जन मानस में कल्याण कारज करती कुल देवी को करते सलाम है... गाओ जी मां कर्मा की महिमा जीवन सुखमय आराम है... भावों की धनी और विचारों की मणि है सद्भाव सद्कर्म से ही संत शिरोमणि है नारी शक्ति व भक्ति में नाम है ... ...
बचपन
कविता

बचपन

मनीष कुमार सिहारे बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** ना कुछ पाने का शौक था ना कुछ खोने का गम था बिना कपड़ा के तन था मिट्टी से सना बदन था मां के हाथों में डंडा कंचा से जेबें तन (तन्यता) था घर में सबका लाडला मै फिर भी मैं अतलंग था बालपन में ऐसे जैसे उड़े गगन पतंग था ना चिंता, ना फिकर किसी का ना खोया किसी में मन था कुछ ऐसा मेरा बचपन था कुछ ऐसा मेरा बचपन था ना कोई छल कपट ना मित्रों में फरेब था मित्रता की एक डोरी बगावत टोली समेत था विद्यालय की वेश भूषा मां पहनाएं शर्ट सफेद था वापसी की संध्या बेला वही शर्ट बलेक (धूल धूल) था मित्रों के साथ में दूर घर से मन मलंग था फिर मां की पूजा-आरती से लाल लाल बदन था कुछ ऐसा मेरा बचपन था कुछ ऐसा मेरा बचपन था ना थिरकते पांव जमीं पर ना थिरकते आसमान था मैं मां का लाडला इस बात का अभिमान था दौड़ धूप ऐसे जैसे बिल्कुल न...
हे नववर्ष अभिनन्दन है…
कविता

हे नववर्ष अभिनन्दन है…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** हिन्दू नववर्ष तुम्हारा अभिनन्दन है हर्षित है जग सारा करता तुम्हारा वन्दन है सूरज की नवल किरणें करती जग वन्दन है अभिनन्दन-अभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा वन्दन है फूले किंशुक पलाश फूली सरसों पीली फूले फूल तीसी नीली-नीली हुलसित पक गई खेतों में गेहूँ की सुनहरी बालियाँ कमल खिली लगी मुस्कुराने ताल हुई हर्षित बागबां महक उठे जब खिले फूल-फूलन खेतों में मेड़ों में सुवासित कछारन कूलन अतृप्त मन प्यासी धड़कन मिटने लगी जलन आनन्दित होकर चुन-चुन गजरा बनाई मालिन धरा ने ओढ़ ली सुनहरी चादर की किरणें मोतियों ज्यों चमकने लगी पत्तों में ओस की बूंदें लहक-लहक लहकने लगी कानों के बूंदें स्मित रक्तिम अधरों पर मुस्कुराती जल बूंदें सतरंगी रंगों से रंगने लगी घर आंगन और बाग बहकने लगी आम अमरैया दहके मन की आग फूले फूल टेसू के ऐसे ...
जुड़े गाँठ पड़ जाती
कविता

जुड़े गाँठ पड़ जाती

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** दोनों तरफ खिचाव बहुत है, इसीलिए रस्सी टूटे। जीवन की आपाधापी में, खून मयी रिश्ते छूटे। है जीवन संग्राम जटिल अति, सब अपने में मगन हुए। धरती को धरती पर छोड़ा, समझ रहे वह गगन छुए। जड़ के बिना कोई भी पौधा, नहीं फूल फल सकता। रहे प्यार से जो अपनों सँग, कभी नहीं है थकता। खींचतान आपस में कर के, चले तोड़ने रिश्ते। जो अपनों को पीड़ा देते, खुद पीड़ा में पिसते। स्वार्थ हो गया सब पर भारी, टूटी सबसे यारी। कहीं खून के रिश्ते टूटे, टूटी रिश्तेदारी। रस्सा कस्सी की रज्जू ज्यों, अतिबल से टूटी है। उसको तोड़ रहे हैं वे, जिनकी किस्मत फूटी है। गर हिल मिल कर रहें साथ में, ताकत बढ़ जाती है। एक साथ जब चलती चींटी, पर्वत चढ़ जाती है। रिश्तों की रज्जू नाजुक है, बहुत अधिक ना खींचें। अपनेपन, स्नेह- प्यार से, ...
लहरें
कविता

लहरें

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों टकराती हो कूल से जानती नहीं तुम्हें लौट आना होगा पुनः पवन के थपेड़े सहने के लिए तुम लहर हो, नारी हो सहनशक्ति का पर्याय बनो। तलाक के स्थिर जल में तुम्हें बहना नहीं है केवल कूल से टकराकर लौटना होगा प्रत्यागमन के लिए पवन के साथ खेलते समय बीता है बीच तडाग के तड़क तुम्हें त्याग देगा कूल के लिए तुम जानती नहीं, ना समझ पाती हो पानी पवन का वार्तालाप जो स्वयं के सुख के लिए तडाग की सुंदरता के लिए तुम्हें संघर्ष करने के लिए कूल तक भेजते हैं दूर बहुत दूर से तुम्हारा छटपटाना देख उल्सीत हो फिर से पवन पानी मिल तुम्हें धकेलते है अपनी सुंदरता के लिए प्रकृति प्रेमी को निहारने के लिए उसे गुनगुनाने, कलम चलाने के लिए बाध्य करते हैं ताकि इतिहास रचा जा सके जनमानस में स्फुरण भर सके।। परिचय :- इंदौर निवास...
रघुवर कब तक आओगे
गीत

रघुवर कब तक आओगे

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** मात्रा भार--१६--१४ जग से अत्याचार मिटाने, रघुवर कब तक आओगे। कब से राह तकें हम तेरे, कब दर्शन दिखलाओगे।। क्रंदन करती धरती माता, कष्ट नहीं सह पाती है। अपने पुत्र जनो का दुखड़ा, इसको खूब रूलाती है।। कब इसके रूखे उपवन में, प्रेम सुधा बरसाओगे।। छिड़ी हुई है जंग जहाॅ में, निज प्रभुता दिखलाने को। साधन हीन लगे हैं जग में, निज अस्तित्व बचाने को।। साधन वानो को कब आकर, राह सही दिखलाओगे।। धरती से अम्बर तक खतरा, साफ दिखाई देता है। कुदरत रहकर मौन हमेशा, सारे गम सह लेता है।। धधक रही इस सृष्टि को कब, आकर तुम हर्षाओगे।। नहीं सुरक्षित जग में कोई, आज़ यहाॅ हैं नर नारी। मानवता पर भी छाई है, आज यहाॅ संकट भारी।। राम इन्हें मानवता का कब, आकर पाठ पढ़ाओगे।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरार...
नारी सौंदर्य
कविता

नारी सौंदर्य

नीलू कानू प्रसाद उदलाबारी (पश्चिम बंगाल) ******************** नारी हूं मैं, अपने घर की खूबसूरत, किलकारी हूं मैं, आज बेटी हूं, तो कल किसी और, घर की लक्ष्मी, कभी दुर्गा तो कभी काली, नारी हूं मैं। पूरा संसार चलाने की, ताकत रखती हूं मैं, अपने पिता की शान हूं मैं, मेरी पहचान, मेरे घुंघराले बाल, मेरी एक मुस्कान, जो मेरे पूरे परिवार की, गमों को भुला देती है। नारी की कोमलता इतनी कि, हर कठोरता को पिला देती है। परिचय :- श्रीमती नीलू कानू प्रसाद निवासी : उदलाबारी (पश्चिम बंगाल) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अ...
नव बना रहे हिंदुस्तान
कविता

नव बना रहे हिंदुस्तान

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** संवत् विक्रम, करते हैं तुमको नमन नव ऊष्मा बन लाए नव चितवन है तुमसे नवागत गुड़ी पड़वा चैत्र नवरात्र का है जलवा बैसाखी करती मन पुरवा राजीव लोचन आए पलना झूलेलाल की झांकी महान् नवरोज की भी रखते शान आम्रफल से सज गया उपवन देखो, नव पल्लव, नव धान वसुधैव कुटुंबकम् की तुम पहचान नव निधि साथ लिए नव बना रहे हिंदुस्तान। परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप...
ज्ञानी सन मिलो तो
आंचलिक बोली

ज्ञानी सन मिलो तो

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी ज्ञानी सन मिलो तो ज्ञान मिलही सच्चाई के रास्ता मिलही, अज्ञान से मिलो तो गलत व्यवहार सिखे ला मिलही.! संसार मे दो तरह के इंसान अच्छा बुरा तोला इही मे चुने ला पढही, अच्छा बुरा के संगत ला परखे ला पढही.! अच्छाई के बात बताही जो जन्म दिये मां बाप और गुरु, ये दुनिया मे इज्ज़त बनाही तोर व्यवहार.! संगत ला जान ले सुख दुख के रददा ला पहिचान ले, सब के इज्ज़त करले दुनिया मे इज्ज़त सम्मान कमा ले..!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाया...
मन में उठे एक तरंग
कविता

मन में उठे एक तरंग

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** मन में उठे एक तरंग सोच-सोच के हुई मन में उलझन क्या चले मन में विचार कोई ना जाने मन का सवाल कभी इधर तो कभी उधर दौड़ता ही रहता हर पल ना थके कभी, कभी ना हारे होता है फिर भी मन में बात मन की बाते कोई ना जाने होता है मन में क्या क्या व्यथा मैं बताऊं मन की बात सृष्टि को छानकर बैठा है जहां जा ना सके हम वह गया है मन का विस्तार रुकता नहीं मैं कभी करता हूं निश्चर एक सवाल अच्छे बुरे का है समझ मुझे फिर भी है एक उलझन ख्याल मन में है कितना संसार ये बाते मन ही जाने क्या से क्या किया मन में लगे एक सच्चा यह संसार मन की व्यथा अब मैं क्या बताऊं मन में उठे हर बार एक सवाल। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...
मां की अभिलाषा
कविता

मां की अभिलाषा

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** मां की हसरत सिर्फ इतनी सी रही होगी बेटे की गोद में सिर रख कर रोऊं लिपट जाऊं उसके कंधे से कुछ इस तरह कि जैसे बच्चा हो जाऊं उसकी देखरेख में दिन बिताऊं लोरी दे कर वो मुझ को सुलाए खाने का कोर अपने हाथ से खिलाए जब मैं वृद्ध हो जाऊं बचपन में मां बच्चे का जो संबंध है बनता बिना किसी अपेक्षा लिए है होता कुर्बान कर जाती मां अपनी हस्ती भूल कर अपने जीवन की हर मस्ती सुबह उसी से, रात्रि उसी के संग लाड-लड़ाती बदल-बदल कर रंग मां की ममता का ही मोल चुकाना चाहे अगर कोई किशोर तो मां से ना करे तकरार किसी भी रोज़ तो मां से ना करे तकरार किसी भी रोज़ परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...
दरिया से गहराई पूछी
ग़ज़ल

दरिया से गहराई पूछी

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** दरिया से गहराई पूछी। कश्ती से उतराई पूछी। मन में दर्द जगाने वाले, गीतों से तन्हाई पूछी। बूंदे जब बरसी आहिस्ता, बादल से ऊँचाई पूछी। दूर जो चहरा पढ़ न पाई, आँखों से बीनाई पूछी। जाल बिछाती मकड़ी से फ़न, क़ुदरत से दानाई पूछी। हीर से सब उसकी रानाई, राँझे से शैदाई पूछी। अक़बर ने हर बूझे हल पर, बीरबल से चतुराई पूछी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
माँ जगदंबे काली
भजन, स्तुति

माँ जगदंबे काली

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** रक्षा करो माँ जगदंबे काली रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... तुम हो दुर्गा तूम ही काली करती हो तुम अपने बल से सारे जगत की रखवाली मेरी भी रक्षा करो माँ बजगदंबे काली। रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... तुम हो विद्या तुम ही हो महाविद्या मुझे भी विद्या का दान दो माँ काली। रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... तो तुम हो आदि तुम हो अनंत तुमसे है सृष्टि का आरंभ तुमसे ही सृष्टि का अंत रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... तुम हो दयालु तुम हो परम् दयालु मेरे सिर पर भी दया का हाथ रख दो माँ काली रक्षा करो माँ जगदंबे काली रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...
निज उदर की सुवास खोजने
ग़ज़ल

निज उदर की सुवास खोजने

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** निज उदर की सुवास खोजने जाने कितने मृग तड़पे होंगे सुरीली सी ग़ज़ल कहने वाले दर्द से कितनी बार मरे होंगे जो चिराग हवाओं से ना डरे हैं निस्सन्देह उन्ही से दूर अंधेरे होंगे वो जो तूफानों में कश्ती डाले हैं या हैं मजबूर या सिरफिरे होंगे टिके हैं अंधेरों के सामने दीपक सूरज तलक उन्हीं के चर्चे होंगे तमस ने बेशक खुदकुशी की होगी जहां जुगनू चमकते दिखे होंगे!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां...
पिता का साया
कविता

पिता का साया

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** जीवन मे पिता का साया होती है सुकून भरी छाया। पिता से है जो प्यार पाया जीवन में आनन्द समाया। पिता हैं बच्चों का साया जो बुरी नजरों से बचाया। जिसने प्यार सदा लुटाया तभी पिता वो कहलाया। पिता ने गिरने से बचाया अपने को बैसाखी बनाया। पिता ने चलना सिखाया गिरते हुए हृदय से लगाया। पिता ने मुझे खड़ा कराया मंजिल का राह दिखाया। पिता ने कष्टों को भगाया मेरे बोझ कंधों से उठाया। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
उन क्रूरों ने निर्ममता से
कविता

उन क्रूरों ने निर्ममता से

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** https://youtu.be/RiMP3GcPej8 रस-रौद्र, करुण उन क्रूरों ने निर्ममता से बांट दिया जब घाटी को.. आरी बींचो-बीच धरी और काट दिया जब बेटी को? तब भी धधके नहीं क्रोध के हृदय तुम्हारे क्यों शोले? मौन रहे या टाल दिया, तब एक सहिष्णु ना बोले? नन्हे-नन्हे बच्चों को जब वो गोली से भूंज रहे थे? सत्ता लोलुप चतुर लड़इये तब विदेश क्यों घूम रहे थे? 'सर्वानंद या गिरिजा टिक्कू' की ख़ातिर मोम नहीं क्यों पिघली? भारत में रहकर डरने वालों! तब जीभ तुम्हारी विष ना उगली? आज दर्द पर उनके कुछ कुर्सी के दम्भी मुस्काते हैं हँसते नहीं, दरअसल दैत्यवंशी हैं! जात दिखाते हैं। आखिर क्यों? चीखें उनकी कान के पर्दे तुम्हारे फाड़ नहीं देतीं? किसलिए तुम्हारी आँखे उन संग हुई त्रासदी पर ना रोतीं? सहमा नहीं कलेजा बोलो आख़िर क्यों चीत्कारों से.. जले नहीं...
आ गई है
कविता

आ गई है

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी गया, (बिहार) ******************** वो लड़की घर पे कैसे आ गई है शिकन बिस्तर पे कैसे आ गई है कभी जो चाहती थी बस मोहब्बत वो अब जेवर पे कैसे आ गई है कभी कुछ बात हो जाती है घर में ये तूं खंजर पे कैसे आ गई है हर इक कतरा इसी से है परेशां नदी पत्थर पे कैसे आ गई है कोई देखे अगर बदनाम कर दे वो फिर छप्पर पे कैसे आ गई है गजल पनघट पे शरमाती थी कल तक वो अब शॉवर पर कैसे आ गई है परिचय :-  डॉ. जियाउर रहमान जाफरी निवासी : गया, (बिहार) वर्तमान में : सहायक प्रोफेसर हिन्दी- स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, मिर्जा गालिब कॉलेज गया, बिहार सम्प्रति : हिन्दी से पीएचडी, नेट और पत्रकारिता, आलोचना, बाल कविता और ग़ज़ल की कुल आठ किताबें प्रकाशित, हिन्दी ग़ज़ल के जाने माने आलोचक, देश भर से सम्मान। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एव...
आया वसंत
कविता

आया वसंत

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** आया वसंत, आया वसंत हो गया शीत का पुनः अंत सरसों हैं फूल रहे सर्वत्र धरा ने पहना पिला वस्त्र घर से सब निकले धीर संत आया वसंत, आया वसंत हँस रहे बाग में कई फूल अठखेली करते झूल-झूल हो गए सुवासित दिक्दिगन्त् आया वसन्त, आया वसंत भर रही कोकिला मधुर तान भंवरे का भी है मधुर गान भर रहा दिलों में ख़ुशी अनंत परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन...
होली की पिचकारी से
कविता

होली की पिचकारी से

संगीता श्रीवास्तव शिवपुर वाराणसी (उत्तर प्रदेश) ******************** होली की पिचकारी से जीवन की हर क्यारी मे, भर लो रंग प्यार के गहरे, सपने सारे सच होंगे होली तो है होली। सबके सिर चढ़ा रंग गुलाल, मस्ती में झूमे सब आज बच्चे बूढ़े और जवान सबके चेहरे पीले लाल, होली तो है होली। हर चेहरा अपने को ढ़ूढ़े, हुए ऐसे रंग बिरंगे मुखड़े, उम्र का बन्धन तोड़ के झूमे, होली आज उमंग मे झूमे। होली तो होली। सबकी अपनी अपनी टोली, सबकी अपने ढंग की होली, भींग रही साजन संग सजनी, पिय मेरे मैं पिय की होली, होली तो है होली। सखी सहेली से एक बोली, पिय न आए आया होली, आ जाएंगे पिया तुम्हारे, पहले हम संग खेलो होली। होली तो है होली। परिचय :- संगीता श्रीवास्तव निवासी : शिवपुर वाराणसी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं ...
होलिका दहन
कविता

होलिका दहन

प्रभात राजपूत ''राज'' गोंण्डवी गोंडा (उत्तर प्रदेश) ******************** होलिका दहन की कहानी पुरानी है, यह असुर राज की बहन से शुरू हुई कहानी है।। होलिका दहन का पर्व हमें संदेश देता है, भक्तों पर अत्याचार होने पर भगवान स्वयं अवतार लेता है।। होलिका दहन का राज हमें आकर्षित करता है, जो दुष्ट होता है, वह स्वयं की अग्नि में ही जलता है।। यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाते हैं, सब लोग मिलकर होली का जलाते हैं।। इस त्यौहार के अनेक नाम हैं, धुलेंडी, धुलडी, धूलि विख्यात नाम है।। होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी, यह दुष्ट और असहन थी।। भगवान खुद को हिरण्यकश्यप समझता था, वह मनुष्य को जानवर समझता था।। होलिका को न जलने का वरदान प्राप्त था, इसीलिए होलिका को अभिमान व्याप्त था।। भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर बैठ गई, भक्त बाहर आ गया होलिका जल गई।। अनेकों ...
अनेकता में एकता की नगर चौरासी
कविता

अनेकता में एकता की नगर चौरासी

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** हम सुनाते है एक ये प्यारी बात, ये है हमारी नगर चौरासी की बात। ये बात है हमारे राजगढ़ (धार) की जहां दिखती है रोनक त्यौहारो की, परंपरा है निभती मेरे राजगढ़ (धार) में एक प्यारा सा भारत जैसे बसता है हर एक की निगाहों में सुना है हमने राजगढ़ (धार) की मिट्टी की है एक खास बात सबको अपनो से जोड़े रखती है ये ना करती कोई भेदभाव। नगर चौरासी देती सन्देशा यही हम सब एक है इसकी बात यही एक पंगत बैठ भोजन प्रसाद करे सभी धर्म और जाति एक समान हक से रहे। सबकी जुबान अलग ही सही, पर हर कदम एकसाथ चले, अनेकता में एकता की आओ हम कायम मिसाल करें। पंगत में बैठकर अच्छी संगत के साथ आओ कुछ इस मिट्टी की बात करें हमारा नगर चौरासी है सबसे निराला ये बात को हम आज साकार करें दुनिया को देती यही प्रेरणा। नगर चौरासी ओर देती है एक संदेश, प्यार से रह...
बन्द आँखों में ख़्वाब जैसा है
ग़ज़ल

बन्द आँखों में ख़्वाब जैसा है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** बन्द आँखों में ख़्वाब जैसा है। जो नज़ारा सराब जैसा है। भाव चेहरे के बूझने वालों, क़ायदा ये क़िताब जैसा है। नाम उसका बड़ा नहीं लेक़िन, काम उसका नवाब जैसा है। शर्म से हाथ मुँह पे रख लेना, ये तरीक़ा नक़ाब जैसा है । दूर होकर भी हमको भाता है, शख़्श वो माहताब जैसा है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्र...
सुन कान्हा फागुन आयो
गीत, भजन, स्तुति

सुन कान्हा फागुन आयो

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** सुन कान्हा फागुन आयो। संग होरी त्यौहार लायो। तू होरी पै मोय लाल, पीलो, हरो, नीलो रंग पिचकारी। भर-भर डारैगो। हां! राधा फागुन आयो। संग होरी त्यौहार लायो। तू भी होरी पै मो पै लाल, पीलो, हरो, नीलो रंग पिचकारी। भर-भर डारैगी। मैं और तू होरी रंगन। तै संग खेलेंगे, एक-दूजे के। नयन देखेंगे मैं तोरे नैनन में। तू मोरे नैनन में प्रेम रंग देखेगो। होरी ऐसी खेलेंगे ज्यो जल। मध्य उछरे त्यों हमारो। हिय प्रेम रंग होरी से गदगद। होय जात उमंग संग हर्षित हो। उर मयूर सौ नाचत अरू हम। द्वौ ऐसी प्रेम रंग होरी खेले। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
मीरा तो थीं प्रेमदिवानी
कविता, भजन

मीरा तो थीं प्रेमदिवानी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो थीं प्रेमदिवानी। कान्हा की थीं वे अनुरागी, माना उनको ही नित स्वामी। महलों का सुख रास न आया, प्रेम डगर की थीं अनुगामी। बहुत मनाया नित्य उन्हें पर, राणा जी की एक न मानी। कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो धीं प्रेम दिवानी। राणा भेजे एक पिटारा, मंशा थी मीरा डर जाएँ। खोलें जब तत्काल उसे तो, नाग डसे उनको, मर जाएँ। नाग बना माला सुमनों की, विस्मित थे राणा अभिमानी। कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो थीं प्रेमदिवानी। राणा ने फिर विष भिजवाया, कह प्रसाद है यह मोहन का। राणा थे भारी अचरज में, पी मीरा ने शीश झुकाया। श्याम भजन गाकर मंदिर में, जोगन बन बैठी वह रानी। कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो थी प्रेमदिवानी। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/...
ज़िन्दगी के नाटक मे
कविता

ज़िन्दगी के नाटक मे

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** ज़िन्दगी के नाटक मे... हर कोई इस तरह रम गया है, मानो उसे भी ना पता कि वो कौन है। बस दिखावे के चक्कर मे, दिखावटीपन की ज़िन्दगी जी रहा है। असल ज़िन्दगी से वो खफा है, क्योकि अभी वो ज़िन्दगी के नाटक मे रमा है। यहा किसी को नही पता की, कौन अपना है कौन पराया है। हर कोई यहां अपनी मंजिल को पाने मे लगा है, असल ज़िन्दगी का तो उसे पता ही नही। ज़िन्दगी के नाटक मे... सभी ने झूठ का मुखौटा बेखुभी पहना है। हर कोई अपनी ज़िन्दगी से बेख़बर है, इस ज़िन्दगी के नाटक मे। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं...