जज्बात छलकते हैं
मीना सामंत
एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली)
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जिंदा हूं खिलौना समझकर, यूँ ना हमसे खेलिए
जिंदगी जो दांव लगाये, उससे क्या हिसाब कीजिए !
कड़वे घूंट पिए हों जिसने, उसको शर्बत क्या दीजिए
जज्बात छलकते हैं आंखों से, शब्द जाया क्यों कीजिए!
आदत हो जिद्दी आज भी, तो क्या कर लीजिए
क्या पाएंगे इस झूठे खेल में, फुर्सत से जीने दीजिए!
खुशी के लिए ही सही, हारकर हमसे खेलिए,
सब खेल खुद जीतकर, ऐसा जुल्म ना कीजिए!
बच्चे की तरह हम भी मान जाएंगे, मनाकर देखिए
यकीन ना हो तो मेरी माँ से पूछ लीजिए!
बड़े बनकर हंस लिए बहुत, अब ना हमको रोकिए,
जमाने से डरना क्या? बच्ची बनकर खिलखिलाने दीजिए!
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परिचय :- मीना सामंत
एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली)
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