उदित हुआ हूँ मैं
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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उदित हुआ हूँ
पुनः अंधकार का
सीना चीर कर
मृत्यु का भय नहीं,
ना कुछ खोने का डर है,
अनंतर चल पड़ा हूँ
अपने अग्निपथ पर
संघर्षशील चुनौतियों
का सामना करने!
निर्मित हुआ हूँ,
विकसित हुआ हूँ लौटा हूं
प्रकाश पुंज बनकर
दिए की लौ की भांति नहीं,
दिवाकर का तेज लेकर,
कर्मों के समीकरण से
सुलझा सकता हूँ
शतरंज की इस पारी को,
जो विधाता ने बिछाई थी,
किन्तु मैं अजेय
होकर निखरा हूँ
लिखूँगा अब जीवों का
भाग्य मैं स्वयं ही,
ना होगा उसमें कोई
छल समझौता,
ना ही असफलता
की होगी कोई परिभाषा
उजियारा बन छा जाऊंगा
इस विशाल नभ
और थल पर,
पराजय कोई
विकल्प नहीं,
अब जीत के मंत्र की
जीवनी लिखूँगा!
माना कि जीवन
संघर्ष का नाम है परंतु
स्वयं के पुरुषार्थ से
पुरुषोत्तम बनूँगा
जीवों के लिए नहीं है
शेष कोई उधार
मेरे ...