आराधना की ऋतु
संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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बारिश के पानी से देखो।
भर गये नदी नाले तलाब।
सूखी उखड़ी भूमि भी अब
हो गई है गीली-गीली।
वृक्षों पर भी देखो अब
नये हरे पत्ते आने लगे।
चारो तरफ पानी-पानी अब
जमा हो गया बारिश का।।
रास्ते पहाड़ और टीले आदि
शीतल और नम होने लगे।
बारिस की गिरती बूंदे से
पेड़ फूल पत्ते खिल उठे।
रुका हुआ पानी भी देखो
वह भी अब बहने लगा।
पशु पक्षी जीव जंतु आदि
उछल कूद करने लगे।।
दूर दराज गये पक्षी भी
अब घरों को लौटने लगे।
छोड़ छाड़कर अपने कामों को
प्रभु आराधाना अब करने लगे।
शरीर की शिथिलता भी अब
मानव का साथ देने लगी।
व्रत नियम संयम आदि लेकर
ध्यान प्रभु का करने लगे।।
चार माह का ये चौमासा
साधु संत आदि को भाता है।
स्थिर एक जगह रहकर के
खुद का और जन कल्याण करते है।
जियो और जीने दो के लिए
एक स्थान को ही चुनते है।
और ये सब हम और आप भी...