वंचनाओं के मसौदे गढ़ रहे हम
भीमराव झरबड़े 'जीवन'
बैतूल मध्य प्रदेश
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रक्त चूसक पोथियों की वादियों में।
सोच करती संक्रमित उन व्याधियों में।
भ्रांतियों का नव हिमालय चढ़ रहे हम।।१
रक्त में उन्माद का विष घोलता जो।
पत्थरों के कान में सच बोलता जो।।
पाठ्य पुस्तक द्वेष की ही पढ़ रहे हम।।२
लोकतंत्री बैल को डाली नकेलें।
हाशिये पर पीटते गुरु और चेलें।।
फिर पुरातन पंथ पर ही बढ़ रहे हम।।३
परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन'
निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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