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पद्य

सृजन फुहार
कविता

सृजन फुहार

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है। माँ अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है। अब तो टीवी चैनल सारे, दिन भर शोर मचाते हैं। ब्रेकिंग न्यूज़ देख देखकर, रक्त चाप बढ़वाते हैं। तुकांत काव्य अनुराग बहुत, नए ढंग से लाते हैं। दंगा-पंगा, रथ-पथ गाता, लठैत टिकैत छाते हैं । गिरी गाज खत्म राज विधान, समाधान तक आती है। मां अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है। कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है। पद पाने का लालच हरदम, इस तरह समाया रहता । टूटी फूटी नाक बचाने, तिकड़म ही लाया करता। होता जोर नहीं पैरों में, चाल बहुत तिरछी चलते। खिसियाये से नेता बनते, अहम वहम में दम रखते। नौ मन तेल बिना ही राधा, मोहन के गुण गाती है। मां अनुकंपा सृजन फुहार, जीवन किस्सा सजाती है कमाना खाना जीवन तंत्र, हिस्सा भीड़ का पाती है...
वीर सपूत
गीत

वीर सपूत

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** देश के प्यारे वीर सपूतों तुमको मेरा सलाम। देश की खातिर लड़ते लड़ते दे दी अपनी जान। इससे प्यार है मुझको, इससे प्यार है मुझको। गलत बात से दूर रहो तुम यही हमारा नारा है, भारत प्यारा देश हमारा सारे जहां से न्यारा है। प्यारे भारत देश के हित में सरस प्रेम फैला दें, दुश्मन के ऊपर हम मुसीबत के पत्थर बरसा दें। देश की खातिर मर मिट जाएं दे दें अपनी जान। इससे प्यार है मुझको, इससे प्यार है मुझको। भारत मां के चरणों में हम शीश काट कर रख दें, जिसने हम पर आंख उठाई उसे काट कर रख दें। भगत सिंह के वंशज हैं हम दुश्मन को समझा दें, और कारगिल विजय दिवस की उनको याद दिला दें। प्यारे भारत देश की खातिर हो जाएं कुर्बान। इससे प्यार है मुझको, इससे प्यार है मुझको। परिचय :-  प्रशान्त मिश्र निवासी : ग्राम पचवारा पोस्...
उम्मीदों का आसमान
कविता

उम्मीदों का आसमान

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** बीता यह पल जैसा भी, सहा सभी है हमने। खट्टे मिठे अनुभव सारे, किया सभी है हमने।। जीवन है अनुभव शाला, सब कुछ यही सिखाता है। होते हैं नित नई परीक्षा, समय बदलता जाता है।। उम्मीदों का आसमान भी, सदा रखा है हमने बीता यह पल जैसा भी सहा सभी है हमने कभी धूप कभी है छाया, है यह रीत निराली। सुख दुख है उसकी माया, कभी दशहरा दिवाली।। चार दिन की इस जीवन में, देखा सभी है हमने बीता यह पल जैसा भी सहा सभी है हमने आए कुछ ऐसे पल भी, याद रहेंगे जो हमको। कुछ खोया कुछ पाया है, भूल नहीं सकते उसको।। जैसा भी अवसर आया, उसका मान किया हमने बीता यह पल जैसा भी सहा सभी है हमने उम्मीदों के आसमान में, सदा उड़ाने भरना। सीखा है हालातों से, सदा खुशी से रहना।। राम लगा आना जाना, सदा नहीं है रहने बीता यह पल जैसा भी स...
विदाई
कविता

विदाई

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नये वर्ष में नवशक्ति से नया इतिहास गढो नये इतिहास के लिए कुलांचे भरो गगन में ढलता सूरज देता विगत वर्ष को बिदाई। नव वर्ष हो सर्वमान्य के लिए सुखदाई।। चलते हुए राहों में रवि साथ निभाता है और राहों में पड़ा पत्थर ठोकर से ठुकराता है एक अकेला फिर हुजूम, हुजूम से कारवा साथ है यही जान तू जिंदगी अपनी राहों में हम अकेले हैं नया वर्ष इतिहास गढ़ने के लिए। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रस...
प्यार मोहब्बत में छिपा
कविता

प्यार मोहब्बत में छिपा

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** प्यार एक ऐसा शब्द है, संसार में ममता और आराधना छिपी है। मोहब्बत एक ऐसा अल्फाज़ है, दुनिया में जन्नत का रास्ता छिपा है व आरज़ू की मन्नतें छिपी है। जीवन का सार ही प्रेम प्यार, मोहब्बत है, इंसानियत को जीवित रखने को, मानवता बचाने के लिए यशु फिर जीवित हो गया, नफ़रत मिटाने को उसमें ईश्वर की आत्मा छिपी है। कुदरत का करिश्मा ही कहें, गीता, कुरान, बाईबल, गुरू ग्रन्थ साहिब पथ-प्रदर्शक रहे, धर्म निरपेक्षता लिए हमारा संविधान भारतीयता की पहचान लिए विश्वदर्पण में इंसानियत की तस्वीर छिपी है। धर्म और मजहब की परिभाषा ही बदलने लगी है इस कलयुग में हिंसा सिर्फ हिंसा आधुनिकता की दौड़ में, चोला पहनकर गगन ईश्वर को भी धोखा दे रहे हैं, खून खराबे में देखो जन्नत ख़ुदा की कहीं नजर नहीं आ रही है जैसे कहीं गुम या छि...
नव वर्ष स्वागत गीत
गीत

नव वर्ष स्वागत गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वृद्ध दिसम्बर के जाते ही, आया जग में नूतन वर्ष। आशाएँ जागीं हैं अगणित, सभी ओर है स्वागत हर्ष। कोरोना पर हुआ नियंत्रण, टीकों ने पाई है जीत। यत्न सकल मानव रक्षा के, सफल हुए हैं आशातीत। लाएँगे परिणाम सुखद ही, सकारात्मक सब संघर्ष। आशाएँ जागीं हैं अगणित, सभी ओर है स्वागत हर्ष। बाज़ारों में चहल-पहल है, बढ़ने लगे सभी व्यापार। प्रतिष्ठान खुल गए सभी अब, घर से निकले हैं नर-नार। पाएँगे सब अच्छे अवसर, अब होगा सबका उत्कर्ष। आशाएँ जागीं हैं अगणित, सभी ओर है स्वागत हर्ष। अकर्मण्यता लुप्त हो गई, करने लगे सभी जन कार्य। निज जीवन निर्वाह के लिए, हुआ परिश्रम है अनिवार्य। उन्नत होंगी सभी दिशाएँ, कहीं नहीं होगा अपकर्ष। आशाएँ जागीं हैं अगणित, सभी ओर है स्वागत हर्ष। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उ...
धूमिल होंगी सृष्टियां
कविता

धूमिल होंगी सृष्टियां

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** चढ़ी जा रहीं सभी चोटियाँ घर-घर की मासूम बेटियां बेटों से कमतर नहीं हैं वे अब न सेंकती घर में रोटियां इनमें ऊर्जा झासी की है और कल्पना सी है शक्तियां ये सीता हैं ये राधा हैं ये घर भर की हैं विभूतियाँ माँ के आंखों की सपना हैं वृध् पिता की दृढ़ लाठियां समझो ना कमजोर इन्हे अब अब समाज की बन्द मुठ्ठियाँ जितना इन्हे जलाया हमने उतनी प्रखर हुईं दृष्टियां इनके बढ़ते कदम न रोको वर्ना धूमिल होंगी सृष्टियां परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वा...
आ हिंदी बैठ ज़रा
गीत

आ हिंदी बैठ ज़रा

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** आ हिंदी बैठ ज़रा, तेरा थोड़ा शृंगार करूँ। नवयुग की इस परिपाटी पर, तेरी थोड़ी मनुहार करूँ।। भूल गए हैं पथ के पंथी, पंखों को लहराना। भूल गये हैं मातृभूम पर, अपना ही ध्वज फहराना।। भूले भटके इन राहगिरों में, फिर से वो ही उद्गार भरूँ।। आ हिंदी बैठ ज़रा, तेरी थोड़ी मनुहार करूँ।। इस नवयुग की परिपाटी पर, तेरा थोड़ा शृंगार करूँ।। निर्झर मिश्री तुझसे बहती, किसलय सीखे खिलना। हिंद धरा की हिंद वाणी तू, बहुत ज़रूरी तुझसे मिलना।। अंग-अंग में रंग भरूँ मैं, नित अवलेखा से प्यार करूँ।। आ हिंदी बैठ ज़रा, तेरी थोड़ी मनुहार करूँ।। इस नवयुग की परिपाटी पर, तेरा थोड़ा शृंगार करूँ।। चरण पखारूँ नित उठकर, गुणगान करूँ मैं तेरे। तू ही धरणी, तू ही करणी, ये मान भरूँ मैं तेरे।। अपनेपन का आभास करा, कभी न तेरा अपकार करूँ...
मंगलमय हो
कविता

मंगलमय हो

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** नव वर्ष तुम्हें मंगलमय हो, नित नई सफलताएं पाएं। नव वर्ष तुम्हें दे हर्ष सदा, उन्नति के पथ पर बढ़ते जाएं।। नव उमंग नव तरंग लेकर, खुशियों से सराबोर हो जाएं । नव उल्लास उत्साह मन में, जीवन उपवन सृजित हो जाएं। मन मंदिर में दीप जलाकर, अज्ञानता को सूदूर भगाएं , काम क्रोध मोह जलाकर, जीवन को सुस्वर्ग बनाएं।। सुखद पल हृदय में लाकर, संस्कार बीज रोपित हो जाएं। नव रुप हर क्षण नवरंग दें, नव जीवन सुखमय हो जाएं।। गुरुजी का श्रवण कर लें, नव ऊर्जा नव जोश लाएं। संयम नियम साधना से ही, नूतन वर्ष का बधाई पाएं।। परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्यक्षेत्र : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एव...
राम नाम की मधुशाला (भाग- ४)
छंद, भजन

राम नाम की मधुशाला (भाग- ४)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** इस पवित्र पावन गंगा में, जो भी नित्य नहाता है। उसके पाप नष्ट होते हैं, मुक्ति धाम को पाता है। मानव जीवन धन्य उसीका , जिसने पिया नाम प्याला। जिसमे छलके नाम की मदिरा, उसे कहेंगे मधुशाला। ये कल्याणदायिनी गंगा, मरुथल में बह सकती है। वो अमोघ शक्ति है इसमें, जो चाहे कर सकती है। नाम जाप ने रत्नाकर डाकू, को ऋषि बना डाला। रामायण की रचना करके, वो बन बैठा मधुशाला। भक्त विभीषण दैत्य हो जन्मा, पर फिर भी वो सात्विक था। रावण का मंत्री था फिर भी, सत्यनिष्ठ और धार्मिक था। राम नाम की प्रीत ने उसको, हनुमत से मिलवा डाला। कर सहयोग प्रभु सेवक का, वो बन बैठा मधुशाला। राम नाम की मदिरा का कुछ, स्वाद जिसे मिल जाता है। वो उसमे ही डूब राम रस, सबको खूब पिलाता है। जिसको ये मदिरा चढ़ जाती, हो जाता है मतवाला। स्वांस स्व...
नई भोर
कविता

नई भोर

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** नई भोर को गीत सुनाने मेरा मन अब मचल रहा है। रात अंधेरी घिरी कालिमा, मन बुन रहा सुनहरे सपने; कुछ रातों-रात बिखर गए, कुछ गए दूर गगन में उड़ने। झड़ गए कुछ पत्ते शाखों से, नव पल्लव अब झूम रहे हैं; कुंजों में मदमाते भंवरे, नव पुष्पों को चूम रहे हैं। कश्ती चली रात भर जल में, ठहर गई है प्रिय से मिलकर; मुदित हुई सरिता की धारा, अतल सिंधु में स्वयं समाकर। नया सवेरा लाली रंगकर, प्रातः कितना दमक रहा है; कुछ खोया पर कुछ पाने को, मेरा मन अब तड़प रहा है। नई भोर को गीत सुनाने, मेरा मन अब मचल रहा है। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) साहित्यिक यात्रा : कहानी संग्रह 'उजास की आहट' सन् २०१८ में प्रकाशित। अभि...
२१वाँ साल
कविता

२१वाँ साल

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जाओ जाओ २१वाँ साल अब मत याद आना २१वाँ साल बहुत लोगों का जीवन लिया तुमने छीन कई को किया तुमने मातृ-पितृ विहीन कर दिया सभी को तुमने छिन्न-भिन्न हो गये बहुत लोग दीन-हीन ऐसी महामारी तुम थे लाये एक दूजे को कोई न भाये हर रिश्ता हो गया दूर-दूर सारे सपने हो गये चूर-चूर जाओ जाओ २१वाँ साल अब मत याद आना २१वाँ साल आओ आओ २२वाँ साल खुशियों से भरा हो ये साल नये जोश नई उमंग से सराबोर नये सपने नई आशा से भरपूर बहुत खास हो ये नया साल अठखेलियां करता रहे नया साल दुगुनी ऊर्जा से भरा हो नया साल फिर नई आशा नये सपने सजांएगे फिर वही नया ऊँचा मुकाम पाएंगे हवा में प्यार की खुशबू बिखरांएगे बेजान रिश्ते में जान लाएँगे रोते हुए लबों पे हम हंसी लाएंगे।। आओ आओ २२वाँ साल खुशियों से भरा हो ये साल।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : ...
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
कविता

स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा मंगल-बेला है अति प्यारा। नव-किरण है नव प्रभात नव-दिवस की है शुरुवात। रवि की दमकी है कांतियाँ फैल रही है स्वर्ण-रश्मियाँ। स्वागत करने को है मगन खग-वृन्द बंदी ये जन-जन। चहुँ-दिसि है प्रसन्नता छाई कण-कण में है रंगत आई। बागों में है फूल खिल आई कलियाँ भी देखो मुस्काई। नव वर्ष देखो अब आया है नई आशा मन मे समाया है। नई संकल्पों का संचार करें नई उम्मीदों पर ऐतबार करें। नव वर्ष में कुछ नया करेंगे मन मे हम प्रीत के रंग भरेंगे। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन...
नया साल
कविता

नया साल

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** नया साल नए रंग लेकर आया है, टूटे बिखरे ख्वाबों को फिर से जोड़ कर, एक नया एहसास लेकर आया है। बीते हैं जो पल विषाद में, उनमें एक नया आह्लाद लेकर आया है। छोड़ चुके हैं जो अपने हमें समझ कर बोझ, उनको रिश्तो का अहसास करवाने आया है। शिकस्त मिली हैं हमें बहुत पिछले कुछ वर्षों से नए साल जय विजय का एक नया दौर लेकर आया। बहुत हो चुका है अन्याय का तांडव नववर्ष लेकर शनि को न्याय का डंका बजाने आया है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
तुम भी दगा न करना
कविता

तुम भी दगा न करना

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** हे नववर्ष! तुम भी दगा न करना आओ हे नववर्ष! तुम हमसे कोई दग़ा न करना बीते जैसे साल पुराने वैसी कोई ख़ता न करना। पहले के ज़ख्म़ों से ही चाक शहर का सीना है नये साल में दर्द मिलें किसी को ख़ुदा न करना। मेरी इल्तज़ा तुझसे बस इतनी है हे नववर्ष अपनों को यूँ अपनो से तुम ज़ुदा न करना। संकट के इस दौर में तू पूरे मन से पूजा जाएगा फरिश्ता साबित होगा, किसी का बुरा न करना। संकट से जूझ रहे हैं सब,विषाद से गहरा नाता है ऐसे में आकर के शेष जीवन बे-मज़ा न करना। सबका हो सुनहरा आने वाला हर एक पल किसी के लिए कोई भी बुरी बद्दुआ न करना। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प...
साल बदल गया
कविता

साल बदल गया

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** साल बदल गया लेकीन जिंदगी थम सी गई नाम बदल ओमीक्रोम, जिंदगी थम सी गई ** कई अपने पराएँ अपनों को छोड़ चले गए सूर्य उदय ओर रात भी, जिंदगी थम सी गई *** न कुछ बदले हे नही कुछ बदलेगा यहां पर पाप पुण्य राब्ते भी रहे जिंदगी थम सी गई ** प्यार के दो लफ़्ज बोल लो तुम यारो न समय तुम गवांओ जिंदगी थम सी गई ** मुश्किलो सी जीवन पाया है हमने, इस साल के साक्षी बनो जिंदगी थम सी गई ** मिलेगी हमें तो फ़कत तारीख ही तारीख नए रोजगार नहीं हे जिंदगी थम सी गई ** मोहन ने गीने जिंदगी के साल अट्ठावन नये पुराने अफसाना में जिंदगी थम सी गई ** परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सु...
तू दिन को रात कर देगा …
कविता

तू दिन को रात कर देगा …

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तू दिन को रात कर देगा, शबों को आग कर देगा। जहाँ बरसें हों अंगारें, वहाँ तू बाग कर देगा।। भरी तुझमे वो मस्ती है, छुपी तुझमें वो शक्ति है। हुए वीराँ नगर हैं जो, उन्हे आबाद कर देगा।। इरादों में तड़प देखी, ज़िगर तेरे धड़क देखी। बुझे कोई जो चिंगारी, तू उनमे ख़्वाब भर देगा।। तेरि इन सुर्ख आँखों में, हिन्दोस्ताँ ही बसता है। अपना बन ठगा जिसने , उन्हें क्या माफ़ कर देगा।। अर्जुन बन तू माधव का, हनुमत बन तू राघव का। थमे जो ना दुराचारी, तू उनका नाश कर देगा ? जननी है जन्मभूमि, तारणी है कर्मभूमि। चुकाने को कर्ज़ इसका, 'इंद्र' अपना सर देगा।। ऐसा तू है परवाना, शमा को जो करे रोशन। नहीं मरने का भय रखना, तू मरकर भी अमर होगा।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदे...
वो बचा रहा है गिरा के …
ग़ज़ल

वो बचा रहा है गिरा के …

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- ११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२ वो बचा रहा है गिरा के जो, वो अज़ीज़ है या रक़ीब है। न समझ सका उसे आज तक, कि वो कौन है जो अजीब है।। मेरी ज़िंदगी का जो हाल है, वो कमाल मेरा अमाल है। जो किया उसी का सिला है सब, मैंने ख़ुद लिखा ये नसीब है।। जिसे ढूँढता रहा उम्र भर, रहा साथ-साथ दिखा न पर। मेरा साथ उसका अजीब है, न वो दूर है न क़रीब है।। जहाँ दिल में प्यार बसा हुआ, वहीं जन्म शायरी का हुआ। जो क़लम से आग उगल रहा, वो नजीब है न अदीब है।। भरी नफ़रतें जहाँ दिल में हों, वहाँ दिल सुकूँ कहाँ पाएगा। जो फ़िज़ा में ज़हर मिला रहा, वो मुहिब नही है मुहीब है।। वो डरे ज़माने के ख़ौफ़ से, जिसे मौत पर है यक़ीं नहीं। मैं डरूँ किसी से जहाँ में क्यूँ, मेरे साथ मेरा हबीब है।। यहाँ आया जो उसे जाना है, यही ला-फ़ना वो निज़ाम है। है...
उसी के पास जाना चाहती है …
ग़ज़ल

उसी के पास जाना चाहती है …

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** उसी के पास जाना चाहती है। जिसे रस्ता दिखाना चाहती है। गुजरती है कभी खामोश रहकर, कभी ये गुनगुनाना चाहती है। मिले कोई कहीं अपने सफ़र में, उसे अपना बनाना चाहती है । बवण्डर सी कभी आकार लेकर, समुन्दर को उड़ाना चाहती है। बहा करती है धरती-आसमाँ पर, मग़र इक ठौर पाना चाहती है। बदलतें हैं उसी के रुख़ से मौसम, हवा सबको जताना चाहती है । परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
पंथी पंथ निहार लें
कविता

पंथी पंथ निहार लें

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पंथी पंथ निहार लें, कर ईश्वर का ध्यान। नश्वर है संसार तो, सच को ले पहचान। शब्दों से होता नहीं, भावों का अनुवाद। भाव बसे हैं हृदय में, शब्द करें संवाद। हरित चूनरी ओढ़कर, धरा करें श्रृंगार। मेघ मल्लिका रूपसी, सजती सौ सौ बार। विडम्बना है देश की, न्याय हो रहा जीर्ण। अदालत लाचार हुई, रहें कैसे अजीर्ण। हाड़ कॅंपाती ठंड है, पाला पड़ा तुषार। फसलें सारी जल गई, शीतलहर संचार। भूखे पापी पेट का, करतें रोज जुगाड़। रोजगार के नाम से, तिल का बनता ताड़। मानव तेरी जाति का, कैसे हो उत्थान। काम क्रोध मद लोभ में, लुप्त हुई पहचान। धीरे- धीरे चली वधु, वरमाला कर थाम। दुल्हा तोरणद्वार में, जोडी सीता राम। भाव- भावना से भजो, हो जाओ भव पार। योग भोग सब छोड़ के, हृदय बसाए राम। कोरोना के कहर से, बेबस हुआं इंसान। आज प्...
बीत गया यह वर्ष..
कविता

बीत गया यह वर्ष..

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** बीत गया यह वर्ष, साल दो हज़ार इक्कीस। अपनों के गिला शिकवों की, अविस्मरणीय रहेगी टीस।... जिंदगी की सोच में, गहरा बदलाव आया। हमें समय की पुकार ने, संघर्ष करना सिखाया। निर्धनता की आड़ में, बुज़ुर्ग जीये किन हालातों में। समय-चक्र है कैसे फिरता, सीखा कोरोना विपदाओं में। जनमानस भूलेगा ना इसकी चीस। बीत गया यह वर्ष.......। घर बाहर स्वच्छ रखना, है कितना ज़रूरी। आसपास की सफाई में, रखो ना कभी मगरूरी। हर तबके की जिंदगी में, यह कैसा पड़ाव आया। अबलों की रोजी-रोटी पर, काला बादल छाया। आपस में रखी ना कोई खीस। बीत गया यह वर्ष......। हे! सृष्टि के नियामक, जनता पर उपकार करों। रखो कृपादृष्टि अब, और ना अधीर करों। हर्षोल्लास का जनजीवन में, माता तुम शीघ्र भाव भरो। जीवन विपदा के सागर से, अनुगतो का उद्धार ...
बहुत कुछ खोकर भी …
कविता

बहुत कुछ खोकर भी …

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बहुत कुछ खोकर भी बहुत कुछ पाया है। जिंदगी के हसीन पल और कुछ सपने खोया है। परंतु जीवन की सबसे बड़ी चीज प्राप्त हुई है। जिसे साधारण भाषा में लोग इंसानियत कहते है।। चलो अच्छा हुआ कि काल ऐसा भी आया। जहाँ लोगों ने लोगो को निकट से जान जो पाया। अमीर और गरीबी की खाई को भर जो पाया। और लोगों ने लोगों को इंसानियत का पाठ पढ़या।। सिखा देते है हालात इंसान को इंसान बनने को। भूलकर अपने अहंकार को नम्रभावों को जगाना पड़ा। क्योंकि इन हालातो में न दौलत न शोहरत काम आई। बस लोगों की अच्छाई ही लोगों के काम में आई।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं...
करना है मुहब्बत तो …
कविता

करना है मुहब्बत तो …

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** करना है मुहब्बत तो वतन से करो यारों माशूका के मुहब्बत में, रखा ही क्या है..!! देकर छणिक सुख लूट लेगी तेरी खुशियाँ मिलेगा गम, तड़प, कशिश, ताउम्र मेरे यारों..!! इश्क में दिल तोड़ने की फितरत है उनकी टूट जाए गर दिल तो गम ना करना यारों..!! करना है मुहब्बत तो वतन से करो यारों…. करेंगे लाख वादे साथ जीने मरने की ताउम्र वादे से मुकरने की पुरानी फितरत है यारो..!! ना कर मोहब्बत उनसे कदर न कर पाएगी साथ तेरा छोड़ गैर को गले लगाएगी यारों..!! करना है मुहब्बत तो वतन से करो यारों…. इश्क में तुम्हें करके बर्बाद,खुद आबाद रहेगी बना के तुम्हें इश्क में गुलाम आजाद रहेगी..!! ना अपनायेगी तुझे तेरी दौलत खोने के बाद थाम लेगी दामन किसी दौलतमंद का यारो..!! करना है मोहब्बत तो वतन से करो यारों…. कत्ल तेरा करके इल्जाम तुम...
मोहब्बत की दुनिया…
कविता

मोहब्बत की दुनिया…

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** सोनू रब से मुझे कुछ भी नहीं बस तेरी मोहब्बत चाहिए मेरे बुझे हुए दिल में तुमने मोहब्बत के दीप को जलाया भावनाओं को भरकर अपनी मोहब्बत का जादू चलाया मोहब्बत में मैंने सब हारना चाहा मगर सब कुछ है पाया तुम मोहब्बत की दरिया हो मोहब्बत की प्यास बुझाओ मोहब्बत की पावन धारा बनकर मोहब्बत का आशियाँ दो निराकार ब्रह्म की जैसी रूप मोहब्बत का साकार रूप दो मोहब्बत कैसा है ये नहीं जानता मेरे जीवन की तकदीर हो मैं अनजाना सफर का राही बन जाओ तुम मेरे हमसफ़र हो नफरतों के इस जहां में बस तुम मोहब्बत की देवी हो कंटकमय जीवन के पथ में मोहब्बत के फूल बिछा दूँ जीवन से सारे दुःख हर कर लूं हमदर्द की दवा बना दूँ मोहब्बत के आकर्षण में बहोत हैं आ सच्ची मोहब्बत दूँ रंग हीन जीवन पथ में मोहब्बत की दुनिया बनाएं बिछड़े हुए हम खुद से आ ...
खुशियों का स्पंदन
कविता

खुशियों का स्पंदन

डॉ. जबरा राम कंडारा रानीवाड़ा, जालोर (राजस्थान) ******************** दिल में खुशियों का स्पंदन। नूतन वर्ष का करें अभिनंद।। सभी सुखमय निरोगी हो। षटरस भोजन भोगी हो।। स्वछंद मस्त होकर घूमे। सफलता कदमों को चूमे।। विपदा-बाधाएं दूर रहे। खिले चेहरा मुख नूर रहे।। सबके सारे ही काज सरे। अन्न-धन से भंडार भरे।। फले कामना सबकी सारी। हर कोई बानी बोले प्यारी।। सुखमय हो ये जग सारा। एक रहे सदा देश हमारा।। परिचय :- डॉ. जबरा राम कंडारा पिता : सवा राम कंडारा माता : मीरा देवी जन्मतिथि : ०७-०२-१९७० निवासी : रानीवाड़ा, जिला-जालोर, (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. बीएड सम्प्रति : वरिष्ठ अध्यापक कवि, लेखक, समीक्षक। रचना की भाषा : हिंदी, राजस्थानी विधा : कविता, कहानी, व्यंग्य, लघु कथा, बाल कविता, बाल कथा, लेख। प्रकाशित : माणक, जागती जोत, शिविरा, सुलगते शब्द (संकलन में) व मासिक पत्रिका...