Thursday, December 4राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

जंगल हर दिन रोता है
कविता

जंगल हर दिन रोता है

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** एक दिन मैं गुजर रहा था, शाहाबाद के जंगल से। पहाड़ों को काटकर बनाई गई, खुबसूरत डामर की सड़क पर। अद्भुत मनोहर कांतार, पर्वत के शिखर से तलहटी तक सघन आच्छादित सुरम्य। नदी, झरने, घाटी, जलाशय से भरा पूरा परिवार। असंख्य जीव,जन्तु,पशु,पक्षी, भ्रमर, तितलियाँ, फूल,फल, चारों दिशाओं में व्यापक विस्तार। मुझे देखकर सिसकने लगे पेड़, महुआ, पलास, शीशम, छिला। दहाड़े मारने लगे शमी,नीम और कानन के सब पहरेदार। असीम अरण्य रुदन सुनकर मैं भयग्रस्त कम्पित हृदय से विनीत स्वर में पूछा.. हे! विपिन क्या, कोई प्रलय का आभास हुआ या दावानल कही जल उठी। बियाबान में क्रंदन कैसा..? क्यों कोमल किसलय रो उठी। यह सुनकर मेरी मीठी बात, कुछ धीरज धरकर चुप हो फिर अटवी बोला मेरे से, ना प्रलय का आभास हुआ ना दावानल से डरता मैं। मेरे कंद,मूल,...
अब स्वीकर करो हमको
कविता

अब स्वीकर करो हमको

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अब स्वीकर करो हमको जीने का अधिकार मिला है, हम करते हैं स्नेह तुमसे ... आक्रमक नहीं है हम, असीम ... अनंत प्रेम, मानव से फिर क्यूँ प्रहार होता हम पर!! सदा निवेदन रहा हमारा हमे आजादी से जीने दो! खुली हवा में हम सबको स्वच्छंद किलोल करने दो!! शीतल मलय बन समा पाए तुम्हारे हृदय स्थल में, इतनी सी अभिलाषा है मन मे हमको भी थोड़ा स्नेह दे दो!! हम हैं निश्छल-कोमल, पावन मृदुलता से भरे हुए, बस एक बार अपने दिल मे थोड़ी सी जगह देदो!! यह क्रोध नफरत का सैलाब जो तुमसे होकर हम पर गुजरता है, उसको स्नेह के बंधन मे अब तो बंध जाने दो !! स्नेह-करुणा पाकर तुमसे जी उठें हम इस जग में, माणिक्य मोतियों की भाँति हमको भी समाज मे सजने दोl मैं ऋणी रहूँगा आजीवन, अविराम, तुम्हारा कर्म बनकर, दुआ ही दुआ दे...
श्री विघ्न हर्ता गणेश
भजन

श्री विघ्न हर्ता गणेश

कमल किशोर नीमा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** गणपति मंगल दायक हो तुम, सब के विघ्न हरो। शरणागत है शरण तुम्हारी, जीवन सुलभ करो। गणपति मंगल…. दीनबंधु, दीनानाथ, दयानिधी सब पर दया करो। सिध्द विनायक, जन गण नायक चिन्ता हरण करो। अनन्त भुवन के अधिपति हो तुम, मंछा पूरण करो। देकर वांछित फल सब को, मन हर्षित करो। गणपति मंगल… निर्मल मन हो, कपट न छल हो, भावना ऐसी भरो। मधुर हो वाणी, हस्त हो दानी, सक्षम ऐसा करो। राग द्वेष, मद निकट न आवे ऐसी दृष्टि करो। जन जन हो सुखी धरा पर, ऐसी वृष्टि करो। गणपति मंगल…. परिचय :- कमल किशोर नीमा पिता : मोतीलाल जी नीमा जन्म दिनांक :१४ नवम्बर १९४६ शिक्षा : एम.कॉम, एल.एल.बी. निवासी : उज्जैन (मध्य प्रदेश) रुचि : आपकी बचपन में व्यायाम शाला में व्यायाम, क्षिप्रा नदी में तैराकी और शिक्षा अध्ययन के साथ कविता, गीत, नाटक लेखन मंचन आदि म...
पारदर्शिता गर चाहते हो
कविता

पारदर्शिता गर चाहते हो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** पतिव्रता मशीन की नीयत पर संदेह रखना बेमानी है, जरा याद करो अपने समय पर तुमने भी की बहुत सारी मनमानी है, मानाकि आप फूंक-फूंक कर कदम रखते थे, आपकी करतूतें लोगों को पता न होती थी तो सबका स्वाद शनैः शनैः चखते थे, अपना गुनाह स्वीकार नहीं रहे हो, गर्वोक्ति पल पाकर कितनों को क्या क्या नहीं किये और कहे हो, आप अपनी करतूतें भूल सकते हो पर समय का पहिया सब याद रखता है, आप ऐसे भी नहीं रहे जो गुनाह करने से कभी भी झिझकता है, मैं यह भी जानता हूं कि ये जो आपके भाई बंधु है जिसे अपना घोर विरोधी बताते हो, संवैधानिक तरीके वालों के हाथ चला न जाए सारी व्यवस्थागत जिम्मेदारियां तो दिन में कोस रात में क्यों गले लगाते हो, अपराध या ज्यादतियां करने वाला भले ही भूल सकता है अपना कर्म, मगर समय संजोये रहती सार...
बेरहम
कविता

बेरहम

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सिफारिश-ऐ-दौर चला है अपनों की जगह कोई ओर चला है। खुदगर्ज-ऐ-दौर चला है निस्वार्थी मनुज की जगह मतलबखोरों का क्षण चला है। बेवफ़ा-ऐ-दौर चला है महोब्बत की जगह रूप सम्मोहन का काल चला है। मलाल-ऐ-दौर चला है हमदर्द की जगह बेदर्द इंसा का वक़्त चला है। जहालत-ऐ-दौर चला है संज्ञान की जगह अविद्या का अंधकार का चला है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ...
ऐसा बाग लगाओ माली
गीत

ऐसा बाग लगाओ माली

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ऐसा बाग लगाओ माली, खुशबू बहे जमाने में। लूट सके सो जी भर लूटे कमी न पड़े खजाने में।। उड़ें तितलियाँ रंग बिरंगी, चिड़े चिड़ी डालों पर खेलें। मदमाते मधुकर कुछ गायें, पेड़ों से लिपटीं हों बेलें।। मद्धिम-मद्धिम चलें बयारें, मस्ती की झर उठें फुहारें, कोई कसर न रहे प्रेम की, परिभाषा बतलाने में।। ऐसा बाग .... ।।१।। थके पखेरू भली नींद लें, सुबह मिले कलरव सुनने को। थिरक उठे संगीत प्रीति का, गीत चलें सपने चुनने को।। महक उठे धरती का कण-कण, बीते मदिर राग में क्षण-क्षण, पत्ती-पत्ती खुली हवा में, लग जाए इतराने में।। ऐसा बाग .... ।।२।। कलियों को खिल जाने देना, फूलों को मुस्काने देना। जो भी आना चाहे साथी, खोलो फाटक आने देना।। चौकीदारों से कह देना, सबके कोप तलक सह लेना, कोई रोक-टोक मत...
एक औरत
कविता

एक औरत

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** कितना गम दबाती मन मै, कितना गम वह पी जाती, ओरौ के खातिर जीती है वह, औरों के खातिर ही मर जाती? पल-पल जीती पल-पल मरती हर क्षण गिरकर फिर संभलती, अपने साहस अपने बल पर, गिरती पड़ती फिर उठती। मान, अपमान, नफरत,तिरस्कार, सब सहती जाती जीवन में। कभी सोचती कभी उलझन है, कभी उलझन को सुलझाती! कभी खुद उलझन में पढ़ जाती, हंस देती सब सह कर वह तो, नही खोलती मन का राज। हर नारी की गाथा है यह, हर नारी की परीक्षा है, चाहे रानी महारानी हो जग में, चाहे गरीब भीलनी वन की हो। चाहे सीता सतवंती नारी हो, चाहे प्यारी राधा रानी हो , चाहे सती सावित्री मीरा हो, अग्नि परिक्षा नारी की हो। "नारी की गाथा नारी की पहचान बखान कर रहा इतिहास है आज" परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (...
चित्रण
कविता

चित्रण

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चित्र पट सा चित्रित होता रवि रश्मि का चित्रांकान पीत, श्वेत, रक्तिम रश्मि का फैला आगन चीर सुनहरी लाल चुनरी निलाभ किनारी गगन की आती जाती नभ पटल मे सुन्दर नारी रत्न सी लहराती, फहराती आंचल चहू ओर दसो दिशा ऐ करती चन्चल। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०२३" से सम्मानित हैं। घोषणा पत्र : मैं यह...
तीजा के तिहार
आंचलिक बोली, कविता

तीजा के तिहार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) आवत होहीं गियाँ ओ, मोर भाई, ददा मन लेवाए ल। पोरा अउ तीजा के तिहार म, मइके जाहूँ मनाए ल।। मने-मन कुलकत हँव, फुरफुंदी बनके उड़ावत हँव। कपड़ा ल जोर डारेंव, बिहनिया ले सोरियावत हँव।। घेरी-बेरी निकल के देखत हँव, गली-खोर, अँगना म। बारह महीना के परब ए, बंधागेंव मया के बंधना म।। दाई के मँय ह दुलौरिन बेटी, ददा के सोनपरी आँव। भाई के मँय ह मयारु बहिनी, परुवार के जुड़ छाँव।। डेहरी म खड़े हे मोर बाबू, ए दे आगे मोला लेगे बर। जावत हँव लइका मन ल धरके, ए जी संसो झन कर‌।। भात रांध के तंय खाबे, हरिबे घर-कुरिया म अकेल्ला। कहूँ मोर सुरता आही त, ससुरार भागत आबे पल्ला।। बड़े किसान के तंय बेटा, बइला मन ल सुग्घर सजाबे। बइला दउँड़ खेल म जीतके, बइला के आरती उतारबे।। दीदी अउ बहिनी मन संग, सुख-दुख के गोठ गोठियाहूँ। माथा ...
बिटिया
कविता

बिटिया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** माँ से बिटिया का स्नेह होता है लाजवाब बिटिया को सुलाती अपनी गोदी में लगता है जैसे फूलों के मध्य पराग हो झोली में। माँ की आवाज कोयल सी और बिटिया की खिलखिलाहट पायल की छुन-छुन सी लगता है जैसे मधुर संगीत हो फिजाओं में। माँ तो ममता की अविरल बहती नदी बिटियाँ हो जैसे कलकल सी आवाज निर्मल पावन जल की लगता है जैसे पूजते रहे सदियों से इन्हे। माँ होती चांदनी सी बिटिया हो सूरज की पहली किरण दोनों देती है रौशनी अपने-अपने पथ/कर्तव्य की लगता हो जैसे भ्रूण-हत्या का अंधकार हटा रही हो माँ-बेटी से जन्म लेते है कई रिश्ते ये होती है समाज का आधार दोनों के बिना होता है जीवन सूना लगता है जैसे इनमे बसती जीवन की सांस। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज...
आज गोकुल में बाजे बधावा
कविता

आज गोकुल में बाजे बधावा

प्रो. डॉ. विनीता सिंह न्यू हैदराबाद लखनऊ (उत्तरप्रदेश) ******************** आज गोकुल में बाजे बधावा जनम लिए नंद कुमार आज गोकुल में बाजे बधावा नन्द जी के आँगन, यशोदा जी के आँचल खेलें जग पालन हार जिसे देख दानव डर जाते दुष्ट दलन जाके निकट ना आते दुष्ट दलन जाके भय से काँपे तेरी दाँट से रह्यो घबराय, हे मैया जग पालन हार देव आदि जाको पार ना पाये ऋषि मुनि जिसे बाँध ना पाये तैने ऊखल से दियो बांध, हे मैया जग करतार ग्वाल बाल मिल मोद मनायें घर घर नाचें मंगल गायें ब्रिज नर नारी हर्षाए, जनम लिए जग पालनहार ब्रिज नर नारी हर्षाए, जनम लिए धन-धन भाग नंद बाबा के धन्य भाग यशोमति मैया के जाकी गोद में करें किलकार, हो खेलें जग पालन हार परिचय :- प्रो. डॉ. विनीता सिंह निवासी : न्यू हैदराबाद लखनऊ (उत्तरप्रदेश) व्यवसाय : नेत्र विशेषज्ञ सेवा निवृत, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष नेत्र विभ...
तिहार तीजा पोरा
आंचलिक बोली, कविता

तिहार तीजा पोरा

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता भादों महीना के तिहार तीजा पोरा! दाई, बहिनी मन ल रहिथे अगोरा! बछर म आथे बेटी माइ के तिहार, मइके जाए के करत रहिथे जोरा!! बरसत पानी करिया बादर छाय हे! भाई ह बहिनी ल तीजा ले आए हे! दाई के मया अउ ददा के दुलार ल, ठेठरी, खुरमी संग म धर के लाए हे!! भाई ल देख के बहिनी मुसकावत हे! मने मन म मइके ल सोरियावत हे! ले अब सुरु होगे तीजा के तियारी हे, गुलगुला भजिया, अइरसा बनावत हे!! मइके आके सुख दुख गोठियावत हे! जम्मों तिजहारिन करू भात खावत हे! नीरजला उपास रहे जम्मों उपासनिन, भोला शंकर कना माथ ल नवावत हे!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
दीवारें
कविता

दीवारें

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** दीवारें वही घर बनाती हैं जो मिलकर खड़ी होती है। तनहा पड़ी ईंटों की कोई पहचान नहीं होती।। नींव भले गहरी हो पर नफ़रते जब उनमें बोती है। गगनचुंबी नाम हो कर भी कभी आसमान नहीं होती।। तोड़ द्वेष की दीवारें आज नया विश्वास लिखें, हाथ दिलों पर रख कर प्यार का एहसास लिखें। लकीरें खींच कर रिश्ते मोहब्बत के बदनाम किए, दीवारों से ऊपर उठकर नभ में उड़ते परवाज़ लिखें। दीवारें चौकस ही रहीं जब तलक दरवाजा एक दिखे, खुशियां महफूज ही रही जो इरादे सबके नेक दिखे। निज स्वार्थ की खातिर झरोखे तुम ही बनाया किए, वो निगेहबान दीवार भी छलनी कैसे दर्द को लिखें। दीवारें सख्त जो है ये पुरानी सोच तुम्हारी दिखे, खड़ी कहां इनको करें ये जरूरत हमारी दिखे। घर भी इन्हीं से और नफरत भी इन्हीं से है, आओ सजाकर इनको प्यार का संदेश लिखें। परिचय :- सूर्यप...
भंवर
कविता

भंवर

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* एक ऐसे समय में जब काला सूरज ड़ूबता नहीं दिख रहा है और सुर्ख़ सूरज के निकलने की अभी उम्मीद नहीं है एक ऐसे समय में जब यथार्थ गले से नीचे नहीं उतर रहा है और आस्थाएं थूकी न जा पा रही हैं एक ऐसे समय में जब अतीत की श्रेष्ठता का ढ़ोल पीटा जा रहा है और भविष्य अनिश्चित अति असुरक्षित दिख रहा है एक ऐसे समय में जब भ्रमित दिवाःस्वप्नों से हमारी झोली भरी है और पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक रही है एक ऐसे समय में जब लग रहा है कि पूरी दुनिया हमारी पहुंच में है और मुट्ठी से रेत का आख़िरी ज़र्रा भी सरकता सा लग रहा है एक ऐसे समय में जब सिद्ध किया जा रहा है कि यह दुनिया निर्वैकल्पिक है कि इस रात की कोई सुबह नहीं और मुर्गों की बांगों की गूंज भी लगातार माहौल को खदबदा रही है एक ऐसे समय म...
संकल्प
गीत

संकल्प

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** संकल्पों को शीश झुकाकर, संस्कार को ग्रहण करो। सद्गुण की माला फेरो तुम, सत्कर्मों को वरण करो।। मर्दन करके सदा दंभ का, एक नया इतिहास गढ़ो। पौरुष से जीतो इस जग को, सत्य राह पर सदा बढ़ो।। कुंठित मन के भाव त्याग कर, नित उत्तम आचरण करो। अंतर्मन विश्वास जगा कर, साहस संयम धैर्य रहे। शोषित जन के दग्ध हृदय में, शीतल जल भी स्निग्ध बहे।। दीनों के तुम बनो मसीहा, तन की पीड़ा हरण करो। स्वारथ के बादल उमड़े हैं, मानवता की ज्योति जगा। चीर-हरण रोको धरती का, चंदन माटी माथ लगा।। दुष्ट दानवों का वध करके, वीरों का अनुसरण करो। मायावी आँधी को रोको, छल- प्रपंच से सदा बचो। निष्ठाओं की डोर पकड़कर, कोमल सुर संगीत रचो।। सद्भावों की बाजे सरगम, यह प्रण तुम आमरण करो। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवास...
मिथ्या फड़फड़ाहट
कविता

मिथ्या फड़फड़ाहट

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** क्यों? अब टूट गया अहम का वहम तुम तो कहते थे सब कुछ मैं ही हूं। मेरे इशारे पर ही सब चलता है मैं न चाहूं तो यहां पत्ता भी न हिलता है क्या ? अब भी कोई पूछता मांगता है? शायद नहीं क्योंकि जिद्दी व्यक्तित्व हर किसी को रास नहीं आता है। बीत गया न वक्त चली गई न सत्ता आहत कर रहे है न अपने क्या अब भी बचा है अहम का वहम? परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित क...
उस पार
कविता

उस पार

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** क्या होगा मृत्यु के बाद उस पार जब बुझ जायेंगें आँखों के दिए क्या उजाला दिख पाएगा उस पार?? जब धड़कने शांत हो जाएंगीं, जितना जीवन जी लिया, क्या उतना ही मरना होगा, क्या जिया जीवन साथ ले जाना होगा उस पार?? क्या कर्म किया क्या धर्म था, यह सब भी निभाना होगा उस पार? क्या यात्रा की तैयारी कर जाना होगा जैसे जीवन भर सहेजते रहे, बटोरते रहे, समान बांधते रहे जरूरी चीजों के हर यात्रा पर कुछ जरूरी बाँध कर ले जाना होगा उस पार?? बही खाता, हिसाब-किताब में जीवन बिताया कुछ थोड़ा खुद मरे कभी कोई निर्दोष मरा ये सारी वसीयत भी ले जाना होगा उस पार?? सच-झूठ, राग द्वेष की परिभाषा नासमझ बन समझता रहा ये जीवन क्या इसका अर्थ समझ आएगा उस पार? जीवन के बाद मृत्यु तय है किसकी जीत होगी किसकी हार जीत परमा...
बंधन की मोहताज नहीं
कविता

बंधन की मोहताज नहीं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** भाई बहन का रिश्ता अटूट होता है, इस रिश्ते को किसी धागे के बंधन की आवश्यकता नहीं होती, जब मुसीबत में हो भाई तो बहन की आंखों में नींद नहीं होती, बहन-भाई का रिश्ता दिल का होता है जिन्हें जगवालों को दिखाने की जरूरत क्यों, यह भावनात्मक जुड़ाव इतना खूबसूरत क्यों, नैतिकता से परिपूर्ण इस रिश्ते में दुराव, छिपाव, साम-दाम-भेद के लिए रत्ती भर जगह नहीं होता, जगह होता है तो प्यार दुलार अपनत्व की, यह संबंध है पंचरत्न सी, बहन कभी जान नहीं मांगती मगर भाई जान लुटाने को भी तैयार रहता है, गर हो भरोसा चाहत की बयार होता है, इस ताउम्र के बंधन के बीच किसी धागे का खुमार मत लाओ, किसी के मंत्र या किसी के व्यापार के ओछी सोच को परवाज दे न फैलाओ। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत...
मां तुम्हे प्रणाम
कविता

मां तुम्हे प्रणाम

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मां सारे पुण्यों का परिणाम हो तुम। जीवन दिया इस संसार में। जब आया तो मेरे कोरे मन पर, पहला नाम हो तुम। तुम्हारी, ममता त्याग, तपस्या, कर्तव्यनिष्ठा का परिणाम हें हम। हमेशा रहती यादों में अब भी, भूलीं बिसरी स्मृतियों में। छोड़ दिया हमारा साथ जल्दी ही, अब यादें बाकी है‌। सब-कुछ पाकर भी, अब दिल का कोना खाली है। बीते दिनों की यादें कर, अब भी आंखें नम हो जाती है। जन्म जयंती पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि सादर चरण स्पर्श नमन ... परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
तुम अजेय हो
कविता

तुम अजेय हो

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सुनो! स्वयं के विश्वासों पर, ही जगती में टिक पाओगे। गांँठ बाँध लो मूल मन्त्र है, यही अन्यथा मिट जाओगे।। साहस - शुचिता से भूषित तुम, धरती माँ के दिव्य पुत्र हो। घबराहट से परे शौर्य की, सन्तानों के तुम सुपुत्र हो।। तुम अतुल्य अनुपम अजेय हो, बुद्धि वीरता के स्वामी हो। स्वर्ण पिंजरों के बन्धन से, मोह मुक्ति के पथगामी हो।। चलते चलो रुको मत समझो, जीवटता का यह जुड़ाव है। संघर्षों में मिली विफलता, मूल‌ सफलता का पड़ाव है।। करते हैं संघर्ष वही बस, पा पाते हैं मंजिल पूरी। भीरु और आलसी जीव की, रहती हर कामना अधूरी।। भरो आत्मविश्वास स्वयं में, स्वयं शक्ति अवतरण करेगी। बैशाखी पर टिके रहे तो, कुण्ठित आशा वरण करेगी।। घोर निराशा भरी कलह का, जीवन भी क्या जीवन जीना । तज कर निर्मल नीर नदी का, गन्दी नाली...
घूंघट
कविता

घूंघट

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** सिमट गया घूंघट देहली तक, सिमत गया घूंघट घर द्वार, सिमट गया घूंघट होठों पर, सिमट गया चित्रों में आज। घूंघट में अब लाज छुपी नहीं, घूंघट में अब शान छुपी नहीं, मान सम्मान की बात छुपी नहीं, घूंघट में अब शर्म छुपी नहीं। घूंघट में अरमान छुपे नहीं , घूंघट में कुछ बात छुपी नहीं, घूंघट में अब मान छुपा नहीं, घूंघट में कुछ राज छुपा नही। घूंघट में अब मान बिक रहा, घूंघट में सम्मान बिक रहा, घूंघट अब बाजार बन रहा, घूंघट अब व्यापार बन रहा। घूंघट कवियों की वाणी मै, घूंघट कविताओं की लेखनी मै, घूंघट बड़े बूढ़ों का मान, घूंघट राजपूतो की शान, मर्यादा और सम्मान का भाव। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूम...
स्वप्न या हकीकत
कविता

स्वप्न या हकीकत

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** एक तरफ कुंआ और एक तरफ खाई है, देखो चोर चोर मौसेरे भाई है, एक पुचकारता है एक दहलाता है, मरे कटे कोई भी इनका क्या जाता है, बातों में एक उखाड़ता है एक बसाता है, एक का छुड़ाने का नाटक एक फंसाता है, हमारे जीवन की बागडोर इन्हीं ने पकड़ा है, हमारी मस्तिष्क को इनकी चालों ने जकड़ा है, एक संयम की मूरत दूजे की चालबाजी, अंत में आधा इनका और उनकी होगी आधी, चक्र का ये प्रणेता देखो धुरंधर है, शक्ल से बदसूरत और चालें भयंकर है, ये इनकी राजनीति और यही कूटनीति, देखना न चाहे एका चलाते हैं फुटनीति, बनते हैं पथप्रदर्शक और बनते पुरोधा है, ये अपनी राह बनाने घर बहुतों का खोदा है, लोगों को मूर्ख बनाना इनकी परंपरा है, पद प्रतिष्ठा इनको मिलता अनुकंपा है, सच्चाई न पास इनके और न नैतिकता है, उलजुलूल बोल है देत...
भाई-बहन का प्यार
दोहा

भाई-बहन का प्यार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राखी की फैली महक, बँध जाने के बाद। रक्षा की थी बात जो, फिर से वह आबाद।। नेहभाव पुलकित हुए, पुष्पित है अनुराग। टीका, रोली, आरती, सचमुच में बेदाग।। मीलों चलकर आ गया, इक पल में तो पर्व। संस्कार मुस्का रहे, मूल्य कर रहे गर्व।। अनुबंधों में हैं बँधे, रिश्तों के आयाम। मानो तो बस हैं यहीं, पूरे चारों धाम।। सावन तो रिमझिम झरे, बाँट रहा अहसास। बहना आ पाई नहीं, भैया हुआ उदास।। एक लिफाफा बन गया, आज हर्ष-उल्लास। आएगा कब डाकिया, टूट रही है आस।। भागदौड़ बस है बची, केवल सुबहोशाम। धागे ने सबको दिया, नवल एक पैग़ाम।। खुशियों के पर्चे बँटे, ले धागों का नाम। बचपन है अब तो युवा, यादें करें सलाम।। दीप जला अपनत्व का, सम्बंधों के नेग। भावों का अर्पण "शरद", आशीषों का वेग।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म...
असहजता
कविता

असहजता

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** संघर्ष है तो हारने के डर से फिर विराम क्यों? राम है तो औरों से फिर काम क्यों? ज्ञान है तो फिर अज्ञानता का भार क्यों? जीत की तलब है तो फिर हार का खौफ क्यों? अजनबी हूँ तो फिर इतना अपनापन क्यों? अहम है तो फिर वहम भरी बातें क्यों? सहज हो तो फिर व्यवहार में असहजता क्यों? ज्ञात है सब तो फिर अज्ञात का बोध क्यों? जीवंत हो तो फिर मरण से भय क्यों? परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाच...
रौद्र नाद
कविता

रौद्र नाद

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** हे पाखण्ड खण्डिनी कविते ! तापिक राग जगा दे तू। सारा कलुष सोख ले सूरज, ऐसी आग लगा दे तू।। कविता सुनने आने वाले, हर श्रोता का वन्दन है। लेकिन उससे पहले सबसे, मेरा एक निवेदन है।।१।। आज माधुरी घोल शब्द के, रस में न तो डुबोऊँगा। न मैं नाज-नखरों से उपजी, मीठी कथा पिरोऊँगा।। न तो नतमुखी अभिवादन की, भाषा आज अधर पर है। न ही अलंकारों से सज्जित, माला मेरे स्वर पर है।।२।। न मैं शिष्टतावश जीवन की, जीत भुनाने वाला हूँ। न मैं भूमिका बाँध-बाँध कर, गीत सुनाने वाला हूँ।। आज चुहलबाज़ियाँ नहीं, दुन्दुभी बजाऊँगा सुन लो।। मृत्युराज की गाज काल भैरवी सुनाऊँगा सुन लो।।३।। आज हृदय की तप्त वीथियों, में भीषण गर्माहट है। क्योंकि देश पर दृष्टि गड़ाए, अरि की आगत आहट है।। इसीलिए कर्कश कठोर वाणी का यह निष्पादन है। सुप्...