Thursday, December 4राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

आलेख

अतीतजीवी
आलेख

अतीतजीवी

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हम हिंदुस्तानी स्वभाव से अतीतजीवी हैं। विश्वगुरु सोने की चिड़िया तरह-तरह की शब्दो की अफीम चाट के उसी में मगन। बदलाव के लिए और भविष्य के लिए कभी तैयार नही। हाँ, अगला जन्म सुधारने को बेहद तत्पर आसान रास्तों में चलने को हमेशा तैयार गंगाजी में डुबकी लगा के स्वर्गारोहण, वाह! चरखे और अहिंसा से आज़ादी, वाह भाई वाह! हमारे सपने टूटते ही नही, नींद है कि उड़ती ही नही। अच्छे दिन आएंगे पर लाएगा कौन मोदी जी !!! आप कुछ करेंगे? नहीं वोट दिया है ना ! १५ लाख आये की नही खाते में? सरकारी नोकरी ही क्यों चाहिए !!! प्राइवेट नोकरी में काम करना पड़ता है ये तकलीफ है। हमारे यहाँ करोड़पतियों और हर तरह से सामर्थ्यवान लोगो ने भी कोविड के टीके मुफ्त सरकारी केंद्रों में ही लाइन में लग के ही लगवाए हैं। और बाते समय की कीमत की ही करेंगे ! कथनी और करनी में सर्वाधिक फर्...
जनसाधारण में रासलीला पर भ्रांतियां
आलेख

जनसाधारण में रासलीला पर भ्रांतियां

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ********************  ५/६ वर्ष से लेकर १२ वर्ष तक के बालक कृष्ण की रासलीला को कुतर्कों से लोगों को भ्रमित किया गया। १२/१३ वर्ष तक तो वे मथुरा चले गये, फिर कभी न लौटे। गोपियां तो गृहणियां थी, जो कृष्ण जी की मोहक मुरली के स्वर सुनकर दौड़ी आती थीं। संगीत प्रेमी वो भी‌ नन्हे बालक‌ के मुख‌ से, कौन न आतुर होगा सुनने को। एक को बीच में खड़ा करके आसपास नाचने गाने की परंपरा आज भी होली के दिनों में उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश में दिखाई देती है। भारतीय शास्त्रों में गहरे दर्शन को केवल प्रतीकात्मक रूप में दर्शाया गया‌ है। चैत्र की फसल आए या सावन का महिना हो, संगीत तो फूट ही पड़ता है व नर्तन गायन शुरू हो जाता है। बालक रुपी परमेश्वर धर्म संस्थापना के निमित्त धरती पर आए, तत्कालीन दिग्भ्रमित जनता के साथ खेलकूद करके, नृत्य गायन वादन करके सबको एकत्रित करते थे, ...
क्या अंतर्जातीय-अंतरर्धार्मिक विवाह सही है…?
आलेख

क्या अंतर्जातीय-अंतरर्धार्मिक विवाह सही है…?

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** ● प्यार के नाम पर देशभर में हो रहा है लव जिहाद ● नाम बदलकर लड़कियों को फंसाया जा रहा है ● अनजान लोगों पर विश्वास करना पड़ सकता है भारी ● सावधान कहीं आपकी बेटी भी धोखे का शिकार न हो जाए ! सही गलत का फैसला तो वक्त करता है, किंतु प्रेम विवाह में असली संकट अंतर्जातीय-अंतरर्धार्मिक विवाह की समस्या होती है। वर्तमान में भारत में दो तरह के विवाह होते है - पहला - (कास्ट) जाति आधारित, जिसमें जाति का बहुत महत्व होता है, दूसरा- इसमें जाति-धर्म का महत्व, गौण होता है - क्लास (श्रेणी) आधारित। दिनानूदिन एलीट क्लास आधारित विवाह बढ़ते ही जा रहे हैं। ● भारत में आमलोग जाति आधारित विवाह करते हैं और अपने को एलीट समझने वाले लोग क्लास आधारित। ● किंतु समस्या तब हो जाती है, जब कोई दोनों नाव की सवारी करने का प्रयास करता है। ● अतीत में भा...
मौसम ने करवट क्यों बदली
आलेख

मौसम ने करवट क्यों बदली

माधवी तारे लंदन ******************** भारी गर्मी में सूरज के ताप से हैरान गौरेया जैसे बेसुध हो कर गिर जाती है। वैसे ही आज इंसानों की हालत है। कुछ साल पहले का हरे-भरे बैंगलोर का मौसम खुशमिज़ाज था। वृंदावन गार्डन देखकर मन खुश हुआ था लेकिन आज वही बैंगलोर पानी की बूंद-बूंद के लिये तरस रहा है। अब इंदौर की भी हालत ऐसी ही हो रही है। पिछले ६०-६५ साल में आज जैसी गर्मी देखने को नहीं मिली है। सौ-सौ साल पुराने पेड़ सड़क के नाम पर कुरबान हो रहे हैं और नए लगाए नहीं जा रहे जबकि पूरे के पूरे पेड़ दूसरी जगह लगाने की तकनीक भी आज उपलब्ध है। फिर भी बागीचे उखाड़ कर अट्टालिकाएं रोपी जा रही हैं। इंसान भी चिड़ियों की तरह चलते-चलते ना टपके इसके लिये हरियाली चाहिये। सीमेंट कांक्रीट के रास्तों के आसपास नालियां नहीं हैं और अगर हैं तो पानी वहां से प्रवाहित हो जमीन में नहीं जाता, बह जाता है। बहुमंजिला इमारतें अपनी प्...
जीवन के लिए प्रकृति का सुरक्षित होना जरूरी
आलेख

जीवन के लिए प्रकृति का सुरक्षित होना जरूरी

डॉ. राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राजस्थान) ********************  ०५ जून को हम साल २०२४ का विश्व पर्यावरण दिवस मना रहे हैं। इस दिन पर्यावरण के प्रति आम जनता को जागरूक किया जता है। अधिक से अधिक पेड़ लगाना। पौधरोपण करना। पेड़ों के ट्री गार्ड लगाना। वन भूमि को हरी भरी करने हेतु नरेगा मजदूरों को लगाया जाता है व गड्ढे खोदकर पेड़ लगाते हैं। पेड़ की सुरक्षा के लिए ट्री गार्ड या तार फेंसिंग करते हैं। सभी उपस्थित लोग शपथ लेते है कि इन पेड़ों की हम नियमित देखभाल कर इन्हें संरक्षित रखेंगे। बड़ी-बड़ी बैठकों में बढ़ते प्रदूषण के प्रति चिन्ता जताई जाती है। प्रकृति का संतुलन बना रहे इस हेतु आगामी रणनीति बनाई जाती है। धरती के बढ़ते तापमान का कारण खोजते हैं। घण्टों मंथन चलता है। पर्यावरण बचाने से सम्बंधित नारे दीवारों पर लिखाये जाते हैं। विद्यालयों में निबंध वाद विवाद स्लोगन लेखन कविता लेखन जै...
युवा पीढ़ी के बदलते और बिगड़ते आयाम
आलेख

युवा पीढ़ी के बदलते और बिगड़ते आयाम

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ********************   युवा पीढ़ी किसी भी देश या समाज को बनाने या बिगाडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। युवा पीढ़ी में न सिर्फ उत्साह और उत्साह है, बल्कि नए विचारों को बनाने और बदलने की क्षमता भी है। वे कुछ करना चाहते हैं, और यदि युवा कुछ करने का मन बना लें तो कुछ भी असम्भव नहीं है। हमारे देश की लगभग 65 प्रतिशत आबादी ३५ वर्ष से कम है। भारत को हर क्षेत्र में अग्रणी बनाने के लिए हमारे मेहनती और प्रतिभाशाली युवाओं को सही दिशा दी जा सकती है। भारत की युवा पीढ़ी उत्साहपूर्ण और उद्यमशील है और हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। युवा वर्ग कल से बहुत उम्मीद करता है। आज, अगर कोई कमी है तो उसे सही समय पर मार्गदर्शन देने की जिम्मेदारी उनके माता-पिता, शिक्षकों और पूरे समाज की है। स्वामी विवेकानंद ने हमेशा देश की युवाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा द...
जनहित याचिका …
आलेख

जनहित याचिका …

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जनहित याचिका क्या होती है, कौन कब कैसे लगा सकता है, ये कितने लोग जानते है, नही पता पर इतना पता जरूर है कि नॉन लीगल आदमी भी लगा सकता है व उसके सुनवाई के परिणाम स्वरूप कई अच्छे कानून बने है जिससे आम लोगो को बड़ी राहत मिली है। इंदौर में एक ऑटो मोबाइल व्यापारी एस. पी. आनंद हर जायज बात के लिए जन हित याचिका लगाते थे, उनसे मेरी मित्रता हो गई, वे मुझसे चालीस वर्ष बड़े थे, पर आम जनता की समस्याओं के प्रति मेरी रुचि देखते हुए जब भी नई याचिका लगाते मेरे घर आते व बताते कि आज ये लगाई, पिछली की सुनवाई हुई ये हुआ, ये कानून बनने का मसौदा विधि विभाग को दिया गया है। मुझे बहुत आश्चर्य होता था, कि सेवा करने के कितने तरीके हो सकते है, अपनी जेब का धन समय खर्च कर कोर्ट में भटकना कम बात नही होती है। वे वकील नही थे, परिवार भी पूरा व्यवसायी था। एक बार उनका ...
यत्र नारयस्तु पुजयन्ते रमन्ते तत्र देवता
आलेख

यत्र नारयस्तु पुजयन्ते रमन्ते तत्र देवता

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** युगों-युगों से भारतीय परंपरा में स्त्री को पूजनीय बताया और माना गया। फिर क्यों बार-बार ऐसे उदाहरण है जब पुरुष ने स्त्री को एक वस्तु की भांति त्याग दिया, अपमानित किया या इस्तेमाल किया। स्त्री को नरक का द्वार तक बता दिया गया है। ऋषि गौतम ने श्राप दे दिया अहिल्या को और वो पत्थर हो गयी। अरे श्राप देना था तो इंद्र को देते जो गौतम का रूप बना कर अहिल्या के साथ व्यभिचार करता रहा। अहिल्या को तो पता भी नही था की वो इंद्र है। सूर्पनखा द्वारा प्रणय निवेदन करने पे लक्ष्मण उसकी नाक काट देते हैं। जबकि राक्षस कुल में उत्पन्न सूर्पनखा कोई गैर पारंपरिक निवेदन नही कर रही थी। इनकार कर देते नाक काटने की क्या ज़रूरत थी। रावण अशोक वाटिका में सीता को कहता है की मंदोदरी आदि सभी रानियाँ तुम्हारी अनुचरी करेंगी अगर सीता उसका वरण कर ले। एक धोबी के उलाहना देने...
यज्ञ की समिधा
आलेख

यज्ञ की समिधा

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हर व्यक्ति राजनीति की शतरंज में खुद को प्यादा समझे, या फिर चुनाव यज्ञ में समिधा। इससे ज्यादा कुछ मोल नही है भारत मे आम नागरिक का। कभी फुसला कर, कभी धमका कर, कभी डरा कर चुनाव की वैतरणी पार करनी है सब नेताओ को। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस। ये सब आधुनिक ययाति हैं जो जनता रूपी पुरु से उनका यौवन जब चाहे मांग लेंगे या छीन ही लेंगे। किसी को सत्ता का मद चढ़ गया और किसी से सत्ता छीन जाने पे भी उतर ही नही रहा। किसी का उत्तराधिकारी है ही नही और कोई अपने अयोग्य उत्तराधिकारी को सत्तासीन करने के स्वप्न देख रहा। इन सब की सोच में आम आदमी का दर्द कितना महत्व रखता है विज्ञानकर्मियों के लिए खोज का विषय है। विश्व परिप्रेक्ष्य में देखे तो, कोई मौत बेच रहा, कोई दवा बेचने में लगा है, कोई आतंक बेच रहा, कोई हथियार बेच रहा, कोई धर्म बेच रहा। इंसानियत कहाँ है ...
विद्या ददाति विनयम …
आलेख

विद्या ददाति विनयम …

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** विद्या ददाति विनयम विनयात ददाति पात्रताम पात्रत्वात धनं आप्नोति धनातधर्मम ततः सुखम। अर्थात - विद्या यानी ज्ञान हमे विनम्रता प्रदान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से हमे धन प्राप्त होता है और धन से सुख मिलता है । अगर ये श्लोक और उसका अर्थ सही है तो क्यों विद्या प्राप्त करके हम विनम्र होने के स्थान पे अभिमानी हो रहे हैं? विनम्रता से योग्यता और पात्रता आती है। तो फिर क्यों हमने अपने पात्र को उल्टा करके रख दिया और शिकायत है कि भरता ही नहीं। अरे घड़ा अगर उल्टा रख दोगे तो सारा समंदर भी उड़ेल दे तो पात्र खाली ही रहेगा। जितना धनार्जन कर लेते हैं उतना ही धर्म से दूर होते जा रहे है। यहां पे धर्म का अर्थ कर्मकांड नही अपितु इंसानियत से है। फिर सुख नही मिलता यही कहते रहते है । सुख का ताल्लुक मन की स्थिति से है भौतिकता में नही। ...
बदला
आलेख

बदला

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बरसो से से एक बहुत ही गुनी कलाकार मालिश वाला हमारे परिवार के पुरुषों की मालिश करता था। शास्त्र में कहा गया है नाई व नावन चलते-फिरते अखबार होते है, मेरा मानना है कि शास्त्र कुछ भी नही अनुभव सिद्ध संसार का एक शानदार निचोड़ है। समय काल से सब बदलता ही है मगर शास्त्र की बाते शाश्वत ही है। अति सर्वत्र वर्जयेत बदल सकते हो क्या। तो ये नाई मेरे घर आज आया, कोरोना काल मे भयानक दुर्घटना में उसका इकलौता बेटा काल धर्म को प्राप्त हुआ। दुख का पहाड़ टूट पड़ा। पर उसने दुर्घटना करने वाले लड़के पर नो लाख खर्च किये कि सज़ा तो दिलाऊंगा दोनो पति-पत्नी काम पर नही गए उदास हताश पगलाए कोर्ट पुलिस करते रहे न्याय का तो आपको पता ही है। किसी समझू ने उसे राय दी, दोनो ने नसबंदी ओपन की व ५५ की उम्र में बेटी प्राप्त की जिसका वॉकर में चलते हुए मैंने फोटो देखा। मैं तो आ...
विश्वगुरु
आलेख

विश्वगुरु

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हम विश्वगुरु थे और हमारा ये स्थान हमसे कोई नही छीन सकता। हमारा दोगला चरित्र और हर मामले में स्वार्थ कि राजनीति करने की महारत हमे विश्व के अन्य देशों से अलग करती है। हम बातें सर्वधर्म सद्भभाव की करते है, कण-कण में भगवान की करते है लेकिन हमारा बर्ताव ठीक इसके विपरीत है। नैतिकता की बातें विश्व मे हमसे अच्छी कोई नही कर सकता, हम भाषणवीर हैं, हमारे खिलाड़ी कागजी शेर हैं, हमारे नेता हमारी ही तरह भृष्ट और दोगले चरित्र के हैं। यही सब खूबियां हमे विश्व मानचित्र पे एक ध्रुव तारे का स्थान देती है। हमारा भूतकाल बहुत समृद्ध था, उसकी बातें और सपनों से बाहर आना ही नही चाहते। हम वर्तमान में हर वो काम करने में लगे हैं जो आने वाली पीढ़ियों को कहीं का न रखे। कुल मिला कर हमारा भविष्य सिर्फ अंधकारमय हो सकता है, रोशनी की कोई किरण अगर हम दिखती भी है तो हम...
अंधेरी दुनिया …
आलेख

अंधेरी दुनिया …

अमन सिंह अलीगढ (उत्तर प्रदेश) ******************* नशा आजकल एक महाजनसंख्या की समस्या बन चुका है जिससे हर तरह के लोग प्रभावित हो रहे हैं, विशेषकर युवा वर्ग। यह समस्या समाज की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बन चुकी है क्योंकि यह सिर्फ नशे के संभावित हानिकारक प्रभावों को ही नहीं लेकर आता है, बल्कि इससे अन्य सामाजिक, आर्थिक, और परिवारिक समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। नशा आमतौर पर या तो मनोरंजन के लिए या तनाव और दुख को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन, इसके लाभ केवल समय के लिए होते हैं, और इसके बाद के परिणाम अत्यंत हानिकारक हो सकते हैं। नशे में धुत होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि परिवारिक प्रेशर, योजनाबद्धता की कमी, सामाजिक दूरी, आदि। युवा वर्ग नशे के प्रभाव में ज्यादा प्रभावित होता है क्योंकि वे अपने जीवन की पहली स्टेज में होते हैं और उन्हें अपने आप को ढूंढने और पह...
हरावल दस्ता
आलेख

हरावल दस्ता

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** जो लोग राजपूती युद्धशैली से वाकिफ हैं वो इसका अर्थ भली-भांति जानते हैं। हरावल सेना का वो दस्ता होता है जो युद्ध की भेरी बजने पे दुश्मन सेना से आमने सामने की भिड़ंत करता है। मकसद होता है सामने वाले को अधिकाधिक क्षति पहुंचाना और अपने राजा या सेनापति को सुरक्षित रखना। सर्वाधिक नुकसान भी इस अग्रिम दस्ते का ही होता है और वीरगति भी इन्ही की ज्यादा होती है। आज के भारत के परिप्रेक्ष्य में समझे तो साम्प्रदायिक दंगे, प्राकृतिक आपदा या युद्ध में सर्वाधिक हानि किनकी होती है। सड़क के किनारे या कच्ची बस्तियों में रहने वाले गरीब मजदूर वर्ग की। कभी सुना है की भूकंप में, बाढ़ में, या साम्प्रदायिक दंगे में नेताओ या धनाढ्य लोगो के परिवार तबाह हुए हो। भाई ऐसे परिवारों के बच्चे तो सेना में भी कहाँ भर्ती होते है। आज हरावल दस्ते में सिर्फ वंचित और शोषित ...
तृण धरी ओट कहती वैदेही
आलेख

तृण धरी ओट कहती वैदेही

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही।। सुंदरकांड में यह दोहा सुन-सुनकर बड़े हुए मेरे जैसे पुरातनपंथी लोगो को आज की महिलाओं को ऐसे वस्त्रो में देख के अजीब लगता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कुछ भी पहनने की स्वतंत्रता अपनी मर्जी के जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता स्वतंत्रता के अर्थ ये हैं क्या !!! इन अल्पवसना नारियों को हम लोग शायद रावण लगते होंगे। आप ऐसे वस्त्र पहने जो छुपाते कम और दिखाते ज्यादा हो तो आपकी स्वतंत्रता है। लेकिन अगर कोई मनचला टिप्पणी करदे तो बवाल काटेंगे। पर्दा प्रथा के विरोधी होने का मतलब ये तो नही की बिल्कुल बेपर्दा हो जाये। सीता जी रावण से तिनके की ओट धर के बात करती थी। आज की नारी ....... मुझे आज ऐसे देवर की तलाश है ..... लक्ष्मण उवाच- नाहं जानामि केयूरे, नाहं जानामि कुण्डले। नूपुरे त्वभिजानामि न...
भारतीय सिनेमा की महिला हास्य कलाकार
आलेख

भारतीय सिनेमा की महिला हास्य कलाकार

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** बॉलीवुड में हर साल अलग-अलग जॉनर की कई फिल्में रिलीज होती हैं। कॉमेडी एक ऐसा जॉनर है, जिसे देखना हर कोई पसंद करता है। लेकिन आज बॉलीवुड जितना कॉमेडी के लिए फेमस है उतना आज से ८० साल पहले नहीं था और महिला कॉमेडियन तो भूल ही जाइए। उस दौर की फिल्मों में महिलाओं को हम रोने-धोने के किरदार में देखते हुए आ रहे थे। सिनेमा में मेल कॉमेडियन बहुत देखने को मिल जाते लेकिन फीमेल कॉमेडियन नहीं। लेकिन धीरे-धीरे उस जमाने में भी कुछ ऐसी साहसी महिलाएं आगे आई जिनकी सोच ने भारतीय सिनेमा का रुख बदल दिया। यदि आप पीछे मुड़कर देखें, तो आपको ऐसी कई अभिनेत्रियां मिलेंगी जो अपनी कॉमिक टाइमिंग के लिए जानी जाती हैं। जैसे ब्लैक एंड व्हाइट युग से टुनटुन और मनोरमा, ७० के दशक की चुलबुली-मजेदार प्रीति गांगुली और अस्सी के दशक की सदाबहार गुड्डी मारुति। इस लेख में हम आपक...
जब महिला होगी सशक्त, तब देश उन्नति में न लगेगा वक्त
आलेख

जब महिला होगी सशक्त, तब देश उन्नति में न लगेगा वक्त

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** आज के आधुनिक समय में महिला उत्थान एक विशेष विचारणीय विषय है। हमारे आदि-ग्रंथों में नारी के महत्व को मानते हुए यहाँ तक बताया गया है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:” अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है। लेकिन विडम्बना तो देखिए नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके उत्थान की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। यह आवश्यकता इसलिये पड़ी क्योंकि प्राचीन समय से भारत में लैंगिक असमानता, सती प्रथा, नगर वधु व्यवस्था, दहेज प्रथा, यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, गर्भ में बच्चियों की हत्या, पर्दा प्रथा, कार्यस्थल पर यौन शोषण, बाल मजदूरी, बाल विवाह तथा देवदासी प्रथा आदि परंपरा रही। इस तरह की कुप्रथा का कारण पितृसत्तामक समाज और पुरुष श्रेष्ठता मनोग्रन्थि रही। महिलाओं को उनके अपने परिवार और समाज द्वारा कई कारणों ...
विश्व में हिन्दी का परचम
आलेख

विश्व में हिन्दी का परचम

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्तजी ने कहा था कि हिन्दी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है‌। दुनिया भर में हिन्दी का विकास, प्रचार प्रसार करने के उद्देश्य से हर साल विश्व हिन्दी दिवस दस जनवरी को मनाया जाता है। हिन्दी अब अपने साहित्यिक दायरे से बाहर निकलकर व्यापक क्षेत्र में प्रवेश करते हुए अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में अपना गौरव फ़ैलाने की तैयारी में है‌। संयुक्त राष्ट्र की अधिकारिक भाषाओं में हिन्दी को स्थान दिलाने का प्रयास अविरत चल रहा है। इसके पूर्व देश में सरल, सुबोध, सशक्त, मीठी हिन्दी भाषा के प्रति सम्पूर्ण जागरूकता एवं अनुराग पैदा कर देश का हर बच्चा कहें हिन्दी मेरी राष्ट्र भाषा है। हिन्दी की वैश्विक प्रभुता, उपयोगिता और महत्ता दर्शाने के उद्देश्य से आयोजित हो रह...
अच्छे सत्कार्य
आलेख

अच्छे सत्कार्य

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पर्यटन कई प्रकार के होते है। सबका उद्देश्य भी अलग होता है। यूँ तो बहुत बदनाम हुए है बाबा उनके आश्रमो ने बहुत गंदगी व दरिंदगी फैलाई। उससे अच्छे व सच्चे बाबा जी जनकल्याण की गतिविधियों से जुड़े थे उनका बहुत नुकसान भी हुआ। पर कहते है बादल आकाश को ढक के अंधेरा तो कर सकते है पर सूर्य को कौन निगल सकता है सिर्फ हनुमान, पर जो संत महात्मा कुम्भ में अपने डेरे डाल के देश विदेश के ज्ञान पिपासुओं को तृप्त करते है। उनके प्रताप को कोई आच्छादित नही कर सकता है। सदियों से चलने वाले मेले चार जगह लगते हैं। अर्ध कुम्भ भी लगते है। अन्य सारे पर्यटन को अलग करदे तो ये पर्यटन कितना बड़ा है कितना अर्थव्यवस्था को लाभ देता है। हां टेक्नोलॉजी बढ़ी है, पर इसरो के वैज्ञानिक भी लॉन्चिंग के पहले अपनी उत्तेजना पर काबू पाने अपने इष्टों को याद करते टीवी पे दिखाए गए थे।...
दर्शन विशुद्धि
आलेख

दर्शन विशुद्धि

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कोई भी दर्शन अपने आप मे अच्छा, ही होता है, क्यों कि जिसने भी प्रतिपादित किया उसने कितना चिंतन करके प्रतिपादित किया है, इसका तत्कालीन समाज ने विरोध किया तब भी स्थापित हुआ, यानी कोई तत्व तो सुदृढ होगा ही। इसलिए जब तक कोई दर्शन, दर्शन रहता वह विस्तार पाता है तब तक सब अच्छा चलता भी है। परंतु जब वह संगठन या सम्प्रदाय बन जाता है तो उसमे विकृतियां आ जाती है व्यक्तिवाद रूढ़ हो जाता है फिर अति विकृत होते ही दर्शन गौण व संगठन प्रमुख हो जाता फिर उसमे सडांध पैदा हो जाती है, फिर कोई चिंतक उसी दर्जे का आता है तो पुनरोद्धार हो जाता है, जैसे महर्षि दयानंदसरस्वती, यविवेकानंद या महर्षि अरविंद। मार्क्सवाद अच्छा था कई देशों में फैला भी रूस चीन बड़े अनुयायी थे। मार्क्सवादी पार्टी जब बनी कुछ दिन ठीक चला फिर वामपंथ जैसी अवधारणा के कारण क्षरण होता चला गय...
मकर संक्रांति का महत्व
आलेख

मकर संक्रांति का महत्व

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत के विभिन्न त्योहारों में से, विशेषकर ज्योतिष विज्ञान पर आधारित, मकर संक्रांति एक है। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है और पृथ्वी के सबसे निकट होता है। धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश से यही नाम रखा गया। ऋतु परिवर्तन का संधिकाल अर्थात जाड़े की विदाई व ग्रीष्मा रानी का आगमन। पौष माह से माघ में प्रवेश। अमूमन यह चौदह जनवरी को आता है किंतु कभी-कभी मौसम परिवर्तन से तेरह या पँद्रह जनवरी को भी पड़ जाता है। पंजाब में यह लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। ज्वार मक्का की धानी, सिके चने व मुमफली जैसे चना-चबीना,बीच में आग जलाकर बाँटते व खाते हैं। दक्षिण में केरल व कर्नाटक में संक्रांति तथा तमिलनाडु में पोंगल मनाते हैं, नई फ़सल के उपलक्ष में। सुंदर फूलों आदि से रांगोळी बना पूजा-नृत्य करते हैं। घरों में नए अनाज की खाद्य सामग्री बनती...
मानते हैं पर करते नहीं
आलेख

मानते हैं पर करते नहीं

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नर व नारी...मनु व शतरूपा से बने हमारे समाज में जब भी तीसरी प्रजाति का ज़िक्र आता है, मन करुणा से भर जाता है। सामाजिक संस्थाबाएँ बस इनकी गणना करवाती हैं ताकि भीड़ जुटा कर फोटो खिचवा सके। नलसा निर्णय भी इनकी गिनती करवाने के सिवा कुछ नहीं कर सका। इनका अवतरण प्रकृतिजन्य त्रुटि ही है। जैसे मशीनों द्वारा भी कुछ आधे-अधूरे प्राडक्ट रह जाते हैं। इसमें किसी का क्या कुसूर भला ? युगों से यह परंपरा चली आ रही है। ये जनोत्पति का हिस्सा रहे हैं। पुराण व इतिहास भी इसके साक्षी हैं। यह तीसरी प्रजाति मूलत: हिमालय क्षेत्र की मानी जाती है। अर्जुन व एक नागकन्या के प्रेम का परिणाम है उनका पुत्र इरावन । इन्हें ही किन्नरों का देवता माना जाता है। अर्जुन स्वयं वनवास काल में किन्नर बन कर रहे थे। कहते हैंं इरावन का विवाह नहीं होने से स्वयं कृष्ण ने नारी रूप धर ...
विनोबा जी के सतकार्य
आलेख

विनोबा जी के सतकार्य

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विनोबा जी व गांधी दोनो साथ रहे गाँधीजी राजनीतिक संत थे तो विनोबा जी आध्यात्मिक संत थे जो राजनीति में भी सक्रिय तो थे पर मूल उनका आध्यात्मिक ही था देश प्रेमी के साथ अध्ययनशील भी थे। विनोबा जी पवनार आश्रम से अपनी गतिविधियां चलाते थे। भूदान आन्दोलन से भूमिहीनों को भूमि दिलवा कर, आत्मसम्मान से जीना सिखाया मजदूर से मालिक बनाया। बड़े जमीदारों से सिर्फ छह प्रतिशत जमीन मांगी उनकी सदाशयता देख दी भी, खुशी से ये उनकी संतई थी। जैन दर्शन का गहन अध्ययन किया था। गीता रहस्य तो लिखा, पर अंत समय जैन मुनि से संथारा लिया जो तीन दिन में सींझा। जैन कुल में जन्म लेने से बड़ी बात है, इसके सिद्धांत में गहन आस्था व निष्ठापूर्वक पालना। हमे अपने से परे जाकर यह भी देखना होगा कि कौन अजैन जैन दर्शन की पताका को प्रशस्त कर रहे है। ताकि हम युवाओं को प्रेरित कर सके...
बच्चों को कैसे संस्कारित किया जाए
आलेख

बच्चों को कैसे संस्कारित किया जाए

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "बच्चों पर निवेश करने की सबसे अच्छी चीजें हैं अपना समय और अच्छे संस्कार। एक श्रेष्ठ बच्चे का निर्माण सौ विद्यालय बनाने से भी बेहतर है।" -स्वामी विवेकानन्द बाल-विकास की अवधि गर्भावस्था से परिपक्वता तक मानी जाती है। गर्भ में पल रहे शिशु पर माता के खान-पान, आचार-विचार एवं वातावरण का प्रभाव पड़ता है। माता को "भए प्रगट कृपाला" जैसे पाठों का वाचन-श्रवण करने की सलाह दी जाती है। अभिमन्यु, चक्रव्यूह प्रवेश की जुगत माँ के गर्भ से सीखकर आया था। ईंट अपने साँचे जैसी ही ढलेगी। १ से ५ वर्ष तक शैशवास्था में बच्चा परिवार में रहता है। गीली मिट्टी से जैसा कुम्भ चाहो गढ़ लो। संस्कार किसी मॉल से नहीं, घर-परिवार के माहौल से मिलते हैं। कहते हैं... "बुढ़ापे में रोटी औलाद नहीं, हमारे द्वारा दिए संस्कार देते हैं" "बातों से संस्कार का पता चलता है" ५ से १२...
पानी की कहानी उसी की ज़ुबानी
आलेख

पानी की कहानी उसी की ज़ुबानी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पानी रे पानी तेरा रंग कैसा... रंग पूछ रहे हो मुझसे मेरा। मेरा अपना कोई रंग है ही नहीं। मैं बेरंगा पारदर्शी तरल पदार्थ हूँ। किन्तु मैं परिस्थिति के अनुसार अपना रूप परिवर्तित कर लेता हूँ। उच्चस्तरीय शीतलता पाकर बर्फ़ बन जाता हूँ। ऊष्मा पाकर वाष्प बन जाता हूँ। अपने स्वरूपों में बदलाव लाते हुए रिमझिम वर्षा बनकर धरा को निहाल कर देता हूँ। कभी माँ के गर्भ में समा जाता हूँ तो कभी पिता आसमान की गोद में जा बैठता हूँ। किन्तु मैं अपना उपकारी स्वभाव विस्मृत नहीं करता। और तुम मूर्ख मानव ! अभी तक मुझे समझ नहीं पाए। कब तक करूँ मैं तुम्हारी गलतियाँ माफ़ ? मुझसे ही कुछ सीख लो। याद करो... सुबह उठने से लेकर तो रात में सोने तक मुझे कितना बर्बाद करते हो। उठते से ही गए वाशबेसिन पर। धड़ाधड़ खोला नल और बहा दिया पूरा आधा बाल्टी। यही काम एक मग से भी हो सकता है...