युगपुरुष
रीमा ठाकुर
झाबुआ (मध्यप्रदेश)
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युग पुरुष किसे हम माने,
जो कर्म पथ पर डटा रहा।
जो टूटा नही, सलाखों मे,
रणभेदी, डंका बजा रहा।।
नभ पर खुशियाँ छायी,
बाल के घर मे लाल हुआ।
जब पैर पालने मे खोले,
युगपुरुष का जन्म हुआ।।
जब युवा अवस्था मे पहुँचे,
तब जन्मभूमि चीत्कार उठी।
तब कूद, पडे अंदोलन मे,
मन मे स्वाधीनता जाग उठी।।
काॅलेज मे अव्वल आये
पत्रकारिता से जयघोष किया।
जन-जन मे पैदल भटके
स्वाधीनता का सम्मान दिया।।
अपने पथ से विचलित न हुऐ
न उन्हे सलाखें, डिगा सकी।
बनकर जन जन के कर्णधार,
स्वाधीनता, अधिकार दिला दिया।।
वो जीवट थे, 'लौहपुरुष,
भारत माँ, के बेटे थे।
दुश्मन के दाँत किऐ खट्टे,
है,नमन उन्हे, वो सच्चे थे।।
परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर
निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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