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पद्य

मीठी ईद लगे फीकी है
कविता

मीठी ईद लगे फीकी है

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** गहरी पीड़ा धरती की है। मीठी ईद लगे फीकी है! कोरोना के जाल बिछे हैं! नयनों से आंसू बरसे हैं ! सारे कारोबार थमे हैं! बन्द सभी बाज़ार हुए हैं! दशा यही हर बस्ती की है! मीठी ईद लगे फीकी है! बेटी गई मुरारी बा की! सखी सिधारी है सुखिया की! लाठी छिनी बनू बाबा की, विधवा हुई पड़ोसन काकी! यही कथा सलमा बी की है! मीठी ईद लगे फीकी है! कई घरों में हैं रमज़ान! हुए कई चूल्हे वीरान! भिन्न उपनगर हैं सुनसान! सीमित हैं भोजन-जलपान! बाहर सख़्ती कर्फ्यू की है! मीठी ईद लगे फीकी है! मस्जिद,मंदिर औ' गुरुद्वारे! बहुत समय से मौन हैं सारे! घर में ही पूजन-अर्चन है, कहाँ जाएँ पीड़ित दुखियारे! आँख सजल हर श्री जी की है! मीठी ईद लगे फीकी है! नहीं लग रहे हैं अब मेले! कहाँ गए लोगों के रैले! उदासीन बन्दी जैसे हैं, घर में ही परिवार अकेले! मेरी क्या चिन्ता सबकी है...
मन के दीप का धीर न खोना
कविता

मन के दीप का धीर न खोना

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** जब सूर्य का उगना क्षितिज से नियति का वरदान है, तो फिर भला क्यों हर सुबह यूँ रात का आभास देती। इन हवाओं में प्रवाहित हो रहा है ज़हर कोई, ज़िन्दगी की बाट जोहती मौत दिखती पास बैठी। मानते हैं आज शोषण है कथानक ज़िन्दगी का, पर जियेंगे पात्र क्या अलसाई मुर्दा लेखनी से? आदमी और आदमी के बीच का अंतर बढ़ा है, या कि साँसों का गणित मुद्रा के आगे गौण है? प्रश्नों का तो चक्रव्यूह है लड़ना ही होगा जीवन में, लड़ना होगा अपने मन से झूठे सपनों के दरपन से। समाधान की एक झलक मिलती है सागर के तट पर, जहाँ प्यार पाते हैं अजनबी दुलराती है लहर लिपट कर। यहाँ लहर ही जीतती है और लहर ही हारती है, कभी उछलती कभी मचलती मन के मैल निगल जाती है। लहरों की भाषा सीखकर हम तूफानों से बात करेंगे, अब तक जो भी घात सही उन सबका प्रतिघात करेंगे। सभी दुखी हैं देख देखकर सत्य को प्र...
भवरसेन की जलेबी
कविता

भवरसेन की जलेबी

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** विन्ध क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली को बघेली बोली कहते हैं जो अपनी मधुरता मिठास के लिए जानी जाती हैं आइये एक रचना बघेली में, सीधी जिले में भवँर सेन नाम का ऐतिहासिक स्थान है जो बाण भट्ट की तपोस्थली है, कहते भगवान राम के अनुज लक्ष्मण जी ने यही भ्रमरासुर का अंत किया था १४ जनवरी मकर संक्रांति को इसी स्थान पर मेला लगता हैं उसी मेले का एक दृश्य ... इया भवरसेन के मेला मा सुक्खू काकू आये हैं दीखि परी दुकानि जलेबी की सुक्खू ओहि कई धाए है ताऊलाय जलेबी दोना मा जाय बइठे सुक्खू कोना मा मुह मा दांत न आँत पेट मा धरि बइठे बगल जलेबी दोना मा अउ रही जलेबी गरम गरम सुक्खू जइसे मुह मा डारिन गई चपकि जलेबी तरवा मा भट्टा जइसन मुह ऊ फारिन हम कहेन की काकू का होइगा उ कहिन दादू न कुछ न पूछा हम रामो सत्य कहे देइत अब कबै जलेबी खाइब ना . ...
तिरंगा
कविता

तिरंगा

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** तिरंगा वतन की मिट्टी की शान है। हमारा देश भारत सबसे महान है। इसी मिट्टी में जन्मे भगत ,सुभाष बिस्मिल । मिटने ना देंगे हम विरासत की शान। तेरे आंगन में है मंदिर, मस्जिद,गुरूद्वारे। मिटा के रख देंगे जातिवाद का विवाद। इंसानियत के दम पर रचेंगे नया इतिहास । मानवता की विश्व में रखेंगे हम मिसाल। सरहद की चौखट पर रखेंगे अपना सर। व्यर्थ न जाने देंगे वीरों का ये बलिदान । स्वप्न था तिलक का आजाद की थी कल्पना आजाद है भारत मेरा, आजाद रहना चाहिए। सोने की चिड़िया सोने की रहना चाहिए। आजाद है भारत मेरा आजाद रहना चाहिए।   परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा के लघु कथाकारो पर शोध कार्य, कविता, ऐ...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

गीतांजलि ठाकुर सोलन (हिमाचल) ******************** जिंदगी एक प्रश्न है और यह हम कैसे जीते हैं यह हमारा उत्तर है। इसलिए, "जिंदगी में कभी किसी बुरे दिन से रुबरु हो जाओ, तो उस चांद को जरूर देखना जो अंधकार के बाद भी चमकता है।। जिंदगी में कभी तुम गिरने लगो तो, उस झरने को जरूर देखना जो ऊंचाई से गिरकर भी बहता रहता है ।। जिंदगी में कभी अकेले हो जाओ तो, उस फूल को जरूर देखना जो कांटो के बीच में भी मुस्कुराता है।। जिंदगी में कभी ठोकर लगे तो, उस हीरे को जरूर देखना जिसका मूल्य ठोकर खाकर और भी बढ़ जाता है" "इसलिए जिंदगी से यही सीख है मेहनत करो रुकना नहीं, हालात कैसे भी हो किसी के सामने झुकना नहीं" .... . परिचय :-गीतांजलि ठाकुर निवासी : बहा जिला सोलन तह. नालागढ़ हिमाचल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्...
बिगड़ना मेरा जायज़ है
कविता

बिगड़ना मेरा जायज़ है

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लगता हूँ जिसको मैं कुंठित, वजह उन्ही का साथ है। खुद ने मुझको सरपे चढ़ाया, तभी तो यह हालात है। जब मानते हो मुझको बेटा, तो बिगड़ना मेरा जायज़ है। क्या इस हक को भी छीन लिया, अब बताओ ना फिर क्या बात है? बन जोहरी की मेरी परख तो, में हीरा था पत्थर का। जब तराशना शुरू किया तो, प्रश्न मिला मेरे उत्तर का। रहा ढूंढता जिसे जहाँ में, वो गुरु आपमे पाया है। नही भान था लिखने का, अब जाके लिखना आया है। क्या बीच राह में छोड़ मुझे, अब इतनी बड़ी सज़ा दोगे। अब तो कर दो क्षमा मुझे, क्या और परीक्षा भी लोगे। बिना आपके कुछ नही मैं, दिन काले अँधेरी रात है। खुदी ने मुझको सर पे चढ़ाया, तभी तो यह हालात है।। लगता हूँ जिसको मैं कुंठित, वजह उन्ही का साथ है। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश...
घूँघट
कविता

घूँघट

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** कभी किसी की लाज है घूँघट सुहागन के सिर का ताज है घूँघट दुल्हन के मुख का राज है घूँघट ब्याह में सूरत सजाती है घूँघट सजनी के चेहरे दमकाती है घूँघट भारतीय नारी का प्रतीक है घूँघट प्रेमी की अभिलाषा की प्रीत है घूँघट फूलों की सेज की खुशबू है घूँघट माँ बाप के सपनों की आबरू है घूँघट कहीं इज्जत कहलाती है घूँघट नारी पर सबको भाती है घूँघट चाँद से चेहरे की दीवार है घूँघट चंदा चकोरी का प्यार है घूँघट पिया के प्रणय की शुरुआत है घूँघट प्रणय जोड़े की नव प्रभात है घूँघट ... . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
नारी जीवन
कविता

नारी जीवन

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** नारी जीवन संघर्षो की, उपमा नही उदाहरण हैं। इस श्रृष्टि की भाग्य विधाता, वह जन मानस की तारण हैं॥ उसनें हीं नींव रखी घर की घर कों परिवार बनाया हैं। भूली बिसरी उस अबला नें हर संकट कों अपनाया हैं॥ त्याग दिया घर उसनें अपना पति का संसार बसाने कों। वो सर्वस्व लुटा बैठी हैं अपना घर बार चलाने कों॥ उसके हीं बलिदानों से हमनें इतिहास सजाया हैं। माँ, बहन, बहु, बेटी, बनकर हम पर स्नेह लुटाया हैं॥ उसका बलिदान अतुलनीय हैं अनुपम स्वरूप हैं ममता का वह क्षमा रूप का सागर हैं कोई मोल नही उस क्षमता का॥ . परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान ...
माँ
कविता

माँ

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** किसी शब्द में न बांध पाऊं तुम्हें क्योंकि पूर्ण शब्द तुम ही हो माँ अंधेरे में भटकती खोजती हूं तुम्हें मेरे हृदय में करती उजास हो माँ धूप में जल जाये न कहीं मेरे पैर इसलिए अपना पैर जला लेती हो माँ सूखे में मैं सोऊं रात भर इसलिए खुद गीले में सोती हो माँ सुख रहे सदा मेरे साथ इसलिए जीवनभर दुख मेरा ले लेती हो माँ अमृत की चाह नहीं तुझे, मुझे कभी न पीना पड़े जहर इसलिए स्वयं नीलकंठ बन जाती हो मां आराम से सो सकूं मैं इसलिए झूला, गोद में बना लेती हो माँ अश्क मेरी आँखों से न बह पाये कभी इसलिए खुद समंदर बन जाती हो माँ एक रोटी मांगू तो देती हो चार और भूखा न रहूं मैं इसलिए गिनती ही भूला देती हो मां जीवन गणित के सूत्र में कहीं फेल न हो जाऊं मैं इसलिए इस शून्य की दहाई बन जाती हो माँ नजर न लगे दुनियां की मुझे इसलिए आँखों से अपनी माथे पर मेरे, काजल का ...
पिता के लिए
कविता

पिता के लिए

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** जो बिन दिखाए रोता है, आंसू छुपाये रोता है, और सारी उम्र तुझे अपनी दिमाग मे ढोता है। जो बिन दिखाए रोता है, आंसू छुपाये रोता है, और सारी उम्र तुझे अपनी दिमाग मे ढोता है। वो कोई और नही महोदय सिर्फ एक पिता होता है। अपनी परिवार को खुश देखकर जो खुशियों से फुल जाता है । और मेरी एक मुस्कान पर, अपने लाखो गम वो भूल जाता हैं। जो खुद बनकर रेशम तुझको मोती समान पिरोता है, वो कोई और नही महोदय सिर्फ एक पिता होता है। मुझे कामयाब बनाने के लिए, जो मेहनत दिन रात करता है। और उसके बारे में क्या लिखूं, जो खुद भूखे रहकर मेरा पेट भरता है। मुझे देकर रौशनी जो खुद अंधेरे में सोता है, वो कोई और नही महोदय सिर्फ एक पिता होता है। क्या झगड़ा क्या विवाद है, बस इतना ही अब याद हैं। उसकी हर डांट मेरे लिए, एक बहुत बड़ी आशीर्वाद हैं। तेरी ही कहानी में जिसका तो हर किस्स...
मेरी मम्मा
कविता

मेरी मम्मा

शुभा शुक्ला 'निशा' रायपुर (छत्तीसगढ़) ********************   मेरी मम्मा प्यारी मम्मा तुझसे जग देखूंगी मम्मा कोख में तेरी रहकर जाना जग से न्यारी मेरी मम्मा तेरे शीतल सुंदर मनोभाव ने मुझमें कोमल आत्मिक संस्कार जगाया मेरे लिए जग से लडने के अद्भुत विचार ने मुझमें भी आत्म विश्वास जगाया तू तो मेरी जननी है तू साक्षात जगजननि है मैं जनम लूगी ऐसी धरा पर जहां सृष्टि की रचयिता जननी है है इतना विश्वास कि तू मां मुझको इस संसार में लायेगी अभूतपूर्व सौंदर्य और रहस्यों से परिपूर्ण जहां की सैर करायेगी पर दुनिया के तानों की तु बिल्कुल परवाह नहीं करना 'बेटी जन दी' के पत्थर खाकर कोख में मेरा वध मत करना मैं तो तेरी लाडली हूं मां मैं जग से निराली तेरी राजकुमारी पाप ना लेना भ्रुण हत्या का विनती करे सुत आज तिहारी तुम तो मेरी प्यारी मम्मा आज के युग की नारी हो लड़ जाओगी सारे जग से मां तुम ईश्व...
सारा संसार हमारा
कविता

सारा संसार हमारा

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** मन मेरा झूम झूमके नाचता गाता दिल सारा संसार हमारा... नीलाम्बर, सूर्य, चंद्र व तारें, बादल, नक्षत्र वे सारे नजारें, सागर, सरिता बहते मीठे झरनें पेड़-पौधे,पहाड़ लगे सब प्यारे। मन मेरा झूम झूमके नाचता गाता दिल सारा संसार हमारा... उमंगी मन ऊँची उड़ान भरता, सारे संसार का विहार करता, सपनों की बारात के संग संग बादलों की ओट से झाँकता चलता मन मेरा झूम झूमके नाचता गाता दिल सारा संसार हमारा... समीर सरगम गाता घूमता, नभ को प्रेम नैनों से चूमता। प्रकृति को बाहों में भर कर चिड़िया संग मन गाता झुमता। मन मेरा झूम झूमके नाचता गाता दिल सारा संसार हमारा... मधुर झरने का पान करता, किशलय शृंग से बातें करता। मन पर्वत शिखा पर बैठकर प्रभु का सौन्दर्य दिल में धरता। मन मेरा झूम झूमके नाचता गाता दिल सारा संसार हमारा... मित...
डर ज़रा
गीत

डर ज़रा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** झांक मन में आज अपना आकलन तू कर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! मन में तेरे है मलिनता! स्वार्थ की इसमें बहुलता! क्यों नहीं सच्ची सरलता? पालता हैं क्यों जटिलता? स्वच्छ कर सद्भावना से स्वयं का अन्तर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! 'अहं' में रहता मगन तू! सतत करता है पतन तू! बोलता कड़वे कथन तू! क्यों नहीं करता मनन तू? अपने शब्दों में शहद की मधुरता को भर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! पाप हैं अविराम तेरे! व्यस्त हैं दिन-याम तेरे! अनैतिक सब काम तेरे! दुष्टता है नाम तेरे! सोच क्या ले जाएगा संग अपने यायावर ज़रा! ए मनुज सब जानता है ईश उससे डर ज़रा! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस...
संकल्प
कविता

संकल्प

डॉ. अपराजिता सुजॉय नंदी रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** चलो शुरू करें फिर वही आंदोलन विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर करें हम देश का आर्थिक सुधार।। यह बहिष्कार केवल वस्तुओं का नहीं विदेशी विचारों को भी बहिष्कृत करना होगा तभी तो यह सफल आंदोलन होगा तभी यह संकल्प भी पूरा होगा।। आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए स्वदेशी वस्तुओं की खरीदी को बढ़ाना होगा देश में बढ़ रहे आर्थिक संकट को हर संभव कोशिश से दूर करना होगा।। आज भारत का प्रत्येक निवासी जिन परिस्थितियों से गुजर रहा है आर्थिक गिरावट के कारण ही पारिवारिक हिंसा भी बढ़ रहा है।। विश्व संकट की इस विषम स्थिति में विदेश में जब ख़ुद को अकेला पाया अपने प्राणों की सुरक्षा के लिए तुम्हें अचानक अपना देश याद आया।। कई वर्षों से तो विदेशों के आर्थिक व्यवस्था में योगदान दिया विचार करे कि हमने अपने देश के आर्थिक...
है यह जीवन छलावा
हाइकू

है यह जीवन छलावा

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** धनुषाकार वर्ण पिरामिड में प्रयत्न :- विधान-यह आज हिन्दी साहित्य क्षेत्र में प्रमुखता से प्रयोग में आने वाली जापानी विधा है। यह १४ चरण वाली २८ वर्णों वाली विधा है।इसके प्रथम चरण मे १ वर्ण, द्वितीय चरण में २, तृतीय चरण में ३, चतुर्थ चरण में ४, पञ्चम चरण में ५, षष्ठ चरण में ६ तथा सप्त चरण में ७ वर्ण होते हैं, आठवें चरण में ७ वर्ण, नौवें चरण में ६ वर्ण, दसवें चरण में ५ वर्ण, ग्यारवहें चरण में ४, बारहवें चरण में ३, तेरहवें चरण में २ वर्ण तथा चौदहवें चरण में १ वर्ण होते हैं, यानि वर्ण पिरामिड की पूर्णतः उल्टी गिनती। आधे वर्णों की गिनती नहीं होती तथा किन्हीं दो चरणों में तुकांत होने से सृजन लाजवाब हो जाती है। सारांश में बोलना कम काम ज्यादा के सिधान्त का पालन करता है यह। है यह जीवन छलावा ही वास्तविकता नहीं भुलावा ये आया जो है जाएगा...
तू ही नारी तू ही प्रकृति
कविता

तू ही नारी तू ही प्रकृति

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हो! पंचतत्व की वाहिनी, सृष्टि की, तू ही जननी, भाव समाहित हर तुझमें, नव रस की, तू ही पोषनी... बहता निर्मल आब तुझमे, मन पुलकित सुन रागिनी, ताप छूपा उर में, महकी, थिरकी बन कभी मोरनी... सप्त रंगों की तूलिका तू, उकेरे कानन बन दामिनी, स्याह हुआ, छाया तम तो, खिली बन तू फिर चाँदनी... नारी हो या प्रकृति हो तुम, तू ही अवनि, तू ही जननी, अंनत की हैं कृति सुंदर तू, तू ही हैं वो जीवनदायिनी... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्र...
कुछ तो बदला है
कविता

कुछ तो बदला है

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** हवाओं ने आज रूख बदला है, न जमीं बदली है न आसमान बदला है। केवल हवाओं ने आज रूख बदला है। बदला है मेरे गांव का चौपाल जहां साझा होते थे तजुर्बे आज पसरा है वहां सन्नाटा। बदला है मेरे घर का आँगन जो दिन भर अब गूंजते हैं किलकारियों से। बदले हैं रस्मों रिवाज मेरे घर के जहां बंटते हैं प्यार खाने की थालियों में। बदली है मेरी राहें जा रहे थे जो पूरब को छोड़ पश्चिम की अगवानी में। बदला है वह समय जो कल तक नहीं था पास किसी के अब हैं फुर्सत में। बदले हैं वे रिश्ते नाते जो रहकर पास रहते थे अपनों से दूर अब लगाव महसूसते हैं फासलों में बदला है बरगद का पुराना सूना पेंड़ जहाँ लगे हैं लौटने खग अपने नीड़ में बदली है ग्रीष्म की वो बंद सरिता जहां चल रही नाव साहिल की तलाश में बदले हैं वो अंदाज जो करते थे बयां होती नहीं मोहब्बत गले मिलने से ही न धर्म बदला है न करम ...
मजदूर की मजबूरी
कविता

मजदूर की मजबूरी

श्याम सिंह बेवजह नयावास (दौसा) राजस्थान ******************** मजदूर देखों कितने मजबूर हो गए सपने थे दो रोटी के वो भी खो गए हैरां परेशान विवशता देखों उनकी थके थे इतने की वो पटरी पे सो गए मुश्किलें देख ह्रदय व्याकुल हो गया ऐसी स्थिति देखकर मेरा मन रो गया भूखे प्यासे राह नापते बैलों से निकले देख धूप एक बैल आसमां में खो गया बनते बैल अब बारी बारी से आते है कहि घोर घटा तो कहि काली राते है कैसी विपदा ये मालिक दी आज तूने कई रातों से ना नहाते है न ही खाते है यहाँ कोई सुनता नही तू ही सहारा है मार या जिंदा रख अब तू ही हमारा है तेरा आखिर तुझको ही अर्पित हे नाथ ये मतलबी दुनिया ये जग सब तुम्हारा है सरकार अमीजादों को घर पहुँचाया है सदैव तत्पर आपके लिए गुनगुनाया है गरीब मजदूरों की अब कोई सुनता नही हाल बेहाल "श्याम"तुमने आखिर गाया है   परिचय :-  श्याम सिंह बेवजह निवासी : नयावास (दौसा) राजस्थान...
मजदूर
कविता

मजदूर

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** पेट की आग बुझाने को मजबूर हैं, जनसंख्या का बड़ा भाग मजदूर है, लाकडाउन में भूखे प्यासे सो जाते हैं, अपने घर, गांव, शहर से दूर हैं। चिलचिलाती धूप में नंगे पांव चले, छालों की चिंता किए बिना मजदूर चले, सिर पर गठरी, हाथ में सामान लिए, बच्चों के संग सड़क नापते कोसों दूर चले। कहीं मीनार चढ़े, तो कहीं, मंदिर के नींव में दबे, दर्द सहा गालियां खाई और अपमानभी सहे, पसीने की हर बूंद भी बहा दिया हमने, अभावों में अधनंगे चिथड़ो से तन ढके। जीवन जीने को शहर आए थे, जिंदगी बचाने को घर लौट चले, दर्द की पुकार कोई सुने नहीं, बेबस, दुखी और लाचार हो चले। एक दूजे का हाथ पकड़कर जाएंगे, रोटी के लिए भगवान से भी लड़ जायेंगे, अपनी भुजाओं पर भरोसा है हमको, दो जून की रोटी प्रेम से कमा कर खाएंगे। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** चलते चलते राह में ठहर गई है जिंदगी कांटा बन के पाव में चुभ गई है जिंदगी। क्या गुप्तगु करे तुझसे ये मेरे दोस्त जुंबा पत्थर की बन गई है जिंदगी। बड़ा आसान है, बोझ को जिस्म पर ढोना, तकलीफ होती है, जब दिल पर बोझ बनती है जिंदगी। कौन अपना कौन गैर समझ मे नही आता आज चेहरा बदल गया उसका कल तक थी जो मेरी जिंदगी। चोट खाई तो यकीन आया ये हर दौर का सच है इंसान को जख्म पे जख्म देती रहती है जिंदगी। तुझे तेरे गुनाहों की सजा मिली है, धैर्यशील खुदा का बनाया कैदखाना है जिंदगी। . परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी...
आएगा कभी मधुमास नहीं
गीत

आएगा कभी मधुमास नहीं

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** मन में यदि कोई आस नहीं आएगा कभी मधुमास नहीं बढ़ सकते पाँव नहीं आगे मन में ही अगर विश्वास नहीं मन में क़ायम उम्मीद रहे संसार तुम्हारा मुरीद रहे जीवन पथ पथरीला हो पर नर होना कभी निराश नहीं कभी धैर्य का दामन मत छोड़ो अपनों से नाता मत तोड़ो अनुचित व उचित का भान रहे मन होगा कभी उदास नही दिल में गर कोई चाह नाहीं दुखियों की कोई परवाह नहीं क्यों दम्भ मनुजता का भरते पर पीड़ा का एहसास नहीं ग़म से क्यों रिश्ता जोड़ लिए मुस्कान से क्यों मुँह मोड़ लिए दस्तक ख़ुशियाँ फिर क्यों देंगी जीवन में हास- विलास नहीं रिश्तों का सदा सम्मान करो दुश्मन का भी मत अपमान करो साहिल तो वही होता सच में करता जो कभी उपहास न . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्याल...
रंग
कविता

रंग

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** रंग वो जो दिखता है, या रंग वो जो चढ़ता है। दिखता तो नीला या लाल, या राधा के गालों पर गिरधर गोपाल। वो होली का गुलाल या साम्प्रदायिकता का काल वो केसरी जो हनुमान का, या रावण के अभिमान का। प्रदर्शन में मांग का, नेताओं के स्वांग का, होली में भांग का। सुहागन की मांग का। भगत सिंह की आजादी का। कसाब की बर्बादी का। खेतों में हरियाली का। तिरंगे में खुशहाली का। मां की ममता का, सैनिक की क्षमता का। मीरा में भक्ति का, राम में शक्ति का। शहरों में दंगों का, गांव में मन चंगों का। रंग वो जो दिखता है या रंग वो जो चढ़ता है। तिरंगे के तीन हैं। सबके अपने दीन हैं। फिर भी सुख दुःख सहते हैं। हम भारत वासी मिलकर रहते हैं।   परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पं...
चांदी के टुकड़ों पर
कविता

चांदी के टुकड़ों पर

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** ओ चांदी के टुकड़ो पर ईमान बेचने वालों ईमान बचाकर दुनिया मे अब तो जीना अपनालो ईमान मानव जीवन का एक दीप्तिमान ध्रुव तारा हैं ईमान बिना इस मानव का मिथ्या जीवन ही सारा हैं पर हाय भाग्य ही फूट गया पापी बेईमान जानते है जो थोड़ी सी लालच पाने पर अपना ईमान बेचते है जो अल्प रजत टुकड़ो खातिर हत्या करते हैं भाई की उनकी यश कीर्ति सदा बढ़ती पाते इज्जत बहनोई की यह धरा क्षमा न करती थी ईमान बेचने वालों को पर यही धरा अब हाय देती आश्रय बेईमानो को विश्वास नही होता ऐसा सब सह कर चुप रह जायेगी एक दिन बेईमानो को लेकर यह रसा रसातल जाएगी इसलिए सभी मेरे भइया जी लो ईमान बचाकर पाकर इज्जत सम्मान मधुर स्वर्ग बनाओ अपना घर गर इसी तरह मेरे भइया ईमान बेचते जाओगे फिर इस महंगी मानव काया का मूल्य चुका न पाओगे ओ चांदी के टुकड़ो पर ईमान बेचने वालों ईमा...
मजबूर मजदूर
कविता

मजबूर मजदूर

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** औजार हथौड़ा हाथ में ले कर अपनी हाथों पर छाले सजाते। रुखी सुखी खाना खा कर देशवाशियों के भूख मिटाते। सूरज से तपती धरती पर अडिग खड़े कुदाल चलाते। दिनभर अपना खुन जला कर रात को बेसुध नींद समाते। सुर्य तपन,ओलो की मार से उनके हृदय हर दम घबराते। कभी बारिश तो कभी सुखार के चिंता में पुरा वर्ष गुजारते। कभी नीले अम्बर के नीचे फटी चादर ओढ़े सो जाते। ऊँची ऊँची इमारत बना कर अपना धर्म कर्म निभाते। झुग्गी झोपड़ी आशियां उनका दूजे का शीशमहल वो सजाते। सबके घर घर रौशन करके खुद के घर डिबरी वो जलाते। दो जुन की रोटी पा कर बच्चों संग चैन की बंसी बजाते। फसल लहलहाए या सुखा पड़ जाये फिर भी मालिक तक अनाज पहुचाते। शरीर का हिस्सा हिस्सा झोंक परिवार के लिये दिहाड़ी कमाते। . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक...
मैं आऊंगा
कविता

मैं आऊंगा

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मैं आऊंगा...... छाएंगे जब बादल, होगा गहन अंधेरा, खोने की पीड़ा होगी बेहद, इंतजार "तुमको" होगा "मेरा" मैं आऊंगा..... बादल बनकर बरसुगां, सुखी बंजर धरती पर, प्रेम की फौव्हार बरसा कर, शीतल करने तेरा मन, मैं आऊंगा...... तारे चमकेंगे अंबर में, श्वेत चांदनी बिखरेगी, तुम बन जाना चांदनी मेरी, मैं चांद तेरा बन जाऊंगा, मैं आऊंगा..... शाम ढलेगी ज्वाला जलेगी, हुक उठेगी अरमानों की, अपना प्यार लुटाने तुझ पर, तेरी प्यास मिटाने, मैं आऊंगा.... कसम से..... मैं आऊंगा.... . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा उपनाम : साहित्यिक उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी ...