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पद्य

जागो हे भोले…
भजन, स्तुति

जागो हे भोले…

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** "ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है, सत्यम शिवम् सुंदरम...। सत्यम शिवम् सुंदरम..., सुंदरम..., सुंदरम..., सत्यम शिवम् सुंदरम...।। जागो हे भोले..., जागो..., जागो..., जागो..., जागो हे भोले, जागो प्यारे, मेरे भोले कि सूरत, है निराली। जागो हे भोले...।। गणेश-कार्तिक पूत तुम्हारे, आदिगौरी मां संगिनी तुम्हारी। मन पावन करो, कामना पूर्ण करो, सदा नमन करूं, ओमकार प्यारे। जागो हे भोले...।। हाथो में त्रिशूल डमरूं बाजे, माथे पर त्रिनेत्र चंद्र सांजे, जटा में रहे गंग, डाले गले में भुजंग, नीलकंठेश्वर, महाकाल प्यारे। जागो हे भोले...।। ज्योर्तिलिंग में शक्ति तुम्हारी, करे पूजन ऐ धरती सारी, भक्तों के भगवन्, करूं चरणों में सुमिरन, शिवशक्ति का रूप, भोलेनाथ प्यारे। जागो हे भोले...
जीवन है रंगों का त्यौहार
कविता

जीवन है रंगों का त्यौहार

प्रतिभा त्रिपाठी भिलाई "छत्तीसगढ़" ******************** जीवन है, रंगों का त्यौहार आयी हैं, खुशियाँ अपार लाल पीले रंगों से खेलों आया है, होली का त्यौहार॥ रंग बिरंगी पिचकारी हैं बच्चों की किलकारी हैं, गली-गली धूम मचाई हैं बच्चों की टोली आई है॥ फागुन में होली आयी हैं रंगों की बरसात लायी हैं, हर चेहरे में खुशियाँ छायी हैं अपनों की सौगात हैं, लायी हैं॥ कान्हा को रंग लगाऊँ मैं ये सपना रोज सजाऊँ मैं, रंगों के इस त्यौहार में अपनों को गले लगाऊँ मैं॥ गुजिया की मिठास हों सबके दिल में प्यार हों, अपनों का साथ हो, तो हर दिन त्यौहार हो॥ परिचय :- प्रतिभा त्रिपाठी निवासी : भिलाई "छत्तीसगढ़" घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाय...
ग्रीष्म
कविता

ग्रीष्म

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** टपक रहा है ताप सूर्य का, धरती आग उगलती है। लपट फैंकती हवा मचलती, पोखर तप्त उबलती है।। दिन मे आँच रात में अधबुझ, दोपहरी अंगारों सी। अर्द्ध रात अज्ञारी जैसी, सुबह शाम अखबारों सी।। सिगड़ी जैसा दहक रहा घर, देहरी धू-धू जलती है। गरमी फैंक रही है गरमी, तपती सड़क पिघलती है।। सीना सिकुड़ गया नदियों का, नहरें नंगीं खड़ीं दिखीं। कुए बावड़ी हुए बावरे, झीलें बेसुध पड़ीं दिखीं।। तपन घुटन में हौकन ज्वाला, बाग-बाग में लगी हुई। बदली बनकर बरस रही है, आग-आग में लगी हुई।। जीभ निकाले श्वान हाँफते, बेबस व्याकुल लगते हैं। जीव जन्तु प्यासे पशु पक्षी, जग के आकुल लगते हैं।। हरे खेत हो गए मरुस्थल, पर्वत रेगिस्तान हुए। सारे विटप बिना छाया के, जलते हुए मकान हुए।। एसी, कूलर, अंखे, पंखे, डुलें वीजने नरमी से। बिगड़ रहे...
झूठों का  शहर
कविता

झूठों का शहर

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** झूठों के शहर में सच कौन बोलेगा जो बोलेगा वह मारा जाएगा। न कोर्ट होगी ना ही तारीखें होंगी सीधे सजा सुनाया जायगा। अंधे-बहरो के बीच वह चीखेंगा, चिल्लायेगा बार बार इन्साफ़ की गुहार लगाएगा। अंततः वह आरोपी कहलायेगा। परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डा...
होली राम रंग संग खेलो
कविता

होली राम रंग संग खेलो

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** होली राम रंग संग खेलो, हनुमत झूम के नाचेंगे। लगेगा भक्तों का दरबार, नाम महिमा वे बांचेगे। होली ..... बहाओ र से रंग फुहार, म में है माँ सीता का प्यार, चढ़ेगा जिन पर हनुमत रंग, वो माँ के चरण पखारेंगे। होली....... नहीं हुड़दंग का ये त्योहार, लुटा दो सब पर अपना प्यार, बढ़ी कटुता जिनसे इस साल, मिटाकर गले लगालेंगे। होली....... न डूबो दारू में या भांग, यही है सात्विकता की मांग। आओ बैठो हनुमत दरबार, "नाम" का नशा चढ़ा देंगे।होली....... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी र...
सुख संदेश
गीत

सुख संदेश

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** गीत मोहब्बत के लिखता हूँ बड़े प्यार से गाता हूँ। अंधेरे दिलों में प्रेम का दीपक जलता हूँ। और जीने की कला लोगों को सिखाता हूँ। गीत मोहब्बत के लिखता हूँ बड़े प्यार से गाता हूँ।। दिलों में पल रही कड़वाहट और नफरतो के बीजो को। अपने दिलों से तुम निकालो और प्यार मोहब्बत को अपनाओ। तेरे दिल की दशा और काया निश्चित ही बदल जायेगी। तेरे जीवन में खुशीयों की फिर बहार आ जायेगी।। गीत मोहब्बत के लिखता हूँ बड़े प्यार से गाता हूँ। अंधेरे दिलों में प्रेम का दीपक जलता हूँ।। रखा क्या है नफरत और कड़वाहटो को दिल में रखकर। तू इसी में उलझा रहता है और इसी को जीवन कहता है। और दफन कर रहा है अपनी नई नई उमंगो को। बस नफरतो में जीता और उसी में मरता रहता है।। गीत मोहब्बत के लिखता हूँ बड़े प्यार से गाता हूँ। अंधेरे दिलों में प्रेम का द...
सब गुलजार हुआ होगा
कविता, छंद

सब गुलजार हुआ होगा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ताटंक छंद त्योहार मनाने का उत्साह, इंतजार में पलता है राग द्वेष को तजते इसमें, अपनेपन से चलता है। होली होली कहते सुनते, जीवन पार हुआ होगा रंग गुलाल अबीर चकाचक, सब गुलजार हुआ होगा। दुनिया रंगबिरंगी होती, चालों में रंग सिमटता रंगों पर हक नहीं किसी का, घटना घेरों में पलता आशा विश्वास सहयोग दया, रंगो का पहरा रहता रहमत रंग की पात्रता से, अमन चैन खजाना होगा सच्चे पक्के जब रंग समाए, दांवपेंच गुजरा होगा होली होली कहते सुनते, जीवन पार हुआ होगा रंग गुलाल अबीर चकाचक, सब गुलजार हुआ होगा। बिना कर्म और समर्पण से, अंक गणित का शून्य है रंग तुम्हारे कितने चोखे, साहस मार्ग अनन्य है अमल खलल रूप सच्चाई से, रंग गाथा भी धन्य है जहमत रंग प्रतिपालन में, काया कल्प हुआ होगा रंग लगाकर रंग बदलना, आपा भी खोया होगा होली होली क...
विस्मृत चित्र श्रम का
गीत, छंद

विस्मृत चित्र श्रम का

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** गीत, आधार छंद - लावणी भाग्य मिटाया मजदूरों का, धन के मदिर बयारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।। गमक स्वेद की समा न पायी, कभी कागजी फूलों में। अमिट वेदना श्रम सीकर की, फँसती गई उसूलों में।। वार सहे पागल लहरों के, युग-युग विवश किनारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।।१ कौर रहे हाथों से रूठे, वस्त्र बदन की व्यथा कहे। बिन बारिश ही पर्णकुटी के, विकल नैन से अश्रु बहे।। लूटी है सपनों की डोली, खादिम बने कहारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।।२ दूध पिलाया पुचकारा है, आस्तीनों के व्यालों को। भूख छेड़ देती है पल-पल, घायल पग के छालों को।। देह निचोड़ी श्रमजीवी की, लालच के बाजारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने...
कोई फर्क नहीं
कविता

कोई फर्क नहीं

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं कब हारा मैं कब जीता मुझे इससे कोई फर्क नहीं। कौन अपना कौन पराया मुझे इससे कोई फर्क नहीं। मैं क्यों रोया मैं क्यों हंसा मुझे इससे कोई फर्क नहीं। कौन मेरा कौन तेरा मुझे इससे कोई फर्क नहीं। क्या खोया क्या पाया मुझे इससे कोई फर्क नहीं परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपन...
रंगलो तन-मन रंग से
कविता

रंगलो तन-मन रंग से

वीरेंद्र दसौंधी खरगोन (मध्य प्रदेश) ******************** रंगलो तन-मन रंग से, देखो होली आई। रंग-बिरंगे रंग लिए, हँसी ठिठोली आई।। ढोल, मृदंग की थाप पर, नाचे गाये सारे। पिचकारीयो  से  बरसे,  रंगो की बौछारे।। लिए रंग हुरियारो की, देखो  टोली  आई। रंगलो तन-मन रंग से, देखो होली आई।। तेरे प्यार का हर रंग, रंगे मेरा तन-मन। प्रीत रंग ना छुटे कभी, चाहे करे सब जतन। सहेलियों को संग लिए, लो हमजोली आई। रंगलो  तन-मन  रंग से, देखो होली आई। बिसराकर मन राग-द्वेष, सबको गले लगाए। जाति, धर्म के भेद मिटा, एक रंग हो जाए। चंदन, गुलाल, कुमकुम की, देखों रोली आई। रंग लो तन-मन रंग से, देखो होली आई। कौना-कौना धरती का, लगता है सतरंगी। भक्ति के रंग में रंगा, झूम  रहा सतसंगी।। वीर लिए संग श्याम को, राधा भोली आई। रंग लो तन-मन रंग से, देखो होली आई।। परिचय :- वीरेंद्र दसौंधी निवासी : खरगोन (म...
हरी धरै मुकुट खेले होली
भजन, स्तुति

हरी धरै मुकुट खेले होली

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** हरी धरै मुकुट खेले होली, हरि धरै मुकुट खेले होरी || मोर मुकुट पीतांबर पहने, हाथ पकड़ राधा गोरी || हरि धरे मुकुट खेले होरी कितने बरस के कुंवर कन्हैया, कितने बरस राधा गोरी || हरि धरेमुकुट खेले होरी दसहि बरष के कुंवर कन्हैया, सात बरष राधा गोरी || हरी धरे मुकुट खेले होरी कहा पैरी कृष्णा होरी खेले, कहां पैरि राधा गोरी || हरी धरे मुकुट खेले होरी मुकुट पैरि कृष्णा होली खैलै, चीर पैरि राधा गोरी || हरि धरै मुकुट खेलै होरी काहिन के दो खंभ बने हैं, काहिन लागि रहे डोरी || हरि धरै मुकुट खेलै होरी अगर चन्दन के दो खंभ बने हैं, रेशम लागि रहे डोरी || हरी धरे मुकुट खेले होरी कौन वरण के कृष्ण कन्हैया, कौन अवरण राधा गोरी || हरि धरै मुकुट खेले होरी श्याम वर्ण के कृष्ण कन्हैया, गौर वरण अ राधा गोरी || हरी धरे मुकुट खेले हो...
मन पलाश बन गया
कविता

मन पलाश बन गया

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** रंग को तुम्हारे मैंने अपने में समा लिया रंग तुमने डाला ऐसा, मन पलाश बन गया अबीर, गुलाल या रंग हो हरा सारे रंगों ने रंगी कर दिया जिया मेरा रंग को तुम्हारे मैंने अपने में समा लिया सामने बैठ कर तुमने लालिमा बना दिया सुर्ख लब किए और रुखसार भी रंग दिया रंग को तुम्हारे मैंने अपने में समा लिया होली है या नज़र की पिचकारी तुम्हारी छिन-छिन, पल-पल हो रही बावरी तुम्हारी रंग गिरते रहे और छा गई खुमारी इंद्रधनुष सा तुम्हारा मन, जीवन सतरंगी कर गया तन मन तो क्या तुमने, वजूद भी रंग दिया रंग को तुम्हारे मैंने अपने में समा लिया परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
मेरा दामन मैला
दोहा

मेरा दामन मैला

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** मेरा दामन मैला लेकिन किसकी चुनरी धोरी बोल एक अंगुरिया मुझे दिखाई बाकी तीनों तेरी ओर! बीच राह कीच भरा हो बच कर निकलो दोनों छोर गर पंक बीच पत्थर मारोगे छींटा लागे चारों ओर! नहीं बेटियां रक्षित घर में नाते रिश्ते हो गए गौण बाड़ खेत खाने लगे तो फिर बोलो रखवाले कौन! बटी मनुजता जात धर्म में देश की बात करे ना कोय ना दादुर तुल सके तराजू ना मानुष का एका होय!!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
होली – हैवानियत
कविता

होली – हैवानियत

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** रंगों कि पीछे छिपे होते है हैवानियत, नशा पान करके भांग पीकर मांस खाकर उर्ग होते है परेशानीयां.! रंगों कि होड मे गलत करते कलयुग के रावण, समझो जानो अपनो कि इज्ज़त सम्मान को पहचनो ! सभी के साथ खुशियों से रंग लगावो, बुरे इंसान उनके हरकतो को पहचानो उनसे दुर है जाओ.! बुरा न मानो होली है लेकिन किसी के साथ बुरा करना होली नहीं, गांव को गोकुल, मथुरा, काशी, बनाओ, रंगो कि बौछार से अपनो से खुशियां बनाओ.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के...
रंग पंचमी इन्दौर की
कविता

रंग पंचमी इन्दौर की

  गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** गेरों और गुलाल, रंगों का है संगम, सज धजकर टोलियां निकलती हैं, मस्ती के रंगों में गुलाल अबीर से अहिल्या राजबाड़ा चौक सराबोर हो जाता हैं रंगों की रंग पंचमी देखी है इन्दौर की। हंसी मजाक ठिठोली करते नहीं किसी से भेदभाव यही दिखती हमारी संस्कृति सभ्यता परम्पराओं और एकता और आत्मविश्वास अंखण्ड धर्मनिरपेक्ष भारत की भारतीय रंग में, रंग पंचमी बस इन्दौर की। तीज़ त्यौहार हर उत्सव उल्लासपूर्ण अपनात्व के रंगों में सराबोर हुआ करता है गगन जहां सभी को सम्मान दिया जाता हैं, ऐसी जन्मभूमि है विकास यहां अहिल्या बाई होलकर की आत्मा से जुड़ी, आत्मीय रंगों से खेली जाती है होली रंग पंचमी इन्दौर की, रंग पंचमी इन्दौर की, रंग पंचमी इन्दौर की। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया म...
सौगात तिरंगे की
कविता

सौगात तिरंगे की

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सरहदों के पहरेदारों हिन्द के ओ सूरमाओं सौप कर हमको तिरंगा वो सितारे बन गए हैं केसरी बाना पहनकर कफ़न अपना ही सजाए माँ बहन और सजनी मिलके विजय टीका है लगाए तिरंगे की शान खातिर खुद निछावर हो गए हैं सौप आज़ादी हमें वो अंतिम सफ़र पर चल पड़े खुश रहो भारत के वासी ये सभी से कह गए वो शोर अब सब बंद कर दो वीर प्यारे सो रहे हैं आज़ाद बिस्मिल और भगत कारगिल के ओ शहीदों सौरभ विक्रम नचिकेतों क़ुरबां हुए प्यारे हज़ारों माँ का आँचल सूना करके पिता के कांधों पे सोए ओढे तिरंगा जा रहे हैं सरहदों के पहरेदारों हिन्द के ओ सूरमाओं सौप कर हमको तिरंगा वो सितारे बन गए हैं परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कव...
मेरी कविता
कविता

मेरी कविता

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** मेरी कविता मेरा सुर और साज है। मेरी कविता में मेरा आवाज है।। मेरी कविता भावों का आधार है। मेरी कविता में इसका विस्तार है।। मेरी कविता बहती आठों याम है। मेरी कविता ईश्वर का पैग़ाम है।। मेरी कविता ही मेरा सम्मान हैं। मेरी कविता गीता और, कुरान है।। मेरी कविता यह वेदों का सार है। मेरी कविता भाषा का विस्तार है।। मेरी कविता ही मेरा श्रृंगार हैं। मेरी कविता में छुपा संसार है। मेरी कविता रंगों की बहार है। मेरी कविता खुशियों की बौछार है। मेरी कविता में सातों स्वर साथ हैं। मेरी कविता यह विश्व विख्यात है।। मेरी कविता सुर, संगम, साज़ है। मेरी कविता में कृष्णा के राज़ है।। मेरी कविता विधाओं का ताज़ है। मेरी कविता में नवरस आगाज़ हैं। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि :...
होली के रंग फाग के संग
कविता

होली के रंग फाग के संग

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ चम्पा आओ सखी चमेली, फूलों से मिलकर खेलेंगे हम होली गुलाल लगाकर हम करेंगे सम्मान पर्यावरण का भी रखना है ध्यान ! पानी की न करेंगे हम सब बर्बादी बचाना होगा पीने योग्य हमें पानी ।। होली के रंग फाग के संग जमेंगे, नाचेंगे जब मिलकर सब धूम करेंगे! थाली सजेगी सभी रंगों के गुलाल से, जब मन के मन से तार मिलेंगे सबके एक दूजे को रंग गुलाल लगाकर हम संतुलित होली का पूरा मान रखेंगे।। फागुन आया संग होली लाया है नाचता गाता ये मन सबसे कहता इस होली मैं सबका मन हर्षाया हैं नीले, पीले, लाल गुलाबी गुलाल से, धरती पर जैसे इंद्रधनुष उतर आया प्यारी होली के रंग है फाग के संग।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार...
वसन्त ऋतु
छंद

वसन्त ऋतु

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** सरसी छंद गीत मात्राभारः १६,११ झूम रही है उपवन शाखी, मधुकर करता शोर। ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥ प्रमुदित होते किसलय कानन, खिली-खिली-सी धूप। पर्ण पाँखुरी की जम्हाई, यौवन छलके कूप। वासंती हो बैठे पंछी, नर्तक झूमें पोर॥ ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥ उजला-उजला नभ का साया, बादल-बदली नील। दिनकर आता तम को हरने, झेन-फेन-सी झील। पवन-वेग से गूँज रही है, राग वसन्ती भोर॥ ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥ शुचि-सोम-सरी कल-कल बहती, निर्मल जल की धार। उच्च शिखर की आभा जैसे, धरणी का श्रृंगार॥ पीत मञ्जरी महक उठी हैं, माघ बना चितचोर॥ ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारो ओर॥ ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥ परिचय :-  ललिता शर्मा ‘नयास्था’ निवासी : भीलवाड़ा (राजस्थान...
काश्मीर की आत्मव्यथा
कविता

काश्मीर की आत्मव्यथा

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** नभ उदास है धरती सूनी तीनों लोक सुनो त्राहि पुकारे कर्म नहीं है, धर्म नहीं है इन्सा का कोई भरम नहीं है चहुँओर है छाया अंधेरा माँगे लहू है जगत ये सारा क्यो विफल हुई कश्यप की तपस्या स्वर्ग बसाया नर्क बना है ईश्वर अल्लाह दो नाम तिहारे फिर क्यों इनमें जंग छिड़ी है तेरी रचना न तुझसे सँभलती ये कैसी माया है बरसती क्या व्यर्थ हुआ है बलिदानी येशू स्तंभित खडी गौतम की वाणी मानव में दानव संचारे लुप्त हुई मानवता सारी कब आओगे कहो कन्हाई गीतावाला वचन निभाने परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय ए...
होली आई
कविता

होली आई

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे आंगन-आंगन बजी बधाई डेहरी पहने पायल अरे फागुन आया होली आई, ढोल बजाओ मांदल रे। यौवन सजे सजे हरद्वारे पायल नूपुर बाजे रे गेम बाली लेकर आती खंन-खन करती चूड़ियां थे हां बुलाया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे। रंग गुलाल संग मचल रही हरि पीली आंचल चांदनी ताल-ताल पर नाच रही मेरे मन की रागिनी रवि किरण भी खेल रही है सतरंगी केसरिया रंग अरे। फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे। केसु, टेसु रंग केशरिया पाखी, पंछी झुमे थे घर आंगन में सजी सावरी धानी चुनरिया ओढ़ रे पीली-पीली सरसों पर मन मतवाला डोले रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे। सुबह संध्या अवनी अंबर अबीर केसरिया खेले रे आज नहीं है द्वेष कहीं भी अनुराग मन भरे रे फागुन फाग सजे मतवाले रंगा बिरंगी टोली रे। फागुन आया होल...
सबसे अपनापन तो होली
ग़ज़ल

सबसे अपनापन तो होली

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सबसे अपनापन तो होली। तन से अच्छा मन तो होली। आज हमारे पास सभी वो, सम्बन्धों का धन तो होली। सबके चहरे छाएं खुशियाँ, जीने का हो फ़न तो होली। खेलें रंग, चले पिचकारी, भीगे सबके तन तो होली। नाम, बड़प्पन, भेद भुलाकर, मिल जाए जन-जन तो होली। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, र...
नीति नियति निर्णय सही
कविता

नीति नियति निर्णय सही

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** नीति नियति निर्णय सही सकल सिद्धि के सार यदि अपनाओ मंत्र यह खुले ख़ुशी का द्वार जीत हार जो भी मिले दिल से हो स्वीकार बनी रहे सद्भावना पनपे नहीं विकार अनुचित की हो वर्जना उचित रहे स्वीकार मान प्रतिष्ठा का सदा सपना हो साकार निज हित और समग्र हित मिट जाए दीवार जन-मन भी होगा सुखी फैले नवल विचार देश-भूमि का व्यक्ति पर अनगिन है उपकार उसके प्रति कुछ धर्म है मन में हो आभार हम समाज के अंग हैं देता वही ख़ुराक वसुधा एक कुटुम्ब है इसका हो परिपाक धर्म जाति के चक्र से निकलो मित्र तुरंत वरना इस दुष्चक्र से है दुनिया का अंत। परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, स...
फागुन आयो रे ….
गीत

फागुन आयो रे ….

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पीली चुनर ओढ़े धरती, पुष्पों का श्रृंगार किये हर्ष और उल्लास का, मौसम आयो रे फागुन आयो रे। रंग-बिरंगी फूली सरसों, पिया बिन तरसी जो बरसों प्रेम रंग अब रँगेगी गौरी फागुन आयो रे। गौरी घूँघट में शरमाये, पिया देख मन को हर्षाये दोनों संग-संग भीगेंगे अब फागुन आयो रे। टेसू के हैं फूल घुले, रंग उड़े गुलाल अखियाँ ढूंढे साजन को, रंग हो गया लाल प्रेम रस की चली फुहारें फागुन आये रे। कोयल छेड़े मीठी तान, गौरी मन हर्षाये पिया मिलन की आस में तन को है तरसाये संग-संग भीगेंगे तन-मन फागुन आयो रे। रचा महोत्सव पीत का, फागुन खेले श्याम, रंगों में भीगी राधा भागी गोपी धाम कृष्ण मुरारी ढूंढे श्यामा फागुन आयो रे। राधा-राधा रटे श्याम की, बंसी की मीठी तान सारा जग जाने श्यामा मोहन की है जान युगल जोड़ी देखो...
हे कान्हा! तेरे प्रेम में
कविता

हे कान्हा! तेरे प्रेम में

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हे कान्हा! तेरे प्रेम में कुछ पूरी सी, कुछ अधूरी सी प्रेम रंग में पूरी तरह डूबी सी चढ़ा है तेरा रंग ऐसा कि दूसरा कोई रंग चढ़ता ही नहीं ऐसी रंगी तेरी प्रीत के रंग में कि ये रंग अब उतरता ही नहीं हर रंग तुझसे, हर रंग तुझमें तुझसे ही है रंगीन दुनिया मेरी महज़ एक दिन के गुलाल से नहीं, रोज खेलूं तेरे संग मैं प्रेम की होली होकर तेरी डूब जाऊं तेरे रंग में, कि खतम हो फिर हर तमन्ना अधूरी परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...