जी भर कर जीने दो
विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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कष्ट बेचारा सीधा सादा, उसे दुख दे लेने दो।
नखरे होते खुशियों के, जी भर कर जीने दो।
माना सुख-दुख दोनों, बिना तैयारी के आते
दोनों को ही वहन करने, निभनेवाले हों नाते
कंटकमय पथ में ही, साहस राहत खुद लाते
डर के आगे जीत सूत्र, हे! मानव पनपने दो
कष्ट बेचारा सीधा सादा, उसे दुख दे लेने दो।
नखरे होते खुशियों के, जी भर कर जीने दो।
कच्ची माटी का घड़ा, या कच्ची उमर के लोग
सहन_शक्ति के बाहर, प्रबल हो जाता संयोग
अंतर्मन मजबूत सदैव, पड़ता पस्त शोक रोग
दुख संतप्त देखकर, कुछ को खुश हो लेने दो
कष्ट बेचारा सीधा सादा, उसे दुख दे लेने दो।
नखरे होते खुशियों के, जी भर कर जीने दो।
सागर मंथन इतिहास, अमृत जहर बटवारा
स्वजन संग लुटता सुख, बेबस दुख ही हारा
पहचाने ही अनजाने से, कन्नी काटता बेचारा
सुख खुशी के मार्ग कम, दुख राहें मचलने दो
कष्ट ...
























