Thursday, December 4राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

लघुकथा

कटु वाणी
लघुकथा

कटु वाणी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "क्या हुआ?" "लक्ष्मी आई है।" "खाक लक्ष्मी आई है।तीसरी बार भी लड़की ही।" और, सासू मां ने अनीता को वहीं अस्पताल में ही कोसना शुरु कर दिया। शोर शराबा सुनकर अनीता का ऑपरेशन करके उसके बच्चे की डिलीवरी कराने वाली डॉक्टर बाहर आई और सासू माँ पर गुर्राते हुए बोली- "माँ जी! क्या आप नहीं जानतीं, कि बच्चे को पहले नौ माह पेट में रखना, फिर जन्म देना, वह भी ऑपरेशन से, कितना कठिन होता है? आपने पोते की चाहत में अपनी बहू को तीसरी बार ख़तरे में डाल दिया। आज का ऑपरेशन तो बहुत ही जटिल था, और बड़ी मुश्किल से अनीता की जान बची है। वैसे तो हर बार ही बच्चे को जन्म देना माँ के लिए पुनर्जन्म होता है, पर आप यह समझिए कि आज तो आपकी बहू मौत के दरवाजे से ही वापस लौटी है। और-आप संतोष का अनुभव करने की जगह उसे कोस रही हैं। लानत है आप पर। इतने विषैले ब...
वो लड़की
लघुकथा

वो लड़की

अर्चना लवानिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** थोड़ा ध्यान पढ़ाई पर भी दिया करो हर थोड़ी देर मैं कक्षा के बाहर जाने का बहाना बनाती रहती हो। पढ़ना लिखना कब सीखोगी? कभी-कभी गुस्से में और ना जाने क्या-क्या कह जाती। शायद उसे पढ़ाई में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं थी इसलिए वह कभी मेरी स्नेह पात्र नहीं रही। पर उसे तो जैसे मेरी किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था। उस दिन मुझे सुबह से ही सिर दर्द और बुखार सा महसूस हो रहा था कक्षा में भी अनमने ढंग से कुछ पढ़ाई कराई फिर ज्यादा तबीयत खराब होने लगी तो सर टेबल पर टिका दिया। बच्चे चिंतित होने लगे क्या हुआ मैम ..क्या हुआ.....? कर-कर के फिर अपनी बात और अपने काम में लग गए। भोजन अवकाश में मैं अपने ऑफिस में आकर बैठ गई तो फिर वही लड़की आई मैंने थोड़ा चिढ़कर कहा अब क्या है? खाना खा लो और हम लोगों को भी यहां चैन से बैठने दो। उसने थोड़ा सकुचाते हुए अपन...
तेरी-मेरी कहानी
लघुकथा

तेरी-मेरी कहानी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "हैप्पी वेलेन्टाइन डे, माय डियर, एंड आय लव यू।" कहते हुए सुनील ने एक लाल गुलाब अपनी पत्नी रत्ना के हाथ में दे दिया। "आय लव यू टू, माय लाइफ।" कहते हुए रत्ना ने अपनी खुशी व्यक्त की। इस पर दोनों ठीक चार दशक पहले की कॉलेज की यादों में खो गए। "सुनील जी! क्या आपके पास यूरोपियन हिस्ट्री की बुक है?" "हां! जी है।" "मुझे कुछ दिन को देंगे, क्या....?" "जी अवश्य..." और सुनील ने यूरोपियन हिस्ट्री की किताब एमए प्रीवियस की उसकी क्लास में आई नवप्रवेशित सुंदर, आकर्षक और शालीन लड़की रत्ना को दे दी। फिर रत्ना ने नोट्स बनाने में सुनील की मदद की। सहपाठी तो वे थे ही, आपस में दोनों का मेलजोल बढ़ता गया। कक्षा में दोनों ही सबसे होशियार थे, इसलिए दोनों के बीच स्पर्धा भी थी, पर पूरी तरह स्वस्थ। धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे के दिल में समाते ग...
विदिशा का जन्मदिन
लघुकथा

विदिशा का जन्मदिन

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** विदिशा आज बहुत खुश थी। उसका चौथा जन्मदिन जो था। शाम को उसके दोस्त घर पर आने वाले थे। मां आकांक्षा ने मटर पनीर, पराठे, पकौड़े और खीर की तैयारी कर ली थी। वह अपनी ही दुनिया में मस्त थी। तभी उसके पापा आशीष ने आवाज़ लगाई, बिटिया रानी नहा-धोकर तैयार हो जाओ। पहले मंदिर फिर बाजार चलेंगे। विदिशा ने शीघ्र ही तैयार होकर हर वर्ष की तरह दादा-दादी के पांव छुए। फिर खुशी से उछलते हुए पापा-मम्मी के साथ चली गई। खरीदारी हो जाने के बाद वे केक और चॉकलेट की दुकान पर पहुंचे। विदिशा की पसंदीदा चॉकलेट की तरफ इशारा करते हुए आशीष ने दुकानदार से उसे पैक करने के लिए कहा पर, नहीं अंकल, उसे नहीं पैक करना सुनकर आकांक्षा चौंक गई और विदिशा से कहा, पर बेटा वह तुम्हारी फेवरिट चॉकलेट है पिछली बार भी तुमने अपने दोस्तों को वही चॉकलेट दी थी। पर इस बार नहीं ...
कर्तव्यबोध
लघुकथा

कर्तव्यबोध

माधवी तारे लंदन ******************** दरवाजे की बेल बजी– “आंटीजी दरवाजा खोलो मैं आई हूं” ये कामवाली की आवाज थी. द्वार खोलते ही मैंने उससे कहा – “अरे... तुम्हारे पति शांत हो गए हैं न ... तुमने अपनी जगह दूसरी बाई दी थी। वो दो दिन से अच्छी तरह से काम कर रही है फिर तुम आज कैसे?” “आंटीजी माफ करना, काहे का पति, और काहे का बच्चे का पिता... आज २५ साल पहले बिना कहे वो मुझे और मेरे चार साढे चार साल के बेटे को बेसहारा छोड़ कर गया था... हमें नहीं मालूम, तब से आज तक उसने ये तक न पूछा कि हम जिंदा हैं कि मर गए... अपने कर्तव्य से मुंह फेर कर गुलछर्रे उड़ा रहा था... पर कर्म ने किसे छोड़ा है क्या ! २५-२७ साल तक न उन्हें हमारी याद आई न अपने परिवार की.... पर अबकी बार बीमार हो कर अपनी बहन के घर आ गया।” ननंद जी को मैंने कहा कि “आपने मुझे क्यों बताई ये बात... जबसे गया तभी से मैंने बेटा बड़ा किया, उसकी प...
सुरक्षा कवच
लघुकथा

सुरक्षा कवच

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** अरे ! अरे ! मैं तुझे कुछ नहीं कहूंगी। बाहर आओ ! बाहर आओ ! देखो मेरे बच्चे भी खेल रहे हैं। हम सब मिलकर खेलेंगे । बहुत मज़ा आ रहा है।आ जाओ तुम भी। नहीं-नहीं चिंटू मत जाना मम्मा ने मना किया है कि बिल से बाहर जाते ही खतरा ही खतरा है, और यह बिल्ली तुझे खा जाएगी चिंटू। बहन ने उसे समझाते हुए कहा पर यह तो खेलने के लिए बुला रही है। तभी तो मैं कह रही हूं बाहर नहीं जाना नहीं तो मैं मां को बताऊगीं। लेकिन चिंटू बार-बार बाहर जाने की जिद कर रहा था। इतनी देर में ही चूहिया बाहर से आ जाती है। जिनको आते ही बच्चे सारी बातें बता देते हैं। कैसे बिल्ली हमें बाहर बुला रही थी। चूहिया ने तीनों को समझाते हुए कहा, यह बिल ही तुम्हारा सुरक्षा कवच है। जैसे ही बिल से बाहर निकले जिंदा नहीं बचोगे। इसलिए जब भी मैं खाना लेने बाहर जाऊं तुम अंदर ही रहना। पर मां...
इस संक्रांति
लघुकथा

इस संक्रांति

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सात वर्ष गुज़र गए बेटे पलाश को लंदन गए। वहाँ ब्याह भी कर लिया। पार्थ व जुही भी आ गए। गनीमत की बीबी मायरा भारत से ही थी। शेखर आवाज़ लगाते हैं, "अरे शारदा ! कब तक तिल गुड़ के लड्डू बना-बना कर बेटे बहू को भेजती रहोगी। क्या पता वो लोग खाते भी हैं या नहीं?" शारदा सजल हो बुदबुदाती है, "क्या करूँ? मन मानता ही नहीं। लेकिन इस बार बच्चे कहेंगे तभी भेजूँगी।" उधर पार्थ व जुही बड़ी बेसब्री से दादी के तिल गुड़ के लड्डू का इंतजार करते हैं, "पापा ! दादी कहीं बीमार तो नहीं हो गई।" शेखर सोचने को मजबूर हो जाता है। ज़िन्दगी में आगे बढ़ने के लिए माँ पापा कितने पीछे छूट गए। वह ख़ुद अपने बच्चों के बगैर एक दिन भी नहीं रह सकता है। फ़िर बेचारे माँ पापा... कैसे रह रहे होंगे अकेले ? तभी पार्थ, दादी की चिट्ठी लाता है। पूरे पन्ने पर पड़े आँसुओं के दाग माँ का दर्द ब...
रक्तदान
लघुकथा

रक्तदान

प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे बीड, (महाराष्ट्र) ******************** कॉलेज के कैंपस में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया था। उसमें श्रेयस ने भी अपनी स्वेच्छा से रक्तदान किया। उसके दस साल बाद एक सड़क दुर्घटना में श्रेयस का अ‍ॅक्सीडेंट हो गया। गहरी चोट लगने से बहुत रक्त स्त्राव हो गया था। उसे अस्पताल में भर्ती किया गया। उसकी हालत देखकर 'उसे रक्त देना पड़ेगा। जल्दी से रक्त का प्रबंध करो।' ऐसा डॉक्टर ने कहा। रक्त देने के लिए माता-पिता और कई रिश्तेदार तैयार हो गए पर श्रेयस की दीदी ने उसका रक्तदान का प्रमाणपत्र रक्तपेढ़ी में दिखाया और जल्द ही रक्त का प्रबंध हो गया। दूसरे दिन श्रेयस जब होश में आया तब उसकी दीदी ने कहा- "भैया, तेरे रक्तदान ने आज तुझे ही जीवन दान मिला है।" हास्य करते हुए श्रेयस ने कहा- "मुझे कहां मालूम था कि, आगे चलकर मुझे ही जीवनदान मिलने वाला है। पर, आज मैं यह समझ गया हूं...
मृत्यु की रात
लघुकथा

मृत्यु की रात

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** घर में निर्मला की मम्मी उसका भाई राजू छोटी बहन पिंकी घर में थे। पिता भोपाल से बाहर अपनी छोटी बहन की सगाई करने गए थे। तभी दो और तीन दिसंबर की रात १९८४ को मृत्यु की रात बन कर आई। निर्मला की मकान मालिक ने दरवाजा खटखटाया बोली धुआं-धुआं फैला है और आंखों में जलन हो रही है। जैसे ही दरवाजा खोला तो बाहर भीड़ दौड़े जा रही जान बचाने। निर्मला का भाई भी मोहल्ले वालों के साथ जान बचाने कहां गया पता ही नहीं। निर्मला की मां बहन छोटी अपनी सहेली के घर पहुंचे सहेली से बोली- "चलो हम भी कहीं चलते हैं।" सहेली के पति भी बाहर गए हुए थे। उनके तीन बच्चे थे। वह बोली- "हम कहीं नहीं जाते"। हम तो यही घर में रहते हैं। जिसको भी उल्टी आ रही है। उल्टी घर में ही कर लो, लेकिन घर में ही रहेंगे, तो कम से कम घर वालों को अपनी लाश मरने के बाद मिल तो जा...
सायरा का दायरा
लघुकथा

सायरा का दायरा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं मंगोड़ी की थाल लिए जीना चढ़ने ही वाली थी कि पीछे से सायरा बानो बोली, "लाओ आंटी मैं रख दूँगी धूप में, ऊपर ही जा रही हूँ।" यह उसका रोज का धंधा है। आते-जाते भाभी, दीदी, भैया सबके काम हँसते-हँसते निपटाना। सभी से आत्मीय सम्बंध बना लेना उसका स्वभाव ही है। मैं बालकनी में बैठी सोचने लगी कि वह सभी घरों का अटाला, कपड़े, पुरानी चीज़े आदि सहर्ष ले जाती है। जैसे ही वह ऊपरी मंजिल से उतरी मैं जिज्ञासावश पूछ बैठी, "सायरा ! मैं तुम्हें इतने सूट...।" वह बीच में ही बात काटते हुए बोली, "आंटी ! मैं तो बस कॉटन ही पहनती हूँ, आप रोज देखते ही हो। लेकिन मेरी सब सहेलियाँ रास्ता ही देखती है कि कब मैं पोटला लाऊँ? वे सब अपने हिसाब से छाँट बाँट लेती हैं।" "और दूसरा सब सामान....।" मैने टोका। बातूनी सायरा तपाक से बोली, "रब की दुआ से मेरे पास तो सब कुछ है। आप लो...
पाँच घण्टे
लघुकथा

पाँच घण्टे

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षक अभिभावक मीटिंग में प्राचार्या जी समझ नहीं पा रही क्या करे? अजीबोग़रीब प्रश्न पूछे जा रहे हैं, "बच्चे कहना नहीं मानते, ऊपर से झूठ बोलते हैं। दिनरात फ़ोन पर लगे रहते हैं। देर रात पार्टी करते हैं। फैशन के पीछे दीवाने हो रहे हैं। बात बात में झूठ बोलते हैं। आप स्कूल में यही शिक्षा देते हैं क्या ? प्राचार्या जी सादगीपूर्ण वर्दी में बैठे स्टॉफ की ओर इशारा करती हैं, "देखिए हमारे शिक्षक शिक्षिकाएं अनुशासन में रहते हैं। अपनी तरफ से बच्चों को व्यहारिक रूप से मूल्य सिखाते हैं। स्वयं रोल मॉडल बन समझाते हैं।" फ़िर मेडम अभिभावकों की ओर मुखातिब होती हैं, "मैं स्पष्ट देख पा रही हूँ कि लगता है आप किसी फैशन परेड में आए हो। बताइए मुझे, क्या बच्चों के दादा-दादी साथ रहते हैं? आप अपनी पार्टियों में व्यस्त रहते हो, देर रात आते हो। नानी-दादी का साथ च...
नीनू चली जादू नगरी
लघुकथा

नीनू चली जादू नगरी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दीवाली के लिए मम्मा ने गुजिया लड्डू बनाकर ऊँची रेक पर रख दिए। नीनू सोचने लगी मैं गुड़िया बहियन की छोटी गुजिया केही विधि पाऊँ? लेकिन उसके सारे प्रयास विफ़ल। नीनू ललचा कर माँगती है, "बस एक गुजिया दो ना मम्मा, सच्ची बस एक ही।" माँ फटकार लगा देती है, "बिलकुल नहीं, सब भोग के बाद।" नीनू मिठाई का सोचते-सोचते निंदिया रानी की दुलारी हो जाती है। वह जादू की नगरी में पहुंच जाती है। वहाँ देखती है...वह एक अनूठे पार्क में नितांत अकेली चहलकदमी कर रही है। पेड़ो पर फलों के साथ मिठाइयाँ भी लटक रही हैं। रसगुल्ले, जलेबी, गुलाबजामुन आदि-आदि और उसकी मनपसन्द रंगबिरंगी टॉफियाँ। नीनू की तो बल्ले-बल्ले हो जाती है। वह सोचती है, पहले सब देख लूँ, फिर खाने का इंतज़ाम करती हूँ। ज्यों ही वह सामने देखती है, "अहा ! शिकंजी के ताल में इमरती की नौका, मजा आ गया।" नीनू ...
विकल्प
लघुकथा

विकल्प

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शराबी अय्याश पति संकेत की प्रताड़ना से व्याकुल सरिता बदनामी के डर से मन मसोसकर रह जाती। अंतर्जातीय प्रेम विवाह के बाद भी सरिता का चयन गलत निकला। माता-पिता से विद्रोह कर चुकी सरिता ससुराल में भी सम्मानजनक स्थान नहीं बना पाई। देर रात शराब के नशे में धुत संकेत सरिता पर चिल्लाने लगा "तुमने मेरा जीवन बर्बाद कर दिया। मेरे भावनाओं का फायदा उठाकर शादी कर ली। अब मैं तुमसे छुटकारा पाना चाहता हूं।" सरिता "हमारी शादी कुछ सालों तक प्रेम सम्बन्ध रहने के बाद आपसी सहमति से हुई है। अब आपको मुझमें खोट नजर आने लगी।" संकेत "अपने पिता की इकलौती संतान हूं। मेरे पास अच्छी खासी धन दौलत है। लड़कियों की कतारें लगी रहती थी। तुमने अपने प्रेम जाल में फंसाकर मुझे अंधा कर दिया था।" सरिता "नादान तो मैं निकली। आप पर आंख मूंदकर भरोसा करती रही। आपने मेरे भरोस...
थाती
लघुकथा

थाती

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** दीपावली हेतु सफाइयाँ जोर-शोर से चल रही थीं। पुराना सामान हटाते-हटाते अचानक सुधा के हाथ में एक मखमली लाल थैला लग गया। मानो उसके हाथ में यादों का पुलिंदा ही आ गया हो! नन्हें-नन्हें कपड़े, छोटे-छोटे कुछ टूटे-फूटे खिलौने, कुछ छिली-अधछिली पेंसिलें, रंग बिरंगी चौक के टुकड़े, कुछ ट्रॉफियाँ और न जाने कौन-कौन-सी "थाती" सहेज कर रखी थी अपने चारों चहेते बच्चों की, सब एक चलचित्र की भाँति आँखों के सामने घूम गया और वह ममता के सागर में गोते लगाने लगी! परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- राष्ट...
उपहार
लघुकथा

उपहार

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** दीपावली की तैयारियों के लिए कमल अनोखीलाल सेठ के बंगले पर रंग बिरंगी झालर लगाने में व्यस्त था। सेठ जी कमल को उचित दिशा निर्देश देकर बगीचे की ताजी हवा का आनंद ले रहे थें। शालू खेलते-खेलते अपने दादाजी के पास आई। सुंदर गुलाबी रंग के कपड़ों में वह परी-सी लग रही थी। सेठ जी ने उसे-स्नेह से गले लगा लिया। यह देख कमल का दिल भर आया। उसे याद आया की उसकी बेटी पूजा ने भी कहा यहां की "बाबा इस बार तो मुझे अच्छे नये कपड़े दिलवाओंगे ना?" इसी उधेड़बुन में वह कार्य करना भूल गया। अनोखीलाल-"कमल कार्य समाप्त हो गया क्या?" "नहीं मालिक थोड़ा-सा ओर बचा है?" शाम को लौटते समय सेठजी ने उसे मेहनताना दिया। कमल धन्यवाद देकर जा ही रहा था कि घर की सेठानी कांशीदेवी ने रोका- "भैय्या ये छोटा-सा उपहार भी लेते जाओ। "कमल प्रसन्न हुआ और शीघ...
सीख
लघुकथा

सीख

उमेश्वरी साहू धमतरी (छतीसगढ़) ******************** कभी-कभी हम बच्चों को कुछ सिखा कर खुद ही भूल जाते हैं। आज मेरे साथ एक ऐसे ही अद्भुत घटना घटी। लगभग ५ साल बाद मैने स्कूटी चलाई इसलिये मुझे बहुत डर लग ररहा था। डरते-डरते स्कूल के पास पहुंची। मुझे देखकर बच्चे भी पास आ गए। स्कूल से थोड़ा पहले की सड़क बहुत ऊंची हैं, मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी तो मैंने बच्चों से कहा कि मैं गाड़ी यही छोड़ दूँगी। तभी एक ८ साल की बच्ची बोलती हैं कि मैम आप कोशिश करो जरूर चढ़ा लोगे। परन्तु फिर भी मुझमें हिम्मत नही आई और मैंने एक बार फिर से कहा कि, नही बेटा मैं नही कर पाऊँगी। तब उस बच्ची ने मुझे वह दिन याद दिलाया जब मैंने उन लोगो को चींटी की कहानी सुनाई थी.... उसने कहा कि क्या मेंम आप भी, हम लोगों को सिखाती हो कि, "कोशिश करने वालो की हार नही होती" और आप ही हार मान रही हो। आप कोशिश तो कीजिये हम लोग हैं ना आपके पी...
माँ का दिया छाता
लघुकथा

माँ का दिया छाता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** माँ क्या स्वर्ग सिधारी कि श्रीधा के बाबा अकेले रह गए। बेटी कह कह कर हार गई, "बाबा, आप मेरे घर चलिए। वहाँ मेरे ससुर जी के साथ आपकी खूब जमेगी। माजी ने तो आपके लिए कमरा भी तैयार कर लिया है।" लेकिन अभय जी कहते, "अरे श्रीधा, मैं अकेला अवश्य हूँ पर अपना सब काम निपटा लेता हूँ। शाम को पार्क चला जाता हूँ। फिर मेरा छाता तो साथ रहता ही है। धूप बारिश आवारा कुत्तों व गुंडों से बचाने के लिए। तेरी माँ जो लाई थी मेरे लिए।" इस बार श्रीधा एक सप्ताह के लिए आई है, अच्छे से घर जमाने के लिए। पर बाबा की शामें बाहर ही गुजरती है। यह क्या भरी बरसात में भी बाबा को जाना है। जैसे ही पार्क से आए, श्रीधा पूछ बैठी, "ये क्या बाबा, छाता होते हुए भी आप एक तरफ से पूरे भीग गए और एक तरफ से सूखे।" तभी पड़ोस वाले चाचू आकर चुटकी लेते हैं, "अरे बेटी, तेरे बाबा की एक...
मां का दिल
लघुकथा

मां का दिल

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** ऊंची कद काठी के, मृतप्राय से, अपने पति को मृत्यु शैय्या पर देख सुमित्रा का मन धक सा हो रहा था। तीनों बेटियों को बुला लिया था डॉक्टर ने जवाब जो दे दिया था। इसलिए हॉस्पिटल से पति को वापिस लाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। वैसे तो छोटी बेटी ने किचन संभाल लिया था। रोटी सब्जी दाल चावल तो बन ही जाता था। पर सुमित्रा को यह रह-रह कर लग रहा था कि मेरी बेटियां इतने दूर से आई है, उन्हें कुछ अच्छा खिला सकती। दूसरे दिन मां को बेटियों ने घर पर नहीं पाया। सोचा, कहां चली गयी होगीं? तभी दरवाजा खोल मां का आगमन हुआ। मां के कंधे पर बैग झूल रहा था। उसमे से उन्होंने एक डिब्बा निकाला और डायनिंग टेबल पर रख दिया। 'क्या है इसमें?' बेटियों ने उत्सुकता से पूछा। 'तुम सबको श्रीखंड पसंद है ना? वो ही लेने गयी थी।' परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी...
लिहाज
लघुकथा

लिहाज

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घानू का नशा उतर गया था। वह घर की बालकनी में आराम से बैठे चाय की चुस्की के साथ पेपर पढ़ रहा था। उसकी नजर उन खबरों पर थी जहां दारू के अड्डे पर छापे पड़ रहे थे। कहीं नशा मुक्ति अभियान के तहत महिलाएं जुलूस निकाल रही थी, तो कहीं युवाओं से बच्चों से शपथ दिलवाई जा रही थी। लेकिन घानू मुस्करा रहा था। 'पार्वती बड़े प्रेम से पति के पास आई और बोली, देखो जी आज सर्व पितृ अमावस्या है। आप आज के नशे के पैसे बचाकर पितरों के फोटो के लिए फूलो का हार लेकर आयेंगे तो बच्चों को भी समझ पड़ेगी कि ये हमारे पूर्वज है। घानू ने झिड़क कर जवाब दिया, "क्या दिया पितरों ने जो हार फूल चढ़ाना। जाओ अपना काम करो।" तुम्हें रहने के लिए छत दी है। कहीं सड़क या नाले के हवाले तो नहीं किया है। तुम्हें पढ़ाया लिखाया काम पर भी लगवा दिया। "लेकिन ये सौत ने तुम्हें हड़प लिया, ज...
कफन की शान तिरंगा
लघुकथा

कफन की शान तिरंगा

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** आज लंबे अर्से के बाद पोस्टमेन की आवाज सुनकर, और उसके हाथ में लिफाफा देख कर दिल खुशी से नाच उठा। क्योंकि आजकल मोबाइल के जमाने में डाक से चिट्ठी कहाँ आती है? जरुर किसी पुराने परिचित ने भेजी होगी। झटपट लिफाफा ले कर खोला तो देखा बचपन की सहेली अपूर्वा की चिट्ठी थी। चिट्ठी खोलते हुए हाथ कांपने लगे क्योंकि कुछ दिनों पहले ही उसका बेटा अचल, जो सेना में ऊंचे ओहदे पर था, काश्मीर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में मारा गया था। तब फोन पर ही मैं उसे दिलासा दे पाई थी। चाहकर भी मिलने नहीं जा पाई थी। उसका पत्र हाथ में लेकर आँखें गीली ह़ो गयी। लिखा था, मन की कुछ बातें फोन पर नहीं हो पाती हैं इसलिए आज तुझे चिट्ठी लिख रही हूँ। विभा, तुझे क्या बताऊँ, अचल के जाने के बाद कैसे थोड़ा संभल पाई थी कि आज हमारे यहाँ के महपौर स्वयं घर आए। वे इस बार गणतंत्र...
ये फुनवा मुआ
लघुकथा

ये फुनवा मुआ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यशोदा अपने कमरे में लेटी लेटी सोच रही है...एक ज़माना था जब घर में कितनी चहल पहल रहती थी। अम्मा जी भी सुबह जल्दी उठ जाती थी। दोनों सास बहू मिलकर पूरे घर को बुहार लेती थी। अम्मा का स्नान ध्यान प्रारम्भ हो जाता था। पूरा वातावरण अगरबत्ती की महक से सुवासित हो जाता था। वह स्वयं भी नहाकर चाय लिए पूजाघर में अम्मा जी के साथ जा बैठती। मुँह अंधेरे घूमने निकले पतिदेव प्रशांत भी पिता के साथ अख़बार में खो जाते। चाय की चुस्कियों के साथ यशोदा सब्जियों की सफ़ाई पर हाथ चलाती और दिनभर की योजनाएँ बनती रहती। दिन के खाने के टिफ़िन बन जाते किन्तु नाश्ता सब साथ साथ बतियाते हुए करते। यशोदा वर्तमान में आकर मायूस हो जाती है। घर में तो जैसे मरघटी शांति ने डेरा जमा लिया है। एकमात्र शेखर जी ही हैं जो अपनी ऐनक चढ़ाए अख़बार में मशगूल रहते हैं। हाँ, अपनी शाम वे पत्...
बारिश
लघुकथा

बारिश

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज आसमान पर बादल छाए थे, मानसून का आगमन हो चुका था। सभी को खुशी थी कि अब इस तपती गर्मी से निजाद मिलेगी। लेकिन शोभा ताई अपनी झोपड़ी में बैठे-बैठे ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि पहली बारिश के बाद ही झोपड़े में पानी भर जाएगा, फिर अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर कहाँ जायेगी। हे ईश्वर! जब तक कहीं रहने का इंतजाम न हो, तब तक कैसे भी करके बादलों को बरसने से रोक लो। तभी नगर पालिका की गाड़ी बस्ती के बाहर आकर रूकी, कि पूरी बारिश में बस्ती के लोगों के रहने के लिए सरकार ने पुराने स्कूल में व्यवस्था की है। सब लोग अपना काम का सामान लेकर उधर रहने जा सकते हैं। तभी बादल बरसने लगे और अब शोभा ताई भी बारिश में खुशी से झूम रही थी। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी म...
बेटी की विदाई
लघुकथा

बेटी की विदाई

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी की शादी करना हर पिता का सपना होता है ... मेरे जीवन में भी एक बेटी आई और मेरा घर खुशियों से भर गया जैसे-जैसे बेटी बड़ी होने लगी मुझे एक बात सताने लगी की इसकी शादी होगी और यह पराई हो जाएगी फिर मेरे घर आंगन में कौन नाचेगा जिसे मैंने बड़े लाड से पाला वह आज पराई होने जा रही है। खुशी है बेटी की शादी की परंतु दिल में कहीं किसी एक कोने में उदासी भी है, अपनी नन्ही सी कली को अपने प्राणों से ज्यादा चाहा अपनी पलकों की छांव में रखा उसे ईश्वर हर खुशी दे बेटी की विदाई का विचार मन में आते ही दिल अंदर से कांप जाता बेटी के बिना मैं अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता उस बेटी को आज मुझे विदा करना है, मेरा पूरा घर उसकी मीठी बोली से गूंजता रहता था अब यहां सन्नाटा होगा बेटियां पराई अमानत होती है तो ईश्वर उन्हें देता ही क्यों है, क्यों माता-पिता...
काश बुद्ध सा कुछ करता
लघुकथा

काश बुद्ध सा कुछ करता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "घर सम्भालूँ कि नौकरी करूँ? बिट्टू के स्कूल की मीटिंग में अलग जाना है।" सुमेधा बड़बड़ाते हुए अपना व बेटे का टिफ़िन तैयार करती है। रिक्शा से बिट्टू को स्कूल छोड़ते हुए ऑफिस पहुँचती है। पता चला आज भी बॉस ने लेट लगवा दिया है। चाय की तलब लगने पर याद आया घर में दूध था ही नहीं। बिट्टू को देना जो ज़रूरी था। चाय को भूलकर फाइलें निपटाते दिमाग़ में विचारों का ज्वारभाटा चलने लगा, "सिद्धार्थ से प्रेम विवाह कर कितने सपने देखे थे। पति के पास काम नहीं होने पर भी दिलासा देकर उसके लेखक बनने के जुनून को हमेशा सराहा। हाथ खर्चा देती रही इस आशा में कि सब ठीक होगा। किन्तु एक रात वह सब को सोता हुआ छोड़कर अनजानी राह पर चला गया।" काम निपटाते हुए वह उदास हो जाती है। तभी एक मित्र का फोन आता है, "सुमेधा ! संयत होकर धैर्य से मेरी बात सुनना। पता चला है कि सिद्धा...
निर्णय
लघुकथा

निर्णय

माधवी तारे लंदन ******************** लग्न मंडप से अपने-अपने कमरों में चले गए दूल्हा और दुल्हन, थोड़े समय बाद पूरी रात भर सुनाई देने वाली दूल्हे के कमरे से चिल्पो सुन रही थी दुल्हन, सुबह वरमाला लेकर मंडप में तो गई, पर सबके सामने बोल पड़ी मैं ससुराल नहीं जाऊंगी डोली हटा लो कहारो.... परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु ...