Monday, May 20राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: आनंद कुमार पांडेय

कलम मेरी पहचान
कविता

कलम मेरी पहचान

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** हर जंग लड़ा लिखते-लिखते, सत्कर्म हीं एक इरादा है। हम कलम के वीर सिपाही हैं, ये है अपना ऐलान। है कलम मेरी पहचान...२ इतिहास गवाह हमारा है, दुश्मन को भी ललकारा है। बस मुद्दों की हीं लड़ाई है, बेतुक न मेरी धारा है। हम होते नहीं हैरान। है कलम मेरी पहचान...२ हम पड़ते नहीं प्रपंचों में, नित शब्द समागम करते हैं। हर जगह तुरत छा जाते हम, बस शांति प्रेम रस ढरते हैं। मुझमे है शक्ति तमाम। है कलम मेरी पहचान...२ अनमोल मिलन होता अपना, सब देख चकित रह जाते हैं। सबकी बोली थम जाती है, जब शब्द हमारे आते हैं। हो कार्य मेरा अविराम। है कलम मेरी पहचान...२ न जाति धर्म का भेद-भाव, सबसे मेरा गहरा लगाव। आनंदित हो "आनंद" कलम, है दिखलाती अपना प्रभाव। हुई कलम आज वरदान। है कलम मेरी पहचान...२ परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पि...
सांस का सफर …
कविता

सांस का सफर …

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर है। तेरी नजर है मेरी, मेरी तेरी नजर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर है। है दूर ना किनारा, जब साथ हो तुम्हारा- २ अनमोल है ये रिश्ता, तू बन चुकी सहारा- २ जज्बा गजब है तेरा, दुनिया का भी ना डर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर है। तेरी नजर है मेरी, मेरी तेरी नजर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर .... हमराही मेरे हमको, उस छोर तक ले जाना- २ जिस ओर ना पहुंचता, बेदर्द ये जमाना- २ अनजान इस सफर में, बस दर्द का कहर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर है। तेरी नजर है मेरी, मेरी तेरी नजर है, ये साथ तेरा मेरा तो, सांस का सफर ... आनंद के कलम की, कड़ियां कभी रुके ना- २ जो प्रण है मेरे दिल में, वो प्रण कभी चुके ना- २ दरिया के बीच से हीं, मेरे प्रेम की डहर है,...
मेरे मालिक
कविता

मेरे मालिक

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** इनकार न कर पाएंगे, स्वीकार न कर पाएंगे। मेरे मालिक इससे ज्यादा, हम प्यार न कर पाएंगे। इनकार न कर पाएंगे, स्वीकार न कर पाएंगे। हम अज्ञानी ये क्या जाने तू कितना निराला है..2 मिल गया तू जिसको वो तो समझो किस्मत वाला है..2 कितना दयालु है इसका उदगार न कर पाएंगे, इनकार न कर पाएंगे, स्वीकार न कर पाएंगे। मेरे मालिक इससे ज्यादा, हम प्यार न कर पाएंगे। इनकार न कर पाएंगे, स्वीकार न कर पाएंगे। सबकी जीवन नैया तो तेरे हीं सहारे है...2 हार-फूल कुछ पास नहीं ले हृदय पधारें हैं...2 सब कुछ तेरा ही है दिया अधिकार न कर पाएंगे। इनकार न कर पाएंगे, स्वीकार न कर पाएंगे। मेरे मालिक इससे ज्यादा, हम प्यार न कर पाएंगे। इनकार न कर पाएंगे, स्वीकार न कर पाएंगे। दया करो हे दयानिधि हम दर पर आए हैं...2 कब होगा दर्शन तेरा ये आ...
चांद कहवा छुपल
आंचलिक बोली, कविता

चांद कहवा छुपल

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल। प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।। दिल के दरवान दिल के दरद ना बुझे। नीर अखियां के गिरल त सब बह गईल।। जेके अखियां के पुतरी बनवले रहीं। उ बदल जायी अइसे खबर ना रहे।। आसमां के परी जिनके जानत रहीं। छोड़ अइसे दिहें तनिको डर ना रहे।। इहे जीवन के असली सच्चाई बा हो। नाहीं मुहवा खुलल बात सब कह गईल।। चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल। प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।। बनके परछाई जे हमरा साथे चलल। आज ओही के रहिया निहारत बानी।। जे सजावल सनेहिया के संसार के। का भईल अब कि उनके बिसारत बानी।। सात सूर जेके आपन बनवले रही। बेसुरापन के फिर भी झलक रह गईल।। चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल। प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।। सुख के सपना देखल आज सपना भईल। जान जायी की रही बा फेरा लगल।। आस के जो जरवनी दीया बुझ गईल...
मेरा वह परिवार कहाँ है
कविता

मेरा वह परिवार कहाँ है

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** अपनो की वह हंसी ठिठोली, कोयल जैसी मीठी बोली। सबका एक समूह में रहना, था अपना परिवार हीं गहना।। दिखता वह अधिकार कहाँ है। मेरा वह परिवार कहाँ है।। भरा पूरा परिवार था अपना, अब क्यों हुआ आज है सपना। दादी का शाही फरमान, दादा का अपना पहचान।। वह चिट्ठी का आना जाना, पढ़ने सुनने का दौर निराला। वह क्षण तो अद्भुत लगता था, प्रेम का था हर-पल उजाला।। सपनों का वह संसार कहाँ है। मेरा वह परिवार कहाँ है।। मानू सब कुछ बदल गया है, नया दौर सब निगल गया है। मोबाइल के दौर में अब तो, अपना सब कुछ फिसल गया है।। घर परिवार तो नजर न आता, इंटरनेट से जुड़ गया नाता। बदल गया इंसान यहाँ का, अलग-थलग सब हुआ विधाता।। मां बेटे में प्यार कहाँ है, मेरा वह परिवार कहाँ है।। वह राजा रानी की कहानी, सुनते थे नानी की जुबानी। मां ...
मनमीत बनल केहु ना
आंचलिक बोली

मनमीत बनल केहु ना

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** मनमीत बनल केहु ना, अब हीत बनल केहु ना। सूर के हमरा सजावेला, संगीत बनल केहु ना। सब कोस रहल बा हमके। छवलस बदरिया गम के।। हम कोसी ए दुनिया के। या खुद अपना हीं करम के।। बा खेल इ बदलल हमरो। अब जीत बनल केहु ना।। मनमीत बनल केहु ना। अब हीत बनल केहु ना।। किस्मत के लड़ाई बा। लगले हीं खाई बा।। अब साथ छोड़त हमरो। अपने परछाई बा।। मझधार में जीवन नइया बा। रण प्रीत बनल केहु ना।। मनमीत बनल केहु ना। अब हीत बनल केहु ना।। लिखनी बहुतेरे कहानी। आफत में खुद हम बानी।। एह गैर के महफिल में। अब के हमके पहचानी।। अनुमान गलत नईखे। जनगीत बनल केहु ना।। मनमीत बनल केहु ना। अब हीत बनल केहु ना।। जज्बा बा जीत हीं जाईब। खुद से हीं किरिया खाइब।। आनंद ए कठिन डगर में। हमहुॅ किरदार निभाइब।। बनके देखलाइब हम अब। दुनिया के एक नमू...
ऐसा भी होता है
कविता

ऐसा भी होता है

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** सहसा नम हो जाती हैं आंखें, बिखर जाते हैं सपने सारे। देखते हैं जो रात में अक्सर, दिख जाते हैं दिन में तारे।। अंतर्मन की गहराई में, दिल बेचारा रोता है। तन्हाई के आलम में सुन लो, ऐसा भी होता है।। कुछ अदृश्य घटनाएं घटती, दुख की बदली नहीं है छटती। खुशियों के पीछे गम दिखता, हर कुछ है पैसे पर बिकता।। बढ़ती जाए तड़प इंसा की, लगता पिंजरे का तोता है। तन्हाई के आलम में सुन लो, ऐसा भी होता है।। झूठ व सच का पता ना चलता, बिन बाती का दीप है जलता। यह इक कोरा सच है समझो, बैठे सज्जन हाथ है मलता।। मुश्किल में इंसान लगे हर, काटता कुछ और कुछ बोता है। तन्हाई के आलम में सुन लो, ऐसा भी होता है।। अरमानों का गला घोलते, अक्सर अपने लोग यहाॅ। जिसको एक जगह था रहना, बिखरा पड़ा है जहां-तहां।। है "आनंद" यही जीवन का सच, बोझ ...
नव वर्ष कहाँ
कविता

नव वर्ष कहाँ

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** जब रोम-रोम गुलाम लगे, बहे सर्द हवाएँ सन सन सन। घर के अंदर भी ठिठुरन है, कहे चीख-पुकार के अंतर्मन।। पल भर भी नहीं है हर्ष यहां। नव वर्ष कहाँ नव वर्ष कहाँ।। अपना नव वर्ष तो बाकी है, नव अंकुर आने वाले हैं। सूखे पत्ते गिर जाएंगे, खुलने वाले सब ताले हैं।। केसरिया सब हो जाएगा, होगा तब अमृत पर्व यहाँ। नव वर्ष कहाँ नव वर्ष कहाँ।। जैसे बसंत ऋतु आएगी, कलियाँ कलियाँ खिल जाएगी। हर्षित तब घर आंगन होगा, मन में उमंग नव आएगी।। तब हरा-भरा उपवन होगा, कोयल नव तान सुनाएगी। ऐसी अद्भुत ऋतु में लगता, खुद पर सबको है गर्व यहाँ। नव वर्ष कहाँ नव वर्ष कहाँ।। अंग्रेजो की लाई हुई, संस्कृति को क्यों अपनाना है। हम हिंदू हिंदुस्तान के हैं, हिंदू नव वर्ष मनाना है।। अरमानो के नव पर होंगे, खुशियों के पल घर-घर होंगे। आनन्द कलम भ...
अग्निपथ
कविता

अग्निपथ

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** अग्नि का तांडव मचा है, जंग का ये हाल क्यों है। देश के अंदर बिछा, आतंक जैसा जाल क्यों है।। देश के रक्षक बनेंगे, स्वप्न हैं दिल में संजोए। फिर क्यों ऐसी अग्नि भड़की, क्यों ये नफरत बीज बोए।। अग्निपथ के मार्ग में, बाधक बनें ये बाल क्यों हैं। अग्नि का तांडव मचा है, जंग का ये हाल क्यों है। देश के अंदर बिछा, आतंक जैसा जाल क्यों है।। रो रही माॅ भारती अब, कह रही ऑचल पसारे। मेरी रक्षा कब करोगे, जब हो तू खुद से हीं हारे।। अपने हीं लोगों पर चल, तलवार होता लाल क्यों है। अग्नि का तांडव मचा है, जंग का ये हाल क्यों है। देश के अंदर बिछा, आतंक जैसा जाल क्यों है।। रो पड़ी है कलम मेरी, लिखते हुए इस वेदना को। क्यों सुलाए हैं ये मेरे, वीर अपनी चेतना को।। आनन्द तेरे देश में, ये आ रहा भूचाल क्यों है। अग्नि का तांड...
अब वक्त के आगे वक्त बनों
कविता

अब वक्त के आगे वक्त बनों

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** है वक्त नहीं तुम शख्त बनों, अब वक्त के आगे वक्त बनों। होगा जो भी हम देखेंगे, हम सब मिलकर ये प्रण लेंगे।। ये दुनिया तुमको याद करे, खुद में तुम ऐसे शक्स बनों।। है वक्त नहीं तुम शख्त बनों, अब वक्त के आगे वक्त बनों। किश्मत के भरोसे मत रहना, तुम कर्म करो आजादी है। आगे-पीछे की सोच न कर, ये जीवन की बर्बादी है।। बेशक मुसीबत आन पड़ी, नर धैर्य न छोड़ सशक्त बनो। है वक्त नहीं तुम शख्त बनों, अब वक्त के आगे वक्त बनों।। गतिशील बनो धारा की तरह, नर जीवन यूं ना व्यर्थ करो। जज्बा रखो मांझी की तरह, असंभव में नव अर्थ भरो।। आनन्द सफर हो कठिन भले, माने न हार वो रक्त बनो। है वक्त नहीं तुम शख्त बनों, अब वक्त के आगे वक्त बनों।। परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय माता : श्रीमती राजक...
कविता

आजादी है आजाद रहो

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आजादी है आजाद रहो, जो मन में है वो बात कहो। तू फक्र करो भारत में हो, भारत माॅ से ना घात करो।। जज्बातों में कुछ ऐसा ना, अपने लोगों से कर जाना। पुरानी रीति-रिवाजों को ना, चूर चूर कर दफनाना।। चंचलता में जीवन तेरा, ये ध्यान रहे बर्बाद न हो। आजादी है आजाद रहो, जो मन में है वो बात कहो। तू किश्मत अपनी चाहो तो, इक पल में बदल सकते हो उसे। फिर हार जीत का प्रश्न कहाँ , मिली हार किसे और जीत किसे। आपस में लड़ना क्या लड़ना, आनंद विहार कुछ प्राप्त न हो।। आजादी है आजाद रहो, जो मन में है वह बात कहो। परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय माता : श्रीमती राजकिशोरी देवी जन्मतिथि : ३०/१०/१९९४ निवासी : जनपद- बलिया (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
कविता

नोंच लो जितना चाहों तुम

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** नोंच लो जितना चाहों तुम दोनों हमें, नोंचने से न ममता घटेगी मेरी। नोंचने से ये मतलब तनिक भी नहीं, नोंचना तो तु सारा बदन नोचना। कुछ भी करना है तुझको आजादी पूरी, गलती हो तुझसे तो खुद को हीं कोसना। अश्क आंखों में भरकर करूं मिन्नतें, तुझसे नजरें कभी ना हटेगी मेरी। नोंच लो जितना चाहो तुम दोनों हमें, नोंचने से न ममता घटेगी मेरी। तेरे हीं वास्ते मेरा जीवन भरा, है तेरे हीं लिए मेरा हर माजरा। तेरे बिन अब गुजारा तनिक भी नहीं, तु हीं पहली डगर और डगर आखिरी। नोंच लो जितना चाहो तुम दोनों हमें, नोंचने से न ममता घटेगी मेरी। इक मेरा लाडला इक जीवन संगीनी, चांह कर भी नहीं हो कभी फासला। प्रेम से बढ़कर कुछ भी जहां में नहीं, मिलती इतनी खुशी विघ्न सारा टला। नोंच लो जितना चाहो तुम दोनों हमें, नोंचने से न ममता घटेगी मेरी। ...
लिख रही है कलम
कविता

लिख रही है कलम

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आज का ये जहाँ पहले जैसा कहा, रो-रो हर दास्ताँ लिख रही है कलम। याद बचपन की वो खेल कबड्डी का, माँ की वो लोरियां लिख रही है कलम। नखरे इक-इक सभी बेवजह छुट्टियां, मेरी हर खामियां लिख रही है कलम। गाँव की टोलियाँ छांव पीपल के वो, खेलना गोटियां लिख रही है कलम। घसकुटी गुलीडंडा के न्यारे वो खेल, रुठकर मान जाना अनोखे थे मेल, बचपना मस्तियां लिख रही है कलम। अब तो होली दीवाली में रौनक नहीं, संडे की छुट्टियां लिख रही है कलम। झूले सावन के हरियालियां खेतों की, कुक कोयल की वो लिख रही है कलम। लिखते आनन्द की आंख भी भर गयी, अब कहाँ वो शमां लिख रही है कलम। परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय माता : श्रीमती राजकिशोरी देवी जन्मतिथि : ३०/१०/१९९४ निवासी : जनपद- बलिया (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र :...
कविता

बेकार नहीं है हम

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** हमको भी ईश्वर ने अपने हाथों से बनाया है। अपने हाथों से मेरा सुंदर रूप सजाया है।। मत कोस हमें तु बार-बार शिकार नहीं हैं हम। बेकार नहीं हैं हम, बेकार नहीं हैं हम।। मुश्किल घड़ियों में साथ तुम्हारा देंगे हम। हंस-हंस के सह लेंगे तेरे ढ़ाये वो सितम।। तु कह ले तेरे ममता के हकदार नहीं हैं हम। बेकार नहीं हैं हम, बेकार नहीं हैं हम।। किश्मत की लकीरों को हम भी खूद बदलेंगे। दे छोड़ भले तु तनहा कुछ तो कर हीं लेंगे।। जो डूबो दे मंझदार में वो पतवार नहीं हैं हम। बेकार नहीं हैं हम, बेकार नहीं हैं हम।। जो करते हैं वो करने दो मत रोको अब। मेरे भी साथ खड़ा है जो तेरा है रब।। दर पर तेरे खड़े मगर लाचार नहीं हैं हम। बेकार नहीं हैं हम, बेकार नहीं हैं हम।। आनंद की आँखों में भी देखो पानी है। दुःख सुख को हमने भी नजदीक से...
कविता

दर्द-ए-आलम

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** दर्द-ए-आलम सुनाऊं तो किससे भला, दर्द सुनने का साहस किसी में नहीं| उसकी कातिल निगाहों ने मारा मुझे, मार दे मुझको जुर्रत किसी में नहीं| जिनके कदमों में अर्पण किया जिंदगी, अपना कहने की साहस उसी में नहीं| जख्म ऐसा मिला कोई मरहम कहाँ, थोड़ी रहमत नहीं मायूसी में कहीं, कायराना हरकत किया उसने हम पर, फर्क दिखने लगा उस हंसी में सही। वक्त सबका बदलता न गुमान कर, हस्तियां हर समय सबकी रहती नहीं| मौज-ए-आनंद को ना कभी छोड़ना, मुश्किलों की डगर साहसी में नहीं| परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय माता : श्रीमती राजकिशोरी देवी जन्मतिथि : ३०/१०/१९९४ निवासी : जनपद- बलिया (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...
कविता

कर लो इरादों को अटल

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आत्म निर्भरता से हीं तेरा मनोरथ हो सफल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। विश्व में अपना पताका तुमको लहराना हीं होगा। जिंदगी की दौड़ में अव्वल तुम्हें आना हीं होगा। एक हो निर्णय तुम्हारा देश तब होगा प्रबल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। खुद बनों मालिक तु अपना कह रही माँ भारती। अपने जीवन रथ का खुद हीं बनना होगा सारथी।। सोंचने में मत बिताओ अपना सुनहरा आज-कल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। बेवजह की बात में अपना समय बर्बाद मत कर। कौन क्या कहता है इन बातों में घूंट-घूंट के न तु मर।। मेरी इन बातों को तु अपने जीवन में कर अमल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। कश्मकश जीवन में है इस कश्मकश से तु उबर। जिंदगी की राह में तुझको तो चलना है निडर।। कौन है अपना-पराया इस मुसीबत से निकल। बांध लो कस...
कविता

ये काश्मीर हमारा है

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** माँ वैष्णों का धाम यहाँ की शोभा और बढ़ाता है, खड़ा हिमालय इसकी महिमा, मूक स्वर में हीं गाता है। मैं कितना गुणगान करूँ प्रकृति ने रूप सँवारा है, बोले हिन्द के रखवाले ये काश्मीर हमारा है।। सोने की चिड़ियाँ कहते हैं, ये भी क्या कुछ कम है। जो आँख दिखाये इसको उसका, काल बन खड़े हम हैं।। इसी हिमालय से निकली गंगा की निर्मल धारा है। बोले हिन्द के रखवाले ये काश्मीर हमारा है।। हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई, चारो धर्म समान यहाँ। अनेकता में भी एकता है, होता नित है गान यहाँ।। धूल चटाया वीरों ने जिसने इसको ललकारा है। बोले हिन्द के रखवाले ये काश्मीर हमारा है।। संजीवनी सी कितनी जड़ी, बूटियों का ये संगम है। हिंदुस्तान से बाहर भी इसकी, महिमा का वर्णन है।। गीतकार आनंद ने अपना तनमन इसको वारा है। बोले हिन्द के रखवाले ...
कविता

ये जनम-जनम का नाता है

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** इतना भी दूर नहीं है माँ, क्यों लाल मेरे चिल्लाता है। तेरे और मेरे बीच सुनो, ये जनम-जनम का नाता है।। तुझको हर वो कुछ देती हूँ, जो तेरे मन को भा जाये। कोई भी वस्तु नहीं जग में, जो तेरे जी को ललचाये।। तु मेरा राजा बेटा है, ये बात गवारा मत समझो। अब तुझे बताना होगा हमें, क्या तेरा नेक इरादा है।। इतना भी दूर नहीं है माँ, क्यों लाल मेरे चिल्लाता है। तेरे और मेरे बीच सुनो, ये जनम-जनम का नाता है।। है मेरे आँख का तारा तु, जीवन का एक सहारा तु। है अरमानों की बगिया का, इक अदभूत सुमन हमारा तु।। अपनी माँ की इस ममता पर, कभी प्रश्न खड़ा न कर देना। मेरे जीवन को लाल मेरे, आनंद ज्योति से भर देना।। जीवन की हर कठिनाई को, तुझे कोसो दूर भगाना है। हंसते-हंसते हीं जीना है, हंसते-हंसते मर जाना है।। इतना भी दूर ...
कविता

सपने संगम जैसे

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** सपने संगम जैसे लगते, दूर हमारे दुखड़े भगते। छु हीं लेंगे अपनी मंजिल, विघ्नों से ना पीछे हटते।। सपने संगम जैसे लगते, दूर हमारे दुखड़े भगते।। जीवन के हर विकट समय को, हंसते-हंसते दूर भगाना। हम भी हैं इक अद्भूत मानव, सपना आया एक सुहाना।। हम हैं निडर पथिक उस पथ के, पार करेंगे हम भी डटके। सपने संगम जैसे लगते, दूर हमारे दुखड़े भगते।। कभी पंख लग जाते हमको, पक्षी बन उड़ जाते हैं। आसमान के खुले सफर में, उड़ने में सुख पाते हैं।। इन विचित्र सपनो की दुनिया, में हम कभी नहीं हैं थकते। सपने संगम जैसे लगते, दूर हमारे दुखड़े भगते।। वो बचपन के सपने भी तो, आ जाते हैं कभी-कभी। खेल-खेल में रोज झगड़ना, फिर मिल जाना अपना भी।। सपनो के इस सुंदर वन में, मन आनंद के रोज भटकते। सपने संगम जैसे लगते, दूर हमारे दुखड़े भगते।...