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पद्य

अंतिम सत्य
कविता

अंतिम सत्य

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बहुत दिनों से मेरी फड़क रही थी आँख। कोई शुभ संदेश अब हमें मिलने वाला है। फिर एकाएक तुम्हें आज यहाँ पर देखकर। रह गया अचंभित मैं तुम्हें सामने पाकर।। बहुतो को रुलाया है तुमने जवानी के दिनों में। कुछ तो अभी भी जिंदा है तेरे नाम को जपकर। लटक गये है पैर अब उनके कब्र में जाने को। पर फिर भी उम्मीदें रखे है आज भी दिल में बसाने की।। यहाँ पर सबको आना है एक दिन जलने गढ़ने को। कितने तो पहले ही यहाँ आकर जल गढ़ चुके है। तो तुम कैसे बच पाओगी जीवन के अंतिम सत्य से। और यहाँ आकर मिलता है समानता का अधिकार सबको।। यहाँ पर जलते गड़ते रहते है सुंदर मानव शरीर के ढाचे। जिस पर घमंड करते थे और लोगों को तड़पाते थे। पर अब जीवन का सत्य उन्हें समझ आ गया। इसलिए तो अंत में तुम आ गई हो अपनों के बीच में।। परिचय :- बीना (...
जलती है स्वयं
कविता

जलती है स्वयं

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** १० वर्ष की उम्र में जलती हुई अगरबत्ती को देखकर लिखी गई यह मेरी सबसे पहली रचना है। नील गगन से आने वाले मंद पवन के झोंके से हलचल करती ऊपर उठती देवो को प्रसन्न करने नील नभ विलुप्त होने उठती ऊंचे-ऊंचे पर। नाना विधि के चिर फैलाती जैसे हो द्रोपदी की चीर विचित्र है विचित्र प्रकृति तेरी लाल से बनती नीलभ जलती स्वयं है पर फैलाती सुगंध। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर...
कान्हा स्वामी
छंद

कान्हा स्वामी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मन्दाक्रान्ता विधान : वार्णिक छंद गण संयोजन मगण भगण नगण तगण तगण गुरु गुरु २२२ २११ १११ २२१ २२१ २२ १७ वर्ण प्रति चरण ४, ६, ७ वर्णों पर यति ४ चरण, दो दो चरण समतुकांत कान्हा स्वामी, नमन करिए, भावना नित्य बोले। वंशी देखो, बजत प्रभु की, राधिका मुग्ध डोले।। संगी ग्वाला, सुमिरत सुनो, श्याम प्यारे उबारो। राधा ध्यावे, नटवर सदा, नाम कान्हा पुकारो। राधे रानी, नित किशन का, नाम जापें विधाता। झूमें गोपी, नटवर कहें, आप हो श्याम दाता।। मीरा प्यारे, मनहर प्रभो, नाथ प्यारे नमामी। साँसो में भी, गिरधर रहो, आज आभार स्वामी।। नैया मेरी, भँवर फँसती, पार हो हे खिवैया। आई हूँ मैं, चरनन पड़ी, द्वार तेरे कन्हैया।। तारो कान्हा, प्रतिपल कहें, हो कृपा भी सहारे। कृष्णा कृष्णा, निशदिन रटूँ, हो दया क्यों बिसारे।। नैनो में हो...
कुछ बीज धरा पर बो दो
कविता

कुछ बीज धरा पर बो दो

संगीता पाठक धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हे मनुज! पेड़ काट कर कल जो गलती तुमने की थी। अभी भी वक्त है कुछ बीज धरा पर बो दो। नई पौध धरती पर लगाओ। नई पौध उगा कर गलतियाँ सुधार लो। अवश्य ही बीज अंकुरित होकर कल पेड़ बनेगा । पंछी नीड़ का निर्माण करेंगे। तुम्हारे बच्चे पेड़ की छाया तले विश्राम करेंगे। परिचय :  संगीता पाठक निवासी : धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु ड...
ये दूरियां-ये ख्वाब
कविता

ये दूरियां-ये ख्वाब

सिमरन कुमारी मुजफ्फरपुर (बिहार) ******************** ये दूरी हैं महज ज़मीन की, दिल की नहीं!! दूरी हैं मज़बूरी थोड़े ही, कमी हैं ना मिलने की, कमज़ोरी थोड़े ही!! निभाने का इरादा जरूरी हैं, विश्वास चाहिए वायदा नहीं!! राधा- कृष्ण की दूरी, सच्चे आस की निशानी हैं, तभी तो हर जुबां पर उनके मिलन की कहानी हैं!! मिलेंगे एक दिन वो खास होगा, मैं तेरे करीब तू मेरे पास होगा!! जब ये खिलता ख्वाब, और आँखों में शवाब होगा!! रब्त इश्क़ की दरियां, टूटती ये दूरीयां !! तब मिलना सबसे नायाब होगा, तब हमारा मिलना इत्तेफाक होगा!! ज़मीन की दूरी महज ये दूरी, ख्वाब बुनता दिल, जब मिलेंगे तब ख़ुद को, संभालना होगा मुश्किल!! परिचय :-सिमरन कुमारी निवासी : मुजफ्फरपुर (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
सुविधा पाबो
आंचलिक बोली

सुविधा पाबो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जुरिस गाँ ह सड़ग ले भईया, अउ मन कस सुविधा पाबो चिखला चांदो के दिना ल, हमन अब तो भुलाबो बारी बखरी के साग भाजी, अब सहर मं बेचाही लेबो कमा जीये के पूरती, नी डउकी लइका ललाही धराय हे गहना खेत खार ह, ओला मुक्ता के लाबो चिखला.. बड़े इस्कूल मं लइकन पड़ही, अउ कालेज घलो जाही साहेब, सिपाही जम्मो बनके, जिनगी भर सुख पाही दुनो परानी हमन देखत, भाग ल सँहराबो चिखला.. रई आय पहिली कहूँ ल त ओ, बिन गोली के मरे कतको घोर्री घसन तभो, डॉक्टर ह नी हबरे एक सौ आठ ल बलवाके, निरोग काया ल बनाबो चिखला.. परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय...
जाने क्या बात है
कविता

जाने क्या बात है

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** हर गुफ्तगू कही अनकही में निश्चित कोई जात है, दिल बेचारा हलाकान हो सोचे, जाने क्या बात है। इर्द गिर्द चक्रव्यूह माहौल छिपी उलझन तो मात है, हर व्यूह रचना तोड़ बाहर आना, जाने क्या बात है। नेक सलाह काम परिणाम में अक्सर कोई हाथ है, खुद की दम से नेक काज सधे, जाने क्या बात है। हर वक्त जड़ तना फलती फूलती शाख की पात है, हवा खाद पानी लबालब हमेशा, जाने क्या बात है। गुजरते जीवन के धुंधलके में छिपी बैठी तो घात है, निडर एकाकी जीवन का सफर, जाने क्या बात है। दिन महीने साल गुजारते जब आया दशक सात है, पर देखी वही मशक्कत जुस्तजू, जाने क्या बात है। सुना छप्पर फाड़ धन मिले यकायक दिन या रात है, कुआं खोद प्यास बुझे चकाचक जाने क्या बात है। संघर्ष योद्धा की चुप्पी भली लगती जब मुलाकात है, चूंकि माना अपने तो अपने होते, जाने क्या बात ह...
भारत की सेना
कविता

भारत की सेना

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** भारत की सेना अमूल्य। धरोहर है, हमारी। एक-एक सैनिक भारत मां के भाल के मुकुट का सुंदर जड़ित हीरा है। भारत की सेना अमूल्य धरोहर है, हमारी। सेना का एक-एक सैनिक जोश, शौर्य, पराक्रम और वीरता की गाथा होता स्वयं मे। भारत की सेना अमूल्य। धरोहर है, हमारी भारत माँ का एक-एक सैनिक भारत मां के हृदय की धड़कन है, उसकी हर शवास-प्रशवास होती भारत के लिए। भारत की सेना अमूल्य धरोहर है, हमारी। भारत के सैनिकों के रक्त की एक-एक। बूँद भारत मां की रक्षा हेतु। बहती है। भारत की सेना अमूल्य। धरोहर हैं, हमारी दुश्मन देशो पर टूट पड़ती है कहर बन। भारत की सेनाअमूल्य धरोहर है हमारी। चीन की लद्दाख में सैन्य। झड़प में भारत के बीस सैनिकों ने भारत मां की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया। भारत की सेना अमूल्य धरोह...
मीठी बातें
कविता

मीठी बातें

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** गाँवों में नीदं मीठी होती बौराये आमों तले कोयल की कूक भी मीठी होती। पत्तों से झांकती सूरज की किरणें तपिश को ठंडा कर देती खेत से पुकारती आवाजें सुबह की बयार को मीठा कर देती। गोरी के पनघट पे जाने से पायल कानों में मिठास घोल देती बैलों की घंटियाँ मीठी बातें कहती लगता हो जैसे नदियां इन्ही मिठास से इठलाती बहती। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भ...
प्रीत पिया की याद सताए
कविता

प्रीत पिया की याद सताए

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** आयो पावस बरसे बरखा यह तन-मन अब तड़पायो। दूर गयो परदेश पिया जी प्रिया का मन है तरसायो। पिय मिलन की आस में विरहीन नीर है बहायो । यादों के गहरी सागर में डूबती सी है नजर आयो । मन में प्रीत अगन लगे है पल-पल धधकता जाए रे। आ जाओ पास पिया तुम तुम से शीतल हो जाए रे । प्रीत पिया की याद सताए मन तड़पा -तड़पा जाए। तुम बिन अब चैन नही है अब तुमसे रहा न जाए। आ जाओ प्रियतम मेरे प्रीत से तन-मन भर दो। प्रीत में तेरे मैं रंग जाऊँ मन की पीड़ा मेरा हर दो। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अप...
रात अभी आयी नहीं है
कविता

रात अभी आयी नहीं है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** रात अभी आयी नहीं है और जन्नत के द्वार खोल दिये। जिसे सजाया है वसुन्धरा ने चाँद और सितारों से । धरा ने भी बिछा दी है सफेद चादर मोतीयों की। और महका के रख दिया है रातरानी ने इस रात को।। बहुत शुक्र गुजार हूँ सौंदर्य की देवी का । जिसने मेरे मेहबूब को इतना सुंदर बनाया है। और उससे मिलने के लिए जन्नत जैसा बाग बनाया है। जिसमें मिलकर हम दोनों मोहब्बत की कहानी लिख सके।। जब भी मोहब्बत का जिक्र इस बाग में किया जायेगा। तब तब तुम दोनों को भी याद किया जायेगा। जैसे युगो के बाद भी आज राधाकृष्ण को याद किया जाता है। वैसे ही लोगों के दिलों में तुम्हारी मोहब्बत जिंदा रहेगी।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के प...
बूंदों की सिफारिश
कविता

बूंदों की सिफारिश

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घटाएँ घिर आई बदरा भी गरजे चंचल चपला चमके मेघा उमड़ पड़े ऐसे में आन मिले सनम साँसों की गरमाई से तेरी बाहों के घेरे में शिकवे सारे बिखर गए इन रिमझिम बूंदों में मिले तुम और हम नज़रे जो टकराई बदल गए नज़ारे भीगे भीगे मौसम में अरमां बहके थे किनारे दरिया के दो दिल धड़के थे कश्ती के सफ़र में शहनाई लहरों की गूंजी शाम के इन लम्हों में मुझे कुछ कहना है उमंगों के गुबार इजाज़त दे तो हम अपनी बात इक दूजे से कहे यूँ मेह क्या बरसा सिफ़ारिशें बूंदों की भा गई माही को मन मयूर नाच उठा परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
जय हो भोलेनाथ की
भजन, स्तुति

जय हो भोलेनाथ की

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** देवों के देव तुम कहलाए, हे शिव भोले भंडारी। फूल पत्ते में आप खुश हो जाते, पुजा करे नर -नारी।। सावन की पावन महीने में, जाते हैं सभी शिव के द्वार। कष्ट निवारण दु:ख हर्ता वो, खुशियां मिले हजार।। ब्रम्हां विष्णु तेरी महिमा गाए, तन-मन में बसे रहो तुम हरदम। क्या कहे भोलेनाथ जी, आप हो सत्यम शिवम् सुन्दरम।। शिव की शक्ति शिव की भक्ती, शिव की महिमा अपार। शिव ही करेंगे हम सभी, का सुन्दर बेड़ा पार।। जय हो जय हो शिव शंकर, जय हो भोलेनाथ की। चल रें कांवरिया शिव के, नगरिया जय हो बाबा अमरनाथ की।। कहाँ मिलेगा मथुरा कांशी, कहाँ वृंदावन तीरथ धाम। घट-घट में तो शंकर भोले जी विराजे, शीश झुकाकर डोमू कर लो सादर प्रणाम।। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीस...
सच्चे जीवनसाथी
कविता

सच्चे जीवनसाथी

हितेंद्र कुमार वैष्णव सांडिया, पाली (राजस्थान) ******************** थामा तुम्हारा हाथ बड़े ही प्यार से, दिल का रिश्ता जोड़ा विश्वास से, सदा हाथ तुम थामे रखना दिल से, मेरे मन के मीत, प्रीत हैं बस तुमसे, जीवन का हर गीत तुम संग गाना हैं | बनकर "सच्चे जीवनसाथी" हमको इस रिश्ते को निभाना हैं। जीवन की इस सुन्दर बगिया में, तुम संग हर फूल को चुनना हैं | जीवन पथ में हो कंकड़ कांटे तो मिलकर हमको हटाना हैं | तुम संग ही रिश्ता निभाना हैं | बनकर "सच्चे जीवनसाथी" हमको इस रिश्ते को निभाना हैं। हम हैं प्यार के पंछी, चुगकर लाएंगे एक एक तिनका प्यार का घोंसला बनाएंगे, चाहे हो आंधी और तूफान प्रति क्षण तुम संग बिताना हैं | बनकर "सच्चे जीवनसाथी" हमको इस रिश्ते को निभाना हैं। तुम संग हो जीवन का हर उत्सव, चाहे हो दुखद पल या हो सुख की अनुभूति साथ दूंगा आपका हर पल जीवन के संगीत क...
शंभू
भजन, स्तुति

शंभू

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कराल तन पे जो बसा, कपाट पे तो भस्म है। मृदंग गर्जना करे की, शंभू के ही अस्म है। धम- धमा के चल रहे है, देखो ये धरा हिली। मिट्टी खिलखिला उठी, न जाने क्या खुशी मिली। नाचता ये तन बदन, गगन हुआ मगन मगन। कब बिजलियां चमक उठे, सब आपका ही आकलन। डमरू डम डमा रहा, त्रिशूल का अलख जगा। तुमको बस है पूजना, है कौन क्या? कोई सगा। चंद्रमा तो सज रहा, और बज्र सी भुजाएं हैं प्रचंडता को पा रही, ये किसकी अस्मिताएं है हर बार हम प्रणाम कर के, शंभू तुमको देखते। ललक भरा है ये गगन, ये धार हाथ जोड़ते। ये वाद पात नाचते, की द्वार है शिवाय के। ये बेल पत्तियां हंसी, जो सजी है पांव में। विश्व की प्रजातियों के, एक तुम ही नाथ हो। तुमको ही तो रट रही, दिखों प्रभु जो साथ हो। मैं डर रही, तड़प रही, दिखो प्रभु, कभी दिखों। जय जय शंभू कह ...
पुरखा के सुरता
आंचलिक बोली

पुरखा के सुरता

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी नवा-नवा जिंदगानी हे, पुरखा के अब बस पहचानी हे, नवा-नवा आभुषण होंगे, अइठी, बिछवा चिन्हारी होंगे.! चिमनी, कन्डील कहानी होंगे, कुमडा बघवा कहानी पुरानी होगे, दाई के गोधना, अउ अइठी देखें जिन्दगी होंगे.! बबा के पागा, अउ धोती पहने हाथ लाठी, संस्कृति परम्परा मा बबा दाई रहाय अब लइका मन मेछरावत हे.! पहली के मन अनपढ़ रहाय फिर भी परिवार एकता मा रहाय, अबके मन पढ़े-लिखे परिवार दुरियां रहाय.! हम दो हमारे दो कहीके जीवन चलाय, जे जनम दिस तेला छोड़ के ते खुशी मनाये.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
इतने हो बेगाने क्या
ग़ज़ल

इतने हो बेगाने क्या

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** इतने हो बेगाने क्या। हमसे हो अंजाने क्या। आँख झुकाये बैठे हो, रूठे हो दीवाने क्या। रुख़ पर थोड़ा गुस्सा है, आये हो समझाने क्या। खट्टे- मीठे जीवन की, बातें हो पहचाने क्या। होश लिए हो रात ढले, टूट गए पैमाने क्या। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
प्यार
कविता

प्यार

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** प्यार है तो इकरार क्यों नहीं करते? दिल में प्यार का तूफान समेटे अव्यक्त को व्यक्त क्यों नही करते? डरते हो? अपने आप से या समाज से? खुल्लम खुल्ला नहीं तो चोरी छिपे ही प्यार का इजहार क्यों नहीं करते? प्यार है तो इकरार क्यों नहीं करते? तहज़ीब का जामा पहने सभ्य समाज में गंभीर से तुम, मन में प्यार का सैलाब लिए भीतर ही भीतर परेशान से कुछ, अपने को अभिव्यक्त क्यों नहीं करते? प्यार है तो इकरार क्यों नहीं करते? पर प्यार क्या केवल इकरार ही है? क्या समर्पण प्यार नहीं? दूसरे की खुशी में अपनी खुशी समझना क्या प्यार नहीं? अव्यक्त प्यार की यहीं परिभाषा है चोट सहकर भी चुप रहना यहीं प्यार की पराकाष्ठा है। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजो...
ये दूरियां-ये ख्वाब!!
कविता

ये दूरियां-ये ख्वाब!!

सिमरन कुमारी मुजफ्फरपुर (बिहार) ******************** ये दूरी हैं महज ज़मीन की, दिल की नहीं!! दूरी हैं मज़बूरी थोड़े ही, कमी हैं ना मिलने की, कमज़ोरी थोड़े ही!! निभाने का इरादा जरूरी हैं, विश्वास चाहिए वायदा नहीं!! राधा- कृष्ण की दूरी, सच्चे आस की निशानी हैं, तभी तो हर जुबां पर उनके मिलन की कहानी हैं!! मिलेंगे एक दिन वो खास होगा, मैं तेरे करीब तू मेरे पास होगा!! जब ये खिलता ख्वाब, और आँखों में शवाब होगा!! रब्त इश्क़ की दरियां, टूटती ये दूरीयां !! तब मिलना सबसे नायाब होगा, तब हमारा मिलना इत्तेफाक होगा!! ज़मीन की दूरी महज ये दूरी, ख्वाब बुनता दिल, जब मिलेंगे तब ख़ुद को, संभालना होगा मुश्किल!! परिचय :-सिमरन कुमारी निवासी : मुजफ्फरपुर (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
उज्ज्वल शिक्षा ज्योति
कविता

उज्ज्वल शिक्षा ज्योति

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सबसे बुरा कलंक अशिक्षा, शिक्षा सद्गुण की जननी। जो शिक्षा से दूर साथियो, उनकी बिगड़ी है करनी। संस्कार शिक्षा से मिलते, बुद्धि प्रखर होती है। अंधकार को दूर भगाती, शिक्षा की ज्योति है। प्रथम पाठशाला बच्चे की, घर में होती पूरी। आगे की शिक्षा पाने को, हैं स्कूल जरूरी। अब विद्यालय लगे सँवरने, बच्चे भी खुश होते। खुशी-खुशी पढ़ने आते हैं, अब बिल्कुल न रोते। शिक्षा है अनमोल धरोहर, जीवन मंत्र बताती। शिक्षा ही जीवन की कुंजी, उज्जवल राह दिखाती। सबको मिले जरूरी शिक्षा, करें जतन सब ऐसा। शिक्षा जहाँ काम आती है, काम ना आता पैसा। गुरु शिष्य की परंपरा को, आगे सभी बढ़ायें। दुर्गम परिस्थिति से लड़कर, बच्चे सभी पढ़ायें। शिक्षक ही भूदेव भूमि के, शत-शत नमन करूँ मैं। गुरु जीवन के भाग्य विधाता, उर में ...
बादल
दोहा

बादल

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** काले बादल नभ चढ़े, घटा लगी घनघोर। शीतल मन्द पवन चली, नाच रहे वन मोर। कोयल पपिहा कुंजते, दादुर करें पुकार। काले बादल देखकर, ठंडी चली बयार। काले बादल नभ चढ़े, बरसे रिमझिम मेह। गौरी झूला झूलती, साजन सावन नेह। घटा गगन शोभित सदा, बादल बनकर हार। मेघ मल्लिका रूपसी, धरा सजे सौ बार। प्यासी धरती जानकर, बादल झरता नीर। लहके महके वनस्पति, बरसे जीवन क्षीर। धरती दुल्हन हो गई, बादल साजन साथ। यौवन में मदमस्त है, प्रीत पकड़ कर हाथ। बादल से वसुधा करी, स्नेह सुधा का पान। गागर सागर से भरी, स्वर्ण कलश सम्मान। मूंग मोठ तिल बाजरा, यौवन में मदमस्त। धान तुरही लता चढ़ी, बादल पाकर उत्स। श्वेत नीर फुव्वार से, भीगे गौरी अंग। खुशी खेत में नाचती, बादल हलधर संग। दुल्हा बनकर चढ़ चला, बादल तोरण द्वार। दुल्हन प्यारी सज गई...
आगे महीना सावन
आंचलिक बोली

आगे महीना सावन

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता झिमिर-झिमिर पानी गिरे, लागे मौसम मन भावन । भोले नाथ के जय बोलों, आगे पावन महीना सावन ।। देवता मन के देव तोला कईथे, हे शिव भोले भंडारी । पान फूल म ते खुश हो जाथस, पुजा करे नर-नारी ।। कतिक करव बखान तोर मेहां, महिमा हे बड़ भारी । जय होवय जय होवय तोर हे, नाथ डमरू त्रिशुल धारी।। मन मयूर मोर झूमे नाचे, संगी करमा ददरिया गावन । परसी म बैइठ के बबा मन, पढ़े गीता अऊ रामायन ।। गली खोर अब चिखला परगें, होगे नाली हर रेंगावन । सरर-सरर चले पुरवय्या, आगे पावन महीना सावन ।। अमरय्या म झूलना बंधागें, झूले बर लईका मन सब जावन । कारी कोयली बन म कुहुके, पिरोहिल के मधुरस बोली लागे पावन ।। परिचय :- डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत...
आजमाइश- २
कविता

आजमाइश- २

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** नफरत की नहीं मोहब्बत की आजमाइश करो। पराएयो की नहीं अपनों की आजमाइश करो। बुराई की नहीं अच्छाई का ढोंग करने वालों की आजमाइश करो। दिल दुखाने वालों की नहीं दिल लगाने वालों की आजमाइश करो। मरने वालों की नहीं जीने वालों की आजमाइश करो। कड़वी जुबान की नहीं शहद से मीठे होठों की आजमाइश करो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है
कविता

आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** उनींदे आँखों से सपने संजोने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है।। मिलेगी मंजिल हमें भी कभी ना कभी। इसी विश्वास से उम्मीद जगाने लगे है।। कर्म करेंगे निश्चित ही सफलता मिलेगी। बढ़ते बढ़ते जीवन मे तरलता मिलेगी।। इसी चाहत मे नित सपने संजोने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है।। सफलता के होंगे बेशक़ मायने कई-कई। हर पल करते रहेंगे हम उद्यम नई-नई।। उद्यम से अब मंजिल करीब आने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है।। दृढ़ संकल्प ले लक्ष्य की ओर जो बढ़ता है। सफलता के इतिहास निश्चित वही गढ़ता है।। रास्ते के रोड़े भी अपनी जगह बदलने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने लगे है।। आज निश्चित ही खुशियो का दिन सुहावन है। ये मंजिल भी कितनी भली और मनभावन है।। आज तो सपने हकीकत मे बदलने लगे है। आज खुशियो से पलके भिगोने ल...
“आत्मकथा” एक जीव की
कविता

“आत्मकथा” एक जीव की

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बोलना चाहता हूँ, समझाना चाहता हूं, रोकना चाहता हूँ, मत करो क्रूर आघात और इतनी घृणा महसूस करता हूँ दर्द, घुटन, और अकेलेपन की तड़प तिल-तिल दम तोड़ते, नित प्रतिदिन होता तिरस्कार, पढ़ पाए जो कोई तो इन आँखों में, बिना शब्दों के दर्द बयां होते हैं अहंकार, द्वेष, घृणा से परे एक सुन्दर दुनिया है मेरी मत रौंदो मेरे अस्तित्व को, बहुत कुछ अनकहे ही सीखा जाता हूँ इन्सानियत को जाति, रूप, रंग में मत करो बंटवारा मेरा प्यार से गले लगा कर तो देखो, जान दे दूंगा तुम्हारे प्यार की कीमत चुका कर सृष्टि की अनमोल रचना हैं हम, कैसे हो सकते हैं नफ़रत के काबिल, नहीं समझ पाता "रोटी" की कीमत, नहीं जानता दुनियादारी और व्यापार ईश्वर ने इंसान बनाया, जीवों से प्रकृति को संवारा अद्भुत चित्रकारी कर ईन जीवों पर, अप्रतिम ...