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विस्मृत चित्र श्रम का

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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गीत, आधार छंद – लावणी

भाग्य मिटाया मजदूरों का,
धन के मदिर बयारों ने।
श्रम का विस्मृत चित्र किया है,
सत्ता के फनकारों ने।।

गमक स्वेद की समा न पायी,
कभी कागजी फूलों में।
अमिट वेदना श्रम सीकर की,
फँसती गई उसूलों में।।
वार सहे पागल लहरों के,
युग-युग विवश किनारों ने।
श्रम का विस्मृत चित्र किया है,
सत्ता के फनकारों ने।।१

कौर रहे हाथों से रूठे,
वस्त्र बदन की व्यथा कहे।
बिन बारिश ही पर्णकुटी के,
विकल नैन से अश्रु बहे।।
लूटी है सपनों की डोली,
खादिम बने कहारों ने।
श्रम का विस्मृत चित्र किया है,
सत्ता के फनकारों ने।।२

दूध पिलाया पुचकारा है,
आस्तीनों के व्यालों को।
भूख छेड़ देती है पल-पल,
घायल पग के छालों को।।
देह निचोड़ी श्रमजीवी की,
लालच के बाजारों ने।
श्रम का विस्मृत चित्र किया है,
सत्ता के फनकारों ने।।३

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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