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बच्चे माँ-बाप की जागीर नहीं होते…

डॉ. संगीता आवचार
परभणी (महाराष्ट्र)
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बच्चे कभी अपने माँ-बाप की प्रतिमा नहीं होते,
वे उनकी खुद की स्वतंत्र प्रतिभा के धनी है होते।

बच्चें शायद माँ-बाप के जीवशास्त्र के वारिस होते होंगे,
अपितु उनकी ख्वाहिशों की जागीर हरगिज़ नहीं होते।

बच्चे जब अपनी माँ-बाप की आँखों का तारा हैं होते,
यकीनन माँ-बाप अपने नन्हें मुन्नों के आका नहीं होते।

बच्चें कभी अल्लाउद्दीन के चिराग का ज़ीन नहीं होते,
बच्चों की जादुई नगरी के अपने-अपने फ़साने हैं होते।

बच्चें जबरदस्ती से रिअ‍ॅलिटी शोज में भरे नहीं जाते,
बच्चों की जिन्दगी के अपने अनगिन आयाम है होते।

बच्चें लापरवाही से मोबाइलों के हाथ मे थमाए नहीं जाते,
बच्चें माँ-बाप की गोद मे प्यार से सहलाये है जाते।

बच्चें टीवी व चैनलों को ‘बेहिचक दान’ नहीं दिए जाते,
वे प्रकृति की गोद मे खेल-कूद के आदी है बनाये जाते।

बच्चों को होटलों मे खाना खिलाने के लिए अक्सर नहीं ले जाते,
घर के खाने में उनकी सेहत के बहु नुस्खे हैं छिपे होते।

बच्चें दुनिया की नायाब सम्पत्ति से अजीज तक़दीर है होते,
वे इन्सान की जीती जागती बेशकीमती तासीर है होते।

बच्चों को जो माँ-बाप अपना क़ीमती वक्त अच्छे से है देते,
बच्चें खुद उनके उसूलों की तस्वीर बने रहना पसन्द है करते।

बच्चें माँ-बाप के बर्ताव की हर मायने मे अनूठी ताबीर है होते,
बच्चें माँ-बाप के गुलाम बन कर रहना कबूल नहीं फरमाते।

बच्चों को प्यार दुलार के मायने माँ-बाप गलत क्यों है समझते?
वस्तुओं के बीच बवंडर मे छोड़े जैसा बच्चों को क्यों हैं छोड़ देते?

सबसे प्यार की सीख देते रहेंगे अपने जिगर के टुकड़े ये है होते,
इन्सानियत की धरोहर के दुनिया मे यहीं पालनहार है होते।

परिचय :- डॉ. संगीता आवचार
निवासी : परभणी (महाराष्ट्र)
सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्यालय, परभणी महाराष्ट्र
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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