प्रीत कान्हा से
विमल राव
भोपाल मध्य प्रदेश
********************
कान्हा तुम संग प्रीत लगाई
मन हीं मन पछताई मैं।
विरह अगनी में ऐसी उलझी
आपही रास रचाई मैं॥
भूल गई मैं सांझ सवेरा
द्वार द्वार फिर आई मैं।
कहाँ गयो चितचौर कन्हैया
नैयनन ढूंढ ना पाई मैं॥
गोपियन संग जो रास रचायों
मोहे कन्हैया नाच नचायों।
घैर लयी पनघट कान्हा नें
प्रेम रंग कों राग बजायों॥
मैं आगे कान्हा पीछे
बृज की गलियन, दौड़ाई मैं।
हिय में ऐसो, बसो नंदलला
याहे एक क्षण भूल ना पाई मैं॥
सखी श्याम सलोनों कितै गयो
याकि बंशी चुरा ल्ये आई मैं।
काऊ देखो हैं कुँज गलिन कान्हा
यासों प्रीत भुला ना पाई मैं॥
परिचय :- विमल राव "भोपाल"
पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया।
निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र)
विशेष : कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्था...

























