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पद्य

एक स्वर्णिम संध्या
कविता

एक स्वर्णिम संध्या

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** खूबसूरत संध्या स्वर्णिम आभा का संदेश देकर गुज़र गई। निशा भी खूबसूरत ख्वाबौं को देकर चली गई। प्रभात की किरणें शबनम के मोती की तरह प्यार भरा माहौल सनम तुम्हारे बिना दे गई। अब इंतजार कर, इंतजार कर हर आहट कहने लगी अपने आप से जिन्दगी, मधुर मधुशाला के लिए तड़फने लगी। कभी जो मय पिलाई थी, अपने मुस्कराते नयनौं से, कशमकश माहौल को पाने के लिए तड़प उठी थी गगन एक मोहब्बत की रोशनी के लिए जिन्दगी बेबस लाचार सी लगने लगी और खूबसूरत संध्या स्वर्णिम आभा का संदेश देकर गुज़र गई। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति : नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त २०१४ साहित्य में कदम : २०१४ से भारतीय साहित्य परिषद मंहू, मध्य ...
बड़ा आसान था गिरिधर
गीत

बड़ा आसान था गिरिधर

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बड़ा आसान था गिरिधर, बता दिल तोड़ कर जाना! मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? दर्द यमुना का तो सुनते, कदम के शूल तो चुनते। तजा पनघट तजी राधा, तजा सारा वो याराना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? बजी वंशी बहुत प्यारी, लगे चितवन बड़ी न्यारी। उसे भी छोड़ बैठे तुम, किसे दूँगी मैं अब ताना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? तड़प कर गोपियाँ रहतीं, विरह कैसे भला सहतीं? चमन के पुष्प हैं सूखे, कहें तितली नहीं आना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? कुँआ भी प्यास का मारा, हृदय मेरा रहा खारा। नयन से मोतियाँ बिखरीं, धरा पहने तरल बाना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? बिछायी द्यूत की क्रीड़ा, सही जाये न यह पीड़ा। कहूँ कैसे बनी धीरा, यही तुमको है समझाना। मिलन की रात में ही क्यों मिला ...
भोर का पंछी
कविता

भोर का पंछी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जागरण संदेश लाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में! मधुर वाणी गूंजती है, व्योम से लेकर धरा तक। गान-पारावार में सब, डूब जाते हैं अचानक। मन सभी का है लुभाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में। मनोहर लय ताल सुन्दर, धुन अनोखी गान की है। प्राकृतिक अद्भुत प्रथा यह, जागरण अभियान की है। स्वरों की गंगा बहाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में। कुशल है संगीत में वह, जानता आरोह भी है। तान है उसकी सुरीली, समय पर अवरोह भी है। कंठ से सरगम सुनाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक...
नवाकुँरित पौधें की चिंता
कविता

नवाकुँरित पौधें की चिंता

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** नवसृजन की पीड़ा सहकर, धरा ने मुझे जन्म दिया, इस शहरी जीवन के आँगन में लाकर मुझे खड़ा किया, डरता हूँ यहाँ की निर्बाध हवाओ से, लपलपाते गर्म जलाते झोको से, नहीं हैं यहाँ कोई बरगद झाँव न कोई खग कलरव न कोई, प्यारा गाँव पता नहीं बढ भी पाऊँगा, या शैशव वय में ही मारा जाऊँगा यदि गाँव की माटी में ही उगता स्वछंद प्रेमपगी हवा में पनप विशाल पेड़ बन जाता परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
विधाता की निगाह में
कविता

विधाता की निगाह में

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** ये जिंदगी गुजर रही है आह में जाएगी एक दिन मौत की पनाह में। कर लो चाहे जितने पाप यहां हो हर पल विधाता की निगाह में। मेरी कमी मुझे गिनाने वाले सुन शामिल तो तू भी है हर गुनाह में। छल प्रपंच से भरे मिले हैं लोग दगाबाजी मुस्काती मिली गवाह में। खोने के लिए कुछ भी शेष नहीं सब खोये बैठा हूं किसी की चाह में। आंखों में छिपे हैं राज बड़े ही गहरे इतनी जल्दी पहुंचोगे नहीं थाह में। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान...
दिखाओ तो सही
गीतिका

दिखाओ तो सही

महेश चंद जैन 'ज्योति' महोली ‌रोड़, मथुरा ******************** क्या किया है आपने मुझको बताओ तो सही। कर्म की अपनी कहानी कुछ सुनाओ तो सही।।१ आह से अपनी तिजोरी भर रखी हैं क्यों भला। खोल‌ करके कोष अपना तुम दिखाओ तो सही।।२ लूट कर खुशियाँ गरीबों की खड़े मुसका रहे। मुस्कुराहट तुम उन्हें उनकी दिलाओ तो सही।।३ हाथ आता है नहीं‌ बादल घिरा आकाश में। घूँट जल की नेह से आकर पिलाओ तो सही।।४ झाँकता है चंद्रमा खिड़की तुम्हारी बंद है । खोल‌ खिड़की चाँद को अंदर बुलाओ तो सही।।५ जोड़ कर के या घटा कर देख लो क्या है मिला। क्या गलत है क्या सही कुछ आजमाओ तो सही।।६ बाँट कर खुशियाँ कभी तो मुस्कुरा कर देख लो। खिल खिलाकर के कभी तुम मुस्कुराओ तो सही।।७ परिचय :-महेश चंद जैन 'ज्योति' निवासी : महोली ‌रोड़, मथुरा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
जिंदगी एक सफर है
कविता

जिंदगी एक सफर है

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** जिंदगी एक सफर है। कदम बढ़ाते चलो हंसते गाते मुस्कुराते चलो, ऐ चलने वाले मुसाफिर सफर लंबा है। कदम बढ़ाते चलो राह में रुकना नहीं है। सफर जितना लंबा होगा सफलता उतनी ही बेहतर होगी, जीवन में सफर करते समय अनेक बाधाएं आएंगी, इन बाधाओं में रुक ना जाना ए मंजिल के मुसाफिर, लोग यहां थक हर कर बीच सफर में ही रुक जाते हैं। वह लोग यह नहीं जानते उस समय हम मंजिल के कितने करीब थे, सफर में जब निकल चले हैं। मंजिल मिले बगैर रुकने का सवाल ही नहीं होता, आज नहीं तो कल जरूर मिलेगी, जिंदगी एक सफर है हंसते गाते मुस्कुराते कदम बढ़ाते चलो। चलते चलो मुसाफिर चलते चलो। परिचय :- कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार पिता : जालम सिंह अहिरवार निवासी : ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया जिला भोपाल शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्...
आर पार की लड़ाई
कविता

आर पार की लड़ाई

संजय जैन मुंबई ******************** मेहनत करे किसान पर मलाई हमें चाहिए। खेत बिके या बिके गहने उसे हमको क्या लेने-देने। हमको तो उसकी फसल बिन मोल चाहिए। और हमे कमाने का मौका हमेशा चाहिए। फर्ज उसका खेती करना तो वो खेती करे। हमको करना है धन्धा तो हम लूटेंगे उसे।। होता आ रहा है यही अपने देश में। तो क्यों हम बदले अपनी परंपराओ को। बात बहुत सीधी है जरा तुम समझ लो। तुम हो किसान तो दिलसे खेती करो। ऋण में पैदा होते हो ऋण में ही मरते हो। पर फिर भी खेती खुशी खुशी करते हो।। फिर क्यों उलझ रहे हो देश की सरकार से। जो खुदको बेच चुकी पूंजीपतियों के हाथो में। अब सरकार का भी हाल किसानो जैसा होगा। न जी पायेंगी न मर पायेंगी कठपुतली बनकर रह जायेगी। क्योंकि इतिहास अपने आपको फिर से दोहरायेगा। और देश अपनी पराम्पराओ को कैसे भूल पायेगा।। चुनावो में पूंजीपतियों के पीछे दौड़ लगाएंगे। और फिर इन के गुलाम बन जायेंगे...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

ममता रथ रायपुर ******************** जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी हंसाएगी तो कभी रूलाएगी कभी तारों सा चमकेगी कभी बूंदों सा बरस जाएगी जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी मुसकुराहट बनकर आएगी कभी सुख -चैन चुरा ले जाएगी जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी हवा सी लहराएगी कभी तुफान सा बवंडर मचाएगी जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी हंसाएगी तो कभी रूलाएगी परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
वक्त
कविता

वक्त

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** तुझको मुझसे, मुझको तुझसे क्या काम है? वक्त ने वक्त से मिलाया, वक्त ही जरुरत है! बेवजह नहीं यूँही वक्त का बर्बाद होना कुछ और नहीं, मिटने मिटाने की हसरत है! वक्त पे खामोश रहे, वक्त पे चिल्लाएं वक्त पे आंसू बहाएँ, वक्त की ही सियासत है! मैंने जो लिखी इबारत, वक्त ने मिटा दी खुद के लिखे पे इतराएँ, वक्त वो इबारत है! दोस्ती और दुश्मनी वक्त की मोहताज है हम नादाँ, कहीं मोहब्बत कहीं नफरत है! कोशिश कर ऐ इन्सां, तू वक्त को पढ़ सके तेरी हो या मेरी, सब की इबादत वक्त है! परिचय : विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. इंदौर निवासी साहित्यकार विश्वनाथ शिरढोणकर का जन्म सन १९४७ में हुआ आपने साहित्य सेवा सन १९६३ से हिंदी में शुरू की। उन दिनों इंदौर से प्रकाशित दैनिक, 'नई दुनिया' में आपके बहुत सारे लेख, कहानियाँ और कविताऍ प्रकाशित हुई। खुद के लेखन के अतिरिक्त उन दि...
सावधान… सावधान…
कविता

सावधान… सावधान…

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बदमाशों की खैर नही कार्यवाही में देर नही नारी के सम्मान में पुलिस डटी मैदान में सावधान सावधान।। बबली को अब घूरना नही उसका पीछा करना नही छेड़ना उसे भूल जाना वरना पड़ेगा जेल जाना जागी चेतना जन जन में नारी के सम्मान में पुलिस डटी मैदान में सावधान सावधान।। नष्ट होगा हर भक्षक डगर डगर पर है रक्षक बहकाना आसान नही न कहना विधि का ज्ञान नही मत समझ भोली भाली है हर बेटी यहाँ दुर्गा काली है गीत गाये हम लाडली तेरी शान में नारी के सम्मान में पुलिस डटी मैदान में सावधान सावधान।। कैसी सुंदर फुलवारी है महक रही हर क्यारी है निडर हो घूम रही प्रदेश की हर नारी है कर सपने पूरे अपने भर उड़ान आसमान में नारी के सम्मान में पुलिस डटी मैदान में सावधान सावधान।। होगा दानव का दलन चलेगा केवल नेक चलन बातें नही होगा समर बेटी की रक्षा में कस ली है कमर निर्भय हो विचरण कर चर्च...
अब और….. नहीं
कविता

अब और….. नहीं

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** सिमटी-सिमटी जिंदगी में बसर। अब और नहीं... अब और नहीं। ठहरी -ठहरी राहों का सफ़र। अब और नहीं.. अब और नहीं। बांध ले अपनी हिम्मत को, तिल-तिल कर मरना । अब और नहीं.. अब और नहीं। सिमटी-सिमटी राहों में बसर। अब और नहीं.. अब और नहीं। आशाओं के दिए जला ले, निराशा को दूर भगा ले, वक्त बदलेगा । बदलना होगा...... वक्त को। जीवन का क्रूर प्रहास। अब और नहीं.. अब और नहीं। तुम अकेले नहीं। साथ यह धरा-गगन हैं। मिलेगी हर... राह पर मंजिलें। किस राह पर चलूं....यह सोचना। अब और नहीं.. अब और नहीं। तुझको अपने हाथों से, बदलनी है किस्मत अपनी। बदलेगी...... यह लकीरें। इस इंतजार में गुजर।। अब और नहीं.. अब और नहीं। गमों से भरें, जिंदगी में कल्पनाओं के भंवर। अब और नहीं.. अब और नहीं। जिंदगी को जीना है.. झेलना तो नहीं। जिंदगी से टकराव। अब और नहीं.. अब और न...
दावत पर बुलाया है
कविता

दावत पर बुलाया है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** कभी दावत पर बुलाते थे, घर स्नेह निमंत्रण आते थे, प्रीतिभोज, मीठी वाणी से, प्रेम संग खाना खिलाते थे। दावत नहीं वो प्यार होता, खुशियों में दामन भिगोता, भाई भाई को पास बुलाता, आया नहीं जीवनभर रोता। दावत पर कभी बुलाते थे, बैठाकर खाना खिलाते थे, आदर और सम्मान देकर, उन्हें अपने पास बैठाते थे। बैठके खाना खाते थे जब, मन संतुष्टि मिल जाती थी, पानी पीते थे घड़े का ठंडा, मन में खुशी छा जाती थी। शास्त्रों में भी बताया जाता, बैठके खाना खाओ हरदम, रोग दोष से दूर रहोगे फिर, तन व मन में आएगा दम। वक्त ने पलटी खाई ऐसी, आया है खड़ा अब खाना, भाग दौड़कर समय मिले, भागदौड़ कर कैसा खाना? दावत पर बुलाया है जी, एक बार दर्शन दे जाना, खड़े खड़े खाना खाकर, कपड़ों पर दाग लगवाना। एक हाथ में थाली पकड़े, एक हाथ से खाते खाना, बार बार कोई न्यौता न दे, आना बे...
वीर  सपूतों तुम्हें प्रणाम
कविता

वीर सपूतों तुम्हें प्रणाम

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दूर शहर से गांव एक था, जन्मा था एक लाल वहां। बड़ा हुआ भारत की माटी, साधन थे कुछ नहीं जहां।। सुनी कहानी भगत सिंह की, रग- रग में था जोश भरा। निकल पड़ा सेवा करने को, भारत मां का लाल निरा।। जा बेटा रक्षा कर मां की, दुश्मन को तू मार गिरा। कर देना प्राणों की आहुति, मत होना भयभीत जरा।। जा पहुंचा होने को भर्ती, सेना में जज्बात लिए। रग-रग उसका रोमांचित था, मात पिता आशीष दिए।। मिला संदेशा अधिकारी से, युद्ध क्षेत्र में जाना है। धूल चटा दुश्मन को अपने, ध्वज अपना फहराना है।। कर दी बौछारें तोपों से, कर्ज दूध का अदा किया। धराशायी कर अगणित दुश्मन, परिचय निज कर्तव्य दिया।। जान न्यौछावर कर दी लड़कर, ओढ़ तिरंगा पहुंचा ग्राम। क्रंदन करती मां यू बोली, जा बेटा है तुझे सलाम।। परिचय :- संजू "गौरीश" पाठक निवास...
अधरों पर मुस्कान
दोहा

अधरों पर मुस्कान

बुद्धि सागर गौतम नौसढ़, गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** काला तिल है गाल पर, अधरों पर मुस्कान। जीवन साथी खुश रहे, सदा रहे मुस्कान। हंसता मुखड़ा जान का, अधरों पर मुस्कान। पत्नी मेरी खुश रहे, मैं चाहूं मुस्कान। अधर गुलाबी है नरम, मुखड़े पर मुस्कान। दुल्हन ऐसी भाग्य से, पाता है इंसान। अधरों पर मुस्कान है, आंखों में है शर्म। पत्नी मेरी समझती, सदा हमारी मर्म। ममता की मूरत लगे, बोती है मुस्कान। अधरों पर मुस्कान से, खुश रहते संतान। रखने में कुछ ना लगे, अधरों पर मुस्कान। खुद को भी अच्छा लगे, मुस्काता इंसान। सुंदर मुखड़ा भीम का, अधरों पर मुस्कान। किए कर्म है नेक जो, हम पाए मुस्कान। शांति मिली है बुद्ध से, पंचशील का ज्ञान। अधरों पर मुस्कान है, मिला धम्म का ज्ञान। नमन करूं मैं भीम को, नमन तथागत बुद्ध। अधरों पर मुस्कान हो, सबका मन हो शुद्ध। परिचय :- बुद्धि सागर गौतम जन्म : १० जनवर...
आईना अब संभल के देख लिया
ग़ज़ल

आईना अब संभल के देख लिया

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** आईना अब संभल के देख लिया। हमने चेहरा बदल के देख लिया। अपनी हालत पे जब यकीं न हुआ, हमनें थोड़ा मचल के देख लिया। रास्ता जो यहाँ नया पाया, दूर थोड़ा टहल के देख लिया । ये ज़बानों को खेल था इसमें, हमनें थोड़ा फ़िसल के देख लिया। यूँ दीवारों से दोस्ती रखकर, घर से बाहर निकल के देख लिया। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा ...
अनकहे रिश्ते
कविता

अनकहे रिश्ते

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** वो अनकहे से, अनदेखे से, वो अनसुलझे से रिश्ते जो कभी बीच राह में, तो कभी खयाल में बन जाते है।। वो हकीकत से दूर, वो ख्वाबो की दुनिया के रिश्ते लेकिन बड़े खूबसूरत से रिश्ते, हर बार जीवन मे नई उमंग भर जाते है।। राह चलते किसी अजनबी का यू मुस्करा जाना जैसे उपवन में किसी खूबसूरत गुलाब का खिल जाना।। वो बिना नाम, पहचान के रिश्ते, वो दिल से जुड़े अनजाने से रिश्ते... जब राह पर चलते किसी बुजुर्ग को मंजिल तक पहुचना हो या किसी भूखे को पसन्द का खाना खिलाना हो या कभी ला देनी हो किसी बच्चे के चेहरे पर मुस्कान या दिला देना हो किसी कमजोर को सम्मान भर जाता है मन में आत्म सम्मान ये बिना नाम के क्षणिक से रिश्ते ये जीवन के रंगों से लिपटे हुए रिश्ते ये जीवन की ऊर्जा के रिश्ते ये सब धर्मों से परे रिश्ते ये बिना किसी स्वार्थ के रिश्ते ये रिश्ते बहुत खूबसूरत है ये ...
हम नवयुग का दीप जलायें
कविता

हम नवयुग का दीप जलायें

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** थे हिम्मतवाले, वे मतवाले, शांत, सनेही, भोले-भाले, पाँव बिवाई, हाथ में छाले, मेहनत पूरी, रोटी के लाले, नेकी मन में, रखते ना ताले, बोले ना मुंह से, प्रबंध निराले, जो कुछ था सब साथ मिलालें, बात वही मिल बांट के खा लें, साथ रहें मिल बांटें खायें, हम नवयुग का दीप जलायें. ऐसा हो, घर कौन संभाले, पड़ौसी ने तब दो घर पाले, बड़ों का निर्णय सभी निभा लें, बाबा की पाग थी, कौन उछाले, यही कहानी थी, हर घर की, बड़ा कहे, सबने हाँ भर दी, सम्मान मूंछ, उम्र, अनुभव का, कह दें वे तो सब संभव था, बुजुर्ग वही प्रतिष्ठा पायें, हम नवयुग का दीप जलायें. गाय हकदार की ताजी रोटी, भिखारी कुत्ता,अंतिम व छोटी, बिल्ली नाग को दूध पिलाते, मंदिर में सीधा भिजवाते, रस्ते में जहां पेड़, परिंडे थे, अंडों के लिए बरिंडे थे, आटा चींटी को, जोगी को, कडवी गोली मीठे में ...
रोशनी का अवतरण हो
गीतिका

रोशनी का अवतरण हो

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** काव्य सागर में निरंतर, लेखनी का संतरण हो। लोक के कल्याण के हर, कर्म का दिल से वरण हो।।१ पल्लवित हो हर हृदय में, नेकियों के बाग फिर से। शृंग ऊँचें जो बदी के, रात दिन इनका क्षरण हो।।२ काल कवलित हो नहीं फिर, झुग्गियों के स्वप्न देखें। नित बहे सौहार्द सरिता, आस का वातावरण हो।।३ मेघ दुख के दूर नभ से, मेह सुख की हो धरा पर। कैद से हो मुक्त दिनकर, रोशनी का अवतरण हो।।४ छल कपट के नव मुखौटे, जो मनुज के मुख जड़े हैं। मन दिगम्बर संत सा हो, शुद्ध जल सा आचरण हो।।५ इस धरा सा धैर्य रखकर, हम चलें उपकार के पथ। शीश उन्नत हो गगन में, किन्तु धरती पर चरण हो।।६ छंद की रसधार में नित, आचमन करता रहे मन। लक्ष्य 'जीवन' का यही बस, दंभ का उर से मरण हो।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी...
तुम संग रिश्ते में पतंग मैं
ग़ज़ल

तुम संग रिश्ते में पतंग मैं

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** तुम संग रिश्ते में पतंग मैं औ तुम डोर हमारी हो कटी पतंग न बन जाऊँ मैं ऐसी दुआ तुम्हारी हो तुम बिन ख़ुशियाँ नामुमकिन हैं इतना तो एहसास रहे फंसी नाव जब कभी भँवर में तुम ही मुझे उबारी हो तुम काशी मम तुम मथुरा हो तुम ही हो गंगा सागर पावन संगम की अभिलाषा रखता तेरा पुजारी हो कंकरीली राहों पर चलकर तेरे दर पर पहुँचा हूँ मैं एक फ़क़ीर की झोली भर दो दिल से राजकुमारी हो तुमसे रौनक़ बढ़ जाती है फ़िज़ा चहकने लगती है नेह पे तेरे हक़ हो जिसका कैसे भला दुखारी हो पड़ जाते त्योहार हैं फीके अगर तुम्हारा साथ नहीं हर कोशिश कर हार के बैठा जैसे कोई मदारी हो ग़म के सागर में है कश्ती राह तुम्हारी देख रहा मैं आ जाओ तुम बन के साहिल जैसी भी दुश्वारी हो परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी :जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञा...
बदलते परिवेश रो आयो जमानो
कविता

बदलते परिवेश रो आयो जमानो

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** मेरा प्यारा गांँव कहां है १ प्यारा नादान बचपन कहां है मां की लोरी दादा नानी के किस्से कहानी कहां है। हंसते खेलते परिवार कहां है हिल मिलकर रहने वाले वह प्यार लोग कहां हैं। जिस पेड़ की छांव में बैठकर करते थे वार्तालाप वह नीम का पेड़ कहां है । जहां मैं खेल कूद कर बड़ा हुआ वह आंगन गलियां कहां है। मेरे नादान बचपन पर प्यार दुलार लुटाने वाले वह प्यारे लोग कहां हैं। निस्वार्थ सेवा की भावना ऐसे आज मित्र कहां है। बचपन में करते थे स्नान वह कल कल सी बहती स्वच्छ शीतल नदी कहां है। शिक्षा बनी व्यापार निस्वार्थ ज्ञान देने वाले आज गुरु कहां है। दूध देने जाने लगे डेरी पर घर में। मटकी भर मक्खन कहां है। पढ़ाई हो गई कंप्यूटर मोबाइल पर मेरी प्यारी किताब कहां है। फैशन रो आयो जमानो धोती कुर्ता भारतीय नारी रो वस्त्र कहां है। एक बीवी...
उड़ान
कविता

उड़ान

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** ये भी जीवन होता कठिन रास्तों का हमेशा सीढ़ियाँ फूँक-फूँक कर चलो तुम ऐसा ये कथ्य है मेरे पिता स्वर्गीय का हाँ ये कि अभी वक्त है उड़ान भर लो तुम समय का कोई अता-पता नहीं होता है कभी किसी गलत रास्ते में भटकना ना तुम ये जमाना बहुत खराब आज के दौर काहै ओ बिटिया बहुत सरल नादानियाँ करना ना तुम मेरी पगड़ी कभी उछलने तुम ना देना अपनी इज्जत अपने हाथों से संभालना तुम जब कभी जिन्दगी में तुम डगमगाओ भी तो अपने को कमजोर बनाना कभी ना तुम हमेशा तुम्हारे हौंसले बुलंद रहे जीवन के और कदम पे कदम बढ़ाते आगे बढ़ना तुम ये आशीर्वाद हमेशा मेरा तुम्हारे साथ है अपने को कर्तव्य मार्ग से कभी हटना ना तुम परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपुर टीकमगढ़ म.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
लेकर निगाह-ए-नाज़ के ख़ंजर
ग़ज़ल

लेकर निगाह-ए-नाज़ के ख़ंजर

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************************** लेकर निगाह-ए-नाज़ के ख़ंजर नए-नए। मिलते हैं शहरे ग़ैर में दिलवर नए-नए।। तहज़ीबे नौ का दौर है हर बात है नई। औरत भी अब बदल रही शौहर नए-नए।। आएगी जैसे-जैसे क़यामत करीब जब। देखोगे और भी यहाँ मंज़र नए-नए।। कुर्सी पे हमने जिनको बिठाया था शान से। ढाते हैं अब सितम वही हम पर नए-नए।। जो रास्ता बता रहे खादी लिबास में। रहज़न से कम नहीं हैं ये रहबर नए-नए।। मिलती है बेकसूर को अक्सर सजा यहाँ। डरते नहीं गुनाह से अफसर नए-नए।। हमदर्द बन के लोगों ने लूटा निज़ाम को। मिलते रहे हमेशा सितमगर नए-नए।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
मौन
कविता

मौन

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहने को मैं मौन हूं। जब उधर रहते सिले हुए, आंखें भी निशब्द रहती, तब मैं संवाद कर रहा होता हूं अंतस के साथ बहुत देर तक, जिसे कोई अन्य सुन नहीं पाता। मैं देह का समग्र शक्तिपुंज बन जाता हूं, तर्कपूर्ण संवाद करने को। मेरे साथी बन जाओ या मितभाषी बनो, पर वाचालता मत अपनाओ। चरित्र तुम्हारा इससे तार-तार हो जाएगा। मत झुठलाओ जीवन को। मुझे अपना साथी बना लो। तुम और तुम्हारी शक्ति युवा रहेगी सदा सदा। परिचय :- डॉ. चंद्रा सायता शिक्षा : एम.ए.(समाजशात्र, हिंदी सा. तथा अंग्रेजी सा.), एल-एल. बी. तथा पीएच. डी. (अनुवाद)। निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश लेखन : १९७८ से लघुकथा सतत लेखन प्रकाशित पुस्तकें : १- गिरहें २- गिरहें का सिंधी अनुवाद ३- माटी कहे कुम्हार से सम्मान : गिरहें पर म.प्र. लेखिका संघ भोपाल से गिरहें के अनुवाद पर तथा गिरह़ें पर शब्द प...
हम महान है
कविता

हम महान है

दीपक अनंत राव "अंशुमान" केरला ******************** हम महान है, इसलिए कि तुम महान हो तुम महान हो, इसलिए कि सारा जहाँ महान है सृष्टि का कण-कण महान है, मिलकर सब इस सुंदर सृष्टि का निर्माण किए है। अब भी समय है, झांको अपने अंदर अहम को पहचानो अपने अंदर छुपे महान व्यक्ति को दुनिया से रूबरू कराओ अपना जीवन धन्य बनाओ। किसान महान है क्योंकि वह पालनहार है गृहणी महान है क्योंकि वह पूरे घर को संभालती है पिता महान है, वह प्रत्येक वस्तुओं की व्यवस्था करता है कवि महान है, फैलता है अपनी भावों की खुशबू हम महान हैं, दुनिया को सुगन्धित करता है, औरों को अपना बनाता है, जीने की कला सिखाता है, और ज़ुबान से फरमाता है कि हर रचना ईश्वर की करमत है महान भावों से ही धरती पर स्वर्ग पनपती है धरती स्वर्ग बन जाती हैं। परिचय :- दीपक अनंत राव अंशुमान निवासी : करेला घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी ...