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ऐसा भी होता है

आनंद कुमार पांडेय
बलिया (उत्तर प्रदेश)
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सहसा नम हो जाती हैं आंखें,
बिखर जाते हैं सपने सारे।
देखते हैं जो रात में अक्सर,
दिख जाते हैं दिन में तारे।।
अंतर्मन की गहराई में,
दिल बेचारा रोता है।
तन्हाई के आलम में सुन लो,
ऐसा भी होता है।।

कुछ अदृश्य घटनाएं घटती,
दुख की बदली नहीं है छटती।
खुशियों के पीछे गम दिखता,
हर कुछ है पैसे पर बिकता।।
बढ़ती जाए तड़प इंसा की,
लगता पिंजरे का तोता है।
तन्हाई के आलम में सुन लो,
ऐसा भी होता है।।

झूठ व सच का पता ना चलता,
बिन बाती का दीप है जलता।
यह इक कोरा सच है समझो,
बैठे सज्जन हाथ है मलता।।
मुश्किल में इंसान लगे हर,
काटता कुछ और कुछ बोता है।
तन्हाई के आलम में सुन लो,
ऐसा भी होता है।।

अरमानों का गला घोलते,
अक्सर अपने लोग यहाॅ।
जिसको एक जगह था रहना,
बिखरा पड़ा है जहां-तहां।।
है “आनंद” यही जीवन का सच,
बोझ किसी का कोई और ढोता है।
तन्हाई के आलम में सुन लो,
ऐसा भी होता है।।

परिचय :- आनंद कुमार पांडेय
पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय
माता : श्रीमती राजकिशोरी देवी
जन्मतिथि : ३०/१०/१९९४
निवासी : जनपद- बलिया (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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