माँ हो गई विलीन
संजय वर्मा "दॄष्टि"
मनावर (धार)
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जब तक जीवित थी
मोबाइल पर अपनों के
कैसे हो से हाल चाल
पूछा करती
उसे अकेलापन महसूस
नही होता
अपनों से बात करके
नजदीकी का अहसास
कर लेती
वो पढ़ी लिखी थी इसलिए
लॉकडाउन की परिभाषा
समझती थी।
सबकी सुखद कामना
आशीर्वाद के संग हमेशा करती
माँ आरती में रखे
कपूर की तरह मायने रखती
जिसके बिना आरती अधूरी
आरती की पंक्तियां अधूरी
माँ का हँसता चेहरा
सदा मन मस्तिष्क पर रहते हुए
हर पल याद आता
माँ दरवाजे पर
खड़ी होकर अपनों की राह निहारती
अब चौखट सूनी सी
जिस पर ताला लगा
ये बताता
माँ के पास ही चाभी थी
जिससे वो
मुझ जैसे ताले पर विश्वास रखती की
घर में सुरक्षित है।
संक्रमण काल मे
जीवन को निगलने वाला वायरस
माँ को निगल गया
सारी शक्तियां, आस्था, विश्वास, रिश्तें
अशक्त हो गए
इन पर विश्वास था
वो भी बेजान हो गए
यादों का पिटारा
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