Thursday, May 1राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

गीत

रात-रात भर
गीत

रात-रात भर

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !! एक छौंछियाहट-सी बनी हुई क्यों रहती है, किर्च-किर्च शीशे सी व्यथा कथानक कहती है; पल-पल यूँ ही दहते रहना भी है बुरी बला !! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !!१!! कचनारों-से बिम्ब उभरते मौसम, बेमौसम, मन में सौ तूफान मचलते रहते हैं हरदम; भितरमार यूँ सहते रहना भी है बुरी बला! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला!!२!! मन, अनन्त के अन्त तलक उसकी राहें ताके, जिसने मीठी सुधियों तक के बन्द किये नाके; सपनों में यूँ बहते रहना भी है बुरी बला!! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !!३!! अब कोई कौतूहल नहीं कहानी-किस्से में, ठहरी झीलों के जल-सा जीवन है हिस्से में; इससे, उससे कहते रहना भी है बुरी बला !! रात-रात भर जगते रहना भी है बुरी बला !!४!! परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह...
कर्मो का फल
गीत

कर्मो का फल

संजय जैन मुंबई ******************** नही भूल पाया हूँ में जिन्होंने दगा दिया था। मेरी हंसती जिंदगी में जहर जिन्होंने घोला था। कहर बनकर उनपर भी टूटेगा मेरे हाय का साया। और तड़पेगे वो भी जैसे में तड़प रहा।। जिंदगी का है हुसूल जो तुमने औरों को दिया। वही सब तुमको भी आगे जाकर मिलेगा। फिर तुमको याद आएंगे अपने सारे पाप यहां। और भोगोगे अपनी करनी का पूरा फल।। समय चक्र एक सा कभी नही चलता है। जो आज तेरा है वो कल औरों का होगा। यही संसार का नियम विधाता ने बनाया है। और स्वर्ग नरक का खेल यही दिखाया जाता है।। जो गम तुमने दिए थे वो अब तुम्हे मिलेंगे। और तेरे साथी ही तुझ पर अब हंसेगे। और ये सब देखकर तू अपनी करनी पर रोएगा। पर तेरी आंसू कोई भी पूछने वाला नहीं होगा। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर...
पीहर
गीत

पीहर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** साजन के घर तन है पर मन पीहर में है। छूट गया दुल्हन का बचपन पीहर में है। प्यारी गुड़िया कैसे भूले सपने में भी मन को छू ले सखियों से झगड़े के कारण फुग्गे-से मुँह फूले-फूले सखियों संग झूलों का सावन पीहर में है छूट गया दुल्हन का बचपन पीहर में। हरी-भरी तुलसी आँगन की न्यारी सुन्दरता उपवन की त्रुटि अगर कोई हो तो फिर स्नेहसिक्त झिड़की परिजन की मधुर-मधुर यादों का चन्दन पीहर में है। छूट गया दुल्हन का बचपन पीहर में। सुनकर पापा जी की डांट मन होता था कभी उचाट होती थीं मनुहारें भी फिर थे बचपन में कितने ठाट पापा का स्नेहिल अनुशासन पीहर में है। छूट गया दुल्हन का बचपन पीहर में। सर्वाधिक था माँ प्यार करती थी वह बहुत दुलार है असीम माँ का ऋण तो प्रकट करे कैसे आभार माँ के आँचल का सुख पावन पीहर में है। छूट गया दुलहन का बचपन पीहर में है। रोक-टोक भाई...
श्याम सांवरे
गीत

श्याम सांवरे

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** श्याम सांवरे कभी आना गांव रे। माखन दधि रखेंगी तेरे नाम रे। माखन तुम खाना गौवें चराना। बंसी बजाना पीपल छांव रे। मोर मुकुट सिर कानों में कुंडल छब प्यारी-प्यारी दर्शा जाव रे। जिस श्रतु भी आना रास रचाना। अपने ही रंग में रंग जाव रे। काहे की गोपी काहे का ग्वाला। जित देखे़ उत रहे श्याम श्याम रे उद्धव ने चाहा ज्ञान सिखाना। मूरख को ज्ञान से क्या काम रे। अत्याचार से त्रस्त है जन जन असुरों पर आके करना घात रे। परिचय :- डॉ. चंद्रा सायता शिक्षा : एम.ए.(समाजशात्र, हिंदी सा. तथा अंग्रेजी सा.), एल-एल. बी. तथा पीएच. डी. (अनुवाद)। निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश लेखन : १९७८ से लघुकथा सतत लेखन प्रकाशित पुस्तकें : १- गिरहें २- गिरहें का सिंधी अनुवाद ३- माटी कहे कुम्हार से सम्मान : गिरहें पर म.प्र. लेखिका संघ भोपाल से गिरहें के अनुवाद पर तथा गि...
हरते हैं अंधियारे राम
गीत

हरते हैं अंधियारे राम

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** सत्य न्याय दया समरसता, के सूरज को धारे राम। सभी मोह माया लालच के, हरते हैं अंधियारे राम।। राम नहीं व्यक्ति एक पथ है, करता भवसागर से पार। आत्मसात करलो इस पथ को, सफर नहीं होगा बेकार।। रिश्तों की गरिमा सिखलाई, करना सिखलाया व्यवहार। सदाचार का अर्थ बताया, और बताया पापाचार।। इसीलिए है सबके प्यारे, जीवन के उजियारे राम । सभी मोह माया लालच के, हरते हैं अंधियारे राम।। जब दुनिया के ताने सुन सुन, बनी अहिल्या शिला सामान। झरना सूख गया चंचल मन, उसका नहीं रहा गतिमान।। माँ कहकर जब उसे राम ने, प्यार दिया, पाया सम्मान। जीवन फिर से लगा चहकने, भूल गई अपना अपमान।। बिखर गई थी उसे सहारा, देकर बने सहारे राम। सभी मोह माया लालच के, हरते हैं अंधियारे राम।। साधन नहीं साधना से रण, जीता जाता है सिखलाया। अनुभव से लें परामर्श जब, पूजा की, शक्ति को पाया।। पुत्र नहीं ...
जन्माष्टमी
गीत

जन्माष्टमी

संजय जैन मुंबई ******************** कितना पावन दिन आया है। सबके मन को बहुत भाया है। कंस का अंत करने वाले ने, आज जन्म जो लिया है। जिसको कहते है जन्माष्टमी।। काली अंधेरी रात में नारायण लेते। देवकी की कोक से जन्म। जिन्हें प्यार से कहते है। कान्हा कन्हैया श्याम कृष्ण हम।। लिया जन्म काली राती में, तब बदल गई धरा। और बैठा दिया मृत्युभय, कंस के दिल दिमाग में। भागा भागा आया जेल में, पर ढूढ़ न पाया बालक को। रचा खेल नारायण ने ऐसा, जिसको भेद न पाया कंस।। फिर लीलाएं कुछ ऐसी खेली। मंथमुक्त हुए गोकुल के वासी। माता यशोदा आगे पीछे भागे। नंदजी देखे तमाशा मां बेटा का।। सारे गांव को करते परेशान, फिर भी सबके मन भाते है। गोपियाँ ग्वाले और क्या गाये, बन्सी की धुन पर थिरकते है। और मौज मस्ती करके, लीलाएं वो दिख लाते है। और कंस मामा को, सपने में बहुत सताते है।। प्रेम भाव दिल में रखते थे, तभी तो राधा से मिल पाए...
कलाम
गीत

कलाम

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** हिन्दू के भगवान थे, मुस्लिम के रहमान थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। जीवन के पल-पल, क्षण-क्षण देश के नाम थे। हिन्दुस्तान की सेवा ही, बस उनके अरमान थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। पोकरण में कर धमाका, दुनिया को दिखलाये थे। अग्नि, पृथ्वी, नाग के जनक, वो भारत के लाल थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। एक हाथ में गीता, उनके एक हाथ कुरान थी। मज़हब की मिशाल, वे भारत के भगवान थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। था अजब नजारा, जब वे चिर निद्रा में सोये थे। हिन्दू या मुस्लिम ही नहीं, पूरे भारतवासी रोये थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। हिन्दू के भगवान थे, मुस्लिम के रहमान थे। इक वो कलाम थे, भारत की पहचान थे। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : ब...
सावन का महीना
गीत

सावन का महीना

संजय जैन मुंबई ******************** मधुर मिलन का ये महीना। कहते जिसे सावन का महीना। प्रीत प्यार का ये महीना, कहते जिसे सावन का महीना। नई नबेली दुल्हन को, प्रीत बढ़ाता ये महीना।। ख्वाबो में डूबी रहती है, दिन रात सताती याद उन्हें। होती रिमझिम रिमझिम वारिश जब भी, दिल में उठती तरंगे अनेक। पिया मिलन को तरस रही है, इस सावन के महीने में वो।। रोग लगा है नया नया, ब्याह हुआ है अभी अभी। करे इलाज कैसे इसका, मिट जाए ये रोग नया। पिया मिलन तुम करवा दो, सावन के इस महीने में।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेख...
सावन से
गीत

सावन से

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम जाकर भैया से मेरे, ये संदेशा कहना दूर बसा तू आ न सकेगी ये तेरी बहना। भाई-बहन की प्रीत का पर्व जब-जब आता। क्या बाबुल क्या अपने परायो को है यह हर्षाता। रूसा रूसी मनुहार बिन मजा नहीं था आता। नयन नीर ना तू अब अश्रु बनकर बहना। कर में बांधकर राखी माथ तिलक लगाती। चंदा सा मुख देख-देख मैं वारी-वारी जाती। वह रक्षा प्रण लेता, मैं स्नेह दीप जलाती। प्यारी प्यारी सूरत तू इन आंखों में रहना यह देस छोड़कर तेरा यूं परदेस चले जाना। अनचाहे ही मैंने इसको विधि-विधान है माना टूट गया हिरदे-आंचल ताना और वाना। ना मिल सकने का ही तो शूल मुझको सहना। याद आज भी आते मुझको वो सावन के झूले। वो राखी वाले हाथ कहो बहना कैसे भूले? क्या जानू. मैं शाखों पे कब गुलाब थे फूले। तेरा प्यार बना रहेगा मेरा जीवन गहना। तुम जाकर भैया से मेरे ये संदेशा कहना। दूर बसा त...
वादा करके निभाया करो
गीत

वादा करके निभाया करो

रवि कुमार मौर्य जमोलिया, बाराबंकी (उ.प्र.) ******************** इस तरह से न हमको बुलाया करो। कम से कम वादा करके निभाया करो।। जब हुई शब तो दिल ये धड़कने लगा। रुखसती देख कर क्यूँ तड़फने लगा।। कसमकश में न रखकर सताया करो, कम से कम वादा.....................।। दिल को मेरे ये एहसास होने लगा। जाने क्यूँ तू मेरा खास होने लगा।। आस दे सांस तुम न ले जाया करो, कम से कम वादा...................।। हम तुम्हारे बने तुम हमारे बने। दिल मिले खूबसूरत नजारे बने।। दूर रहकर न अब दिल दुखाया करो, कम से कम वादा....................।।   परिचय :- रवि कुमार मौर्य पिता : एडवोकेट मनोज कुमार मौर्य निवासी : ग्राम- जमोलिया, बाराबंकी (उ.प्र.) उद्घोषणा : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंद...
खो न जाँऊ कही
गीत

खो न जाँऊ कही

संजय जैन मुंबई ******************** खो न जाँऊ कही, अपने के बीच से। इसलिए लिखता हूँ, गीत कविता आपके लिए। ताकि बना रहे संवाद, हमारा आप के साथ। और मिलता रहे सदा, आप सभी का आशीर्वाद।। दिल में जो आता है, मैं वो लिख देता हूँ। अपनी भावनाओं को, आपके सामने रखता हूँ। कुछ को पसंद आती है, कुछ का विरोध सहता हूँ। पर अपनी लेखनी को, मैं निरंतर रखता हूँ।। शिकायते है कुछ लोगों की, तुम विषय पर नहीं लिखते हो। कृपा विषय पर लिखे, और ग्रुप में प्रेषित करें। पर बनावटी विचारों को, मैं नहीं लिख पाता हूँ। और उनकी आलोचनाओ का, शिकार हो जाता हूँ।। उम्र बीत जाती है, अपनी छवि बनाने में। यदि कदम डगमगा जाए, तो रूठ अपने जाते है। इसलिए मन की सुनकर, मैं गीत कविताएं लिखता हूँ। तभी तो यहां तक, आज पहुंच पाया हूँ।।   परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष स...
देश द्रोह से डरना बाबू
गीत

देश द्रोह से डरना बाबू

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** कैसे जीना मरना बाबू अब ये बात न करना बाबू रूखी पलकों में, बन्जर सपनों को यहां ठहरना बाबू जिसे सीखना,उनसे सीखे वादे और मुकरना, बाबू शहर हादसों के भूले हैं हंसना है कि सिहरना,बाबू एक दूसरे के दिल में, है मुश्किल काम उतरना, बाबू इतने नाजुक रिश्तों पर, अब कौन भरोसा करना, बाबू सुना कि देश तरक्की पर है, रोटी पर क्या मरना बाबू रोजगार की बात न करना, देश द्रोह से डरना बाबू परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके ह...
कलयुग के भगवान
गीत, भजन

कलयुग के भगवान

संजय जैन मुंबई ******************** तुम हो कलयुग के भगवान गुरु विद्यासागर। तुम हो ज्ञान के भंडार गुरु विद्यासागर। हम नित्य करें गुण गान गुरु विद्यासागर।। बाल ब्रह्मचारी के व्रतधारी सयंम नियम के महाव्रतधारी। तुम हो जिनवाणी के प्राण गुरु विद्यासागर। हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्यासागर।। दया उदय से पशु बचाते भाग्योदय से प्राण बचाते मेरे मातपिता भगवान गुरु विद्यासागर । हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्यासागर।। जैन पथ हमको चलाते खुद आगम के अनुसार चलते। वो सब को देते विद्या ज्ञान गुरु विद्या सागर। हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्यासागर। तुम हो कलयुग के भगवान गुरु विद्यासागर। ज्ञान के सागर विद्यासागर हम नित्य करे गुण गान गुरु विद्या सागर।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर क...
युद्ध थोपने वालों की हम
गीत

युद्ध थोपने वालों की हम

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** मानवता के साथ यकीनन, ऐसा करना है गद्दारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ***** युद्ध जहां पर महिलाओं को, बेवा बना दिया जाता है। युद्ध जहां पर गोदी सूनी, करके खून पिया जाता है।। अगर नहीं जीवन दे पाते, जीवन लेने का क्या हक है। हत्या करने या करवाने, वाला सचमुच नालायक है।। भले रहनुमा हो या राजा, उसकी भी है हिस्सेदारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ***** क्या जनता पर निर्मम होना, काम नहीं बोलो शैतानी। महल बनें खुद के नित नूतन, खोली उनके लिए पुरानी।। तनपर भले न उनके कपड़े, हाथों में हथियार थमा दें। हिम्मत करें प्रश्न करने की, हंटर भी दो चार जमा दें।। भक्ति काआश्रय लेकर हम, बोझ न उनपर लादें भारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ****** युद्ध युद्ध होता है भाई, सतपथ पर चलना आराधन। खून खराबा...
धारा विचलित गगन विचलित है
गीत

धारा विचलित गगन विचलित है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** धरा विचलित लगन विचलित है, मालिक अब संभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालों तुम।। तुम्हारे वश में मृत्यु है, जीवनधन तुम्हारा है। ये तुमको है पता फिर क्यों, नजर से ही उतारा है।। कोरोना के विषाणू से, हमें क्यों यूँ डराते हो। किया क्यों घरमें सबको बंद, खूँ आंसू रूलाते हो।। तुम्हारे थे तुम्हारे हैं, दयालु, देखोभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालो तुम।। कोई पत्ता नहीं हिलता न, हो मर्जी तुम्हारी तो। इशारा दो हवा हो जाए, मौला ये बीमारी तो।। ना माथे का मिटे सिंदूर , ना गोदी ही सूनी हो। ना छीने जाएं घर हमसे, न ये तकलीफ दूनी हो।। तुम्हारी शरणागत दुनिया, हमें भी तो निभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालो तुम।। यकीनन राज कोई इसमें, है जिसको तुम्ही जानों। है अच्छा क्या बुरा क्या है, इसे भी तुम ही पहचानों।। करम ...
छोड़ चले
गीत

छोड़ चले

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** एक एक कर रिश्ते सारे तोड़ चले। आसमान को सूरज तारे छोड़ चले।। निभा सके हम जितने वे सब निभा लिए, बाकी करके वारे न्यारे छोड़ चले।। जिन जिन रिश्तों में असमंजस बना रहा, उन सबको हम एक किनारे छोड़ चले।। चांद चांद है, सूरज आख़िर सूरज है, महफ़िल को जुगनू बेचारे छोड़ चले।। डाल न पाए जहां विचारों के लंगर, ऐसे दरिया और किनारे छोड़ चले।। आदर्शों के जनमत पर बहुमत भारी, वह संसद भगवान सहारे छोड़ चले।। आंधी, तूफानों के आगे झुक जाएं, हम ऐसे कमजोर सहारे छोड़ चले।। मौत की तरफ पल पल बढ़ते जीवन को ख़ुद ही हम जैसे बनजारे छोड़ चले।। . परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
बच्चों से जब काम न लेकर
गीत

बच्चों से जब काम न लेकर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** बच्चों से जब काम न लेकर, हम स्कूल पहुंचाएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। मौलिक अधिकार है शिक्षा का, बच्चों को मुफ्त पढ़ाती हैं। उत्तरदायी सरकारें यूँ, अपना फर्ज निभाती हैं। शिक्षित बचपन हो जाए बस, लक्ष्य हमारा अपना है। सूरज शिक्षा का तम हरले, देखा हमने सपना है।। काबिल होंगे बच्चे जब हर, बाधा से टकराएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। बोझ अगर जिम्मेदारी का, बचपन में ही डाल दिया। जिनसे उड़ते, पंख उन्हीं को, जड़ से अगर निकाल दिया।। बोझ तले दबकर बच्चों की, क्षमताएं जंग खाएंगी। बिना हौसले सभी उड़ाने, बिल्कूल निष्फल जाएंगी।। जीवन को उत्सव मानेंगे, जब गुल ये, खिलजाएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। बच्चों के सपने ही तो कल, की तस्वीर बनाते हैं। जैसे सपने वैसे ही तो, फल दामन में आते हैं।। बच...
वो माँ हिन्दी भाषा है
गीत

वो माँ हिन्दी भाषा है

शिवलाल गोयल "शिवा" लुनाडा, बाड़मेर (राजस्थान) ******************** बहुत कवियों ने गुणगान किया है, इसका इतिहास और गाथाएँ बहुत पुरानी है। जिसके शब्दों की मिठास और ताकत किनसे अनजानी है। जिसको सुनते ही हर इक मानुष का हृदय तृप्त हो जाता है।। वो माँ हिन्दी भाषा है, वो माँ हिन्दी भाषा है। सहज, सरल, सुन्दर अक्षरों का मेल है हिन्दी, पढने, पढाने और लिखने में अनमोल है हिन्दी, सहानुभूति व्यवहार, नैतिक आचरण है हिन्दी, साहित्य की मुस्कान है,... (2) शीत है हिन्दी, ग्रीष्म है हिन्दी। वर्षा है हिन्दी, हर इक ॠतु है हिन्दी।। उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम भारतवर्ष की हर इक दिशा है हिन्दी। भारत की भाग्य रेखा है हिन्दी। वो माँ हिन्दी भाषा है,.... (2) नदियों की कल्ल-कल्ल सी आवाज है हिन्दी। समन्दर की गहराई है हिन्दी। हिन्द हिमालय से निकलती हुई रस धार है हिन्दी। खेतों के खलिहानों में, केसर के फसलों में है हिन्दी...
वर्षा तुम जब
गीत, छंद

वर्षा तुम जब

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** राधेश्यामी छंद में वर्षा गीत… वर्षा तुम जब जब भी आती, मेरा मन दुलरा जाती हो। तरु के पत्तों से टकरा कर, सुरमय संगीत सुनाती हो। तेरे आने की आहट नित, मुझको पहले मिल जाती है। जब तप्त हृदय मेरा होता, तब क्षितिज कालिमा छाती है। हो निनाद जब दूर कहीं पर, नभ हो जाता जिससे गुंजित। विरही मन में तब हूक उठा, प्रियतम की याद दिलाती है। पहले ही संकेतों द्वारा, जैसे भेजी मृदु पाती हो।१ चातक सा रहता मन प्यासा, चाहत बूँदों की है मन में। कुछ स्वाति फुहारें पड़ जायें, शीतलता आये तब तन में। नभ से बरसे जल झर-झर कर, भीगे तब आकुल सा तन-मन। लग जाएँ सावन की झड़ियाँ, आये बहार तब जीवन में। बूँदों की टिप-टिप से उपजे, तुम नवल राग में गाती हो।२ होते हैं भाव विभोर सभी, जब ऋतु परिवर्तन करती हो। तब शुष्क पड़े सब हृदयों के, तुम ताल सरोवर भरती हो। इस भूतल के सारे प्राणी, मिल राह त...
याद रहेगा
गीत

याद रहेगा

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** शहरों से लौट रहा गांव, सदियों तक याद रहेगा।। अनगिनती युद्ध लड़े, जीते हैं, जीतेंगे, दुर्दिन के लाखों पल बीते हैं, बीतेंगे; कौन साथ रहा, कौन खेल गया दांव, सदियों तक याद रहेगा।। छिपे हुए, ममता के आंचल के नीचे से, बरगद-से बापू के होंठ कसे,भींचे-से; डंडे सहते देखे, उन्हें ठांव-ठांव, सदियों तक याद रहेगा।। पीड़ित मानवता को क्रूर दम्भ पीट गया, निर्मोही सत्ता का नशा आज जीत गया, अपनेपन की आंखें नोंचता दुराव, सदियों तक याद रहेगा।। जब भी, जिस शासन से जनता यह त्रस्त हुई, रावणी प्रचण्डशक्ति, विद्वत्ता अस्त हुई; सत्ताधीशों का यह कुटिल भेदभाव , सदियों तक याद रहेगा।। शहरों से लौट रहा गांव, सदियों तक याद रहेगा।। . परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना ...
प्रकृति का कहर
गीत

प्रकृति का कहर

संजय कुमार साहू जिला बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** देख प्रकृति का कहर.. देख प्रकृति का कहर .. फल दिया और फूल दिया, १० पीढ़ी तक कुल दिया, इस अराजकता के दौर में, तुझको प्रभुत्व सम्पूर्ण दिया।। पर तेरा जी न भरा मानव, करता खिलवाड़ प्रकृति के साथ।। तूने क्या सोच के किया था, प्रकृति का नीरव दोहन, देख तेरे इस भूल का फल भोग रहा जग आज है, प्रकृति का बदला लेने आया आज यमराज है।। जीवों की हत्या कर तूने प्रकृति को किया कुरूप, देख आज कोरोना आया प्रकृति प्रतिघात स्वरूप, आज पर्यावरण दिवस पर मान ले अब तू मेरी बात, कर प्रकृति का सम्मान, जंगल को न कर वीरान, जीवों की रक्षा तू कर, पेड़ लगा बढ़ा प्रकृति का मान, वरना कोई नहीं बचा पाएगा तुझे, प्रकृति का कहर है आज। देख प्रकृति का कहर ... देख प्रकृति का कहर..।। आज गर्मी के दिनों में सुबह चलती भाप है, शाम को पानी गिराकर देती प्रकृति श्राप है, बरसात मे...
बदल रहे रिश्तों के माने
गीत

बदल रहे रिश्तों के माने

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** बदल रहे रिश्तों के माने आज यहाँ प्रतिपल समझ नही पाता है कोई क्या हो जाए कल गुणा भाग की इस दुनिया में लाभ की बस बातें अपना सगा और सम्बंधी भी करता है छल कौआ भागा कान नोच कर बातें लगती सच्ची बुद्धि टांग देते खूँटी पर अक़्ल है कितनी कच्ची श्वेत वसन यद्यपि शरीर पे मन में भस्मासुर गिरगिट जैसे रंग बदलते बातों में निर्बल जाति पाँति मज़हब की रोटी रोज़ सेकते भैया ऐसे साहिल हैं तो साहिल पर डूबेगी नैया मज़हब की घुट्टी पीकर हम भँवर जाल में हैं मंदिर मस्जिद के झगड़े में गई उमरिया ढल धन वैभव सब पास हमारे मन है मगर अशांत हंसी ख़ुशी संतोष है ग़ायब दिल है सूखा प्रांत तिल तिल कर जल रहीं ज़िंदगी जीवन जैसे बोझ लव पर तो मुस्कान दिख रही मन में दावानल ईर्ष्या द्वेष जलन पर क़ाबू पा ले यदि इंसान बच जाएगी ये दुनिया फिर बनने से शमशान पर हित हो...
मोहे देखन दे
गीत

मोहे देखन दे

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** मोहे देखन दे असीघाट को गए छोड़ गोस्वामी जी, जाने गए वो किधर ढूंढे सबकी नजर, मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे पहली बार श्री कबीर दास जी ने काशी (लहर तालाब) में लिया अवतार हो... ऐकश्र्वरवादी विश्व में फैले ऐसा किया विचार हो... ईश्वर एक है दूजा न कोए जाना सब संसार ऐसा हुआ उदगार मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे... दुसरी बार श्री तुलसीदास जी ने जग में अवतार हो... सपना जो स्वामी जी का था उसको किया साकार हो... रामचरितमानस सबके सनमुख आये जाना सब संसार ऐसा हुआ उदगार मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे... तीसरी बार श्री घासीदास जी ने जग में लिया अवतार हो... सर्वधर्म - समभाव विश्व में फैला ऐसा किया प्रचार हो जाना सब संसार मोहे देखन दे गुरु महिमा देखन दे...   परिचय :-  खुमान सिंह भाट निवासी : रमतरा, बालोद, छत्तीसगढ़ आप भी अपनी ...
गुरु वंदना
गीत

गुरु वंदना

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** गुरु तो ईश्वर का साकार रूप होता है अंधाररुपी जीवन में प्रकाश पुंज होता है! गुरु की वाणी में रहती छिपी प्रखर ज्ञान, प्रज्ञा ज्ञान की चिंगारी! गुरु की कृपा मात्र से यह नश्वर जीवन अमर शाश्वत बन जाता! इस अलौकिक जीवन की यात्रा- अति-सरल सुगम बन जाता! गुरु अंदर की-दिव्यता को- जगा कर इस जीवन पथ को आलोकित कर जाता! निज पशुता को भगाकर दिव्य चेतना लाता मनुज मात्र के लिए उज्जवल प्रकाश पुंज फैलाता! सदियों से है गुरु कृपा की अनेकों दिव्य कहानी! महामूर्ख कालीदास सदृश एक दिन 'महाकवि' बन जाता! महान योद्धा अशोक सम्राट बौद्ध भिक्षुक बन जाता! 'आर्यभट्ट' ब्रह्मांड के ज्ञाता कोई 'कणाद' सदृश्य अनु ज्ञाता बन जाता! कोई चाणक्य कृपा को पाकर महान सम्राट बन जाता! मैं मूरख भी निश-दिन गुरु वंदना गाता! . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम...
विरहन की पीर
गीत, दोहा

विरहन की पीर

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर। साजन की नित याद में, नयनन बहता नीर। राधा सी बन बाँवरी, भटकूँ वन दिन-रैन। कहीं नहीं मन अब लगे, हृदय न पाये चैन। अपलक राह निहार कर, थकतीं आंखें रोज। मुख सीं कर बैठी रहूँ, नहीं निकलते बैन। चिट्ठी तक आती नहीं, ह्रदय न पावे धीर। पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर।1 जिन राहों से तुम गये, देखूँ नित उस ओर। भटकूँ बन पागल पथिक, चले न दिल पर जोर। अंतहीन विरहाग्नि में, झुलस रहीं हूँ नित्य।, हृदय दग्ध अब हो रहा, पीड़ा मन में घोर। लहरों को बस गिन रही, बैठी नदिया तीर। पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर।।2 साजन की नित याद में, नयनन बहता नीर। खटका हो जब द्वार पर, रुक जाती है साँस। द्वारे पर प्रियतम न हों, चुभती दिल में फाँस। साँसों की सरगम सधे, यदि लौटे निज गेह। दरवाजे यदि अन्य हो, लगती मन को डाँस। वापस अब आओ पिया, व्य...