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पद्य

सबक से सबक
कविता

सबक से सबक

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** सबक हर मोड़ पर, जिंदगी से सदा पाया मैंने। सबक से सबक, जिंदगी को जन्नत बनाया मैंने।। सबसे ले सबसे, और राह प्रशस्त किया मैंने । जो मिला जिसे मिला, सबक सदा लिया मैंने।। ठोकर लगी तो कभी, राह को बदला नहीं मैंने । उससे भी संभल, चलने का सबक लिया मैंने ।। बड़े बुजुर्ग अनुभव को, हृदय गम किया मैंने। आज जो कुछ हूँ, उसका श्रेय उन्हें दिया मैंने।। आदर्श उन्हें ही बना, हर कदम फूंक रखा मैंने । जहां चालबाजों का, परख अपना बनाया मैंने।। ना आई बहकावें में, धैर्य को धारण किया मैंने । बुजुर्ग सलाह से सदा, शुरु हर कार्य किया मैंने।। आशीर्वाद सदा उनका, हर कदम लिया मैंने। दुआओं में कितना दम, देख लिया आज सबने।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि...
आज का  युग
कविता

आज का युग

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** हर जनों मे भ्रष्टाचार का वास हो गया है कलियुग मे सत्य बेईमानी का दास हो गया है। कट गई इंसानियत, की पूरी फसल, चारों और स्वार्थ का घास हो गया है। रिश्वत के पैर जमे, न्यायालय मे भी, न्याय का पन्ना झूठ, का भंडार हो गया है। गीता बाईबल कुराण पड़े कोने मे, कर्म चलती फिरती, लाश हो गया हैं। दिन रैन के सांक्षी, चंन्द्र सूर्य होने पर भी, हैं ऊपर के मालिक, अभी तक न्याय नहीं किया बेहतर होगा कि जमीन पर, वीर हनुमान आ जाये, लंका जैसी दुष्टों की, नगरी जला जाये। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। व...
अधूरा साथ
कविता

अधूरा साथ

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** जिन्दगी ये मेरी कोई शीशा नहीं खेलकर तोड़ दो है खिलौना नहीं वर्षों लगी हैं मुझे सजाने में इसे छोड़कर जाऊँ कोई है मकाँ नहीं बेजह तुम बनें जिन्दगी यूँ रहे साथ मेरे करते खिलवाड़ क्यों रहे हम तो अकेले थे बनें रहने देते अधूरा साथ मुझको देते क्यों रहे . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक...
वक्त
कविता

वक्त

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** ऐसे तो न थे हम, हमने भी नाज था, अंदाज़ था गुस्सा था, वक्त ने, बदल दिया हमें, और हमें, पता भी न चला, कहते हैं..... जिंदगी सिखा देती है, हर हाल में जीना, हम यूं ही, जीते गए, वक्त गुजरता गया, और हो गया, सभी परिस्थितियों से समझौता... और आ गया हमें, हर हाल में जीना।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेपर मुंबई,  कहानी संग्रह, काव्य संग्रह सम्मान : ...
जीवन यात्रा
कविता

जीवन यात्रा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** जीवन यात्रा में यह संजोग कैसी? अद्भुत सुखद दिवास्वप्न सी आलस की नीरवता सी सागर की गंभीरता से! उद्धत कर्म पथ पर अर्चना की समर्पण में! भावा विभोर होकर मैं एक अदना सा प्रकाश विलीन होकर! एक नई जीवन सजाने की कामना करता हूं! इस जीवन यात्रा में अनेक पगडंडियों से या पहाड़ियों से गुजर ना होगा! कंदरा गुफा में रातें गुजारने होगी एसी अपेक्षाएं की जाती है जीवन की साहसिक यात्राओं में सरपट सड़कों पर दौड़ लगाना होगा ऐसी उम्मीद की जाती है अक्सर माननीय यात्रा में यह आश्चर्य से ही संभव है जीवन यात्रा एक सपना है, रंगमंच है रंगमंच पर सभी को उतरना है! अपनी कलाकारीताको निखार ना है-सवारना है क्योंकि एक पूर्ण को इसमें बंधना होगा, ऐसी धारणाएं है मेरी संस्कृति की! यह अर्चना क्या है एक समर्पण है एक आकार है आरोपी अध्यात्म का अनुपम प्रकाश है! . लेखक ...
क्या है वो जिन्हें
कविता

क्या है वो जिन्हें

संजय जैन मुंबई ******************** कुछ तो बात है उनमें, तभी लोग उनके हो जाते है। अपने अपने प्यार का इजहार करने, गुलाब का फूल लेकर, बार बार सामने जाते है। भले ही कुछ बोल न सके, पर अपनी बात गुलाब दिखकर समझते है। और अपनी चाहत को, उन्हें दिखाते है।। कमबख्त ये दिल भी, कुछ ऐसा ही है। जो बार बार उनको, धडकनों में पुकारता है। और कहता है कि अब, दे दे दवा या जहर। दिल से तुझे पाने आये है।। मोहब्बत करने वाले, कभी भी डरते नहीं। जो जमाने से डरते है, वो मोहब्बत कर सकते नहीं। इतिहास मोहब्बत का देखो, आनरकाली सलीम नजर आएंगे। मोहब्बत होती है क्या वो बतलायेंगे।। मोहब्बत की खातिर अनारकली, जिन्दा चुनबाई जाती है। और मोहब्बत की कहानी को, हमेशा के लिए जिंदा रख जाती है। क्योंकि मोहब्बत नहीं देखती, राजा और रंक को। ये तो दिल से निभाई जाती है....। बस दिल से निभाई जाती है।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्...
मंजिल पुकारती है
कविता

मंजिल पुकारती है

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** अपनी मंजिलों को चाहो कुछ ऐसी मुहब्बत से पडे देना खुदा को पूरी शिद्दत से। न करो हुकूमत, न सहो हुकूमत रहो ज़िंदा पूरी शिद्दत से। न कोई हमराह है, न कोई रहगुजर चलो अकेले ही पूरी शिद्दत से। करो कुछ काम ऐसा हो नाज उसको अपने बंदों पर। परिश्रम के बीज डालो अश्रु जल सिंचित करो। करो जतन कुछ इस तरह सफल उद्देश्य हो हर तरफ। मंजिलें तुमको बुलाती हो द्रढ सजग आगे बढ़ो पूरी शिद्दत से। अपनी मंजिलों को चाहो कुछ ऐसी मुहब्बत से पडे देना खुदा को पूरी शिद्दत से। . परिचय :- नाम - रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित ...
वो समुन्दर है
कविता

वो समुन्दर है

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** बहुत कुछ खोया है उसने अपने जीवन की दिनचर्या में बहुत कुछ सहना सीखा है महज़ बात को कहने में आज तूफ़ान हिलोरे लेते हैं समाज रूपी कुरीतियों में नहीं डरी हैं मेरी माताएँ उनको आगोश में लेने में एक रुप समुन्दर रुपी उनका मुझे देखने को मिल जाता है बाबुल का घर छोड़ चलीं जब पति का घर मिल जाता है जरा हिचक न दिखती उनमें अनजाने घर में अपना दायित्व निभाने में सच में क्षमता रखती हैं वो सब कुछ अपने में समाने में . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य सं...
सपने
कविता

सपने

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** सर्द हवा का झोंका, छू जाता है, और अचानक उठा देता है, मीठे सपनों से, जो बुने थे हमने, साथ साथ रात भर लेटे-लेटे, सुबह दिला देती है, फिर अकेलेपन का एहसास, सर्द हवा का झोंका, ले जाता है, तुम्हारे सपनों से दूर.... बहुत दूर... जहां सघन होने लगता है, फिर अकेले होने का एहसास, और मैं अपने सपने समेटे, मन के किसी कोने में, सिमट उठती हूं। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट...
प्यारे लगते है
कविता

प्यारे लगते है

संजय जैन मुंबई ******************** हँसता हुआ चेहरा, प्यारा लगता है। तेरा मुझे देखना, अच्छा लगता है। घायल कर देती है तेरी आँखे और मुस्कान। जिसके कारण पूरा दिन, सुहाना लगता है।। जिस दिन दिखे न तेरी एक झलक। तो मन उदास सा, हो जाता है। क्योंकि, आदि सा हो गया है, तुम्हे देखने को जो। कैसे समझाए दिल को जो अब बस में नहीं है।। तमन्ना है कि वो, रोज दिखते रहे। मेरे दिल में, वो बसते रहे। कभी तो हम, उन्हें पसंद आएंगे। अलग अलग रास्ते, फिर एक हो जाएंगे।। दिन जिंदगी का वो, यादगार बन जायेगा। प्यार का किस्सा, अमर हो जाएगा। जिस दिन इतिहास, इसे दौहरायेगा। तेरा मेरा प्यार, दुनियां वालो को समझ आयेगा।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्र...
कल के बच्चें हैं हम सब
कविता, बाल कविताएं

कल के बच्चें हैं हम सब

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** सुबह-सुबह उठना हैं पड़ता हम सब प्यारें बच्चों को मम्मी-पापा के सपनों का बोझा ढोंना पड़ता हैं हम सब प्यारे बच्चों को। मम्मी कहती हिन्दी पढ़ लो पापा कहते गणित लगाओं बाकी घर वाले सब इंग्लिश के पीछे पड़ जाते हैं हम सब प्यारें बच्चों के। बिना भूख के खाना पड़ता बिना नींद के सोना पड़ता कपड़ों में यूनिफॉर्म शिवा हम सब को कुछ न मिलता हैं हम सब प्यारे बच्चों को। कभी तो पूछो हम सब से भी हम सब का सपना क्या हैं? हम सब को क्या अच्छा लगता हैं? हर कोई तो कहते हो कि हम सब आने वाला कल हैं फिर अपने कल को आप सभी आज कैंद क्यों करते रहते हो हम सबको भी थोड़ा सोने दो हम सबको थोड़ा खेलने दो बचपन को बचपन रहने दो हम सब प्यारे बच्चों का।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
मिथ्या ख्वाब
कविता

मिथ्या ख्वाब

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** खेले सदा  जो वीरानियो मे भाई उन्हें कब महफिले, अरमा सजे टूटे सदा जब मिलती कहाँ है मन्जिले उड़ते परिन्दे देख के नभ मे, तौल लिये पर ख्वाहिश के, हर ख्वाहिश दम तोड़ गयी, की भाग्य ने गुप चुप साजिश ये, सप्त सिन्धु भर जाये अश्रु से, या उठे दावानल अन्तस मे, तिल तिल कर मर जाये स्वप्न, या मिले ठोकरे हर पग मे, हो न मलिन ह्रदय किसी का, तेरे अन्तर की दुखती रग से, होठों पर मुस्कान सजा नयनो मे छुपा ले मोती को, महफिल मे जगा कहकहे बुलन्द, फिर अश्रु बहा ले वीराने मे, यूँ बहका ले अपना हर अरमां, मिथ्या ख्वाब जगा कर जीवन मे . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेर...
नव वर्ष
कविता

नव वर्ष

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** नव वर्ष के शुभ अवसर पर नव संकल्प ले जीवन पथ पर। विगत पतझड़ को भूल जाओ नव बसंत को याद करो। कोयल की वह मधुर कुक लालटेसुओ की भरमार। नव किससय से प्रफुल्लित तन मन आम्र मंजरीयो की जयमाल। भूल जाओ उस विगत वर्ष को दानवता की भयावह चित्कार। जोर-जोर ऊंची आवाजों में रोया जो स्वान और श्रृंगाल। याद करो उस चटक चांदनी को जो खिला था नभ में भरपूर। खिल गई थी पीली सरसों महक रही थी रजनीगंधा। हरियाली थी भरपूर चिपक गई थी चटक चांदनी दूधिया रोशनी थी भरपूर। याद करो उस विगत जब प्रकृति की वैभव से धरती मां रहती थी भरपूर। कलकल निनाद से बहती थी नदियां पक्षियों का कलरव भरपूर। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अप...
दूरियां
कविता

दूरियां

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बात कुछ ही साल पुरानी मकान छोटे दिल बड़े थे, अब, मकान बड़ा दिल छोटा हो गया अतिथि देवो भव कुत्तो से सावधान द्वारा स्थापन्न हो गया एक से साथ अनेक होते थे अब अनेक के बीच एक नितांत अकेला रह गया। अहम की भीड़ में हम खो गया। मैं, तू एक दूजे को जाने भी तो कैसे, मैं, मैं बना रहा तू भी तू ही रह गया। बीच तेरे मेरे कोई रंजिश भी नही, बस आगे निकलने की चाह में दरमियां फासला बढ़ता गया । निगाहें भी नही मिलती है अब तो लगता है, आंखों का पानी ही सुख गया। चाह कर भी अब मिलना मुश्किल हो गया जीवन की नदी का एक किनारा मैं, दूजा तू हो गया। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। ...
इतना मुझे देना
कविता

इतना मुझे देना

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** शब्दों में सामर्थ्य बस, इतना मुझे देना प्रभु। प्रार्थना मन से करूँ, तुम तक वह पहुँचें प्रभु।। धर्म जाति से परे हो, जीवन सदा मेरा प्रभु। किसी का दर्द समझू, ऐसा जीवन मेरा प्रभु।। कर्म कांड पाखंड से, सदा दूर में रहूँ प्रभु । किसी की मदद करू, इतनी शक्ति देना प्रभु।। सज्जन व्यक्ति बन, जीवन यापन करुँ प्रभु। दिल में जगह मिले, यही प्रार्थना करूँ प्रभु।। नहीं चाहिए धन दौलत, दीन बन रहूँ प्रभु। सेवा दीन की करुँ तो, जीवन सफल हो प्रभु।। प्रार्थना बस यही, तुझसे मैं सदा करूँ प्रभु। कोई गरीब भूखा उठे, पर भूखा ना सोए प्रभु।। जब जाऊ इस जहां से, याद में आऊँ प्रभु। कर्म कुछ ऐसे करूं, ठौर चरण पाऊँ प्रभु।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि ह...
वंदना …
छंद, धनाक्षरी

वंदना …

शरद मिश्र 'सिंधु' लखनऊ उ.प्र. ********************** वीणा वादिनी विभव वारिए विकल वत्स वंदना विडंबना वरंच विलगाईये। लाल लाल लहू लक्ष्म लोचन ललाम लुप्त लूला लाल लग लक्ष्य लकुट लड़ाईए। स्वर सुधा सरिता सलिल सरसाए स्याम सूत्र सार सबको सुदामा सा सुनाईए। कामना कि कमलासिनी कपट कलुषों को काटके कलंकहीन कीर्ति करवाईए। . लेखक परिचय :-  नाम - शरद मिश्र 'सिंधु' उपनाम - सत्यानंद शरद सिंधु पिता का नाम - श्री महेंद्र नारायण मिश्र माता का नाम - श्रीमती कांती देवी मिश्रा जन्मतिथि - ३/१०/१९६९ जन्मस्थान - ग्राम - कंजिया, पोस्ट-अटरामपुर, जनपद- प्रयाग राज (इलाहाबाद) निवासी - पारा, लखनऊ, उ. प्र. शिक्षा - बी ए, बी एड, एल एल बी कार्य - वकालत, उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ सम्मान - सर्वश्रेष्ठ युवा रचनाकार २००५ (युवा रचनाकार मंच लखनऊ), चेतना श्री २००३, चेतना साहित्य परिषद लखनऊ, भगत सिंह सम्मान २००८, शिव सिंह सरोज ...
जीवन का तत्व
कविता

जीवन का तत्व

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** तेरा मेरा करते करते एक दिन चले जाना है, जो भी कमाया यही रह जाना है। करलो कुछ अच्छे कर्म, साथ तेरे यही जाना है। रोने से तो आशू भी पराये हो जाते हैं, लेकिन..... मुस्कुराने से पराये भी अपने हो जाते हैं। मुझें वो रिश्ते प्रसंद हैं, जिसमे मैं नही, हम है। इंसानियत दिल से होती हैं, हैसियत नही। ऊपरवाला कर्म देखता है, वसियल नही... . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी साहित्य, पी.एचडी अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविता...
सर्दी के मौसम में
कविता

सर्दी के मौसम में

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** सर्दी के मौसम में, तू बैठ ना मेरे पास। कहीं मैं जल गई तो? कहीं मैं पिघल गई थी। इस सर्द हवाओं की सिहरन में, उस सूरज की किरणों की तपन में, अब कहां वो बात? क्या सच में लंबी हो गई है रात? जब से हुई है तुमसे मुलाकात। सब कहते हैं, कितना मासूम चेहरा तेरा है। सबसे कैसे कह दूं, तेरी नजरों की छुअन है। सब कहते हैं बड़ी सौगंध है, तेरे रूह में। कैसे कह दूं, तेरी सांसो की छुअन है। सर्दी के मौसम में, तू बैठ ना मेरे पास। कहीं मैं जल गई तो...... . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ट...
अपने इश्क में …
कविता

अपने इश्क में …

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** अपने इश्क में, यू जकड़ कर, न रख मुझे, ऐसा ना हो, तेरे कदमों की, बेड़ियां बन जाऊं।। तेरे इश्क में, खामोश रहकर भी, तुझे अपना बनाने की, खता ना कर जाऊं, यूं हौसला ना दे मुझे, मेरी हिम्मत पर, क्या पता, तेरे सजदे में, सर झुका जाऊं, यूं तो लोगों ने सराहा है, हमारी पाके मोहब्बत, तेरी इस एहसास में, दुनिया से खता ना कर जाऊं, आ, अब तो बाहों में, समा ले मुझे, तेरी इस दुनिया से, कहीं रुखसती न कर जाऊं, अपने इश्क में, यूं जकड़ कर ना रख मुझे, ऐसा ना हो, तेरे कदमों की, बेड़ियां बन जाऊं...... . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिम...
फिर छिड़ी बात …
कविता

फिर छिड़ी बात …

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** फिर छिड़ी बात उन तरानों की, हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की। बरसात से ढहते उन कच्चे मकानों की, खेत मे काम करते मेहनती किसानों की। गोली बिस्कुल वाली गांव में दुकानों की, बेवजह किसानों पर लगते लगानो की। हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की। देसी घी पीते उन देसी पहलवानो की, चाय की हरी पत्ती के उन बागानों की। लैला और मजनू जैसे कई दीवानों की, रफी और किशोर कुमार के तरानों की। हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की। इनाम में मिले बक्शीस और नज़रानो की, राजा रजवाड़ो के उन महंगे राज घरानो की। घने जंगल कटीले पहाड़ और ख़ज़ानों की, डांकुओं की लूट और बेरहम शैतानों की। हम दिलाएंगे तुम्हे याद उन ज़मानों की। ज़्यादा दिन रुकने वाले घर आये मेहमानों की, मां के हाथ से चूल्हे पर बने पकवानों की। मिट्टी के बर्तन और सूत से कपड़े बनाने की, शुध्द वातावरण औ...
दबी आवाजे
कविता

दबी आवाजे

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आवाज कौन उठाए समस्याओं के दलदल भरे हर जगह रोटी कपडा मकान का पुराना रोना जिस रोने के गीत वर्षो से गा रहे गुहार की राग में भूखे रहकर उपवास की उपमा ऊपर वाला भी देखता तमाशे दुनिया की जद्दो-जहद जो उलझी मकड़ी के जाले में फंसी हो ऐसे होने लगी जीव की हालत जिसे नीचे वाला सुलझा न सका वो ऊपर वाले से वेदना के स्वर की अर्जी प्रार्थना के रूप में देता आया धरा पर कौन सुने गुहार जैसे श्मशान में मुर्दे  को ले जाकर उसकी गाथाएं भी श्मशान के दायरे में हो जाती ओझल भूल जाते इंसानी काया की तरह हर समस्या का निदान करना . परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में ...
प्रकृति की देन
कविता

प्रकृति की देन

संजय जैन मुंबई ******************** नदिया न पिये, कभी अपना जल। वृक्ष न खाए, कभी अपना फल। सभी को देते रहते, सदा ही वो फल और जल। नदिया न पिये कभी...।। न वो देखे जात पात, और न देखे छोटा बड़ा। न करते वो भेद भाव, और न देखे अमीरी गरीबी। सदा ही रखते समान भाव, और करते सब पर उपकार। नदिया पिये कभी.....।। निरंतर बहती रहती, चारो दिशाओं में नदियां। हर मौसम के फल देते, वृक्ष हमें सदा यहां। तभी तो प्रकृति की देन कहते, हम सब लोग उन्हें सदा। नदिया न पिये कभी...।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का ज...
अपनापन
कविता

अपनापन

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** अपनापन कितना कटु सत्य है, शायद हम सभी मानते हैं। मानवीयता की कसौटी पर, इससे तौल सकते हैं। जब हम जीवन की प्रतियोगी बन, सफली भूत होते हैं, तो यह अपनापन कितना मनभावन लगता है। क्या सही मायने में हम, इसे अपनापन कहते हैं। जब मजबूरी के क्षण में, यह अपनापन टूटने लगता है। तो वास्तविकता के सही मायने, सामने आने लगता है। क्या इस कटु सत्य को, अपनापन सही मायने में कहते हैं। जो हर एक क्षण सांत्वना देता हो, विपत्तियों के छन में भी, दिल को चूम लेता हो। नए उत्साह और स्फूर्ति, फिर से भर देता हो। सही मायने में इसे, हम अपनापन कहते हैं। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते...
काश अगर मैं पंछी होता
कविता

काश अगर मैं पंछी होता

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** खुला आसमां मेरा होता, सुखमय रैन बसेरा होता । चूमें ऊँचे पेड़ गगन को, शाखाओं पर डेरा होता ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... मनमौजी बन मन की करता, तजकर दिल से रंज व रंजिश। न कोई होती हद व सरहद, न कोई बाधा, बंधन, बंदिश ।। काश ! अगर मैं पंछी होता है..... प्रकृति की गोद में खेलूँ, लूँ मनोहर , मोहक नजारा । आकर्षक आवाज लुभानी, सुंदरता का करूँ इशारा ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... पनपे नहीं प्रेम से पीड़ा, लेकर देश, धर्म, जाति को । एक जैसा सबको चाहता, जितना संबंधी, नाती को ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... बस मेहनत बलबूता होता, लगाम कभी न लगे लगन पे । उड़ता पंखों को फैलाकर, राज करूँ मैं नील गगन पर ।। काश ! अगर मैं पंछी होता..... चिंता मुक्त चेतना चित में, उर आजाद करे नभ विचरण । हिला-हिलाकर पंख बुलाता, मुक्त प्यार का करता वितरण।। ...
भूल मत जाना …
गीत

भूल मत जाना …

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** भूल मत जाना बहना को भैया, छोड़ बाबुल घर, चहकने चली आँगन सैंया। राखी की डोर याद रखना सदा दिल से निकाल कर मत देना सजा बहना की सुध-बुध लेते रहना कभी-कभी दुआ है ईश्वर से खुशी मिले तुम्हें सभी। भूल मत जाना बहना को भैया, रक्षा करना हरदम मेरी डूबती नैया। एक ही आरजू करती है बहना प्यारी स्नेह की वर्षा करते रहना शीश पर हमारी खो मत जाना धन की अंधी गलियों में बँध कर रहना अनोखे भाई-बहन रिश्तों में भूल मत जाना बहना को भैया, छोड़ बाबुल घर चहकने चली आँगन सैंया।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कह...