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पद्य

रा म जैसे सुंदर दो अक्षर
स्तुति

रा म जैसे सुंदर दो अक्षर

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** रा म जैसे सुंदर दो अक्षर छत्र, मुकुट, मणिरुप हैं सबसे ऊपर धारण करते नर नारायण श्री राम रघुकुल के नामी, रघुनाथ श्री राम मन मोह बसते हैं, मनोहर श्री राम सुंदर, चितवन नयन राजीव लोचन श्री राम द्युति दे सूर्यवंश को भानुकुल भूषण श्री राम शर, चाप, बल धर धनुर्धर श्री राम मर्यादा की ध्वजा लहराते, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम राम नाम जप कलि काल में कल्प तरु श्री राम चंद्र हास को मान देते, रामचन्द्र श्री राम दया, करुणा का कोष बिखराते, करुणानिधान श्री राम सत,रज,तम निधान त्रिगुण श्री राम जीत क्रोध, ल़ोभ, मोह, जितेंद्रिय श्री राम दैहिक, दैविक, भौतिक ताप हर तारणहार श्री राम मन मोह जानकी का, जानकीवल्लभ श्री राम राम, रमापति स्त्री धन को देते मान सिया-राम हैं जय जय श्री राम जय-जय श्री राम हैं सियाराम। परि...
महंगाई
आंचलिक बोली

महंगाई

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी सुबह-शाम लोगन हलाकान हे, महंगाई ले परेशान हे, अच्छे दिन अही कही के सबला भरमात हे.! गर्मी ले ज्यादा तो महंगाई पसीना निकाल दीस, गरीबी के रददा देखावद हे, अच्छा दिन ला लुकावत हे, दु:ख ला बलावत हे.! जीवन जीये मा परेशानी कर दीस ये महंगाई हा, कर्जा ऊपर कर्जा करा दीस ये महंगाई हा.! अकेले नहीं पुरा देश के कहानी हे, गरीब के कोनो नई हे सहारा, छोड दिस बेसहारा, कर्जा बोडी के चक्कर मा होगे हे परेशान, ये महंगाई सब ला कर दे हे हलाकान.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्...
थोड़ा ख़ुद पर भी इठलाना बाकी है।
ग़ज़ल

थोड़ा ख़ुद पर भी इठलाना बाकी है।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** रस्ते - रस्ते दीप जलाना बाकी है। अँधियारों का डर झुठलाना बाकी है। सुनकर जो भी सपनों जैसी लगती है, उन बातों से मन बहलाना बाकी है। नए दौर की चढ़ती -बढ़ती शिक्षा में, सच्चाई का गुर सिखलाना बाकी है। बूझ रहें हैं लोग यहाँ सबके के चेहरे, उनको अपना घर दिखलाना बाकी है। सबकी शान, बढ़ाई वाले मौकों पर थोड़ा ख़ुद पर भी इठलाना बाकी है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
लाडो खुश रहना
कविता

लाडो खुश रहना

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** लाडो खुश रहना, खुशहाल रखना परिवार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...। बेटी खुश रहना, खुशहाल रखना परिवार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...। बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...।। सोने की थाली में, कंचन सा पानी, प्राणों से प्यारी, मेरी बिटिया रानी, लाडो कर देना..., बेटी कर देना, एक उपकार, बाबुल मैया, जो चाहे हो। बेटी कर देना, एक उपकार, बाबुल मैया, जो चाहे हो। "का चाहे, बाबुल मैया, का चाहे, बाबुल मैया, जो चाहे हो।" लाडो दे देना..., बेटी दे देना, खुशियां हजार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो। बेटी दे देना, खुशियां हजार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो। लाडो खुश रहना...। बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...।। सोने सा अंगना में, महके बागवानी, फूलों से प्यारी, मेरी बिटिया रानी, लाडो कर देना..., बेटी कर देना, एक उपकार, बाबुल मैया, जो च...
रंग साँवला
कविता

रंग साँवला

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** यह बात तुझसे कहा नही होता तुम्हारे इश़्क में बावला नही होता। बिना समय गंवाए तू मेरी होती रंग मेरा यदि साँवला नही होता। लोग कहते रहें भले कुछ लेकिन प्यार इतना भी बुरा नही होता। दो प्यार करने वालों के दरम्याँ यार रहे याद, कोई तीसरा नही होता ॥ रुठते मनाते रहते हैं एक दूजे को देर तक कोई ख़फा नही होता॥ किस्मत से मिलता है सच्चा प्यार हर कोई यहाँ बेवफ़ा नही होता ॥ परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी न...
एक भारत ऐसा भी
कविता

एक भारत ऐसा भी

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** एक पुल के ऊपर ठाठ बाट संभ्रान्त, दूसरा पुल के नीचे अर्द्ध नग्न सहता संताप। एक लंबी छुट्टी का लेता आरामदायक मजा, दूसरा लंबी छुट्टी की लेता कष्टदायक सजा। एक सुरक्षित, आनंदमय, गुनगुनाता, खिलखिलाता परिवार, दूसरा चिलचिलाती धूप में थका-मांदा पैर रगड़ता सुबकता परिवार। एक जो रोज नए खाद्य पदार्थ की विधि से अपनी चंचल जिव्हा को तुष्ट करता, सोशल मीडिया पर इतराकर अपनी पाक कला दर्शाता। तो दूसरा एक कटोरी भात के लिए दूसरों के समक्ष हाथ पसारता। आठ बच्चों में एक रोटी के टुकड़े कर गटागट पानी पी सो जाता। एक बैंक में जमे पैसों का लेखा-जोखा देख निश्चिंत। दूसरा हाथों की उंगलियों को चटकाता बिना आजीविका चिंतित। एक बालकनी में आनंद लेता पक्षियों की चहचहाहट। दूसरे के मन में आर्तनाद और घबराहट। एक कोरोना के आंकड़े गिनता ...
पथिक
कविता

पथिक

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** पथिक हो? फिर विराम क्यों ? चलना तेरा काम है फिर आराम क्यों? पथिक हो? फिर पथ पर पड़े कंकरों से तुमको भय क्यों? पथिक हो? फिर पथ पर चलने से तुम को थकावट क्यों? पथिक हो? फिर हार जाने के डर से तुम को घबराहट क्यों? परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंद...
कौन हूं मैं…???
कविता

कौन हूं मैं…???

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बरसों से एक जवाब की तलाश थी, सवाल खुद पर था, उत्तर भी खुद से देना था रात दिन हर पल, खुद से खुद में हलचल मचाता हुआ अचानक प्रश्न कौंधा "कौन हूं मैं" ???? किसी चेहरे की खुशी तो किसी की मुस्कान हूं, किसी के आंखो की नमी, किसी के जीवन में बरसात सी हूं ना जाने किसका सवेरा किसकी शाम हूं कभी किसी का सच, तो कभी पलकें झुकाए अनकही पहेली हूं कौन हूं? यदि हूं, तो अब तक चुप क्यूँ हूं?? हर पल चल रही हूँ हर पल ढल रही हूँ कभी उत्सव में लीन कहि वीरानी में सिमटी सवाल बेहिसाब हैं, सिलसिला चला जा रहा है हर पल कई रंग और बदलते हुए कई रूप हैं कही जीवन जीने में शामिल कभी मृत्यु से, थरथराती, डरी हूं क्या मौत से खत्म है जिन्दगी, क्या जान से ही जहान है ?? क्या जीवन सत्य है, या मृत्यु ही अटल सत्य है इन सवा...
स्नेह
कविता

स्नेह

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कमाल की तरक्की होती जा रही अब जमाने में, आज तक स्नेह परखने का यंत्र तो बन नहीं सका। सुनते रहे थे सदा हम, छिपाने से छिपता नहीं, स्नेह कोई वस्तु जैसी नहीं प्रदर्शन बन नहीं सका। दिल की तिजोरी का हर कोना स्नेह से लिप्त हो जरूरत में कैद स्नेह कभी, आजाद बन नहीं सका। सात दिन चौबीस घंटे दिल कारखाने में ये बने, स्नेह गजब का डॉन, सूरत ए हाल बन नहीं सका। चार बातें चार लोग के सामने होती महफिल में, खुद के बनाए घेरे में झांकता, शख्स बन नहीं सका। सही गलत सब गेंद खेलने, माहिर हुए अब लोग, सही जगह सच रखने, फिक्रमंद भी बन नहीं सका। स्नेह सात तालों की सुरक्षा, बहुत खास है प्रसंग बहुत स्नेह रखते मात्र कहने, साहस बन नहीं सका। दूसरों की नजर में पूछ परख सम्मान मिलता रहे, सबके सामने सच रखने का, योग भी बन नहीं सका। स्नेह के ऐसे क...
नहीं कुछ कहता मैं भी
कविता

नहीं कुछ कहता मैं भी

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** नहीं कुछ कहता मैं भी लिए हो हाथ में जो तुम कुल्हाड़ करों जो तुम चाहो अपनी मनमानी मैंने दिया है तुझको क्या क्या लेकिन दिया है तुमने मुझे ये क्या कर दिया जो तुमने मुझे बलिदान स्वार्थ के जो तुमने बीज अपनाया प्रेमभाव जलसिंचित जो किया किया तो अपनी स्वार्थ मनोरथ के लिए निर्जीव गूंगा जो जानकर कर दिया अपनी क्रोध का भांडाभाड़ हो ना सका मातृभूमि का नव श्रृंगार कर दिया जो तुमने मुझे बलिदान। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर...
देशवासियों को जगाऊंगा
कविता

देशवासियों को जगाऊंगा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** प्यार की डोर लेकर मंजिल को तलाश रहा हूँ। गीत मिलन के लिखकर गाये जा रहा हूँ। पैगाम अमन चैन का गीतों में दिये जा रहा हूँ। और भारतीय होने का फर्ज निभा रहा हूँ।। दोष मुझ में लाख है पर इंसानियत को जिंदा रखता हूँ। है अगर कोई मुश्किल में तो यथा सम्भव मदद करता हूँ। मिला है मनुष्य जन्म हमें पूर्व जन्मों के कर्मो से। इसलिए इस भव में भी अच्छे कर्म कर रहा हूँ।। छोड़कर मान कषाय को शांत भाव से जीता हूँ। और मानव धर्म का निर्वाह सदा ही मैं करता हूँ। फिर भले ही चाहे मुझे मान सम्मान न मिले। पर मानवता को ऊपर रखकर देशवासियों को जागता रहता हूँ।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से ...
कुष्मांडा
स्तुति

कुष्मांडा

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** आज नवरात्र चतुर्थ दिवस। आया चहुँ ओर दुर्गा चौथा। रूप कुष्मांडा छाया। मां अपनी मंद हंसी संग। ब्रह्मांड उत्पन्न कर। कुष्मांडा नाम पाया। चहुँ ओर व्याप्त अंधकार। ब्रह्मांड रचना कर हटाया। कुष्मांडा मां तू सृष्टि आदि स्वरूपा तू ही आदिशक्ति। तू अष्ट भुजाधारी। तेरे सप्त कर कमंडल, धनुष, बाण, पुष्प, अमृत पूर्ण कलश, चक्र, गदा धारे। आठवें कर सकल सिद्धि। अरु निधिदायी जपमाला धारे। मां तू सिंह वाहन सवार हो। आती, जो कुष्मांडा मां। उपासना करें वह निश्चित। आयु,यश,बल, स्वास्थ्य। वृद्धि पाते। मां कुष्मांडा में कर जोड़ूँ। शीश नवाऊँ अरू करूं। प्रार्थना मुझ पर दया करो। महारानी क्षमा करो। मेरी नादानी। पिंगला ज्वालामुखी निराली। भीमा पर्वत पर डेरा तेरा। स्वीकारो प्रमाण मेरा। मेरे सकल कारज पूरे ...
शक्तियों की प्रतीक देवियां
कविता

शक्तियों की प्रतीक देवियां

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नवरात्रि में ये महा देवियां निज स्वरूपों के देती संदेश इनके आचरण के पालन से सुधर जाता अपना परिवेश पार्वती कर देती है परिवर्तन विस्तार को बना देती है सार पीहर व ससुराल के रिश्तों में बहती रहती सदा नेह की धार जगदम्बा देवी सहनशील बन माँ सी करती है रक्षा अपरंपार बिना शर्त ही सबसे प्रेम करो करो सर्वदा निश्छल व्यवहार संतोषी माँ सी धैर्यशील बनके हर कण चांवल करे स्वीकार अवगुणों को समाकर दिल में सर्व गुणों का कर देती संचार गायत्री महान परख की देवी गन चक्षु की रखती तीक्ष धार हंसिनी सी बस मोती चुगती देती है न्याय का सार ही सार शारदा विद्या निर्णय की देवी हाथ में शास्त्र व वीणा झंकार जब सुर संगीत की धुन छेड़े सर्व जनों का हो जाता उद्धार मुंडो की माला पहन के काली मिटा देती है संसार के विकार विपदा की घड़ियों में...
अभिनन्दन नये वर्ष का
कविता

अभिनन्दन नये वर्ष का

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** अभिनन्दन हो नये वर्ष का लेकर पूजा की थाली झूमें नाचें दीप जलायें मंगल गायें आओ आलि खलिहानों में सरसो फूले झूमें बाली गेहूंओं वाली कृषक झूमते अपने मद में और झूमे नारी नखराली वृक्ष वृक्ष पर नई कोंपलें लकदक अमुआ की डाली रंगोली भी एक बनाएं इंद्रधनुषी रंगों वाली नया गीत हो नई थाप हो नव्य नवेली हो ताली जले कपूर नेह प्रेम का हो सुवासित रातें काली माता आई नवदुर्गा बन घर घर छाए खुशहाली वंदन करें नव वर्ष का लेकर पूजा की थाली !! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित ...
मेरी मईया के द्वार
भजन, स्तुति

मेरी मईया के द्वार

संगीता श्रीवास्तव शिवपुर वाराणसी (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी मईया के द्वार ज्योति जली है बड़ी रोशनी है बड़ी रोशनी है। खुशी इस जहां मे कहीं और भी है, नहीं है ,नहीं है ,नहीं है, नहीं है। अंधेरे मे सिमटी रही जिन्दगानी, बढ़े हैं कदम आज दर पे भवानी, नहायी रोशनी से अब राहें मेरी हैं। बड़ी रोशनी..... क्या करे कंचन काया क्या करें लेके माया, बिना भक्ति के व्यर्थ जीवन गंवाया, रोकती राह क्यों बन्धनों की कड़ी है बड़ी रोशनी..... मन में श्रद्धा के दीपक जलाए हुए, चले आओ दर मां के धाए हुए, वो है करुणा मयी वो है वरदायिनी दुख संताप तेरे सब हर लेगीं। उनकी नज़रें इनायत सबपे रही हैं। बड़ी रोशनी.......।। परिचय :- संगीता श्रीवास्तव निवासी : शिवपुर वाराणसी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
श्रीराम के गुणगान की महिमा
भजन, स्तुति

श्रीराम के गुणगान की महिमा

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चलो श्रीराम के गुणगान की महिमा सुनाते हैं समर्पण और भक्ति की नई गाथा सुनाते हैं सिया संग जंगलों में जो भटककर धर्म पर चलते उसी युगपुरुष के चरणों में यह कविता सुनाते हैं अनुज लक्ष्मण की भातृ भक्ति को दुनियां समझती है लखन के त्यागमय उस शक्ति को दुनियां समझती है सिया और राम के चरणों में उनका जो समर्पण था मधुर उस प्रेम की अभिव्यक्ति को दुनिया समझती है निशाचर मुक्त करके जो सदा संतो को तारे हैं जो दशरथ और माता कोशिला के भी दुलारे हैं शरण में जो चला जाता है उसको थाम लेते हैं वही श्री राम जी मेरे हृदय में प्राण प्यारे हैं किये लंका दहन जो राक्षसों को दंड देकर के विभीषण को भगति के पुष्प का मकरंद देकर के अयोध्या वासियों के साथ खुशियां जो मनाए थे दुखों से व्याप्त भक्तों को नया आनंद दे कर के प...
दशरथ महल जन्मे रघुराई
भजन, स्तुति

दशरथ महल जन्मे रघुराई

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सखी हर्षित मन देती हूं मैं बधाई, दशरथ महल जन्मे रघुराई माह चैत्र पक्ष शुक्ल तिथि नवमी पुनीता दशरथ महल जन्म लीन्हो प्रभु दीनदयाला सखी मिल मंगल गाओं दशरथ महल जन्मे रघुराई हर्षित चकित नयन भई सब रानी दमकत मुख अनूप शोभा अति न्यारी सखी मिल मंगल गाओ दशरथ महल जन्मे रघुराई स्यामल गात नयन पुनि-पुनि जात बलिहारी मंगल गान शुभ रुदन स्वर गूंजे अवधपुरी सखी मिल मंगल गाओ दशरथ महल जन्मे रघुराई झूमत शाख हर्षित लतावृंद उपवन शोभा न्यारी देव अप्सरा सब गगन से करत सुमन वृष्टि सखी मिल मंगल गाओं दशरथ महल जन्मे रघुराई आंगन-आंगन सजी रंगोली घर घर दीप जले नाचत झूमत अवध नर नारी बधाई गीत गूंजे सखी मिल मंगल गाओ दशरथ महल जन्मे रघुराई परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित...
जहाज का पंछी
कविता

जहाज का पंछी

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** मैं इस जहाज का पंछी हूं मेरा दूजा कोई ठौर नही धरती पर जो सुकून मिलता है वो कहीं और नहीं। भूख नामुराद जहाज पर लाई है मेरा तो ठिकाना और था जो गुजर गया वो गुजर गया फिर आएगा ऐसा दौर नहीं। परिवार कहां और मैं कहां उस परिवार के लिए तड़पता हूं सहा नहीं जाता मुझसे अब तो जालिम लहरों का शोर नहीं जो इस जहाज पर मिल जाता है उससे भूख मिटाता हूं आंखों के आगे अंधेरा है दिखाई दे ऐसी कोई भोर नहीं। उम्मीद लगाए रहता हूं मै कब धरती का साहिल मिल जाए बीत गई सो बीत गई अब करता उसपर मैं गौर नहीं। नसीब में जो लिखा है वह तो मिलना ही निश्चित है अपनी किस्मत के आगे चलता किसी का जोर नहीं। पेट की भूख ने आदमी को क्या से क्या बना डाला इस भूख का दुनिया में कहीं कोई और न छोर नहीं। परिचय :- सीताराम पवार निवासी : धवल...
हिन्दू नववर्ष प्यारा
कविता

हिन्दू नववर्ष प्यारा

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** हम हैं हिन्दुस्तानी, है हिन्दुस्तान हमारा । चलो मनाएं साथी, हिन्दू नववर्ष प्यारा ।। संस्कारों की धरती है यह, भारत भूमि हमारी । जान से भी बढ़कर लगती है, हम सब को यह प्यारी ।। यही हमारी आन बान और, यही है शान हमारा चलो मनाएं साथी, हिन्दू नववर्ष प्यारा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है पावन, इस दिन इसे मनाते । करके शक्ति की आराधन, मन में जोश जगाते ।। श्रृष्टि के कण कण में छाईं, अद्भुत रूप नजारा चलो मनाएं साथी हिन्दू नववर्ष प्यारा रीत रिवाजों से है पूर्ण, इसकी शान निराली । संस्कृति से सजी ये धरती, खुशिऑ देने वाली ।। ऑंख उठाकर देख रहा है, आज इसे जग सारा चलो मनाएं साथी हिन्दू नववर्ष प्यारा मंगलमय हो वर्ष नया यह, गीत खुशी के गाएं । स्वागत में इसके आओ हम, मंगल दीप जलाएं ।। राम मिला कुदरत से हमको, यह...
स्वप्न बहते रहे
कविता

स्वप्न बहते रहे

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पल-पल क्षण क्षण बीता यादों के झुरमुट में स्वप्न बहते रहे मेरे अंतर्मन में मुट्ठी भर आकाश झांकता। बने झरोखे से झींगुर कहता मैं साथ हूं रात के सन्नाटे में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
तूम प्रीत की बारिश करना
कविता

तूम प्रीत की बारिश करना

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** तूम प्रीत की बारिश करना बरखा के सावन की तरह मैं आकुल हूँ बस तेरे लिए प्यासा समंदर की तरह। तुम मेरी चाँद बन जाना निशा में पूनम की तरह। मैं बस तुझे निहारा करूँ आतुर चकोर की तरह। तुम मेरी बहार बन जाना महकते फूलों की तरह। मैं बस यह गुनगुनाता रहूँ बावरा भ्रमरों की तरह। तुम मेरी साया बन जाना मेरे हमसफ़र की तरह। मैं हरदम तेरे साथ रहूँ फूलों में खुशबु की तरह। तुम मेरी बरखा बन जाना सावन में बूंदों की तरह। ये तन मन भी भीग जाए प्यासा धरती की तरह। तुम मेरी धड़कन बन जाना मेरे सीने में दिल की तरह। ये जीवन मधुमय हो जाए वसन्त के बहारों की तरह। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचि...
भावों की खुशबू
कविता

भावों की खुशबू

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** सब कुछ योजनानुसार चल रहा अचानक जो हुआ उम्मीद से बहुत आगे, सब कुछ इतना तीव्र था कि समझना मुश्किल था। ऐसा भी हो सकता है, मन हाँ-न के उहापोह में उलझकर रह गया। पर सब कुछ सामने था मेरे साथ हो रहा था नकार भी कैसे सकता था, पर सपने जैसा था, जिसकी खुशी सँभाल पाना कठिन था मुझ जैसे पथरीले इंसान के लिए तभी तो आँखों में आँसू तैर गए बस किसी तरह सँभाल सका खुद को। मन विह्वल मगर गर्व की अनुभूति करता उस अनजानी अनदेखी शख्शियत के साथ हुआ जब हमारा प्रथम आमना सामना मन श्रद्धा से भर गया, उसके कदमों में झुकने को लालायित हो उठा, बड़ी मुश्किल से खुद को सँभाला और रख दिया अपना हाथ उसके सिर पर क्योंकि हिम्मत नहीं हुई उसके अपनत्व भरे भाव को नकारने की असम्मानित करने की क्योंकि मैं ऐसा ही हूँ। मगर ...
हमें भी वही राह दिखला रही है।
ग़ज़ल

हमें भी वही राह दिखला रही है।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** हमें भी वही राह दिखला रही है। हवा जिस दिशा में चली जा रही है। जो आदत नहीं है निभाने की हममें, रिवायत वही बात समझा रही है। पता ही नहीं है किसी को हक़ीक़त, भुलाओं में दुनियाँ पली आ रही है। रखें मान किसका, रहें साथ किसके, सदाएँ, सदाओं को भरमा रही है। करे पार कैसे वो दरिया-समुन्दर, जो कश्ती हवाओं से टकरा रही है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
नारी तुम सशक्त हो
कविता

नारी तुम सशक्त हो

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** नारी तुम सशक्त हो कभी लक्ष्मी, कभी दुर्गा कभी झांसी की रानी कांटों की राह पर चलती नि:सहाय निर्बला नहीं आंधी की तरह कष्टों को चीरती प्रबल वात तुम, प्रचंड पर्वत की तरह अटल हो। कभी झुकती नहीं, रुकती नहीं, टूटती नहीं तुम समर्थ हो। तुम मन से प्रबल तन से सबल, देवी का स्वरुप हो। तुम करुणा का सागर मानव जाति का संबल हो। भर्तायर की सच्ची सहचरी, राखी के बंधन को अक्षुण्ण रखती बहना, वात्सल्य की छाया देती जननी, स्नेह की डोर से बंधी पुत्री, नारी विविध रुप तुम्हारे अभूतपूर्व, अलौकिक, अतुलनीय जग जननी, वंदनीय तुम्हे शत शत नमन हो। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत ...
मेरा साथी कौन
कविता

मेरा साथी कौन

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  एक दिन मुझे भगवान् मिले मैंने उनसे पूछा कि भगवन् आप मुझे बताएं कि मेरा साथी कौन मैं राही मेरी मंजिल है कौन मैं पंछी मेरा घोसला है कौन मैं तूफान मेरा साहिल है कौन मैं हूँ नाव मेरा नाविक है कौन मैं इठलाती नदिया मेरा सागर है कौन मैं वनफूल मेरा वनमाली है कौन मैं मिट्टी मेरा कुम्हार है कौन मैं नश्वर शरीर मेरी आत्मा है कौन मैं लोभी मेरी तृप्ति है कौन मैं मोह का ताला मेरी कुंजी है कौन प्रभु मुस्कुराते हुए बोले हे मानव तेरा सच्चा साथी तेरा सारथी हूँ मैं तू राही तेरी मंजिल हूँ मैं तू पंछी तेरा घोसला हूँ मैं तू तूफान तेरा साहिल हूँ मैं तू चलती नाव तेरा नाविक हूँ मैं तू इठलाती नदिया तेरा सागर हूँ मैं तू वनफूल तेरा वनमाली हूँ मैं तू है मिट्टी तेरा कुम्हार हूँ मैं तू नश्वर शरीर तेरी अंतरात्मा हूँ मैं तू परमलोभी तेरी तृप्त...