हादसा हिज्र का
डॉ. वासिफ़ काज़ी
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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कैसी कश्मक़श है ज़िंदगानी में।
क्यूँ लगी फ़िर आग पानी में।।
दीदार ए यार की हसरत नहीं थी।
इश्क़ रूठा है उनसे जवानी में।।
हिज्र का हादसा भी लिखा था।
मेरे अरमानों की कहानी में।।
तुम बेवफ़ाई का मुजस्समा हो।
क्या कह दिया मैंने नादानी में।।
सोचकर अब तलक़ हैरां हूँ "काज़ी"।
क्या मोती जड़े थे उस दीवानी में।।
परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर"
निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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