शिक्षा ज्योति जलायें
अंजनी कुमार चतुर्वेदी
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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उज्जवल ज्ञानपुंज हैं शिक्षक,
सबको राह दिखाते।
सारे जग को जीवन जीना,
गुरुवर सदा सिखाते।
काला अक्षर भैंस बराबर,
सारी दुनिया कहती।
जो आबादी अभी अशिक्षित,
वो यह पीड़ा सहती।
अंधकार को दूर भगा कर,
गुरु प्रकाश करते हैं।
तम से भरे हृदय में हरदम,
गुरु उजास भरते हैं।
नीरस मन रसधार बहाकर,
सरस भाव भरते हैं।
बालक की मर्मान्तक पीड़ा,
शिक्षक ही हरते हैं।
मोम सदृश्य जो अपने तन को,
हरदम पिघलाते हैं।
स्वयं शिष्य को शिक्षा देकर,
श्रीहरि दिखलाते हैं।
दीप ज्योति से जलकर शिक्षक,
तम को दूर भगाते।
सुप्त भाव अंतस में जितने,
गुरु ही उन्हें जगाते।
जगत नियंता राम, कृष्ण भी,
गुरु को शीश नवायें।
गुरु की गुरुता करें उच्चतर,
जगतगुरु बन जायें।
रहे हिमालय सी ऊँचाई,
सागर सी गहराई।
गुरु विस्तारित नील गगन से,
महि...