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कविता

सैंया
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सैंया

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** प्लेन में बिठा दे सैंया, लंदन पेरिस न्यूयॉर्क घुमा दे सैंया। डाल गल बहियां, घूमेंगे हम सैंया, कभी झुमका, कभी मुंदरी, नेकलेस से अब बात बने ना। हवाई जहाज में सैर करा दे सैंया। वादा तो तू करता है, ओ मेरे सपनों की रानी। मेरा घर चलाने वाली, बच्चों की ओ मैया प्यारी। घुमा दूं! तुझे इस साल नहीं ? मैं अगले साल दुनिया सारी, लंदन, पेरिस, न्यूयॉर्क, सभी की सैर करा दूंगा। अभी तो तू दिल्ली घूम ले रानी, काम चला ले इससे महारानी। दिला दूं तुझको, ब्रासलेट, कंगना, टीका, बिंदी, पायल, झुमका प्लेन में भी बिठा दूंगा वादा रहा इस साल नहीं तो अगले साल ओ मेरी राम प्यारी।। परिचय :- मधु अरोड़ा पति : स्वर्गीय पंकज अरोड़ा निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक ह...
ये शब्द आईने है
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ये शब्द आईने है

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** शब्द मन के अमिट भावों का दर्पण शब्द ही करते बयां, भावनाओं का स्पंदन शब्दों से मिले नफरत, शब्दों से मिले सम्मान ये शब्द आईने है, किरदार करते हैं बयान शब्दों का कारवां अंतहीन, शब्द रंगभरे और रंगहीन फूलों सी खुशबू दे या कांटों भरे ज़ख्म दे संगीन करते हैं दिल भी छलनी या देते खुशियों भरा जहान ये शब्द आईने है, किरदार करते हैं बयान कुछ शब्द आंसू बनकर दिल में उतरते हैं कुछ शब्द कानों में घोले सरगम, कुछ नश्तर से चुभते हैं शब्दों की अदावरी से, दिल में बसे या दिल से उतरे इंसान ये शब्द आईने हैं, किरदार करते हैं बयान अपने हर शब्द का खुद तुम आईना बनो दिल न हो छलनी किसी का, ऐसे शब्दों को चुनो शब्द ही जीवन रेखा संबंधों की, बोलो तुम मीठी जुबान ये शब्द आईने है, किरदार करते हैं बयान मुझे गर्त में ले जाने वाले, स...
उम्मीद
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उम्मीद

डॉ. मोहन लाल अरोड़ा ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा) ******************** फिर खिले अमन चमन अगन मगन हो हर वीर कांधे न हो आक्सीजन बच्चे बिन बैग अधीर गली गली हो वैन स्कूल एंबुलैंस ना दिखे तीर सब दुकाने कतारे दवाखाने ना भीड़ काढा ना चाय चुस्की हो अच्छी तकदीर बेख़ौफ सभी घुमे संग रहे तदबीर फिर से खिले चमन सुरम्य हिंद तस्वीर फिर से भारत माटी हो चंदन और अबीर टैरेस न मंदिर में दादी चढावे नीर हाथ ना कैरम लुडो बच्चे बिन बैट अधीर सन्नाटो से पिंड छुटे हो चहल पहल भीड़ सारी पाबंद हट जाए मन हो सकल अधीर हिल मिल कर सब रहे गाँव शहर घर वीर तज सपन बीते बुरे नैना खुशी नीर फिर से खिले चमन सुरम्य हिंद तस्वीर फिर से भारत माटी हो चंदन और अबीर परिचय :- डॉ. मोहन लाल अरोड़ा कवि लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता निवासी : ऐलनाबाद सिरसा (हरियाणा) प्रकाशन : ३ उपन्यास, ७२ कविता, ७ लघु कथा १२ सांझा क...
आई याद जो तेरी
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आई याद जो तेरी

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** आई याद जो तेरी! लगाई हृदय ने फिर, सुधि डगर की फेरी! अहे प्रीत गात की गंध, नवपुष्प की ज्यों सुगंध, मानो आ गया वसंत, सुमुखि तुम रति की चेरी!.. जबसे तुम मुझको भाई, मन ने प्रीत की टेर लगाई, तुमने सारी प्यास बुझाई, प्रिये, तुम रूप की चितेरी!.. मन मेरा था कोरा दर्पण, किया तुमने प्रेम समर्पण, प्रेम क्या है तर्पण अर्पण, तुम मिलन की शाम घनेरी... लगाई हृदय ने फिर, सुधि डगर की फेरी! आयी याद जो तेरी! परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, र...
जिंदा रहे यादें
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जिंदा रहे यादें

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मेरी आँखों में क्यों तुम आँसू बनकर आ जाते हो। और अपनी याद मुझे आँखों से करवाते हो। मेरे गमो को आँसुओं के द्वारा निकलवा देते हो। और खुशी की लहर का अहसास करवा देते हो।। मुझे गमो में रहने और उनमें जीने की आदत है। पर हँसते हुए लोगों को दुआएँ देना मेरी आदत है। तुम रहो सदा खुशाल अपनी नई जिंदगी में। मैं तुम्हें खुश देखकर अपने गम भूल जाती हूँ।। बदलते हुये इस जमाने में कुछ तो नया होना चाहिए। अपनी मोहब्बत का अहसास दूर होकर भी होना चाहिए। भले ही उन्हें मोहब्बत का अहसास आज न हो । पर जमाने की नजरो में तो इसे जिंदा रहनी चाहिए।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में ...
आओ पर्यावरण बचाएँ
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आओ पर्यावरण बचाएँ

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** देखो धरती हो रही है बंजर आओ हम सब पेड़ लगाएँ हमने उतारें इसके सीने में खंजर नहीं करेंगे ऐसा चलो संकल्प दोहराएँ अंधाधुंध पेड़-कटाई से बिगड़ा मौसम चक्र आओ नये नये पौधों की दुनिया बसाएँ जंगलों के नाश से कम हो रहा भूजल स्तर आओ रोकें भू अपरदन इन पेड़ों को बचाएँ है वृक्ष रोपण का काम अति पावन सुंदर आओ ये कर धरा को प्रदूषण मुक्त बनाएँ लगा आँवला नीम बेल पीपल आम बड़ आओ मिलकर पर्यावरण दिवस मनाएँ प्रकृति से नाता मनुज का नित जर्जर आओ पेड़-पौधों से नेह-संवाद बनाएँ कितना किया नुकसान प्लास्टिक थैली लाकर छोड़ इसे जूट, कागज, कपड़े की थैली बनाएँ थोड़ा चलें पैदल भी, रोकें मशीनों की घर-घर वातावरण में धुएँ का जहर तो न घुलाएँ ग्रीन हाउस उत्सर्जन को जतन से कम कर आओ कीमती जीवन रक्षक ओजोन परत बचाएँ पारिस्थितिकी तंत्र से छेड़...
गाँव/प्रकृति
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गाँव/प्रकृति

शिव चौहान शिव रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** उसरी भूमि में भी फल से लद जाती है ये खजूर भी बिन बोये उग जाती है घर-आंगन में नीम जेठ-मास में छांव का मूल्य बताता है बड़ पर बंधे झुले सावन के गीत गाते है पीपल शांतचित्त में प्राणवायु का दाता है गांव प्रकृति संग झुमता रहता है शहर मुहँ ताकता नजर आता है! परिचय :-  शिव चौहान शिव निवासी : रतलाम (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.c...
धूल की कहानी
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धूल की कहानी

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** मैं धूल हूँ, तिरस्कृत रहती हूँ। लोगों की आँखों में बड़ी चुभती हूँ। जहाँ पड़ी, झाड़ दी जाती हूँ। या मुँह पर मार दी जाती हूँ। मेरे रहने पर लोग पास नहीं फटकते। मुझसे भरे घर, सबकी आँखों में खटकते। ये मानव, अबोध शिशु से सारे कहाँ जानते मेरा महत्व। पेड़-पौधे, फल-फूल ओढ़ते-बिछाते उन पर प्यार लुटाते। पर जन्मदात्री को ही भूल जाते। वो देखो, मैं ही तो हूँ पैरों के नीचे पानी से लिपटी। ये मेरी ही संतानें हैं जो तुम्हें भी और तुम्हारे घर को भी सजाती हैं और तुम्हें जीवन देतीं हैं। और तुम विधाता के सबसे बुद्धिमान रचना मानव एक-दूसरे से ही लड़ते हो और मेरा तिरस्कार करते हो। पर मेरा तिरस्कार करने वालों देखो तो सही मैं कहाँ और तुम कहाँ ! मैं ईश के चरणों में भी हूँ और उनके शीश पर भी। वीरों के माथे प...
मैं रोता रहा
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मैं रोता रहा

डोमन निषाद डेविल डुंडा, बेमेतरा (छत्तीसगढ़) ******************** क्या से क्या हो गया, बस यूँ ही पूछता रहा। आया था कई उम्मीद लेकर, पर गम के बारीश में रोता रहा। जब गाँव से शहर आया, घर मे उत्साह भर आया। क्या करूँ क्या न करूँ, क्यों बंद कमरे में रोता रहा। लोगों को काम पे जाते देखा, मन मुझसे सवाल करता रहा। क्या होगा अनजान सी जगह हैं, छत पर जाकर रोता रहा। रिश्तेदारों के फोन आते रहे, मुझे झूठे दिलासा देते रहे खुश हूँ सब ठीक है कह कर, खुद को धोखा देकर रोता रहा। इधर-उधर घूमता फिरता रहा, दिन रात यूँ ही गुजरता रहा। बेटा का अरमान नही बन सका, सोचकर फूट-फूट कर रोता रहा। जन-जन को समझाऊँगा। परिचय :- डोमन निषाद डेविल निवासी : डुंडा जिला बेमेतरा (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी ...
हे मेरी माँ
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हे मेरी माँ

अजय कुमार राजन 'अजेय' मढिया, हरदोई (उत्तर प्रदेश) ******************** हे मेरी माँ तेरी करिश्मा, सबसे निराली है तेरी महिमा। हे मेरी माँ... जन्म दिया है पालन पोषण किया है, खुद कष्ट सहके मुझे सुख दिया है। तेरी शक्ति की नहीं कोई सीमा, हे मेरी माँ... मां इतनी भोली-भाली, आंगन की मेरी फुलवारी। मैं फूल तुम हो माली, मुझ में जान तुमने डाली। मां ने सहे हैं मेरे लिए कई सदमा, हे मेरी मां .... जग में सबसे बड़ा है नाता, मां बेटे का रिश्ता। हमको कुछ नहीं था आता, तुमने बना दिया मुझे ज्ञाता। मैं हूं तेरा बेटा तुम हो मेरी मां, हे मेरी मां ... परिचय :-  अजय कुमार राजन 'अजेय' निवासी : मढिया, थोकमाधौ, बघौली, हरदोई (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
युग नया आ रहा है
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युग नया आ रहा है

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रभाती कोई दूर पर, गा रहा है। बढ़ो सामने युग नया, आ रहा है। नयी रुपरेखा बनी, जिंन्दगी की, नयी चाँदनी अब, खिलेगा खुशी की। हर्दय मानवों का भरेगा, नमन शत धरा को, गगन अब करेगा। नया चंन्द्रमा शान्ति, बरसा रहा है। बढ़ो सामने... नया ज्ञान का सूर्य, मुस्का रहा है। पगों में सभी के, अतुल शक्ति होगी। मनों में सभी के, नवल भक्ति होगी। सुधा धार में वे, सा आ रहा है। बढ़ो सामने... तृषित सा मनुज शान्ति कुछ पा रहा है। जगेगी नवल चेतना, मानवों की, मिटेगी असद कल्पना, दानवों की। धरा पर नया स्वर्ग, बस कर रहेगा। तुम्हारी कथा विश्व, मानव कहेगा, कि इतिहास नूतन, रचा जा रहा है। बडो़ सामने युग नया आ रहा है। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दि...
हिन्दू है अखंड
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हिन्दू है अखंड

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कर शत्रु पर वार, कर खंड-खंड हिन्दू है अखंड, जोश है प्रचंड ।। पावन मातृभूमि, पावन देश है देता विश्वबंधुत्व, का संदेश है हर नर नारी में, यहाँ राम बसे है वेदऋचाओ से, पर्जन्य बरसे है माँ भारती का, गौरव है अखंड कर शत्रु पर वार, कर खंड-खंड हिन्दू है अखंड, जोश है प्रचंड।। स्वर्ग से महान, जन्मभूमि प्रणाम मंदिर के समान, देवभूमि प्रणाम रक्त तिलक से, जयघोष करते है इस धरा पर पसरा, दोष हरते है आज हाथ मे मेरी, है न्याय दंड कर शत्रु पर वार, कर खंड-खंड हिन्दू है अखंड, जोश है प्रचंड।। नई धारणा है, नवनिर्माण है राष्ट्र के लिए, उत्सर्ग ये प्राण है मर्यादा में रहते, कर्मयोगी है यहाँ घर घर मे, समर्थ जोगी है होगा दलन उसका, जो है उद्दंड कर शत्रु पर वार, कर खंड-खंड हिन्दू है अखंड, जोश है प्रचंड।। देश के हर कोने में, ...
जीवन प्रांगण
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जीवन प्रांगण

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दूर बहुत दूर है राहेैं अपनी मंजिल का पता ना अपनों का। सिर्फ साथ है मेरे वीरांनगी खयालों के बिंदु बहे जा रहे तुम्हारे पास चले आ रहे मचल रहा मन कुछ गाने के लिए साथ आकाश है गीत सुनने के लिए चलते हुए राहों में रवि साथ निभाता है और राह में पड़ा पत्थर ठोकर से टकराता है सुनसान घाटियों की ढलती मिट्टी कहती है ढलती-ढलती-ढलती, चल ढलती चल क्योंकि राह बडी वीरान है मेरे जीवन में प्रांगण की। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आका...
शुक्रिया दोस्त
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शुक्रिया दोस्त

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** चलो एक दोस्त को शुक्रिया करते हैं कुछ एहसान है उसके अपने ऊपर भूल गई थी मैं अपनी ही राह और शांत और चुप सी हो गई थी बातें थी मन पर मगर आंखों से देख नहीं सकती थी कानों से सुन नहीं सकती थी दिल में था लाखों बोझ पर हटा नहीं सकती थी सपने थे पर पूरे कर नहीं सकती थी दोस्त ने बहुत बातें किया और कैसे मन की बात जुबान तक ला दिया पता ही नहीं चला एक दोस्त को एक दोस्त ने सुना समझा और जाना और राह का रास्ता भी बता दिया एक दोस्त को धन्यवाद दोस्त चलो एक दोस्त को शुक्रिया करते हैं बहुत एहसान है उसके अपने ऊपर परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
वृक्ष कल्याण… जीवन महान
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वृक्ष कल्याण… जीवन महान

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** वृक्ष दवा है, वृक्ष दुआ है, वृक्षों से हैं जीवन। वृक्ष साँस है, वृक्ष आस है, वृक्षों से हैं सावन।। वृक्ष सबेरा, वृक्ष बसेरा, वृक्षों से हैं साधन। वृक्ष फल है, वृक्ष फसल है, वृक्षों से हैं कानन।। वृक्ष जलद है, वृक्ष जलज है, वृक्ष बिना है सुनापन। वृक्षों से वायु, वृक्षों से आयु, वृक्षों से हैं अपनापन।। वृक्ष हरापन, वृक्ष भरापन, वृक्षों से हैं मधुबन। वृक्ष सुहावन, वृक्ष मनभावन, वृक्षों से हैं हर्षित मन।। वृक्ष महान है, वृक्ष जहान है, वृक्षों से हैं कल्याण। वृक्ष दान है, वृक्ष खान है, वृक्षों से हैं भगवान।। वृक्ष मनन है, वृक्ष चिंतन है, वृक्षों से हैं ये ज्ञान।। वृक्ष तन है, वृक्ष मन है, वृक्षों से हैं ये ध्यान।। वृक्ष नमन है, वृक्ष सुमन है, वृक्षों से हैं ये भजन। वृक्ष आज है, वृक्ष काज है, वृक...
पर्यावरण और मानव
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पर्यावरण और मानव

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** धरा का श्रृंगार देता, चारो ओर पाया जाता, इसकी आगोश में ही, दुनिया ये रहती। धूप छाँव जल नमीं, वायु वृक्ष और जमीं, जीव सहभागिता को, पर्यावरण कहती। पर देखो मूढ़ बुद्धि, नही रहीं नर सुधि, काट दिए वृक्ष देखो, धरा लगे जलती। कहीं सूखा तूफ़ां कहीं, प्रकृति बीमार रही, मही पर मानवता, बाढ़ में है बहती। वायु बेच देता नर, सांसों की कमीं अगर, लाशों से भी बेच देता, भाग ठीक रहती। किला खड़ा किया मानो, जंगलों को काटकर, खुशहाली देखो अब, भू कम्पनों में ढहती। भू हो रही उदास, वन दहके पलाश, जले नर संग तरु, जब चिता जलती। बरस जहर रहा, प्रकृति कहर रहा, खोट कारनामों से, जल विष बहती। वृक्ष अपने पास हों, तो दस पुत्र साथ हों, गिरे तरु एक, धरा, बड़ा दर्द सहती। ऐसे करो नित काम, स्वस्थ बने तेरा धाम, स्वच्छ वात्तरु जल से, धरा खुश रहती। ...
याद आते हैं वो दिन
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याद आते हैं वो दिन

अन्नू अस्थाना भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** याद आते हैं वो दिन जब पड़ोस में भाभी से एक कटोरी शक्कर मांगना, और बातों ही बातों में कहना भाभी तनक सा दूध भी दे दीजो जे आपिस (ऑफिस) से आने वाले हैं चाह (चाय) बनानी थी भाभी फिर भाभी का स्नेह से कहना, अरि जा मैं चाय बना लाती हूं तू चीनी लेती जा बहन। "याद आते हैं वो दिन" याद आते हैं अड़ोस-पड़ोस में बतियाने वाले दिन। अड़ोस-पड़ोस कुछ नहीं होता था, बस भैया-भाभी चाचा-चाची जैसे रिश्तो का नाता था बस यूं ही पूछ लिया करते थे और भौजी कैसी हो, सब ठीक है चाचा-चाची आप कैसे हो। "याद आते हैं वो पूछ परख करने वाले दिन" हमारी सुबह की शुरुवात भाई साहब के अखबार से हुआ करती थी, एक नमस्कार सौ चमत्कार किया करते थे, रुपए, दो रुपए का अखबार हम भी खरीद सकते थे, पर पड़ोस वाले भाई साहब से स्नेह कुछ ऐसा ही था हम पू...
बूँद के सतून पर
कविता

बूँद के सतून पर

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बूँद के सतून पर जीवन का तानाबाना टिका है हरे हो जाते हैं प्यासे वृक्ष निर्वाण प्राप्त करता है जीव आनंद को महसूस करती है प्रकृति यौवन की गाँठें खुल जाती हैं नया सूरज निकलता है और झूम जाता है धरती पर मेला सजता है कलकल करती नदियां निकलती हैं पक्षियों का अमर गीत गुंजायमान होता है बूँद के तह में जीवन है जीवन की तलहटी में बूँद दो पाटों के बीच ईश्वर संतोष को महसूसता है मुस्कुराता है आशीर्वाद देता है जीवन अनमोल है अनमोल है जीवन ये दो शब्द बादलों की डायरी में दर्ज है। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से लेखन रचना प्रकाशन : साहित्यिक पत्रिकाओं में, कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

सपना दिल्ली ************* प्रकृति रुके बिना थके उपकारी, निरछल अपनी ममता हम पर लुटाती.... जीव , जंतु, पशु, पंछी सहारा देती अपने आंचल में जरूरतों का रखती पूरा ख्याल... क्या नहीं सहती हमारे लिए गलती भी करें देती हमें सीख कभी उत्साह बढ़ाती कभी उदाहरण दिखा कर मोल समझाती अपना.... तेरे रूप अनेक हर रूप में कुछ न कुछ बीज बोऐं हम एक फल उसमें अनेक हमें देती करे इतना कुछ मांगे न कोई मोल हमसे... चकाचौंध में नए ज़माने की भूल मां की ममता करते खिलवाड़ हम उससे उसे लेना पड़ता भंयकर रूप मजबूर होकर..... भूले हम बिन प्रकृति मां सबका अस्तित्व खतरे में सुरक्षा कवच वह हम सबकी सबकी भलाई उसको सुंदर रखने में... प्रण लें नहीं करेंगे खिलवाड़ ममता के बदले उतना ही रखेंगे ख्याल जितना वह रखती हम सबका।। परिचय :- सपना पिता- बान गंगा नेगी माता- लता कुमारी शैक्षणिक योग्यत...
वृक्ष की व्यथा
कविता

वृक्ष की व्यथा

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** तू पैदा हुआ मैं तेरा पालना बना बरस भर में काठी का घोड़ा बना गिल्ली डंडा बनाया, मैं सह गया डंडे नरों पर न चलाओ मुझे दर्द है। पांच साल का होते ही शाला गया पाठशाला जाते ही मैं पाटी बना मुझ पर अक्षर उकेर नेत्र खुले तेरे व्यर्थ कुल्हाड़ी न मार मुझे दर्द है । पढ़ लिखकर बहुत बड़ा हुआ तू कुर्सी बनकर तेरा प्रभुत्व बढ़ाया विश्रामार्थ तेरी खटिया बन गया संजीदा बन जरा सोचो मन से व्यर्थ न काटो खूब दर्द है मुझे। गृहस्थ जीवन में प्रगति कर तू जब अध्यात्म की तरफ आया ऋषिऋण से तुम्हें उन्मुक्त करने समिधा बन तेरे यज्ञ में आया अब व्यर्थ मत जला दर्द है मुझे । तुम काटना नहीं मुझे दर्द है नर सोचो जरा कहां फर्क है मैं भले तेरे साथ आता नहीं आकार में ही थोड़ा फर्क है मैं देता तुमको स्वादिष्ट फल बदले में कुछ भी नहीं मांगा...
कभी तुम चुप रहो
कविता

कभी तुम चुप रहो

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कभी तुम चुप रहो, कभी मैं चुप रहूँ, कभी हम चुप रहें खामोशियों को करने दो बातें, यह खामोशियाँ भी बहुत कुछ कह जाती हैं, जो हम कह न सकें वह भी कह जाती हैं। कभी तुम चुप रहो कभी मैं चुप रहूँ कभी हम चुप रहें‌। आओ आज युंही बैठे एक-दुजे की आंखो में डुबे उस प्यार को महसुस करे जो जुंबा पर कभी आया ही नहीं। कभी तुम चुप रहो कभी मैं चुप रहूँ कभी हम चुप रहें। आओ हम तुम नदी किनारे हाथों में हाथ दे चहलकदमी करें मुद्दतों से जो सोया था एहसास उसे तपिश की गर्माहट को महसुस करें। कभी तुम चुप रहो कभी मैं चुप रहूँ कभी हम चुप रहें। आओ आज छेडे, ऐसा कोई तराना जो धडकनों में बस जाये बिन गाये, बिन गुनगुनाये संगीत की लहरियों में हम डुब जाये। कभी तुम.... चुप रहना कोई सजा नहीं चुप रहना एक कला है, जो बिना कहें सब कुछ कह जायें ...
संस्कार
कविता

संस्कार

श्‍वेता अरोड़ाशाहदरा दिल्ली****************** हम सब देते है बच्चो को,कुछ संस्कार भी देने चाहिए! हारे हुए को सहारा देने आना चाहिए, गिरते हुए को गले लगाना आना चाहिए! छल कपट और बेईमानी को ठेंगा दिखाना आना चाहिए! इज्जत देना और इज्जत कमाना आना चाहिए! माता पिता, बुजुर्गो की सीख को अमल मे लाना आना चाहिए!ना करे जो व्यवहार पसंद हम, वो व्यवहार भी नही देना आना चाहिए! दीन दुखी बेसहारा को देखकर करूणा का भाव होना चाहिए! कर चले कुछ उनके लिए, ऐसा विचार उनका होना चाहिए! संस्कार होंगे उच्च कोटि के तो जीवन खुद उज्जवल हो जाएगा!करेगा रोशन नाम हमारा,धन्य जीवन हमारा भी हो जाएगा! परिचय : श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
एक घरौंदा ऐसा हो
कविता

एक घरौंदा ऐसा हो

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** एक घरौंदा ऐसा हो जहां हरियाली का वास हो पर्यावरण प्रदूषण का नाश हो बगीचों में खिली फुलवारी हो अपनत्व की एक क्यारी हो ... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ पीपल का घनेरा वृक्ष हो मस्त हवा का झोंके हो मन को जो लुभाते हो हरियाली में बुलाते हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ लहलहाते खेत-खलिहान हो नदी के पानी में मिठास हो वृक्ष पर लदे फल-फूल हो नन्हे परिंदों का कलरव हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ जेब से कोई तंगहाल ना हो रिश्तों का फैलाव हो खुशियों को बौछार हो आत्मीयता का बहाव हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ राजनीति का प्रभाव ना हो बुराई पुराण की कथा ना हो सास-बहू की व्यथा ना हो परस्पर स्नेह का भाव हो... एक घरौंदा ऐसा हो जहाँ तनाव का नामों निशान ना हो कष्टों का झंझावात ना हो लड़ाई, झगड़ा, लूट, हत्...
पर्यावरण
कविता

पर्यावरण

पूनम शर्मा मेरठ ******************** आज पर्यावरण मुस्करा रहा है, सिर हिलाता ठंडक उड़ेलता है, पेड़ स्तंभ-वत खड़े हैं, टहनियां झूम-झूम पंखा झलतीं, जडों ने जकड़ रखा है मज़बूती से, सायरन बजाती एंबुलेंस सरपट भागती सूनी सड़कों पर, बेतहाशा दौड़ता मानव, आक्सीजन दबोचने को, कुटिल मुस्कान वृक्षों की, "हमसे दुश्मनी?", काटते हो हमें ! हम तो मुफ्त उपहार देते रहे, कतरा-कतरा बिखेरते रहे, अपना अंश वातावरण में, चेतावनी भी देते रहे गाहे-बगाहे, लेकिन तुमने, माहौल बिगाड़-बिगाड़ कर खिल्ली उड़ाई और बढ़ गए आगे, आज लौट रहे हो हमारे ही पास, ये नदियां, पहाड़, झरने, जंगल आदि और हम, दोस्त हैं बिलकुल तुम्हारे एक व्हाट्सएप ग्रुप की तरह तुम काम पड़ने पर हमें ही पुकारते हो पीछे मुड़कर, आक्सीजन-आक्सीजन... बचाओ-बचाओ, जीव-जंतु, मानव, सब हैं हमारे आसरे लेकिन, कोई हमारा ख्याल भी रखेगा क...
नष्ट ये जंगल ना हो पाए
कविता

नष्ट ये जंगल ना हो पाए

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** कहीं अमंगल ना हो जाए। नष्ट ये जंगल ना हो जाए।। बादल को तोड़ेगा कौन? कहो नदी मोड़ेगा कौन? माटी को रोकेगा कौन? गरल वायु सोखेगा कौन? उज्जर त्रिभुवन ना हो जाए उपवन 'अनुपम' ना खो जाए; कहीं अमंगल ना हो जाए। नष्ट ये जंगल ना हो पाए।। (त्रिभुवन-जल,थल,नभ) रौंद-खौन्द खोखली धरा का गर्भ-पात जो कर जाओगे? हो भूचाल उजाड़े आँगन कोप अवनि का सह पाओगे? ताप बढ़ा हिम पिघलाओगे अति मति की दिखलाओगे! प्रलय समन्दर ना हो जाए; कहीं अमंगल ना हो जाए। नष्ट ये जंगल ना हो पाए।। मृग-खग, सिंह-गज गृह निवास जो यूँ टुकड़ों में बाँटोगे, हरियाली ही नहीं रही तो! बन्धु 'हीरा' चाटोगे? भूख का दंगल ना हो जाए; कहीं अमंगल ना हो जाए। नष्ट ये जंगल ना हो पाए।। पानी को बाँधेगा कौन? कंठो को साधेगा कौन? स्वास संचरित कौन करेगा? खनिज तुम्हारा पेट भरेग...