मृगनयनी के दृग चटुल, छोड़ रहे ब्रह्मास्त्र….
भीमराव झरबड़े 'जीवन'
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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मृगनयनी के दृग चटुल, छोड़ रहे ब्रह्मास्त्र।
बचना हैं तो आप भी, पढ़ें प्रीति का शास्त्र।।१
चंचरीक मन खोलकर, बैठा हृदय गवाक्ष।
पढ़े प्रीति की पत्रिका, गोरी के पृथुलाक्ष।।२
भुजपाशों में कैद हो, विहँस उठा शृंगार।
जीत गया तन हार कर, मन का वणिक विचार।।४
मेघावरियाँ प्रीति की, बरस रही रस धोल।
नर्तन करे कपोल पर, कुंतल भी लट खोल।।४
अवगुंठन कर यामिनी, पढ़े प्रणय के गीत।
निक्षण की अभ्यर्थना, स्वीकारो मन मीत।।५
परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन'
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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