युद्ध
किरण पोरवाल
सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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गुलामी की दास्तां को
हमसे है कोई पूछें
कितने जुल्म को सहना
यह भारत से वह पूछे
नहीं कोई साथ है देता
नहीं कोई साथ ही रहता,
अपने मुल्क की आजादी
यही स्वाभिमान है अपना,
किसी कमजोर से लड़ना
यह ताकत नहीं उसकी
सहारा दे उठाकर फिर
चलना मर्दागी है उसकी
गुलामी की जंजीरों में
जकड़ कर इस तरह रहना,
इससे तो यही बेहतर की
थोडे मै है खुश रहना,
किसी भी मुल्क पर
हमला तबाही और मंजर है,
सकुन तुम को नहीं मिलता,
सुकून किस को नहीं मिलता,
कितने घर तो हे उजड़े,
कितने बेघर को वह समझे
किसी ने बाप खोया है
किसी का सिंदूर है उजड़े
एक दौलत के है खातिर
हजारों लाश देखी है,
इन्हें इतिहास के पन्ने
किस निगाहों से देखेगा,
एक देश भक्ति से हे पूजे,
एक अत्याचार से जाने,
किरण ! हम उस शक्ति से पहचाने,
जिसे संसार है पूजे,
भारत श...



















