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पद्य

करोना
कविता

करोना

पूजा महाजन पठानकोट (पंजाब) ********************  काश ऐसे दिन जल्द आएं कि जीवन से करोना का नामो निशान मिट जाए फिर वही पुराने दिन लौट आए खुशियों से जीवन का हर कण-कण मुस्काए काश ऐसे दिन जल्द आए .... परिचय :- पूजा महाजन निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको यह ...
हे नववर्ष अभिनन्दन है..
कविता

हे नववर्ष अभिनन्दन है..

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** हिन्दू नववर्ष तुम्हारा अभिनन्दन है हर्षित है जग सारा करता तुम्हारा वन्दन है सूरज की नवल किरणें करती जग वन्दन है अभिनन्दन-अभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा वन्दन है फूले किंशुक पलाश फूली सरसों पीली फूले फूल तीसी नीली-नीली हुलसित पक गई खेतों में गेहूँ की सुनहरी बालियाँ कमल खिली लगी मुस्कुराने ताल हुई हर्षित बागबां महक उठे जब खिले फूल फूलन खेतों में मेड़ों में सुवासित कछारन कूलन अतृप्त मन प्यासी धड़कन मिटने लगी जलन आनन्दित होकर चुन चुन गजरा बनाई मालिन धरा ने ओढ़ ली सुनहरी चादर की किरणें मोतियों ज्यों चमकने लगी पत्तों में ओस की बूंदें लहक लहक लहकने लगी कानों के बूंदें स्मित रक्तिम अधरों पर मुस्कुराती जल बूंदें सतरंगी रंगों से रंगने लगी घर आंगन और बाग बहकने लगी आम अमरैया दहके मन की आग फूले फूल टेसू के ऐसे ...
मेरी परछाई
कविता

मेरी परछाई

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** मेरी परछाई बन मेरे साथ रही मेरी गुड़िया अब तक ना जाने पति का घर देखते ही क्यूं मुझसे दूर हो गई क्यूं मेरे आंचल को उदास कर गई वो उसका आंचल में छिप जाना और लोगों के देख घबरा कर पल्लू को जोर से पकड़ लेना आज मेरी परछाई क्यूं मुझसे दूर हो गई मेरा आंचल उदास कर गई। वो छुई मुई सी कली का रेत के घरौंदे बनाना भाई के दोस्तों संग क्रिकेट खेलना कुत्तों को दूर से ही देख घबरा जाना घर के अंदर ही बात बात पर इजाज़त लेना मुझे किसी के साथ देख कर ईर्षा करना घर में मेरी छवि बन इठलाना चुपके-चुपके मेरी नकल करना आज मेरी परछाई मुझसे दूर हो गई क्यूं मेरा आंचल को उदास कर गई.... परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है...
नौ दिन के त्यौहार नवरात्रि
आंचलिक बोली

नौ दिन के त्यौहार नवरात्रि

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी नौ दिन के त्यौहार हे माता के लगे दरबार हे, संकट के हराईया, सुख सम्रध्दी के देवईया माता के त्यौहार हे.! मंदिर देवालय सब दो साल ले बंद रिहिस भक्तों के मन मे दुख रिहिस, इही साल कृपा ला बनादे संकट ला हटा दे, सबके जीवन मा खुशियां बना दे.! लगे हे दरबार माता के सब भक्तन खडे हे झोली फयलाये, माता के कृपा आपार हे जइसे करबे वइसे फल मिलही तभी मानव जीवन के उध्दार हे.! नव दिन ले नव रुप धरतस दुष्टो के संघार करतस, आती बेरा खुशी लाथस विदा के बरे आसु आ दे जातस..!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं...
फासले
कविता

फासले

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जिंदगी की राहों में मिले कई मुकाम थे गुजर गए, गुजर गए वो फासले हर कोई नया मिला हर किसी ने शिकवे किए फिर, फिर दिल के आईने में झांक कर कर गए फासले चले गए दूर बहुत दूर रह गए अकेले कल जो अपने साथ थे। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक ...
लेखनी राम लिखेगी
भजन, स्तुति

लेखनी राम लिखेगी

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** ‌ आज लेखनी राम लिखेगी ‌ है राम में चारों धाम लिखेगी... ‌ ‌ कुल पुरखों की रीत निभाने ‌ पितृ वचनबद्ध हो जिसने ‌ त्याग दिया सर्वस्व पलों में ‌ ऐसा अनुपम काम लिखेगी.. ‌ आज लेखनी राम लिखेगी ! ‌ ‌वानर, रिक्ष, केवट, शबरी के, ‌ रज लपेटती गिलहरी के ‌ भील निषाद, ऋषि, असुरों के .. ‌ हैं सभी के श्री राम लिखेगी.. ‌ आज लेखनी राम लिखेगी! ‌ ‌पाहन को भी मुक्त किया था ‌ छूकर उसको मोक्ष दिया था ‌ माता कहकर मान दिया था ‌ वो नारी का सम्मान लिखेगी.. ‌ आज लेखनी राम लिखेगी! ‌ ‌पूरब पश्चिम दक्षिण उत्तर ‌ निशा सांध्य और भोर दोपहर ‌ इस सृष्टि के रज कण कण पर ‌ स्वयं सिद्ध श्री राम लिखेगी.... ‌ आज लेखनी राम लिखेगी! ‌ ‌झूठ क्रोध और लोभ नहीं था ‌ प्रजा प्रमुख थी राज गौण था ‌ रीति नीति से ओतप्रोत था ‌ मर्यादा पर्याय लिखेगी.. ‌...
मेरा हिन्दू नववर्ष
कविता

मेरा हिन्दू नववर्ष

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विक्रम संवत में है हिदू नववर्ष चैत्र शुक्ल का है प्रथम दिवस भक्ति से शक्ति यह फैलाता है नव संवत्सर कहलाता शुभदिन सृष्टि सृजन किया था ब्रह्मा ने हिन्दूराज्य विस्तारा था शिवा ने राज्यस्थापन विक्रमादित्य का राजा राम अवध अवतरित हुए फसलें पकती जब बसन्त आता ये निराला जन्म नव भाव जगाता धानी चुनरियाँ माँ धरा ओढ़ लेती झूलेलाल अवतरण भी छा जाता गुड़ीपड़वा पे पूरण पोली श्रीखंड नीमपर्ण मिश्री का करते हैं सेवन सुस्वास्थ्य कामना प्रभु से करते हैं परम्पराओं से ही होता है कल्याण वीणापाणि का करें आओ आव्हान विद्या बुद्धि वाणी कला का वरदान हर घर के द्वारे सज जाए वन्दनवारे हर इंसान बने भारत का अभिमान परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित...
आंखो से अभी तक उजाला न गया
कविता

आंखो से अभी तक उजाला न गया

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** "खिलौना समझ कर वो दिल तोड़कर जब चलते बने" दर्द ए दिल को मेरी ये कलम से शब्दों मे ढाला न गया गम के निकले इन अश्कों को आंखों से निकाला न गया। उसने दिल को दर्द दिया ही इसलिए यारों क्योंकि उससे मेरे ये इश्क का इजहार संभाला न गया। वफा है या बेवफाई है हमने भी समझने में जल्दी की है वक्त रहते उसके इस दिल को खंगाला न गया। नियत उसके प्यार की आंखों में पढ़ नहीं पाए हम जब किया उसने प्यार का इजहार हमसे भी टाला न गया। खिलौना समझ कर वो दिल तोड़ कर जब चलते बने इस नाजुक दिल को फर्श पर हमसे भी उछाला न गया। हमने तो आबे हयात समझा था उसके इश्क को यारो मगर ये जहर निकला दिल की आंच से उबाला न गया। इश्क में इंसान अंधा होता है हमने भी ये सुना है यारो मगर ये दिले मजबूर की आंखों से अभी तक उजाला न गया। परिचय :- सीतारा...
चाँद से मुलाक़ात!
हिन्दी शायरी

चाँद से मुलाक़ात!

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** इश्क में कोई शिड्यूल कास्ट नहीं होती, इसमें कोई छुआछूत की बात नहीं होती। जवां दिल मचल जाता है कहीं पर यूँ ही, पर दिन में चाँद से मुलाक़ात नहीं होती। जिस्म तन्हा, बेचारा जां भी तन्हा क्या करे, छाती हैं काली घटाएँ, बरसात नहीं होती। टुकड़े-टुकड़े में बीत जाता है दिन अपना, मगर मुझसे अब वो खुराफ़ात नहीं होती। हुस्न की पनाह में इश्क लेता है साँसें, उस संगमरमरी बदन की जात नहीं होती। जिस सूरत को मैंने देखा कहीं और नहीं, बात इतनी है उससे मुलाक़ात नहीं होती। कुदरत हमारी जरुरत की हर चीज बख्शी, लोग रहते घमंड में, बस बात नहीं होती। कत्ल कर देती हैं बिना तलवार से नजरें, दूर-दूर रहने से रंगी रात नहीं होती। प्यार के कितने भी टुकड़े तुम कर डालो, मगर उसकी चाहत कभी कम नहीं होती। मजे में रहो औ खुश रहो ऐ...
तू शीतल मंद समीर
कविता

तू शीतल मंद समीर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** तू शीतल, मंद समीर बनी, ठंडक मुझको पहुंचाती है। जब क्रोधित मैं हो जाता हूं, तू प्यार के नग्में गाती है।। ठंडा करना तेरा गुण है, तू गहरा शांत सरोवर है। मैं सरिता का चंचल चेहरा, निर्भीक बनी तू पत्थर है।। हर चोट सहज ही सह लेती, हंसती मूरत मदमाती है।। जब क्रोधित मैं हो जाता हूं, तू प्यार के नग्में गाती है।। संतोषी है तू साबिर है, खुश उसमें जो मिल जाता है। राजी तू रब की मर्जी पर, हर मौसम तुझ को भाता है।। घर भर को तृप्त करें पहले, कब भूख तुझे तड़पाती है। जब क्रोधित मैं हो जाता हूं, तू प्यार के नग्में गाती है।। ठंडी पट्टी जब माथे की, तपते तन की बन जाती तू। छू मंतर कर देती दुख सब, यूँ चारागर कहलाती तू।। "अनंत" तू ममाता की देवी, शीतलता तेरी थाती है। जब क्रोधित मैं हो जाता हूं, तू प्यार क...
मौसम संमदर किनारा
कविता

मौसम संमदर किनारा

अलका जैन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मौसम संमदर किनारा मेहबूब पैसै लोक डाउन ने सब पर पानी फेरा करोना जीते जी मार डाला यार मंझधार में साथ रहे किनारे पर वो अजनबी बन गया हाय रो मत दुनिया में होता लाख बहाने मरने के यार तू सिर्फ एक सहारा जिंदगी का बस मै नहीं तू ही तू कस्मे वादे प्यार वफा बेकार जिस्म की चाहते सबसे पहले नया दौर मेहबूबा चाहे इश्क नादानी करें महफ़िल यार दोस्त खुशी पैमाना दुनिया बदला पैमाना मंहगी वस्तु खुशी दे तेरा को देख खुश कोई लहू संग अश्क बह रहे अश्क बाहाये समझा कौन दर्द ए मुफलिस दर्द-दर्द और दर्द मुफलिस की जिंदगी हुनर को दाद दे कौन माया दिवानी कला को मान दे कोन हुनरमंद कैसे हूनर निखारे यारो अश्क तेरे ही नहीं दीवाने दुनियाभर की आंखों नम क्या तू क्या जाने अश्क पीता जा और जी मिलेगी मंजिल एक दिन तुझे भी भटक घूमना ना छोड़ हुनर...
दर्दे-ऐ-दिल
ग़ज़ल

दर्दे-ऐ-दिल

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** दर्दे-ऐ-दिल, किस को सुनाऊँ मैं गुजर रहे है दिन, कैसे बताऊँ मैं, तन्हाइयों से तंग आ गया जनाब, हर बात, अब कैसे समझाऊँ मैं। मजे लोग लेगे ये सोच चुप रहता, खुद का दिल खुद से बहलाऊँ मैं। दुनिया मे मुझे गम, सभी ने दिऐ है इल्जाम अब ये किस पे लगाऊँ मैं। कुरेद रहे है जख़्म जो बारबार मेरे बेरहम जख्मो को कैसे दिखाऊँ मैं। खुश है देख मुसीबत मे रक़ीब मेरे उनसे बताऐं कैसे प्यार निभाऊँ मैं। शब्दार्थ :- रक़ीब :- प्रतिद्वंद्वी परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) कार्य : राजकीय सेवा, पद : वरिष्ठ तकनीक सहायक, सरदार पटेल मेडिकल कोलेज, बीकानेर। रुचि : लेखन, आकाशवाणी वार्ताकार, सम्मान :...
वक्त का इम्तिहान
ग़ज़ल

वक्त का इम्तिहान

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वक्त का इम्तिहान होता है कितना गहरा निशान होता है आंधियों में बचा कहां है कुछ वाकया ए बयान होता है मुद्दतों बाद इतनी शोहरत हो कोई इक खानदान होता है मुफलिसी में न छत न दरवाजा ना कोई आसमान होता है अपनें बच्चों की परवरिश खातिर बाप तो बागवान होता है परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में अभिरुचि विशेष : आध्यात्मिक प्रवक्ता एस्ट्रोलॉजर। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्...
टेसू के फूल
कविता

टेसू के फूल

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** क्या तुम अश्रुसिक्त नयनों की लालिमा हो ? अस्त होते अलसायी सूर्य की गरिमा हो? क्या किसी प्रज्वलित ज्वाला की धधक हो? शूरवीर योद्धा की रक्तरंजित तलवार हो ? जो कुछ भी हो एक टीस सी उठती है तुम्हें देखकर ओ टेसू के फूल पर्णहीन हो, दिखते हो कितने गरिमाशील, होली के आगमन के प्रतीक, चंद दिनों के मेहमान, क्षणिक ख़ुशी के मीत कहाँ कमल का फूल कहाँ टेसू एक कीचड़ का मित्र दूसरा गगन का दीप एक लक्ष्मी का वास दूसरा दिलाता होलिका की याद पर है दोनो फूल लालिमायुक्त, क्षणिक, झणभंगुर। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत द्वारा ...
क्या बना दिया ?
कविता

क्या बना दिया ?

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** देख रहे हो ऐसे यह तुमको नहीं ख़बर यह आद'मी था कभी धुआं बन गया ।। जिस मांझी ने हमको बताया तू है कहां ? उस मांझी ने दिखाया मेरा हुनर बन गया ।। पल भर की खुशियां किसको नहीं पता उन रेशमी धागों ने जीवन बना दिया ।। मैं जा रहा था अकेला इक रस्ते से कहीं इक खिड़की ने देखा दिन बना दिया ।। सोच रहे हो जिसको वो नहीं आज कल मसअ'ला देखते ही वीराना बना दिया ।। नज़रों का तो हैं यह सारा खेल मेरे दोस्त मैं सोचने लगा कि तुझे क्या बना दिया ।। यह तुम्हारा सोचना हैं बड़ी सोचने की बात तू समझा नहीं तुझे आशिक़ बना दिया ।। उस साख से पत्ता टूटते ही लगी ख़बर इक घर के दीए को तारा बना दिया ।। आई हवाएं सुरीली जैसे कोई मीत संगीत विलक्षण तेरी यादों ने क्या-क्या बना दिया ।। परिचय :-  भारमल गर्ग "विलक्षण" निवासी...
बैठती है
ग़ज़ल

बैठती है

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी गया, (बिहार) ******************** न यों फूलों पे सुर्खी बैठती है तुम्हारे लब पे तितली बैठती है फिराया था कभी जो उंगलियां मैं ना अब बालों में कंघी बैठती है जो तुम पैवस्त हमे में हो गए हो दिसंबर की भी सर्दी बैठती है मुझे बाहर से मुश्किल है समझना बहुत अंदर से हल्दी बैठती है ना उस कॉलेज में पढ़ना मुझे है जहां बाहर से लड़की बैठती है परिचय :-  डॉ. जियाउर रहमान जाफरी निवासी : गया, (बिहार) वर्तमान में : सहायक प्रोफेसर हिन्दी- स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, मिर्जा गालिब कॉलेज गया, बिहार सम्प्रति : हिन्दी से पीएचडी, नेट और पत्रकारिता, आलोचना, बाल कविता और ग़ज़ल की कुल आठ किताबें प्रकाशित, हिन्दी ग़ज़ल के जाने माने आलोचक, देश भर से सम्मान। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
जीवन में रंग भर जाए
कविता

जीवन में रंग भर जाए

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मैं तेरे प्यार में रंग जाऊं होली के रंगों की तरह मेरे जीवन में बहार आ जाए वसन्त के ऋतु की तरह। मैं तेरा हमसफर बन जाऊँ बागों के बागबान की तरह मेरा जीवन भी महक जाए फूलों के खुशबू की तरह। मैं तेरा सिंदूरी रंग बन जाऊँ पलास के फूलों की तरह मेरे जीवन मे रंग भर जाए रंगीले फागुन की तरह। मैं तेरा संगीत बन जाऊँ फागों के सरगम की तरह मेरा मन-मयूरा झूम जाए बांवरा भ्रमरों की तरह। मैं तेरा भ्रमर बन जाऊँ फूलों के दीवानों की तरह ये तनमन मदहोश हो जाए मधु के पीने वालों की तरह। मैं तेरा प्रेम दूत बन जाऊँ वसन्त के कोयल की तरह मेरे जीवन में मदहोशी आए अमराई के बौरों की तरह। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
सब कुछ बदला-बदला देखा
कविता

सब कुछ बदला-बदला देखा

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** इक दिन... अपनों, सपनों और सफर से कुछ उकता कर कुछ घबराकर.. ‌ खुद ही खुद से मिलने पहुंची .. ‌ तो सब कुछ बदला-बदला देखा.. सोचा था सब सूना होगा, पर... ‌तनहाई को बातें करते ‌ खा़मोशी को गाते देखा! दम तोड़ते द्वेष देखा अवसादो को हंसते देखा! सब कुछ बदला-बदला देखा!! ‌ ‌लगा सिसकते होंगे घाव, ‌पर... ‌ज़ख्म तुरपते कांटे देखा, ‌ दुविधा को भरमाते देखा! व्यथा सुलाती नींदें देखी गम को लोरी गाते देखा सब कुछ बदला बदला देखा ‌ ‌लगी खोजने मैं क्या हूं? तो... बाधा की जड़ 'मैं'को देखा इस जीवन के मर्म को देखा परमेश्वर के रूप को देखा ‌परमशांति के चरम को देखा ! सब कुछ बदला-बदला देखा!! खुद ही से जब मिलकर आई.... ‌भ्रम नहीं सब यथार्थ देखा स्वार्थ नहीं परमार्थ देखा सब में मैं हूं सब मुझ में है ‌ सब जन में अपने को देखा!...
हौसला पंछी का पिंजरा
कविता, छंद

हौसला पंछी का पिंजरा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** छंद काव्य उमर नही होती है जिनकी, फिर भी शैल उठाया है रखते पास हौसला पंछी, पिंजरा भी उड़ाया हैं। जब होनहार बिरवान सुना, हर पीढ़ी सुनते आए किसी का दायित्व भी बनता, खुद से वो कितना गाए तकदीर लिखाकर जो आता, खून पसीने की खाए बेगानों की बात नहीं थी, अपनों से धोखे पाए नौ मन तेल बिना ही कैसे, तिगनी नाच कराया है। दिल में नफरत दीवारें थीं, फिर भी साथ बिठाया है। उमर नहीं होती है जिनकी, फिर भी शैल उठाया है। रखते पास हौसला पंछी, पिंजरा भी उड़ाया है। धोखा विश्वास नदी पाट से, दोनों अलग किनारे हैं दोनों मिल जाए मनुष्य को, तकदीरों के मारे हैं बनती वजह लिहाज चाशनी, सदा समंदर खारे हैं स्थिर जीवन कबूल नहीं फिर, मानो बहते धारे है तिनका मोरपंख बन जाए, सिया कटार बनाया है। अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखे, अल्प धन ही कमाया है। उमर नहीं होती ...
यादें मेरे गांव के
कविता

यादें मेरे गांव के

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** यादें मेरे गांव के आने लगे हैं, मिट्टी मेरे गांव के बुलाने लगे है बचपन की यादें, बसी हैं गांव में, खेले हैं खेल बरगद की छांव में यादें मेरे गांव के आने लगे है...! पहली बारिश में जमकर नहाना घर की छत से पतंग को उड़ाना नदि, नहर में डुबकियाँ लगाना कागज की नाव पानी में बहाना यादें मेरे गांव के आने लगे है...! रेत में अपना आशियाना बनाना किचड़ में मस्ती से खेल खेलना हाथो से मिट्टी के खिलौने बनाना बरगद के बरोह में झूला झुलना यादें मेरे गांव के आने लगे है...! पेड़ो, पौधों में पक्षी का चहकना घर आंगन में तुलसी का महकना गर्मी में घर के आँगन में सोना ठण्ड के दिनों में अलाव जलाना यादें मेरे गांव के आने लगे है...! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीस...
रंग
कविता

रंग

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** लाल गुलाबी नीले पीले बहु रुप होते हैं रंग, सँवर है जाता जीवन इनसे, अपने जब होते हैं संग। धुलने ना पाएँ बारिश में, घनी धूप में उड़े नहीं, प्राण बिना जैसे हो जीवन, ये जब हो जाते बेरंग।। अलग-अलग रंगों का होता, जीवन में स्थान अलग, रंगों से यह प्रकृति है सुन्दर, अनुभूति ये हो न विलग। रंगों से खुशहाली आती, नयनों को भाते है रंग, दुख में फीके पड़ जाते हैं, सुख में गहराते हैं रंग। मुस्कानों में फूल से खिलते, आंसू संग बह जाते रंग, प्रेम दया भाईचारा भी, सिखलाते जीने के ढ़ंग। कुछ यादों, वादों भावों के, रंग मन को भीगा कर जाते, कुछ खट्टे कड़वे अनुभव, अवसाद के रंग सीना भर जाते। खाकी केसरिया है छाये, दुश्मन से होती जब जंग, स्वेत रंग शांति का होता, स्मृद्धि की हरी पतंग।। सिन्दूरी है प...
चुप-चुप सी शहनाई क्यों है?
ग़ज़ल

चुप-चुप सी शहनाई क्यों है?

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** चुप-चुप सी शहनाई क्यों है? महफ़िल में तन्हाई क्यों है? रात से पहले ही जिस्मों में, नींद चढ़ी अँगड़ाई क्यों है ? सोच हमारी एक सही पर, बात कहीं टकराई क्यों है? झूठों को आसानी सारी, मुश्किल में सच्चाई क्यों है? जो है अपने मन के मौजी, फ़िर उनकी रुसवाई क्यों है? अच्छे दिन वालों पर भारी, आख़िर ये महँगाई क्यों है? दावे दारी है असली की, नकली से भरपाई क्यों है? कुछ तो हो नम रहने वाली, सब आँखें पथराई क्यों है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : ...
क्या है ये दुनिया
कविता

क्या है ये दुनिया

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** ये दुनिया बहुत सुंदर है मुझे रहना नहीं आया। ये जिंदगी बहुत खूबसूरत है मुझे इसे जीना नहीं आया। दिया क्या कुछ प्रकृति ने इसे भोगने के लिए। मगर मेरे मन में तो कुछ और चल रहा था। इसलिए छोड़कर राजपाठ निकल गया मैं वन को।। बड़े ही भाग्यशाली है जो इस दुनिया में रहते है। और खुशी से जीते है इस खूबसूरत दुनिया को। भले ही समझे न लोग मुझे इस दुनिया में। मगर मुझे तो ये दुनिया बहुत ही सुंदर लगती है। इसलिए तन्हा रह कर मैं जिंदगी को जीता हूँ।। मुझे तो बस चिंता बहुत है दुनिया को बनाने वाले की। जिसने कितनी श्रृध्दा और मेहनत से इसे बनाया था। और इसमें पशु-पक्षी के संग इंसानो को भी बसाया था। पशु-पक्षी तो स्नेह प्यार से इसमें रहने लगे। मगर इंसान ही इंसान को इसमें समझ न सका।। सच कहे तो ये दुनिया बहुत सुंदर है। इसमें जीना औ...
जीवन सुख-दुःख का मेला
कविता

जीवन सुख-दुःख का मेला

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** जीवन सुख-दुख का मेला मेरे भाई, निशा भी होगी दिवस भी होगा | मत घबराना गमन आगमन से, कुछ संजय सुरेश के बस में न होगा || विधि ने जीवन जिसका रचा होगा, किस तिथि उद्भव, मोक्ष किस तिथि होगा | निशा भी होगी दिवस भी होगा, विषय न संजय का न सुरेश का होगा || मिट्टी तेरी मेरी तो धरा से मिलेगी, संबंध मेरे भाई जब तक है जीवन | आत्मा एक दिन परमात्मा से मिलेगी, है मोहमाया ही गृहस्थ जीवन || शाश्वत है आत्मा शाश्वत ही रहेगी, रहता है दिवस तो निशा भी रहेगी | चली है मेरे भाई जीवन चर्या चलेगी, रहता दिवस तो निशा भी तो रहेगी || नहीं दु:ख करें कभी तन नाशवान, आत्मानुभूति तो सदा ही रहेगी | सत्कर्म सदैव करते रहें तो, सुखानुभूति तो सदा ही रहेगी || परिचय :- सुरेश चन्द्र जोशी शिक्षा : आचार्य, बीएड टीजीटी (संस्कृत) दिल्ली प्रशासन निवासी : विन...
हो युद्ध विराम! युद्ध विराम!
गीत

हो युद्ध विराम! युद्ध विराम!

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** मानवता को मिले शान्ति और हो आराम हो युद्ध विराम! युद्ध विराम! ना डर हो किसी का और ना हो अत्याचार धरा पर ना रहे दुख दर्द और लाशों का भार घर छोड़ ना पड़े किसी का शरणार्थी नाम हो युद्ध विराम! युद्ध विराम! ना रोए बहू और ना फटे मां का कलेजा हे प्रभु! तू ही आ अमन और चैन देता बने होली की भोर और दिवाली की शाम हो युद्ध विराम! युद्ध विराम! ना खून की नदी और ना हो आसूं की बाढ ना छिपे मानव मानव से बंकरों की आड़ नितिन का प्रभु के चरणों में बारम्बार प्रणाम हो युद्ध विराम! युद्ध विराम! परिचय :- नितिन राघव जन्म तिथि : ०१/०४/२००१ जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर पिता : श्री कैलाश राघव माता : श्रीमती मीना देवी शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम...