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मेरा बाप–तेरा बाप

विश्वनाथ शिरढोणकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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‘मुझे घर जाना होगा I अम्मा कह रहीं थी कल मेरे बाप की तिथि हैं I श्राद्ध करना पड़ेगा I सारा सामान लाना हैं I पंडित को भी बुलाना पड़ेगा I ब्राह्मण भोज होगा I ग्यारह ब्राह्मण ढूंढने हैं I खाने की सारी व्यवस्था करनी हैं I किराना, सब्जी वगैरे, सभी सभी तो खरीदना पड़ेगा I पैसों का इंतजाम करना ही हैं I वह चिंता अलग खाएं जा रही हैं I ‘धनाजी बोला I
‘क्या रे तू …..? अभी तो आया हैं …. एक घूंट भी नहीं गया अंदर अभी …. और अभी से जाने की रट लगा रहा हैं ?’ भिकाजी बोला I ‘कल बाप का श्राद्ध करना हैं I जाना ही पड़ेगा I क्यों रे भीकू तेरे बाप का श्राद्ध कब आता हैं ? ‘धनाजी जाने के लिए खड़ा हो गया I भिकाजी रुआंसा हो गया I उसकी आँखें नम हो गई I धनाजी को दारु का ज्यादा असर नहीं हुआ था I उसे लगा भिकाजी को दारु चढ़ गई हैं , और वह किसी भी क्षण जोर जोर से रोने लगेगा I उसने भिकाजी के कंधे पर हाथ रखा, ‘रो मत रे …. सब के माँ-बाप को इस दुनियां से जाना ही पड़ता हैं I किसके माँ-बाप यहाँ पट्टा लिखा कर लाए हैं ….. बोल ?‘
भिकाजी नशे में तो था ही …. वह सच में ही जोर जोर से रोने लगा I अब धनाजी भी फिर से जमीन पर बैठ गया I आड़ी पड़ी हुई अद्धी जमीन पर से उठाई …. उसमे से आधी देशी दारु भिकाजी के गिलास में उड़ेली और आधी अपने गिलास में उड़ेल कर बोतल एक तरफ फेंक दी I ‘ले थोड़ी और ले … बाप के नाम से लेले …पर रो मत यार I ये बाप की जात हैं ना जिन्दगी भर अपने को साला रुलाती ही रहती हैं …. जीते जी भी … और साला मरने के बाद भी I धनाजी ने भिकाजी को दिलासा देने की कोशिश की I ‘भिकाजी रोये ही जा रहा था I रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था I अब तक धनाजी भी खुद नशे में धुत हो चुका था I देशी दारु उसकी नसों में से होते हुए उसके दिमाग में चढ़ चुकी थी I उसकों भिकाजी के ऊपर बहुत गुस्सा आया , ‘ ऐ गधे …. साला … रोता क्यों हैं ? मर्दों जैसा मर्द हैं तू …. बाप के नाम से रोता हैं ? शर्म नहीं आती तेरे क्यों ? ‘ धनाजी ने अपने मुंह पर अपनी ऊँगली रखी , ‘ .. अब चुप …. बिलकुल चुप …चुपचाप गिलास मुंह से लगा …. I एक बार नारंगी अन्दर गई ना तो फिर ना कोई किसी का बाप और ना ही कोई किसी की माँ, और नाही कोई किसी का सगा और ना नाही कोई सौतेला I समझे ? ‘ धनाजी अब दार्शनिक हो गया I
भिकाजी ने एक आज्ञाकारी बालक जैसे धनाजी की आज्ञा का पालन किया I दोनों के गिलास अब खाली हो चुके थे I धनाजी जाने के लिए एक बार फिर उठ खडा हुआ I वह अपने आप को सम्हाल नहीं पा रहा था I उसने दोनों हाथ भिकाजी के कंधों पर रखे , ‘ ऐ भीकू … रो मत यार …I जाने वाले कभी वापस नहीं आते , ‘ जाने वाले कभी नहीं आते …. जाने वाले की याद आती हैं …..I ’ दिल एक मंदिर फिल्म का यह गाना उसे याद आया . फिर धनाजी ने आसमान की ओर देखा और उसे बंदिनी फिल्म का भी गाना याद आया , ‘ दुनियां से जाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ ? ‘ फिर वह भिकाजी से बोला , ‘ अब तो तेरी आँखों के आंसूं सूख गए हैं ….. अब तो बता क्यों रहा था ? ‘
‘ बाप मर गया था …… इसलिए नहीं रो रहा था मैं I ‘ भिकाजी बोला I
एक झटके में धनाजी की दारु उतर गई,‘ अरे तो फिर क्यों रो रहा था?’

‘ मेरा बाप जिन्दा हैं इसलिए रो रहां हूँ I ‘ भिकाजी बोला I
‘ अरे व्वा ! तेरा बाप ज़िंदा हैं ? मुझे तो कभी बताया नहीं तूने I मगर इसमें रोने जैसा क्या हैं ? ‘ धनाजी ने पूछा I
भिकाजी ने एक और अद्धी खोली I दोनों के गिलास आधे आधे भरे , ‘ ले I ‘ दोनों फिर से पिने लगे I ‘ मेरा बाप जीता हैं , मरा नहीं हैं I मुझे यह भी मालूम हैं कि मेरा बाप कौन हैं ? पर मैं उसका श्राद्ध नहीं कर सकता I अम्मा कहती हैं कि श्राद्ध तो मरने के बाद ही होवे I ‘
धनाजी अब चिढ गया , ‘ तेरे को पता हैं कि तेरा बाप कौन हैं I पर आज तक अपने इस दोस्त को तूने कभी नहीं बताया I यहीं हैं तेरी यारी ? तेरे बाप को कभी देखा नहीं और नाही कभी जिक्र हुआ इसलिए मुझे लगा वह जीता नहीं होगा I ‘ ‘ अपनी दोस्ती अभी कितने दिन की हैं ? तेरे को क्या बताता ? और फिर सच तो यह हैं कि अभी अभी तक मुझे भी ऐसा ही लगता था कि मेरा बाप मर गया हैं I ‘
‘ फिर अचानक क्या हुआ ? ‘
‘ अम्मा हमेशा खूब कहती रही मेरे बाप के बारे में I वह कहती रही मेरा बाप बहुत बड़ा आदमी , बहुत बड़ा नेता , … विधायक , सांसद , मंत्री और न जाने कहाँ कहाँ बड़े बड़े ओहदों पर रहा I ‘ भिकाजी कहने लगा , ‘ पर अम्मा ने कभी नाम नहीं बताया था उसका I इस बात पर कई बार अम्मा से मेरा झगडा भी होता था I पर अम्मा थी कभी टस से मस नहीं होती थी I
‘ अरे , तू इतने बड़े बाप का बेटा ? ‘ धनाजी लडखडाते हुए उठ खड़ा हुआ I फिर अपने आप को सम्हालते हुए दो कदम दूर जा बैठा और बोला,‘ तेरे से तो भाई अब दो कदम दूर ही रहना पड़ेगा I ‘
‘ अरे नहीं रे तू ही तो एक मेरा सच्चा यार हैं इस दुनिया में …. पास ही रह I ‘
दोनों की दारु ख़त्म हो गई थी I धनाजी अब फिर से उठकर कर भिकाजी के पास आकर बैठा , ‘ पर मुझे बता तुम दोनों माँ-बेटे अपने बाप के क्यों नहीं चले जाते ? यहाँ भूखों मरने से तो अच्छा हैं उसके पास जाना ? ‘
‘एक बार अम्मा गई थी उसके पास , तब मेरा बाप बोला था ,’ वह नहीं पहचानता किसी को I ‘
‘ ऐसा बोला था ?’
‘ हाँ I बोला था किस किस को पहचानूं I बहुत सारे बच्चें घुमते फिरते हैं गलियों में , जिसे देखों वहीँ कहता हैं कि मैं उसका बाप हूँ I ‘ भिकाजी ने अपना दु:खड़ा रोया ,’ अम्मा मेरे बाप को बोली थी , ‘ पर मैं बच्ची नहीं हूँ I दुनिया में कोई भी माँ बिना अदालत गए ये सच सच बता सकती हैं कि उसके बच्चे का बाप कौन हैं ? ‘ भिकाजी कह रहा था , ‘ मेरे बाप ने अम्मा की एक भी नहीं सुनी I बंगले से अम्मा को बुरी तरह मार पीटकर और बेइज्जत करके नौकरों से एक तरह से बंगले से जबरन बाहर करवा दिया I अम्मा मुझे बिना बताये ही मेरे बाप से मिलने गई थी I वापस आने के बाद उसका पारा सातवें आसमान पर था I बहुत गुस्से में थी I मुझे कुछ समझ में ही नहीं आया था I अम्मा तो शांत होने का नाम ही नहीं ले रही थी I हमेशा की तरह मेरे बाप का जिक्र होने पर मुझसे ही लड़ने लगी थी I और फिर उस दिन ही झगडा बहुत ज्यादा बढ़ गया I अम्मा तो उस दिन भरी बैठी ही थी I बातों बातों में ही उस दिन मुझे पहली बार ही पता पडा कि अम्मा मेरे बाप से मिल कर आई हैं I फिर तो मैं और भी भड़क गया I मुझे भी अपने बाप को देखना था , उससे मिलना था I सारे हिसाब चुकते करने थे I अम्मा के मारे ही मुझे यह मौका नहीं मिला पाया था I अब मैंने गुस्से में अम्मा से कहाँ , ‘ मेरे बाप का नाम बताओं , मेरा बाप मुझे दिखाओं , नहीं तो मैं अपने बाप की कल ही तेरहीं कर दूंगा और हमेशा के लिए याद रखूँगा कि तुमने मुझे मेरे बाप से दूर रखा I ‘
धनाजी यह सब सुनकर भावुक हो गया , ‘ भीकू तेरी तो फुल फ़िल्मी स्टोरी हैं रे I ‘
‘ हाँ I उस दिन ….. मेरे जन्म के तीस साल बाद मजबूरी में मेरी अम्मा को मेरे बाप का नाम बताना पड़ा I बाप का नाम सुनकर मेरे तो पावों तले की जमीन ही जैसे खिसक गई I एक पल के लिए मैं सन्न रह गया I इतने साल एक बड़ा नेता और अमीर बाप के जिन्दा रहते मैं भिखारियों जैसा जीता रहा इस बात से मैं बहुत दु:खी था I बाप इतना बड़ा आदमी हैं यह जानकार मैं तुरंत उसके यहाँ जाना चाहता था पर अम्मा ने मुझे नहीं जाने दिया I अपनी कसम दे दी I बोली , ‘ वह तो मुझे पहचानने से ही इनकार कर रहा हैं I तुम्हें क्या पहचानेगा ? फिर जाना भी क्यों और मिलना भी क्यों ? ‘
‘ भिकाजी बता रहा था , ‘ मेरा जाने भी दें रे , पर अम्मा ने इतने साल कितनी मुसीबतें झेली . मेरा बाप इतना बड़ा आदमी होकर भी इतने दिन अम्मा मजूरी करती रही I लोगों के यहाँ बर्तन मांजती रही , लोगों के कपडे धोती रही I इसी बात से मुझे मेरे बाप पर बहुत गुस्सा आया था I मैंने अम्मा को बोला , ‘ ऐसे बाप का क्या करना ? जिन्दा क्या और मरा क्या ? मैं कल ही उसका पिंडदान और तर्पण कर के अलग हो जाता हूँ I ‘
अम्मा ने मना किया I बड़ी देर तक मुझे समझाती रही I बोली , ‘ हमारे लिए भले ही मरा हो परन्तु समाज में जीते आदमी का श्राद्ध नहीं कर सकते I ‘
धनाजी गंभीर हो गया , ‘ सच में तुम माँ-बेटे ने बहुत दु:ख झेले हैं I ‘
‘ हाँ I ‘ भिकाजी बोला , ‘ फिर आगे मालूम नहीं कैसे यह बात गाँव के सरपंच को पता पड़ी I उसने मुझसे कहाँ , ‘ मुझे तुम्हारी फुल फ़िल्मी स्टोरी पता पड़ गई हैं I ,मैं तुम्हारी मदद करता हूँ I तुम अदालत में बाप के खिलाफ मुकदमा करो I अपने बाप का नाम अदालत को बताओं I बाप का नाम चाहिए इसलिए अदालत से न्याय मांगों I वों क्या कहते हैं , बाप के डीएनए जाँच की मांग करों ….. मैं क्या पूरा गाव तेरे साथ हैं I हमारी पार्टी भी तुम्हारे साथ हैं , हम आन्दोलन करेंगे I बस तुम हाँ कहो I ‘
पर अदालत में जाने से अम्मा ने मना कर दिया I बोली ,’ अदालत में गरीबों को कहाँ न्याय मिलता हैं ? मांगने से भी नहीं और रोने-धोने से भी नहीं I इतने बड़े नेता से हम कैसे लड़ पाएंगे ? उलटे हमारी ही जान को खतरा हो जाएगा I फिर मुकदमे के लिए पैसा कहाँ से आएगा ? जान हथेली पर रखकर मुकदमा लड़ने में क्या फायदा ? फिर अदालत में सालों साल मुकदमा चलेगा I तब तक कौन जाने तेरा बाप जिन्दा रहें ना रहें ? और फिर मरे हुए मुर्दे का नाम हमारे साथ चिपकाने से कौन से हमारे नसीब बदल जायेंगे ? इससे तो बेटा तू ऐसा कर उसे भूल जा I अपने नाम के साथ तू मेरा नाम लगा I अब इतने दिनों बाद जरुरत भी क्या हैं बाप की ? सिर्फ समाज में नाम के लिए ? तू मेरा भी तो बेटा ही हैं और अपने नाम के साथ अपनी माँ का नाम काफी नहीं हैं क्या ? मेरा नाम ही लगा अपने नाम के साथ I भूल जा बाप को I ‘
‘ सच बताऊँ तब से ही मैं अपने बाप का श्राद्ध करने के लिए तरस रहां हूँ I ‘ भिकाजी बोला I

परिचय : विश्वनाथ शिरढोणकर
मध्य प्रदेश इंदौर निवासी साहित्यकार विश्वनाथ शिरढोणकर का जन्म सन १९४७ में हुआ आपने साहित्य सेवा सन १९६३ से हिंदी में शुरू की। उन दिनों इंदौर से प्रकाशित दैनिक, ‘नई दुनिया’ में आपके बहुत सारे लेख, कहानियाँ और कविताऍ प्रकाशित हुई। खुद के लेखन के अतिरिक्त उन दिनों मराठी के प्रसिध्द लेखकों, यदुनाथ थत्ते, राजा-राजवाड़े, वि. आ. बुवा, इंद्रायणी सावकार, रमेश मंत्री आदि की रचनाओं का मराठी से किया हुआ हिंदी अनुवाद भी अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। इंदौर से ही प्रकाशित श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति की प्रसिध्द मासिक पत्रिका ‘वीणा’ में आपके द्वारा लिखित कहानियों का प्रकाशन हुआ। आपकी और भी उपलब्धियां रही जैसे आगरा से प्रकाशित ‘नोंकझोंक’, इंदौर से प्रकाशित, ‘आरती’ में कहानियों का प्रकाशन। आकाशवाणी इंदौर तथा आकाशवाणी भोपाल एवं विविध भारती के ‘हवा महल’ कार्यक्रमों में नाटको का प्रसारण। ‘नईदुनिया’ के दीपावली – २०११ के अंक में कहानी का प्रकाशन। उज्जैन से प्रकाशित, “शब्द प्रवाह” काव्य संकलन – २०१३ में कविता प्रकाशन। बेलगांव, कर्नाटक से प्रकाशित काव्य संकलन, “क्योकि हम जिन्दा है” में गजलों का प्रकाशन। फेसबुक पर २०० से अधिक हिंदी कविताएँ विभिन्न साहित्यिक समूहों पर पोस्ट। उपन्यास, “मैं था मैं नहीं था” का फरवरी – २०१९ में पुणे से प्रकाशन एवं काव्य संग्रह “उजास की पैरवी” का अगस्त २०१८ में इंदौर सेर प्रकाशन। रवीना प्रकाशन, दिल्ली से २०१९ में एक हिंदी कथासंग्रह, “हजार मुंह का रावण” का प्रकाशन लोकापर्ण की राह पर है।
वहीँ मराठी में इंदौर से प्रकाशित, ‘समाज चिंतन’, ‘श्री सर्वोत्तम’, साप्ताहिक ‘मी मराठी’ बाल मासिक, ‘देव पुत्र’ आदि के दीपावली अंको सहित अनेक अंको में नियमित प्रकाशन। मुंबई से प्रकाशित, ‘अक्षर संवेदना’ (दीपावली – २०११) तथा ‘रंग श्रेयाली’ (दीपावली २०१२ तथा दीपावली २०१३), कोल्हापुर से प्रकाशित, ‘साहित्य सहयोग’ (दीपावली २०१३), पुणे से प्रकाशित, ‘काव्य दीप’, ‘सत्याग्रही एक विचारधारा’, ‘माझी वाहिनी’,”चपराक” दीपावली – २०१३ अंक, इत्यादि में कथा, कविता, एवं ललित लेखों का नियमित प्रकाशन। अभी तक ५० कहानियाँ, ५० से अधिक कविताएँ व् १०० से अधिक ललित लेखों का प्रकाशनI फेसबुक पर हिंदी/मराठी के ५० से भी अधिक साहित्यिक समूहों में सक्रिय सदस्यता। मराठी कविता विश्व के, ई – दीपावली २०१३ के अंक में कविता प्रकाशित।
एक ही विषय पर लिखी १२ कविताऍ और उन्ही विषयों पर लिखी १२ कथाओं का अनूठा काव्यकथा संग्रह, ‘कविता सांगे कथा’ का वर्ष २०१० में इंदौर से प्रकाशन। वर्ष २०१२ में एक कथा संग्रह, ‘व्यवस्थेचा ईश्वर’ तथा एक ललित लेख संग्रह, ‘नेते पेरावे नेते उगवावे’ का पुणे से प्रकाशन। जनवरी – २०१४ में एक काव्य संग्रह ‘फेसबुकच्या सावलीत’ का इंदौर से प्रकाशन। जुलाई २०१५ में पुणे से मराठी काव्य संग्रह, “विहान” का प्रकाशन। २०१६ में उपन्यास ‘मी होतो मी नव्हतो’ का प्रकाशन , एवं २०१७ में’ मध्य प्रदेश आणि मराठी अस्मिता” का प्रकाशन, मध्य प्रदेश मराठी साहित्य संघ भोपाल द्वारा मध्य प्रदेश के आज तक के कवियों का प्रतिनिधिक काव्य संकलन, “मध्य प्रदेशातील मराठी कविता” में कविता का प्रकाशन। अभी तक मराठी में कुल दस पुस्तकों का प्रकाशन।
८६ वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन, चंद्रपुर (महाराष्ट्र) में आमंत्रित कवि के रूप में सहभाग। पुस्तकों में मराठी में एक काव्य संग्रह, ‘बिन चेहऱ्याचा माणूस खास’ को इंदौर के महाराष्ट्र साहित्य सभा का २००८ का प्रतिष्ठित ‘तात्या साहेब सरवटे’ शारदोतस्व पुरस्कार प्राप्त। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच इंदौर म. प्र. (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान, मराठी काव्य संग्रह “फेसबुक च्या सावलीत” को २०१७ में आपले वाचनालय, इंदौर का वसंत सन्मान प्राप्त। २०१९ में युवा साहित्यिक मंच, दिल्ली द्वारा गैर हिंदी भाषी हिंदी लेखक का, बाबूराव पराड़कर स्मृति सन्मान वर्ष २०१९ हेतु प्राप्त। दिल्ली, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, इटारसी, बुरहानपुर, पुणे, शिरूर, बड़ोदा, ठाणे इत्यादि जगह काव्यसंमेलन, साहित्य संमेलन एवं व्याख्यान में सहभागीता। 


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