खुश्क तबियत
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण"
इन्दौर (मध्य प्रदेश)
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खुश्क तबियत हरी नहीं मिलती।
और फिर रसभरी नहीं मिलती।।१।।
लोग कहते कि चाँदनी देखो,
चाँदनी साँवरी नहीं मिलती।।२।।
नाज़ नखरे हजार होते हैं,
रूपसी बावरी नहीं मिलती।।३।।
नाज़नीनों को भटकते देखा,
आप सी सहचरी नहीं मिलती।।४।।
हूर तक को उतार लेता पर,
आप जैसी परी नहीं मिलती।।५।।
इश्क नमकीन हुस्न मीठा है,
प्रीति भी चरपरी नहीं मिलती।।६।।
"प्राण" की प्यास आखिरी होगी,
ज़िन्दगी दूसरी नहीं मिलती।।७।।
परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण"
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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