मीठी ईद लगे फीकी है
रशीद अहमद शेख 'रशीद'
इंदौर म.प्र.
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गहरी पीड़ा धरती की है।
मीठी ईद लगे फीकी है!
कोरोना के जाल बिछे हैं!
नयनों से आंसू बरसे हैं !
सारे कारोबार थमे हैं!
बन्द सभी बाज़ार हुए हैं!
दशा यही हर बस्ती की है!
मीठी ईद लगे फीकी है!
बेटी गई मुरारी बा की!
सखी सिधारी है सुखिया की!
लाठी छिनी बनू बाबा की,
विधवा हुई पड़ोसन काकी!
यही कथा सलमा बी की है!
मीठी ईद लगे फीकी है!
कई घरों में हैं रमज़ान!
हुए कई चूल्हे वीरान!
भिन्न उपनगर हैं सुनसान!
सीमित हैं भोजन-जलपान!
बाहर सख़्ती कर्फ्यू की है!
मीठी ईद लगे फीकी है!
मस्जिद,मंदिर औ' गुरुद्वारे!
बहुत समय से मौन हैं सारे!
घर में ही पूजन-अर्चन है,
कहाँ जाएँ पीड़ित दुखियारे!
आँख सजल हर श्री जी की है!
मीठी ईद लगे फीकी है!
नहीं लग रहे हैं अब मेले!
कहाँ गए लोगों के रैले!
उदासीन बन्दी जैसे हैं,
घर में ही परिवार अकेले!
मेरी क्या चिन्ता सबकी है...