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गद्य

एक पल
आलेख

एक पल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समय का महत्व हर किसी के लिए अलग अलग हो सकता है। इसी समय का सबसे छोटा हिस्सा है "पल"। कहने सुनने और करने अथवा महत्व देने में अधिकांशतः हम लापरवाही में, भ्रमवश भले ही एक पल को अधिक भाव नहीं देते, परंतु हम सबको कभी न कभी इस एक पल के प्रति अगंभीरता, लापरवाही अथवा अनजानी भूल की भारी कीमत चुकानी पड़ जाती है। बहुत बिर मात्र एक पल के साथ कुछ ऐसा हो जाता है कि उसका विस्मरण असंभव सा होता है। वह अच्छा और खुशी देने वाला भी हो सकता है और टीस देता रहता ग़म भी। उदाहरण के लिए एक पल की देरी से ट्रेन छूट जाती है, एक पल की लापरवाही या मानवीय भूल बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बन जाती है, धावक विजयी हो जाता है और नहीं भी होता। एक पल में लिए निर्णय से जीवन की दशा और दिशा बदल जाता। बहुत बार एक पल के आगे या पीछे के निर्णय अविस्मरणीय खुशी ...
असीम तुम्हारी कविता
संस्मरण

असीम तुम्हारी कविता

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** आज तुम्हारी फाइलों को तुम्हारे जाने के बाद लोगों को वापस देने के लिए कुछ किताबों के पन्नों में से एक डायरी का पन्ना निकला। मेरे छोटे भाई अनुज ने वह पेज उठाया और कहा दीदी आप की कविता। मेरी कविता मुझे हैरानी हुई कि असीम की फाइलों में मेरी कविता। लेकिन जब मैंने देखा तो मैंने उसे लिखावट देख कर बताया कि यह मेरी नहीं उनकी (असीम) कविता है। शीर्षक लिखा था....दर्द     दिल में ऐसा ...क्या होता है। खून के आंसू क्यों रोता है। निष्ठुरता की चादर ओढ़े, पैर पसारे जग सोता है। प्यार की भाषा कहां खो गई। भावनाएं लाचार हो गई। मतलब तक इंसान है सीमित। हमदर्दी भी कहां सो गई। नेक दिली थी ...सीखी हमने। सिर्फ आज तक "अपनों" से, चोट लगी तो संभलें ऐसे। जागे जैसे सपनों से। चोट पे चोट लगी दिल पे। पर रा...
बदलता वक्त… बदलते लोग…
कहानी

बदलता वक्त… बदलते लोग…

अरविन्द सिंह गौर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** राकेश के पिता का देहांत १० वर्ष की उम्र में ही हो गया वह गांव में रहता था। उसकी मां ने उसे शहर लाकर पढ़ाने के लिए सब जमीन जायदाद छोड़कर वो शहर में आ गए और उसकी जमीन जायदाद पर उनके रिश्तेदारों ने कब्जा कर लिया। इस बीच जब थोड़ा बहुत समझदार हुआ तो उसने अपने गांव जाकर अपनी जमीन जाकर को देखनी चाही‌। राकेश की जमीन में अच्छी पैदावार नहीं होती थी पर वहां नहर निकलने के कारण वह जमीन पर अच्छी पैदावार होने लगी कीमत भी बढ़ गई। जब वह अपने गांव गया तो उनके रिश्तेदारों ने उसे जमीन कि कागजात भी दिए ना ही जमीन के पैसे भी दिए और उन्हें उल्टा मारने की धमकी दी इस कारण वह वापस शहर में आ गए। वक्त बदलता गया पढ़ाई करके राकेश सरकारी महकमे में बड़ा अधिकारी बन गया था उसकी शादी हो गई और शहर में उसने अपना स्वयं का बड़ा मकान बना लिया था। राकेश के एक लड़का एक...
कबाड़ी किंग
व्यंग्य

कबाड़ी किंग

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कबाड़ी वाला और व्यंग। सुनने में बड़ा अटपटा लगता है। कबाड़ में तो कचरे की भरमार रहती है। कचरे से व्यंग का उत्पादन सचमुच बड़ा ही विस्मयकारी है। इधर कबाड़ी वालों की देश में भरमार है। सोचता हूं यदि हिंदुस्तान में कबाड़ वाले नहीं होते तो अटालों का क्या होता है? पूरे देश का अटाला सड़कों पर जमा हो जाता। कुछ लोग जो अटाले को घरों में बड़े करीने से सजाकर रखते हैं। कबाड़ हमेशा कबाड़ नहीं रहता। यदि किस्मत बल्लियों मचले तो कबाड़ भी एंटीक की कैटेगरी में आ जाता है। कबाड़ने कितने ही कावड़ियों की लाइफ बना दी। मतलब जो सड़क छाप थे आज राजमार्ग पर फराटे दार अंग्रेजी में बतिया रहे हैं। हमारे शहर का एक कबाड़ी तो रातों रात लखपति की श्रेणी में आ गये। कावड़ची चाची बेगम के दिन इतनी जल्दी बदल गए। पूरे शहर के कबाड़ी उससे जलने लगे। शायद घूड़े के दिन भी इतनी ज...
बदलाव निश्चित है चाहे समय हो या भाग्य
कहानी

बदलाव निश्चित है चाहे समय हो या भाग्य

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** रघु बड़ा उदास लग रहा था। उसके मन में न जाने कैसे कैसे विचार जन्म ले रहे थे जिसका कारण था उसके खेत की फसल। जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी अब हर बार उसकी फसल बहुत कम आ रही थी। निराशा उसके मन मे घर बना रही थी। अखबारों में आए दिन किसानों के आत्महत्याओं की खबरें सुन-सुनकर उसका मन पसीजने लगा था, करे भी तो क्या? सामने बेटी ब्याह लायक हो चुकी और बेटा खेती करना नही चाहता उसका मन पढ़ लिखकर अफसर बनने के सपने देख रहा था। कर्जदारों का कर्ज चुकाना है, बेटे जो पढ़ाना है और बेटी ब्याहना है। कैसे होगा सब सोच सोचकर ही वह टूटता जा रहा है। अंततः उसने भी आत्महत्या का विचार बना ही लिया लेकिन वह एक दिन वह अपने परिवार के साथ सुकून से रहना चाह रहा था तभी उसकी पत्नी उसके पास आकर कहने लगी "आप व्यर्थ चिंता करते हो। इस पूरी दुनिया में सिर्फ हम ह...
कोरोना के चलते : किसानों की दयनीय दशा….
आलेख

कोरोना के चलते : किसानों की दयनीय दशा….

नूपुर जैन शंकर नगर दिल्ली ******************** आज पूरा विश्व कोरोना जैसी विशाल महामारी से लड़ रहा है। और यह बड़े दुख की बात है कि, इसके चलते भारत में सभी लोगों का जीवन बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ है। पिछले १ वर्ष से सभी लोगों में निराशा और चिंता का स्तर पहले से और अधिक बढ़ता हुआ ही पाया गया है। और इसी चिंता और निराशा के कारण, कई किसानों की दशा इतनी दयनीय हो गई है कि, उनमें "आत्म-हत्या" जैसे विचार भी पनपने लगे है। भारत में किसानों की दशा इतनी दयनीय हो गई है कि, वे सभी इस महामारी से अत्यंत दुखी एवं ग्रसित हो चुके है। उनके इस निराशा के पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे :- १. ऋण का भुगतान कर पाने में असमर्थ होना २. अनियमित मौसम की स्थिति के कारण फसलों को नुकसान पहुँचना ३. सिंचाई की पर्याप्त सुविधाओं का उपलब्ध न होना ४. सरकार के नीतियों में बढ़ती असमानता ५. स्वास्थ्य-संबंधी मुद्दे ६. व्य...
झुठी कसम
लघुकथा

झुठी कसम

डॉ. मोहन लाल अरोड़ा ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा) ******************** बात बहुत पुरानी है छोटी उम्र छोटी क्लास प्राईमरी स्कूल मे जाते ही सबसे पहले यही पढाया गया... झूठ बोलना पाप है चोरी करना पाप है। नन्हें दिमाग मे यही बात बैठ भी जाती है। जैसे-जैसे बड़े होते गए झूठ बोलना तो आम बात हो गई कुछ मजबूरी मे, कुछ आदत हो गई कभी डर कर तो कभी हंसी मजाक से झूठ बोलना और झूठी कसम खाना रोजमर्रा की जिंदगी मे आम सी बात हो गई। बड़े हो गए पढ लिख गए नौकरी भी लग गई परंतु झूठ बोलना और झूठी कसम खाना भी जिंदगी के साथ बढ़ा गया भगवान कसम मैं झूठ नहीं बोल रहा... और झूठ ही बोल रहा था क्योंकि सच बोलने के लिए कसम खाने की आवश्यकता ही नहीं है माँ कसम मैने ऐसा नहीं किया, तेरी कसम आगे से ऐसे नही करूंगा। ऐसी कसमे रोजाना खाना जिंदगी का एक फैशन सा हो गया है, चाहे कसम खाने की आवश्यकता ही ना हो फिर भी भगवान की झूठी कसम क्योंकि भगव...
जेठ मास
लघुकथा

जेठ मास

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** चलो एक काम तो हुआ l कहते उसने अपने पल्लू से पसीना पोंछते मटके का ढक्क्न खोला तो उसमें पानी तला छु रहा था। दूसरा तो पहले से ही खाली था। उसने मटके उठाते झुंझलाते हुए कहा कितनी बार मुन्ना के दद्दा से कहा कि सवेरे ही पानी भर लाने दिया करो पर कहाँ सुनते हैं अब कैसे समझाऊँ कि...... छोडो। दोनों पेड़ों के बीच टांगे झूले को धक्का दे, अड़ोस-पड़ोस के दरवाजे बंद देख खुद से बुद्बुदाई न मुनिया न चुनिया और ना ही बाईसा?? के होवे? जंगल से लकड़ी ले ना लौटे?? दिल पर पत्थर रख वह घर से वावड़ी की तरफ हो ली। चाह कर भी अपने पैर जल्दी ना चला पा रही थी। धरती मानों तवा हो रही थी। जेठ की चिलमिलाती धूप। लू की लपटें और मरुस्थल से उड़ती तपती रेत शरीर पर चटके लगा रही थी। पसीना थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। रास्ते में एक पेड भी न था जिसके नीचे वह थोड़ा सुस्ता सके। पर उसे स...
पाश्चात्य संस्कृति में माता-पिता का स्थान
आलेख

पाश्चात्य संस्कृति में माता-पिता का स्थान

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** आँखों से निकलकर झुर्रिवाले गालों से होकर टपकते हुए आँसू, कपकपाते होंठ और मन में दर्दभरे एक जलजले ने उसकी अंतरात्मा को मानो हिला कर रख दिया हो। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि उसने उसके पालन पोषण में कोई कमी रखी या उसने कोई गलती कर दी। पूरा एक दिन उसे अनाथ आश्रम में आए हुए हो चुका था। अपनी उम्र के सत्तर बरस पार कर चुका है वो। एक फैक्टरी में काम करने वाला एक मजदूर है रघुराम और एक पुत्र का पिता बनने पर खुशी मना रहा है। उसने अपने पुत्र को सूरज नाम दिया ये सोचकर कि वह उसका नाम रोशन करेगा। परिवारजन एवं उसके साथी उसे बधाईयाँ दे रहे है। रघुराम अपने पुत्र के लिए बड़ा आदमी बनाने के सपने देखने लगा। दिन रात काम में लगा रहता समय बीतता चला गया सूरज ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर ली अब वह अब कॉलेज में प्रवेश की तैयारी कर रहा है। र...
सम्मान
लघुकथा

सम्मान

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** रामकिशन जी बहुत सीधे सरल और सज्जन व्यक्ति थे। वो कुछ ही समय पहले नौकरी से रिटायर हुए थे। दिनचर्या में परिवर्तन होने से उनको उतनी तकलीफ़ नहीं हो रही थी जितनी कि अपनों के परिवर्तित व्यवहारों से। प्रत्यक्ष रूप से तो सब ठीक ही दिखाई देता था परन्तु बातों में छुपे कटाक्ष उनके मन को भीतर तक आहत कर देते थे। इस कारण उनकी सेहत भी कमजोर हो रही थी। दोस्तों और परीचितों से सम्पर्क करके खुश रहने के प्रयासों में कोई विशेष सफलता नहीं मिल रही थी। वो मन ही मन सोचते रहते थे कि नौकरी अकेले नहीं जाती वरन् अपने साथ सुख शांति खुशी और सम्मान भी ले जाती है। ये कष्ट उन्हें तोड़ कर बिखेर दे इससे पहले उन्होंने स्वयं ही वृद्धाश्रम जाकर रहने और वहाँ से कुछ रचनात्मक करने का फैसला किया। इसी फैसले के अन्तर्गत उन्होंने अपनी जमीन जो कि गाँव में थी उसे बेचने का फैसल...
जीवन के रंग
कहानी

जीवन के रंग

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** नीरा का रो-रो कर बुरा हाल था। आज होली के दिन,उसके परिवार पर ये कैसी आफत टूट पड़ी थी? पूरे मोहल्ले में इसी परिवार की चर्चा हो रही थी। सभी नीरा को हौसला देने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे थे। पर सब बेकार था। उसने अपना पति खो दिया था। वह उसे बार-बार होली खेलने से रोक रही थीं। पर गगन ने उसकी एक ना सुनी थी। उसे होली खेलने का बहुत शौक था। अब वह उसके सामने खून से लथपथ पड़ा था। उसे लाल गुलाल बहुत पसंद था। हाय! यह लाल रंग। यह गगन को बार-बार उठाने का प्रयास कर रही थी। सास ने उसे खींच कर सीने से लगा लिया। मेरी बेटी मत रो, यह भगवान की मर्जी है। भगवान को हम पर दया क्यों नहीं आई?नीरा रो-रोकर चिल्ला रहीं थीं। माँ का भी रो-रो कर बुरा हाल था। वह भी भगवान से पूछ रही थी? मेरा लाल, मुझसे क्यों छीन लिया? भगवान, मेरे लाल की जगह मुझें उठा लेता। तुझें मुझ विध...
धनुआ क माई
लघुकथा

धनुआ क माई

ओंकार नाथ सिंह गोशंदेपुर (गाजीपुर) ******************** मेरे पड़ोस के ही गांव सोना का पूरा में कल्लू सेठ अपनी धर्मपत्नी के साथ रहा करते थे जिनको एक लड़का धनंजय नाम का था घर और गांव के लोग उसे धनुआ कह कर बुलाते। कुछ दिन के बाद कल्लू का एक्सीडेंट हो गया वो बचाया नहीं जा सका धनुआ और उसकी मां पर तो वज्रपात ही हो गया। स्थानीय लोगों द्वारा सरकार से पैरवी करा कर धनुआ की मां को ३००००० लाख रु. की सहायता मुख्यमंत्री राहत कोष से मिल गए। अनुदान पा कर मां बेटा बहुत खुश हुए अब जैसे तैसे गाड़ी चलने लगी इसके अतिरिक्त इनके पास आयका अन्य स्रोत नहीं था गरीब की औरत पूरे गांव की भौजाई भौजाई.... गांव के लोगों की राय से धनुआ का नाम एक अच्छे अंग्रेजी स्कूल में लिखवा दिया गया अब पैसों की आवश्यकता महसूस होने लगी गांव के कुछ लोग धनुआ की मां को भऊजी पांव लगी कहने लगे धनुआ की मां चीढ़ती थी धीरे-धीरे सब को आश...
दावत
कहानी

दावत

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** हमारे गाँव में एक बूढ़े बाबा थे जिनका नाम बनी सिंह था। जब मैंने उन्हें पहली बार देखा तब में सिर्फ दस साल का था। लोग उनकें बारे में बहुत भला बुरा कहते थे और वास्तव में वे थे भी बहुत बूरे। उनके बारे में एक बात तो प्रचलित थीं कि जब उनका परिवार साजे में रहता था तो वही अपने सभी भाईयों में मुखिया थे और उनके भाई उन पर आंख बंद कर के विश्वास करते थे। एक दिन सभी भाईयों ने मिलकर छ: बिघा जमीन खरीदी और बेनामा कराने सभी भाईयों ने बनीं सिंह जो मुखिया थे उन्हें तहसील भेज दिया और कोई भी भाई उनके साथ नहीं गया।बनी सिंह ने बिना किसी को बताए तीन बिघा जमीन अपने नाम करा ली और घर आकर कह दिया कि मैं पिता जी के नाम बेनामा करा आया। सभी ने कहा चलो अच्छा है, आखिर छ: बिघा जमीन खरीद ली चलो बच्चों के काम आएगी। दिन धीरे-धीरे बितते चले गए, ये तीन भाई थे, एक दिन बीच...
सार्थक उपासना
लघुकथा

सार्थक उपासना

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** सार्थक उपासना वही है जिसके साथ अच्छे कर्म भी जुड़े हों। पूजा-उपचार बाह्य क्रियाएँ हैं | श्रेष्ठ कर्म को उपासना मान लिया जाय तो वह उपासना सार्थक हो जाती है | एक समय की बात है जब दो लोग साथ-साथ रहते थे | एक दिन गाँव की पाठशाला में अध्यापन करने वाले शिक्षक ने उनके सामने दो समान पत्थर रखे गए | उनके द्वारा की जाने वाली प्रतिक्रिया का इंतजार था | पहले आदमी ने अपने सामने रखे पत्थर को देखा और हाथ जोड़कर खड़ा रहा | कुछ क्षण मन को रोककर आँखें बंद कीं और ध्यान करने लगा | पत्थर अपनी प्रकृति के अनुसार अचेत पड़ा रहा | दूसरे आदमी ने ध्यान से पत्थर को निहारा और चंद क्षण सोचकर फिर अपनी आँखें खोलीं, मन को उत्साहित किया और फिर छेनी, हथौड़ी लेकर पत्थर को तराशने लगा | वह अपने काम में मगन हो गया, उसे इतनी लगन लग गयी कि समय कैसे गुजर रहा था उसे कुछ पत...
सुंदर अहसास
कहानी

सुंदर अहसास

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** विनीता रिक्शा में नए घर की तरफ जा रही थी। उसे बार-बार ऐसा लग रहा था किसी की निगाहें उसका पीछा कर रही है। वह भी चाहती थी कि एक बार पलट कर देख लें। पर पता नहीं क्यों उसका मन नहीं मान रहा था? वह रिक्शा वाले से बोली, भैया थोड़ा जल्दी करो। मौसम खराब हो रहा है। ऐसा लग रहा है कोई तूफान आने वाला है। नहीं-नहीं, यह बस तेज हवाएं हैं। आप यहां पर नई है ना। इसलिए यहाँ के मौसम से अनजान हैं। यहाँ, मौसम पल-पल बदलता है। मेरा मतलब यह नहीं था। मैडम पहाडों में तो इस तरह की तेज हवाएं चलती रहती हैं। कभी-कभी तेज हवाओं के साथ तेज बौछारें भी हो जाती हैं। तभी तो यहाँ पर दूर-दूर से लोग घूमने आते हैं। इस शानदार मौसम का आनंद लेते हैं। विनीता, को वह रिक्शावाला कम, गाइड ज्यादा लग रहा था। वह पूरे रास्ते उसे पहाड़ियों के बारे में ही बताता रहा था। उसका सफर भी आराम ...
हिन्दी कविता में आम आदमी
आलेख

हिन्दी कविता में आम आदमी

सलिल सरोज नई दिल्ली ******************** हिन्दी कविता ने बहुधर्मिता की विसात पर हमेशा ही अपनी ज़मीन इख्तियार की है। इस बात की पुष्टि हर युग के कवियों द्वारा की गई कृत्यों से प्रतीत होती रही है। हिंदी कविता ने रामधारी सिंह दिनकर की क्षमता का उपयोग कर के राष्ट्र आह्वान का मार्ग प्रशस्त किया और साथ ही साथ आम आदमियों की दिक्कतों और रोज़मर्रा की समस्याओं को भी बेहद गंभीरता से उजागर किया है। अगर कोई साहित्य उस वर्ग की बात नहीं कर पाता जो मूक और बधिर है तो फिर साहित्य को अपने नज़रिये को बदलने की महती आवश्यकता होती है। रामधारी सिंह दिनकर सरीखे कवियों ने अपनी लेखनी में जनमानस की विपरीत परिस्थितियों का सजीव चित्रण ही नहीं किया बल्कि धनाढ्य और रसूखदारों पर करारा प्रहार भी किया और यह प्रश्न अक्षुण्ण रखा कि गरीबी और लाचारी के लिए क्या गरीब स्वयं जिम्मेदार है या फिर वह वर्ग भी जिमीदार है ज...
जीवन जीने के लिए लड़े जाने वाले अंतहीन युद्ध को समर्पित है पुस्तक “यही सफलता साधो”
पुस्तक समीक्षा

जीवन जीने के लिए लड़े जाने वाले अंतहीन युद्ध को समर्पित है पुस्तक “यही सफलता साधो”

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** पुस्तक का नाम - यही सफलता साधो रचनाकार - कवि संदीप द्विवेदी प्रकाशक - ब्ल्यूरोज़ संस्करण - प्रथम (मार्च २०२१) कीमत - १६० रूपये समीक्षक - आशीष तिवारी निर्मल अपने दौर को तो सभी साहित्यकार अपनी कलम के माध्यम से दर्ज करने का सफल प्रयास करते हैं, लेकिन ऐसे चंद ही रचनाकार होते हैं, जिन्हें उनका दौर इतिहास में उनके प्रभावी लेखन के कारण कुछ ख़ास तरह से दर्ज करता है। जी हाँ! मै आज एक ऐसे ही उर्जावान रचनाकार और उनकी रचनात्मकता की चर्चा करने जा रहा हूँ, जो अपने सुघड़ लेखन के कारण हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान के बाहर सुने जाते हैं और पढ़े जाते हैं। कवि श्री संदीप द्विवेदी देश के उन युवा रचनाकारों की श्रेणी में आते हैं जो किसी भी पाठक या श्रोता के हृदय में सदैव सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। कवि संदीप द्वारा विरचित काव्य कृति "यही सफ...
नीम की मौत
कहानी

नीम की मौत

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** आपने बहुत से पेड़ों को घरों में, मोहल्लों में और सड़कों के किनारे खड़े अवश्य देखा होगा। प्रत्येक पेड़ का अपना कुछ न कुछ महत्व होता है। इस कहानी में मैने एक मोहल्ले में खड़े नीम के पेड़ के माध्यम से पेड़ों के महत्व को बताने का प्रयास किया है। गांव सलगवां के राघव मोहल्ले में एक विशाल नीम का पेड़ था। इसके अलावा पूरे गांव में कोई पेड़ न था। उसकी बनावट एक छाते कि तरह थी। लोग गर्मियों में उसकी छाया का आनंद लेते थे। बरसात में भी लोग उसके नीचे खड़े हो जाते थे और वह लोगों को विशाल गोवर्धन पर्वत की तरह ही बरसात से बचाता। लोग उसके नीचे रोज पत्ते भी खेला करते थे। मोहल्ले के बच्चे भी अपने दैमिक खेल उसके नीचे खेलते थे। कुछ बुजुर्ग उसकी टहनियों से दातुन करते थे। इस प्रकार बच्चे, बड़े और बुजुर्ग लोगों को वह कुछ न कुछ देता था। ये लोग पेड़ को पसंद ...
रूहानी बातें
संस्मरण

रूहानी बातें

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, (छत्तीसगढ़) ******************** "मैंने घोसले तोड़ दिए हैं अपनी मन्नत के। तुम्हें जाते देख रोई है आत्मा बहुत। आंखों में दर्द की रेखाएं वक्त बेवक्त उभर आती हैं, लालिमा के साथ। दर्द की ये इंतेहा ही मेरे प्यार की इम्तिहा है। हम तुम पर इस तरह फना हुए जैसे तुम हवा में धुलकर सांसों में समा गए जाते हो। ये हमारी बातें हैं। ये हमारा प्रेम है। मैं घंटों अपने आप में तुमसे बातें करती हूं। तुमको सोचती हूं। तुमको जीती हूं। ये सूनापन ये बेचैनी हर बार मुझे तुम्हारी ही तरफ मोड़ देती है। तुम मुझ में खत्म ही नहीं होते हो। सभी की नजरों से परे मैं एक दूसरे में खोए हम खिलखिलाते हैं, रोते हैं, एक दूसरे के साथ होते हैं" आज फिर तेज़ बबंडर आया और अपने साथ सब कुछ उजाड़ कर मुझे दूर किसी बियावन में छोड़ गया। जहां दूर दूर तक मुझमें तुम्हारा इंतजार करती मैं और तुम मुझमें मुझसे अंजान मेरे अ...
कर्म-मार्ग की स्थिरता
संस्मरण

कर्म-मार्ग की स्थिरता

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर दिल्ली ******************** सामान्य जीवन यापन करना मूल सिद्धांतों, को बनाए रखते हुए अपने लक्ष्य पर स्थिर रहना, कर्म मार्ग में कभी प्रमाद न करना, पारंपरिक शिक्षा को महत्व देना, वेद, आयुर्वेद व ज्योतिष, कर्मकांड, पर अपनी प्रबल ज्ञान शक्ति से आस्था बनाए रखते हुए, पुत्रों को सुशिक्षित करना, इन सभी जीवन जीवन चर्या को जीने वाले व्यक्ति थे पंडित जीवानंद जोशी वैद्य। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के जनपद चंपावत के दुर्गम क्षेत्र में "दुन्या" गांव में अठारह सितंबर उन्नीस सौ इकत्तीस प्रातः नौ बजकर सत्तावन मिनट पर जन्मे पंडित श्री जीवानंद जोशी "वैद्य" जी का जीवन संघर्ष की एक ज्ञानवर्धक पुस्तक के रूप में है। चार भाई-बहनों में सबसे वरिष्ठ पंडित वैद्य जी की आयु जब बारह वर्ष की थी, तो उनकी माता श्री की मृत्यु हो गई थी जब मां की मृत्यु हुई थी उस समय सबसे छोटा बालक मात्र ढाई वर...
अमर सपूत महाराणा प्रताप
कविता, संस्मरण

अमर सपूत महाराणा प्रताप

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** राजपूती शान हैं राणा! देश का अभिमान हैं राणा!! मुगलों के समक्ष नग सम अटल! चित्तौड़-आन रक्षक थे राणा!! राणा भरे जब-जब हुंकार! समर में गूंँज उठे टंकार!! भयभीत मुगल कांँप उठे थे! राणा के शौर्य कि जयकार!! हल्दीघाटी विकट संग्राम! टकराया असि सँ असि का जाम!! अरिदल शीघ्र हुए भू-लुंठित! पर चेतक पहुंँचा परमधाम!! गिरि-सा साहस था राणा का! चेतक भी अद्भुत राणा का!! इतिहास- अमर जिसका उत्सर्ग! स्वामी -भक्त अश्व राणा का!! जंगलों की खाक थी छानी! घास की रोटी पड़ी खानी!! पर गुलामी नहीं स्वीकार! यशोगाथा जग की जुबानी!! मरुभूमि हो गई रे निहाल! पाकर राणा-सा वीर लाल!! स्वाभिमानी औ पराक्रमी! गौरव तिलक भारत के भाल!! आज स्वार्थ का ऐसा चलन! राष्ट्र हित नित हो रहा दहन!! दिव्य चरित स्मरण कर भारत! राणा का देश-हित-स्व-हवन!! परिचय...
ख़ामोश होती हरियाली
संस्मरण

ख़ामोश होती हरियाली

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बात कुछ पुरानी है, लेकिन आज जब "वटवृक्ष दे वरदान" अभियान में लोग जुड़कर वृक्ष का आभार मानकर "बरगद रोपेंगे" कहते संकल्प ले रहे हैं, तब मुझे याद आया। हमारा घर अच्छी पाॅश काॅलोनी में था। घर के पीछे बहुत सुंदर बगीचा था। उसके बीच होलकर राज घराने का सुन्दर बंगला था।वही राधा कृष्ण का मंदिर था। लोग उसे कृष्ण मंदिर कहते थे। इसलिए उस काॅलोनी का नाम भी कृष्ण नगर था। पूरा बगीचा पीपल, नीम, आम, निबू, बरगद, गुलमोहर, जैसे वृक्षों से सज्जित था। तुलसी के पौधे तो सारे बगीचे में लगे हुए थे। बादाम तथा चिकु के पेड़ तो हमारे घर की छत पर झांकते थे। "प्रकृति से सिर्फ मनुष्य को ही नहीं, बल्कि पृथ्वी के हर जीव को जीवन मिलता है।" यह बात इस स्थान को देखकर सिद्ध हो रहीं थीं, क्योंकि बग़ीचे में मोर, गाय, गौरैया, तोते आदि का निवास था। मौसम के अनुसार उद्यान खुबसू...
युवा पीढ़ी
लघुकथा

युवा पीढ़ी

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर दिन की तरह आज भी बागीचा ठंडी मंद हवा, खिले फूलों की खुशबू, बच्चों की हँसी-ठिठौली और बड़ों की चर्चा-परिचर्चा से गुलज़ार था। इन सबके बीच दो युवाओं की टैक्नालॉजी और कैरियर की उर्जा से भरी बातें बरबस ही ध्यान आकर्षित करती थी। वो दोनों बागीचे के चक्कर लगाते हुए रोज ही किसी न किसी मुद्दे पर ज्ञानवर्धक बातचीत किया करते थे। आज एक बुजुर्ग व्यक्ति बागीचे में आए। उन्हें पहले इस बागीचे में कभी नहीं देखा था। उनके हाथ में कुछ समस्या थी जिसे वो एक बॉल को बार-बार फेंक कर व्यायाम के सहारे दूर करने का प्रयास कर रहे थे। परन्तु उनके साथ एक दिक्कत और थी। बॉल फेंकने के बाद धीरे-धीरे चलकर और झुक कर बॉल उठा पाने में बहुत समय लग रहा था। सब लोग रोज की तरह ही अपनी गतिविधियों में व्यस्त थे। पर अचानक एक सुखद परिवर्तन हो गया था। वो दोनों युवा एक निश्चित दू...
पहले बात को समझना चाहिए
संस्मरण

पहले बात को समझना चाहिए

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पहले बात को समझना चाहिए एक वाक्या वो यूँ था- बाबूजी ने साहब के बंगले पर जाकर बाहर खड़े नौकर से पूछा साहब कहाँ है ? उसने कहा "गए" यानि उसका मतलब था की साहब मीटिंग में बाहर गए। बाबूजी ने ऑफिस में कह दिया की साहब गए इस तरह उड़ती-उड़ती खबर ने जोर पकड़ लिया। खैर, कोई माला, सूखी तुलसी, टॉवेल आदि लेकर साहब के घर के सामने पेड़ की छाया में बैठ गए। घर पर रोने की आवाज भी नहीं आरही थी। सब ने खिड़की में से झाँक कर देखा। साहब के घर में कोई लेटा हुआ है और उस पर सफ़ेद चादर ढंकी हुई थी। सब घर के अंदर गए और साथ लाए फूलो को उनके ऊपर डाल दिया। वजन के कारण सोये हुए आदमी की आँखे खुल गई। मालूम हुआ की वो तो साहब के भाई थे जो उनसे मिलने बाहर गावं से रात को आये थे। सब लोग असमझ में थे की बाबूजी को नौकर ने बात समझे बगैर सही तरीके से नहीं की। इसमें बाबूजी का कसूर...
लेखक की आत्मा
व्यंग्य

लेखक की आत्मा

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** पसीने से तर-बतर, लस्त पस्त से यमराज भगवान विष्णु को प्रणाम कर नतमुख खड़े हो गए। "वत्स यम, आज इतने थके और उदास क्यों लग रहे हो?" "भगवान, इस सेवक को अब आप सेवामुक्त करें। बहुत दौड़ लिया। अब नहीं दौड़ा जाता"- कहते कहते यमराज का कंठ अवरुद्ध हो गया। "ऐसी भी क्या बात है यम? जब से सृष्टि का निर्माण हुआ है तुम अपना काम पूरी निष्ठा और लगन से कर रहे हो। अब क्या हो गया?इतने घबराए और निराश क्यो हो? सेवा समाप्त करने से समस्या का हल नहीं निकल पाएगा।" पांव पकड़ लिए यमराज ने। "निश्चिंत होकर कहो क्या कष्ट है? संकोच मत करो।" यमराज ने हिम्मत जुटाई। करबद्ध हो बोले- "भगवन्, आपने मुझे एक वृद्ध लेखक की आत्मा लेने भेजा था।" "हां हमें याद है। परिवार वाले उससे तंग आ चुके हैं। उम्र भी पिचानवें साल है। बहू बेटे रोज मंदिर में दीपक जलाकर प्रार्थना करते है...