Friday, May 9राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

परिंदे उड़ चले दिनमान छूने
ग़ज़ल

परिंदे उड़ चले दिनमान छूने

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** परों पर होंसले परवान छूने। परिंदे उड़ चले दिनमान छूने। चले अपने इरादे साथ लेकर, नई मंज़िल ,सफ़र अन्ज़ान छूने। कभी आँखों में जो सपनें पले थे, वही निकले सही पहचान छूने। किसी को आसमाँ का डर नहीं है, उठें हैं दिल सभी अरमान छूने। हवाओं से रुकेंगे वो भला क्या, चलें हैं जो वहाँ तूफ़ान छूने। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिच...
ऐसा क्यों…?
कविता

ऐसा क्यों…?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** इतिहास में तुम ही तुम, हर अच्छी बात में तुम ही तुम, हर जगह बजती तेरी धुन, कल्पित गाथाओं में भी तुम, सबके माथाओं में भी तुम, शक्तिशाली भी तुम ही तुम, और बलशाली भी हो तुम, क्या तब और अब तुम ही तुम हो हमें पटल से क्यों कर दिए गुम, हुआ बहुत हमरा भी नाव, लो पढ़ लो भीमा कोरेगांव, पच्चीस हजार कैसे आ गए थे लोटने को पांच सौ के पांव, लिख डाले हो कर कर कुकर्म, देव खुद को कह रहा तेरा ग्रंथ, क्यों भूले हो पाखंड काटने आते रहे हमारे संत, सीरियलों और फिल्मों में भी सदपात्र बनाते रहे हो खुद को, खल चरित्र में दिखा दिखा झुठलाते रहे हमारे वजूद को, कब तक रहोगे पर्दे के पीछे दिखा बता कर लाखों झूठ, तब भी अब भी पल्लवित ही हैं समझते मत रहना हमको ठूंठ, शसक्त हो रहे हम भी अब ये कभी मत जाना भूल, सम की राह में नहीं चलोग...
मधुर ताल में
कविता

मधुर ताल में

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** मधुर ताल में बजने वाली तुम्हारी ढोल का पोल कहीं न खोल दूँ।। सील दो जबान मेरी तुम्हारे खिलाफ कहीं न बोल दूँ। बहुत हो गया तेरा नाच गाना। अब चलेगा न तेरा कोई बहाना।। देख फड़फड़ा रहे हैं लब मेरे, कह रहे तेरे हर नब्ज को टटोल दूँ।। सील दो जबान मेरी तुम्हारे खिलाफ कहीं न बोल दूँ। चलाके प्यार से एक तीर तूने कई शेरों का शिकार किया है। बड़े मनमोहक अंदाज से तूने, खंजर सीने पे वार किया है।। बताके बाजार में औकात, तेरी असल कीमत बोल दूँ। सील दो जबान मेरी तुम्हारे खिलाफ कहीं न बोल दूँ। परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
हाय रे हाय नौकरी
कविता

हाय रे हाय नौकरी

राज कुमार साव पूर्व बर्धमान (पश्चिम बंगाल) ******************** हाय रे हाय नौकरी आज की यह कैसी विडंबना है जिसके पास नौकरी है वह पढ़ा-लिखा और सभ्य इंसान समझा जाता है और जिसके पास नहीं है वह अशिक्षित और असभ्य इंसान समझा जाता है हाय रे हाय नौकरी।। हाय रे हाय नौकरी आज की यह कैसी विडंबना है जिसके पास नौकरी है उसका समाज में बहुत अधिक सम्मान किया जाता है और जिसके पास नहीं है उसका तिरस्कार किया जाता है हाय रे हाय नौकरी।। परिचय :- राज कुमार साव निवासी : पूर्व बर्धमान पश्चिम बंगाल घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिया...
आबे संगी मोर गाँव
आंचलिक बोली, कविता

आबे संगी मोर गाँव

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** आबे संगी मोर गाँव, ‌ हावय मया पिरीत के ठाँव। अमरय्या हर निक लागे सुग्घर बर पीपर के छाँव।। आबे संगी मोर गाँव..... मोर गाँव के खरखरा बाँध के निरमल पानी, डुबकी लगाथन हम जम्मों परानी । शिव भोला म पानी चढ़ाके , मिलथे सब्बों ल‌ भोले बबा के आशीष ।। आबे संगी मोर गाँव..... खेती खार सुग्घर लागे, बाहरा खार के धनहा डोली । निक लागे सुग्घर अरा तत्ता के बोली, कारी कोयली कुहुके बन म कौवा के कांव -कांव।। आबे संगी मोर गाँव..... जागर ठोर मेहनत करे , सुख-दुख के सब संगवारी हे । देवता धामी इहां बिराजे, बैंइठे हावय इहां ठाँव- ठाँव ।। आबे संगी मोर गाँव..... चैतु, बुधारु, अउ हावय इतवारी, मया पिरीत के हाबें फूलवारी । झुनुर-झुनुर पैंरी बाजे, भुरी नोनी के सुग्घर पाँव।। आबे संगी मोर गाँव..... नदिया, नरवा, ड...
हिंदुस्तान की संस्कृति महान
गीत

हिंदुस्तान की संस्कृति महान

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरे हिंदुस्तान की संस्कृति महान है। मेरा हिंदुस्तान सर्वगुणों की खान है। समस्त विश्व करता इसका गुणगान है। नृत्य कला धर्मनिरपेक्षता इसकी पहचान है २६जनवरी को लागू हुआ संविधान है हर धर्म को मिला यहां अधिकार समान है। जन गण मन यहां का राष्ट्रीय गान है। आर्यभट्ट कलाम जैसे वैज्ञानिक महान है नदियों को भी मिलता यहां मां का सम्मान है। घर में आया हर अतिथि भगवान है। पूजे जाते यहां वेद, गीता और कुरान हैं। वीर सपूत महाराणा प्रताप पृथ्वीराज चौहान है। लक्ष्मीबाई, दुर्गावती वीरांगनाएं हमारी शान है। हर घर में शिष्टाचार और आदर सम्मान है। हिंदुस्तान हमारी आन बान और शान हैं । नतमस्तक हो करते हम इसका बखान है। मेरे हिंदुस्तान की संस्कृति महान है। मेरा हिंदुस्तान सर्वगुणों की खान है।। परिचय :- दीप्ता मनोज नीमा निवासी : इंदौर (मध्य...
सोनिल है हर ग्राम
गीत

सोनिल है हर ग्राम

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** शस्य-श्यामला मात भारती, सोनिल है हर ग्राम। शत-शत नमन धरा को करते, कण-कण बसते राम।। शीश मुकुट काश्मीर सजता, हिमगिरि इसकी शान। मनमोहे हरियाली धरती, गांधी हैं पहचान।। सोने की चिड़िया कहते थे, जप लो आठों याम। पावन मातृभूमि है अपनी, रत्नों की है खान। सत्य अहिंसा की थाती ये, अपना देश महान।। धरती का शृंगार अनोखा, गंगा उद्गम धाम। मानवता का रक्षक न्यारा, समझे जग की पीर। प्रेम एकता पाठ पढ़ाते, तुलसी और कबीर।। नित्य नेह के दीपक जलते, लगता तिलक ललाम। तीर्थ हमारे पावन सारे, संविधान है ढाल। दिव्य-ऋचाएँ लगतीं प्यारी, तोड़े हर दीवाल।। गौरव गाथा इसकी गाओ, कर्म करो निष्काम। याद दिलाती है राणा की, वीरों की हर जंग। बुंदेलों की वसुंधरा का, देख वसंती रंग।। दिव्य ज्योति नित जले नेह की, जानो तो अविराम। सकल जगत् मे...
बकुल वीथिका के सौरभ में
गीतिका

बकुल वीथिका के सौरभ में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आधार छंद - सार छंद बकुल वीथिका के सौरभ में, प्रेम-पंथ महमाता। गंधसार तुम बन खंजन मैं, देख तुम्हें ललचाता।।१ विधुवदनी तुम पूरनमासी, बन छत पर जब आती, दृग-सागर में प्रणय-पुस्तिका, पढ़ मैं नित्य नहाता।।२ सांध्य दीप-सी ढ्योड़ी को तुम, जगमग ज्यों कर देती, हृदयांचल के मंदिर में मैं, तुम्हें सजा हर्षाता।।३ अवगुंठन की आड़ लिए तुम, मंद-मंद शर्माती, पाटल अधरों पर प्रियता का, चुंबन मैं धर जाता।।४ रति रंभा तुम परिरंभन की, आस लगा जब बैठी, यह मन वासव प्रमुदित होकर, ठुमके साथ लगाता।।५ प्यास पपीहे सा तड़पाती, मन के मरुथल को जब, तुहिन कणों को भर सीपी में, तुम्हें पिलाने आता।।६ सुधियाँ ओढ़े सो जाती तुम, सपनों के बस्ती में। चंचरीक मैं सारंगी पर, लोरी मधुर सुनाता।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्र...
भक्तों का विश्वास
कविता

भक्तों का विश्वास

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** भक्तों का विश्वास है रहता एक दिन प्रभु तो आएंगे, डूबती नैया भक्तों की देखो आकर प्रभु बचाएंगे, ध्रुव प्रहलाद को आकर तुमने अपने गले लगाया है, खंब फाड़ नरसी अवतारे भक्तों को गले लगाया है, नानी बाई का भात हे भरने प्रभु तो तुम जब आए हो, नरसिंग जी का मान बढ़ाकर भात प्रभु भर जाते हो, कर्माबाई का खिचड़ा प्रभु तुम आकर रूप रूच पाते हो, मीराबाई के विरह गायन में आकर तुम बस जाते हो, दुर्योधन का मेवा त्यागा, साग विदुर घर पाते हो, विदुरानी के हाथ से देखो, केल का छिलका पाते हो, द्रोपति का प्रभु चिर बढ़ाते, कलयुग में कहां बिसराये हो, असंख्य दुशासन खड़े यहां पर, कब सुदर्शन धारी आओगे, असंख्य द्रोपति तुम्हें पुकारती, कब आकर लाज बचाओगे, किरण की प्रभु यही विनती, कब आकर दर्श दिखाओगे, तेरे दरस की अखियां प्यासी,...
नव वर्ष कहाँ
कविता

नव वर्ष कहाँ

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** जब रोम-रोम गुलाम लगे, बहे सर्द हवाएँ सन सन सन। घर के अंदर भी ठिठुरन है, कहे चीख-पुकार के अंतर्मन।। पल भर भी नहीं है हर्ष यहां। नव वर्ष कहाँ नव वर्ष कहाँ।। अपना नव वर्ष तो बाकी है, नव अंकुर आने वाले हैं। सूखे पत्ते गिर जाएंगे, खुलने वाले सब ताले हैं।। केसरिया सब हो जाएगा, होगा तब अमृत पर्व यहाँ। नव वर्ष कहाँ नव वर्ष कहाँ।। जैसे बसंत ऋतु आएगी, कलियाँ कलियाँ खिल जाएगी। हर्षित तब घर आंगन होगा, मन में उमंग नव आएगी।। तब हरा-भरा उपवन होगा, कोयल नव तान सुनाएगी। ऐसी अद्भुत ऋतु में लगता, खुद पर सबको है गर्व यहाँ। नव वर्ष कहाँ नव वर्ष कहाँ।। अंग्रेजो की लाई हुई, संस्कृति को क्यों अपनाना है। हम हिंदू हिंदुस्तान के हैं, हिंदू नव वर्ष मनाना है।। अरमानो के नव पर होंगे, खुशियों के पल घर-घर होंगे। आनन्द कलम भ...
आओ खाएँ चूड़ा-लाई…
कविता

आओ खाएँ चूड़ा-लाई…

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ खाएँ चूड़ा लाई 'चाऊ-माऊ', खिचड़ी आई मुन्ना आओ, मुन्नी आओ झुन्ना-टुन्ना, तुम भी आओ आओ सारे बच्चे आओ सब पुआल पर बैठें आओ गजहर पर सभी सज जाओ कुरई अदल-बदल कर खाओ बैठो, बोर-चटाई लेकर गुड़-तिल और चबैना लेकर देखो, धूप सुहानी निकली लगता निज-घर लौटी बदली बहु-दिनों से छायी हुई थी सबसे खार खाई हुई थी दादा जी को खूब सताया 'झुनझुन-मुनझुन' को रिसियाया सुन्दर बाछा-बाछी हैं ये द्वार-दौड़ के साझी हैं ये बारिश-मड़या में रहते थे टाटी से झाँका करते थे आज जब पगहा है निकला देखो, कैसे दौड़े अगला! श्वानों के शिशु खेल रहे हैं पटका-पटकी मेल रहे हैं कूँ-कूँ कभी काँय-काँय करते कभी ये-वो भारी पड़ते रानू-चीकू, पतंग उड़ाते एक दूजे से पेंच लड़ाते, जब 'कोई-जन' पतंग उड़ाए काट दिये पर क्यों पछताए पतंग खेल भैय्या लोगों का नहीं खेल छ...
बेरोजगार हूँ साहब
कविता

बेरोजगार हूँ साहब

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** बेरोजगार हूँ साहब! मै बेईमान तो नहीं दिल में मेरे हजारों अरमान तो नहीं..!! नौकरी सबूत नहीं है अच्छे इंसान होने का इंसान हूँ मैं इंसानों से अलग तो नहीं..!! अपनी जिंदगी कि मैं लड़ाई लड़ रहा हूँ सपनों के लिए बस आशियाना बुन रहा हूँ..!! अपनों से गीला नहीं गैरो से शिकवा नहीं रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहा हूँ..!! भविष्य की चिंता मुझे सताती है हरपल जख्म मेरे रोज़ नए हो जाते है पल पल..!! सहम सा जाता हूँ लोगों का सवाल सुनकर ना पूछा कर क्या कर रहा है आज कल ? ना देश लूट रहा हूँ, ना देश चला रहा हूँ ना हत्या कर रहा हूँ, ना फरेब कर रहा हूँ..!! ना कोई गुनाह किया हूँ, ना गुनहगार हूँ रोजगार की तलाश करता मैं बेरोजगार हूँ..!! आखिर ये सवाल क्यों पूछते है लोग मुझसे क्या रिश्ता है जमाने में उनका और मुझसे..!! ...
वो लड़का
कविता

वो लड़का

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** सरकार चलाने वालों क्या, तुमने ये सोचा है कभी? वो लड़का कैसे जीता होगा, जिसके सपने मर जाते हैं। गाँव से आकर शहर बीच, इक छोटे कमरे में रहता है। सपनों को पूरा करने को, वह रात - रात भर पढ़ता है। फीस वो कोचिंग कालेज की, जब भी भरने को जाता है। मजदूरी से लौटे पापा का, उसे चेहरा याद आ जाता है। टीचर क्लास से बाहर करते, जब पापा फीस नही भर पाते हैं। वो लड़का कैसे जीता होगा, जिसके सपने मर जाते हैं। आते समय गाँव से मम्मी, रख देती रोटी संग सपने। पढ़ जायेगा जिसदिन बेटा , आयेंगे अच्छे दिन अपने। जब बनकर अफसर आयेगा, तब नई खरीदूंगी साड़ी। मुखिया के जैसी ही मैं भी, ले लूंगी एक मोटर गाड़ी। सब सपने पूरे करने को, दिन रात एक कर जाते हैं। वो लड़का कैसे जीता होगा, जिसके सपने मर जाते हैं। पापा की लाठी बन पाए, ...
मैं सोये सिंह जगाने आया हूँ..
कविता

मैं सोये सिंह जगाने आया हूँ..

नितिन मिश्रा 'निश्छल' रजौरी सीतापुर (उत्तर प्रदेश) ******************** फिर कोशिश है सोये सिंह जगाने की.. हृदयों में फिर राष्ट्र प्रेम धधकाने की.. देखो पूरा भारत सोया-सोया है.. न जाने ये किन सपनों में खोया है.. इक छोटा सा घाव दिखाने आया हूँ.. हाँ मैं सोये सिंह जगाने आया हूँ.. रावण छुट्टा हैं जेलों से बेलों पर.. देखो तो भगवान बिक रहे ठेलों पर.. जिधर नजर डालो दहशत की आंधी है.. बन बैठा हर कोई महत्मा गांधी है.. कोई ऊधम सिंह नजर न आता है.. जनरल डायर फिर से हुक्म सुनाता है.. फिर से जलियांवाला बाग बनायेगा.. कहता है फिर खूनी फाग मनायेगा.. कौवे गाते हैं कोयल शर्माती है.. और गुलों से गंध विषैली आती है.. देखो फूलों को खारों ने घेरा है.. प्रातःकाल में छाया हुआ अंधेरा है.. चूहा सिंहों को चाटा दे जाता है.. उल्लू गरुड़ों को घाटा दे जाता है.. सूरज बंदी पड़ा जुगुनुओं के घर में.. क...
ये सांसें अनमोल हैं
कविता

ये सांसें अनमोल हैं

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** ये सांसें बहुत अनमोल हैं देह के भीतर जाती है बहुत पीड़ा पाती है। पीड़ा पाकर ही यह आतीं हैं। जब सांसे अहंकार से मुलाकात कर बैठी तो जीवन में दुःख ही पाती है। ये सांसें गिनती की मिली हैं ये सांसें अनमोल हैं। इस धरा पर आयें हैं इसका ध्यान रखना है। एक-एक सांस का हिसाब रखना है। इससे पहले देह का इनसे नाता छूटे, इन सांसों का हिसाब रखना है। ये सांसें अनमोल हैं। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अ...
तुझ बिन
भजन

तुझ बिन

आकाश प्रजापति मोडासा, अरवल्ली (गुजरात) ******************** तुझ बिन मैंने कैसी ये प्रीत लगाई रे राधे-राधे नाम जपते तेरी याद आई रे तुझ बिन कैसी प्रीत लगाई रे प्रेम की अभिभाषा तुझ से ही तो मुझे समझाई रे जीवन की नई दिशा तुझ से ही तो पाई रे तुझ बिन कैसी ये प्रीत लगाई रे राधा रानी भी तो कृष्ण को न मिल पाई रे फिर भी एक दूजे के हमराही रे तुझ बिन मैंने ये कैसी प्रीत लगाई रे राम सीता जैसी हमारी जोड़ी मिल आई रे जनम जनम के प्रेम के हम साथी रे तुझ बिन मैंने कैसी प्रीत लगाई रे किया तुझ से जब से मैंने प्रेम रे हुआ मैं तो इस दुनियां से मुक्त रे तुझ बिन मैंने कैसी प्रीत लगाई रे पास होकर भी हम एक दूजे से क्यों दूर रे जीवन भर साथ का है फिर भी क्यों मोह रे तुझ बिन मैं कैसे प्रीत लगाऊं रे तू ही मेरा जीवन है तू ही काया रे सदेव तुझ से ही प्रेम करूंगा तू ही मेरी छाया रे तुझ से ही...
जोशीमठ की त्रासदी
कविता

जोशीमठ की त्रासदी

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** तपस्थली रहा है जो महात्माओं की, ऐसा है आस्था और भक्ति का ये स्थान, राजधानी रहा है कत्यूरी राजाओं की, ऐसा खुबसूरत है ये पावन स्थान, छः ऋतुएं बन जाती हो दिन में जहां, ऋतुंभरा के नाम से जाना जाता है ये स्थान, इन्सान की चकाचौंध वाली जिंदगी से, हार गया है अब ये पावन स्थान, लाखों लोगों को जीवन दिया जिसने, आज जमींदोज हो रहा है ये स्थान, जिसकी धरती कांप रही हो, सिसक रहा हो सीना जिसका, अब प्रकृति की त्रासदी, दिखा रहा है ये स्थान, जंगलों को जी भर कर काटा, जल की है धारा बदली हमने, उसी नादानी के कारण अब, रौद्र रूप दिखा रहा ये स्थान, रो रहे पशु पक्षी मानुष, उजड़ रहा बसैरा जिनका, जीवन गुज़र बसर के लिए, मदद की गुहार लगा रहा ये स्थान, आज त्रासदी भारी झेल रहा, लेकर अपने सीने पर, जोशीमठ देवभूमि उत्तराखंड का, ये पावन प...
दर्द होता है तो होने दो
कविता

दर्द होता है तो होने दो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** दर्द होता है सीने में तो होने दो। देकर मोहब्बत भी कोई करता है नफरत तो करने दो। देखकर दूसरों के जीवन में उल्लास कोई मरता है तो मरने दो। देकर मान-सम्मान भी कोई गिरता है नजरों से तो गिरने दो। देकर प्रेम, लगाव और एहसास भी कोई जीवन से जाता है तो जाने दो। ईमानदारी सच्चाई की राह पर चलते हुए कोई छोड़कर जाता है तो जाने दो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय...
ऐसी समझ कहाँ
कविता

ऐसी समझ कहाँ

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** लोग आपको समझ सके ऐसी समझ कहाँ अनजाने राहों पर अनजाने लोगों से, अनकही बातों को जो समझ सके ऐसी समझ कहाँ मैं नहीं तुम तुम नहीं आप आप नहीं हम ऐसी समझ कहाँ ... परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर...
जीत होगी
कविता

जीत होगी

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** हार से हार कर बैठे हो तुम। मन को मार कर बैठे हो तुम।। जीत के लिए छोड़ दिए तैयारी। तोड़ दी पुस्तकों से अपनी यारी।। अनमना रहना अच्छा लगता है। बीती हुई बातें अच्छी लगती है।। मैं क्यों हारा इसका शोध कर? किये हुए गलती का बोध कर।। मन को एकाग्र कर साहस भरकर। लक्ष्य की ओर जाना है दौड़ कर।। फिर शुरू कर अध्ययन जीत की। प्रेरणा लेते चल ज्ञान अतीत की।। जाग जा युवा समय के संग चल। दुःख की बदली को सुख में बदल।। कर्म राह में आयेगी जो चुनौतियां। ज़िद के सामने दूर होगी पनौतियां।। कठोर परिश्रम से दक्षता हासिल कर। तब मंजिल राह देखेगी चुनेगी वर।। झूम के नाचोगे मन में खुशी होगी। अंतिम में जय होगी, विजय होगी।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शि...
कैसे श्रीराम लिखूं
कविता

कैसे श्रीराम लिखूं

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** सब दंभ भरा दिखावा रहे गया जहा उस जमाने का कैसे गूणगाण लिखूं यहा रोज हरण होती मानवता फिर कैसे श्रीराम लिखूं। ना नारी मे अब सीता दिखती ना नर मे कहीं राम दिखे जहाँ टुकड़े-टुकड़े हो श्रध्दाये बिखरी वहा कैसे राधेश्याम लिखूं। जलता समाज दहेज की आग मे बिकता दुल्हा मंडी मे जहाँ रोज सती की जाती दुल्हन वहां कैसे सियाराम लिखूं। जहाँ महिला आरक्षण की धूम मची और गर्भ मे भी नहीं सुरक्षित बेटियां इस जमाने मे अब माँ के दिल का क्या हाल लिखूं। जहाँ गली-गली रावण, दुःशासनों की भरभार भरी और दिखे नहीं द्रौपदी का घनश्याम कहीं वहाँ कैसे नारी को निर्भया लिखूं। जहाँ शिक्षा व्यवस्था की मंडी लग गयी और परीक्षाएं बेमानी हो गयी जो सिर्फ कमाई का पाठ पढ़े उसको को क्या विद्यावान लिखूं। बेरोजगार और बेकार युवा यहा मारे-मारे फिरते है सिर...
युद्ध और जीव
कविता

युद्ध और जीव

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दिन माह बरस बीत रहे, युद्ध की विभीषिका अभी शेष है हवाओं की सरसराहट, क्रंदन सी प्रतीत हो रही है पर्वतों के शिखर चीख-चीख कर आतंक की गवाही दे रहे हैं पक्षियों की चहचहाहट रुदन में बदल रही है इन जीवों की कराह से धरती भी सिसक रही है युद्द ने जीवो के हृदय को छला है जीव जंतुओं का रक्त सुखी पत्तियों सा पड़ा है प्रकृति उसी क्षण बुढ़ी लगने लगी है मानो उसके रंग पिघलने लगे हैं घरों के उजड़ने का क्रम थमा नहीं है अभी ना ही आंसुओ का सैलाब रुका है युद्ध मासूम जीवों को निगल रहा है शनैः शनैः कोई रास्ता शेष नहीं दिख रहा जीवन का हे मनुष्य!! मासूम जीवों को दम तोड़ते-छटपटाते पीड़ा को क्या तिरस्कृत कर दिया है तुमने? क्या इनकी मौत पर शोक मनाने को इन्सानियत जिंदा नहीं रही? क्या अपराध है इन असहाय अबोध सहचर...
मां की ममता
कविता

मां की ममता

गौरव श्रीवास्तव अमावा (लखनऊ) ******************** मां की ममता धरा पर अमर हो गई, बात वर्षों पुरानी बहुत हो गई, मां के आंचल में मुझको पता न चला, दिन ये कब ढल गया रात कब खो गई। युग से चलती चली आ रही ये पृथा, मां ही हरती है बेटे की हर दुख व्यथा, त्रेता युग की कहानी सुनाता हूं मैं, राम के प्रेम की है ये सारी कथा। राम के जन्म से लोग हर्षित हुए, राम के चरणों में सब समर्पित हुए, माई कौशल्या मन में करें कल्पना, प्रभु श्री राम के पाद अर्पित हुए। दिन ये ढलने लगे राम हो गए बड़े, मझली मां के सदन भाग होते खड़े, देखकर स्वप्न में मातु कैकेई को, जाना है रात में अपनी जिद पर अड़े। कुहुकनी ले तेरा ये कुहुक है जगा, देख कर स्वप्न तेरा भवन से जगा, राम को छोड़ कर बहन के द्वार पर, राम के प्रेम में मां भिगोती धरा। बात द्वापर की जब याद आती मुझे, मां यशोदा की ममता लुभाती मुझे...
प्रेमिल मधुमास
कविता

प्रेमिल मधुमास

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चंचल मन आह्लादित होता, है प्रेमिल मधुमास सखी री। बहे पवन शीतल पावन भी, कुसुमित फूल पलास सखी री।। ऋतु बसंत मदमाती आयी, नव पल्लव पेड़ो पर छाए। झूम रहे भौरे मतवाले, अल्हड़ अमराई मुस्काए।। पीली चूनर ओढ़े धरती, हिय में रख उल्लास सखी री। चंचल मन आल्हादित होता, है प्रेमिल मधुमास सखी री।। उन्मादित नभ धरती आकुल, यौवन का मौसम रसवंती। महुआ पुष्पित गदराया है, सरसों का रँग हुआ बसंती।। नाच रही है कंचन काया, हिय अनंग का वास सखी री। चंचल मन आल्हादित होता, है प्रेमिल मधुमास सखी री।। हुआ सुवासित तन गोरी का अंग अंग लेता अँगड़ाई। हृदय कुंज में मधुऋतु आयी, भली लगे प्रिय की परछाई।। मधुर यामिनी देख मिलन की, सभी सुखद आभास सखी री। चंचल मन आल्हादित होता, है प्रेमिल मधुमास सखी री।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्ध...
दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं
कविता

दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** अब जिंदगी मे कुछ भाता नहीं रात ऐसी, जैसे सुबह आता नहीं कोइ आता नहीं कोइ जाता नहीं दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं मखमली बिस्तर, पर नींद नहीं प्यार है उनका, पर साथ नहीं संघर्ष मे कोई साथ आता नहीं दर्दे दिल को कोई मिटाता नहीं जीवन की अनोखी सौगात है पल मे बदलती जैसे हालात है ख़्यालात यूँही तो बदलता नही दर्दे दिल को कोई मिटाता नहीं उम्र दराज मे ही हम तुम मिले है अरमानों के दिल में फूल खिले है उसके सिवा अब कुछ भाता नहीं दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं हमको मिलाना उसकी मेहर है याद आना अब आठों पहर है दिल में कसक यूँही उठाता नहीं दर्दे दिल को कोई मिटाता नहीं परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शि...