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पद्य

मैं स्त्री
कविता

मैं स्त्री

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पिता पति दो तटबंधों के मध्य, आजीवन नदी बन बहती रहूं। मैं स्त्री हर कदम पर वर्जनाएं, जन्म से मरण तक सहती रहूं। क्यूं नर जन्म पर बजती थाली, और मैं पराया धन सुनती रहूं। मेरे ही जल से सिंचित जीवन, सदियों से अबला बनती रहूं। मैं जिस आंगन में पली बढ़ी, वो घर बाबुल का सुनती रहूं। ठुमकी मचली जिस देहरी में, कब चिड़िया बन उड़ती रहूं। फल फूल खुश्बू से सरोबार, मैं तरु माफ़िक फलती रहूं। पिता पति के घर को भला, कैसे! मैं अपना बुनती रहूं। पापा रोती होगी तेरी काया, जब मैं दूजे घर जलती रहूं। कोख सिसकती रही मां की, लाल जोड़े में लटकती रहूं। मैं प्रकृति को संवार कर भी, नर से जीवन भर छलती रहूं। सीता अहिल्या द्रोपदी बन, सदा हर युग में बुझती रहूं। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) ...
आहट
गीत

आहट

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आहट सुनकर बौराती हूँ, तकती निशिदिन द्वार। तुझ बिन सूना घर आँगन है, लगता जीवन भार।। स्वप्न सजाए लाखों मैने, पुष्प बिछाये पाथ। प्यास बुझाने मेह बुलाए, लगा न कुछ भी हाथ।। बंधन सारे तोड़ चला तू, मानी मैंने हार।। कंचन थाली काम न आई, भूखा सोया लाल। यम ने बाहुपाश में बाँधा, बलशाली है काल।। नयनों से बस नीर बहे है, उर जलते अंगार।। तंत्र- मंत्र सब खाली जाते, आया है अवसाद। मुरझाई प्रेमिल बगिया है, शेष रही है याद।। फेंक मौत का जाल मौन अब, बैठ गया करतार। पीड़ा माँ की कौन जानता, जाने बस सिद्धार्थ। ममता ने दी बस आशीषें, भूलो मत तुम पार्थ।। मानव केवल दास नियति का, बात करो स्वीकार। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पा...
हम सहेलियाँ
कविता

हम सहेलियाँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हम सखियाँ, हम सहेलियाँ, हम हैं हमजोलियां, बात बहुत पुरानी है, पर प्यार, स्नेह, लगाव, परवाह अभी भी नया है जीवन की राह में मिलती हैं कई सखियाँ किन्तु कुछ ही प्रिय और अनमोल बन पाती हैं सहेलियाँ, हम भी हैं कुछ वैसी ही सलोनीयां बरसों साथ रहे, सुख दुख भी बांटे साथ-साथ बच्चे भी बन गए आपस में सहेलियाँ! कभी कहीं जाते कभी कहीं जाते, साथ थिरकते साथ गाते साथ ही साथ हर उत्सव मानते! कभी कोई रूठता कभी कोई टूटता, आपस में मिलकर उसे मनाते और फिर से जुड़ जाते गहरी सहेलियाँ! समय बीता, साल बीते, बच्चे बड़े हुए थोड़ा दूर निकल गए बालों में सफ़ेदी की चमक आई, चेहरे पर सिलवटें भी आ गयीं, थोड़ा कमर भी छुकी थोड़ा मध्यम हुए, जिम्मेदारी के बोझ तले कभी असहाय-लाचार भी हुईं हम सहेलियाँ, मगर सबको साथ लेक...
पंडित जी के मोक्ष
कविता

पंडित जी के मोक्ष

उत्कर्ष सोनबोइर खुर्सीपार भिलाई ******************** कंधे से कंधे मिला कर चलने वाला दोस्त, जब आपको कंधो पर बैठाकर समूचा बस्तर दशहरा दिखा दिया हो! एक ऐसा दोस्त जो हॉस्टल से घर जाने के बाद सेमेस्टर ब्रेक में भी आपको कॉल करता हो... और हर बार ये फोन लगाकर पूछता हो कि "कब आथस बे?" एक ऐसा दोस्त जिसे घर पहुँच कर बताना पड़े की "हां पहुँच गे हो बे" जो तुम्हें हॉस्टल आने की हर खबर सुनते ही बस स्टेशन पर हर बार लेने पहुँच जाए। वो हर एक दोस्त का बेस्ट फ्रेंड है पर उसके नज़र में हर एक दोस्त बेस्ट है। वो जंहा बैठे वंहा महफ़िल बन जाए मुझे वो कुछ इस तरह मिला गया जैसे देवभोग के खदान से हीरा बेस्ट सीआर, यारों का यार, सीनियरस का मान, कॉलेज की शान सभी के दिलों में राज करने वाला नाम है - मोक्ष परिचय :- उत्कर्ष सोनबोइर (विधार्थी) निवासी : खुर्सीपार भिला...
शिक्षक: एक भविष्य निर्माता
कविता

शिक्षक: एक भविष्य निर्माता

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** ज्ञान की पाठशाला में, जो सबको पढ़ाई करवाता है। वो शिक्षक ही तो है, जो बगिया में फूल खिलाता है।। सादे कोरे कागज में, शब्द लिखकर चित्र बनाता है। बच्चे कच्ची मिट्टी के समान, उन्हें आकार दे जाता है।। स्वयं चलता दुर्गम राह में, शिष्यों के लिए सुगम बनाने। स्वयं तपता है भट्टी में, कच्चे लोहे से औजार बनाने।। सड़क के जैसे पड़ा है, विद्यार्थी आते-जाते अनजाने। चले जा रहे रफ्तार से, मुसाफिर के मंजिल है सुहाने।। एक लक्ष्य, एक राह, मन में पैदा करता है सदा जुनून। हौसलों को बुलंद कर, अनुभव की चक्की से पीसे घुन।। शिक्षादूत, ज्ञानदीप, शिक्षाविद् ही दूर करता है अवगुन। जीत दिलाने अध्येता को, त्याग देता है चैन और सुकून।। कर्म औषधि जड़ी-बूटी को, अज्ञानियों को खिलाता है। ज्ञान गंगा प्रवाहित कर, ज्ञान अमृत सबको पिलाता है।...
शिक्षक ज्ञान का संसार …
कविता

शिक्षक ज्ञान का संसार …

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** जब था हमारा विद्यार्थी जीवन विद्यालय जाने की चढ़ती धुन समय शिक्षक संग बिताते थे हम मित्रों और शिक्षको के संग कैसे हंसी खुशी बीत जाता बचपन कक्षा में बैठकर पढ़ने में लीन होने की धुन कभी नहीं होती थी हममें कम पढ़ने की चढ़ती थी उमंग तरंग कतार में खड़े होकर नियमित प्रार्थना गाते थे हम तनमन से शिक्षक के समक्ष कुर्सी पर बैठ जाते थे हम घण्टी बजते ही शिक्षक खाता लेकर कक्षा में आते आते ही सम्मान करते, खड़े हो जाते हम हाजरी वे सबसे पहले लगाते, अपनी उपस्थिति हम बताते बचपन में वो हमें अक्षर ज्ञान के पाठ सिखने को संग बिठाते, पढ़ाने में लीन कराते अन्तर्मन से अक्षर बचपन में खूब समझाते पढ़ने की हर जिज्ञासा को पल में अन्तर्मन में रमाते रटा रटा कर लिखना पढ़ना हम बच्चो को खूब सिखाते नए नए ज्ञान की नितप्रतिदिन जीवन घुं...
दुनियादारी
कविता

दुनियादारी

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** सामाजिक संबंधों से जब मैं, हो जाऊंगा निराश और हताश, तब मेरे मुंह से निकलेगा अनायास, कि धोखे की नींव पर, टिकी है यह‌ सारी दुनिया, कि जिसकी नींव ही धोखा हो, हकीकत ‌हो सकती है, भला उसकी मंजिल कभी? फिर मैं कहूंगा, चिरस्थाई नहीं है, इस संसार के लिए जो, वह मेरे लिए कैसे स्थाई हो सकता है, जो भी आया है जीवन में किसी के, जाएगा तो अनिवार्यतः ही, यह परम सत्ता, तो प्रतिपल परिवर्तनशील है, उसने कहा था कि, परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है, और जो शाश्वत होता है, वह कभी भी अशास्वत कैसे हो सकता है? इसलिए उसका बदलना, उसके भीतर के दोषों को नहीं दिखता, बल्कि दिखाता है, उसके भीतर की दुनियावी सास्वतता...!! परिचय :- शैल यादव निवासी : लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) सम्प्रति : शिक्षक- जीआईसी घोषणा ...
चंद्रयान पहुँचा चंदा पर
कविता

चंद्रयान पहुँचा चंदा पर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** चंद्रयान पहुँचा चंदा पर, तीन रंग फहराये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। ज़ीरो को खोजा था हमने, आर्यभट्ट पहुँचाया। छोड़ मिसाइल शक्ति बने हम, सबका मन लहराया।। सबने मिल जयनाद गुँजाया, जन-गण-मन सब गाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। मैं महान हूँ, कह सकते हम, हमने यश को पाया। एक महागौरव हाथों में, आज हमारे आया।। जिनको नहीं सुहाते थे हम, उनको हम हैं भाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। जो कहते थे वे महान हैं, उनको धता बताया। भारत गुरु है दुनिया भर का, यह हमने जतलाया।। शान तिरंगा-आन तिरंगा, गीत लबों पर आये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। अंधकार में किया उजाला, ताक़त को बतलाया। जो समझे थे हमको दुर्बल, उन पर भय है आया।। जोश लिये हर जन उल्लासित, हम हर दिल...
बुरा क्या है …?
कविता

बुरा क्या है …?

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** बंदिशों का पिंजरा तोड़, उड़ जाने को जी चाहे। तो बुरा क्या है? अपने लिए कुछ वक्त, चुराने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? समझदारियों की बातें छोड़, नादानियाँ करने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? छोड़ बनावटी हँसी, रूठ जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? न सुन जमाने की, मनमानी कर जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? सपनों को सच करने, जी जान लगाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? जी हुजूरी छोड़, करने को बगावत जी चाहे, तो बुरा क्या है? अन्याय होता देख, आवाज उठाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? भीड़ से अलग, पहचान बनाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? हक के लिए, लड़ भिड़ जाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? दिखावे को छोड़, असलियत अपनाने को जी चाहे, तो बुरा क्या है? परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : ...
मेरी माटी मेरा देश
कविता

मेरी माटी मेरा देश

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** मेरी माटी मेरा देश .. भारत का यही संदेश .. आओ मिल-जुल गाओ जी .. भारत का मान बढ़ाओ जी .. अमर शहीदों के कुर्बानी से, मिली है हमें आजादी जी। जय हिंद के नारा लगाकर, अमृत उत्सव मनाओ जी। तिरंगा का तो प्रतीक है, आन, बान और शान जी। आओ इन्हें नमन करें हम, भारतवासी हिंदुस्तान जी। मानव बनकर मानवता का, भाईचारा का भाव गढ़ों। इंसान बनकर इंसानियत का, देशप्रेम का पाठ पढ़ो। हिंदु मुस्लिम सिक्ख इसाई, संस्कृति का संवर्धन करो। जन-गण-मन गान कर सब, राष्ट्रीयता का पहचान करो। परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्यक्षेत्र : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
आजादी के दीवाने
कविता

आजादी के दीवाने

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आजादी का ये पावन क्षण, तश्तरियों में सज नहीं आयी है, रणबांकुरे रहे और भी, सबने मिलजुल लड़ी लड़ाई है। बांके चमार, मातादीन भंगी, ये भी आजादी के दीवाने थे, नाक में दम कर रखा फिरंगियों के,ऐसे ये परवाने थे। सिद्धू संथाल और गोची मांझी,युद्ध कला में थे निपुण, ताड़ पेड़ पर चढ़ तीर चलाये, अंग्रेजों ने भी माना गुण। नाहर खां और उदईया, गोरों के थे कट्टर विरोधी, फांसी पर चढ़ गया उदईया, धूल थी माटी की सोंधी। चेतराम जाटव, बल्लू मेहतर को, इतिहासकारों ने भूला दिया, हुए कुर्बान देश की आन में, गोली से जिन्हें मार उड़ा दिया। झलकारी बाई के रण कौशल ने, अंग्रेजों को हैरान किया, हमशक्ल लक्ष्मी की थी वीरांगना, नहीं कोई गुणगान किया। उदादेवी पासी चिनहट युद्ध की, बलिदानी नारी योद्धा थी, छत्तीस गोरों को गोली से भूना, आजादी ...
चाँद मेरा बेदाग है
कविता

चाँद मेरा बेदाग है

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** ए चाँद, जरा मेरे इस चांँद को देख। है तुझसे भी ज्यादा कमसिन हसीं।। तुझमें तो दूर से दाग नजर आता है, मेरा चाँद तो बिल्कुल बेदाग है।। ए दागदार चाँद, नजर मत डाल, मेरे इस मासूम से चाँद पर। सामने इसके तू कुछ भी नहीं, मुझे गुरुर है, मेरे इस चाँद पर।। भोली सी सूरत, लबों की लाली सुनहरे रंग लिए कानों की बाली रेशम से केश, हो जुल्फों की बदली, चाल इनकी बेहद मस्त मतवाली।। इनकी रंगत, इनकी संगत सुहाना सफ़र है, मेरा चाँद, मेरी जिंदगी का हमसफर है।। तू बस घूम रहा है, यूंँ बादलों में इर्द-गिर्द मेरा चाँद तो मेरे पास नजरें जमाए बैठी है।। मेरे इस चाँद को देख कर, फलक भी शरमा जाए।। फूलों सी नजाकत लिए हैं, चाँद मेरा देवबाला नजर आए।। नख-शिख-रुप, अखियांँ नूरानी, वो है मेरी सजनी, पगली, दीवानी।।...
पृथ्वी बनी
कविता

पृथ्वी बनी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** पृथ्वी बनी, उस पर पर्वत बने ताकि पृथ्वी लुप्त न हो जाए फिर पर्वत पर पर्व बने ताकि संस्कृति नष्ट न हो जाए। मनु बने, शतरूपा बनी ताकि सृष्टि रची जाए सृष्टि पर फिर भाव बने ताकि सृष्टि नष्ट न हो जाए। भाव बने, ग्रंथ बने ताकि संस्कृति बढ़ती जाए संस्कृति से सब सभ्य बने ताकि सृष्टि उन्नत हो जाए। मानव ने फिर महल रचे ताकि सभ्यता नष्ट न हो जाए युगों-युगों तक बहे प्रेम की धारा ताकि मनु की रचना बच जाए। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की क...
तुम्हारा अद्भुत है संसार … महाश्रृंगार छन्द में
छंद

तुम्हारा अद्भुत है संसार … महाश्रृंगार छन्द में

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** महाश्रृंगार छन्द कहीं पर कितने पहरेदार, कहीं पर एक न चौकीदार। कहीं पर वीरों की हुंकार, कहीं का कायर है सरदार।। कहीं पर बूँद नहीं सरकार, कहीं जलधार मूसलाधार। कहीं पर खुशियों की बौछार, कहीं पर दुख के जलद हजार।। कहीं पर अँधियारे की मार, कहीं पर उजियारा आगार। कहीं पर गरमी है गरियार, कहीं पर सर्दी का संहार।। बदलते मौसम बारम्बार, देख कर लीला अपरम्पार। कह उठा मन यह आखिरकार, तुम्हारा अद्भुत है संसार।।१।। किसी का वेतन साठ हजार, किसी को मिलती नहीं पगार। किसी के भरे हुए भण्डार, किसी का उदर बिना आहार।। किसी को सौंपी शक्ति अपार, किसी का अंग-अंग बीमार। किसी को मिले अकट अधिकार, किसी का जीवन ही धिक्कार किसी की नाव बिना पतवार, किसी के हाथ बने हथियार। किसी का सत्य बना आधार, किसी का झूठ पा रहा सार।। ...
आंखें
कविता

आंखें

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** किसी के लिए नहीं रोता है दिल शरारत है सिर्फ इन आंखों की कहीं दिल है रोता, कहीं यह है हंसता शिकायत है सिर्फ इन आंखों से। दर्दो जिगर को संभाले तो कोई शिरकत है सिर्फ इन आंखों की जज्बातों पर काबू करे ना करे कोई मजबूरी है इन आंखों की आंखों के समंदर में डूबे न कोई साहिल का यहां ठिकाना नहीं है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से ज...
गुरुवर वंदना
गीत

गुरुवर वंदना

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अंतस में विश्वास भरो प्रभु, तामस को चीर। प्रेम भाव से जीवन बीते, दूर हो सब पीर।। मान प्रतिष्ठा मिले जगत में, उर यही है आस। शीतल पावन निर्मल तन हो, सुखद हो आभास।। कोई मैं विधा नहीं जानूँ, गुरु सुनो भगवान। भरदो शिक्षा से तुम झोली, दो ज्ञान वरदान।। शिष्य बना लो अर्जुन जैसा, धनुषधारी वीर। बैर द्वेष तज दूँ मैं सारी, खोलो प्रभो द्वार। न्याय धर्म पर चलूँ सदा मैं, टूटे नहीं तार।। आप कृपा के हो सागर, प्रभो जीवन सार। रज चरणों की अपने देदो, गुरु सुनो आधार।। सेवा में दिनरात करूँ प्रभु, रहूँ नहीं अधीर। एकलव्य सा शिष्य बनूँ मैं, रचूँ फिर इतिहास। सत्य मार्ग पर चलता जाऊँ, हो जग उजास।। ब्रह्मा हो गुरु आप विष्णु हो, कहें तीरथ धाम। रसधार बहादो अमरित की, जपूँ आठों याम।। दीपक ज्ञान का अब जला दो, ...
होली
कविता

होली

रामेश्वर पाल बड़वाह (मध्य प्रदेश) ******************** गिर गया झुमका सैया की ठिठोली में बड़ा मजा आया अबकी होली में सहेली का संग छोड़ सैया संग खेली में बड़ा नशा आया अबकी होली में। सैया ने पकड़ी मोरी कलाई रंगों की बौछार गालों पर छाई भीगी मोरी चोली में शरमाई सैया ने नहीं छोड़ी मोरी कलाई गिर गया झुमका दोनों की ठिठोली में बड़ा मजा आया अबकी होली में। सैया ने मारी भर भर पिचकारी मोरा अंग अंग रंग डाला छुपाया था अंग वह भी रंग डाला कहीं लाल कहीं पीला कहीं काला कर डाला गिर गया झुमका न जाने किस की झोली में बड़ा मजा आया अबकी होली में। ढूंढ ढूंढ झुमका में हार गई रे सैया की ठिठोली मुझे मार गई रे नहीं मिला झुमका रंगों के बाजार में बड़ा मजा आया रे होली के त्यौहार में। परिचय :-  रामेश्वर पाल निवासी : बड़वाह (मध्य प्रदेश) विधा : कविता हास्य श्रृंगार व्यंग आदि।...
विश्व गुरु भारत
कविता

विश्व गुरु भारत

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आचार विचार सत्य सही और मन संकल्पित चरम। राज पथ नाम बदलकर कर्तव्य-पथ पर चलते हम। गांधी का भारत छोड़ो, नेताजी चलो दिल्ली शीघ्रम। कर्तव्य पथ वतन से ही हटाई गई मूर्ति जॉर्ज पंचम। नेताजी सुभाष चंद्र बोस हमारे,अमर हैं वंदे मातरम। वैश्विक महामारी कोरोना में देश देखे अदभुत कदम। विकसित देशों का दुनिया ने भी टूटते देखा है भरम। गुणवत्ता प्रधान दवा समुचित सेवा सहयोग निश्चयम। अन्य राष्ट्र से पुरातन वस्तु वापसी विरासत का धरम। वंदे-भारत ट्रेन सेवा की सौगात देश को वंदे मातरम। डिजिटल क्रांति इंटरनेट डेटा जैसे कई सारे लक्षणम। आतंकवाद पत्थरबाज कश्मीर में अमन चैन शरणम। पांच सदी कानून जंग से राम मंदिर अयोध्या प्रसादम। अमृत महोत्सव वर्ष घोषित चौबीस रामलला दर्शनम। भारतमाला परियोजना से सड़क नेटवर्क वंदे मातरम। दमदार दहाड़ते देश विरोधी का अब...
स्वतंत्रता दिवस मनाएँ हम
कविता

स्वतंत्रता दिवस मनाएँ हम

शैलेन्द्र चेलक पेंडरवानी, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** स्वतंत्रता दिवस मनाएँ हम, वीरो के गुण गाये हम, दासता मिटाने जान गवां दिए जो, उन पर बलि - बलि जाएं हम, स्वतंत्रता ... थी कभी सोने की चिड़िया, सजी-धजी सी इक गुड़िया, फूट डालकर फिरंगियों ने, लगा दी दासता की बेड़ियां, अब बेड़ियाँ तो टूट गए, पर भाईचारा छूट गए? आओ मिलजुलकर अमन फैलाये हम, स्वतंत्रता ... चुनौती हर दशक में नया-नया, कभी गरीबी होती नही बयां, कभी आधुनिकता के अंधे, भ्रष्टाचार-घूसखोरी धंधे, कुछ नेक बंदे हैं, कुछ राजनीति वश गंदे है , गंदगी दूर भगाए हम, स्वतंत्रता ... रोजगार की मारामारी है, कहीं कालाबाजारी है, किसान मजदूर हो चला, उनकी विवशता लाचारी है, नई सोच से सबके हित, स्वरोजगार सृजाएँ हम, स्वतंत्रता ... सीमा पर युद्व विराम नही, सेना को आराम नही, पड़ोसी नासमझ, न समझे तो, चुप रहना काम ...
मनुष्य
कविता

मनुष्य

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** यदि मनुष्य हो, मनुष्यता को अपनाओ धर्म अधर्म, रंग रूप, के भेदभाव को छोडो ईश्वर की श्रेष्ठतम रचना हो, श्रेष्ठ बनकर दिखाओ! स्वयं के ज्ञान चक्षु को खोलो, धर्म की ध्वनि को पहचानो, निकल पडो इस दुरूह पथ पर पथिक बनकर, वहीं रुकना, मनुष्य की परिभाषा ढूँढने, जहां वो मिलेगा जीवों के रूप में, जो नहीं होगा घृणा, द्वेष, ईर्ष्या से संचित, वहीं मिलेगी परिभाषा तुम्हें मनुजता की, निश्चल प्रेम, स्नेह, करुणा भक्ति और बहुत कुछ, अज्ञानता के बोझ से निकल कर शाश्वत सत्य को पहचानो, यदि मानव बन मानवता को समझ सके, तो लौट आना परिपूर्ण बन अपनी उसी कुटिया में, जहाँ मिलेगा ईश्वर, अल्लाह, खुदा, हंसता-मुस्कराता, निश्चल प्रेम से सराबोर जीवों के रूप में तब कह देना तुम, सृष्टि की श्रेष्ठतम रचना हो मनुष्य के रूप में!...
कथा आजादी की
कविता

कथा आजादी की

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** दो शतकों तक देश में रहकर मिटा न पाए जिसकी हस्ती भारत ही वह पुण्य धरा है जन-जन के जो हृदय में बसती।। लॉर्ड कैनिंग से जनरल डायर तक लूट रहे थे सब धन को पर तोड़ न पाया फिर भी कोई देश प्रेम भरे मन को।। सर्वस्व निछावर करने बैठे माँ के थे वो सच्चे लाल और झुका न पाया कोई फिरंगी उनके गर्वित, उन्नत भाल।। राजगुरु, सुखदेव, भगत और लाल, बाल या पाल सभी डटे रहे वो महासमर में कि गौरव वसुधा का न घटे कभी।। बहते लहू पर वतन की मिट्टी जोश दिलों में जगा रही थी देश प्रेम की ज्वाला मन में आजादी का भाव जगा रही थी।। जलियाँवाला बाग की घटना रोक न पाई इंकलाब को आँखों ने जो देख रखा था स्वतंत्र देश के पुण्य ख्वाब को।। आंदोलन की सतत आँधी ने अंग्रेजों की नींव हिला दी असहयोग और भारत छोड़ो ने उनको नानी याद दिला दी।। क्रांति का पर...
वीर शहीदों को नमन
कविता

वीर शहीदों को नमन

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** खून से लथपथ भीगकर, सह गए गोरों के अत्याचार। जुबां पर फिर भी एक ही नाम,जय हिन्द की पुकार।। रानी लक्ष्मी, दुर्गावती, अवंतिका, झलकारी ने ललकारी। मां भारती की धरा पर ऐसी वीरांगना थी दमदार।। आजाद, बोस, भगत, गुरु, सुखदेव, अशफ़ाक थे तेज तलवार। दासता की बेड़ी तोड़ने, आज़ादी के दीवानों की थी भरमार।। तन-मन-धन सब वार दिए, झेल गए गोलियों की बौछार। नमन है उन वीर शहीदों को, कोटिशः नमन है बारम्बार।। फांसी पर झूल गए हँसकर, भारत माता के लाल। हँसकर शीश कटा गए, झुकने न दिए हिन्द के भाल।। वीर शहीदों के साहस से, मिली है हमें आज़ादी। ऐसे वीर शहीदों का है, हम सब पर उपकार।। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" निवासी -  गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
मेरी माटी, मेरा देश
कविता

मेरी माटी, मेरा देश

नवनीत सेमवाल सरनौल बड़कोट, उत्तरकाशी, (उत्तराखंड) ******************** कश्मीर तेरी, कन्याकुमारी तेरी, उत्तर-दक्षिण सब है तेरा तिरंगा लहराऊं सबसे पहले होगा मांगलिक दिन जब तेरा।। स्वतंत्र यहां अभिव्यक्ति है, बाईस इसकी शैली हैं, स्वदेशी पवित्र है लहू तेरा, धारा विदेशी मैली है।। माटी है मेरी, देश है मेरा, अभिमान मेरा, गर्व मेरा, करते क्यों नहीं जयघोष तेरी विचार उनसे पूछता हमारा।। ध्वज संहिता सीखाती हमें, लहराओ चाहे, चाह जितनी, ढंग तुम्हारा बताए मान का, माटी के प्रति श्रद्धा कितनी।। स्वीकार सबकी पुकार है, ललकार किसी की स्वीकार्य नहीं, भारत का दामन उज्ज्वल हो? प्रश्न यही आज विचार्य है।। परिचय :-  नवनीत सेमवाल निवास : सरनौल बड़कोट, उत्तरकाशी, (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...
अच्छी आदत सब अपनाएं
कविता

अच्छी आदत सब अपनाएं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अच्छी आदत हर दम अपने, जीवन में अपनायें। पा आशीषें वृद्ध जनों की, जीवन सफल बनायें। सूरज से, पहले जग जाना, प्रातः काल नहाना। गुरु जागें, तुम उनसे पहले, रोज-रोज, जग जाना। पूजा-पाठ, संग गृह कारज, जो, जीवन में करते। उनसे प्रभु प्रसीद होते हैं, खुशियाँ दामन भरते। गुरु पद सेवा, मंदिर जाना, जीवन में अपनायें। दुनिया देख,न विचलित हों हम, प्रभु से खैर मनायें। मात-पिता की सेवा करना, है अति प्यारी आदत। साक्षात भगवान समझना, सच्ची यही इबादत। दीन दुखी की सेवा करना, उनमें हिम्मत भरना। सबसे अच्छी आदत जग में, सब की सेवा करना। सेवा से,मन निर्मल होता, मैल दूर हो जाता। निर्मल मन जिसका हो जाता, वही प्रभु को पाता। लें संकल्प, सदा जीवन में, हम शुभ काम करेंगे। दीन-दुखी सबके जीवन में, उर आनंद भरेंगे। अ...
चलो इसमें पते की बात तो है
ग़ज़ल

चलो इसमें पते की बात तो है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** चलो इसमें पते की बात तो है। सफ़र में इक सहारा साथ तो है। ज़ुबाँ ये पूछती है इन लबों से, भला दिल में कहीं ईमान तो है। तबीयत है बड़ी नासाज़ लेक़िन, चलो इसमें ज़रा आराम तो है। हमारा है, हमेशा, ये जताकर, कि हमसे शख़्श वो नाराज़ तो है। बनाता है सभी जो काम अपने, किसी का सिर पे अपने हाथ तो है। कही वैसी, रही है सोच जैसी, हमारी शायरी बेबाक़ तो है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...