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पद्य

माधव ने मन मोह लिया
छंद

माधव ने मन मोह लिया

अवनीश सूर्य हर्नियाखेड़ी, महू (मध्यप्रदेश) ******************** सवैया छंद माधव ने मन मोह लिया पर माधव के मन भा गयी राधा। माधव वेणु बजात रहे यमुना तक दौड़ लगा गयी राधा। माधव की रज शीश लगा कर माधव में ही समा गयी राधा, माधव ही जगपालक हैं अरु माधव नाम बना गयी राधा। परिचय :-  अवनीश सूर्य स्थाई निवासी : बारापत्थर, सिवनी, (मध्यप्रदेश) वर्तमान निवासी : हर्नियाखेड़ी, महू, इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिय...
इम्तिहान
कविता

इम्तिहान

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** वो सिरफिरी हवा थी सम्हलना पड़ा मुझे हर पल इम्तहानो से गुजरना पड़ा मुझे! मेरी यादें फिज़ा में हर तरफ महक जाये इश्क़ में तेरे इस तरह बिखरना पड़ा मुझे डाल दी है भंवर में कश्ती सम्भालो तुम इसी उम्मीद से समंदर में रहना पड़ा मुझे मेरे हौसलों में इजाफा कम न हो जाए आँधी और तूफानो में उतरना पड़ा मुझे गुजरे जिधर से हर एक राह रोशन रहे जला कर दिल उजाला करना पड़ा मुझे उसकी बेचैनियों को भी सुकून मिल जाये रात भर उसकी आँखों में ठहरना पड़ा मुझे इश्क़ में सनम मेरा कहीं रुसवा न हो जाये दरमिया इश्क़ के फासला रखना पड़ा मुझे किनारे पर बैठ कर कुछ आता नहीं नज़र डूब कर सागर के गौहर देखना पड़ा मुझे फूलों से निकलकर जो आ जाये "मधु" करिश्मा ये कुदरत का कहना पड़ा मुझे परिचय :- मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : ...
सार-सार को जान लें
कविता

सार-सार को जान लें

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* गायन शोध नवाचार सकल नाम संज्ञा कहो, बदले सर्वनाम। करत काम किरिया लखो, कहत है कवि मसान।। व्यक्ति भाव जाति अरू, समूह द्रव्य को ज्ञान। पांच भेद संज्ञा कहो, कहत है कवि मसान।। निश्चय व अनिश्चय कहो, प्रश्न पुरुष निज जान। सर्वनाम के भेद छः, अंतिम संबंध मान।। कब कहां कैसे किसका, कौन कौनसा ज्ञान? क्या क्यों को भी जानिए, प्रश्नों की पहिचान?? कर्ता कर्म करण अरू, सम सम्बोधन जान। अपादान अधिकरण अरु, संबंध कारक मान।। परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से ह...
सन्नाटा
कविता

सन्नाटा

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** एक सन्नाटा सा छाने लगा है अंदर ही अंदर। बहुत कुछ मेरा अंतर्मन कहना चाहता है, मगर पता नहीं क्यों? लपक कर बैठ जाता है ये सन्नाटा जुबान पर। बहुत सी बहती हुई वेदनाए ह्रदय तल से बाहर निकलना चाहती हैं, मगर पता नहीं क्यों? ये सन्नाटा इन वेदनाओं को अपनी सर्द हवाओं से अंदर ही अंदर क्यों जमा देता है? परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कवि...
पिंजरे के परिंदे
कविता

पिंजरे के परिंदे

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** आकाश में उड़ते परिंदे को तुम किस गुनाह की सजा देते हो..! अपने खुशियों के खातिर तुम पिंजरे में कैद कर लेते हो..!! अपनों से उन्हें तुम करके दूर पिंजरे में कैद क्यों करते हो..! उनका भी अपना एक जीवन है उन्हें जीने क्यों नहीं देते हो..!! इंसान हो तुम, इंसान ही रहो दानव सा काम क्यों करते हो..! उड़ने की उन्हें भी आजादी दो हक उनका तुम क्यों छीनते हो..!! बंद पिंजरे में तड़पते परिंदे, तरस नहीं तुम खाते हो..! आकाश में उड़ते परिंदे को तुम किस गुनाह की सजा देते हो..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्री...
गणतंत्र दिवस
कविता

गणतंत्र दिवस

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** आओ मिलकर तिरंगा लहरायें, गणतंत्र दिवस की शान बढायें | तिरंगे की महत्ता को समझाकर, आओ मिलकर तिरंगा लहरायें || सुभाषचंद्र ने यह पहले लहराया, आओ मिलकर...... भारत वासियों को हम समझायें | संविधान हमारा लागू हुआ था, गणतंत्र दिवस पर बतलायें || आओ मिलकर... असंख्य बलिदानों का परिणाम, समाया है तिरंगे में बतलायें | चरखे का ही नहीं परिणाम, भारत को हम ये समझायें || आओ मिलकर...... सुखदेव-भगतसिंह-राजगुरु-राजगुरु के, महाबलिदान कभी न भुलायें | बलिदान चन्द्र शेखर आजाद का, राष्ट्र ये कभी भी न भुलाये || आओ मिलकर...... स्वतंत्रता मिली असंख्य शहीदों के, बलिदानों से ये पहले समझायें | तभी लिख पाये संविधान हम, यात्रा गणतंत्र की समझायें || आओ मिलकर..... तिरंगे की मर्यादा को नवभारत, सदा सत्यनिष्ठा से समझाये | इससे छल ...
मुझको दुनिया में आने दो
कविता

मुझको दुनिया में आने दो

डॉ. जबरा राम कंडारा रानीवाड़ा, जालोर (राजस्थान) ******************** मुझको दुनिया में आने दो। बेटी का हक बस पाने दो।। सज-धज के शाला जाने दो। पढ़-लिख के आगे आने दो।। अपनी प्रतिभा बढवाने दो। ऊंचा पद मुझको पाने दो।। पैरों पे होय खड़ी जाने दो। कमाऊंगी कुछ कमाने दो।। जग में मुझको चर्चाने दो। रुतबा अरु रौब जमाने दो।। स्वतंत्र बनूं उड़ जाने दो। चिड़िया सा गाना गाने दो।। खुशियों के संग छाने दो। पर्व-उत्सव भी मनाने दो।। सबके मन को बहलाने दो। दादी को लाड़ लड़ाने दो।। सबका मुझे प्यार पाने दो। अपनी भी बात बताने दो।। मुझे दांव-पेश लड़ाने दो। अपना हुनर दिखलाने दो।। मयूरी सा नृत्य दिखाने दो। कोयल सा राग सुनाने दो।। मुझको भी स्वप्न सजाने दो। हंसने और मुस्कुराने दो।। परिचय :- डॉ. जबरा राम कंडारा पिता : सवा राम कंडारा माता : मीरा देवी जन्मतिथि : ०७-०२-१९७० निवा...
जन्मदिन से पुण्यतिथि तक
कविता

जन्मदिन से पुण्यतिथि तक

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी जब .... जन्मदिन से पुण्यतिथि मनाती है। वो कितना टूटी है पल-पल। अपने टूटे टुकड़ों को, जोड़कर पूरा होने का, नाटक बखूबी निभाती है। जिंदगी जब जन्मदिन से पुण्यतिथि मनाती है। कुछ नहीं ....बदलता। लेकिन बहुत कुछ बदल जाता है। चेहरों पर से चेहरे उतर जाते हैं। आसपास की भीड़ के, रास्ते बदल जाते हैं। जिंदगी जब जन्मदिन से पुण्यतिथि मनाती है। बहुत कुछ कहने को होता है। बहुत कुछ कहने को होता है। लेकिन शब्दों में एक, अंदर ......तक। एक घुटनभर जाती है। कैसे बदल जाती है जिंदगी। उस शक्स की, अहमियत पल-पल याद आती है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
कलमकार की कलम
कविता

कलमकार की कलम

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अवसर अलग सजधज कर, दमखम रखकर आता है जैसी सोच हृदय मे रखता, साम्राज्य वैसा ही पाता है। बहुतों को देखा बहुधा बिना दवा के भी काम चलाते तन को बीमारी से बचाने खुद अपनी क्षमता बढ़वाते असाध्य कष्ट हो जाने पर चिकित्सक को बतलाता है पांसा कभी सीधा होता और कभी उल्टा पड़ जाता है जैसी सोच हृदय में रखता, साम्राज्य वैसा ही पाता है। अवसर अलग सजधज कर, दमखम रखकर आता है। जीवन में देखा गधों को बाप किस तरह बनाया करते काम निकल जाने पर कितनी बुरी तरह हटाया करते बस यूं समझ लेना प्यासा ही तो कुएं के पास जाता है कई बार कुआं भी तो निज सड़ांध छिपा रख जाता है जैसी सोच हृदय में रखता, साम्राज्य वैसा ही पाता है। अवसर अलग सजधज कर, दमखम रखकर आता है। पानी में सभी उतरने वाले कभी तैराक हुआ नहीं करते पानी की दलदल गहराई पथरीला ज्ञान भी नहीं रखते ...
सवाल का उत्तर
कविता

सवाल का उत्तर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** पापा मुझे भी तो बताओ तनिक सोच समझकर समझाओ क्या मैं जन्म से ही पराई हूँ? आपकी बेटी हूँ, माँ की जाई हूँ भैया की बहन भी हूँ दादा-दादी की आँँखों का तारा हूँ। मेरे जन्म पर तो आप बहुत खुश थे खूब उछल रहे थे, पाला पोसा बड़ा किया, कभी आंख में आँँसू न आने दिया हर ख्वाहिश को मान दिया। अब में बड़ी हो गई हूँ दादी कहती है ब्याहने योग्य हो गयी हूँ क्या इसीलिए अभी से पराई हो गयी हूँ। भैया भी तो भाभी को ब्याहकर लाये हैं, भाभी दूसरे घर से आई है, फिर भी घर वाली हो गई यह कैसा रिवाज है समाज का जहाँ जन्मी, खेली कूदी बड़ी हुई उसी आँगन में पराई हो रही हूँ। माना कि भैया ब्याहकर कही गया नहीं बस इतने भर से कौन सा पहाड़ आखिर फट गया। भैय्या जैसा मेरा भी तो आप सबसे रिश्ता है, मेरा हक भैय्या से क्यूँ कम ...
पताका मेरी शान है
कविता

पताका मेरी शान है

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** पताका देश की शान है, भारत की पहचान है, लहर-लहर लहराये ये, हम सब का अरमान है। बढ़ाये ताकत वीर की, वसुमती की आन है, पहुँचा है समुन्नति पर, ये छूता आसमान है। भिन्न-भिन्न धर्म, जाति, संप्रदाय, भाषा का सम्मान है, मसीहा है, खुदा है और यही तो भगवान है। इसमें हमारी धड़कने, ये देश का अभिमान है, राष्ट्रगान का ज्ञान है, ध्यान का संधान है। मातृभूमि में शांति लाने को, होता लहूलुहान है, नील अंबर में लहराने का, यही इसे वरदान है। यहीं सवेरा है, साँझ भी, इसके तले जहान है, ये तीन रंग माँ शारदा के, मान का परवान है। देश के इस पताका की, आजादी ही मुस्कान है, पताका प्यारा, माटी प्यारी, प्यारा हिंदुस्तान है। परिचय :- नितेश मंडवारिया निवासी : नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता ...
गणतंत्र का झंडा
कविता

गणतंत्र का झंडा

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** आजादी के झंडे को हम, आत्मविश्वास से फहराएंगे, जीवन की उपलब्धियों को हम, देश के नाम कराएंगे, संविधान के अनुच्छेदों को, शब्द-शब्द हम देश के काम आएंगे, आजादी के लहू को हम, जीवन भर याद रखेंगे, 26 जनवरी को शपथ ग्रहण कर, सविधान की लाज बचायेंगे, आजादी के वीर सपूतों को हम, जिंदगी भर यादों में समेट कर रखेंगे, अंग्रेजों के काले कारनामे, कभी ना हम भूल पायेंगे, जीवन भर की लालसाएं, भारत माँ के चरणों में लौटाएंगे, माँ भारती को सोने की चिड़ियाँ, फिर से हम बनायेंगे, आतताइयों की बदसूरती से, सदा भारत माँ को बचाएंगे, लाल किले पर गणतंत्र का, झंडा हम फहराएंगे, अपने आजाद भारत का हम, संविधान कभी ना भूल पायेंगे, विश्व का सबसे बड़ा लिखित सविधान का, गौरव हम हमेशा बढ़ाएंगे, ४४८ अनुच्छेद,१२ अनुसुचियां, 25 भाग को और,...
हां, हूं भारत वीर मैं
गीत

हां, हूं भारत वीर मैं

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** नभ मैं, हूं धरा मैं हिम मैं, हूं सूर्य मैं आग मैं, हूं नीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं सिंधु मैं, हूं ताल मैं आदि मैं, हूं अन्त मैं खीर मैं, हूं चीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं कण मैं, हूं ब्रह्मांड मैं ज्ञान मैं, हूं विज्ञान मैं भाल मैं, हूं तीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं अस्त्र मैं, हूं शस्त्र मैं ज्ञात मैं, हूं अज्ञात मैं वैद्य मैं, हूं पीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं शीत मैं, हूं ग्रीष्म मैं बसंत मैं, हूं बरसात मैं वाचाल मैं, हूं गंभीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं तम मैं, हूं प्रकाश मैं दिन मैं, हूं रात मैं अधीर मैं, हूं धीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं प्रेम मैं, हूं क्रोध मैं राग मैं, हूं द्वेष मैं रांझा मैं, हूं हीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं अल्प मैं, हूं विकराल मैं कठोर मैं, हूं नरम मैं मृत...
तुमसे उल्फ़त जताने का गम है
गीत

तुमसे उल्फ़त जताने का गम है

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझे तुमसे उल्फ़त जताने का गम है तुम्हीं पे ये दिल रीझ जाने का गम है तेरा नाम ले-ले सताया जमाना तुमने भी अक्सर बनाया बहाना चाहत पे भी शक किया तुमने मेरी मेरे प्यार को आजमाने का गम है खुशी तो मिली पर मिला गम जियादा नहीं भांप पाए तुम्हारा इरादा समर्पण की सारी हदें पार भी की तुम्हीं पर मोहब्बत लुटाने का गम है तुम्हें हमने अपना मुकद्दर बनाया यादों से तेरी ही दामन सजाया भंवर में सफीना फंसी है हमारी तुम्हें अपना साहिल बनाने का गम है परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रकाशित, ११ काव्य...
पिताजी
कविता

पिताजी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सूरज की पहली किरण उगने के पहले, पूजा की घंटियों से जगाते वो "पिताजी थे" सम्पूर्ण वातावरण राम, कृष्ण मय करते, वो "पिताजी थे" जीवों को बचाने में खुद को आहत करते वो "पिताजी थे" ऊंची उड़ान भरते, आंखों मे भविष्य के सपने लिए हमे ना गिरने की चिंता, ना गिर के टूटने का डर, क्योंकि, "पिताजी थे" सपनों को सच करने का हौसला, आसमान की ऊंचाइयों को निर्द्वंद छूने की ललक जगाते, "वो पिताजी थे" जिंदगी की राहें कभी विकट बनी, कभी ठोकर खाई, पांवों को सहलाते "वो पिताजी थे" स्तब्ध हुए, जड़ बन गया शरीर, टूट के बिखरे एक दिन, "वो पिताजी" ही थे कहां से लाते हम, वो हिम्मत वो हौसला उनको समेटने की ताकत? हम दिशा विहीन, किंकर्तव्य विमूढ़ कैसे समेट पाते, "वो पिताजी" ही थे संतान का वियोग, अपनों के ...
बेटे की भावना
कविता

बेटे की भावना

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** बेटा भी कितना जहर पी लेते हैं, अपनों के लिए पहचान और सम्मान तो मिल जाता है प्यार के लिए तरस जाते हैं बेटे कहते हैं ना जो पास होता है उसकी कद्र नहीं होती है बेटी दूर रहती भी दिल के पास रहती है बेटा सामने होने के बाद भी दिल में नहीं उतरता है बेटा जीवन भर खिलाता है तो नाम नहीं होता बेटी ४ दिन क्या खिला देती है जीवन भर उसका गुणगान होता पराए घर चले जाती है ४ दिन फोन लगा कर पूछ लेती बस वही याद रहता बेटा रात-रात जग सेवा करता वह कुछ याद नहीं रहता माना शब्द कठोर होते हैं बेटा के बेटी की मीठी चार बातें से क्या जीवन चल जाता है धन मिलने की आस रहती है बेटी बेटा बिना आश के सेवा करता है ना मिले भी तो चुपचाप रहता है चार कठोर बात भी सुन लेता है बेटा चाहे बीवी बच्चे वाला भी होता बेटी नहीं सुन सकती मायके की द...
नेताजी सुभाषचंद्र बोस
कविता

नेताजी सुभाषचंद्र बोस

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** नेताजी को याद करके श्रध्दा सुमन अर्पित करता हूँ। उन की बोली बातों को जन-जन तक पहुंचना है। और देशप्रेम की ज्वाला को युवाओं में फिरसे जलाना है। और भारत को फिरसे आजाद कराना है।। नेता जी का वो कथन युवाओं को तब भाया था। जब उन्होंने आजाद हिंद फौज को बनाया था। और कहा था की तुमहमें खून दो मैं आजादी दूंगा। और अपने हिंदुस्तान को अंग्रेजो से मुक्त करा लेंगे।। नेताजी खुद से और अपने साथीयों से कहते थे कि। कमीयां तो मुझमें बहुत है पर मैं बेईमान नहीं हूँ। मैं सबको अपना मानता हूँ और फायदा या नुकसान नहीं सोचता। शौक है बलिदान देने का जिसका मुझे गुमान नहीं। छोड़ दूँ संकट में अपनो का साथ वैसा तो मैं इंसान नहीं। सबसे आगे मैं चलूँगा दोस्तों आप लोगों को पीछे चलना हैं।। मौका दीजिये अपने खून को औरो की रगों में बहने का। ये ल...
कृषि पुत्र
कविता

कृषि पुत्र

वाणी ताकवणे पुणे (महाराष्ट्र) ******************** ना है उनको वस्त्र का भान ना है कोई भी अभिमान लहू से अपने सिचतें खेती अनाज उगाने में लगा दी जान भारत माँ के है कृषि पुत्र अन्नदाता यह हमारे भगवान ना है लालसा कभी पैसों की खुशियाँ देना है इनका दान हर मौसम में कष्ट उठायें निस्वार्थ है हमारे ये किसान आशीर्वाद है अन्नपूर्णा का इनपर पालनहारे यह हमारी है शान परिचय :- वाणी ताकवणे निवासी : पुणे (महाराष्ट्र) वर्तमान में : शिक्षिका, कवि, गीतकार और लेखिका साहित्यिक योगदान : "बंधन", 'श 'से शायरी, "क्वीन ऑफ होम", "Treasure and Rainbow", "दिल ढुंढता है", "ऊन दिनों की बात" नामक किताबों में सह लेखिका घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित...
वह जो….
कविता

वह जो….

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** वह जो सिकुड़ कर पैरों में सिर दिए बैठा है .. लगता है किसी छोटे गांव के गरीब का बेटा है ! वह जो निपट अकेला चेहरे पर ताब लिए बैठा है बेशक खाली हाथ है पर सीने में ईमान समेटा है ! वह जो चेहरे पर नकाबों पर नकाब लिए बैठा है मक्कारी और धोखे को उजले लिबास से लपेटा है! वह जो अन्न और खुशहाली बो,खुद भूख से सोता है टूटी खाट और फूटे छप्पर तले किसान का बेटा है! वह जो अपने हक के लिए दफ्तर के फेरे लेता है उसका इकलौता बेटा सरहद पर तिरंगे में लेटा है!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र क...
वसीयत
कविता

वसीयत

उत्कर्ष सोनबोइर खुर्सीपार भिलाई ******************** मां मेरे पैदा होते ही तु मुझे क्यों नही मारी देती तू मुझे एक चुटकी भर नमक ही चटा देती, तूने मुझे क्यों पाला मां, मां मेरे पैदा होते ही तू आंगन पर कुआं खुदवा लेती और उसी में डकेल देती, तू क्यों उसी पानी से गंगा स्नान नही कर लेती, उस कुआं को पत्थर से ढंक कर क्यों नही बंद कर देती मां, तू मुझे जन्म देते ही मार देती! तू अण्डी और कपास के बीज फोड़ खा लेती बेटी पैदा करने के बाद तू बांझ क्यों नही हो जाती मां, मां घर के आंगन में चिकनी मिट्टी ला कर कपास का पेड़ लागा लेती, उससे जो फल आए उसे अपनी बहु को खिला देना मां, ताकि तुम्हारी बहु भी बेटी मुक्त हो जाए! मां बेटी तो पर गोत्र होती है, इसे भगवान ने ही बनाया है न... एक दिन मैं भी चली जाऊंगी मां तेरा बोझ भी हल्का हो जाएगा, बेटी तो उड़ती चिरैया है, ...
उत्तरायण
कविता

उत्तरायण

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नवीन वर्ष प्रारम्भ हुआ है, खुशियों का आरम्भ हुआ है। रंगबिरंगी पतंगों से ये, आसमान रंगीन हुआ है। गुड़-तिल्ली की मिठास भर गई, हर मन से खटास कम हुई। क्लेश मिट गए अब सारे रिश्तों का तारतम्य हुआ है। संक्रांति का महापर्व ये सूर्य आज उत्तरायण हुआ है। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से लेखन रचना प्रकाशन : साहित्यिक पत्रिकाओं में, कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल आदि का प्रकाशन, आकाशवाणी से प्रसारण। प्राप्त सम्मान : अभिव्यक्ति विचार मंच नागदा से अभियक्ति गौरव सम्मान तथा शब्दप्रवाह उज्जैन द्वारा प्राप्त लेखनी का उद्देश्य : जानकारी से ज्ञान प्राप्त करना। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ क...
मेरा प्यारा गांव
कविता

मेरा प्यारा गांव

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मेरा सुंदर सबसे प्यारा गाँव है मेरा सुंदर सबसे न्यारा गाँव है। जहाँ बरगद का शीतल छाँव है जहाँ पीपल का शीतल छाँव है। जहाँ पंछी का चाँव-चाँव है जहाँ सुर-संगीत का भाव है। जहाँ रवि को पहले प्रणाम है जहाँ करते पहले ये काम है। जहाँ करते जलाभिषेक है जहाँ करते काम विशेष है। जहाँ ग्वाल-बाल गायें चराते हैं जहाँ बंशी की धुन मन भाते हैं। जहाँ गायें व बछड़े रम्भाते हैं जहां ग्वालों के टेर सुनाते हैं। जहाँ रहँट-घिरनी की धुन आती है जहाँ पनघट की आभाष कराती है। जहाँ खेतों में फसल लहलहाते हैं जहाँ खुशी के गीत गुनगुनाते हैं। जहाँ बगीचों में फूल मुस्काते हैं जहाँ रसीले फल मन लुभाते हैं। जहाँ तालों में कमल मुस्काते हैं जहाँ स्वच्छ जल लहरा लगाते हैं। जहाँ जंगल-पठार मन को भातें हैं जहाँ के हरियाली मन को सुहाते ...
विलोपित धर्म हमारे
कविता

विलोपित धर्म हमारे

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** मानवता के मूल मिटे जिम धूल शूल स्वारथ के गाड़े। स्वास करे निर्मूल धरावे फूल चिता जीवत महि बारे ।। लालच को संसार बढ़ो व्यापार विचार अपावन सारे। नाता ना मनुहार भयो अंधकार विलोपित धर्म हमारे।। बैरी भए मनमीत प्रीत की रीत हार संसार बिसारें। वृद्ध जनन की सीख दंत तल पीस खीज आपन पे झारें।। समुझावत बड़वार तबउ मय पीवत नाद पड़े भिन्सारे। वस्त्र लुप्त उन्मुक्त संतति घूमें हाय देह उघारे।। व्याख्या- मानवता के मूल्य सड़क पर पड़ी किसी धूल की भांति उड़ाती आज की पीढ़ी स्वार्थ के तीखे बाण हृदय में चुभोती सी, स्तर स्वार्थ का यूँ कि स्वास लेते शरीर को कौन पूँछे? उनका बस चले तो कपट कर अपना मतलब साधकर बुजुर्गों को जीवित स्वाहा कर दें कर भी रहे हैं। लालच व्यापि इस संसार में संबंधों का व्यापार अब आम हो चला है, अर्थात नवीन सम्बंध अब मात्र रुपयो...
मेरे कान्हा जी
भजन, स्तुति

मेरे कान्हा जी

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मुझे अपना मीत बनाओ मेरे कान्हा जी, मुझे भी सखियों के संग रिझाओ मेरे कान्हा जी, मुझे भी रासिको का रास सिखाओ मेरे कान्हा जी, मुझे भी प्रेम की अनुभूति करवाओ मेरे कान्हा जी, मुझे भी माखन चुराना सिखाओ मेरे कान्हा जी, मुझे भी निर्गुण से सगुण का भेद समझाओ मेरे कान्हा जी, मुझे भी रणक्षेत्र का अर्जुन बनाओ मेरे कान्हा जी, मुझे भी गीता का ज्ञान करवाओ मेरे कान्हा जी, मुझमें भी भक्ति का भाव जगाओ मेरे कान्हा जी, परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
बैरी मेरा मन
कविता

बैरी मेरा मन

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** मेरा मन मेरा जन्म का बैरी.. क्यों मेरे बस में नहीं आए! गर ये मन घोड़ा होता तो.. ले चाबुक बस में कर लेती! गर ये मन हाथी होता तो.. ले अंकुश सवार हो जाती! गर ये मन सांप होता तो.. बजा बीन फण से धर लेती! गर ये मन बैल होता तो.. नथनी डाल नाक कस लेती! गर ये मन सुव्वा होता तो.. सोना गढ़ा चोंच मढ़ लेती! गर यह मन प्रेत होता तो झाड़-फूंक वश में कर लेती! गर ये मन बिच्छू होता तो बांध डंक जहर हर लेती! एक विधि है यही विधाता इस तन के अंदर जो सोए खोए अंतस को साधूं तो.. आकुल व्याकुल मन सध जाए!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...